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Geography (भूगोल): September 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

हुंगा टोंगा-हुंगा हापाई ज्वालामुखी 

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2023 में अब तक वैश्विक स्तर पर अभूतपूर्व तापमान वृद्धि दर्ज़ की गई है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसका एक कारण वर्ष 2022 में दक्षिण प्रशांत में हुंगा टोंगा-हुंगा हापाई ज्वालामुखी का जल के नीचे विस्फोट हो सकता है।

हुंगा टोंगा-हुंगा हापाई ज्वालामुखी के विषय में मुख्य तथ्य:

  • हुंगा टोंगा-हुंगा हापाई ज्वालामुखी पश्चिमी दक्षिण प्रशांत महासागर में टोंगा साम्राज्य द्वारा बसे हुए द्वीपों के पश्चिम में है।
  • यह टोफुआ आर्क के साथ 12 पुष्ट अंडर-सी ज्वालामुखियों (Submarine Volcanoes) में से एक है, जो बड़े केरमाडेक-टोंगा ज्वालामुखी आर्क का एक खंड है।
    • टोंगा-केरमाडेक आर्क का निर्माण इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट के नीचे प्रशांत प्लेट के सबडक्शन के परिणामस्वरूप हुआ।
  • यह एक अंडर-सी ज्वालामुखी है जिसमें दो छोटे निर्जन द्वीप, हुंगा-हापाई और हुंगा-टोंगा शामिल हैं।

पृथ्वी के तापमान पर हुंगा टोंगा ज्वालामुखी का प्रभाव:

  • सामान्यतः बड़े पैमाने पर ज्वालामुखी विस्फोट तापमान को कम करते हैं क्योंकि वे भारी मात्रा में सल्फर डाइ-ऑक्साइड को उत्सर्जित करते हैं, जो सल्फेट एरोसोल बनाते हैं जो सूर्य के प्रकाश को वापस अंतरिक्ष में प्रतिबिंबित कर पृथ्वी की सतह को अस्थायी रूप से ठंडा कर सकते हैं, जिसे सामान्यतः सन डिमिंग कहा जाता है।
  • टोंगा विस्फोट जोकि जल के नीचे हुआ था, का एक और प्रभाव वर्ष 2022 में हुंगा टोंगा-हुंगा हापाई के विस्फोट से 58 किमी ऊँचा उद्गार था और यह अब तक का सबसे बड़ा वायुमंडलीय विस्फोट था।
  • हुंगा टोंगा-हुंगा हापाई विस्फोट अजीब है क्योंकि, दशकों में समतापमंडलीय एयरोसोल में सबसे अधिक वृद्धि के अलावा, इसने समतापमंडल में भारी मात्रा में जल वाष्प को भी इंजेक्ट किया।
  • जल वाष्प एक प्राकृतिक ग्रीनहाउस गैस है जो सौर विकिरण को अवशोषित करती है और वातावरण में गर्मी को एकत्रित करती है
    • एरोसोल तथा जल वाष्प विपरीत तरीकों से जलवायु प्रणाली को प्रभावित करते हैं, लेकिन कई अध्ययनों में पाया गया है कि ज्वालामुखी विस्फोट से उत्पन्न बड़े और अधिक स्थायी जल वाष्प बादल के कारण सतह पर अस्थायी नेट वार्मिंग प्रभाव देखा जा सकता है।

पिछले ज्वालामुखी विस्फोटों का वैश्विक स्तर पर जलवायु प्रभाव:

  • इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) के अनुसार, पिछले 2,500 वर्षों में लगभग आठ बड़े ज्वालामुखी विस्फोट हुए हैं।
  • इन ज्वालामुखियों में से एक टैम्बोरा ज्वालामुखी (इंडोनेशिया) है, जिसमें वर्ष 1815 में विस्फोट हुआ, जिसके कारण फ्राँस से संयुक्त राज्य अमेरिका तक फसलें नष्ट हो गईं।
  • इससे भी भीषण घटना वर्ष 1257 में घटित हुई थी जब इंडोनेशिया में समलास ज्वालामुखी में विस्फोट के कारण अकाल पड़ा और संभवत: छोटे हिमयुग की शुरुआत हुई, यह असामान्य रूप से शीत काल था जो लगभग 19वीं शताब्दी तक चला।

निष्कर्ष:

  • प्रशांत महासागर में अल नीनो की स्थिति से लेकर साइबेरिया में हुई वनाग्नि तक, कोई भी घटना वैश्विक तापमान को प्रभावित कर सकती है।
  • हुंगा टोंगा-हुंगा हापाई ज्वालामुखी प्रस्फूटन वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर ले जा सकता है, लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं है कि पेरिस समझौता विफल हो गया है; इस घटना ने प्रदर्शित किया है कि विश्व अपने सहमत निर्णायक बिंदु के कितने निकट है।

जोशीमठ में भू-अवतलन का अध्ययन 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में उत्तराखंड के जोशीमठ शहर में भूमि धँसने का कारण जानने के लिये भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) सहित भारत के आठ प्रमुख संस्थानों द्वारा अलग-अलग अध्ययन किये गए और हिमालयी शहर के धँसने के विभिन्न कारण बताए गए।

जोशीमठ में भू-अवतलन के विषय में संस्थानों की रिपोर्ट:

  • केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (Central Building Research Institute- CBRI):
    • अपनी रिपोर्ट में, CBRI ने कहा कि जोशीमठ शहर में क्रमशः 44%, 42% व 14% निर्माण चिनाई (Masonry), RCC और अन्य (पारंपरिक, संकर) प्रकार हैं, जिनमें से 99% गैर-इंजीनियर्ड हैं।
    • ये संरचनाएँ भारत के राष्ट्रीय भवन संहिता, 2016 का पालन नहीं करती हैं।
  • अन्य निष्कर्ष:
    • जोशीमठ शहर वैक्रिटा चट्टानों (मोटे अभ्रक-गार्नेट-कायनाइट और सिलिमेनाइट-असर वाले सैममिटिक मेटामोर्फिक्स से बनी) के समूह पर स्थित है जो मोरेनिक जमाव से ढका हुआ है जो अनियमित बोल्डर और अलग-अलग प्रकार की मृदा से बना है।
    • इस तरह के जमाव कम एकजुट होते हैं और धीमी गति से अवतलन तथा भूस्खलन धंसाव के प्रति संवेदनशील होते हैं।
  • राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (National Institute of Hydrology- NIH) की रिपोर्ट:
    • इस रिपोर्ट में विभिन्न झरनों, जल निकासी नेटवर्कों और भू-अवतलन वाले क्षेत्रों का मानचित्रण किया गया, जिससे अनुमान लगाया गया कि जोशीमठ में भूमि अवतलन एवं उपसतह जल के बीच कुछ संबंध हो सकते हैं।
    • संस्था ने ऊपरी इलाकों से आने वाले पानी के सुरक्षित निपटान और अपशिष्ट निपटान को सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में सुझाया।
  • वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (WIHG) रिपोर्ट: 
    • संस्था ने धीमी और क्रमिक भू-अवतलन का कारण भूकंप को बताया है।
    • साथ ही संस्था ने कहा कि भू-अवतलन का मुख्य कारण उपसतह जल निकासी के कारण आंतरिक क्षरण प्रतीत होता है, जो वर्षा जल की प्रविष्टि/हिम के पिघलने/घरों और होटलों से अपशिष्ट जल के निर्वहन के कारण हो सकता है।
  • ISRO का रुख:
    • जोशीमठ क्षेत्र में भू-अवतलन टो-कटिंग (Toe-Cutting) के कारण हो सकता है।
    • इसके अलावा मिट्टी में स्थानीय जल निकासी के पानी के रिसाव के परिणामस्वरूप ढलान की अस्थिरता भी होती है।
    • भू-भाग और भू-भागीय विशेषताएँ भी भू-अवतलन के लिये उत्तरदायी हैं।
    • ढलान की ढीली और असंगठित मोराइन अर्थात् हिमोढ़ हिमनद मलबे (पुराने भूस्खलन के कारण) एवं वर्तमान में शहरी क्षेत्र तथा उसके आसपास बाढ़ की घटनाओं ने भी भूमि अवतलन में योगदान दिया।

जोशीमठ को बचाने के उपाय

  • विशेषज्ञ क्षेत्र में विकास और जलविद्युत परियोजनाओं को पूरी तरह से बंद करने की सलाह देते हैं। लेकिन तत्काल आवश्यकता निवासियों को सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित करने और फिर नए बदलावों व बदलते भौगोलिक कारकों को समायोजित करके शहर की योजना की फिर से कल्पना करने की है।
  • जल निकासी योजना का निर्माण इसके सबसे बड़े कारकों में से एक है, इसका अध्ययन कर इसे पुनः विकसित किये जाने की आवश्यकता है। शहर में जल निकासी और सीवर प्रबंधन की समस्या काफी जटिल है क्योंकि इससे अधिक से अधिक अपशिष्ट मृदा में रिस रहा है, जिस कारण मृदा अंदर से मुलायम व भुरभुरी होती रही है। राज्य सरकार ने सिंचाई विभाग को इस मुद्दे पर ध्यान केन्द्रित करने तथा जल निकासी व्यवस्था के लिये एक नई योजना बनाने के लिये कहा है।
  • विशेषज्ञों ने इस क्षेत्र में, विशेष रूप से मृदा की क्षमता बनाए रखने के लिये संवेदनशील स्थानों पर, पुनः रोपण का भी सुझाव दिया है। जोशीमठ को बचाने के लिये सीमा सड़क संगठन जैसे सैन्य संगठनों की सहायता से सरकार तथा नागरिक निकायों के बीच एक समन्वित प्रयास की आवश्यकता है।
  • राज्य की मौजूदा मौसम पूर्वानुमान तकनीक, जो लोगों को स्थानीय घटनाओं के बारे में चेतावनी दे सकती है, के कवरेज में सुधार किये जाने की आवश्यकता है।
  • राज्य सरकार को वैज्ञानिक अनुसंधानों (वर्तमान समस्या के कारणों को स्पष्ट रूप से रेखांकित करने वाले) को भी अधिक गंभीरता से लेना चाहिये।

भूस्खलन:

  • भूस्खलन चट्टानों, मलबे अथवा पृथ्वी की शैलों की ढ़लान से नीचे खिसकने की प्रक्रिया है।
  • यह एक प्रकार का वृहत क्षरण (Mass wasting) हैं, जो गुरुत्वाकर्षण के प्रत्यक्ष प्रभाव के कारण मृदा और चट्टान में किसी भी प्रकार से नीचे की ओर गति को दर्शाता है।
  • भूस्खलन शब्द में ढ़लान की गति के पाँच तरीके शामिल हैं: गिरना, पलटना, खिसकना, फैलना और बहना।

प्रशांत मौसम में परिवर्तन: अधिक बहुवर्षीय अल नीनो और ला नीना

चर्चा में क्यों? 

एक हालिया अध्ययन ने अल नीनो और ला नीना घटनाओं की अवधि एवं व्यवहार पर मानवीय गतिविधियों के प्रभाव के विषय में चिंता जताई है।

  • इसमें पाया गया कि औद्योगिक युग के बाद से वॉकर सर्कुलेशन ने अपना व्यवहार बदल दिया है तथा बहु-वर्षीय अल नीनो और ला नीना घटनाएँ अधिक हो सकती हैं।

हालिया अध्ययन के सुझाव

  • वॉकर परिसंचरण, ENSO का एक प्रमुख वायुमंडलीय घटक है जो पूरे विश्व में मौसम के प्रारूप को संचालित करता है। शोधकर्ताओं का लक्ष्य यह आकलन करना था कि क्या ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन ने इस महत्त्वपूर्ण जलवायु चालक को प्रभावित किया है।
  • अध्ययन के निष्कर्षों से पता चला कि अल नीनो से ला नीना में संक्रमण समय के साथ थोड़ा धीमा हो गया है। इससे पता चलता है कि भविष्य में बहु-वर्षीय जलवायु प्रारूप अधिक हो सकता है, जिससे सूखा, दावाग्नि, भारी वर्षा और बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है।
  • जबकि वॉकर सर्कुलेशन की समग्र क्षमता अभी तक कम नहीं हुई है, शोधकर्ताओं का अनुमान है कि उच्च  कार्बन डाइऑक्साइड स्तर इसे कमज़ोर कर सकता है।
    • कई जलवायु मॉडल भी सदी के अंत तक वॉकर सर्कुलेशन में गिरावट की भविष्यवाणी करते हैं।
  • अध्ययन में ज्वालामुखी विस्फोट और वॉकर सर्कुलेशन के कमज़ोर होने के बीच संबंध पर भी प्रकाश डाला गया। यह घटना अक्सर अल नीनो जैसी स्थितियों की ओर ले जाती है।
    •  शोध ने बीसवीं सदी में ज्वालामुखी विस्फोट के बाद हुई तीन महत्त्वपूर्ण अल नीनो घटनाओं की पहचान की: वर्ष 1963 में माउंट अगुंग, वर्ष 1982 में अल चिचोन और वर्ष 1991 में माउंट पिनातुबो।

बढ़ती बहुवर्षीय अल नीनो और ला नीना घटनाओं के प्रभाव

  • चरम मौसम की घटनाओं की बढ़ती हुई आवृत्ति: बहु-वर्षीय अल नीनो और ला नीना की घटनाएँ विश्व  भर में वर्षा, तापमान, वायु और वायुमंडलीय दाब के प्रारूप को परिवर्तित कर सकती हैं, जिससे अधिक और गंभीर सूखा, बाढ़, लू, शीतल पवनें, तूफान और वनाग्नि की घटनाएँ हो सकती है। 
  • प्राकृतिक आपदाएँ:
    • बाढ़ और सूखा: बहु-वर्षीय अल नीनो घटनाएँ लंबे समय तक सूखे के जोखिम को बढ़ा सकती हैं, जिसके बाद विभिन्न क्षेत्रों में गंभीर बाढ़ की घटनाएँ हो सकती हैं।
      • इसके विपरीत, बहु-वर्षीय ला नीना घटनाओं के कारण कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा और बाढ़ आ सकती है, इसके बाद अन्य क्षेत्रों में लंबे समय तक सूखा पड़ सकता है।
      • इसके विपरीत, बहु-वर्षीय ला नीना घटनाओं के कारण कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा और बाढ़ आ सकती है, जबकि अन्य क्षेत्रों में लंबे समय तक सूखे की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
    • उष्णकटिबंधीय चक्रवात: ENSO घटनाओं का उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की आवृत्ति और तीव्रता पर प्रभाव पड़ सकता है।
      • बहु-वर्षीय घटनाओं के कारण विभिन्न महासागरीय घाटियों में चक्रवात गतिविधि में भिन्नता के परिणामस्वरूप तटीय क्षेत्रों की सुभेद्यता में परिवर्तन हो सकता है।
  • कृषि और खाद्य सुरक्षा: बहु-वर्षीय अल नीनो से उत्पन्न सूखे की स्थिति का फसलों की पैदावार पर प्रभाव पड़ सकता है, जिससे वैश्विक खाद्य आपूर्ति तथा कीमतें प्रभावित हो सकती हैं।
    • इसके विपरीत, बहु-वर्षीय ला नीना घटनाओं से कुछ क्षेत्रों में फसल उत्पादन में वृद्धि हो सकती है, लेकिन इससे होने वाले अत्यधिक वर्षा तथा जलभराव के कारण फसलों को नुकसान हो सकता है।

आर्थिक और सामाजिक प्रभाव

  • आर्थिक हानि: बहु-वर्षीय ENSO घटनाओं के संयुक्त प्रभावों के परिणामस्वरूप बुनियादी ढाँचे को नुकसान, ऊर्जा की मांग में वृद्धि और खाद्य तथा खनिज जैसे वस्तुओं के वैश्विक व्यापार में व्यवधान के कारण महत्त्वपूर्ण आर्थिक नुकसान हो सकता है।
  • स्वास्थ्य संबंधी जोखिम: मौसम के परिवर्तित होते प्रारूप से बीमारियों का प्रसार भी होता है, बाढ़ के दौरान जलजनित बीमारियों एवं लंबे समय तक सूखे के दौरान वेक्टर-जनित बीमारियों का खतरा बढ़ने का जोखिम बना रहता है।

पर्यावरणीय परिणाम

  • पारिस्थितिकी तंत्र: बहु-वर्षीय घटनाएँ स्थलीय और समुद्री पारिस्थितिकी प्रणालियों पर दबाव डाल सकती हैं जिससे प्रवाल विरंजन, वनाग्नि और निवास स्थान में व्यवधान जैसी पारिस्थितिक समस्याएँ उत्पन्न हो सकती है।
    • तापमान और वर्षा में तीव्र और लगातार परिवर्तनों के अनुकूलन को लेकर कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
  • जैवविविधता: पर्यावरणीय परिस्थितियों में परिवर्तन विभिन्न प्रजातियों, विशेष रूप से जलवायु विविधताओं के प्रति संवेदनशील प्रजातियों के वितरण और अस्तित्व के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकता है। इसका जैवविविधता पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है।

भारतीय जलाशयों के जल स्तर में गिरावट

चर्चा में क्यों?

भारत, मानसूनी बारिश पर बहुत अधिक निर्भर देश है, अगस्त 2023 में बारिश में अभूतपूर्व कमी के कारण इसे अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

  • इसके परिणामस्वरूप देश के प्रमुख जलाशयों के जल स्तर में भारी गिरावट के कारण घरों, उद्योगों तथा विद्युत उत्पादन के लिये जलापूर्ति चिंता का विषय बन गई है।
  • सामान्यतः अगस्त एक ऐसा महीना होता है जिसमें भारत के जलाशयों में जल भंडारण का स्तर काफी बढ़ जाता है लेकिन वर्ष 2023 का अगस्त इस संदर्भ में एक अपवाद था क्योंकि यह महीना पिछले 120 से अधिक वर्षों में सबसे शुष्क रहा। अपेक्षित 255 मिमी. वर्षा के बजाय देश में केवल 162 मिमी. वर्षा हुई, जिसके परिणामस्वरूप 36% वर्षा कम हुई।

भारतीय जलाशयों की स्थिति:

  • केंद्रीय जल आयोग (Central Water Commission- CWC) के अनुसार, 31 अगस्त, 2023 तक  भारत के 150 जलाशयों की लाइव स्टोरेज 113.417 बिलियन क्यूबिक मीटर थी, जो उनकी कुल स्टोरेज क्षमता का 63% थी।
    • यह वर्ष 2022 की इसी अवधि के भंडारण से लगभग 23% कम और पिछले 10 वर्षों के औसत से लगभग 10% कम थी।
  • विभिन्न क्षेत्रों और नदी घाटियों में जलाशयों में जल का स्तर भिन्न-भिन्न पाया गया। दक्षिणी क्षेत्र, जहाँ अगस्त में 60% कम वर्षा हुई, उसका भंडारण स्तर 49% यानी उसकी संयुक्त क्षमता के अनुसार सबसे कम था।
  • पूर्वी क्षेत्र, जहाँ सामान्य वर्षा हुई, उसका भंडारण स्तर 82% यानी उसकी संयुक्त क्षमता के अनुसार उच्चतम था।
  • कुछ नदी घाटियाँ जिनमें जल स्तर अत्यधिक कम अथवा न्यून था:
    • अत्यधिक कम:
      (i) कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में पेन्नार बेसिन
      (ii) छत्तीसगढ़ और ओडिशा में महानदी बेसिन
    • कम:
      (i) झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में सुवर्णरेखाब्राह्मणी तथा वैतरणी बेसिन
      (ii) कर्नाटक और तमिलनाडु में कावेरी बेसिन
      (iii) पश्चिमी भारत में माही बेसिन
      (iv) महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना में कृष्णा बेसिन
  • उत्तरी क्षेत्र को छोड़कर पूर्वी, पश्चिमी, मध्य और दक्षिणी क्षेत्रों के जलाशयों में जल भंडारण पिछले वर्ष (2022) की तुलना में कम है।

इस जल संकट के परिणाम

कृषि: 

  • जलाशय फसलों की सिंचाई हेतु जल उपलब्ध कराते हैं, विशेषकर रबी मौसम के दौरान। जल की कम उपलब्धता फसल उत्पादन और किसानों की आय को प्रभावित कर सकती है।

ऊर्जा: 

  • जलाशय जलविद्युत उत्पादन के लिये भी जल की आपूर्ति करते हैं, जो भारत में कुल विद्युत ऊर्जा उत्पादन का 12% से अधिक है।
    • शुष्क अगस्त के कारण मुख्य रूप से सिंचाई उद्देश्यों के लिये विद्युत ऊर्जा की मांग में अप्रत्याशित वृद्धि हुई।
    • अगस्त में विद्युत ऊर्जा उत्पादन रिकॉर्ड ऊँचाई पर पहुँच गया, जिससे जलाशयों में जल के अनिश्चित स्तर के कारण कोयला आधारित विद्युत ऊर्जा संयंत्रों से अतिरिक्त विद्युत ऊर्जा उत्पादन की आवश्यकता महसूस की गई।

पर्यावरण:

  • जलाशय जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र व्यवस्थाओं, जैसे बाढ़ नियंत्रण, भूजल- पुनर्भरण, मत्स्यपालन और मनोरंजन का भी समर्थन करते हैं। निम्न जल स्तर इन कार्यों को प्रभावित कर सकता है और पारिस्थितिक क्षति का कारण बन सकता है।

जल आपूर्ति पर प्रभाव:

  • भारत की वार्षिक वर्षा मुख्य रूप से दक्षिण-पश्चिम मानसून के मौसम पर निर्भर होती है, जिससे इन जलाशयों से वर्ष भर जल की आपूर्ति की जाती है। जल भंडारण की कमी घरेलू कार्यों को खतरे में डालती है।

अल्प वर्षा के कारण

अल-नीनो: 

  • अल-नीनो एक जलवायु संबंधी घटना है जो मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से ऊपर बढ़ने पर घटित होती है।
    • यह वैश्विक मौसम पैटर्न को प्रभावित करती है तथा मानसून के मौसम के दौरान भारत में वर्षा को कम करती है।
    • भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, अल-नीनो अगस्त 2023 के दौरान मौजूद था तथा सितंबर तक इसके बने रहने की उम्मीद थी।
    • IMD ने अनुमान लगाया है कि सितंबर में बारिश 10% से कम नहीं होगी।
    • हालाँकि भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में अल-नीनो का मंडराता खतरा, जो अभी भी बढ़ रहा है, भारत के जल संसाधनों के लिये एक गंभीर खतरा है।

हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD):

  • हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD) को दो क्षेत्रों (अथवा ध्रुवों, अतः द्विध्रुव) के मध्य समुद्र की सतह के तापमान में अंतर से परिभाषित किया जाता है, वे दो क्षेत्र, अरब सागर (पश्चिमी हिंद महासागर) में पश्चिमी ध्रुव तथा पूर्वी हिंद महासागर के दक्षिण में इंडोनेशिया का पूर्वी ध्रुव हैं।
  • IOD ऑस्ट्रेलिया तथा हिंद महासागर बेसिन के आसपास के अन्य देशों की जलवायु को प्रभावित करता है एवं इस क्षेत्र में वर्षा की परिवर्तनशीलता में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता है।
    • IMD के अनुसार, IOD के इस वर्ष मानसूनी वर्षा के लिये अनुकूल होने की उम्मीद थी, लेकिन इसका ज़्यादा प्रभाव नहीं पड़ा।

आगे की राह

  • ड्रिप सिंचाई हेतु वर्षा जल संचयन तकनीकों को अपनाने सहित कृषि में कुशल जल प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देना चाहिये।
    • जल-गहन खेती पर निर्भरता को कम करने के लिये फसल विविधीकरण तथा सूखा प्रतिरोधी फसलों की खेती को प्रोत्साहित करना चाहिये। 
  • अलवणीकरण, अपशिष्ट जल उपचार, स्मार्ट जल प्रौद्योगिकी और जलवायु-लचीली कृषि जैसी जल नवाचार पहल, जल आपूर्ति व  दक्षता बढ़ाने तथा जल चुनौतियों एवं अनिश्चितताओं से निपटने में मदद कर सकती है।
  • विशेष रूप से शुष्क अवधि के दौरान जलविद्युत उत्पादन पर निर्भरता कम करने के लिये सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश करना चाहिये ।
  • जल के उपयोग और संरक्षण के महत्त्व के विषय में जनता के बीच जागरूकता बढ़ाना।
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FAQs on Geography (भूगोल): September 2023 UPSC Current Affairs - भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

1. हापाई ज्वालामुखी क्या है?
उत्तर. हापाई ज्वालामुखी नेपाल के जोशीमठ में स्थित है और यह एक बहुसंख्यक फटने वाले गर्म पानी का झरना है। यह विज्ञानियों के लिए अध्ययन का केंद्र है और इसका अध्ययन भू-अवतलन के बारे में मदद करता है।
2. जोशीमठ में भू-अवतलन का अध्ययन क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर. जोशीमठ में भू-अवतलन का अध्ययन महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भूमिका निर्धारित करता है कि कैसे और क्यों भूकंप और ज्वालामुखी फटने के प्राकृतिक कारण होते हैं। यह जानने में मदद करता है कि किस प्रकार से इन प्राकृतिक आपदाओं को पहचाना जा सके और उनका प्रबंधन किया जा सके।
3. अल नीनो और ला नीना क्या हैं और सितंबर 2023 में इसका क्या महत्व है?
उत्तर. अल नीनो और ला नीना दो प्राकृतिक मौसम विषमताएं हैं, जो समुद्री तापमान के बदलाव के कारण होती हैं। अल नीनो के दौरान समुद्री तापमान निम्न होता है जबकि ला नीना के दौरान समुद्री तापमान उच्च होता है। सितंबर 2023 में इनका महत्व इसलिए है क्योंकि इस समय अल नीनो और ला नीना के प्रभाव में परिवर्तन हो सकता है, जो प्रशांत मौसम को प्रभावित कर सकता है।
4. किस प्रकार से अल नीनो और ला नीना भू-अवतलन के साथ जुड़े हुए हैं?
उत्तर. अल नीनो और ला नीना भू-अवतलन के साथ जुड़े हुए हैं क्योंकि ये दोनों प्रकार के मौसम विषमताएं समुद्री तापमान को प्रभावित करती हैं, और समुद्री तापमान भू-अवतलन के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है। इसलिए, जब अल नीनो और ला नीना होते हैं, तो इसका भू-अवतलन पर भी प्रभाव पड़ता है।
5. जोशीमठ में अध्ययन करने के लिए क्या कारण हैं?
उत्तर. जोशीमठ में अध्ययन करने के कई कारण हैं। पहले, यहां पर्यटकों के लिए एक आकर्षण है क्योंकि यहां हापाई ज्वालामुखी देखी जा सकती है। दूसरे, जोशीमठ में भू-अवतलन का अध्ययन वैज्ञानिकों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उन्हें भूकंप और ज्वालामुखी फटने के प्रकृतिक कारणों के बारे में ज्ञान प्रदान करता है।
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