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लोक सेवा की अवधारणा और सरकार एवं लोक सेवा प्रशासन के बीच संबंध | नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा एवं अभिवृत्ति for UPSC CSE in Hindi PDF Download

लोक सेवा की अवधारणा 

  • लोक सेवा शब्द की ब्रिटेन में यह परिभाषा दी गयी है- 'राजनीति या न्यायिक पदाधिकारियों के अतिरिक्त 'ताज' के वे सेवक जो असैनिक रूप से सेवायोजित हों और जिनका पारिश्रमिक पूर्णत: तथा प्रत्यक्षतः उस धनराशि में दिया जाता हो जो संसद द्वारा इस हेतु स्वीकृत की गयी है। अर्थात ब्रिटेन में कंवल कंद्रीय सरकार के असैनिक कर्मचारी ही सिविल सेवा के कर्मचारी की श्रेणी में आते हैं। स्थानीय संस्थाओं के कर्मचारियों को 'स्थानीय सरकार सेवा' कहा जाता है। 'लोक सेवाओं' को सामान्यतः सरकार द्वारा संयोजित ऐसी नागरिक सेवाओं के रूप में परिभाषित किया जाता है जो सरकार की योजनाओं तथा कार्यक्रमों को व्यावहारिक रूप प्रदान कर सके। लोक सेवा से अभिप्राय सरकारी तंत्र के उस शाखा से होता है जिसका सरोकार कानून बनाना नहीं, बल्कि कानून लागू करना होता है।। इसी कारण लोक सेवकों को नागरिक व सरकार के बीच की कड़ी कहा जाता है। सरकार की कार्यपालिका शाखा के दो हिस्से होते हैं- मंत्रिगण तथा लोक सेवक। लोक सेवक मंत्रियों के आदेशों पर अमल करते है। और उन्हें नीति-निर्माण में सलाह देते हैं। ई.एन.ग्लङन के अनुसार, 'लोक सेवा एक महत्वपूर्ण सरकारी  प्रतिष्ठान का नाम है जिसके अंतर्गत राज्य के केन्द्रीय प्रशासन के कर्मचारी आते हैं। इतना ही नहीं इसका अर्थ उस भावना से है जो आधुनिक लोकतंत्र की सफलता के लिए तथा अपना जीवन समाज की सेवा में समर्पित करने वाले लोक कर्मचारियों में व्यवसाय आदर्श के लिए आवश्यक है।' प्रशासनिक हलकों में, सार्वजनिक सेवाओं का अधिक व्यापक अर्थ इस दृष्टि से है कि लोककर्मियों के अतिरिक्त उनके अंतर्गत ऐसे कर्मचारियों की भी गणना कर ली जाती है जो सार्वजनकि क्षेत्र के प्रतिष्ठानों में, राष्ट्रीयकृत बैंकों तथा पूर्ण अथवा आंशिक रूप से सरकार से सहायता प्राप्त अन्य अर्द्ध-सरकारी संगठनों में काम करते हैं। जबकि लोक सेवाओं से संबंधित पदों पर आसीन व्यक्तियों को पारिश्रमिक संचित भारतीय निधि (Consolidated Fund of India) से मिलता है, अन्यों को इस प्रकार से वेतन नहीं मिलता।
  • संक्षेप में एच. फाइनर के अनुसार- "लोक सेवा स्थायी वेतनभोगी, सुदक्ष कार्मिकों (Personnel)| का एक व्यावसायिक निकाय है।" उसने ब्रिटेन लोक सेवा को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया है: प्रशासनिक (नीति-निर्माण और क्रियान्वयन), तकनीकी (वैज्ञानिक तथा विशेषीकृत श्रेणियां जैसे डाक्टर, इंजीनियर इत्यादि), और निष्पादन करने वाले (जो सामान्य व्यावहारिक क्रियाकलापों द्वारा पहली दो श्रेणियों के आदेशों को अमल में लाते हैं)। विकासशील देशों में लोक सेवा राजनीतिक आधुनिकीकरण का महत्वपूर्ण अभिकरण है। सुसंबद्ध एवं सुसंगठित सार्वजनिक अधिकारी तंत्र ढाँचा निर्वाचन-आधारित जनवाद के लिए पूर्वशर्त है। यह सरकारी तंत्र को स्थिरता एवं निरंतरता प्रदान करता है। लोक सेवा विशेषज्ञता, विकासोन्मुखता एवं नेतृत्व क्षमता जैसे विशेष गुणों का सामंजस्य है। यह सामंजस्य लोक सेवा को स्वतंत्र एवं प्रभावी रीति से| | चलाने में सहायक होता है।


सरकार एवं लोक सेवा प्रशासन के बीच संबंध

1. शासन एवं प्रशासन की कला आदिकाल से ही मानव समाज की अभिन्न विशेषता रही है। शासन के लिए सरकार का कोई न कोई रूप अस्तित्व में रहा है और सरकार के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए लोक सेवा से संबंधित ढाँचे रहे हैं। सरकार के निरूपण, कार्यक्रमों के क्रियान्वयन, सूचना-संकलन एवं मूल्यांकन के लिए लोक सेवा हमेंशा ही सरकार का महत्वपूर्ण अंग रही है। इस प्रकार, लोक सेवा का प्रकार और स्वरूप निस्संदेह सरकार की किस्त और उसके द्वारा संपन्न होने वाले कार्यों की प्रकृति एवं परिमाप पर निर्भर करेगा। फलस्वरूप, जब कभी सरकार में परिवर्तन होता है, लोक सेवा में एक सीमा परिवर्तन अवश्य होता है।
2. वर्तमान में नीतियाँ तय करने में सलाह देने और क्षेत्र में दायित्वों का निष्पादन करने में लोक सेवकों की स्वतंत्रता एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। जिसका हाल के वर्षों में सिविल सेवा की कार्यप्रणाली पर असर पड़ा है। स्वतंत्रता प्राप्ति के प्रारम्भिक वर्षों में 1950 व 60 के दशक के प्रारम्भिक राजनीतिक नेताओं और सिविल सेवा अधिकारियों के बीच संबंध विश्वास पर आधारित थे और सिविल सेवा की कार्यप्रणाली गैर-पार्टीगत थी। जो समय के साथ धीरे-धीरे कम होता गया और सिविल सेवा में राजनीतिकरण के कई मामले सामने आने लगे। राजनीतिज्ञों और सिविल सेवकों के बीच दो प्रकार के संबंध उभरकर सामने आये। पहले के अंतर्गत वे अधिकारी शामिल थे, जिन्होंने निष्ठा और ईमानदारी बनाये रखने की कोशिश की। दूसरी श्रेणी में ऐसे वरिष्ठ सिविल सेवक शामिल थे, जिन्होंने राजनीतिक कार्यकारियों की दावेदारी करनी शुरू की और सिविल सेवा मानदण्ड ईमानदारी और नैतिक व्यवहार की परवाह किये बिना उनके अनुकूल काम करने लगे। जिसने भ्रष्टाचार शासन में तरफदारी व गैर-कार्य संस्कृति को बढ़ावा दिया।

  • ईमानदारी के आधारभूत लक्षण
    (i) ईमानदारी, नैतिक व्यवहार अथवा आचरण को बढ़ावा देती है।
    (ii) पारदर्शिता, जवाबदेहिता, शुचिता (uprightness), भेदभावहीनता पर जोर।
    (iii) गैर पक्षपात पर बल।
    (iv) नैतिक एवं आचारगत (Ethical) मूल्यों का अनुपालन।
    (v) नियमों, कानूनों का उचित व नैतिक निर्वह्न।
    (vi) विश्वसनीयता को बनाये रखना।
    (vii) निष्पक्षता के साथ एक समान पेश आना।
    (viii) कर्त्तव्य परायणता को बढ़ावा।
    (ix) फलतः जवाबदेहिता युक्त लोक प्रशासन सेवा का संचालन।
  • शासन व्यवस्था में ईमानदारी के भावों को मूर्तमान बनाये जाने के लिए निम्नांकित प्रयास किये जाने चाहिये अथवा इन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिये क्योंकि ये लोक सेवकों हेतु अपेक्षित नीतिपरक आचार संहिता का भी भाग होते हैं:
    (i) सरकार अथवा संवैधानिक संस्था द्वारा निर्धारित कार्यों व उद्देश्यों की तरफ उन्मुख होना और जिम्मेंदारी के साथ प्रशासनिक निर्णयों का निष्पक्ष रूप से क्रियान्वयन का प्रयास करना।
    (ii) भय व पक्षपात (fear or favour) व राजनीतिक हस्तक्षेपों व दवाबों से ऊपर उठकर प्रशासनिक विवेक व सद्भावना (Administrative prudence and goodwill) के साथ कार्य करना।
    (iii) जनता के साथ सहानुभूति व परानुभूति (Sympathy and empathy) दोनों ही भावों के साथ पेश आना।
    (iv) लोक धन (public money) का उचित, प्रभावी, कार्यशील प्रयोग को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करना।
    (v) लोक सेवकों द्वारा अपने आधिकारिक पदों (offical position) व लोक पद पर सत्तासीन रहते हुए अर्जित की गयी महत्वपूर्ण सूचनाओं का दुरुपयोग न करना, आवश्यकतानुरूप उसे गोपनीय बनाये रखना और उसे अपने निजी हित के लिए प्रयुक्त न करना।
    (vi) राजनीतिक तटस्थता का पालन करना व सत्ताधारी दल के पक्ष में न ही बोलना अथवा लिखना बल्कि जनता की आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील होना।

लोक सेवा के प्रकार्य


आधुनिक समय में लोक सेवा को अनेक कार्य करने होते हैं। इनमें से कुछ प्रशासनिक प्रकृति के, कुछ विधायी प्रकृति के तथा कुछ न्यायिक प्रकृति के। लोक सेवा के कुछ प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं- सलाह देना, नीति निर्माण, नीति को क्रियान्वित करना, प्रत्यायोजित विधि निर्माण, अर्द्ध न्यायिक कार्य, विकास एवं परिवर्तन के अभिकरण के रूप में, नियोजन करना, सार्वजनिक सेवाओं को निष्ठापूर्वक सम्पन्न करना, लोक सेवक के रूप में।
सार्वजनिक कर्मियों से अपेक्षा की जाती है कि वे उन सभी कार्यों और दायित्वों को पूरा करेंगे जिनके लिए

सरकार जनहित के उद्देश्य के अधीन बाध्य होती है।
इनमें से कुछ कार्य हैं:

  • मंत्रियों को नीतिगत मसलों पर सलाह देना 
  • प्रशासनिक, तकनीकी एवं वैज्ञानिक कार्यक्रमों, आर्थिक एवं वित्तीय क्रियाकलापों, सामाजिक कल्याण एवं सेवायोजन के सभी पहलुओं का निरीक्षण।
  • उनका संबंध प्रतिनिधिक नियम-रचना प्रशासनिक अधिनिर्णय तथा जनसंपर्क कार्य आदि।

आधुनिक राज्य व्यक्तिगत पहल/प्रयास के निर्देशक, उद्यमी अथवा प्रेरक के रूप में अथवा इन तीनों ही | भूमिकाओं में काम कर सकता है। एक पूर्ण समाजीकृत राज्य में व्यवहारतः समूचा संगठित प्रयास सार्वजनिक | क्षेत्र के अंतर्गत आ जाता है और इसका प्रबंधन 'लोक सेवा' का विषय बन जाता है।
इस प्रकार इक्कीसवीं सदी में सरकार के कार्यों का विस्तार सर्वत्र हो रहा है। कल्याणकारी और सेवा राज्य |(Welfare and Service State) की अवधारणा को सारे विश्व में स्वीकृति मिल चुकी है। सरकारों ने सर्वांगीण आर्थिक विकास तथा सामाजिक बेहतरी के लिए, अनुकूल वातावरण की दृष्टि के लिए जनशक्ति, प्राकृतिक | संपदा एवं तकनीकी के प्रयोग का दायित्व संभाला है। इससे लोक सेवा की भूमिका को और बल मिला है। | संबंधित सरकारों के सम्मुख जनसमुदाय की माँगे और समग्र रूप में आई हैं। सरकार को ऐसे तंत्र के रूप में | देखा जाता है जो इन अत्यावश्यक माँगों को पूरा करने तथा प्रशासनिक प्रणाली में सामाजिक एवं आर्थिक कमियों को दूर करने के लिए समुचित कदम उठाता है। लोक सेवा अब सरकारी ढाँचे का सर्वाधिक आवश्यक और महत्वपूर्ण अंग बन चुकी है। लोक कार्मिकों को अनेक कार्य करने पड़ते हैं।  

कुछ मुख्य कार्य हैं: -
1. नीति निर्धारण

देश की नीतियों के निर्माण एवं निर्धारण में नागरिक सेवा में लगे व्यक्तियों की सक्रिय भूमिका होती है। यद्यपि नीतियाँ विधायिका के क्षेत्र में आती है, सरकार की भूमिका से संबंधित तकनीकी माँगें नीतियों को सूत्रबद्ध करने में नागरिक सेवायुक्तों की भागीदारी की अपेक्षा करती है। लोक सेवक राष्ट्रीय नीति के सूत्रीकरण पर व्यापक प्रभाव छोड़ते हैं। वे मंत्री एवं विधायिका की नीतियों की अनुशंसा करते हैं। विशेषज्ञता प्राप्त न होने के कारण मंत्रिगणों को लोकनीति की जटिलताओं का बोध नहीं होता, फलत: वे लोक सेवकों की सलाह पर ही काम करते हैं। लोक सेवा में लगे व्यक्ति व्यवहारतः सफल होने वाली नीतियों से संबंधित विभिन्न विकल्प सुझाते हैं।
2. विधि निर्माण एवं नीतियों का कार्यान्वयन
लोक सेवाओं से संबंधित अधिकारी विधायिका द्वारा पारित नीतियों को क्रियान्वित करते हैं। कानून और नीतियों के क्रियान्वयन में लोक सेवक व्यापक मंथन प्रयोग करते हैं। कोई व्यावहारिक कदम उठाने से पहले वे उन सभी कारकों का सजग मूल्यांकन करते हैं जो कार्यान्वयन को प्रभावित कर सकते हैं। उन्हें यह देखना होता है कि विधान अथवा नीति समुचित है या नहीं, उन्हें वैधानिक मानदंडों और विधि सम्मत नियमों के अनुरूप निष्पक्ष तथा ईमानदार आचरण करना होता है।
3. हस्तान्तरित विधान
लोक सेवा अधिकारी विभागीय विधानों की रचना करते हैं। विधायिका विधान संबंधी व्यापक रूपरेखा प्रस्तुत करती है और लोक सेवा अधिकारियों को विधान से संबंध अन्य वितरण तैयार करने का अधिकार देती है। हस्तान्तरित विधा बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है क्योंकि विधायिका के पास विस्तृत नियम तथा निर्धारक कानून बनाने के लिए समय नहीं होता और वह आधुनिक विधान रचना प्रक्रिया से परिचित भी नहीं होता।
4. प्रशासकीय न्यायिक निर्णय
लोक सेवक आज अर्द्ध-न्यायिक शक्तियों का भी प्रयोग करते हैं। वे नागरिकों अथवा पार्टियों के अधिकारों तथा कर्तव्यों से संबंधित मसलों का निर्धारण करते हैं।
इनके अतिरिक्त, लोक अधिकारियों के नित्यक्रम कार्यों में अनुपालन जारी करना तथा निरीक्षण कार्यों, सरकारी नीतियों का नियमन, कर-संग्रह, कार्यदशाओं से संबंधित सूचनाएँ जुटाना इत्यादि कार्य आते हैं।

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FAQs on लोक सेवा की अवधारणा और सरकार एवं लोक सेवा प्रशासन के बीच संबंध - नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा एवं अभिवृत्ति for UPSC CSE in Hindi

1. लोक सेवा क्या है?
उत्तर. लोक सेवा एक प्रशासनिक सेवा है जो सरकार के अंतर्गत नियुक्ति और पदोन्नति के माध्यम से नागरिकों की सेवा करती है। यह सेवाएं एक शासनिक विभाग में कार्यरत अधिकारियों द्वारा प्रदान की जाती हैं और नागरिकों की सेवा को प्रभावी तरीके से सुनिश्चित करती हैं।
2. लोक सेवा प्रशासन क्या है?
उत्तर. लोक सेवा प्रशासन, सरकार द्वारा निर्धारित प्रक्रिया, नियम और कार्यविधियों को संचालित करने के लिए जिम्मेदार होता है। इसका मुख्य उद्देश्य सुशासन, पारदर्शिता, न्यायनीति और नागरिकों की सेवा को सुनिश्चित करना होता है। लोक सेवा प्रशासन सरकारी नीतियों का पालन करता है और सरकार को नागरिकों की मांगों का संचालन करने में मदद करता है।
3. यूपीएससी क्या है?
उत्तर. यूपीएससी (UPSC) या यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन भारतीय सरकार का एक संघीय आयोग है जो विभिन्न सरकारी नौकरियों का चयन करता है। यह आयोग भारतीय नागरिकों को संघीय सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने और चयनित होने का माध्यम प्रदान करता है।
4. लोक सेवा और सरकारी नौकरी में क्या अंतर है?
उत्तर. लोक सेवा सभी सरकारी नौकरियों को शामिल करती है, लेकिन सभी सरकारी नौकरियाँ लोक सेवा नहीं होती हैं। लोक सेवा नौकरियाँ उस संगठन द्वारा प्रदान की जाती हैं जिसे सरकार ने उन नौकरियों के लिए विशेष रूप से निर्धारित किया है। सरकारी नौकरी आमतौर पर उन सभी नौकरियों को कहा जाता है जो सरकारी संगठनों द्वारा प्रदान की जाती हैं।
5. यूपीएससी परीक्षा क्या है?
उत्तर. यूपीएससी परीक्षा भारतीय सरकार के द्वारा आयोजित की जाने वाली प्रशासनिक सेवा परीक्षा है। इस परीक्षा के माध्यम से योग्य उम्मीदवारों को भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा, भारतीय विदेश सेवा और अन्य सरकारी सेवाओं के पदों के लिए चयन किया जाता है।
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