तना (Stem)
रोग | वाहक | वायरस का नाम |
टमाटर का सड़ना | थ्रिप्स | टोमेटो स्पोटेड विल्ट वायरस |
पोलियोमाइलिटिस | तिलचट्टा | पोलियो वायरस |
मिक्जोमेटोसिस | मच्छर | मिक्जोमा वायरस |
तम्बाकू के पत्ते पर चकत्ता | - | टोबेको मोजैक वायरस |
आलू की पत्ती का मुड़ना | एफिड | पोटेटोलिफ रौल वायरस |
मेज (Maize) स्ट्रीक | कीड़ा | मेज स्ट्रीक वायरस |
एंसिफिलाइटिस | मच्छर | एन्सिफिलाटिस वायरस |
औषधीय महत्व के पौधे, उनसे प्राप्त औषधि एवं उनके उपयोग | ||
पौधा | प्राप्त औषधि | उपयोग |
इफेड्रा (Ephedra) | एफीड्राइन | मायोकार्डियम को उत्तेजित करना, रक्त चाप को बढ़ाना। |
एट्रोपा बेलाडोना (Atropa belladona) | बेलाडोना | कुकुर खाँसी, दमा आदि में उपयोग। |
ग्लिसराइजा ग्लेबरा (Glyacyrhiza glabra) | ग्लिसराइजा | दवाओं में फ्लेवरिंग एजेंट के रूप में तथा एक निवारक के रूप में। |
सिनकोना के छाल | कुनैन | मलेरिया के उपचार में। |
पेनिसिलियम नोटेटम | पेनिसिलिन | एन्टिबायोटिक के रूप में। |
औरियोफेरनीन्स | औरियोमाइसिन | एन्टिबायोटिक के रूप में। |
एसएरिथेरस | एरिथ्रोमाइसिन | एन्टिबायोटिक के रूप में। |
एसपरगीलस | जवाहरेन | एन्टिबायोटिक के रूप में। |
चाय, काॅफी | कैफीन | दर्द-निवारक। |
फाक्सग्लोव | डिजेटेलिस | दर्द-निवारक। |
इपेकाक | इमेटिन | उल्टी करवाने में उपयोग होता है। |
राइवोल्फिया सरपेन्टाइना | रिजवाइन | उच्च रक्त चाप में। |
अफीम ;व्चपनउद्ध | हेरोइन | दर्द-निवारक दवा। |
अफीम | माॅर्फीन | दर्द-निवारक दवा। |
विलो | एस्पिरिन | दर्द-निवारक। |
विलो | कोडीन | दर्द-निवारक। |
विलो | पेन्टाजोसीन | दर्द-निवारक। |
इरिथोजाइलोन कोका | कोकीन | नशा, दर्द-निवारक। |
तम्बाकू | निकोटीन | नशा, दर्द-निवारक। |
एट्रोपा एक्यूमिनाटा | बेलाडोना | मायोकार्डियम को उत्तेजित करता है, रक्त चाप को बढ़ाता है; इस प्रकार इसकी क्रिया एड्रेनलिन से मिलती है। |
तने का रूपांतरण निम्न प्रकार का हो सकता है-
• भूमिगत तना: इस प्रकार के तने का उद्देश्य है अधिकांश भोजन को संचित करना ताकि सालों साल तक जीवित रहे और अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए विस्तार करेंः
(i) राइजोम-अदरक; (ii) ट्यूबर-आलू;
(iii) बल्ब-प्याज; (iv) काॅर्म-जमीकन्द (ओल)।
• वायवीय तना: इसके उद्देश्य भिन्न-भिन्न है-
तने का प्रकार उद्देश्य उदाहरण
टेंड्रिल चढ़ने के लिए पेशनफ्लावर
काँटा रक्षा हेतु नींबू
फाइलोक्लेड प्रकाश संश्लेषण के लिए नागफनी
क्लेडोड प्रकाश संश्लेशण के लिए एस्पाय-रेगस
पत्ती (Leaf)
पत्ती का रूपांतरण
ट्रैंडिल: पत्ती या उसका कोई भाग पतली घूर्णित धागे के समान हो जाता है ताकि पौधे को ऊपर चढ़ने में इससे सहायता मिले; जैसे-मटर, जंगली मटर आदि।
काँटे: पत्ती पूर्णतः या अंशतः काँटे में बदल जाती है, ताकि पौधे को अधिक वाष्पोत्सर्जन से छुटकारा मिले या फिर पौधे की रक्षा हो सके; जैसे-नागफनी आदि।
आनुवंशिक रोग (Hereditary disease) | |
रोग का नाम | लक्षण |
कलर ब्लाइंडनेस (Colour blindness) | मनुष्य लाल रंग को हरे रंग से अलग नहीं कर सकता |
हीमोफिलिया (Haemophilia) | रक्त का थक्का न बनना (कटने पर) |
एल्बिनिज्म (Albinism) | त्वचा के रंग या वर्णका (Pigments) के परिवर्धन का रूक जाना |
सिजोफोरेनिया (Schizophorenia) | मंद बुद्धि |
एलकेप्टोन्यूरिया (Alkaptonuria) | काला पेशाब |
स्केली पत्ती: जब पत्ती पतली, शुष्क तथा झिलीदार हो जाती है; जैसे-प्याज में।
फाइलोड (Phyllode): आॅस्ट्रेलियन बबूल जैसे पौधे में पत्ती का डंठल भाग चौड़ा होकर पंख की संरचना जैसा हो जाता है।
पिचर (Pitcher): निर्पेथिस नामक पौधे में पत्ती एक घड़े के समान संरचना में बदल जाती है ताकि अगर उसमें कीट आये तो उसका पाचन कर सके। इस प्रकार के पौधे कीट-पतंगों से ही अपने नाइट्रोजन की जरूरतों को पूरा करते है।
ब्लाडर (Bladder): पत्ती खंडित होकर थैले की रचना करती है। उसका भी उद्देश्य निर्पेथिस पौधों के समान ही है, जैसे- यूट्रिकूलेरिया में।
फूल (Flower)
फूल एक रूपांतरित तना है जिसका उद्देश्य जनन करना है। इसमें चार चक्र होते हैं-
(क) सहायक चक्र
(i) बाह्य दलपुंज (Calyx)
(ii) दलपुंज (Corolla) ;
(ख) आवश्यक चक्र
(iii) पुमंग (Androecium) एवं
(iv) जायांग (Gynoecium)
चक्र के नाम इकाई
बाह्य दलपुंज सेपल (Sepal) (बाह्यदल)
दलपुंज पेटल (Petal) (दल या पंखुड़ी)
पुमंग पुंकेसर (Stamen)
जायांग अंडप (Carpel)
शैवाल के आर्थिक महत्व | ||
उत्पाद | शैवाल के नाम | शैवाल के प्रकार |
आयोडिन | फ्यूकस, लेमिनेरिया | भूरा शैवाल |
अगर (Agar) | ग्रासीलेरिया, गेलिडियम | लाल शैवाल |
(भिन्न जंतुओं के पोषक आहार तथा दवा उद्योग में उपयोग) कारागेनिन (चमड़ा उद्योग तथा काॅस्मेटिक बनाने में उपयोगी) | कोड्रस क्रिस्पस | लाल शैवाल |
एल्जिनिक अम्ल या एल्जिन | मेक्रोसिस्टिस (कपड़ा तथा प्लास्टिक उद्योग में उपयोगी) | भूरा शैवाल |
मृदा के खाद | साइटोनिमा, एनाबीना,आॅसीलेटोरिया, टोलीपोथ्रिक्स आदि | नीला-हरा शैवाल |
डायटोमाइट | डायटम | डायटम |
कोशिकीय भाग | अंगक | कार्य |
कोशिकीय-धरातल | (a) कोशिका-भित्ति (cell wall) | कोशिका को निश्चित रूप प्रदान करना, |
| (Cell Surface) | कोशिका को सुरक्षा और सहारा प्रदान करना। |
| (b) प्लज्मा मेम्ब्रेन (plasma membrane) | पदार्थों का एक कोशिका से दूसरी कोशिका में पदार्थों के अभिगमन पर नियंत्रण। |
केन्द्रक (Nucleus) | (a) गुणसूत्र (chromosomes) | जीव-वाहक एवं कोशिकीय कार्यों का नियंत्रण। |
| (b) केन्द्रिका (Nucleus) | प्रोटीन-संश्लेषण एवं आर एन ए संश्लेषण में सहायक। |
| (c) केन्द्रक-झिल्ली | कोशिकाद्रव्य से केन्द्रक और केन्द्रक से |
(nuclear memberane) | कोशिकाद्रव्य में पदार्थों के अभिगमन पर नियंत्रण। |
|
कोशिकाद्रव्य | (a) अंतः प्रद्रव्यी जालिका | कोशिका के भीतर पदार्थों का संचार |
(endoplasmic reticulum) | (आंतरिक कोशिकीय परिवहन)। |
|
| (b) माइटोकाण्ड्रिया (mitochondria) | कोशिकीय श्वसन के सक्रिय स्थल एवं ऊर्जा-निर्माण। |
| (c) गाल्जीकाय (golgi-body) | विशिष्ट पदार्थों का स्त्रावण, संचय और कोशिका के बाहर उनके निष्कासन में सहायता। |
| (d) रिबोसोम (ribosome) | प्रोटीन-संश्लेषण के सक्रिय स्थल। |
| लाइसोसोम (lysosome) | आत्म हत्या की थैली, हाइड्रोलिटिक एन्जाइम के भण्डार। |
| सेण्ट्रोसोम (centrosome) | कोशिका-विभाजन में सहायक। |
कुछ तथ्य व्याख्या
यूनीसेक्सूअल: जब फूल में दोनों आवश्यक अंग में से कोई एक ही अंग उपस्थित हों।
अपूर्ण: अगर फूल के चारों चक्र में से कोई एक भी चक्र अनुपस्थित हो।
पूर्ण: जिस फूल में चारों चक्र हों।
पोलिगेमस: वे फूल जिनमें आवश्यक चक्र अर्थात पुमंग तथा जायांग नहीं हो।
मोनोसम: जब पौधे में नर या मादा दोनों में से सिर्फ एक प्रकार के फूल हों।
डायोसस: जब पौधे में दोनों प्रकार के फूल-नर तथा मादा-उपस्थित हों।
यूनीसेक्सूअल: जब फूल में दोनों आवश्यक अंग में से कोई एक ही अंग उपस्थित हों।
बाइसेक्सूअल: जब फूल में दोनों आवश्यक अंग हों।
थैलामस: फूल का वह चपटा अक्ष जिस पर फूल के चारों चक्र स्थित हों।
जायांग के भाग
(क) अंडाशय (Ovary): यह जायांग का आधार है जिसमें बीजांड (Ovule) स्थित रहते है। निषेचन (Fertilization) के बाद अंडाशय जहाँ फल में परिवर्तित होता है, बीजांड बीज में।
(ख) वर्तिकाग्र (Stigma): यह जायांग का सबसे ऊपर वाला भाग है जिस पर परागण (Pollination) के उपरांत पराग-कण (Pollen grain) आते है।
(ग) वर्तिका (Style): अंडाशय का प्रवर्धन जो वर्तिकाग्र को सहारा देता है।
कायिका या वर्धी प्रजनन (Vegetative Reproduction)
(क) लेयरिंग या दाब लगाना (Layering) -लेयरिंग की विधि में पौधे की निचली शाखा के थोड़े-से भाग की छाल निकालकर, उसे झुकाकर नम मिट्टी में दबा दिया जाता है।
अन्तर | |
DNA (De-oxy Ribose Nucleic Acid) | RNA (Ribose Nucleic Acid) |
1. यह एक डबल हेलिक्स (Double Helix) रचना है। | 1. यह सिंगल स्ट्रैंडेड (Single Stranded) रचना है। |
2. डि-आॅक्सी राइबोज सूगर | 2. राइबोज सूगर |
3. इसमें थायमिन होती है, किंतु यूरासिल नहीं। | 3. यूरासिल होती है, थायमिन नहीं। |
4. यह आनुवंशिक पदार्थ है जो माता-पिता के गुण बच्चों में वहन (carry) करता है। | 4. कुछ वायरस के अपवादों को छोड़कर यह आनुवंशिक पदार्थ नहीं है। यह DNA का आदेश कोशिका में प्रसारित करता है। |
5. यह सिर्फ केन्द्रक में रहता है। | 5. यह केन्द्रक और कोशिका द्रव्य दोनों जगह रहता है। |
(ख) कलम Cutting)- गुलाब, दुरन्ता आदि के पुराने स्वस्थ तने का एक छोटा टुकड़ा (20-30 cms) काटकर मिट्टी में गाड़ दिया जाता है।
(ग) गूटी (Gootee) - इसमें काष्ठीय पौधों (अमरूद, संतरा आदि) की शाखा के कुछ भाग की छाल चक्राकार काटकर इस पर गीली मिट्टी चढ़ा देते है और इसे घास-फूस से बाँध देते है।
(घ) रोपण (Grafting)- इस विधि में दो पौधों को काटकर इस तरह जोड़ दिया जाता है जिससे दोनों के ऊतक एक-दूसरे से स्थायी रूप से जुड़ जाते है। पौधे के जिस भाग में जड़ होगी उसे स्टाक (Stock) तथा पौधे के ऊपरी जड़विहीन भाग को सियान (scion) कहते है। यह भी निम्नलिखित कई प्रकार से होता है।
(a) कशारोपण (Whip-grafting)- इसमें स्टाक और सियान को तिरछा काटकर दोनों को नरम मिट्टी के साथ मजबूत धागे से बाँध दिया जाता है। दोनों को कई दिनों के बाद अलग कर लिया जाता है। स्टाक से सभी कलिकाएँ अलग कर दी जाती है लेकिन सियान से नहीं।
(b) स्फानरोपण (Wedge Grafting)- इस विधि में स्टाक में 'v' के आकार की एक खाँच बनाते है। सियान को भी इस प्रकार काटा जाता है जिससे यह स्टाक की खाँच में बैठ जाये। दोनों को मिट्टी या गोबर के साथ धागे से बाँध दिया जाता है। दोनों कुछ दिनों के बाद जुड़ जाते है एवं सियान से शाखाएँ निकलने लगती है।
पौधों के लिए आवश्यक अकार्बनिक उर्वरक | |||
(A) नाइट्रोजन युक्त उर्वरक | |||
अमोनियम सल्फेट | - | 20-6% | |
नाइट्रोजन | - | 25-26% | |
अमोनियम क्लोराइड | - | 25-26% | |
कैल्सियम नाइट्रेट | - | 15-5% | |
सोडियम नाइट्रेट | - | 16% | |
अमोनियम सल्फेट नाइट्रेट | - | 26% | |
अमोनियम नाइट्रेट | - | 33-34% | |
कैल्सियम अमोनियम नाइट्रेट | - | 25% | |
यूरिया | - | 46% | |
( B) फाॅस्फोरस युक्त उर्वरक | |||
सिंगल सुपर फाॅस्फेट | - | 16% | |
डबल सुपर फाॅस्फेट | - | 32% | |
ट्रिपल सुपर फाॅस्फेट | - | 48% | |
डाई-कैल्सियम फाॅस्फेट | - | 34-39% | |
राॅक फाॅस्फेट | - | 20-40% | |
(C) पोटाश युक्त उर्वरक | |||
म्यूरेट आॅफ पोटाश | - | 60% | |
(पोटैशियम क्लोराइड) | |||
काइनाइट | - | 44% | |
पोटैशियम नाइट्रेट | - | 12-16% | |
पोटैशियम सल्फेट | - | 48-52% | |
(D) मिश्रित उर्वरक | N | P2O5 | 20 |
मोनो अमोनियम फाॅस्फेट | 11% | 48% | - |
डाइ अमोनियम फाॅस्फेट | 18% | 46% | - |
नाइट्रो फाॅस्फेट | 20 | 20 | - |
5 | 15 | 7-5 | |
अमोनियम फाॅस्फेट | 20 | 20 | - |
इफको एन-पी-के- ग्रेड-1 | 10 | 26 | 6 |
इफको एन-पी-के- ग्रेड-2 | 12 | 32 | 6 |
इफको एन-पी-के- ग्रेड-3 | 14 | 36 | 2 |
(c) शाखा-बन्धन (Inarching)-इस विधि में एक उपयोगी तथा दूसरा उसी जाति की कम उपयोगी पौधे की शाखाओं को छीलकर आपस में बाँध देते है। कुछ दिनों के बाद दोनों को अलग कर दिया जाता है। आम, लीची आदि में इसी क्रिया द्वारा उपयोगी पौधे तैयार किये जाते है।
(d) कली-रोपण (BudGrafting)- इसमें एक पौधे की कली को उसकी छाल के साथ काटकर दूसरे पोधे में ष्ज्ष् के आकार का गड्ढा करके लगाया जाता है एवं उस स्थान पर मिट्टी बाँध दी जाती है। कुछ दिनों के बाद कली से नये पौधे उत्पन्न होते है।
परागण (Pollination)
- पराग कोश (Anther) से पराग-कण का वर्तिकाग्र पर स्थानान्तरण परागण कहलाता है। ये दो प्रकार के होते है:
(क) स्व-परागण (Autogamy): जब परागण उसी फूल में हो जिस फूल से पराग-कण उत्पन्न होते है।
(ख) पर-परागण (Allogamy): जब परागण दो भिन्न पोधों के फूल में हों।
परागण के कारक | परागण का नाम | उदाहरण |
हवा | एनीमोफिली | ईख, मक्का। |
कीट | इन्टोमोफिली | सरसों। |
जल | हाइड्रोफिली | वेलिसनेरिया। |
जंतु जैसे चमगादर गिलहरी द्वारा | जूफिली | सेमल। |
घोंघा द्वारा | मेलाकोफिली | |
चिड़ियों द्वारा | आॅर्निथोफिली | बिगोनिया |
कुछ सामान्य रोग, प्रभावित अंग, कारण | ||
रोग | प्रभावित अंग | कारण |
उच्च रक्तचाप (Hypertension) | हृदय | आनुवंशिक, कोलेस्ट्राॅल की उच्च सान्द्रता। |
स्ट्रोक (Stroke) | मस्तिष्क | उच्च रक्तचाप, ट्यूमर आदि। |
कैन्सर (Cancer) | किसी भी अंग में हो सकता है, जैसे-अस्थि, त्वचा,रक्त, ग्रंथि, यकृत, वृक्क, फेफड़ा आदि। | बहुत से कारण है, जैसे- कैंसर कारक रसायन (आर्सेनिक के यौगिक, बेंजीन आदि) |
ल्यूकेमिया | रक्त | कई कारण हो सकते है। जैसे- अस्थिमज्जा की खराबी |
मधुमेह (Diabetes) | अग्न्याशय (Pancreas) | अज्ञात |
एन्जाइना (Angina) | हृदय | रक्त में कोलेस्ट्राॅल की अधिकता। |
र्यूमेटिक हृदय रोग | हृदय | बैक्टिरिया (स्ट्रैप्टोकोक्कस) |
माइस्थेनिया ग्रेवोस | पेशियाँ | अज्ञात |
एपेंडिसाइटिस | एपेन्डिक्स | एपेन्डिक्स में संक्रमण |
हर्निया | आँत | अनेक कारण है |
संधिशोध (Gout) | अस्थिसंधियाँ | रक्त में यूरिक एसिड की अधिकता। |
ओस्टियोमेलाइटिस | अस्थि | बैक्टिरिया (स्टेफाइलोकोक्कस) |
दमा (Asthma) | श्वसन संस्थान | एलरजेण्ट्स |
न्यूमोनिया | श्वसन संस्थान | बैक्टिरिया (डिप्लोकोक्कस न्यूमोनियाई) |
प्लूरीसी (Pleurisy) | फेफड़े | बैक्टिरीया |
पेप्टिक अल्सर | आमाशय | हाइपर एसिडिटी |
ग्लोसाइटिस (Glossitis) | जीभ | विटामीन B2 की कमी |
एपिलेप्सी (Epilepsi) | तंत्रिका संस्थान | अज्ञात |
लकवा (Paralysis) | तंत्रिका संस्थान | उच्च रक्त चाप, ट्यूमर आदि। |
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1. वनस्पति विज्ञान क्या है? |
2. पौधों के जीवन चक्र में कौन-कौन सी चरणें होती हैं? |
3. वनस्पतियों के रोगों का कारण क्या होता है? |
4. पौधों के उपचार में उपयोग होने वाली विज्ञानिक तकनीकों के बारे में बताएं। |
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