समाज और राजनीति की कुछ विशेषताएं
¯ राजनीतिक संघर्षों के इस काल में वाणिज्य-व्यवसाय में वृद्धि हुई।
¯ इस काल में वाणिज्य-व्यापार के कुछ प्रमुख केन्द्र थे - बंगाल में मुर्शिदाबाद और ढाका, दक्षिण में हैदराबाद और मछलीपट्टनम् तथा अवध में फैजाबाद, वाराणसी, लखनऊ और गोरखपुर।
¯ सूबे के शासकों ने हिन्दू व मुसलमान अधिकारियों तथा सरदारों का समर्थन प्राप्त करने की कोशिश की।
¯ राज्य के विभिन्न पदों पर नियुक्तियां करते समय धर्म का ख्याल नहीं किया जाता था। उदाहरण के तौर पर अवध में नवाब की सेना में नागा संन्यासी भी थे।
¯ हिन्दुओं और मुसलमानों के निकट आने से एक मिली-जुली संस्कृति के विकास में मदद मिली।
¯ भारतीय भाषाओं, जैसे - बंगला, मराठी, तेलगू और पंजाबी ने अच्छी प्रगति की और उनका साहित्य अधिक समृद्ध बना।
¯ पहले से विकसित होती आ रही उर्दू का अब अधिक इस्तेमाल होने लगा और शहरा में यह और भी प्रचलित हो गया। उसका साहित्य, विशेषकर काव्य-साहित्य, समृद्ध होने लगा।
¯ शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में जैसे - ख्याल और अर्ध-शास्त्रीय गायन-शैली ठुमरी तथा गजल में, खूब प्रगति हुई।
¯ मुगल और राजपूत शैलियों के प्रभाव से देश के कई हिस्सों में, विशेषकर कुलू, कांगड़ा और चंबा में, चित्रकला का विकास हुआ।
¯ इस प्रकार कलहों और युद्धों के बावजूद सांस्कृतिक प्रगति जारी रही।
¯ अठारहवीं सदी के भारत में राजनीतिक एकता का अभाव था। मुगल साम्राज्य का निरंतर पतन होता गया और उसके बराबर शक्ति और प्रतिष्ठा वाले ऐसे किसी अन्य भारतीय राज्य का उदय नहीं हुआ जो देश का केन्द्रीय सत्ता में एकीकरण कर सके।
¯ नए भारतीय राज्यों में मराठों ने सबसे ऊंची हैसियत प्राप्त कर ली, मगर वे भी एकीकरण की भूमिका को निभाने में असमर्थ रहे। विस्तार के उनके तरीकों ने उन्हें अन्य शासकों और लोगों से विलग कर दिया।
¯ हिन्दू ऊंच-नीच के भेदभाव से ग्रसित थे और अनगिनत जातियों में बंटे हुए थे। ऐसा कोई समान उद्देश्य नहीं था जो सभी पृथक गुटों को एक साथ ला सकता।
¯ मुसलमान भी समुदायों में बंटे थे और कुछ समुदाय अपने को दूसरों से श्रेष्ठ समझते थे।
¯ बाह्य और आंतरिक व्यापार काफी मात्रा में हो रहा था, मगर इसने आम जनता के आर्थिक और सामाजिक जीवन को अधिक प्रभावित नहीं किया।
¯ गांव एक स्वतंत्र आर्थिक इकाई था और अपनी जरूरत की वस्तुएं खुद बना लेता था।
¯ आमतौर पर गांव के कुल उत्पादन का आधे से अधिक राजस्व के रूप में ले लिया जाता था। वह राजस्व बड़ी सेनाएं रखने में और सरदारों के विलासी जीवन पर खर्च होता था।
¯ शासकों में परिवर्तन, नए राज्यों का उदय और इसी प्रकार के अन्य राजनीतिक परिवर्तन गांवों के जीवन को नहीं के बराबर प्रभावित करते थे।
¯ यूरोप में जिस तरह के मध्य वर्ग का उदय हुआ था, वैसा मध्य वर्ग भारत में नहीं था। मगर ऐसे परिवार अवश्य थे जो व्यापार के जरिए धनी हो गए थे। परंतु उन्होंने जो धन-दौलत इकट्ठी
सिक्ख मिस्ल मिस्ल का नाम नेता संस्थापक का नाम सिंहपुरिया मिस्ल नवाब कपूर सिंह अहलूवालिया मिस्ल जस्सा सिंह अहलूवालिया रामगढ़िया मिस्ल जस्सा सिंह रामगढ़िया फुलकियां मिस्ल फूल सिंह कनहिया मिस्ल जय सिंह भागी मिस्ल हरी सिंह शुकरचकिया मिस्ल चरत सिंह निशान वालिया मिस्ल सरदार संगत सिंह करोड़ सिंधिया मिस्ल भगेल सिंह डल्लेवालिया मिस्ल गुलाब सिंह नकाई मिस्ल हीरा सिंह |
की थी, उसका उपयोग कर्ज देने और ब्याज कमाने के लिए किया गया न कि नए हुनर, वस्तुओं के उत्पादन की नई विधियां और नई तकनीक विकसित करने के लिए।
¯ भारत के राजनीतिक जीवन में एक नए तत्व का प्रवेश हुआ था। यूरोप की व्यापारी कम्पनियों ने इस देश के राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया था। साथ ही, वे कम्पनियां अपनी राजनीतिक सत्ता स्थापित करने के प्रयास में जुटी हुई थीं।
¯ भारतीय राज्यों के शासक अपने प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले अपना स्वार्थ साधने की आशा में विदेशी व्यापारी कम्पनियों के हाथों की कठपुतली बनने के लिए पूर्णतः तैयार थे।
¯ पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों की पराजय होने के पहले से ही भारत में ब्रिटिश विजय की शुरुआत हो चुकी थी जो आगे भी जारी रही।
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