रस
रस शब्द “अच” धातु के योग से बना है
रस का शाब्दिक अर्थ है – सार या आनंद
अर्थात जिस रचना को पढ़कर, सुनकर, देखकर, पाठक, श्रोता या दर्शक जिस आनंद की प्राप्ति करता है, उसे रस कहते हैं |
रस की परिभाषा
काव्य से जिस आनंद की अनुभूति होती है, वही रस है |
- रस संप्रदाय के प्रवर्तक आचार्य भरतमुनि है |
- आचार्य भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र में रस का सूत्र दिया है – “विभावानुभाव व्यभिचारी संयोगाद रस निष्पत्ति”|
- अर्थात विभाव, अनुभाव , या व्यभिचारी भाव( संचारी भाव) के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है |अथवा स्थायी भाव की प्राप्ति होती है |
रस के अंग या भाव
रस के अंग या भाव 4 प्रकार के होते हैं |
- स्थायी भाव
- विभाव
- अनुभाव
- संचारी भाव
1. स्थायी भाव (Sthai bhav)
ऐसे भाव जो हृदय में संस्कार रूप में स्थित होते हैं, जो चिरकाल तक रहने वाले अर्थात स्थिर और प्रबल होते हैं तथा अवसर पाते ही जाग्रत हो जाते हैं, उन्हें स्थायी भाव कहते हैं।
रस – स्थायी भाव
- शृंगार – रति (स्त्री-पुरुष का प्रेम)
- हास्य – हास (वाणी या अंगों के विकार से उत्पन्न उल्लास, हँसी)
- करुण – शोक (प्रिय के वियोग या हानि के कारण उत्पन्न व्याकुलता)
- वीर – उत्साह (दया, दान, वीरता आदि प्रकट करने में प्रसन्नता का भाव)
- रौद्र – क्रोध (अपने प्रति किसी अन्व द्वारा की गई अवकाश के कारण)
- भयानक – भय (विनाश कर सकने में समर्थ या वस्तु को देखकर उत्पन्न व्याकुलता)
- वीभत्स – जुगुप्सा (घिनौने पदार्थ को देखकर ग्लानि)
- अद्भूत – विस्मय (अनोखी वस्तु को देखकर या सुनकर आश्चर्य का भाव)
- शांत – निर्वेद (संसार के प्रति उदासीनता का भाव)
- वात्सल्य – स्नेह (संतान या अपने से छोटे के प्रति स्नेह भाव)
- भक्ति – देव-विषयक रति (ईश्वर के प्रति प्रेम)
2. विभाव (Vibhav)
विभाव का शाब्दिक अर्थ है – ‘कारण’
अर्थात् स्थायी भावों को जागृत करने वाले कारण ‘विभाव’ कहलाते है।
विभाव के भेद
(i) आलंबन विभाव
जिस व्यक्ति या वस्तु के कारण मन में कोई स्थायी भाव जाग्रत हो जाए तो वह व्यक्ति या वस्तु उस भाव का आलंबन विभाव कहलाए।
जैसे –
- रास्ते में चलते समय अचानक बड़ा-सा साँप दिखाई देने से भय नामक स्थायी भाव जगाने से ‘साँप’ आलंबन विभाव होगा।
आलंबन विभाव के भेद
आश्रय - जिसके मन में भाव जाग्रत होता है उसे आश्रय कहते है।
जैसे –
आलम्बन - जिसके प्रति मन में भाव जाग्रत होते हैं, उसे आलम्बन कहते हैं।
जैसे –
(ii) उद्दीपन विभाव
आलम्बन की वे क्रियाए जिनके कारण आश्रय के मन में रस का जन्म होता है, उद्दीपन क्रियाएँ होती है।
इसमें प्रकृति की क्रियाए भी आती है।
जैसे –
- ठंडी हवा का चलना, चाँदनी रात का होना, कृष्ण का घुटनों के बल चलना
3. अनुभाव (Anubhav)
अनुभाव का शाब्दिक अर्थ है अनुभव करना
- मन में आने वाले स्थायी भाव के कारण मनुष्य में कुछ शारीरिक चेष्टाएँ उत्पन्न होती हैं वे अनुभाव कहलाते हैं।
जैसे -
- साँप को देखकर बचाव के लिए ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना।
इसप्रकार से हम देखते है कि उसकी बाह्य चेष्टाओं से अन्य व्यक्तियों को यह प्रकट हो जाता है कि उसके मन में ‘भय’ का भाव जागा है।
अनुभाव के भेद
- काथिक अनुभाव
- वाचिक अनुभाव
- सात्विक अनुभाव
- आहार्य अनुभाव
(i) काथिक: आश्रय द्वारा इच्छापूर्वक की जाने वाली शारीरिक क्रियाओं को काथिक अनुभव कहते हैं।
- जैसे –
उछलना, कूदना, इशारा करना आदि।
(ii) वाचिक: वाचिक अनुभाव के अन्तर्गत वाणी के द्वारा की गयी क्रियाएँ आती हैं।
(iii) सात्विक: जिन शारीरिक विकारों पर आश्रय का कोई वश नहीं होता, बल्कि वे स्थायी भाव के उत्पन्न होने पर स्वयं ही उत्पन्न हो जाते हैं वे सात्विक अनुभाव कहलाते हैं।
सात्विक भाव 8 प्रकार के होते हैं-
- स्तम्भ
- स्वेद
- रोमांच
- वेपथु
- स्वर भंग
- वैवण्र्य
- अश्रू
- प्रलय या मूर्छा
(iv) आहार्य: आहार्य का शाब्दिक अर्थ है- ‘कृत्रिम वेशभूषा’
- किसी की वेश-भूषा को देखकर मन में जो भाव जागते हैं। उसे आहार्य अनुभाव कहते हैं।
4. संचारी भाव/व्यभिचारी भाव (Sanchari bhav)
आश्रय के मन में उत्पन्न होने वालेअस्थिर मनोविकारों को संचारी भाव या व्यभिचारी भाव कहते हैं।
संचारी भाव की मुख्य रूप से संख्या 33 है।
- निर्वेद - अपने व संसार की वस्तु के प्रति विरक्ति का भाव।
- दैन्य - अपने को हीन समझना।
- आवेग - घबराहट
- ग्लानि - अपने को शारीरिक रूप से हीन समझना या शारीरिक अशक्ति।
- विषाद - दुख
- धृति - धैर्य
- शंका - किसी वस्तु या व्यक्ति पर शक होना
- मोह - किसी वस्तु के प्रति प्रेम।
- मद - नशा
- उन्माद - पागलपन
- असूया - इष्र्या या जलन
- अभर्ष - अपने प्रति किसी के द्वारा की गई अवज्ञा के कारण उत्पन्न असहन-शीलता।
- श्रम - परिश्रम
- चिन्ता
- उत्सुकता - किसी वस्तु को जानने की इच्छा।
- आलस्य
- निद्रा - सोना
- अवहित्था - हर्ष, भय आदि भावों को लज्जा आदि के कारण छिपाने की चेष्टा करना।
- उग्रता -
- व्याधि - शारीरिक रोग
- मति - बुद्धि
- हर्ष - खुशी
- गर्व - किसी/वस्तु या व्यक्ति पर अभिमान होना।
- चपलता - चंचलता
- ब्रीडा - लाज (शर्म)
- स्मृति - याद
- त्रास - आकस्मिक कारण से चैक कर डर जाना।
- वितर्क - तक से रहित
- जडता
- मरण
- स्वप्न
- विवोध - जागना
- अपस्मार - मिर्गी के रोगी की सी अवस्था।
उदाहरण: नायिका द्वारा बार-बार हार को उतारना तथा पहनना।
प्रश्न: इस वाक्य में कौनसा भाव है।
उत्तर:
- संचारी भाव (चपलता)
- क्योंकि इसमें शारीरिक क्रियाए हो रही हैं।