हरित ऊर्जा उत्पादन के लिये शुगर प्रेसमड
चर्चा में क्यों?
- भारत चीनी के अवशिष्ट उप-उत्पाद प्रेसमड को संपीड़ित बायोगैस (Compressed Biogas- CBG) बनाकर हरित ऊर्जा उत्पादन के लिये एक मूल्यवान संसाधन के रूप में उपयोग करने पर विचार कर रहा है।
- भारत विश्व की चीनी अर्थव्यवस्था में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है तथा वर्ष 2021-22 से ब्राज़ील को पीछे छोड़कर अग्रणी चीनी उत्पादक के रूप में उभर रहा है। इसके अतिरिक्त यह विश्व स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा चीनी निर्यातक है।
संपीड़ित बायोगैस (CBG) क्या है?
- CBG एक नवीकरणीय, पर्यावरण के अनुकूल गैसीय/गैस-युक्त ईंधन है जो कार्बनिक पदार्थों के अवायवीय अपघटन से प्राप्त होता है। इसका उत्पादन बायो-मिथेनेशन अथवा अवायवीय अपघटन नामक एक प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है, जिसमें बैक्टीरिया ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में विभिन्न प्रकार के कार्बनिक स्रोत (कृषि अपशिष्ट, पशु खाद, खाद्य अपशिष्ट, सीवेज कीचड़ तथा अन्य बायोमास सामग्री) को तोड़ देते हैं।
- परिणामी बायोगैस में मुख्य रूप से मीथेन (आमतौर पर 90% से अधिक), कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड के अंश तथा नमी मौजूद होती है।
- बायोगैस को CBG में परिवर्तित करने के लिये कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड और नमी जैसी अशुद्धियों को दूर करने के लिये शुद्धिकरण चरणों को नियोजित किया जाता है।
- तत्पश्चात् शुद्ध की गई मीथेन गैस को उच्च दबाव में संपीड़ित किया जाता है, आमतौर पर लगभग 250 बार अथवा उससे अधिक, इसलिये इसे "संपीड़ित बायोगैस" कहा जाता है।
प्रेसमड क्या है?
परिचय:
- प्रेसमड, जिसे फिल्टर केक अथवा प्रेस केक के रूप में भी जाना जाता है, चीनी उद्योग में एक अवशिष्ट उप-उत्पाद है जिसने हरित ऊर्जा उत्पादन के लिये एक मूल्यवान संसाधन के रूप में मान्यता प्राप्त की है।
- यह उप-उत्पाद भारतीय चीनी मिलों को अवायवीय अपघटन के माध्यम से बायोगैस उत्पादन के लिये फीडस्टॉक के रूप में उपयोग करके अतिरिक्त आय सृजन करने का अवसर प्रदान करता है, जिससे संपीड़ित बायोगैस (CBG) का उत्पादन होता है।
- अवायवीय अपघटन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से बैक्टीरिया ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में कार्बनिक पदार्थ- जैसे पशु खाद, अपशिष्ट जल बायोसोलिड और खाद्य अपशिष्ट को तोड़ देते हैं।
- इनपुट के रूप में गन्ने की एक इकाई को संसाधित करते समय प्रेसमड की पैदावार आमतौर पर भार के हिसाब से 3-4% तक होती है।
नोट:
- केंद्र सरकार की सस्टेनेबल अल्टरनेटिव टुवार्ड्स अफोर्डेबल ट्रांसपोर्टेशन स्कीम (SATAT) द्वारा निर्धारित न्यूनतम गारंटी मूल्य पर विचार करते हुए प्रेसमड में लगभग 460,000 टन CBG उत्पन्न करने की क्षमता है, जिसका मूल्य 2,484 करोड़ रुपए है।
CBG उत्पादन के लिये प्रेसमड उपयोग के लाभ:
- कम जटिलताएँ: इसके लाभकारी गुणों में स्थायी गुणवत्ता, सोर्सिंग में सरलता तथा अन्य फीडस्टॉक्स की तुलना में कम जटिलताएँ शामिल हैं।
- सरलीकृत आपूर्ति शृंखला: यह फीडस्टॉक आपूर्ति शृंखला से संबंधित जटिलताओं को समाप्त करती है, जैसा कि कृषि अवशेषों के मामले में पाया जाता है, जहाँ कटाई एवं एकत्रीकरण के लिये बायोमास कटिंग मशीनरी की आवश्यकता होती है।
- एकल सोर्सिंग: फीडस्टॉक/चारा आम तौर पर एक या दो उत्पादकों अथवा चीनी मिलों से प्राप्त होता है, जबकि कृषि अवशेषों (जिनमें कई उत्पादक तथा किसान शामिल होते हैं) से यह प्राप्त करने के दिन (प्रतिवर्ष 45 दिनों) सीमित होते हैं।
- गुणवत्ता और दक्षता: मवेशियों के गोबर जैसे विकल्पों की तुलना में इसमें गुणवत्ता में स्थिरता और अधिक रूपांतरण दक्षता बनाए रखते हुए कम फीडस्टॉक मात्रा की आवश्यकता होती है।
- एक टन CBG का उत्पादन करने के लिये लगभग 25 टन प्रेसमड की आवश्यकता होती है। इसकी तुलना में समान गैस उत्पादन के लिये मवेशियों के गोबर की 50 टन की आवश्यकता होती है।
- लागत-प्रभावशीलता: कृषि अवशेष तथा मवेशी गोबर जैसे अन्य फीडस्टॉक की तुलना में कम लागत (0.4-0.6 रुपए प्रति किलोग्राम)। यह पूर्व-शोधन लागत को समाप्त करता है क्योंकि इसमें कृषि अवशेषों के विपरीत कार्बनिक पॉलिमर लिग्निन की कमी होती है।
प्रेसमड उपयोग से संबंधित चुनौतियाँ:
- प्रेसमड को बढ़ती कीमतों, अन्य उद्योगों में उपयोग के लिये प्रतिस्पर्द्धा तथा क्रमिक अपघटन के कारण भंडारण जटिलताओं जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसके लिये नवीन भंडारण समाधान की आवश्यकता होती है।
- एक जैविक अवशेष के रूप में पशु चारा, जैव ऊर्जा उत्पादन (बायोगैस अथवा जैव ईंधन के लिये) एवं कृषि मृदा संशोधन जैसे क्षेत्रों में इसकी मांग की जाती है। यह प्रतिस्पर्द्धा कभी-कभी विशिष्ट अनुप्रयोगों के लिये इसकी उपलब्धता को सीमित कर सकती है अथवा इसकी लागत बढ़ा सकती है।
- एक जैविक अवशेष के रूप में इसकी मांग पशु चारा, बायोएनर्जी उत्पादन (बायोगैस अथवा जैव ईंधन के लिये) तथा कृषि मृदा संशोधन जैसे क्षेत्रों में की जाती है। यह प्रतिस्पर्द्धा कभी-कभी इसकी उपलब्धता को सीमित कर सकती है या विशिष्ट अनुप्रयोगों के चलते प्रतिस्पर्द्धा के कारण इसकी लागत में वृद्धि हो सकती है।
भारत का प्रेसमड उत्पादन परिदृश्य क्या है?
उत्पादन आँकड़े:
- वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत का चीनी उत्पादन 32.74 मिलियन टन तक पहुँच गया, जिससे लगभग 11.4 मिलियन टन प्रेसमड का उत्पादन हुआ।
गन्ना उत्पादक राज्य:
- प्राथमिक गन्ना उत्पादक राज्य विशेष रूप से उत्तर प्रदेश तथा महाराष्ट्र, भारत के कुल गन्ना खेती क्षेत्र का लगभग 65% कवर करते हुए महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान करते हैं।
- प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु एवं बिहार शामिल हैं, जो भारत के कुल गन्ना उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा बनाते हैं।
आगे की राह
CBG उत्पादन के लिये प्रेसमड की पूरी क्षमता का उपयोग करने के लिये विभिन्न हस्तक्षेप महत्त्वपूर्ण हैं:
- राज्य स्तरीय नीतियाँ: राज्यों द्वारा सहायक बायोएनर्जी नीतियों का कार्यान्वयन, अनुमोदन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के साथ प्रोत्साहन प्रदान करना।
- मूल्य नियंत्रण तंत्र: प्रेसमड कीमतों को नियंत्रित करने के लिये तंत्र की स्थापना करना तथा चीनी मिलों एवं CBG संयंत्रों के बीच दीर्घकालिक समझौतों को प्रोत्साहित करना।
- तकनीकी प्रगति: मीथेन उत्सर्जन को रोकने तथा गैस हानि को कम करने के लिये सर्वोतम प्रेसमड भंडारण तकनीकों के लिये अनुसंधान और विकास।
- प्रशिक्षण पहल: संयंत्र और वैज्ञानिक उपकरण संचालन तथा फीडस्टॉक के वर्णन को लेकर CBG संयंत्र संचालकों के लिये प्रशिक्षण सत्र आयोजित करना।
शहरी क्षेत्रों में बेरोज़गारी दर
चर्चा में क्यों?
- राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) द्वारा आयोजित आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण ने हाल ही में जुलाई-सितंबर 2023 के आँकड़े जारी किये, जो शहरी क्षेत्रों में भारत की बेरोज़गारी दर को दर्शाते हैं।
हालिया PLFS की प्रमुख विशेषताएँ:
- शहरी बेरोज़गारी दर: शहरी क्षेत्रों में बेरोज़गारी दर 7.2% (जुलाई-सितंबर 2022) से घटकर 6.6% (जुलाई-सितंबर 2023) हो गई।
- पुरुष: यह दर इस समयावधि में 6.6% से घटकर 6% हो गई है।
- महिला: इनकी दर में अधिक सकारात्मक प्रवृत्ति देखी गई, जो दी गई समयावधि में 9.4% से घटकर 8.6% हो गई।
- श्रमिक-जनसंख्या अनुपात: शहरी क्षेत्रों में श्रमिक जनसंख्या अनुपात, जनसंख्या में नियोजित व्यक्तियों का प्रतिशत, 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिये जुलाई-सितंबर, जो वर्ष 2022 में 44.5% से बढ़कर जुलाई-सितंबर, वर्ष 2023 में 46% हो गया।
- पुरुष: यह दर इस समयावधि के दौरान 68.6% से बढ़कर 69.4% हो गई।
- महिला: इनकी दर इस समयावधि के दौरान 19.7% से बढ़कर 21.9% हो गई।
- श्रम बल भागीदारी दर: शहरी क्षेत्रों में LFPR जुलाई-सितंबर 2022 के 47.9% से बढ़कर जुलाई-सितंबर, 2023 में 49.3% हो गई।
- पुरुष: इनकी दर में इस अवधि के दौरान 73.4% से 73.8% तक मामूली वृद्धि देखी गई।
- महिला: इनकी दर में 21.7% से 24.0% तक अधिक महत्त्वपूर्ण वृद्धि प्रदर्शित की गई।
आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण क्या है?
परिचय:
- अधिक नियमित समय अंतराल पर श्रम बल डेटा की उपलब्धता के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए NSSO ने अप्रैल 2017 में आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण शुरू किया।
- PLFS बेरोज़गारी दर को श्रम बल में बेरोज़गार व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित करता है।
PLFS का उद्देश्य:
- केवल 'वर्तमान साप्ताहिक स्थिति' (CWS) में शहरी क्षेत्रों के लिये तीन माह के अल्प समय अंतराल में प्रमुख रोज़गार और बेरोज़गारी संकेतक (जैसे श्रमिक जनसंख्या अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर, बेरोज़गारी दर) का अनुमान लगाना।
- वार्षिक रूप से ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में 'सामान्य स्थिति' और CWS दोनों में रोज़गार तथा बेरोज़गारी संकेतकों का अनुमान लगाना।
संबंधित प्रमुख शर्तें क्या हैं?
- श्रम बल भागीदारी दर (LFPR): यह 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के उन लोगों के प्रतिशत का प्रतिनिधित्त्व करता है जो या तो कार्यरत हैं या बेरोज़गार हैं लेकिन सक्रिय रूप से कार्य की तलाश में हैं।
- श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR): यह कुल जनसंख्या के भीतर नियोजित व्यक्तियों के प्रतिशत को मापता है।
- बेरोज़गारी दर (UR): यह श्रम बल में बेरोज़गार वाले व्यक्तियों के प्रतिशत को इंगित करता है।
गतिविधि के संबंध में:
- प्रमुख गतिविधियों स्थिति (PS): वह प्राथमिक गतिविधि जो एक व्यक्ति पर्याप्त अवधि (सर्वेक्षण से पहले 365 दिनों के दौरान) में कर रहा है।
- सहायक आर्थिक गतिविधियों स्थिति (SS): सर्वेक्षण से पहले 365 दिन की अवधि में कम से कम 30 दिनों के लिये सामान्य प्राथमिक गतिविधि के अलावा अतिरिक्त आर्थिक गतिविधियाँ की गईं।
- वर्तमान साप्ताहिक स्थिति(CWS): यह स्थिति सर्वेक्षण तिथि से ठीक पहले पिछले 7 दिनों के दौरान किसी व्यक्ति की गतिविधियों को दर्शाती है।
शहरी क्षेत्रों में बेरोज़गारी से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- संरचनात्मक बेरोज़गारी: शहरी क्षेत्रों में प्राय: कार्यबल के पास मौजूद कौशल और उद्योगों द्वारा मांगे जाने वाले कौशल के बीच असमानता का सामना करना पड़ता है।
- शिक्षा प्रणाली रोज़गार बाज़ार की ज़रूरतों के अनुरूप नहीं है, जिससे अकुशल या अल्प-कुशल श्रमिकों की अधिकता हो जाती है।
- तेज़ी से तकनीकी प्रगति और अर्थव्यवस्था में बदलाव के कारण पारंपरिक उद्योगों में गिरावट आई है, जिसके परिणामस्वरूप कई शहरी श्रमिकों का रोज़गार चला गया है, जिनके पास उभरते क्षेत्रों के लिये आवश्यक कौशल की कमी है।
- अनौपचारिक क्षेत्र का प्रभुत्व: शहरी आबादी का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है, जिसमें कम वेतन, नौकरी की असुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा लाभों की कमी शामिल है।
- यह क्षेत्र अक्सर मौसमी उतार-चढ़ाव का अनुभव करता है, जिससे रोज़गार के अवसर असंगत होते हैं।
- औपचारिक रोज़गार के अवसरों की कमी के कारण कई श्रमिकों को ऐसी नौकरियाँ स्वीकार करने के लिये मजबूर होना पड़ता है जो उनके कौशल स्तर से कम हैं, जिससे मानव संसाधनों का कम उपयोग होता है।
- IMF के अनुसार, भारत में रोज़गार हिस्सेदारी के मामले में असंगठित क्षेत्र 83% कार्यबल को रोज़गार देता है।
- इसके अलावा अर्थव्यवस्था में 92.4% अनौपचारिक श्रमिक हैं (बिना किसी लिखित अनुबंध, सवैतनिक अवकाश और अन्य लाभों के)।
- जनसांख्यिकीय चुनौतियाँ: शहरों में तेज़ी से शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि ने रोज़गार सृजन को पीछे छोड़ दिया है, जिससे श्रम बाज़ार पर बोझ बढ़ गया है और बेरोज़गारी दर बढ़ गई है।
- ग्रामीण से शहरी प्रवास के कारण अक्सर शहरों में श्रम की अत्यधिक आपूर्ति हो जाती है, जिससे प्रवासी आबादी के बीच बेरोज़गारी दर में वृद्धि होती है, जिससे शहरी गरीबी और बढ़ जाती है।
- साख मुद्रास्फीति: शैक्षिक योग्यताओं पर अत्यधिक ज़ोर देने से ऐसी स्थितियाँ पैदा हो सकती हैं जहाँ व्यक्ति उपलब्ध नौकरियों के लिये अत्यधिक योग्य हो जाते हैं, जिससे अल्परोज़गार या बेरोज़गारी हो जाती है।
रोज़गार संबंधी सरकार की पहल:
- आजीविका और उद्यम के लिये सीमांत व्यक्तियों हेतु समर्थन" (स्माइल)
- पीएम-दक्ष (प्रधानमंत्री दक्षता और कुशलता संपन्न हितग्राही)
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा)
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई)
- स्टार्ट अप इंडिया स्कीम
- रोज़गार मेला
- इंदिरा गांधी शहरी रोज़गार गारंटी योजना- राजस्थान
आगे की राह
- सुधारवादी शिक्षा: प्रासंगिक कौशल प्रदान करने के लिये पाठ्यक्रम को अद्यतन करके व्यावसायिक प्रशिक्षण पर ज़ोर देकर और रोज़गार क्षमता बढ़ाने के लिये आजीवन सीखने को बढ़ावा देकर शिक्षा को वर्तमान बाज़ार की मांगो के साथ संरेखित करना।
- स्टार्टअप इकोसिस्टम सपोर्ट: वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करके नौकरशाही बाधाओं को कम कर और उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करने के लिये मेंटरशिप कार्यक्रमों की पेशकश करके स्टार्टअप के लिये अनुकूल माहौल को बढ़ावा देना।
- रोज़गारोन्मुख नीतियाँ: ऐसी नीतियाँ बनाना और लागू करना जो रोज़गार सृज़न को बढ़ावा दें, जिसमें बुनियादी ढाँचे में निवेश, उद्योग-अनुकूल नियम और रोज़गार पैदा करने वाले व्यवसायों के लिये वित्तीय प्रोत्साहन शामिल हैं।
- सृज़नात्मक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना: सांस्कृतिक उद्योगों, कला और रचनात्मक क्षेत्रों में निवेश करना, सांस्कृतिक उद्यमिता के माध्यम से रोज़गार उत्पन्न करने के लिये कारीगरों, कलाकारों और शिल्पकारों का समर्थन करना।
- हरित स्थल और शहरी कृषि: शहरों के भीतर शहरी कृषि और हरित स्थानों को बढ़ावा देना, खेती, बागवानी और संबंधित पर्यावरण-अनुकूल गतिविधियों में रोज़गार पैदा करना।
- हरित क्षेत्र में रोज़गार पैदा करने के लिये सतत् प्रथा, भूनिर्माण और शहरी वानिकी में प्रशिक्षण प्रदान करना।
GDP में वृद्ध
चर्चा में क्यों?
- सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, जुलाई से सितंबर माह को कवर करते हुए वर्ष 2023-24 की दूसरी तिमाही (Q2) में भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) 7.6% बढ़ गया।
- दूसरी तिमाही (Q2) में भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि में गिरावट, विनिर्माण में वृद्धि तथा सेवा क्षेत्रों में मंदी देखी गई।
डेटा वृद्धि का क्या महत्त्व है?
- यह न केवल आर्थिक वृद्धि का काफी प्रभावशाली स्तर है अपितु यह बाज़ार के सभी पूर्वानुमानों को भी मात देता है।
- हालिया तिमाही GDP वृद्धि ने संपूर्ण वित्तीय वर्ष के लिये GDP पूर्वानुमान में बढ़ोतरी कर दी है।
- ऐसा प्रतीत होता है कि भारत के केंद्रीय बैंक ने वित्तीय वर्ष के लिये देश की GDP वृद्धि दर का सटीक पूर्वानुमान व्यक्त किया है।
- वर्तमान में बैंकों ने 6.5% के GDP वृद्धि का पूर्वानुमान लगाया है, ऐसे में कई विशेषज्ञों ने अपने अनुमानों में बदलाव करना आरंभ कर दिया है। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्रस्तुत पूर्वानुमान एक सटीक आकलन प्रस्तुत करता है।
- इसका आशय यह भी है कि आने वाले कुछ समय तक भारतीय रिज़र्व बैंक ब्याज दरों में कटौती नहीं करेगा। अगर विकास दर बाज़ार की उम्मीदों से कम होती, तो दर में कटौती की संभावना अधिक हो जाती है।
- यह उल्लेखनीय है कि तीन वर्ष पूर्व MoSPI ने वर्ष 2020-21 के दूसरे तिमाही GDP डेटा की घोषणा की कि भारत तकनीकी मंदी के दौर से गुज़र रहा था। वर्तमान विकास दर में उछाल से उम्मीद है कि भारत में आर्थिक सुधारों की गति अब बढ़ने लगी है।
आर्थिक विकास को मापने की विभिन्न विधियाँ क्या हैं?
आर्थिक विकास को मापने की दो विधियाँ हैं
GDP:
- इसमें लोगों के खर्च करने के तरीके (व्यय पक्ष) का आकलन करना शामिल है। सकल मूल्य वर्द्धित (GVA) का उपयोग सरकारी सब्सिडी में कटौती और अप्रत्यक्ष करों को शामिल कर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की गणना के लिये किया जा सकता है।
GVA:
- यह अर्थव्यवस्था के आय पक्ष पर केंद्रित है। भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार, GVA किसी क्षेत्र के आउटपुट मूल्य से उसके मध्यस्थ इनपुट घटाने के पश्चात् प्राप्त मूल्य है। यह "वर्द्धित मूल्य" उत्पादन के प्राथमिक कारकों- श्रम एवं पूंजी के बीच वितरित किया जाता है।
दो तरीकों के बीच असमानता:
- इन दोनों तरीकों के बीच असमानता को विसंगति कहते हैं और इन्हें लेकर विवाद होते रहे हैं, विशेष रूप से पहली तिमाही का GDP डेटा जारी करने के दौरान।
- त्रैमासिक आर्थिक रुझानों के सूक्ष्म विश्लेषण के लिये GVA मान को अक्सर अधिक विश्वसनीय माना जाता है, जबकि वार्षिक रुझानों का आकलन करने के लिये GDP (व्यय डेटा) को प्राथमिकता दी जाती है।
भारत की विकास दर को और अधिक मज़बूत बनाने के लिये क्या करने की आवश्यकता है?
- निवेश और उपभोग को बढ़ावा: ये घरेलू मांग के दो मुख्य घटक हैं, जो भारत की जीडीपी का लगभग 70% हिस्सा है।
- निवेश बढ़ाने के लिये सरकार उन सुधारों को लागू करना जारी रख सकती है जो नीतिगत अनिश्चितता, नियामक बाधाओं, ब्याज दरों और बुरे ऋणों को कम करते हैं।
- उपभोग बढ़ाने के लिये सरकार आय वृद्धि, मुद्रास्फीति नियंत्रण, ग्रामीण विकास, रोज़गार सृजन और ऋण उपलब्धता का समर्थन कर सकती है।
- विनिर्माण और निर्यात बढ़ाना: यह मूल्य वर्द्धन, रोज़गार और बाहरी मांग का प्रमुख स्रोत है, जो भारत को अपनी अर्थव्यवस्था में विविधता लाने तथा वैश्विक बाज़ार के साथ एकीकृत करने में मदद कर सकता है।
- विनिर्माण और निर्यात में सुधार के लिये सरकार आत्मनिर्भर भारत पैकेज, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना और राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन जैसी पहलों को लागू करना जारी रख सकती है।
- मानव पूंजी और सामाजिक सेवाओं में निवेश: यह भारत की बड़ी और युवा आबादी के जीवन स्तर तथा उत्पादकता में सुधार के लिये आवश्यक कारक है।
- मानव पूंजी और सामाजिक सेवाओं में निवेश करने के लिये सरकार, शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल, पोषण, जल, स्वच्छता, ऊर्जा, आवास और स्वास्थ्य देखभाल को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों को लागू करना जारी रख सकती है।
- व्यापक आर्थिक स्थिरता और लचीलापन बनाए रखना: आर्थिक विकास को बनाए रखने और विभिन्न झटकों एवं अनिश्चितताओं से निपटने के लिये ये आवश्यक शर्तें हैं।
- व्यापक आर्थिक स्थिरता और आघातसह स्थिति बनाए रखने के लिये सरकार विवेकपूर्ण राजकोषीय एवं मौद्रिक नीतियों को आगे बढ़ाना जारी रख सकती है जो विकास तथा मुद्रास्फीति के उद्देश्यों को संतुलित करती हैं।
प्राथमिक कृषि ऋण समितिया
संदर्भ:
- केंद्र सरकार पैक्स (प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां) के लिए कानूनी मॉडल लाएगी।
- इसका उद्देश्य उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं की संख्या में वृद्धि करके उन्हें आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाना है।
- लेकिन, ये कानूनी मॉडल उनके कार्यान्वयन के लिए राज्यों पर निर्भर होंगे क्योंकि सहकारिता राज्य सूची (अनुसूची VII) का एक विषय है।
लेख की मुख्य विशेषताएं
प्राथमिक कृषि सहकारी समितियाँ (PACS) क्या हैं?
- प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां (पीएसीएस) जमीनी स्तर की ऋण संस्थाएं हैं जिन्हें अल्पकालिक और मध्यम अवधि के कृषि ऋण प्रदान करने का अधिकार है।
- व्यक्तियों का संघ - पैक्स अपने सभी सदस्यों को उनकी हिस्सेदारी और उनकी सामाजिक स्थिति पर विचार किए बिना समान अधिकार प्रदान करता है।
- पैक्स के साथ काम करने वाली 4 संस्थाएं हैं
पैक्स का सामान्य निकाय:
- यह बोर्ड और प्रबंधन पर नियंत्रण रखता है।
प्रबंधन समिति:
- समाज के नियमों, अधिनियमों और उपनियमों के अनुसार कार्य के प्रबंधन के लिए।
अध्यक्ष, वीसी और सचिव:
- वे यह सुनिश्चित करने के लिए काम की निगरानी करते हैं कि समाज अपने सदस्यों के लाभ के लिए काम करता है।
कार्यालय कर्मचारी:
- वे दिन-प्रतिदिन के कार्य करने के लिए जिम्मेदार होते हैं।
- 10 या अधिक व्यक्ति पैक्स खोल सकते हैं।
सहकारी समितियों का विकास और पदानुक्रम
- पैक्स की शुरुआत 1904 में हुई थी।
- छोटे व्यवसायों और समाज के गरीब वर्गों को आसान ऋण प्रदान करने के लिए आर्थिक मंदी के दौरान हरमन शुल्ज और फ्रेडरिक विल्हेम रायफिसेन के विचार के परिणामस्वरूप सहकारी बैंक बने।
- सर फ्रेडरिक निकोलसन (1899) और सर एडवर्ड लॉ (1901) की सिफारिशों पर सहकारी ऋण समिति अधिनियम, 1904 पारित किया गया था।
- 1912 में एक व्यापक कानून पारित किया गया था, जो आज भी वह कानून है जिसके तहत भारत में कोई भी सहकारी पंजीकृत है।
- पैक्स सहकारी समितियों के पदानुक्रम के निचले स्तर पर हैं जो भारत में अल्पकालिक ऋण देने के लिए जिम्मेदार हैं।
- इसके पहले जिला केंद्रीय सहकारी बैंक है।
- राज्य में शीर्ष स्तर पर राज्य सहकारी बैंक हैं।
पैक्स (PACS) के कार्य
वित्तीय कार्य
- वे ग्रामीण आबादी के वित्तीय समावेशन के लिए जिम्मेदार हैं।
- चूंकि अधिकांश ऋण (95% तक) छोटे और सीमांत किसानों द्वारा लिए जाते हैं।
- वे ग्रामीण आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए वित्तीय पूंजी प्रदान करते हैं।
- केसीसी (किसान क्रेडिट कार्ड) का 41% (3 करोड़ किसान) ऋण पैक्स द्वारा दिया गया है।
- वे लोगों में बचत की आदतों को बढ़ावा देते हैं।
कृषि से संबंधित कार्य
- कृषि आदानों की व्यवस्था करना।
- लाभकारी कीमतों पर कृषि उपज की बिक्री की सुविधा के लिए विपणन सुविधाएं प्रदान करता है।
अन्य कार्य
- पीडीएस की दुकानें चलाना।
- राज्य सहकारी बैंकों और केंद्रीय सहकारी बैंकों से उधार लेने के लिए निधि की व्यवस्था करना।
- जनता बाजार का संचालन।
पैक्स पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार के लिए उठाए गए कदम
- पैक्स की संख्या बढ़ाने की योजना बनाई गई है।
- वर्तमान 63K से 3L PACS तक।
- पैक्स के कम्प्यूटरीकरण के लिए आवंटित धनराशि।
- 2516 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
- नए अवसर सृजित
- पैक्स द्वारा 20 नई सेवाएं प्रदान की जाएंगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अधिक पैक्स के खुलने से उनका वित्तीय व्यवसाय प्रभावित न हो।
- इनमें बैंक मित्र और सामान्य सेवा केंद्र (सीएससी), कोल्ड स्टोरेज, गोदाम, उचित मूल्य की दुकान (पीडीएस के तहत), डेयरी, मत्स्य पालन, सिंचाई और बायोगैस शामिल हैं।
क्या आप जानते हैं?
- पैक्स को दिए गए बैंक ऋण को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्दिष्ट प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र ऋण के तहत कृषि प्रयोजन के लिए प्रत्यक्ष वित्त के रूप में माना जाता है।
- हाल ही में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने लगभग 63,000 प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पीएसीएस) को डिजिटाइज करने की मंजूरी दी।
- 2,516 करोड़ रुपये की लागत से पैक्स का डिजिटलीकरण किया जाएगा, जिससे लगभग 13 करोड़ छोटे और सीमांत किसानों को लाभ होगा। प्रत्येक पैक्स को अपनी क्षमता को उन्नत करने के लिए लगभग 4 लाख रुपये मिलेंगे और यहां तक कि पुराने लेखा रिकॉर्ड को भी डिजिटलीकृत किया जाएगा और क्लाउड आधारित सॉफ्टवेयर से जोड़ा जाएगा।
चुनौतियां-
- पुराने पैक्स को बंद घोषित कर दिए जाने के बाद भी नए पैक्स खोलने में समस्याएँ सामने आई हैं।
- पैक्स कम्प्यूटरीकरण में कोई एकरूपता नहीं
- कम्प्यूटरीकरण के लिए विभिन्न सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जा रहा है।
- यह कोर बैंकिंग के उद्देश्य को विफल करता है।
- संगठनात्मक कमजोरी
- पैक्स के अधिकारियों की नियुक्ति में राजनीतिकरण और पक्षपात।
- ऋण की वसूली में असमर्थता।
- अपर्याप्त संसाधन
- अधिकांश पैक्स केंद्र और राज्य सहकारी बैंकों से ऋण पर अपने काम पर निर्भर हैं।
- उधारकर्ताओं की ऋण योग्यता और ऋण इतिहास पर निर्णय लेने से पहले नियामक निरीक्षण और उचित परिश्रम का अभाव
- अतिदेय में वृद्धि
- उधारकर्ता से सदस्य अनुपात 50% से कम।
- 2010 के बाद से, कृषि ऋण की कीमत पर गैर-कृषि ऋणों की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है
विचारों को अग्रसर करने का तरीका
- संगठनात्मक हस्तक्षेप
- समाज में प्रमुख व्यक्तियों की नियुक्ति में नियत प्रक्रिया का पालन करना।
- वित्तीय हस्तक्षेप
- नियमित ऑडिट के साथ-साथ कम्प्यूटरीकरण से पारदर्शिता और खुलेपन के साथ-साथ क्रेडिट उपलब्धता में आसानी होगी।
- अव्यवहार्य पैक्स का परिसमापन और विलय और नए पैक्स को खोलने की अनुमति देना।
- जमाकर्ताओं के धन पर भरोसा करके आत्मनिर्भरता की प्रथा में सुधार करना।
- इरादतन चूककर्ताओं से ऋण की वसूली के लिए कड़े प्रावधान।
- कम्प्यूटरीकरण
- प्रक्रिया के डिजिटलीकरण के लाभों को बढ़ाने के लिए एक विशेष राज्य में एक ही सॉफ्टवेयर का उपयोग करना अर्थात्
- तेजी से ऋण संचरण
- लेन-देन की कम लागत
- लेन-देन की पारदर्शिता और खुलेपन में वृद्धि होगी।
- तेजी से लेखा परीक्षा और राज्य के साथ भुगतान और लेखांकन में असंतुलन में कमी। सहकारी बैंक और जिला केंद्रीय सहकारी बैंक।
- पैक्स को एक साझा राष्ट्रीय मंच पर लाना।
- आम लेखा प्रणाली के अधीन पैक्स।
निष्कर्ष
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को फिर से जीवंत करने के लिए पैक्स प्रणाली को बदलने की तत्काल आवश्यकता है। पारदर्शिता, विश्वसनीयता और दक्षता प्राप्त करने के लिए जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों (डीसीसीबी) और राज्य सहकारी बैंकों (एसटीसीबी) (नाबार्ड द्वारा) के कम्प्यूटरीकरण की तर्ज पर पैक्स का कम्प्यूटरीकरण इस संबंध में एक महत्वपूर्ण कदम है।
क्रिप्टो परिसंपत्ति मध्यस्थों के बारे में FSB की चिंताए
चर्चा में क्यों?- हाल ही में क्रिप्टो-परिसंपत्ति मध्यस्थों पर वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB) की नवीनतम रिपोर्ट में स्थानीय अधिकारियों के बीच सीमा पार सहयोग और सूचना साझाकरण को बढ़ाने के उपायों की मांग की गई है। इसका उद्देश्य विश्व स्तर पर संचालित मल्टी-फंक्शन क्रिप्टो-एसेट इंटरमीडियरीज़ (MCI) में अंतराल को कम कर प्रभावी ढंग से विनियमित करना है।
क्रिप्टो एसेट/परिसंपत्तियाँ क्या हैं?
- क्रिप्टो परिसंपत्तियाँ मूल्य का एक डिजिटल प्रतिनिधित्व हैं जो इलेक्ट्रॉनिक रूप से स्थानांतरित, संग्रहीत या व्यापार कर सकती हैं। इसमें अपूरणीय टोकन (NFT) भी शामिल हैं।
- NFT ब्लॉकचेन-आधारित टोकन हैं जो प्रत्येक कला, डिजिटल सामग्री या मीडिया जैसी एक अनूठी संपत्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। NFT को किसी दी गई संपत्ति के स्वामित्व और प्रामाणिकता का एक अपरिवर्तनीय डिजिटल प्रमाण-पत्र माना जा सकता है, चाहे वह डिजिटल हो या भौतिक।
- क्रिप्टो परिसंपत्तियाँ डिजिटल संपत्तियों का एक उप-समूह हैं जो डिजिटल डेटा की सुरक्षा के लिये क्रिप्टोग्राफी का उपयोग करती हैं और लेनदेन को रिकॉर्ड करने के लिये वितरित लेज़र तकनीक का उपयोग करती हैं।
मल्टी-फंक्शन क्रिप्टो-एसेट इंटरमीडियरीज़ (MCI) क्या हैं?
- MCI एक व्यक्तिगत फर्म है या संबद्ध फर्मों का समूह है जो क्रिप्टो-आधारित सेवाओं, उत्पादों और कार्यों की एक शृंखला की पेशकश करता है जो मुख्य रूप से ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म के संचालन पर आधारित हैं।
- उदाहरणों में बिनेंस, बिटफिनेक्स और कॉइनबेस शामिल हैं।
- इन प्लेटफाॅर्मों के लिये राजस्व का प्राथमिक स्रोत व्यापार-संबंधित गतिविधियों से उत्पन्न संव्यवहार /लेनदेन शुल्क है।
- ये MCI ब्लॉकचेन इन्फ्रास्ट्रक्चर के संचालन से भी राजस्व प्राप्त कर सकते हैं जिसके लिये वे लेनदेन सत्यापन शुल्क एकत्र कर सकते हैं।
FSB की रिपोर्ट के अनुसार MCI से संबंधित चिंताएँ क्या हैं?
- पारदर्शिता: रिपोर्ट में पाया गया है कि अधिकांश MCI अमूमन अपने कॉर्पोरेट ढाँचे के बारे में पारदर्शी नहीं हैं। यदि वे जानकारी का खुलासा करते हैं तो यह आम तौर पर उनके व्यवसाय के एक छोटे से हिस्से के लिये होता है।
- MCI, संव्यवहार गतिविधियों अथवा ऑडिट रिपोर्टों का स्पष्ट विवरण प्रदान करने में विफल रही।
- प्रतिस्पर्द्धा-रोधी प्रवृत्ति: एक ही स्थान पर सेवाओं का बड़ा संकेंद्रण होने से प्रतिस्पर्द्धा-रोधी व्यवहार हो सकता है, जिससे प्रणाली अधिक असुरक्षित हो सकती है।
- यह एकाग्रता नए प्रतिस्पर्धियों के लिये बाज़ार में प्रवेश करना कठिन बना सकती है तथा उन उपयोगकर्त्ताओं के लिये लागत बढ़ा सकती है जो एक अलग सेवा प्रदाता पर स्विच करना चाहते हैं।
- क्रिप्टो-अनुकूल बैंक: क्रिप्टो परिसंपत्तियों के अनुकूल बैंकों को बंद करने से क्रिप्टो परिसंपत्तियों पर निर्भर व्यवसायों से संबंधित जमा राशि का एक गंभीर संकेंद्रण होने का व्यापक जोखिम उजागर होता है।
- क्रिप्टो-परिसंपत्ति बाज़ारों में बाज़ार तनाव के कारण निवेशकों की काफी हानि हुई, जिससे इन बाज़ारों की विश्वसनीयता कम हो गई।
- क्रिप्टोकरेंसी और फिएट करेंसी: MCI संव्यवहार सेवाओं के लिये बैंकों तथा भुगतान प्रदाताओं पर निर्भर हैं, जिसमें क्रिप्टोकरेंसी एवं (ऑन-रैंप व ऑफ-रैंप सेवाओं) के बीच रूपांतरण भी शामिल है।
- यदि ट्रेडिंग प्लेटफाॅर्म संचालन बंद कर देता है अथवा यदि बैंक वास्तविक समय संचालन की प्रस्तुति करने में विफल रहता है, तो प्रतिपक्ष मुद्दों का जोखिम उत्पन्न होता है।
- इसके अतिरिक्त, बैंकों द्वारा एमसीआई को ऋण और क्रेडिट लाइनें प्रदान करने में क्रेडिट जोखिम शामिल होता है, खासकर क्रिप्टो-आधारित संपार्श्विक का उपयोग करते समय, जो भविष्य में मूल्य में गिरावट आ सकती है।
वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB) क्या है?
- FSB एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है जो वैश्विक वित्तीय प्रणाली की निगरानी करती है और उसके बारे में सिफारिशें करती है।
- FSB की स्थापना वर्ष 2009 में G20 के तत्वावधान में की गई थी।
- भारत FSB का एक सक्रिय सदस्य है, जिसके पूर्ण सत्र में तीन सीटों का प्रतिनिधित्व आर्थिक मामलों के सचिव, वित्त मंत्रालय, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के उप-गवर्नर, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के अध्यक्ष द्वारा किया जाता है।
आगे की राह
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और सूचना साझा करना:
- MCI के संचालन में कमियों को प्रभावी ढंग से विनियमित करने और संबोधित करने के लिये स्थानीय अधिकारियों के बीच सीमा पार सहयोग तथा सूचना साझाकरण को बढ़ावा देना।
- सभी न्यायक्षेत्रों में MCI के संचालन की व्यापक समझ सुनिश्चित करने के लिये पारदर्शिता और रिपोर्टिंग के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानक स्थापित करें।
विनियामक उपायः
- MCI द्वारा उत्पन्न अद्वितीय चुनौतियों का समाधान करने, बाज़ार की अखंडता, निवेशक सुरक्षा और वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये विशेष रूप से तैयार किये गए स्पष्ट नियामक ढाँचे को विकसित और कार्यान्वित करें।
कॉर्पोरेट पारदर्शिता:
- MCI को उनकी कॉर्पोरेट संरचना, व्यवसाय लाइनों और संचालन के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करके कॉर्पोरेट पारदर्शिता बढ़ाने का आदेश दें।
- पारदर्शिता मानकों का अनुपालन न करने पर दंडित करने के उपाय लागू करें, यह सुनिश्चित करें कि MCI व्यापक नियामक निरीक्षण के लिये प्रासंगिक जानकारी का खुलासा करें।
भारत ने प्याज़ निर्यात पर प्रतिबंध लगाया
चर्चा में क्यों?
- हाल ही में विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) ने प्याज़ की निर्यात नीति को ‘मुक्त’ से ‘निषिद्ध’ में परिवर्तित करने की अधिसूचना जारी करते हुए मार्च 2024 तक प्याज़ निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है।
- वर्ष 2022-23 रबी सीज़न के स्टॉक के जल्दी खत्म होने और त्योहारी मांग में वृद्धि के साथ-साथ अनुमानित कम खरीफ 2023 उत्पादन के कारण मौजूदा आपूर्ति की कमी के कारण प्याज़ की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि हुई है।
- सरकार ने गेहूँ के लिये स्टॉक सीमा को भी संशोधित किया है, थोक विक्रेताओं के लिये स्टॉक सीमा को घटाकर 1,000 टन और खुदरा विक्रेताओं के लिए 5 टन कर दिया गया है।
सरकार ने प्याज़ के निर्यात पर प्रतिबंध क्यों लगाया है?
मूल्य नियंत्रण:
- प्याज़ के निर्यात पर रोक लगाकर सरकार का लक्ष्य घरेलू बाज़ार में कीमतों में उछाल या उतार-चढ़ाव को रोकना है।
- बढ़ती कीमतों से निपटने के लिये, केंद्र ने अक्टूबर 2023 में प्याज़ पर 800 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य लगाया था। इससे पहले अगस्त में सरकार ने प्याज़ पर 40 फीसदी निर्यात शुल्क लगाया था।
- प्याज़ की कीमत में महत्त्वपूर्ण अस्थिरता का इतिहास रहा है और निर्यात प्रतिबंध से कीमतों को स्थिर करने में मदद मिलती है, जिससे स्थानीय उपभोक्ताओं के लिये यह अधिक किफायती हो जाता है।
कमी का समाधान:
- प्रतिकूल मौसम की स्थिति, कम उत्पादन या बढ़ी हुई मांग जैसे कारकों के कारण देश में प्याज़ की कमी हो सकती है।
- निर्यात पर प्रतिबंध लगाकर, सरकार यह सुनिश्चित करती है कि उपलब्ध आपूर्ति पहले घरेलू मांगों को पूरा करने के लिये निर्देशित हो।
खाद्य सुरक्षा:
- प्याज़ भारतीय व्यंजनों का प्रमुख हिस्सा है और इसकी कोई भी कमी खाद्य सुरक्षा को प्रभावित कर सकती है। निर्यात पर अंकुश लगाकर, सरकार यह सुनिश्चित करती है कि आबादी को कमी या अप्रभावी कीमतों का सामना किये बिना यह आवश्यक खाद्य पदार्थ उपलब्ध हो।
प्याज़ के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- प्याज़ अपने पाक प्रयोजनों और औषधीय मूल्यों के लिये विश्व भर में उगाई जाने वाली एक महत्त्वपूर्ण बागवानी उत्पाद है।
- चीन के बाद भारत प्याज़ का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
- महाराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु प्रमुख प्याज़ उत्पादक राज्य हैं।
- वर्ष 2021-22 (तीसरा अग्रिम अनुमान) में प्याज़ उत्पादन में महाराष्ट्र 42.53% की हिस्सेदारी के साथ प्रथम स्थान पर है, उसके बाद 15.16% की हिस्सेदारी के साथ मध्य प्रदेश है।
सरकार ने गेहूँ पर स्टॉक सीमा क्यों लगाई है?
- संशोधित स्टॉक सीमा का उद्देश्य गेहूँ स्टॉकिंग/भंडारण में शामिल संस्थाओं द्वारा जमाखोरी प्रथाओं को रोकना है। कड़ी सीमाएँ लगाकर, सरकार का इरादा इस बनावटी कमी को हतोत्साहित करना और विभिन्न हितधारकों के बीच गेहूँ का उचित वितरण सुनिश्चित करना है।
- अत्यधिक जमाखोरी से आपूर्ति और मांग के बीच असंतुलन हो सकता है, जिससे कीमतों में उतार-चढ़ाव हो सकता है जो उपभोक्ताओं पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
- गेहूँ के भंडार को विनियमित करने से यह सुनिश्चित होता है कि देश की खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये बाज़ार में इसकी पर्याप्त मात्रा उपलब्ध रहे। यह कमी को रोककर और उपभोक्ताओं के लिये इस मुख्य खाद्य पदार्थ तक पहुँच सुनिश्चित करके खाद्य सुरक्षा बनाए रखने में मदद करता है।
संपूर्ण देश में गेहूँ वितरण का वर्तमान परिदृश्य क्या है?
- चीन के बाद भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा गेहूँ उत्पादक है किंतु गेहूँ के वैश्विक व्यापार में इसकी हिस्सेदारी 1% से भी कम है। यह निर्धन वर्गों को सहायिकी युक्त अन्न उपलब्ध कराने के लिये इसका एक बड़ा हिस्सा अपने पास रखता है।
- भारत में प्रमुख गेहूँ उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार और गुजरात हैं।
- प्रमुख निर्यात गंतव्य (2022-23): मुख्य रूप से गेहूँ का निर्यात बांग्लादेश, इंडोनेशिया, कोरिया गणराज्य, संयुक्त अरब अमीरात एवं यमन गणराज्य को किया जाता है।