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Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): February 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

वर्ष 2050 तक विश्व में 2 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने की संभावना

चर्चा में क्यों? 

  • "जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) के विरोधाभासी अनुमान" शीर्षक वाले एक हालिया अध्ययन के अनुसार, कम उत्सर्जन परिदृश्य के कारण भी वर्ष 2050 तक विश्व के दो डिग्री सेल्सियस तक गर्म होने की संभावना है।
  • शोधकर्त्ताओं ने तापमान के 1.5 डिग्री सेल्सियस और 2 डिग्री सेल्सियस थ्रेसहोल्ड तक पहुँचने के समय की भविष्यवाणी करने के लिये आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क (ANN) नामक कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग किया। 
  • विश्व ने वर्ष 1850-1900 के औसत तापमान की तुलना में 1.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की है।  

प्रमुख निष्कर्ष

  • प्रक्षेपण: 
    • IPCC AR6 (छठी आकलन रिपोर्ट) संश्लेषण मूल्यांकन की तुलना में कम उत्सर्जन परिदृश्य के तहत तापमान 2 डिग्री सेल्सियस तक पहुँचने की अधिक संभावना है और पेरिस समझौते को बनाए रखने में विफल हो सकता है। 
    • पेरिस समझौते का उद्देश्य तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयासों को आगे बढ़ाते हुए इस वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से कम पर सीमित करना है।
    • IPCC के अनुसार, सभी उत्सर्जन परिदृश्यों के तहत वर्ष 2030 के दशक की शुरुआत में 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा प्राप्त की जा सकती है। 
    • ग्लोबल वार्मिंग पहले से ही 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान की सीमा को पार करने के कगार पर है, भले ही निकट अवधि में जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक काफी हद तक कम हो गए हों। 
    • यह 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा वर्ष 2033 और 2035 के बीच कहीं अधिक उच्च, मध्यम और निम्न परिदृश्यों तक पहुँच जाएगी। 
    • उच्च-उत्सर्जन परिदृश्य के तहत विश्व वर्ष 2050 तक 2 डिग्री सेल्सियस तापमान, वर्ष 2049 में मध्यवर्ती और वर्ष 2054 तक निम्न-उत्सर्जन स्तर परिदृश्यों तक पहुँच सकता है।
    • इसके विपरीत IPCC के अनुसार, उच्च उत्सर्जन परिदृश्य के तहत 21वीं सदी के मध्य में ग्लोबल वार्मिंग के 2°C तक पहुँचने की संभावना अधिक है।
  • वार्मिंग सीमित करने का महत्त्व: 
    • ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान तक सीमित करने से अत्यधिक हीट वेव से प्रभावित लोगों की संख्या लगभग 420 मिलियन कम हो जाएगी।
    • यह सूखे की संभावना और जल की उपलब्धता से जुड़े जोखिमों को भी कम कर सकता है।
  • आशय: 
    • जलवायु जोखिमों की एक विस्तृत शृंखला है, जिसमें मानव स्वास्थ्य, आर्थिक विकास, फसल पैदावार, तटीय और छोटे द्वीपीय समुदाय, स्थलीय एवं समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के साथ-साथ चरम जलवायु घटनाओं की आवृत्ति तथा तीव्रता जैसे प्रभाव शामिल हैं, जो 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा से अधिक गर्म होने के परिणामस्वरूप देखे जा सकते हैं।

कृत्रिम तंत्रिका संजाल

  • ANN (Artificial Neural Networks) मशीन लर्निंग का एक महत्त्वपूर्ण उपसमुच्चय है जो कंप्यूटर वैज्ञानिकों को जटिल कार्यों, जैसे कि रणनीति बनाने, भविष्यवाणी करने और रुझानों को पहचानने में उनकी मदद करता है।.
  • यह एक कम्प्यूटेशनल मॉडल है जो मानव मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिकाओं के काम करने के तरीके की नकल करता है। यह मानव मस्तिष्क के विश्लेषण और सूचना को संसाधित करने के तरीके का अनुकरण करने के लिये डिज़ाइन किया गया है

वार्मिंग को 1.8 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित करना

चर्चा में क्यों?   

  • पेरिस समझौते के तहत वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का लक्ष्य रखा गया था, नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन के अनुसार, इस लक्ष्य की प्राप्ति के बावजूद अगली सदी तक भी समुद्र के स्तर में वृद्धि को रोकना शायद असंभव है।

बढ़ते तापमान पर अध्ययन के प्रमुख बिंदु:  

  • अध्ययन के अनुसार, यदि वैश्विक तापमान में 1.8 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि होती है, तो पश्चिम अंटार्कटिक बर्फ और ग्रीनलैंड की बर्फ की चादरें स्थायी रूप से पिघल जाएंगी, जिससे समुद्र का स्तर तेज़ी से बढ़ेगा।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, अंटार्कटिक के एक बड़े ग्लेशियर थवाइट्स ग्लेशियर (जिसे डूम्सडे ग्लेशियर भी कहा जाता है) में गर्म जल का रिसाव हो रहा है। इस प्रकार बढ़ते तापमान के कारण बर्फ पिघलने की स्थिति लगातार बनी हुई है।
  • आइसफिनमूरिंग डेटा और सेंसर के रूप में पहचाने जाने वाले जल के नीचे रोबोट वाहन का उपयोग करते हुए उन्होंने ग्लेशियर की ग्राउंडिंग लाइन की जाँच की, जहाँ ग्लेशियर से बर्फ फिसलकर समुद्र में जा मिलती है।
  • इस अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि इस तबाही से बचने के लिये वर्ष 2060 से पहले शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करना अति महत्त्वपूर्ण है।
  • वर्ष 2150 तक वैश्विक समुद्र स्तर में वृद्धि क्रमशः उच्च, मध्य और निम्न-उत्सर्जन परिदृश्यों के अनुरूप लगभग 1.4, 0.5 और 0.2 मीटर तक होने का अनुमान है।

जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली आपदा की प्रमुख घटनाएँ

परिचय:  

  • जैसे-जैसे पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है हिम टोपियाँ और ग्लेशियर त्वरित दर से पिघल रहे हैं। भूमि आधारित बर्फ का पिघलना जैसे कि ग्लेशियर और हिम टोपियाँ, समुद्र स्तर की वृद्धि में योगदान करती हैं क्योंकि बर्फ पिघलने से जल समुद्र में प्रवाहित होता है।
  • तापमान में वृद्धि मुख्य रूप से वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि के कारण होती है, मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड, जो जीवाश्म ईंधन के जलने और वनों की कटाई जैसी मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न होती है।

प्रमुख प्रभाव:  

  • ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता में वृद्धि:
    • तीन मुख्य ग्रीनहाउस गैसें कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), मीथेन (CH4) और नाइट्रस ऑक्साइड (NO2) की सांद्रता वर्ष 2021 में रिकॉर्ड उच्च स्तर पर थी।
    • मीथेन का उत्सर्जनजो ग्लोबल वार्मिंग पैदा करने में कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 25 गुना अधिक शक्तिशाली है, वास्तव में अब तक की सबसे तेज़ गति से बढ़ रहा है। 
  • तापमान: 
    • वर्ष 2022 में वैश्विक औसत तापमान वर्ष 1850-1900 के औसत से लगभग 1.15 डिग्री सेल्सियस ऊपर होने का अनुमान है। 
    • ला नीना (भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के जल का ठंडा होना) की स्थिति वर्ष 2020 के अंत से अधिक प्रभावी है।
  • समुद्र स्तर में वृद्धि:
    • उपग्रह अल्टीमीटर रिकॉर्ड के 30 वर्षों (1993-2022) में वैश्विक औसत समुद्र स्तर प्रतिवर्ष अनुमानित 3.4 ± 0.3 मिमी. बढ़ गया है।
  • महासागरीय ऊष्मा:
    • कुल मिलाकर समुद्र की सतह के 55% हिस्से ने वर्ष 2022 में कम-से-कम एक मरीन हीटवेव का अनुभव किया।
  • चरम मौसम:
    • पूर्वी अफ्रीका में लगातार चार आर्द्र मौसमों में वर्षा औसत से कम रही है, जो 40 वर्षों में सबसे लंबी अवधि है और यह इस बात का संकेत है कि वर्तमान मौसम भी शुष्क हो सकता है।
  • वर्ष 2022 में भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में अत्यधिक हीटवेव के कारण बाढ़ आई थी। 

जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु लिये गए निर्णय

  • राष्ट्रीय: 
    • जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना: जलवायु परिवर्तन से उभरते खतरों का मुकाबला करने के लिये, भारत ने जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC) जारी की है।
    • इसके 8 उप-मिशन हैं जिनमें राष्ट्रीय सौर मिशनराष्ट्रीय जल मिशन आदि सम्मिलित हैं। 
    • इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान: यह तापमान में कमी की मांग के साथ संबंधित क्षेत्रों के लिये एक एकीकृत दृष्टिकोण प्रदान करता है।
    • इससे उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी जिससे ग्लोबल वार्मिंग का मुकाबला किया जा सकेगा। 
  • वैश्विक: 
    • पेरिस समझौता: यह पूर्व-औद्योगिक समय से वैश्विक तापमान में वृद्धि को "2 डिग्री सेल्सियस से नीचे" रखना चाहता है, जबकि इसका लक्ष्य 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के "प्रयासों को आगे बढ़ाना" है।
    • संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य: सतत् विकास लक्ष्य प्राप्त करने हेतु समाज में ये 17 व्यापक लक्ष्य हैं। उनमें से 13  लक्ष्य विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन से निपटने पर केंद्रित है।
  • ग्लासगो संधि: 
    • इसे अंततः COP26 वार्ताओं के दौरान वर्ष 2021 में 197 पार्टियों द्वारा अपनाया गया था।
    • इसने इस बात पर ज़ोर दिया है कि 1.5 डिग्री के लक्ष्य को हासिल करने के लिये मौजूदा दशक में की गई कार्यवाही सबसे महत्त्वपूर्ण थी। 
  • शर्म-अल-शेख अनुकूलन एजेंडा (COP27 में): यह वर्ष 2030 तक सबसे अधिक संवेदनशील जलवायु समुदायों के 4 अरब लोगों के लिये लचीलापन बढ़ाने हेतु 30 अनुकूलन परिणामों की रूपरेखा तैयार करता है।

लेड विषाक्तता

चर्चा में क्यों?

लेड के व्यापक उपयोग के परिणामस्वरूप विश्व के कई हिस्सों में व्यापक पर्यावरणीय प्रदूषण, मानव जोखिम और महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं।

परिचय: 

  • शीशा/लेड विषाक्तता तब होती है जब शरीर में लेड जमा हो जाता है, ऐसा अक्सर महीनों या वर्षों की अवधि में होता है।
  • यह मानव तंत्र में लेड के अवशोषण के कारण होता है और विशेष रूप से थकान, पेट में दर्द, मतली, दस्त, भूख न लगना, एनीमिया, मसूड़ों पर एक गहरी रेखा तथा मांसपेशियों में कमज़ोरी या शरीर के अंगों में पक्षाघात इसके लक्षण हैं।
  • बच्चे विशेष रूप से लेड विषाक्तता के प्रति संवेदनशील होते हैं क्योंकि उनके शरीर विकासशील अवस्था में होते हैं।

लेड विषाक्तता के स्रोत: 

Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): February 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindiलेड विषाक्तता के निहितार्थ

  • संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) और प्योर अर्थ (Pure Earth) की वर्ष 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 50% बच्चे रक्त में उच्च लेड स्तर से प्रभावित हैं।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 27.5 करोड़ बच्चों के रक्त में लेड का स्तर 5 µg/dL की सहनीय सीमा से अधिक है।
  • इनमें से 64.3 मिलियन बच्चों के रक्त में लेड का स्तर 10 µg/dL से अधिक है।
  • 23 राज्यों की जनसंख्या में रक्त में लेड का औसत स्तर 5 g/dL की सीमा से अधिक है इसके आलावा डेटा एकत्र करने हेतु अनुसंधान और स्क्रीनिंग तंत्र की कमी के कारण शेष 13 राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों में इसका निर्धारण नहीं किया जा सका।

विकलांगता समायोजित जीवन वर्ष (Disability-Adjusted Life Years): 

  • इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (IHME) द्वारा वर्ष 2016 के एक विश्लेषण के अनुसार, भारत में लेड विषाक्तता 4.6 मिलियन विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष (बीमारी के बोझ के कारण खोए हुए वर्षों की संख्या) और सालाना 165,000 मौतों का कारण है।
  • IHME वाशिंगटन स्कूल ऑफ मेडिसिन विश्वविद्यालय में एक स्वतंत्र जनसंख्या स्वास्थ्य अनुसंधान केंद्र है। 

प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभाव: 

  • एक बार जब लेड रक्तप्रवाह में प्रवेश कर जाता है, तो यह सीधे बच्चों के मस्तिष्क  में चला जाता है।
  • गर्भावस्था के दौरान यह भ्रूण में स्थानांतरित हो सकता है, जिससे बच्चे का जन्म के समय कम वज़न और धीमी वृद्धि की स्थिति हो सकती है। लेड विषाक्तता बच्चों एवं वयस्कों में एनीमिया तथा विभिन्न बीमारियों का कारण बन सकती है, जो न्यूरोलॉजिकल, अस्थि-पंजर और न्यूरोमस्क्यूलर सिस्टम को प्रभावित करती है।

लेड विषाक्तता से निपटने में चुनौतियाँ

  • कम मान्यता/अल्प ध्यान: 
    • भारत में लेड/सीसे पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता जितना कि अन्य संभावित सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं पर दिया जाता है।
    • भारत में संभावित जोखिम के लिये देश की आबादी की जाँच करने हेतु उपयुक्त प्रणाली का अभाव है। भारत में प्रमुख परियोजनाओं के लिये लगभग 48 राष्ट्रीय रेफरल केंद्र हैं जहाँ रक्त में लेड के स्तर का परीक्षण किया जा सकता है, लेकिन यह जाँच आमतौर पर स्वैच्छिक आधार पर अथवा स्वास्थ्य शिविरों में गैर-लाभकारी संस्थाओं द्वारा की जाती है।
  • खराब पुनर्चक्रण कानून: 
    • भारत और अल्प-विकासशील देशों सहित कई विकासशील देशों में अनौपचारिक पुनर्चक्रण क्षेत्रों के संबंध में सख्त कानून की कमी है।
    • परिणामस्वरूप भारी मात्रा में लेड-एसिड बैटरियाँ वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग किये बिना अनियमित और अनियंत्रित तरीके से रिकवर की जाती हैं।
    • लेड-एसिड बैटरियों का प्रबंधन बैटरी (प्रबंधन और संचालन) नियम, 2001 के तहत आता है लेकिन सुरक्षित और पर्यावरण की दृष्टि से सुदृढ़ पुनर्चक्रण सुनिश्चित करने के लिये प्रवर्तन क्षमता अपर्याप्त है।
    • वर्ष 2022 में सरकार ने बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022 अधिसूचित किया, परंतु यह देखना बाकी है कि सरकार इसे कितनी सफलतापूर्वक लागू कर पाती है।
  • सस्ते उत्पादों की उच्च मांग:  
    • भारत में कई सस्ते उत्पादों में लेड पाया जाता है और उपभोक्ता लेड रहित विकल्पों के लिये अधिक खर्च करने में सक्षम अथवा तैयार नहीं हैं। 

आगे की राह

  • लेड स्रोतों का नियमित परीक्षण क्षेत्रवार प्रसार के बारे में सूचित करने में मदद के साथ-साथ उचित हस्तक्षेप करने में मदद करेगा, जैसे "विनियम और प्रवर्तन, उद्योग प्रथाओं में बदलाव, लेड संदूषण का आकलन करने के लिये सरकारी अधिकारियों का प्रशिक्षण और सार्वजनिक शिक्षा तथा उपभोक्ता व्यवहार में परिवर्तन।
  • उपयोग की गई लेड-एसिड बैटरियों के पुनर्चक्रण के जोखिम के रूप में अनौपचारिक संचालन को हतोत्साहित करने और क्षेत्र को विनियमित करने में मदद मिलेगी।
  • भारत को वर्तमान में रक्त में लेड स्तर के लिये की जाने वाली परीक्षण क्षमता को बढ़ाना चाहिये तथा सरकार को प्रत्येक ज़िला अस्पताल में रक्त में लेड स्तर की जाँच के लिये सुविधाएँ प्रदान करनी चाहिये। 
  • लेड विषाक्तता को भारत की स्वास्थ्य स्थिति के परिप्रेक्ष्य में समझने की ज़रूरत है।
  • ठोस प्रभाव के लिये क्षेत्रीय नौकरशाही, स्थानीय प्रेस और स्थानीय भाषा के माध्यम से राज्य स्तर पर रणनीति तैयार करने की आवश्यकता है।

ग्रीन स्टील

चर्चा में क्यों?

  • इस्पात मंत्रालय ग्रीन स्टील को बढ़ावा देकर इस्पात उद्योग में कार्बन उत्सर्जन कम करना चाहता है।

परिचय:

  • ग्रीन स्टील का आशय जीवाश्म ईंधन के उपयोग के बिना इस्पात के निर्माण से है।
  • यह कार्य कोयले से चलने वाले संयंत्रों के पारंपरिक कार्बन-गहन विनिर्माण मार्ग के बजाय हाइड्रोजन, कोयला गैसीकरण या बिजली जैसे कम कार्बन ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करके किया जा सकता है।
  • यह अंततः ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करता है, लागत में कटौती करता है और इस्पात की गुणवत्ता में सुधार करता है।
  • कम-कार्बन हाइड्रोजन (नीली हाइड्रोजन और ग्रीन हाइड्रोजन) इस्पात उद्योग के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में मदद कर सकती है।

उत्पादन के तरीके:

  • अधिक स्वच्छ विकल्पों के साथ प्राथमिक उत्पादन प्रक्रियाओं को प्रतिस्थापित करना:
  • कार्बन कैप्चर और यूटिलाइज़ेशन टेक्नोलॉजीज़ (CCUS)
  • कम कार्बन हाइड्रोजन के साथ ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों का प्रयोग
  • लौह अयस्क के इलेक्ट्रोलिसिस के माध्यम से प्रत्यक्ष विद्युतीकरण

महत्त्व:

  • ऊर्जा और संसाधन उपयोग के मामले में इस्पात उद्योग सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है। यह कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के सबसे बड़े उत्सर्जकों में से एक है।
  • संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) में की गई प्रतिबद्धताओं के मद्देनज़र भारतीय इस्पात उद्योग को वर्ष 2030 तक अपने उत्सर्जन को काफी हद तक कम करने और वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन तक पहुँचाने की आवश्यकता है।

भारत में इस्पात उत्पादन की स्थिति:

  • उत्पादन: भारत वर्तमान में कच्चे इस्पात का दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है जहाँ 31 मार्च, 2022 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष के दौरान 120 मिलियन टन (MT) कच्चे इस्पात का उत्पादन हुआ था।
  • भंडार: देश में इसका 80 प्रतिशत से अधिक भंडार ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश के उत्तरी क्षेत्रों में है।
  • महत्त्वपूर्ण इस्पात उत्पादक केंद्र हैं: भिलाई (छत्तीसगढ़), दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल), बर्नपुर (पश्चिम बंगाल), जमशेदपुर (झारखंड), राउरकेला (ओडिशा), बोकारो (झारखंड)।
  • खपत: भारत वर्ष 2021 (106.23 MT) में तैयार स्टील का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता रहा, विश्व स्टील एसोसिएशन के अनुसार, चीन सबसे बड़ा स्टील उपभोक्ता है।

संबंधित सरकारी पहलें

  • स्टील स्क्रैप पुनर्चक्रण नीति, 2019:
    • स्टील स्क्रैप पुनर्चक्रण नीति, 2019 इस्पात बनाने में कोयले की खपत को कम करने हेतु घरेलू स्तर पर उत्पन्न स्क्रैप की उपलब्धता को बढ़ाती है।
  • राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन:
    • नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of New and Renewable Energy- MNRE) ने हरित हाइड्रोजन उत्पादन एवं उपयोग हेतु राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन की घोषणा की है। मिशन में इस्पात क्षेत्र को भी हिस्सेदार बनाया गया है।
  • मोटर वाहन (पंजीकरण और वाहनों के स्क्रैपिंग संशोधन के कार्य)) नियम सितंबर 2021:
    • इससे इस्पात क्षेत्र में स्क्रैप की उपलब्धता बढ़ेगी।
  • राष्ट्रीय सौर मिशन:
    • इसे MNRE द्वारा जनवरी 2010 में शुरू किया गया, यह सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देता है और इस्पात उद्योग के उत्सर्जन को कम करने में भी मदद करता है।
  • प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (Perform, Achieve and Trade- PAT) योजना:
    • PAT योजना इस्पात उद्योग को ऊर्जा खपत कम करने हेतु प्रोत्साहित करती है।
  • NEDO मॉडल परियोजनाएँ:
    • जापान के न्यू एनर्जी एंड इंडस्ट्रियल टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट ऑर्गनाइज़ेशन (NEDO) मॉडल प्रोजेक्ट्स को ऊर्जा दक्षता सुधार हेतु इस्पात उद्योग में लागू किया गया है।

जल के भीतर ध्वनि उत्सर्जन 

चर्चा में क्यों?

"भारतीय जल में जहाज़ों द्वारा उत्पन्न जल के भीतर ध्वनि के स्तर को मापना" शीर्षक वाले एक अध्ययन के अनुसार, भारतीय जल में जहाज़ों द्वारा जल के भीतर ध्वनि उत्सर्जन (UNE) का बढ़ना समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को खतरे में डाल रहा है।

  • गोवा तट रेखा से लगभग 30 समुद्री मील की दूरी पर एक हाइड्रोफोन स्वायत्त प्रणाली तैनात कर परिवेशी शोर के स्तर का मापन किया गया था। 

अध्ययन की मुख्य विशेषताएँ

  • UNE स्तर में वृद्धि:
    • भारतीय जल में UNE का ध्वनि दबाव स्तर एक माइक्रोपास्कल (dB re 1µ Pa) के सापेक्ष 102-115 डेसिबल है।
    • वैज्ञानिक जल के भीतर ध्वनि हेतु संदर्भ दबाव के रूप में 1μPa का उपयोग करने पर सहमत हुए हैं। 
    • पूर्वी तट का स्तर पश्चिम की तुलना में थोड़ा अधिक है। लगभग 20 dB re 1µPa के मान में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई है।
  • कारक:
    • निरंतर नौपरिवहन गतिविधियों को वैश्विक महासागर शोर स्तर में वृद्धि के लिये एक प्रमुख योगदानकर्त्ता के रूप में पहचाना जाता है। 
    • बॉटलनोज़ डॉल्फिन, मैनेटीज़, पायलट व्हेल, सील और स्पर्म व्हेल जैसे स्तनधारियों के जीवन के लिये जल के भीतर ध्वनि उत्सर्जन खतरा उत्पन्न कर रहा है।
    • विभिन्न प्रकार के समुद्री स्तनपायी व्यवहारों के लिय ध्वनि, ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत है जैसे- समागम, अंतःक्रिया, भोजन, सामूहिक सामंजस्य और आहार।

प्रभाव

  • जहाज़ों का अंतःजल शोर और मशीनरी कंपन स्तरों की आवृत्ति 500 हर्ट्ज़ से कम आवृत्ति रेंज में समुद्री प्रजातियों की संचार आवृत्तियों को प्रभावित करती हैं।
  • इसे मास्किंग कहा जाता है, जिससे समुद्री प्रजातियों का उथले क्षेत्रों में प्रवास में परिवर्तन हो सकता है, साथ ही इन  प्रजातियों का गहरे जल में वापस जाना भी मुश्किल हो सकता है।
  • हालाँकि दीर्घ अवधि में जहाज़ों से निकलने वाली ध्वनि उन्हें प्रभावित करती है और इसके परिणामस्वरूप आंतरिक क्षति, सुनने की क्षमता में कमी, व्यावहारिक प्रतिक्रियाओं में बदलाव, मास्किंग और तनाव उत्पन्न होता है।  

समुद्री ध्वनि प्रदूषण

  • समुद्री ध्वनि प्रदूषण समुद्र के वातावरण में अत्यधिक या हानिकारक ध्वनि है। यह कई प्रकार की मानवीय गतिविधियों के कारण होता है, जैसे- शिपिंग, सैन्य सोनार, तेल और गैस की खोज, नौका विहार तथा जेट स्कीइंग जैसी मनोरंजक गतिविधियाँ।
  • यह समुद्री जीवन पर कई तरह के नकारात्मक प्रभाव डालता है, जिसमें व्हेल, डॉल्फिन और पोरपोइज़ जैसे समुद्री स्तनधारियों के संचार, नेविगेशन एवं शिकार व्यवहार में हस्तक्षेप करना शामिल है। यह इन समुद्री जीवों की सुनने और अन्य शारीरिक क्षमता को भी नुकसान पहुँचा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप चोट या मृत्यु हो सकती है।

समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा हेतु पहल

  • वैश्विक: 
    • भूमि आधारित गतिविधियों से समुद्री पर्यावरण की सुरक्षा हेतु वैश्विक कार्रवाई कार्यक्रम (Global Programme of Action- GPA):
    • GPA एकमात्र वैश्विक अंतर-सरकारी तंत्र है जो सीधे स्थलीय, मीठे जल, तटीय और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के बीच संपर्क को बढ़ावा देता है।
    • MARPOL अभिसमय (1973): यह परिचालन या आकस्मिक कारणों से जहाज़ों द्वारा उत्पन्न समुद्री पर्यावरण प्रदूषण को कवर करता है। 
    • यह तेल, हानिकारक तरल पदार्थों, पैक किये गए हानिकारक पदार्थों, जहाज़ों से उत्पन्न सीवेज़ और कचरे आदि के कारण समुद्री प्रदूषण के विभिन्न रूपों को सूचीबद्ध करता है। 
  • लंदन अभिसमय (1972):
    • इसका उद्देश्य समुद्री प्रदूषण के सभी स्रोतों के प्रभावी नियंत्रण को बढ़ावा देना तथा कचरे एवं अन्य पदार्थों को डंप करके समुद्री प्रदूषण को रोकने हेतु सभी व्यावहारिक कदम उठाना है। 
  • भारतीय पहल:
    • भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (1972)यह कई समुद्री जानवरों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है। भारत में तटीय क्षेत्रों को कवर करते हुए कुल 31 प्रमुख समुद्री संरक्षित क्षेत्र हैं जिन्हें वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत अधिसूचित किया गया है। 
    • तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ): CRZ अधिसूचना (वर्ष 1991 एवं बाद के संस्करण) संवेदनशील तटीय पारिस्थितिक तंत्र में विकासात्मक गतिविधियों तथा कचरे के निपटान पर रोक लगाती है।
    • सेंटर फॉर मरीन लिविंग रिसोर्सेज़ एंड इकोलॉजी (CMLRE): CMLRE, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) का एक संलग्न कार्यालय पारिस्थितिकी तंत्र निगरानी और मॉडलिंग गतिविधियों के माध्यम से समुद्री जीवित संसाधनों के लिये प्रबंधन रणनीतियों के विकास हेतु अनिवार्य है।

गहरे समुद्र में मत्स्य संरक्षण

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने तमिलनाडु के मछुआरों को कुछ प्रतिबंधों के साथ प्रादेशिक जल क्षेत्र (12 समुद्री मील) से परे और विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) (200 समुद्री मील) के भीतर मछली पकड़ने के लिये पर्स सीन फिशिंग तकनीक का उपयोग करने की अनुमति दी है। 

  • यह निर्णय फरवरी 2022 में तमिलनाडु सरकार द्वारा पर्स सीन फिशिंग पर प्रतिबंध लगाने की पृष्ठभूमि में आया है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार द्वारा लगाए गए पूर्ण प्रतिबंध को रद्द करते हुए दो दिनों- सोमवार और गुरुवार को सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक मछली पकड़ने के लिये पर्स सीनर को प्रतिबंधित किया है। 

चिंताएँ

  • अपर्याप्त संरक्षण प्रयास:
    • न्यायालय का आदेश सामुद्रिक कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCLOS) के तहत संरक्षण उपायों और दायित्त्वों की तुलना में प्रशासनिक तथा पारदर्शिता उपायों के साथ मछली पकड़ने को विनियमित करने के बारे में अधिक चिंतित है।
    • UNCLOS के तहत तटीय राज्यों को यह सुनिश्चित करने का संप्रभु अधिकार है कि EEZ के जीवित और निर्जीव संसाधनों का उपयोग संरक्षित एवं प्रबंधित हो तथा इनका अतिदोहन न हो। 
    • अतिदोहन को रोकने के लिये तटीय राज्यों को EEZ में कुल स्वीकार्य फिशिंग (TAC) का निर्धारण करना चाहिये।
    • मछली पकड़ने के तरीकों को विनियमित किये बिना दो दिनों के लिये मछली पकड़ने हेतु पर्स सीनर को प्रतिबंधित करना पर्याप्त नहीं है। 
  • पारंपरिक मछुआरों की आजीविका को खतरा:
    • पारंपरिक फिशिंग उपकरणों का उपयोग करने वाले पारंपरिक मछुआरों के विपरीत पर्स सीनर अत्यधिक मछली पकड़ने की प्रवृत्ति रखते हैं, इस प्रकार पारंपरिक मछुआरों की आजीविका को खतरे में डालते हैं।
    • यह एक गैर-लक्षित मछली पकड़ने का उपकरण है जो किशोर मछली सहित जाल के संपर्क में आने वाली किसी भी मछली को पकड़ सकता है। नतीजतन, ये समुद्री संसाधनों के लिये बेहद हानिकारक हैं।
  • खाद्य सुरक्षा को खतरा: 
    • एक बड़ी चिंता केरल के मछली खाने वाले लोगों के पसंदीदा तेल सार्डिन की घटती उपलब्धता है।
    • वर्ष 2021 में केरल ने केवल 3,297 टन सार्डिन पकड़ी, जो वर्ष 2012 के 3.9 लाख टन से अत्यधिक कम थी।
  • लुप्तप्राय प्रजातियों को खतरा: 
    • पर्स सीन द्वारा गैर-चयनात्मक मछली पकड़ने के तरीकों के परिणामस्वरूप अन्य समुद्री जीवित प्रजातियों (जिसमें लुप्तप्राय प्रजातियाँ भी शामिल हो सकती हैं) के भी पकड़े जाने की आशंका उत्पन्न हो सकती है, जिससे संभावित व्यापार पर प्रतिबंध का खतरा उत्पन्न हो सकता है। 

पर्स सीन फिशिंग

  • पर्स सीन फ्लोटिंग और लीडलाइन के साथ जाल की एक लंबी दीवार (Long Wall ) से बना होता है और इसमें गियर के निचले किनारे पर पर्स के छल्ले लटके होते हैं, जिसके माध्यम से स्टील के तार या रस्सी से बनी एक पर्स लाइन चलती है जो जाल को स्वच्छ रखने में मदद करती है।
  • इस तकनीक को मत्स्यन का कुशल रूप माना जाता है और भारत के पश्चिमी तटों पर व्यापक रूप से स्थापित किया गया है।
  • इसका उपयोग खुले समुद्र में टूना और मैकेरल जैसी एकल-प्रजाति के पेलाजिक (मिडवाटर) मछली के सघन समूह को लक्षित करने हेतु किया जाता है। 

समुद्री पशु संसाधनों के संरक्षण के प्रयास

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 1989 और 1991 में संकल्प पारित किये:  
    • यह गहरे समुद्र में सभी बड़े पैमाने के पेलाजिक ड्रिफ्ट नेट फिशिंग जहाज़ों पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन 2022: 
    • दुनिया के महासागर पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण और भरण-पोषण की दिशा में वैश्विक सहयोग सुनिश्चित करना।
  • वन ओशन समिट: 
    • अवैध मत्स्यन को रोकना, शिपिंग को डीकार्बोनाइज़ करना और प्लास्टिक प्रदूषण को कम करना।
  • सदर्न ब्लूफिन टूना (SBT) के संरक्षण हेतु अभिसमय 1993: 
    • इस सम्मेलन का उद्देश्य उचित प्रबंधन के माध्यम से सदर्न ब्लूफिन टूना का संरक्षण और इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करना है।
  • लंबे ड्रिफ्ट नेट के साथ मत्स्यन के निषेध हेतु अभिसमय1989: 
    • यह दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में एक क्षेत्रीय सम्मेलन है जो ड्रिफ्ट नेट फिशिंग जहाज़ों हेतु पोर्ट एक्सेस को प्रतिबंधित करता है। 
  • तरावा घोषणा 1989: 
    • यह बड़े ड्रिफ्ट नेट के उपयोग को प्रतिबंधित करने या कम-से-कम उनके निषेध को बढ़ावा देने हेतु साउथ पैसिफिक फोरम की घोषणा है।

निष्कर्ष


गैरेट हार्डिन की 'ट्रेजेडी ऑफ द कॉमन्स' की अवधारणा के अनुसार, "समान स्वतंत्रता सभी को बर्बाद कर देती है," संरक्षण प्रयासों में सहयोग और इसका पालन करने के लिये अधिकारियों एवं मछुआरों, विशेष रूप से पर्स सीनर्स को तार्किक रूप में काम करना चाहिये।
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FAQs on Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): February 2023 UPSC Current Affairs - भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

1. वर्ष 2050 तक विश्व में 2 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने की संभावना है क्या?
उत्तर. हां, वर्ष 2050 तक विश्व में 2 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने की संभावना है।
2. वार्मिंग को 1.8 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित करने का मतलब क्या है?
उत्तर. वार्मिंग को 1.8 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित करना मतलब है कि हमें ग्लोबल वार्मिंग को इतना बढ़ने से रोकना होगा कि जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभाव को न्यूनतम सीमा तक सीमित किया जा सके।
3. लेड विषाक्तता क्या है?
उत्तर. लेड विषाक्तता एक माप है जो यह दर्शाता है कि एक वस्त्र या वस्तु कितनी अधिकतम प्रमाण में विषाक्त हो सकती है। यह विशेष रूप से उच्च गुणवत्ता वाले वातानुकूल तथा अर्ध-निर्मित उत्पादों के लिए महत्वपूर्ण है।
4. ग्रीन स्टील क्या है?
उत्तर. ग्रीन स्टील एक सामरिक शब्द है जो कार्बन डाइऑक्साइड के उत्पादन को कम करने के लिए उद्योग में उपयोग होने वाले तकनीकी और प्रदर्शन मानकों का उपयोग करता है। इसका मुख्य उद्देश्य है पर्यावरण के प्रतिकूल प्रभावों को कम करके उत्पादन प्रक्रियाओं को सशक्त और नवाचारी बनाना।
5. गहरे समुद्र में मत्स्य संरक्षणपर्यावरण और पारिस्थितिकी क्या है?
उत्तर. गहरे समुद्र में मत्स्य संरक्षणपर्यावरण और पारिस्थितिकी एक विज्ञान है जो मत्स्य संरक्षण और मत्स्याहारी प्रजातियों के बीच समुद्री पर्यावरण के प्रभाव का अध्ययन करता है। इसका उद्देश्य मत्स्याहारी संवर्धन, संरक्षण और प्रबंधन को सुनिश्चित करना है ताकि समुद्री पारिस्थितिकी का संतुलन बनाए रखा जा सके।
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