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Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): January 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

बाँध अवसादन के कारण जल संकट

चर्चा में क्यों?

जल, पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिये संयुक्त राष्ट्र संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 50,000 बड़े बाँधों में वर्ष 2050 तक 24-28% जल भंडारण क्षमता कम हो जाएगी, क्योंकि उनमें निरंतर अवसादीकरण हो रहा है

  • अवसादीकरण के कारण इन जलाशयों/बाँधों की जल भंडारण क्षमता में पहले ही लगभग 13-19%  की कमी आ चुकी है
  • यूनाइटेड किंगडम, पनामा, आयरलैंड, जापान और सेशेल्स वर्ष 2050 तक अपनी मूल क्षमता के 35-50% तक उच्चतम जल भंडारण क्षमता में कमी का अनुभव करेंगे।

बाँधों के संदर्भ में अवसादीकरण

  • बाँधों में अवसादीकरण बाँध के तल पर रेत, बजरी और गाद जैसे अवसादों के संचय को संदर्भित करती है।
  • यह अवसाद समय के साथ जमा हो जाते हैं, जिससे जलाशय की समग्र भंडारण क्षमता कम हो सकती है।
  • जलाशय की क्षमता को बनाए रखने के लिये निकर्षण नामक एक प्रक्रिया के माध्यम से अवसाद को हटाने की आवश्यकता होती है।

निकर्षण/ड्रेजिंग

  • निकर्षण किसी जलाशय के तल पर जमा रेत, बजरी और गाद जैसे तलछट को हटाने की प्रक्रिया है।
  • यह कार्य विभिन्न तरीकों का उपयोग कर किया जा सकता है, जैसे कि ड्रेज मशीन के साथ यांत्रिक ड्रेजिंग या उच्च दबाव वाले जल के जेट के साथ हाइड्रोलिक ड्रेजिंग।
  • आमतौर पर जलाशय से निकाली गई सामग्री का उपयोग या निपटान अन्य स्थानों पर किया जाता है। 

अवसादीकारण का कारण

  • बाँध के ऊपरी क्षेत्रों में भू-क्षरण: बाँध के ऊपरी क्षेत्रों में भू-क्षरण के कारण मृदा एवं पत्थर आदि  का जलाशय के तल पर जमा होना।
  • शहरी और कृषि क्षेत्रों से अपवाह (यह तब होता है जब ज़मीन की क्षमता से अधिक पानी होता है): मानव गतिविधियों, जैसे- शहरीकरण और कृषि के लिये भूमि का बढ़ता उपयोग, जलाशय में तलछट के अपवाह को बढ़ा सकता है।
  • प्राकृतिक प्रक्रियाएँ: अपक्षय और अपरदन जैसी प्रक्रियाओं के माध्यम से अवसादन प्राकृतिक रूप से भी हो सकता है
  • जलवायु परिवर्तन: अधिक तीव्र और व्यापक वर्षा का कारण जलवायु परिवर्तन है।
  • वनों की कटाई: पेड़ मृदा के अपरदन को रोकने में मदद करते हैं, इसलिये जब वनों की कटाई या उनका क्षरण होता है, तो जलाशय में अवसादीकरण का खतरा अधिक बढ़ जाता है।
  • बाँध का खराब प्रबंधन: रखरखाव और मरम्मत की कमी भी अवसादन का कारण बन सकती है, क्योंकि इससे बाँध की संरचना क्षतिग्रस्त हो सकती है, जिससे अवसाद जलाशय में प्रवेश कर सकते हैं।

बाँध अवसादीकरण के परिणाम

  • पर्यावरणीय: 
    • जलाशय की कम जल भंडारण क्षमता, जो निचले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिये जल की कमी और जलीय जानवरों के आवास के ह्रास का कारण बन सकती है। 
    • इसके कारण बाँध टूटने का खतरा बढ़ जाता है क्योंकि अवसाद (तलछट) के कारण बाँध अस्थिर हो सकता है।
  • आर्थिक:
    • तलछट को हटाने के लिये रखरखाव और ड्रेजिंग की लागत में वृद्धि। 
    • बाँध से कम जल प्रवाह के कारण जलविद्युत उत्पादन को क्षति। 
    • कृषि सिंचाई एवं  उद्योग के लिये जल- आपूर्ति में कमी। 
    • मछली पकड़ने और नौका विहार जैसी मनोरंजक गतिविधियों से प्राप्त राजस्व में कमी यदि जलाशय इन गतिविधियों में सक्षम नहीं होता है।
  • बाँध संरचना और टर्बाइन को क्षति:
    • जलाशय के तल पर तलछट का संचय बाँध की नींव के क्षरण का कारण बन सकता है, जो संरचनात्मक ढाँचे को कमज़ोर कर इसके लिये ज़ोखिम बढ़ा सकता है
    • तलछट टरबाइन को रोक सकता है जो जलविद्युत उत्पादन की दक्षता को कम कर सकता है तथा तलछट को हटाने के लिये महँगे रखरखाव की आवश्यकता हो सकती है।
    • तलछट टरबाइन ब्लेड पर घर्षण भी उत्पन्न कर सकता है जिससे क्षति हो सकती है तथा उनकी दक्षता कम हो सकती है
    • जबकि तलछट जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में मदद करता है, खराब प्रबंधन से पोषण संबंधी असंतुलन हो सकता है जिससे बाँध के जलाशय में यूट्रोफिकेशन और अन्य व्यवधान हो सकते हैं तथा साथ ही निचले क्षेत्रों में स्थित आवासों को क्षति पहुँच सकती है।

आगे की राह  

  • नियमित निरीक्षण और निगरानी: कमज़ोर संरचना, क्षरण और अन्य संभावित मुद्दों के समाधान के लिये बाँधों का नियमित रूप से निरीक्षण एवं निगरानी करना आवश्यक है। इसमें दृश्य निरीक्षण और उपकरण-आधारित निगरानी दोनों शामिल हैं, जैसे कि संचलन हेतु बाँध की नींव की निगरानी करना।
  • आपातकालीन कार्य योजनाएँ: बाँध के विफल होने या बाढ़ जैसी संभावित घटनाओं से निपटने हेतु आपातकालीन कार्ययोजना की आवश्यकता होती है। ये योजनाएँ आपातकालीन स्थिति में की जाने वाली कार्रवाइयों को रेखांकित करती हैं, जिसमें निकासी प्रक्रियाएँ तथा आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली शामिल हैं। 
  • पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन: आसपास के पर्यावरण पर बाँध के संभावित प्रभावों का मूल्यांकन करने हेतु बाँधों का पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) किया जाना आवश्यक है। इसमें वन्यजीवों, जलीय प्रजातियों और डाउनस्ट्रीम समुदायों पर प्रभाव का आकलन करना शामिल है।
  • सार्वजनिक परामर्श: बाँध निर्माण पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में सार्वजनिक परामर्श और भागीदारी को शामिल किया जाना आवश्यक है, जिसमें प्रस्तावित बाँध को लेकर सार्वजनिक टिप्पणी के लिये जानकारी और समय प्रदान किया जाना चाहिये

वैश्विक जोखिम रिपोर्ट- 2023

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में विश्व आर्थिक मंच (WEF) ने वैश्विक जोखिम रिपोर्ट- 2023 (18वाँ संस्करण) जारी की है, जिसमें विश्व से अगले दो वर्षों में 'प्राकृतिक आपदाओं और चरम मौसमी घटनाओं' के लिये तैयार रहने की मांग की गई है।

  • WEF की रिपोर्ट दावोस- 2023 की बैठक से पहले जारी की गई है, जिसका शीर्षक 'को-ऑपरेशन इन ए फ्रैग्मेंटेड वर्ल्ड' है

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

  • सबसे गंभीर जोखिम:
    • 'जलवायु परिवर्तन को कम करने में विफलता' और 'जलवायु परिवर्तन अनुकूलन की विफलता' अगले दशक में दुनिया के सामने आने वाले दो सबसे गंभीर जोखिम हैं, इसके बाद 'प्राकृतिक आपदाएँ एवं चरम मौसमी घटनाएँ' तथा 'जैवविविधता का नुकसान व पारिस्थितिकी तंत्र के पतन' का भी जोखिम विद्यमान है।
    • वर्तमान में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड के वायुमंडलीय स्तर रिकॉर्ड ऊँचाई पर पहुँच गए हैं
    • उत्सर्जन प्रक्षेपवक्र से इस बात की बहुत कम संभावना है कि वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की वैश्विक महत्त्वाकांक्षा हासिल की जा सकेगी।

Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): January 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

  • जलवायु कार्रवाई और जैवविविधता क्षति:
    • विश्व 30 वर्षों से वैश्विक जलवायु वकालत और कूटनीति के बावजूद जलवायु परिवर्तन पर आवश्यक प्रगति करने के लिये संघर्ष कर रहा है। 
    • जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने के लिये जलवायु कार्यवाही पर विफलता 2011 के बाद से रिपोर्ट के शीर्ष जोखिमों में से एक है।
    • मानव इतिहास के दौरान किसी भी अन्य काल की तुलना में पारिस्थितिक तंत्र के भीतर जैवविविधता पहले से तेज़ गति से घट रही है।
    • लेकिन जलवायु संबंधी अन्य जोखिमों के विपरीत 'जैवविविधता हानि और पारिस्थितिकी तंत्र के पतन' को अल्पावधि में चिंता का विषय नहीं माना गया
    • इसे लंबी अवधि में या अगले दस वर्षों (2033 तक) में चौथे सबसे गंभीर जोखिम के रूप में स्थान दिया गया।
  • जलवायु शमन प्रगति का उत्क्रमण:
    • भू-राजनीतिक तनाव के कारण सामाजिक-आर्थिक अल्पकालिक संकटों की वजह से सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र के संसाधनों की बढ़ती मांग, अगले दो वर्षों में शमन प्रयासों की गति एवं पैमाने को और कम करने की तरफ अग्रसर है। 
    • कुछ मामलों में इसने अल्पावधि में जलवायु परिवर्तन शमन पर प्रगति को उलट दिया है।
    • उदाहरण के लिये यूरोपीय संघ ने नए और विस्तारित जीवाश्म-ईंधन के बुनियादी ढाँचे एवं आपूर्ति पर न्यूनतम 50 बिलियन यूरो खर्च किये हैं।
    • ऑस्ट्रिया, इटली, नीदरलैंड और फ्राँस सहित कुछ देशों ने कोयला आधारित विद्युत स्टेशनों का परिचालन फिर से शुरू किया है।
  • आशंकाएँ और चेतावनियाँ: 
    • अगले 10 वर्षों में या वर्ष 2033 तक जैवविविधता हानि, प्रदूषण, प्राकृतिक संसाधनों की खपत, जलवायु परिवर्तन और सामाजिक आर्थिक कारकों के बीच अंतर्संबंध के खतरनाक संयोजन के निर्माण की आशंका है।
    • इस बीच यूरोप में वैश्विक महामारी और युद्ध को ऊर्जा, मुद्रास्फीति और खाद्य संकट का कारण माना जा रहा है। वास्तव में 'जीवन यापन की लागत' (अगले दो वर्षों में) सबसे महत्त्वपूर्ण अल्पकालिक वैश्विक जोखिम हो सकती है।
    • जलवायु परिवर्तन पर अंकुश लगाने में विफलता भी एक बड़ा वैश्विक जोखिम है जिसके लिये दुनिया तैयार नहीं है।
    • WEF के शोध में 70% उत्तरदाताओं का मानना था कि जलवायु परिवर्तन को कम करने या सामना करने हेतु वर्तमान पहल "अप्रभावी" या "अत्यधिक अप्रभावी" रही है।
  • वैश्विक जोखिम: 
    • वैश्विक जोखिम को किसी घटना या स्थिति के घटित होने की संभावना के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो यदि घटित होती है तो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद, जनसंख्या या प्राकृतिक संसाधनों के महत्त्वपूर्ण अनुपात पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
    • वैश्विक जोखिम रिपोर्ट दावोस, स्विट्ज़रलैंड में फोरम की वार्षिक बैठक से पहले विश्व आर्थिक मंच द्वारा प्रकाशित एक वार्षिक अध्ययन है। ग्लोबल रिस्क नेटवर्क के काम के आधार पर रिपोर्ट वर्ष-दर-वर्ष वैश्विक जोखिम परिदृश्य में होने वाले परिवर्तनों का वर्णन करती है।

विश्व आर्थिक मंच

  • परिचय: 
    • विश्व आर्थिक मंच एक स्विस गैर-लाभकारी एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। इसकी स्थापना वर्ष 1971 में हुई थी। इसका मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में है।
    • यह स्विस/स्विट्ज़रलैंड के अधिकारियों द्वारा सार्वजनिक-निजी सहयोग के लिये अंतर्राष्ट्रीय संस्था के रूप में मान्यता प्राप्त है
  • मिशन:
    • फोरम वैश्विक, क्षेत्रीय और औद्योगिक एजेंडा को आकार देने के लिये राजनीतिक, व्यापारिक, सामाजिक व शैक्षणिक क्षेत्र के अग्रणी नेतृत्व को एक साझा मंच उपलब्ध कराता है।
    • संस्थापक और कार्यकारी अध्यक्ष: क्लाउस श्वाब (Klaus Schwab)
  • विश्व आर्थिक मंच द्वारा जारी की जाने वाली अन्य रिपोर्ट:
    • ऊर्जा संक्रमण सूचकांक।
    • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता रिपोर्ट
    • वैश्विक आईटी रिपोर्ट।
    • WEF द्वारा  INSEAD और कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर इस रिपोर्ट को प्रकाशित किया जाता है।
    • वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट। 
    • वैश्विक यात्रा और पर्यटन रिपोर्ट। 

भारत में वायु प्रदूषण और NCAP

चर्चा में क्यों?

  • राष्ट्रीय स्वच्छ वायु अभियान (National Clean Air Campaign- NCAP) के तहत विश्लेषकों ने पाया कि प्रदूषण नियंत्रण के संबंध में सुधार की गति धीमी रही है और अधिकांश शहरों के प्रदूषण में नाममात्र कमी आई है।

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम

  • इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा जनवरी 2019 में लॉन्च किया गया था।
  • यह देश में वायु प्रदूषण में कमी लाने के लक्ष्य के साथ वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय ढाँचा तैयार करने का पहला प्रयास है।
  • आधार वर्ष 2017 के साथ आगामी पाँच वर्षों में भारी (व्यास 10 माइक्रोमीटर या उससे कम या PM10 के कण पदार्थ) और महीन कणों (व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम या PM2.5 के कण पदार्थ) के संकेंद्रण में कम-से-कम 20% की कमी लाने का प्रयास करना है।
  • इसमें प्रदूषण नियंत्रण संबंधी लक्ष्यों को प्राप्त न कर पाने वाले 132 शहर शामिल हैं जिनकी पहचान केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) द्वारा की गई थी।
  • प्रदूषण नियंत्रण संबंधी लक्ष्यों को प्राप्त न कर पाने वाले शहर (Non- Attainment Cities) वे शहर हैं जो पाँच वर्षों से अधिक समय से राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (National Ambient Air Quality Standards- NAAQS) को पूरा करने में विफल रहे हैं।
  • NAAQs वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत CPCB द्वारा अधिसूचित विभिन्न पहचाने गए प्रदूषकों के संदर्भ में परिवेशी वायु गुणवत्ता के मानक हैं। NAAQS के तहत प्रदूषकों की सूची में PM10, PM2.5, SO2, NO2, CO, NH3, ओज़ोन, लेड, बेंज़ीन, बेंजो-पाइरेन, आर्सेनिक और निकेल शामिल है।

लक्षित स्तर 

  • वर्तमान परिदृश्य: PM2.5 और PM10 के लिये देश की वर्तमान, वार्षिक औसत निर्धारित सीमा 40 माइक्रोग्राम/प्रति घन मीटर (ug/m3) और 60 माइक्रोग्राम/प्रति घन मीटर है।  
  • नए लक्ष्य: वर्ष 2017 में प्रदूषण के स्तर को सुधारने को आधार वर्ष मानते हुए NCAP ने वर्ष 2024 में प्रमुख वायु प्रदूषकों PM10 और PM2.5 को 20-30% तक कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया।
  • हालाँकि सितंबर 2022 में केंद्र ने लक्ष्यों को आगे बढ़ाते हुए वर्ष 2026 तक पार्टिकुलेट मैटर की सघनता में 40% की कमी लाने का एक नया लक्ष्य निर्धारित किया।  
  • सुधारों का आकलन: 2020-21 की शुरुआत से शहरों को सुधार की मात्रा निर्धारित करनी चाहिये थी, जिसके अंतर्गत वार्षिक औसत PM10 एकाग्रता में 15% या उससे अधिक की कमी और वार्षिक स्तर पर स्वच्छ वायु के दिनों की संख्या में कम-से-कम 200 तक आपेक्षित है।  
  • इससे कुछ भी कम अपर्याप्त माना जाएगा और परिणामस्वरूप मामले में वित्तपोषण में कमी की जा सकती है

NCAP का प्रभाव

  • लक्ष्य प्राप्ति के संबंध में: 
    • सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) द्वारा NCAP के चार वर्ष के प्रदर्शन के विश्लेषण से निष्कर्ष निकला कि केंद्र, शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) और राज्य प्रदूषण के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले 131 शहरों में से केवल 38 नियंत्रण बोर्डों ने अपने वार्षिक प्रदूषण में कमी के लक्ष्यों को प्राप्त किया है। 
  • सुझाव: 
    • CERA (जो किसी शहर में प्रदूषण के महत्त्वपूर्ण स्रोतों को सूचीबद्ध और परिमाणित करता है) के अनुसार, 37 शहरों ने स्रोत अवलोकन संबंधी विश्लेषण पूरा कर लिया है। हालाँकि इनमें से अधिकांश रिपोर्ट आम जनता के लिये उपलब्ध नहीं कराई गई और इन जाँचों के निष्कर्षों का उपयोग कर किसी भी शहर की कार्ययोजना में कोई संशोधन नहीं किया गया था
    • CERA का अनुमान है कि भारत को वर्ष 2024 तक 1,500 निगरानी स्टेशनों के NCAP लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये प्रतिवर्ष 300 से अधिक मैनुअल वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन स्थापित करने की आवश्यकता होगी। पिछले चार वर्षों में केवल 180 स्टेशन स्थापित किये गए हैं।

NCAP प्रदूषण कम करने में कितना सफल

Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): January 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

  • NCAP ट्रैकर, वायु प्रदूषण नीति में सक्रिय दो संगठनों की एक संयुक्त परियोजना है, जो वर्ष 2024 के स्वच्छ वायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में प्रगति की निगरानी कर रहे हैं।  
  • गैर-प्राप्ति शहरों में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली वर्ष 2022 में सबसे प्रदूषित रही लेकिन दिल्ली के PM 2.5 के स्तर में वर्ष 2019 की तुलना में 7% से अधिक का सुधार हुआ है। 
  • वर्ष 2022 की शीर्ष 10 सबसे प्रदूषित सूची में अधिकांश शहर सिंधु-गंगा के मैदान से थे।  
  • वर्ष 2019 में सबसे प्रदूषित 10 शहरों में से नौ ने वर्ष 2022 में अपने PM 2.5 और PM 10 सांद्रता को कम किया है।  
  • 16 NCAP शहर और 15 Non-NCAP शहर ऐसे थे जिन्होंने लगभग समान संख्या के साथ अपने वार्षिक PM 2.5 के स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की। इससे पता चलता कि NCAP की कम प्रभावशीलता के साथ Non-NCAP और NCAP शहरों के प्रदूषित होने की संभावना अधिक थी।

वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु पहल

  • ‘वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान तथा अनुसंधान प्रणाली’- सफर (SAFAR) पोर्टल 
  • वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI): इसे आठ प्रदूषकों को ध्यान में रखते हुए विकसित किया गया है। इसमें शामिल हैं- PM 2.5, PM10, अमोनिया, लेड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, ओज़ोन और कार्बन मोनोऑक्साइड।
  •  ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान। 
  • वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने हेतु:
    • बीएस-VI वाहन
    • इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) को बढ़ावा देना
    • एक आपातकालीन उपाय के रूप में ‘ऑड-इवन’ नीति
  • वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग
    • टर्बो हैप्पी सीडर (THS) मशीन खरीदने हेतु किसानों को सब्सिडी
    • राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (National Air Quality Monitoring Programme- NAMP):
    • NAMP के तहत सभी स्थानों पर नियमित निगरानी के लिये चार वायु प्रदूषकों अर्थात् SO2, NO2, PM 10 और PM 2.5 की पहचान की गई है।

आगे की राह

  • परिवर्तनकारी दृष्टिकोण:
    • भारत को वायु गुणवत्ता में सुधार और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा स्वीकार्य स्तर तक प्रदूषकों को कम करने के लिये अपने दृष्टिकोण को बदलने और प्रभावी नीतियाँ लाने की आवश्यकता है। 
  • निकट समन्वय आवश्यक:
    • वायु प्रदूषण को रोकने के लिये न केवल इसके विशिष्ट स्रोतों से निपटने की आवश्यकता है, बल्कि स्थानीय और राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार सीमाओं में घनिष्ठ समन्वय बनाने की भी दरकार है। 
    • क्षेत्रीय सहयोग लागत प्रभावी संयुक्त रणनीतियों को लागू करने में मदद कर सकता है जो वायु गुणवत्ता की अन्योन्याश्रित प्रकृति का लाभ उठाते हैं। 

इको-सेंसिटिव ज़ोन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रदर्शनकारियों द्वारा इको-सेंसिटिव ज़ोन का यह कहते हुए विरोध किया गया कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अनुपालन में प्रवर्तन अधिकारियों ने वन समुदायों के अधिकारों को उपेक्षित किया है जिससे वन समुदायों के जीवन एवं आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

इको-सेंसिटिव ज़ोन

  • परिचय:  
    • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) की राष्ट्रीय वन्यजीव कार्ययोजना (2002-2016) में निर्धारित किया गया है कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत राज्य सरकारों को राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों की सीमाओं के 10 किमी. के भीतर आने वाली भूमि को इको सेंसिटिव ज़ोन या पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) घोषित करना चाहिये।    
    • हालाँकि 10 किलोमीटर के नियम को एक सामान्य सिद्धांत के रूप में लागू किया गया है, इसके क्रियान्वयन की सीमा अलग-अलग हो सकती है। पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण एवं विस्तृत क्षेत्रों, जो 10 किमी. से परे हों, को केंद्र सरकार द्वारा ESZ के रूप में अधिसूचित किया जा सकता है।
  • ESZs के आसपास गतिविधियाँ: 
    • निषिद्ध गतिविधियाँ: वाणिज्यिक खनन, आरा मिलें, प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग, प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं की स्थापना, लकड़ी का व्यावसायिक उपयोग। 
    • पर्यटन गतिविधियाँ जैसे- राष्ट्रीय उद्यान के ऊपर गर्म हवा के गुब्बारे, अपशिष्टों का निर्वहन या कोई ठोस अपशिष्ट या खतरनाक पदार्थों का उत्पादन। 
    • विनियमित गतिविधियाँ: पेड़ों की कटाई, होटलों और रिसॉर्ट्स की स्थापना, प्राकृतिक जल का व्यावसायिक उपयोग, बिजली के तारों का निर्माण, कृषि प्रणाली में भारी परिवर्तन, जैसे- भारी प्रौद्योगिकी, कीटनाशकों आदि को अपनाना, सड़कों को चौड़ा करना। 
    • अनुमति प्राप्त गतिविधियाँ: संचालित कृषि या बागवानी प्रथाएँ, वर्षा जल संचयन, जैविक खेती, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग, सभी गतिविधियों के लिये हरित प्रौद्योगिकी को अपनाना। 

ESZs का महत्त्व

  • विकास गतिविधियों के प्रभाव को कम करना: 
    • शहरीकरण और अन्य विकासात्मक गतिविधियों के प्रभाव को कम करने के लिये संरक्षित क्षेत्रों से सटे क्षेत्रों को इको-सेंसिटिव ज़ोन घोषित किया गया है। 
  • इन-सीटू संरक्षण:  
    • ESZ इन-सीटू संरक्षण में मदद करते हैं, जो लुप्तप्राय प्रजातियों के अपने प्राकृतिक आवास में संरक्षण से संबंधित है, उदाहरण के लिये काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, असम में एक सींग वाले गैंडे का संरक्षण। 
  • वन क्षरण और मानव-पशु संघर्ष को कम करना: 
    • इको-सेंसिटिव ज़ोन वनों की कमी और मानव-पशु संघर्ष को कम करते हैं। 
    • संरक्षित क्षेत्र प्रबंधन के मूल और बफर मॉडल पर आधारित होते हैं, जिनके माध्यम से स्थानीय क्षेत्र के समुदायों को भी संरक्षित एवं लाभान्वित किया जाता है। 
  • नाज़ुक पारिस्थितिक तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव को कम करना:
    • संरक्षित क्षेत्रों के आसपास इको-सेंसिटिव ज़ोन घोषित करने का उद्देश्य संरक्षित क्षेत्र के लिये एक प्रकार का 'शॉक एब्जॉर्बर' बनाना है।
    • वे उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्रों से कम सुरक्षा वाले क्षेत्रों में एक संक्रमण क्षेत्र के रूप में भी कार्य करते हैं। 

ESZs के साथ जुड़ी चुनौतियाँ

  • जलवायु परिवर्तन: 
    • जलवायु परिवर्तन ने ESZs पर भूमि, जल और पारिस्थितिक तनाव उत्पन्न किया है।  
    • उदाहरण के लिये बार-बार जंगल की आग या असम की बाढ़ जिसने काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और इसके वन्यजीवों को बुरी तरह प्रभावित किया। 
  • वन अधिकारों का अतिक्रमण:  
    • कभी-कभी पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के निष्पादन हेतु अधिकारियों को वन समुदायों के अधिकारों की उपेक्षा करनी पड़ती है जिस कारण उनके जीवन एवं आजीविका पर प्रभाव पड़ता है। 
    • इसमें विकासात्मक मंज़ूरी के लिये ग्राम सभा को प्रदान किये गए अधिकारों को कम करना भी शामिल है।
    • वन अधिकारों की मान्यता और ग्राम सभा की सहमति वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत वन भूमि को गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिये डायवर्ट करने के प्रस्तावों पर विचार करने की पूर्व शर्त थी- जब तक कि MoEFCC ने 2022 में उन्हें समाप्त नहीं कर दिया।

आगे की राह 

  • सामुदायिक जुड़ाव: ESZs के प्रबंधन के लिये निर्णय लेने की प्रक्रिया में स्थानीय समुदायों को शामिल करना महत्त्वपूर्ण है।  
  • यह कार्य समुदाय-आधारित संगठनों के माध्यम से किया जा सकता है, जैसे कि उपयोगकर्त्ता समूह या संरक्षण समितियाँ, जो इन क्षेत्रों में पाए जाने वाले संसाधनों के प्रबंधन और सुरक्षा के लिये ज़िम्मेदार हैं।
  • ग्राम सभा को विकासात्मक परियोजनाओं के मामले में निर्णय लेने वाले प्राधिकरण के साथ सशक्त होना चाहिये
  • वैकल्पिक आजीविका सहयोग: उन स्थानीय समुदायों के लिये वैकल्पिक आजीविका विकल्प प्रदान करना महत्त्वपूर्ण है जो अपनी आजीविका के लिये ESZs में उपलब्ध संसाधनों पर निर्भर हैं।
  • इसमें ईको-टूरिज़्मबागवानी और सतत् कृषि जैसी वैकल्पिक आजीविका के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम एवं वित्तीय सहायता शामिल हो सकती है।
  • पर्यावरण पुनर्नवीकरण को बढ़ावा देना: वनीकरण और नष्ट हुए वनों का पुनर्वनीकरण, पर्यावास का पुनर्विकास, कार्बन फुटप्रिंट को बढ़ावा देकर तथा शिक्षा के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने की आवश्यकता है।

एटलिन जलविद्युत परियोजना

चर्चा में क्यों? 

  • हाल ही में अरुणाचल प्रदेश में एटलिन जलविद्युत परियोजना को उसके वर्तमान स्थिति में रद्द कर दिया है।
  • इस योजना ने सीमित भंडारण के साथ टू रन-ऑफ-द-रिवर योजना को जोड़ा, जिस हेतु टैंगोन और दिर नदियों पर कंक्रीट गुरुत्त्वाकर्षण बाँधों की आवश्यकता थी।  
  • 2008 में अपनी स्थापना के बाद से ही यह पारिस्थितिक क्षति, वन अतिक्रमण और आदिवासी विस्थापन जैसी चिंताओं के कारण विवादों में रहा।

Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): January 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindiदिर और टैंगन नदी का महत्त्व

  • अरुणाचल प्रदेश, भारत में दिबांग नदी (ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी) की दोनों सहायक नदियों, दिर और टैंगन नदी का निम्नलिखित महत्त्व है:
  • हाइड्रोलॉजिकल: दोनों नदियाँ सिंचाई और जलविद्युत उत्पादन के लिये पानी उपलब्ध कराकर क्षेत्र के समग्र जल विज्ञान में योगदान करती हैं।
  • पारिस्थितिक: दिर और टैंगन नदियाँ दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों सहित विभिन्न प्रकार के पौधों और जानवरों को जीवन प्रदान करती हैं।
  • पर्यटक आकर्षण: दिबांग के साथ-साथ दिर और टैंगन नदियों का प्राकृतिक सौंदर्य प्रमुख पर्यटन स्थल है।

एटलिन जलविद्युत परियोजना के संदर्भ में चिंताएँ

  • पर्यावरणीय प्रभाव: इस परियोजना में दिबांग नदी पर एक बड़े बाँध का निर्माण शामिल होगा, जो वन और वन्यजीव आवास के एक बड़े क्षेत्र को जलमग्न कर सकता है।
  • इससे स्थानीय समुदायों का विस्थापन हो सकता है और क्षेत्र की जैवविविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • स्थानीय समुदायों का विस्थापन: यह परियोजना हज़ारों लोगों को उनके घरों और आजीविका से विस्थापित करेगी, जिनमें से कई स्थानीय समुदाय हैं जो अपनी आजीविका के लिये दिबांग नदी पर निर्भर हैं।
  • नदी पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव: परियोजना द्वारा नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बदलने के कारण यह मछली के प्रवास और प्रजनन को प्रभावित करेगी। 
  • इसका उन स्थानीय समुदायों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा जो अपनी आजीविका के लिये मछली पकड़ने पर निर्भर हैं
  • भूवैज्ञानिक और भूकंपीय जोखिम: परियोजना के लिये पर्यावरण मंज़ूरी (Environmental Clearance- EC) दी जाने के दौरान द साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर एंड पीपल (SANDRP) ने वर्ष 2015 में जैवविविधता के लिये भूवैज्ञानिक और भूकंपीय जोखिमों एवं खतरों पर प्रकाश डाला था।
  • मुद्दे की हालिया स्थिति: वन सलाहकार समिति ने अरुणाचल प्रदेश सरकार को मूलभूत चीज़ों पर ध्यान देने और परियोजना का पुन:अवलोकन कर योजना प्रस्तुत करने के लिये कहा है।

आगे की राह

  • समुदाय-आधारित दृष्टिकोण: इस क्षेत्र की स्थानीय आबादी से संवाद स्थापित किया जाना चाहिये और यह सुनिश्चित करने के लिये निर्णय लेने में उनकी भागीदारी होनी चाहिये ताकि अंततः उनकी चिंताएँ भी प्रतिबिंबित हों।
  • पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों का सीमांकन: जिन क्षेत्रों में जैवविविधता के नुकसान का खतरा है, उन्हें ठीक से चिह्नित किया जाना चाहिये ताकि उन्हें किसी प्रकार की बाधा का सामना न करना पड़े।
  • पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA): स्थानीय पर्यावरण पर परियोजना के प्रभाव का उचित और पूर्ण मूल्यांकन कर व्यापक रूप से अध्ययन किया जाना चाहिये।
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FAQs on Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): January 2023 UPSC Current Affairs - भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

1. बाँध अवसादन के कारण जल संकट क्या हो सकता है?
उत्तर: बाँध अवसादन के कारण जल संकट हो सकता है क्योंकि इससे जल निकासी की स्थिति पर असर पड़ सकता है। जब एक बाँध अवसादित होता है, तो इसके परिणामस्वरूप सामान्य जल निकासी का रास्ता बंद हो जाता है और इससे प्रभावित क्षेत्र में जल संकट उत्पन्न हो सकता है।
2. 2023 में वैश्विक जोखिम रिपोर्ट क्या है?
उत्तर: वैश्विक जोखिम रिपोर्ट- 2023 एक रिपोर्ट है जो विश्व स्तर पर वातावरणिक जोखिमों के बारे में जानकारी प्रदान करती है। यह रिपोर्ट महत्वपूर्ण प्रश्नों पर ध्यान केंद्रित करती है जैसे कि जल संकट, वायु प्रदूषण, परियोजनाओं के पर्यावरणीय प्रभाव, इत्यादि।
3. भारत में वायु प्रदूषण और NCAP क्या है?
उत्तर: भारत में वायु प्रदूषण विषय पर राष्ट्रीय वायु प्रदूषण नियंत्रण कार्यक्रम (NCAP) चलाया जा रहा है। यह कार्यक्रम भारत में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए उपायों और नीतियों को तैयार करने का लक्ष्य रखता है। NCAP के अंतर्गत विभिन्न शहरों में वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग स्थापित किया जा रहा है और साफ वायु के लिए उपायों को अमल में लाने की योजनाएं बनाई जा रही हैं।
4. इको-सेंसिटिव जोन क्या होता है?
उत्तर: इको-सेंसिटिव जोन एक क्षेत्र होता है जिसमें प्राकृतिक संसाधनों की संरक्षा और विकास के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया जाता है। इन क्षेत्रों को वन्यजन्तुओं, पौधों, जलवायु, जलमार्गों, जलाशयों और अन्य प्राकृतिक संसाधनों की संरक्षा करने के लिए विशेष महत्व दिया जाता है।
5. एटलिन जलविद्युत परियोजना कैसे पारिस्थितिकी प्रभावित कर सकती है?
उत्तर: एटलिन जलविद्युत परियोजना पर्यावरण और पारिस्थितिकी को प्रभावित कर सकती है क्योंकि इसके लिए बाँध बनाने के लिए बड़े प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यकता होती है। इससे नदी के जल प्रवाह, प्राकृतिक जीवन, जलमार्ग, और स्थानीय पर्यावरण पर प्रभाव पड़ सकता है।
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