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Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): September 2022 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

पर्यावरण के लिये जीवन शैली (LiFE) आंदोलन

चर्चा में क्यों?
  • हाल ही में केंद्रीय ऊर्जा और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री ने अग्नि तत्त्व की मूल अवधारणा के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिये अग्नि तत्त्व- पर्यावरण के लिये जीवनशैली (LiFE) हेतु ऊर्जा अभियान शुरू किया, एक ऐसा तत्त्व जो ऊर्जा का पर्याय है तथा पंचमहाभूत के पाँच तत्त्वों में से एक है।
  • पंचमहाभूत में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष (आकाश) शामिल हैं।
  • अग्नि तत्त्व-पर्यावरण के लिये जीवनशैली (LiFE)  ऊर्जा अभियान:
  • यह विषय विशेषज्ञों के सीखने और अनुभवों पर विचार-विमर्श करने व सभी के लिये एक स्थायी भविष्य हेतु समाधान तलाशने के लिये एक मंच प्रदान करेगा।
  • इसके अलावा इसमें स्वास्थ्य, परिवहन, खपत और उत्पादन, सुरक्षा, पर्यावरण एवं आध्यात्मिकता पर ध्यान केंद्रित करने वाले कई महत्त्वपूर्ण विषयों को शामिल किया जाएगा।

पर्यावरण के लिये जीवनशैली (LiFE)

विषय

  • LiFE का विचार भारत द्वारा वर्ष 2021 में ग्लासगो में 26वें संयुक्त्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) के दौरान पेश किया गया था।
  • यह विचार पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवनशैली को बढ़ावा देता है जो 'विवेकहीन और व्यर्थ खपत' के बजाय 'सावधानी के साथ और सुविचारित उपयोग' पर केंद्रित है।
  • इस मिशन के शुभारंभ के साथ विवेकहीन और विनाशकारी खपत द्वारा शासित प्रचलित "उपयोग और निपटान" अर्थव्यवस्था को एक सर्कुलर इकॉनमी द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा, जिसे सचेत व सुविचारित खपत द्वारा परिभाषित किया जाएगा।

उद्देश्य

  • यह जलवायु से संबंधित सामाजिक मानदंडों को प्रभावित करने के लिये सामाजिक नेटवर्क की ताकत का लाभ उठाने का प्रयास करता है।
  • मिशन की योजना व्यक्तियों का एक वैश्विक नेटवर्क बनाने और उसका पोषण करने की है, जिसका नाम 'प्रो-प्लैनेट पीपल' (P3) है।
  • P3 की पर्यावरण के अनुकूल जीवनशैली को अपनाने और बढ़ावा देने के लिये एक साझा प्रतिबद्धता होगी।
  • P3 समुदाय के माध्यम से यह मिशन एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने का प्रयास करता है जो पर्यावरण के अनुकूल व्यवहारों को आत्मकेंद्रित होने के लिये सुदृढ़ और सक्षम करेगा।

पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ

वनावरण में वृद्धि

  • भारत का वन क्षेत्र का विस्तार हो रहा है और इसलिये शेरों, बाघों, तेंदुओं, हाथियों एवं गैंडों की आबादी बढ़ रही है।
  • कुल वन क्षेत्र वर्ष 2021 में कुल भौगोलिक क्षेत्र का 21.71% है, जबकि 2019 में 21.67% और 2017 में 21.54% था।

स्थापित विद्युत क्षमता

  • गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित स्रोतों से स्थापित विद्युत क्षमता के 40% तक पहुँचने की भारत की प्रतिबद्धता निर्धारित समय से 9 साल पहले हासिल कर ली गई है।

इथेनॉल ब्लेंडिंग लक्ष्य

  • पेट्रोल में 10% एथेनॉल सम्मिश्रण का लक्ष्य नवंबर 2022 के लक्ष्य से 5 महीने पूर्व ही प्राप्त किया जा चुका है।
  • यह एक बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि 2013-14 में सम्मिश्रण मुश्किल से 1.5% और 2019-20 में 5% था।

अक्षय ऊर्जा लक्ष्य

  • भारत सरकार भी अक्षय ऊर्जा पर बहुत अधिक ध्यान दे रही है।
  • 30 नवंबर, 2021 को देश की स्थापित अक्षय ऊर्जा (RE) क्षमता 150.54 गीगावाट (सौर: 48.55 गीगावाट, पवन: 40.03 गीगावाट, लघु जलविद्युत: 4.83, जैव-शक्ति: 10.62, बड़ी हाइड्रो: 46.51 गीगावाट) है, जबकि इसकी परमाणु ऊर्जा आधारित स्थापित बिजली क्षमता 6.78 गीगावाट है।
  • भारत विश्व की चौथी सबसे बड़ी पवन ऊर्जा क्षमता से युक्त देश है।

अन्य संबंधित पहल

  • राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम: यह वनों के आसपास के अवक्रमित वनों के पुनर्स्थापना और वनरोपण पर केंद्रित है।
  • हरित भारत के लिये राष्ट्रीय मिशन: यह जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (National Action Plan on Climate Change) के अंतर्गत है और इसका उद्देश्य जलवायु अनुकूलन एवं शमन रणनीति के रूप में वृक्षों के आवरण में सुधार तथा वृद्धि करना है।
  • राष्ट्रीय जैवविविधता कार्ययोजना: इसे प्राकृतिक आवासों के क्षरण, विखंडन और नुकसान की दरों में कमी के लिये नीतियों को लागू करने हेतु शुरू किया गया है।
  • ग्रामीण आजीविका योजनाएँ: ग्रामीण आजीविका से आंतरिक रूप से जुड़े प्राकृतिक संसाधनों की मान्यता महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा) और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) जैसी प्रमुख योजनाओं में भी परिलक्षित होती है।

वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा कार्य मंच पर भारत

चर्चा में क्यों?
  • हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका में पिट्सबर्ग, पेनसिल्वेनिया में वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा कार्य मंच-2022 में भारत के प्रतिनिधि ने कहा है कि "सतत् जैव ईंधन परिवहन क्षेत्र से ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।"

वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा कार्य मंच

विषय

  • अमेरिका ने पहली बार वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा कार्य मंच की मेज़बानी की, जो 21 से 23 सितंबर, 2022 तक 13वें स्वच्छ ऊर्जा मंत्रिस्तरीय (CEM 13) और 7वें मिशन इनोवेशन मिनिस्ट्रियल (MI-7) का संयुक्त आयोजन है।

मुख्य बिंदु

  • CEM13/MI-7 का केंद्रीय बिंदु है: तेज़ी से नवाचार और विस्तार।
  • इसका अर्थ है स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के विस्तार के लिये सहयोग और साझा रणनीतियों के माध्यम से नवाचार की गति एवं पैमाने को तेज़ करना।

उद्देश्य

  • वर्ष 2022 में अंतर्राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा नेतृत्व और सहयोग को एक संवादात्मक, प्रेरक एवं प्रभावशाली कार्यक्रम के माध्यम से परिभाषित करना जो वैश्विक नेताओं को उनके जलवायु प्रतिज्ञाओं को पूरा करने पर प्रकाश डालता है।
  • उन कार्यों पर ध्यान केंद्रित करना जो कम लागत, शून्य-उत्सर्जन ऊर्जा भविष्य के साथ सभी के लिये अवसर प्रदान करते हैं, विशेष रूप से रोज़गार के बेहतर अवसर।
  • जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिये और उद्देश्यपूर्ण नवाचार हेतु एक अभूतपूर्व गति और पैमाने पर नवाचार एवं विस्तार के क्षेत्र में निरंतर विकास का प्रदर्शन करना।

इस मंच पर भारत की भूमिका

स्वच्छ ऊर्जा में तेज़ी लाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में

  • भारत ने आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी उपकरणों का उपयोग करते हुए उन्नत सतत् जैव ईंधन पर काम कर रहे एक अंतःविषय टीम के साथ 5 जैव ऊर्जा केंद्र स्थापित करने की सूचना दी है।
  • अप्रैल 2022 में, भारत ने नई दिल्ली में मिशन इनोवेशन एनुअल गैदरिंग की मेज़बानी की, मिशन इंटीग्रेटेड बायोरिफाइनरी को इंडिया और नीदरलैंड द्वारा लॉन्च किया गया था, इसका लक्ष्य कम कार्बन वाले भविष्य के लिये नवीकरणीय ईंधन, रसायनों तथा सामग्रियों के लिये नवाचार में तेज़ी लाने हेतु प्रमुख सदस्यों को एकजुट करना है।

स्वच्छ ऊर्जा प्रदर्शन पर भारत

  • भारत, स्वच्छ ऊर्जा मंत्रिस्तरीय (CEM) के संस्थापक सदस्यों में से एक होने के नाते, वर्ष 2023 में G-20 की अध्यक्षता के साथ-साथ बंगलूरू मेंं CEM-14 की मेज़बानी करेगा।
  • भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल है, जिन्होंने दीर्घकालिक विज़न (2017-18 से 2037-38 तक 20 वर्ष की अवधि तक) के साथ कूलिंग एक्शन प्लान (CAPCAP) तैयार किया है, जो सभी क्षेत्रों में शीतलन आवश्यकताओं को पूरा करेगा।
  • भारत ने 2005 के स्तर की तुलना में 2030 में उत्सर्जन तीव्रता को 33-35% तक कम करने के महत्त्वाकांक्षी राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के लिये प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
  • भारत दुनिया में सबसे बड़े नवीकरणीय ऊर्जा (RE) विस्तार कार्यक्रम को कार्यान्वित कर रहा है, जिसमें देश में समग्र नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता वर्ष 2014 के 32 गीगावाट से 5 गुना बढ़कर वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट और वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट हो जाएगी।

मंत्रिस्तरीय स्वच्छ ऊर्जा और मिशन नवाचार

मंत्रिस्तरीय स्वच्छ ऊर्जा

  • स्थापना: इसे दिसंबर 2009 में कोपेनहेगन में पार्टियों के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन पर संयुक्त राष्ट्र के फ्रेमवर्क कन्वेंशन में स्थापित किया गया था।
  • उद्देश्य: यह नीतियों और कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिये एक उच्च स्तरीय वैश्विक मंच है जिसका उद्देश्य स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाना तथा सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा कर वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा अर्थव्यवस्था में संक्रमण को प्रोत्साहित करना है।
  • केंद्र बिंदु
    • CEM तीन वैश्विक जलवायु और ऊर्जा नीति लक्ष्यों पर केंद्रित है:
    • वैश्विक स्तर पर ऊर्जा दक्षता में सुधार।
    • स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति में वृद्धि।
    • स्वच्छ ऊर्जा तक पहुँच का विस्तार।
  • सदस्य संख्या
    • 29 देश CEM का हिस्सा हैं।
    • भारत भी इसका एक सदस्य देश है।

मिशन इनोवेशन मिनिस्ट्रियल

विषय

  • मिशन इनोवेशन (MI) एक वैश्विक पहल है जो स्वच्छ ऊर्जा को सभी के लिये सस्ती, आकर्षक और सुलभ बनाने हेतु अनुसंधान, विकास एवं प्रदर्शन में एक दशक की कार्रवाई तथा निवेश को उत्प्रेरित करती है। यह पेरिस समझौते के लक्ष्यों की दिशा में विकास को गति देगा और शून्य तक चने का मार्ग प्रशस्त करेगा।

लक्ष्य

  • शून्य-उत्सर्जन नौवहन
  • हरित ऊर्जा भविष्य
  • स्वच्छ हाइड्रोजन
  • कार्बन डाइऑक्साइड को हटाना
  • शहरी संक्रमण
  • नेट ज़ीरो इंडस्ट्रीज
  • एकीकृत बायोरिफाइनरी

जैव ईंधन

परिचय

  • कोई भी हाइड्रोकार्बन ईंधन जो किसी कार्बनिक पदार्थ (जैविक सामग्री) से कम समय (दिन, सप्ताह या महीनों) में उत्पन्न होता है, उसे जैव ईंधन माना जाता है।
  • जैव ईंधन प्रकृति में ठोस, तरल या गैसीय हो सकता है।
  • ठोस: लकड़ी, सूखे पौधे की सामग्री और खाद
  • तरल: बायोइथेनॉल और बायोडीज़ल

गैसीय: बायोगैस

  • इन्हें परिवहन, स्थिर, पोर्टेबल और अन्य अनुप्रयोगों के लिये डीज़ल, पेट्रोल या अन्य जीवाश्म ईंधन के स्थान पर अथवा उनके साथ इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • इसके अलावा, इनका उपयोग ऊष्मा और विद्युत उत्पादन के लिये किया जा सकता है।
  • जैव ईंधन  उपयोग बढ़ने मुख्य कारण कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें, जीवाश्म ईंधन से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन और किसानों के लाभ के लिये कृषि फसलों से ईंधन प्राप्त करने में रुचि हैं।

जैव ईंधन को बढ़ावा देने हेतु सरकार की पहलें:

  • प्रधानमंत्री जी-वन योजना, 2019  
  • इथेनॉल सम्मिश्रण
  • गोबर-धन (Galvanizing Organic Bio-Agro Resources Dhan - GOBAR-DHAN) योजना
  • रिपर्पज़ यूज़्ड कुकिंग ऑयल (Repurpose Used Cooking Oil)
  • जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति, 2018

5 जैव ऊर्जा केंद्रों के तहत पहलें

  • “जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology-DBT), पैन आईआईटी सेंटर फॉर बायोएनर्जी (Pan IIT Center for Bioenergy)" ने थर्मोस्टेबल और ग्लूकोज़ टॉलरेंट β-ग्लूकोसिडेज़ विकसित किया है।
  • DBT – आईसीजीईबी बायोएनर्जी सेंटर (ICGEB Bioenergy Centre) ने 2जी इथेनॉल उत्पादन के लिये बड़े पैमाने पर सेल्युलेस एंजाइम प्रौद्योगिकी विकसित की है।
  • DBT -इंडियन ऑयल कोऑपरेशन लिमिटेड बायोएनर्जी सेंटर (Indian Oil Cooperation Limited Bio-energy Centre) फरीदाबाद ने निर्माणाधीन एक संयंत्र (प्रतिदिन 10 टन बायोमास) में विकसित ग्लाइकेन हाइड्रॉलिस का उपयोग करके बायोमास को इथेनॉल में बदलने की प्रक्रिया का मूल्यांकन किया है।
  • DBT-आईसीटी सेंटर फॉर एनर्जी बायोसाइंसेज़ (ICT Centre for Energy Biosciences) का उद्देश्य कचरे के मूल्यवर्द्धन के लिये व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य प्रौद्योगिकियों के निर्माण हेतु जैविक और रासायनिक परिवर्तन करना है।
  • DBT-टीईआरआई  बायोएनर्जी रिसर्च सेंटर (TERI Bioenergy Research Center) अगली पीढ़ी के फ़ीड के रूप में शैवाल बायोमास का उपयोग करके उन्नत जैव ईंधन, बायोडीजल, बायोहाइड्रोजन, पाइरोलाइटिक बायोइल के उत्पादन के लिये स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के विकास को लेकर सक्रिय रूप से खोज कर रहा है।

सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन मानदंडों का विस्तार 

चर्चा में क्यों?

विद्युत मंत्रालय (MoP) ने सल्फर उत्सर्जन में कटौती करने के लिये फ्लू  गैस डिसल्फराइज़ेशन (FGD) स्थापित करने के लिये कोयले से चलने वाले विद्युत संयंत्रों की समय सीमा दो वर्ष बढ़ा दी है।

पृष्ठभूमि
  • भारत ने शुरू में सल्फर उत्सर्जन में कटौती के लिये FGD इकाइयों को स्थापित करने के लिये तापीय ऊर्जा संयंत्र हेतु के लिये वर्ष 2017 की समय सीमा निर्धारित की थी।
  • सल्फर डाइऑक्साइड को हटाने को फ्लू-गैस डिसल्फराइजेशन (FGD) कहा जाता है।
  • यह गैसीय प्रदूषकों को दूर करने का प्रयास करता है। SO2 थर्मल प्रसंस्करण, उपचार और दहन के कारण भट्टियों, बॉयलरों और अन्य औद्योगिक प्रक्रियाओं में उत्पन्न गैसें हैं।
  • बाद में समय सीमा को अलग-अलग क्षेत्रों के लिये अलग-अलग समय सीमा वर्ष 2022 में समाप्त होने वाली थी जिसे बढ़ाकर वर्ष 2025 कर दिया गया।
  • 2027 के अंत तक सल्फर उत्सर्जन के मानदंडों का पालन नहीं करने पर बिजली संयंत्रों को जबरन रिटायर्ड कर दिया जाएगा।
  • आबादी वाले क्षेत्रों और राजधानी नई दिल्ली के पास संयंत्रों को वर्ष 2024 के अंत से संचालित करने के लिये जुर्माना देना होगा, जबकि कम प्रदूषण वाले क्षेत्रों में यूटिलिटीज पर वर्ष 2026 के अंत से जुर्माना लगाया जाएगा।
  • उच्च लागत, धन की कमी, कोविड -19 संबंधित देरी और चीन के साथ भूराजनीतिक तनाव, जिसने व्यापार को कुप्रभावित किया है, विस्तार के कारणों के रूप में उद्धृत किया गया है।

FGD इकाइयों की स्थापना का महत्त्व

  • भारतीय शहरों में दुनिया की कुछ सबसे प्रदूषित वायु हैं। भारत वर्तमान में अगले उच्चतम देश रूस की तुलना में SO2 की मात्रा का लगभग दोगुना उत्सर्जन करता है।
  • थर्मल यूटिलिटीज, जो देश की 75% बिजली का उत्पादन करती हैं, सल्फर और नाइट्रस-ऑक्साइड के लगभग 80% औद्योगिक उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार हैं, जो फेफड़ों की बीमारियों, अम्ल वर्षा  और स्मॉग का कारण बनती हैं।
  • निर्धारित मानदंडों के कार्यान्वयन में हर एक दिन की देरी और FGD प्रणाली को स्थापित नहीं करने से हमारे समाज को भारी स्वास्थ्य और आर्थिक नुकसान हो रहा है।
  • भारत में हानिकारक SO2 प्रदूषण के उच्च स्तर को बहुत जल्द टाला जा सकता है क्योंकि फ्लू -गैस डिसल्फराइज़ेशन सिस्टम चीन में उत्सर्जन के स्तर को कम करने में सफल साबित हुए हैं , जो 2005 में उच्चतम स्तर के लिये जिम्मेदार देश था।

सल्फर डाइऑक्साइड प्रदूषण

स्रोत

  • वातावरण में SO2 का सबसे बड़ा स्रोत विद्युत संयंत्रों और अन्य औद्योगिक गतिविधियों में जीवाश्म ईंधन का दहन है।
  • SO2 उत्सर्जन के छोटे स्रोतों में अयस्कों से धातु निष्कर्षण  जैसी औद्योगिक प्रक्रियाएँ, प्राकृतिक स्रोत जैसे- ज्वालामुखी विस्फोट, इंजन, जहाज़ और अन्य वाहन तथा भारी उपकारणों में उच्च सल्फर ईंधन सामग्री का प्रयोग शामिल है।

प्रभाव

  • SO2 स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों को प्रभावित कर सकती है।
  • SO2 के अल्पकालिक जोखिम मानव श्वसन प्रणाली को नुकसान पहुंँचा सकते हैं और साँस लेने में कठिनाई उत्पन्न कर सकते हैं। विशेषकर बच्चे SO2 के इन प्रभावों के प्रति संवेदनशील होते हैं।
  • WHO के अनुसार, यह प्रति वर्ष विश्व स्तर पर 2 मिलियन लोगों की मौत SO2 के कारण होती है।
  • SO2 का उत्सर्जन हवा में SO2 की उच्च सांद्रता के कारण होता है, सामान्यत:  यह सल्फर के अन्य ऑक्साइड (SOx) का निर्माण करती है। (SOx) वातावरण में अन्य यौगिकों के साथ प्रतिक्रिया कर छोटे कणों का निर्माण कर सकती है। ये पार्टिकुलेट मैटर (PM) प्रदूषण को बढ़ाने में सहायक हैं।
  • छोटे प्रदूषक कण फेफड़ों में प्रवेश कर स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
  • यह अम्लीय वर्षा का कारण भी बन सकता है जिससे व्यापक पर्यावरणीय क्षति होती है।

भारत के संदर्भ में

  • भारत द्वारा सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन के मामले में ग्रीनपीस इंडिया और सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (Centre for Research on Energy and Clean Air) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में वर्ष 2018 की तुलना में लगभग 6% की गिरावट (चार वर्षों में सबसे अधिक) दर्ज की गई है।
  • फिर भी भारत इस दौरान SO2 का सबसे बड़ा उत्सर्जक बना रहा।
  • वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) को अल्पकालिक अवधि (24 घंटे तक) के लिये व्यापक राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक निर्धारित करने हेतु आठ प्रदूषकों (PM10, PM2.5, NO2, SO2, CO, O3, NH3 तथा Pb) के आधार पर विकसित किया गया है।

जलवायु क्षतिपूर्ति 

चर्चा में क्यों?
  • हाल ही में पाकिस्तान अपने इतिहास  की सबसे भीषण बाढ़ आपदा का सामना कर रहा है, इसलिये उसने उन विकसित देशों से क्षतिपूर्ति या मुआवजे की मांग करना शुरू कर दिया है जो मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन के लिये ज़िम्मेदार हैं।

जलवायु क्षतिपूर्ति


  • जलवायु क्षतिपूर्ति विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को विकसित देशों द्वारा जलवायु परिवर्तन की दिशा में किये गए ऐतिहासिक योगदानों को संबोधित करने के साधन के रूप में भुगतान किये जाने वाले धन के आह्वान को संदर्भित करती है।

जलवायु परिवर्तन हेतु ज़िम्मेदार

  • ऐतिहासिक उत्सर्जन: पश्चिमी देशों की ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि कार्बन डाइऑक्साइड सैकड़ों वर्षों तक वातावरण में बनी रहती है और यह इस कार्बन डाइऑक्साइड का संचय है जो ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनता है।
  • प्रदूषक भुगतान सिद्धांत (Polluter Pays Principle): प्रदूषक भुगतान सिद्धांत की अवधारणा प्रदूषक को न केवल उपचारात्मक कार्रवाई की लागत का भुगतान करने के लिये उत्तरदायी बनाती है, बल्कि उनके कार्यों के कारण पर्यावरणीय क्षति के पीड़ितों को क्षतिपूर्ति करने हेतु भी उत्तरदायी बनाती है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ, यूनाइटेड किंगडम सहित, वर्तमान समय के दौरान सभी उत्सर्जन का 50% से अधिक हिस्सा है।
    • वर्तमान समय के दौरान सभी उत्सर्जन का 50% से अधिक हिस्सा यूनाइटेड किंगडम सहित संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ का है।
    • यदि रूस, कनाडा, जापान और ऑस्ट्रेलिया को भी शामिल किया जाए, तो संयुक्त योगदान 65% या सभी उत्सर्जन के लगभग दो-तिहाई से अधिक हो जाता है।
    • इसके अलावा भारत जैसा देश, जो वर्तमान में तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है, ऐतिहासिक उत्सर्जन का केवल 3% है। जबकि, चीन, जो पिछले 15 वर्षों से अधिक समय से दुनिया का सबसे बड़ा उत्सर्जक है, ने वर्ष 1850 के बाद से कुल उत्सर्जन में लगभग 11% का योगदान दिया है।
  • वैश्विक प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के प्रभाव गरीब देशों पर उनकी भौगोलिक स्थिति और सामना करने की कमजोर क्षमता के कारण बहुत अधिक गंभीर हैं।
    • इन सबसे होने वाली क्षति मुआवजे की मांगों को जन्म दे रहा है, जिन देशों द्वारा अतीत में उत्सर्जन  नगण्य योगदान रहा है और संसाधनों की कमी है, वे जलवायु परिवर्तन के सबसे विनाशकारी प्रभावों का सामना कर रहे हैं।
    • भारत पर प्रभाव: वर्ष 2020 में भारत और बांग्लादेश में चक्रवात अम्फान से 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर के आर्थिक नुकसान का अनुमान लगाया गया है।

अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में निर्धारित जलवायु उत्तरदायित्व:

  • उत्तरदायित्व की स्वीकृति: जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) , 1994 का अंतर्राष्ट्रीय समझौता जो जलवायु परिवर्तन से का सामना करने के वैश्विक प्रयासों के व्यापक सिद्धांतों को निर्धारित करता है, स्पष्ट रूप से राष्ट्रों की इस विभेदित ज़िम्मेदारी को स्वीकार करता है।
    • यह स्पष्ट करता है कि विकसित देशों को विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिये वित्त और प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण करना चाहिये।
    • इस जनादेश के परिणामस्वरूप विकसित देश प्रत्येक वर्ष विकासशील देशों को 100 बिलियन अमेरीकी डॉलर का अनुदान देने पर सहमत हुए।
  • वर्तमान स्थिति: 100 बिलियन अमेरीकी डॉलर के अनुदान की प्रतिबद्धता अभी पूरा नहीं हुई है।
    • संयुक्त राष्ट्र महासभा के लिये तैयार किये गए मानवीय प्रयासों के समन्वय के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNOCHA) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु से जुड़ी आपदाओं से संबंधित वार्षिक वित्त पोषण अनुरोध वर्ष 2019 और 2021 के मध्य तीन वर्ष की अवधि में औसतन 15.5 बिलियन अमेरीकी डॉलर का था।
    • अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने उत्सर्जन के कारण "अन्य देशों को हानि में 1.9 ट्रिलियन अमेरीकी डॉलर से अधिक की क्षति" का अनुमान लगाया है।
  • गैर-आर्थिक हानि: जीवन की हानि, विस्थापन और प्रवासन, स्वास्थ्य प्रभाव तथा सांस्कृतिक विरासत को नुकसान सहित गैर-आर्थिक नुकसान शामिल हैं।
  • आर्थिक हानि: जलवायु परिवर्तन से अपरिहार्य वार्षिक आर्थिक नुकसान वर्ष 2030 तक 290 बिलियन अमेरीकी डॉलर से 580 बिलियन अमेरीकी डॉलर के बीच कहीं पहुँचने का अनुमान लगाया गया था।
  • पहल: विकासशील देश और गैर-सरकारी संगठन अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन वार्ता में हानि और क्षति के लिये एक अलग चैनल स्थापित करने में सफल रहे।
    • इसलिये हानि और भरपाई के लिये वारसॉ अंतर्राष्ट्रीय तंत्र (WIM), 2013 में स्थापित, जलवायु आपदाओं से प्रभावित विकासशील देशों को क्षतिपूर्ति करने की आवश्यकता की पहली औपचारिक स्वीकृति थी।

भारत की जलवायु प्रतिज्ञा 

चर्चा में क्यों?
  • हाल ही में एक अध्ययन में पेरिस समझौते के लिये भारत की अद्यतन जलवायु प्रतिज्ञा को अनुपालन में पाँचवांँ और महत्त्वाकाँक्षा में चौथा स्थान दिया गया है।

Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): September 2022 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

अध्ययन की मुख्य विशेषताएँ

परिचय

  • यह अध्ययन वैज्ञानिक पत्रिका ‘नेचर क्लाइमेट चेंज’ (Nature Climate Change) में प्रकाशित हुआ था।
  • इसमें आठ देश भारत, अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब, रूस, ऑस्ट्रेलिया और ब्राज़ील और यूरोपीय संघ शामिल हैं।
  • पेरिस समझौते के लगभग सभी हस्ताक्षरकर्त्ताओं ने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Conference on Climate Change- COP 26) के 26वें सत्र के दौरान अपनी जलवायु प्रतिज्ञाओं/प्रतिबद्धताओं का अद्यतन किया।

परिणाम

  • यूरोपीय संघ (European Union-EU) इसमें शीर्ष पर था, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका अनुपालन में अंतिम स्थान पर और महत्त्वाकांक्षा में दूसरे स्थान पर था।
  • अनुपालन: अनुपालन श्रेणी में, यूरोपीय संघ ने अग्रणी स्थान हासिल किया जिसके बाद चीन, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, भारत, रूस, सऊदी अरब, ब्राज़ील और अमेरिका का स्थान रहा।

महत्त्वाकांक्षा

  • महत्त्वाकांक्षा श्रेणी में, यूरोपीय संघ के बाद चीन, दक्षिण अफ्रीका, भारत, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका और सऊदी अरब का स्थान है।

मानदंड

  • अपने जलवायु प्रतिज्ञाओं या राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contributions-NDCs) को पूरा करने की संभावना वाले राष्ट्रों को अनुपालन में उच्च स्थान दिया गया था।
  • साहसिक प्रतिबद्धताओं वाले देशों को महत्त्वाकांक्षा में उच्च स्थान दिया गया था।

सांख्यिकीय विश्लेषण

  • स्थिर शासन वाले राष्ट्रों में साहसिक और अत्यधिक विश्वसनीय प्रतिज्ञाओं की संभावना अधिक होती है।
  • इसके अलावा चीन और अन्य गैर-लोकतंत्र भी अपनी प्रतिबद्धताओं को पूर्ण करने की संभावना रखते हैं।
  • इन देशों की प्रशासनिक और राजनीतिक प्रणालियाँ उन्हें जटिल राष्ट्रीय नीतियों को लागू करने में सक्षम बनाती हैं।

भारत का प्रदर्शन

भारत को अनुपालन में पाँचवाँ और महत्वाकांक्षा में चौथा स्थान प्राप्त है।

परिचय

  • पेरिस समझौते (जिसे कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज 21 या COP 21 के रूप में भी जाना जाता है) को वर्ष 2015 में अपनाया गया था।
  • इसने क्योटो प्रोटोकॉल का स्थान लिया जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये पहले का समझौता था।
  • पेरिस समझौता एक वैश्विक संधि है जिसमें लगभग 200 देश, ग्रीन हाउस गैसों (GHGs) के उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण करने के लिये सहयोग करने पर सहमत हुए हैं।
  • यह पूर्व-उद्योग स्तरों की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे, अधिमानतः 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का प्रयास करता है।

कार्य

  • ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के अलावा पेरिस समझौते में प्रत्येक पाँच वर्ष में उत्सर्जन में कटौती के लिये प्रत्येक देश के योगदान की समीक्षा करने की आवश्यकता का उल्लेख किया गया है ताकि वे संभावित चुनौती के लिये तैयार हो सकें। वर्ष 2020 तक, देशों NDCs के रूप में ज्ञात जलवायु कार्रवाई के लिये अपनी योजनाएँ प्रस्तुत की थी।
  • दीर्घकालिक रणनीतियाँ: दीर्घकालिक लक्ष्य की दिशा में प्रयासों को उचित ढंग से तैयार करने के लिये पेरिस समझौता देशों को वर्ष 2020 तक दीर्घकालिक कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन विकास रणनीति (LT-LEDS) तैयार करने एवं प्रस्तुत करने के लिये आमंत्रित करता है।
  • दीर्घकालिक कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन विकास रणनीतियांँ (LT-LEDS) NDC के लिये दीर्घकालिक क्षितिज प्रदान करती हैं परंतु NDC की तरह वे अनिवार्य नहीं हैं।

प्रगति रिपोर्ट

  • पेरिस समझौते के साथ देशों ने उन्नत पारदर्शिता ढाँचा (ETF) स्थापित किया। वर्ष 2024 से शुरू होने वाले ETF के तहत, देश जलवायु परिवर्तन शमन, अनुकूलन उपायों और प्रदान या प्राप्त समर्थन में की गई कार्रवाइयों एवं प्रगति पर पारदर्शी रूप से रिपोर्ट करेंगे।
  • इसमें प्रस्तुत रिपोर्टों की समीक्षा के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रक्रियाओं का भी प्रावधान है।
  • ETF के माध्यम से एकत्र की गई जानकारी वैश्विक स्टॉकटेक में उपलब्ध होगी जो दीर्घकालिक जलवायु लक्ष्यों की दिशा में सामूहिक प्रगति का आकलन करेगी।

आगे की राह

  • इस दीर्घकालिक तापमान लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये देशों को सदी के मध्य तक जलवायु-तटस्थ विश्व निर्माण के लिये जल्द से जल्द ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी हेतु वैश्विक शिखर पर पहुँचने का लक्ष्य रखना चाहिये।
  • मध्यम अवधि के डीकार्बोनाइज़ेशन के लिये स्पष्ट मार्ग के साथ विश्वसनीय अल्पकालिक प्रतिबद्धताओं की आवश्यकता है, जो वायु प्रदूषण जैसी कई चुनौतियों को ध्यान में रखता है, साथ ही विकास के लिये अधिक रक्षात्मक विकल्प हो सकता है।
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FAQs on Environment and Ecology (पर्यावरण और पारिस्थितिकी): September 2022 UPSC Current Affairs - भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

1. पर्यावरण के लिये जीवन शैली (LiFE) आंदोलन क्या है?
उत्तर: जीवन शैली (LiFE) आंदोलन पर्यावरणीय जीवन शैली को सुधारने और स्वच्छ ऊर्जा के प्रयोग को बढ़ाने के लिए एक सामाजिक मोवमेंट है। यह आंदोलन लोगों को प्रभावित करने के लिए जीवन शैली में परिवर्तन करने और स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों का प्रयोग करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करता है।
2. वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा कार्य मंच पर भारत का क्या महत्व है?
उत्तर: वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा कार्य मंच विश्वभर में स्वच्छ और नवीनीकृत ऊर्जा प्रणालियों को प्रोत्साहित करने और ऊर्जा संकट को हल करने के लिए एक मंच है। भारत का महत्व इसलिए होता है क्योंकि यह एक विकसित देश है जो स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी रोल निभा सकता है और अपने ऊर्जा संकट को सुलझा सकता है।
3. सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन मानदंडों का विस्तार क्या है?
उत्तर: सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) उत्सर्जन मानदंडों का विस्तार एक नियंत्रण कार्यक्रम है जो वायुमंडल में विषाणुओं के स्तर को कम करने के लिए निर्धारित किया गया है। इसमें सल्फर डाइऑक्साइड के उत्सर्जन के लिए आवश्यक मानदंड, औद्योगिक इकाइयों के लिए प्रतिबंध, और ध्वनिक स्तर के लिए पारितिकी सीमाएं शामिल हैं। इन मानदंडों का विस्तार पर्यावरण और जीवन को सुरक्षित रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
4. जलवायु क्षतिपूर्ति क्या है और इसका कारण क्या है?
उत्तर: जलवायु क्षतिपूर्ति एक प्रकार की पर्यावरणिक समस्या है जहाँ जलवायु सिस्टम में अनुपातित परिवर्तन से क्षति होती है। इसके कारण में पृथ्वी के तापमान का वृद्धि, मानव गतिविधियों से होने वाला ऊर्जा का उपयोग, वनों की कटाई और फैक्ट्रियों और वाहनों से उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों के कारण शामिल होते हैं। यह क्षतिपूर्ति जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक तापमान, वायुमंडलीय परिवर्तन और जल प्रबंधन में प्रभाव डाल सकती है।
5. भारत की जलवायु प्रतिज्ञा क्या है और इसका महत्व क्या है?
उत्तर: भारत की जलवायु प्रतिज्ञा एक सरकारी पहल है जिसका उद्देश्य भारत की जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नवीनीकरण करना है। यह प्रतिज्ञा भारत को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचाने और पर्यावरण को संरक्षित रखने के लिए उच्चतम रस्ते तय करने के लिए डिज़ाइन की गई है। इसका महत्व इसलिए है क्योंकि यह राष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को नियंत्रित करने के लिए सरकारी नीतियों और कार्यों को संचालित करता है।
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