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Geography (भूगोल): December 2022 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जैवविविधता पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के पक्षकारों के 15वें सम्मेलन (COP15) में "कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क" (Kunming-Montreal Global Biodiversity Framework- GBF) को अपनाया गया है।

  • GBF के अंतर्गत वर्ष 2030 तक के लिये 4 लक्ष्य और 23 उद्देश्य निर्धारित किये गए हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र कनाडा के मॉन्ट्रियल में जैवविविधता सम्मेलन संपन्न हुआ।
  • COP15 का पहला भाग कुनमिंग, चीन में हुआ और इसमें जैवविविधता संकट को दूर करने की प्रतिबद्धता पर बल दिया गया तथा कुनमिंग घोषणा को 100 से अधिक देशों द्वारा अपनाया गया।

वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क के प्रमुख उद्देश्य: 

  • 30x30 समझौता:
    • वर्ष 2030 तक विश्व स्तर पर (थल और जल स्तर पर) 30% निम्‍नीकृत हुए पारिस्थितिक तंत्र को पुनर्स्थापित करना।
    • वर्ष 2030 तक 30% क्षेत्रों (स्थलीय, अंतर्देशीय जल और तटीय एवं समुद्री) का संरक्षण तथा प्रबंधन करना।
    • ज्ञात प्रजातियों को विलुप्त होने से रोकना और वर्ष 2050 तक सभी प्रजातियों (अज्ञात सहित) के विलुप्त होने के जोखिम और दर को दस गुना कम करना। 
    • वर्ष 2030 तक कीटनाशकों के जोखिम को 50% तक कम करना।
    • वर्ष 2030 तक पोषक तत्त्वों में होने वाली कमी में सुधार करना।
    • वर्ष 2030 तक सभी स्रोतों से होने वाले प्रदूषण के जोखिमों और प्रदूषण के नकारात्मक प्रभावों को उस स्तर तक कम करना ताकि वे जैवविविधता एवं पारिस्थितिक तंत्र कार्यों के लिये हानिकारक न रहें।
    • वर्ष 2030 तक खपत के वैश्विक पदचिह्न को कम करना, जिसमें अत्यधिक खपत और अपशिष्ट उत्पादन को कम करना तथा भोजन की बर्बादी को रोकना शामिल है।
    • कृषि, जलीय कृषि, मत्स्यपालन और वानिकी के अंतर्गत क्षेत्रों का सतत् प्रबंधन करना तथा कृषि पारिस्थितिकी एवं अन्य जैवविविधता-अनुकूल प्रथाओं में काफी वृद्धि करना।
    • प्रकृति आधारित समाधानों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से निपटना।
    • वर्ष 2030 तक नई विदेशी प्रजातियों के आगमन और स्थायित्त्व की दर को 50% तक कम करना।
    • वर्ष 2030 तक जंगली प्रजातियों के सुरक्षित, कानूनी और टिकाऊ उपयोग एवं व्यापार को सुरक्षित करना।
    • शहरी क्षेत्रों को हरा-भरा करना।

COP15 के अन्य प्रमुख परिणाम

  • प्रकृति के लिये धन:
    • हस्ताक्षरकर्त्ताओं का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि सार्वजनिक और निजी स्रोतों से प्रतिवर्ष 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर नई संरक्षण योजनाओं के लिये दिया जाए।
    • अमीर देशों को वर्ष 2025 तक हर साल कम-से-कम 20 अरब डॉलर और वर्ष 2030 तक हर साल कम-से-कम 30 अरब डॉलर का योगदान देना चाहिये।
  • बड़ी कंपनियों की रिपोर्ट का जैवविविधता पर प्रभाव:
    • कंपनियों को विश्लेषण करना चाहिये कि कैसे उनका संचालन उनकी रिपोर्ट व  जैवविविधता प्रभावित होती है।
    • भारत ने जैवविविधता के नुकसान को रोकने के लिये 2020 के बाद के वैश्विक ढाँचे को सफलतापूर्वक लागू करने में विकासशील देशों की मदद करने के लिये एक नया और समर्पित कोष बनाने की तत्काल आवश्यकता का आह्वान किया।
  • हानिकारक सब्सिडी:
    • वर्ष 2025 तक जैवविविधता को कम करने वाली सब्सिडी की पहचान करने और फिर उन्हें समाप्त करने, चरणबद्ध करने या सुधार करने के लिये प्रतिबद्ध हैं। 
    • वे 2030 तक उन प्रोत्साहनों को प्रतिवर्ष कम-से-कम 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक कम करने और संरक्षण के लिये सकारात्मक प्रोत्साहन बढ़ाने पर सहमत हुए।
  • निगरानी और रिपोर्टिंग प्रगति:
    • सभी सहमत लक्ष्यों की भविष्य में प्रगति की निगरानी करने के लिये प्रक्रियाओं को सशक्त किया जाएगा, इस समझौते को आइची (जापान) समझौते, 2010 की तरह नहीं लिया जाएगा, जो कभी पूरे नही हुए।
    • जलवायु परिवर्तन पर अंकुश लगाने के संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व वाले प्रयासों के तहत ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिये उपयोग किये जाने वाले समान प्रारूप के बाद राष्ट्रीय कार्य योजनाओं को निर्धारण एवं उनकी  समीक्षा की जाएगी। कुछ पर्यवेक्षकों ने इन योजनाओं को प्रस्तुत करने के लिये देशों की समयसीमा की कमी पर आपत्ति जताई है।

भारत ने सम्मेलन में अपनी मांगों को कैसे प्रस्तुत किया?

  • भारत ने जैवविविधता के नुकसान को रोकने व पलटने के लिये 2020 के बाद के वैश्विक ढाँचे को सफलतापूर्वक लागू करने में विकासशील देशों की मदद के लिये एक नया और समर्पित कोष बनाने की तत्काल आवश्यकता का आह्वान किया है।
  • अब तक वैश्विक पर्यावरण सुविधा (Global Environment Facility- GEF) जो UNFCCC और संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम अभिसमय  सहित कई अभिसमयों को शामिल करती है, जैवविविधता संरक्षण के लिये धन का एकमात्र स्रोत बनी हुई है।
  • भारत ने यह भी कहा कि जैवविविधता का संरक्षण भी 'सामान्य लेकिन विभेदित ज़िम्मेदारियों और प्रतिक्रियात्मक क्षमताओं' (CBDR) पर आधारित होना चाहिये क्योंकि जलवायु परिवर्तन भी प्रकृति को प्रभावित करता है।
  • भारत के अनुसार, विकासशील देश जैवविविधता के संरक्षण के लिये लक्ष्यों को लागू करने का अधिकांश भार वहन करते हैं और इसलिये पर्याप्त धन एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की आवश्यकता होती है।

जैवविविधता पर कन्वेंशन (CBD):  

  • CBD जैवविविधता के संरक्षण के लिये कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि है जो वर्ष 1993 से लागू है और 196 देशों द्वारा इसकी पुष्टि की गई है।
  • यह देशों के लिये जैवविविधता की रक्षा, सतत् उपयोग सुनिश्चित करने और उचित एवं न्यायसंगत लाभ साझाकरण को बढ़ावा देने हेतु दिशा-निर्देश निर्धारित करता है।
  • इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन पर वर्ष 2015 के पेरिस समझौते के समान जैवविविधता के नुकसान को रोकने और प्रतिपूर्ति के लिये एक ऐतिहासिक लक्ष्य हासिल करना है।
  • CBD सचिवालय मॉन्ट्रियल, कनाडा में स्थित है।
  • CBD के तहत पक्षकार (देश) नियमित अंतराल पर बैठक करते हैं और इन बैठकों को पक्षकारों का सम्मेलन (COP) कहा जाता है।
  • वर्ष 2000 में बायोसेफ्टी पर कार्टाजेना प्रोटोकॉल के रूप में ज्ञात अभिसमय के लिये एक पूरक समझौता अपनाया गया था। यह 11 सितंबर, 2003 को लागू हुआ। 
  • प्रोटोकॉल आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी से उत्पन्न संशोधित जीवों द्वारा उत्पन्न संभावित जोखिमों से जैवविविधता की रक्षा करना चाहता है।
  • आनुवंशिक संसाधनों तक पहुँच और उनके उपयोग ( Access to Genetic Resources and the Fair and Equitable Sharing of Benefits Arising from their Utilization- ABS) से प्राप्त होने वाले लाभों के उचित और न्यायसंगत साझाकरण पर नागोया प्रोटोकॉल को COP10 में नागोया, जापान में वर्ष 2010 में अपनाया गया था। यह 12 अक्तूबर, 2014 को लागू हुआ।
  • यह प्रोटोकॉल न केवल CBD के तहत शामिल आनुवंशिक संसाधनों और उनके उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों पर लागू होता है, बल्कि आनुवंशिक संसाधनों से जुड़े उस पारंपरिक ज्ञान (Traditional Knowledge-TK) को भी कवर करता है जो CBDऔर इसके उपयोग से होने वाले लाभों से आच्छादित हैं।
  • वर्ष 2010 में नागोया में CBD की कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP)-10 में वर्ष 2011-2020 हेतु ‘जैवविविधता के लिये रणनीतिक योजना’ को अपनाया गया। इसमें पहली बार विषय विशिष्ट 20 जैवविविधता लक्ष्यों- जिन्हें आइची जैवविविधता लक्ष्य के रूप में भी जाना जाता है, को अपनाया गया।
  • भारत में CBD के प्रावधानों को प्रभावी बनाने हेतु वर्ष 2002 में जैविक विविधता अधिनियम अधिनियमित किया गया

पश्चिमी विक्षोभ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली में दिन का तापमान दिसंबर 2022 में पश्चिमी विक्षोभ के कम होने के कारण सामान्य से अधिक था।

सर्दियों में, पहाड़ी क्षेत्रों में बारिश और बर्फ आदि का कारण पश्चिमी विक्षोभ होता है और यह मैदानी इलाकों में अधिक नमी का कारण बनता है। मेघाच्छादन के परिणामस्वरूप रात में न्यूनतम तापमान और दिन के समय अधिक तापमान हो जाता है।

Geography (भूगोल): December 2022 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindiपश्चिमी विक्षोभ

  • परिचय:
    • भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department-IMD) के अनुसार, पश्चिमी विक्षोभ ऐसे तूफान हैं जो कैस्पियन या भूमध्य सागर में उत्पन्न होते हैं तथा उत्तर-पश्चिम भारत में गैर-मानसूनी वर्षा के लिये ज़िम्मेदार होते हैं।
    • इन्हें भूमध्य सागर में उत्पन्न होने वाले एक ‘बहिरूष्ण उष्णकटिबंधीय तूफान’ के रूप में चिह्नित किया जाता है, जो एक निम्न दबाव का क्षेत्र है तथा उत्तर-पश्चिम भारत में अचानक वर्षा, बर्फबारी एवं कोहरे के लिये ज़िम्मेदार हैं।
    • यह विक्षोभ ‘पश्चिम’ से ‘पूर्व’ दिशा की ओर आता है।
    • यह विक्षोभ अत्यधिक ऊँचाई पर पूर्व की ओर चलने वाली वेस्टरली जेट धाराओं’ (Westerly Jet Streams) के साथ यात्रा करते हैं।
    • वे ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से होते हुए भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश करती है।
    • विक्षोभ का तात्पर्य ‘विक्षुब्ध’ क्षेत्र या कम हवा वाले दबाव क्षेत्र से है।
    • किसी क्षेत्र की वायु अपने दाब को सामान्य करने का प्रयास करती है, जिसके कारण प्रकृति में संतुलन विद्यमान रहता है।
  • भारत में प्रभाव:
    • पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances- WD) उत्तरी भारत में वर्षा, हिमपात और कोहरे से संबंधित है। यह पाकिस्तान और उत्तरी भारत में वर्षा एवं हिमपात के साथ आता है।
    • WD भूमध्य सागर और/या अटलांटिक महासागर से नमी प्राप्त करता है।
    • WD के कारण शीत ऋतु में और मानसून पूर्व वर्षा होती है और उत्तरी उपमहाद्वीप में रबी फसल के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • WD हमेशा अच्छे मौसम के अग्रदूत नहीं होते हैं। कभी-कभी WDs बाढ़, फ्लैश फ्लड, भूस्खलन, धूल भरी आँधी, ओलावृष्टि और शीत लहर जैसी चरम मौसमी घटनाओं का कारण बन सकते हैं जो लोगों की जान ले लेते हैं, बुनियादी ढाँचे को नष्ट कर देते हैं और आजीविका को प्रभावित करते हैं।
    • अप्रैल और मई के गर्मियों के महीनों के दौरान, WD पूरे उत्तर भारत में प्रवाहित होते हैं एवं समय-समय पर उत्तर-पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों में मानसून की सक्रियता में मदद करते हैं।
    • मानसून के मौसम के दौरान, पश्चिमी विक्षोभ कभी-कभी घने बादल और भारी वर्षा का कारण बन सकता है।
    • कमज़ोर पश्चिमी विक्षोभ पूरे उत्तर भारत में फसल उपज की विफलता और जल की समस्याओं से संबंधित है।
    • मज़बूत पश्चिमी विक्षोभ निवासियों, किसानों और सरकारों को जल की कमी से जुड़ी कई समस्याओं से बचने में मदद कर सकता है।

Geography (भूगोल): December 2022 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindiपश्चिमी विक्षोभ के हाल के उदाहरण/प्रभाव:

  • जनवरी और फरवरी 2022 में अत्यधिक बारिश दर्ज की गई थी। इसके विपरीत, नवंबर 2021 और मार्च 2022 में कोई बारिश नहीं हुई थी जबकि मार्च 2022 के अंत में ग्रीष्म लहरों के आगमन के साथ ही असामान्य रूप से गर्मी की शुरुआत हो गई थी।
  • पश्चिमी विक्षोभ की विविध घटनाओं के कारण बादल छाए रहने से फरवरी 2022 में तापमान कम रहा है, जो कि 19 वर्षों में दर्ज सबसे कम तापमान था।
  • मार्च 2022 में सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ उत्तर पश्चिम भारत से विस्थापित हो गया तथा मेघाच्छादन और वर्षा न होने के कारण तापमान अधिक बना रहा।
  • पश्चिमी विक्षोभ की आवृत्ति में तो वृद्धि हुई है लेकिन उनके कारण होने वाली वर्षा में नहीं, संभवतः इसके लिये आंशिक रूप से ग्लोबल वार्मिंग को उत्तरदायी माना जा सकता है।
  • वर्ष 2021 में पश्चिमी विक्षोभ के कारण दिसंबर के पहले सप्ताह में दिल्ली में बारिश हुई थी।
    • हालाँकि 15 दिसंबर, 2022 तक अधिकतम तापमान में 24 डिग्री सेल्सियस तक की गिरावट के साथ दिल्ली में अधिक ठंड पड़ने की संभावना है।

मैंडस चक्रवात

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यह बताया गया है कि मैंडस चक्रवात तमिलनाडु और पुद्दुचेरी के तटों को 8 दिसंबर, 2022 से प्रभावित कर सकता है।

मैंडस चक्रवात

  • मैंडस धीमी गति से चलने वाला चक्रवात है जो अक्सर बहुत अधिक नमी को अवशोषित करता है, भारी मात्रा में वर्षा करता है एवं यह वायु की गति से शक्ति प्राप्त करता है।
  • इसका नामकरण संयुक्त अरब अमीरात द्वारा किया गया है।
  • भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department’s- IMD) ने भविष्यवाणी की है कि तूफान प्रणाली पश्चिम और उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर आगे बढ़ सकती है एवं 6 दिसंबर की शाम तक एक गर्त में बदल सकती है।
  • यह बाद में बंगाल की खाड़ी के दक्षिण-पश्चिम में चक्रवात के रूप में अधिक मज़बूत हो सकता है और 8 दिसंबर की सुबह तक तमिलनाडु तथा पुद्दुचेरी के तटों की ओर बढ़ सकता है।

चक्रवात

  • चक्रवात एक कम दबाव वाला क्षेत्र होता है जिसके आस-पास तेज़ी से इसके केंद्र की ओर वायु परिसंचरण होते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में हवा की दिशा वामावर्त तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणावर्त होती है।
  • आमतौर पर चक्रवात विनाशकारी तूफान और खराब मौसम के साथ उत्पन्न होते हैं।
  • साइक्लोन शब्द ग्रीक शब्द साइक्लोस से लिया गया है जिसका अर्थ है साँप की कुंडलियांँ (Coils of a Snake)। यह शब्द हेनरी पेडिंगटन (Henry Peddington) द्वारा दिया गया था क्योंकि बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में उठने वाले उष्णकटिबंधीय तूफान समुद्र के कुंडलित नागों की तरह दिखाई देते हैं।
  • चक्रवात दो प्रकार के होते हैं:
    • उष्णकटिबंधीय चक्रवात
    • अतिरिक्त उष्णकटिबंधीय चक्रवात: इन्हें शीतोष्ण चक्रवात या मध्य अक्षांश चक्रवात या वताग्री चक्रवात या लहर चक्रवात भी कहा जाता है।
    • विश्व मौसम विज्ञान संगठन 'उष्णकटिबंधीय चक्रवात' शब्द का उपयोग मौसम प्रणालियों को कवर करने के लिये करता है जिसमें पवनें 'गैल फोर्स' (न्यूनतम 63 किमी प्रति घंटे) से अधिक होती हैं।
    • उष्णकटिबंधीय चक्रवात मकर और कर्क रेखा के बीच के क्षेत्र में उत्पन्न होते हैं।
    • यह उष्णकटिबंधीय या उपोष्णकटिबंधीय जल पर विकसित होने वाली वृहत मौसम प्रणाली हैं, जहाँ वे सतही हवा परिसंचरण में व्यवस्थित हो जाते हैं।
    • अतिरिक्त उष्णकटिबंधीय चक्रवात समशीतोष्ण क्षेत्रों और उच्च अक्षांश क्षेत्रों में उत्पन्न होते हैं, हालाँकि वे ध्रुवीय क्षेत्रों में उत्पत्ति के कारण जाने जाते हैं।

चक्रवात का नामकरण

  • विश्व भर में हर महासागर बेसिन में बनने वाले चक्रवातों को उष्णकटिबंधीय चक्रवात चेतावनी केंद्र (Tropical Cyclone Warning Centres TCWCs) और क्षेत्रीय विशेष मौसम विज्ञान केंद्र (regional specialised meteorological centres – RSMC) द्वारा नामित किया जाता है। भारत मौसम विज्ञान विभाग और पाँच TCWCs सहित दुनिया में छह क्षेत्रीय विशेष मौसम विज्ञान केंद्र हैं।
  • वर्ष 2000 में संगठित हिंद महासागर क्षेत्र के आठ देश (बांग्लादेश, भारत, मालदीव, म्याँमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका तथा थाईलैंड) एक साथ मिलकर आने वाले चक्रवातों के नाम तय करते हैं। जैसे ही चक्रवात इन आठों देशों के किसी भी हिस्से में पहुँचता है, सूची से अगला या दूसरा सुलभ नाम इस चक्रवात का रख दिया जाता है।
  • WMO/ESCAP का विस्तार करते हुए वर्ष 2018 में पाँच और देशों, ईरान, कतर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और यमन को शामिल किया गया।

तटीय लाल रेत के टीले

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भूवैज्ञानिकों ने आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम के तटीय लाल रेत के टीलों के स्थल की रक्षा करने का सुझाव दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • तटीय लाल रेत के टीलों को 'एरा मैटी डिब्बालु' के नाम से भी जाना जाता है। यह विशाखापत्तनम के कई स्थलों में से एक है, जिसका भूगर्भीय महत्त्व है।
    • यह स्थल समुद्री तट के किनारे स्थित है और विशाखापत्तनम शहर से लगभग 20 किमी उत्तर-पूर्व एवं भीमुनिपट्टनम से लगभग 4 किमी दक्षिण-पश्चिम में है।
    • इस स्थल को वर्ष 2014 में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India- GSI) द्वारा भू-विरासत स्थल के रूप में घोषित किया गया था और आंध्र प्रदेश सरकार ने इसे वर्ष 2016 में 'संरक्षित स्थलों' की श्रेणी में सूचीबद्ध किया है।
  • वितरण:
    • इस तरह के बालू टिब्बे दुर्लभ हैं और दक्षिण एशिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में केवल तीन स्थानों जैसे तमिलनाडु में थेरी सैंड्स, विशाखापत्तनम में एर्रा मट्टी दिब्बालू और श्रीलंका में एक साइट से रिपोर्ट किये गए हैं।
    • ये कई वैज्ञानिक कारणों से भूमध्यरेखीय या समशीतोष्ण क्षेत्रों में नहीं पाए जाते हैं।

लाल रेत के टीलों की विशिष्टता

  • निरंतर विकास:
    • लाल रेत के टीले पृथ्वी के विकास की निरंतरता का एक हिस्सा हैं और उत्तर भूगर्भीय अवधि के क्वार्टनरी युग  का प्रतिनिधित्व करते हैं।
    • क्वार्टनरी युग (चतुर्थ कल्प) भूगर्भिक समय पैमाने पर एक अवधि है जो मुख्य रूप से मानवता और जलवायु परिवर्तन के विस्तार के लिये जानी जाती है। यह अवधि लगभग 2.6 मिलियन वर्ष पूर्व से आज तक जारी है।
  • विभिन्न भू-आकृतिक विशेषताएँ:
    • 30 मीटर तक की ऊँचाई के साथ ये विभिन्न भू-आकृतियों और विशेषताओं के साथ बैडलैंड स्थलाकृति प्रदर्शित करते हैं, जिसमें गली, बालू टिब्बे, रोधिकाएँ, समुद्री रिज़,  युग्मित वेदिकाएँ, गहरी घाटियाँ,  धारा प्रतिच्छेदी वेदिकाएँ, निक पॉइंट (knick point) और झरने शामिल हैं।
    • बैडलैंड स्थलाकृति एक शुष्क इलाके से संबंधित है जहाँ नरम तलछटी चट्टानें और मृदा से भरपूर और पानी से बड़े पैमाने पर लुप्त हो गई है।
  • भू-रासायनिक रूप से अपरिवर्तित:
    • हल्के-पीले रेत के भंडार जिनके बारे में अनुमान है कि ये लगभग 3,000 वर्ष पहले निक्षेपित हो चुके है, अब यह लाल रंग प्राप्त नहीं कर सकती क्योंकि तलछट भू-रासायनिक रूप से अपरिवर्तित होते हैं।
    • ये तलछट अजीवाश्म (जीवाश्म युक्त नहीं) हैं और खोंडालाइट बेसमेंट पर जमा हैं।
    • खोंडालाइट क्षेत्रीय चट्टान है जिसमें उच्च श्रेणी का कायांतरण और दानेदार चट्टान का निर्माण होता है। इसका नाम ओडिशा की खोंड जनजाति के नाम पर रखा गया था।
    • टीलों में शीर्ष पर हल्के-पीले रेत के टीले होते हैं, जिसके तल पर पीेली रेत के साथ एक लाल-भूरे रंग की कंक्रीट होती है।
    • सबसे नीचे की पीली परत फ्लुवियल युक्त होती है, जबकि अन्य तीन इकाइयाँ मूल रूप से एओलियन हैं।

तलछट सुरक्षा का महत्त्व

  • इन तलछटों की रक्षा करना महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इसका अध्ययन जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझने में मदद कर सकता है, क्योंकि एर्रा मट्टी दिब्बालू ने ग्लेशियल और गर्म अवधि का अनुभव किया है।
  • यह स्थल लगभग 18,500 से 20,000 वर्ष पुराना है और इसका संबंध अंतिम हिमयुग से हो सकता है।
  • यह एक आकर्षक वैज्ञानिक विकास साइट है जो दर्शाती है कि जलवायु परिवर्तन का तत्काल प्रभाव किस प्रकार पड़ रहा है।
  • लगभग 18,500 वर्ष पूर्व, बंगाल की खाड़ी वर्तमान समुद्र तट से कम से कम 5 किमी. दूर थी। तब से लगभग 3,000 वर्ष पूर्व तक इसमें निरन्तर परिवर्तन होते रहे थे और यह अभी भी जारी हैं।
  • इस साइट का पुरातात्विक महत्त्व भी है, क्योंकि कलाकृतियों के अध्ययन से उच्च पुरापाषाण काल का संकेत मिलता है और क्रॉस डेटिंग से लेट प्लेइस्टोसिन युग(20,000 ईसा पूर्व) के साक्ष्य मिलते हैं।
  • प्रागैतिहासिक काल के लोग इस स्थान पर रहते थे क्योंकि इस क्षेत्र में कई स्थानों पर खुदाई से तीन विशिष्ट कालों के पत्थर के औजार और नवपाषाण काल के मिट्टी के बर्तनों का भी पता चला है।
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