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Geography (भूगोल): October 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

हिमनद झील के फटने से सिक्किम में बाढ़

चर्चा में क्यों?

सिक्किम ने हाल ही में हिमनद झील के फटने से बाढ़ (Glacial Lake Outburst Flood -GLOF)  का अनुभव किया। राज्य के उत्तर-पश्चिम में 17,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित दक्षिण लोनाक झील, एक हिमनदी झील है, जो लगातार बारिश के परिणामस्वरूप अनियंत्रित होकर बाढ़ का करण बनी।

  • नतीजतन, जल को निचले इलाकों में छोड़ दिया गया, जिससे तीस्ता नदी में बाढ़ आ गई, और सिक्किम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SSDMA) की रिपोर्ट के अनुसार चार ज़िले: मंगन, गंगटोक, पाकयोंग और नामची प्रभावित हुए हैं।
  • इस बाढ़ के कारण सिक्किम में चुंगथांग हाइड्रो-बांध (तीस्ता नदी पर) भी टूट गया, जिससे समग्र स्थिति प्रभावित हुई।

Geography (भूगोल): October 2023 UPSC Current Affairs | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

ग्लेशियल झील विस्फोट बाढ़

  • परिचय: 
    • GLOF (ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड) एक अचानक तथा संभावित रूप से विनाशकारी बाढ़ है जो ग्लेशियर अथवा मोरेन (बर्फ, रेत, कंकड़ और मलबे का प्राकृतिक संचय) के पीछे एकत्रित जल के तेज़ी से छोड़े जाने के कारण आती है।
    • मज़बूत मिट्टी के बांधों के विपरीत, ये मोराइन बांध अचानक विफल हो सकते हैं, जिससे अल्पकाल से लेकर कई दिनों तक बड़ी मात्रा में जल छोड़ा जा सकता है, जिससे निचले क्षेत्रों में विनाशकारी बाढ़ आ सकती है।
    • हिमालय क्षेत्र, अपने ऊँचे पहाड़ों के साथ, विशेष रूप से GLOFs के प्रति संवेदनशील है।
    • बढ़ते वैश्विक तापमान के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन ने सिक्किम हिमालय में ग्लेशियरों के पिघलने की प्रक्रिया को तेज़ कर दिया है।
    • इस क्षेत्र में अब 300 से अधिक हिमनद झीलें हैं, जिनमें से दस को बाढ़ के प्रति संवेदनशील माना गया है।
    • GLOF कई कारणों से शुरू हो सकता है, जिनमें भूकंप, अत्यधिक भारी वर्षा और बर्फीले हिमस्खलन शामिल हैं।
  • प्रभाव: 
    • GLOF के परिणामस्वरूप विनाशकारी डाउनस्ट्रीम बाढ़ आ सकती है। इनमें कम समय में लाखों घन मीटर पानी छोड़ने की क्षमता है।
    • GLOF के दौरान अधिकतम प्रवाह 15,000 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड (राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार) तक दर्ज किया गया है।

दक्षिण लोनाक झील GLOFs के लिये संवेदनशील

  • उत्तरी सिक्किम में दक्षिण ल्होनक झील समुद्र तल से लगभग 5,200 मीटर ऊपर स्थित है।
    • वैज्ञानिकों ने पहले चेतावनी दी थी कि झील का विस्तार वर्षों से हो रहा है, संभवतः इसके सिर पर बर्फ के पिघलने से।
    • विशेष रूप से वर्ष 2011 में 6.9 तीव्रता वाले भूकंप सहित भूकंपीय गतिविधियों ने क्षेत्र में GLOF जोखिम को बढ़ा दिया।
  • वर्ष 2016 में सिक्किम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और अन्य हितधारकों ने दक्षिण ल्होनक झील से अतिरिक्त जल निष्काषित करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण योजना शुरू की।
    • दूरदर्शी नवप्रवर्तक सोनम वांगचुक ने इस प्रयास का नेतृत्व किया और झील से जल निष्काषित करने के लिये उच्च घनत्व वाले पॉलीथीन (HDPE) पाइप का उपयोग किया।
    • इस पहल ने सफलतापूर्वक झील के पानी की मात्रा को लगभग 50% कम कर दिया, जिससे जोखिम कुछ हद तक कम हो गया।
  • हालाँकि माना जाता है कि हालिया त्रासदी झील के आसपास के हिमाच्छादित क्षेत्र से उत्पन्न हिमस्खलन के कारण हुई थी।

GLOFs के जोखिम को कम करने के लिये आवश्यक कदम

  • हिमनद झील की निगरानी: संवेदनशील क्षेत्रों में हिमनद झीलों की वृद्धि और स्थिरता पर नज़र रखने के लिये एक व्यापक निगरानी प्रणाली की स्थापना करना।
    • उपग्रह इमेजरी, रिमोट सेंसिंग तकनीक और ड्रोन के माध्यम से हिमनद झीलों एवं उनके संबंधित बाँधों में परिवर्तन का नियमित आकलन किया जा सकता है।
  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ: प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों से GLOF की स्थिति में डाउनस्ट्रीम समुदायों को समय पर अलर्ट दिया जा सकता है।
    • इसके अलावा इसे बाढ़ सुरक्षा उपायों के साथ पूरक करने की आवश्यकता है, जैसे कि बाढ़ के जल को आबादी वाले क्षेत्रों से दूर प्रवाहित करने के लिये सुरक्षात्मक अवरोधों, तटबंधों या डायवर्ज़न चैनलों का निर्माण करना।
  • लोक जागरूकता और शिक्षा: GLOF से संबंधित NDMA के दिशानिर्देशों के अनुसार, GLOF के जोखिमों के बारे में लोक जागरूकता बढ़ाने एवं निचले प्रवाह क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों को निकासी प्रक्रियाओं एवं सुरक्षा उपायों के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है।
    • यह सुनिश्चित करने के लिये अभ्यास और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना आवश्यक है कि निवासियों को पता चल सके कि GLOF के मामले में कैसे प्रतिक्रिया देनी है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: भारत हिमालय क्षेत्र में पड़ोसी देशों के साथ सहयोग कर सकता है, क्योंकि GLOFs का सीमा पार प्रभाव हो सकता है।
    • पड़ोसी देशों के साथ GLOFs जोखिम में कमी एवं प्रबंधन के लिये जानकारी और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने से जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।

पूर्वी अरब सागर में चक्रवातों की आवृत्ति में वृद्धि

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नेचर जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पूर्वी अरब सागर में लगातार उष्णकटिबंधीय चक्रवातों (TC) के कारण जलवायु परिवर्तन से संबंधित चिंताओं पर प्रकाश डाला गया है।

  • यह अध्ययन कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (CUSA) में एडवांस्ड सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रडार रिसर्च (ACARR) द्वारा "फिशर के साथ पूर्वानुमान परियोजना" का हिस्सा है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • चक्रवातों की बढ़ती आवृत्ति और गंभीरता:
    • समुद्र और वायुमंडल के गर्म होने के पैटर्न में बदलाव के कारण भारत के पश्चिमी तट के निकट पूर्वी अरब सागर में नियमित रूप से गंभीर उष्णकटिबंधीय चक्रवात की घटनाएँ हो रही हैं।
    • आमतौर पर अरब सागर में उष्णकटिबंधीय चक्रवात मार्च और जून के बीच दक्षिण-पश्चिमी मानसून की शुरुआत के साथ-साथ मानसून सीज़न के बाद अक्तूबर एवं दिसंबर के बीच आते हैं।
    • उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के वार्षिक वैश्विक औसत का लगभग 2% अरब सागर में उत्पन्न होता है, लेकिन इसके तटीय क्षेत्र घनी आबादी वाले हैं, इस कारण यहाँ उत्पन्न होने चक्रवात इस आबादी के लिये काफी खतरा पैदा करते हैं।
  • हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD) का प्रभाव:
    • IOD के पॉज़िटिव फेज़ के दौरान समुद्र का एक हिस्सा दूसरे की तुलना में अधिक गर्म हो जाता है, जिससे समुद्र की सतह के तापमान में वृद्धि होती है और पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में अधिक वर्षा होती है।
    • IOD अल नीनो घटना के समान होता है, इसे कभी-कभी भारतीय नीनो भी कहा जाता है, यह पूर्व में इंडोनेशियाई और मलेशियाई तटरेखा तथा पश्चिम में सोमालिया के पास अफ्रीकी तटरेखा के बीच हिंद महासागर के अपेक्षाकृत छोटे क्षेत्र में घटित होती है।
  • मानवजनित प्रभाव:
    • मानसून पश्चात्  मौसम के दौरान अरब सागर के ऊपर अत्यधिक गंभीर चक्रवाती तूफानों की आवृत्ति में हालिया वृद्धि का प्रमुख कारण प्राकृतिक परिवर्तनशीलता के बजाय मानवीय गतिविधियाँ हैं।
    • मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन अरब सागर में चक्रवातों की तीव्रता और उच्च आवृत्ति में योगदान देने वाले प्रमुख कारक हैं।
  • पश्चिमी भारतीय तटरेखा पर प्रभाव: 
    • चक्रवात की तीव्रता तथा आवृत्ति में वृद्धि भारत के पश्चिमी तट के साथ गुजरात से तिरुवनंतपुरम तक घनी आबादी वाले तटीय क्षेत्रों के लिये गंभीर खतरा बन सकती है, जिसमें तीव्र हवाओं, तूफान, भारी वर्षा तथा अन्य संबंधित खतरों सहित गंभीर जोखिम का सामना करना पड़ता है।
  • तटीय समुदायों से संबंधित चिंताएँ:
    • बदलते चक्रवात पैटर्न से स्वदेशी तटीय समुदायों तथा मछुआरों के जीवन एवं उनकी आजीविका पर गंभीर प्रभाव पड़ने के आसार हैं, जिसके समाधान के लिये अध्ययन एवं अनुकूलन रणनीतियों की आवश्यकता है।
  • सुझाव:
    • इस अध्ययन में चक्रवात के बढ़ते जोखिमों को ध्यान में रखते हुए विकास रणनीतियों में बदलाव का आह्वान किया गया है तथा तूफान की चेतावनी एवं स्थानीय मौसम सेवाओं से संबंधित अद्यतन नीतियों व प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।

बाढ़ प्रवण क्षेत्रों में मानव बस्तियों में वृद्ध

संदर्भ 

विश्व बैंक द्वारा हाल ही में किए गए एक शोध में बाढ़ प्रवण क्षेत्रों में शहरों के तेज और निरंतर विकास पर चिंता व्यक्त की गई है।

विश्व बैंक के अध्ययन के नतीजे

  • विश्व बैंक के हालिया अध्ययन से एक चिंताजनक प्रवृत्ति का पता चला है कि भारत के बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में शहरी क्षेत्र तेजी से विकसित हो रहे हैं और इसकी गति 1985 के बाद से दोगुनी हो गयी है।, इससे बाढ़ की भयावह घटनाएं बढ़ने के साथ जीवन और आजीविका का भारी नुकसान होता है।
  • विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट मे बताया है कि लीबिया में, जिसे सितंबर 2023 में गंभीर बाढ़ आयी थी जिसका कारण वहाँ बाढ़ प्रवण क्षेत्रों में शहरी बस्तियों में 83% की वृद्धि का होना था। 
  • इसी तरह, पाकिस्तान को 2022 और 2023 दोनों में विनाशकारी बाढ़ का सामना करना पड़ा, वहाँ भी बाढ संवेदनशील क्षेत्रों में बस्तियों में 89% की वृद्धि देखी गई थी।
  • अध्ययन में इस बात पर जोर दिया गया है कि भारत सहित मध्यम आय वाले देशों में बाढ़ संभावित क्षेत्रों के भीतर शहरी बस्तियों में तीव्र वृद्धि देखी जा रही है। शहरी नियोजन रणनीतियों में बाढ से संबंधित जोखिमों को एकीकृत करने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। 
  • इसके अतिरिक्त, कम आय वाले परिवारों के आवासों की बाढ़ और तूफान के प्रति लचीलापन बढ़ाने और जल प्रबंधन उपायों को लागू करने की तत्काल आवश्यकता है।

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बाढ़ क्षेत्रों में मानव बस्तियों के कारक

  • ग्रामीण से शहरी प्रवासः जैसे-जैसे देश आर्थिक विकास करता हैं, जलमार्गों के पास शहरीकरण तेज होता जाता है, इससे बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में बस्तियां बनती हैं। उदाहरण के लिए, तंजानिया में दार एस सलाम एक मछली पकड़ने वाला गाँव थोड़े ही समय में सात मिलियन से अधिक निवासियों वाले शहर में बदल गया।
  • आर्थिक बाधाएं: महंगे आवास के कारण कम आय वाली आबादी अक्सर बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में रहने के लिए मजबूर होती है।
  • नियामक निगरानी की कमीः भूमि-उपयोग योजना और क्षेत्र-निर्धारण नियमों के अपर्याप्त प्रवर्तन के परिणामस्वरूप बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में अनियंत्रित बस्तियाँ बनती हैं, जिनमें आवश्यक सुरक्षा उपायों की कमी होती है।
  • सांस्कृतिक और ऐतिहासिक प्रभावः बाढ़-प्रवण क्षेत्रों के साथ गहरे सांस्कृतिक या ऐतिहासिक संबंध इन क्षेत्रों में बसने या रहने के निर्णयों को प्रभावित करते हैं।
  • पर्यटन और मनोरंजनः बाढ़ की चपेट में आने के बावजूद, तटीय और नदी के किनारे के क्षेत्र पर्यटकों और मनोरंजन के प्रति उत्साही लोगों को आकर्षित करते हैं, जिससे वहाँ मानव बस्तियाँ बनती हैं।

अनुशंसित रणनीतियाँ

  • सख्त भूमि उपयोग नीतियों को लागू करनाः Implement regulations that prohibit or limit new constructions in high-risk flood zones, designating them as 'no-build' areas.
  • बुनियादी ढांचे में निवेशः लचीला बुनियादी ढांचे के लिए संसाधनों का आवंटन करना, जिससे बाढ़ सुरक्षा, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और सटीक बाढ क्षेत्र मानचित्रण का निर्माण किया जा सके । जल अवशोषण और बाढ लचीलापन बढाने के लिए पारगम्य सतहों, नहरों, तालाबों और आर्द्रभूमि बहाली को एकीकृत करते हुए 'स्पंज सिटीज' अवधारणा जैसे अभिनव समाधानों को अपनाया जाना चाहिए।
  • "स्पंज शहर" जल अवशोषण, जल निकासी और बाढ लचीलापन बढाने के लिए प्रकृति-आधारित तरीकों के आधार पर शहर का निर्माण करना है।
  • सरकारी सहायता और स्थानांतरण सहायता बाढ प्रवण क्षेत्र के निवासियों को बाढ सुरक्षित क्षेत्रों मे स्थानांतरित करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जा सकता है । इसके अलावा आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणालियों और तैयारी उपायों को मजबूत करना आवश्यक है ।
  • जन जागरूकता को बढावा देनाः बाढ-प्रवण क्षेत्रों में रहने से जुड़े जोखिमों के बारे में जनता को शिक्षित करने के लिए अभियान शुरू किया जाना चाहिए । बाढ की तैयारियों पर ध्यान केंद्रित करने वाले समुदाय आधारित शिक्षा कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करना चाहिए ।

उल्लेखनीय पहल

  • स्टॉर्मवाटर डिस्पोजल सिस्टम (ब्रिम्स्टौड-मुंबई) 2005 की बाढ के बाद, मुंबई ने शहर की पुरानी स्टॉर्मवाटर ड्रेनेज सिस्टम को आधुनिक बनाने के लिए बृहन्मुंबई स्टॉर्म वाटर डिस्पोजल सिस्टम (ब्रिम्स्टौड) की शुरुआत की।
  • जल-संवेदनशील शहरी डिजाइन (डब्ल्यू. एस. यू. डी.-ऑस्ट्रेलिया) ऑस्ट्रेलिया में जल- संवेदनशील शहरी डिजाइन शहरी पानी के अपवाह और अपशिष्ट जल को बहाने के बजाय मूल्यवान संसाधनों के रूप में इस्तेमाल करता है।
  • बायोस्वेल्स या 'रेन गार्डन' (न्यूयॉर्क) न्यूयॉर्क में, बायोस्वेल्स, जिसे 'रेन गार्डन' के रूप में भी जाना जाता है, प्रदूषित पानी के बहाव को रोकने के लिए डिज़ाइन की गई प्रणाली हैं, जिससे पनि जमीन में रिस जाता है और प्राकृतिक रूप से दूषित पदार्थों को फ़िल्टर करता है।

निष्कर्ष

शहरी क्षेत्रों के भीतर सार्वजनिक खुले स्थानों को तूफान प्रबंधन बुनियादी ढांचे के रूप में शामिल करना महत्वपूर्ण है। यह एकीकरण शहरों को जल-संवेदनशील वातावरण में बदलने में मदद कर सकता है। तूफानी जल के प्रबंधन के लिए इन स्थानों को रणनीतिक रूप से डिजाइन करके, शहर बाढ के प्रति लचीलेपन को बढा सकते हैं, पर्यावरणीय जोखिमों को कम कर सकते हैं और अधिक टिकाऊ शहरी परिदृश्य बना सकते हैं जो निवासियों और पारिस्थितिकी तंत्र दोनों को लाभान्वित करेंगे।

भारतीय हिमालयी क्षेत्र की भंगुरता

  • यह क्षेत्र अमुदरिया, सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र इत्यादि जैसे दस विशाल एशियाई नदी तंत्रों का उद्गम स्थल है जिससे यहाँ जल की उपलब्धता सुनिश्चित होती है। यह महत्वपूर्ण पारितंत्रीय सेवाओं को बनाए रखता है तथा पर्वतीय एवं पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करने वाले 240 मिलियन लोगों हेतु आजीविका के आधार के रूप में कार्य करता है। यह ग्रीष्मकाल में एक ऊष्मा स्त्रोत के रूप में तथा शीतकाल में एक हीट सिंक के रूप में भी कार्य करता है। इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में तिब्बत पठार भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून को भी प्रभावित करता है।
  • इस क्षेत्र में बांग्लादेश, भूटान और भारत जैसे देशों में वाणिज्यिक रूप से व्यवहार्य जलविद्युत संभावनाएं विद्यमान हैं जिनका पूर्ण दोहन किया जाना अभी शेष है।
  • यह क्षेत्र बाघों, हाथियों, कस्तूरी मृगों, लाल पांडा, हिम तेंदुओं, रोडेंड्रान, आर्किड, दुर्लभ औषधीय पादपों आदि जैसे वनस्पतिजात एवं प्राणिजात के एक विविध समूह हेतु पर्यावास भी उपलब्ध कराता है।
  • यहाँ विश्व के सर्वाधिक उच्च पर्वत शिखर अवस्थित हैं, यथा- माउंट एवरेस्ट, K2, कंचनजंघा, मकालू आदि। ये पर्वत शिखर साहसिक (एडवेंचर) पर्यटन हेतु अवसर प्रदान करते हैं।

हालांकि, हिन्दुकुश-हिमालयी क्षेत्र नवीन एवं वृद्धिशील पर्वतों से युक्त भौगोलिक रूप से भंगुर (fragile) अवस्था में है, जिसके कारण यह अपरदन एवं भू-स्खलन के प्रति सुभेद्य है। यह क्षेत्र जलवायु परिवर्तन, आपदा, अवसंरचना विकास, भूमि-उपयोग परिवर्तन, नगरीकरण इत्यादि जैसे बलों द्वारा संचालित तीव्रगामी परिवर्तनों से गुजर रहा है। इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट द्वारा जारी नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार यदि वैश्विक तापन को 1.5°C तक सीमित किया जाता है तो भी हिन्दुकुश-हिमालयी क्षेत्र में तापन 0.3°C तक उच्च रहेगा।

इस क्षेत्र में हिमनदों के अत्यधिक मात्रा में पिघलने के निम्नलिखित परिणाम दृष्टिगत होंगे

  • हिम और हिमनदों के तीव्रता से पिघलने के कारण हिमनदीय झीलों में जल की अधिकता के परिणामस्वरूप बाढ़ जैसी घटनाओं में वृद्धि होगी जिससे व्यापक जनहानि हो सकती है तथा स्थानीय अवसंरचना को अतिशय क्षति पहुंच सकती है।
  • चूँकि, हिम की परतें स्वयं द्वारा आवृत्त भूभागों पर अत्यधिक भार डालती हैं इसलिए हिमनदों का पिघलना समस्थितिक प्रतिक्षेप (isostatic rebound) का कारण बन सकता है जिसका अर्थ है- भार के समाप्त होने के कारण भूमि का उर्ध्वगामी उभार।
  • नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार आकार में घटते हिमनदों जैसे कारकों के कारण भारतीय हिमालय में 30% जल स्त्रोत सूख गए हैं, जिससे विद्यमान जल स्त्रोतों पर अतिरिक्त दबाव आरोपित होगा।
  • यह क्षेत्र भौगौलिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारतीय मानसून प्रणाली को प्रभावित करता है। मानसून प्रतिरूपों में परिवर्तन कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षण का कारण बन सकता है, जिससे बाढ़, भू-स्खलन और मृदा अपरदन जैसी घटनाओं में वृद्धि होगी।
  • इस क्षेत्र का 70-80% तक मूल पर्यावास नष्ट हो चुका है तथा वर्ष 2100 तक इसमें 80-87% तक वृद्धि होने का अनुमान लगाया गया है, जिसके परिणामस्वरूप जैव-विविधता की गंभीर क्षति होगी।
  • वर्द्धित धारा प्रवाह के कारण समुद्र तल में भी वृद्धि होगी जिसके गंभीर परिणाम होंगे।

हिन्दुकुश-हिमालयी क्षेत्र जलवायु परिवर्तन और अस्थिरता के प्रति अतिसंवेदनशील है। यदि वैश्विक तापमान में वृद्धि 1.5°C तक सीमित भी रहती है तो वर्ष 2100 तक क्षेत्र में 35% से अधिक हिमनद लुप्त हो जाएंगे। इसलिए इस क्षेत्र में हिमनदों के त्वरित विगलन को सामूहिक रूप से रोकने हेतु अल्पकालिक और दीर्घकालिक जलवायु-संबंधी समस्याओं के प्रति अनुकूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग की आवश्यकता है। इस प्रकार के सहयोग को पेरिस जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों की पूर्ति के साथ-साथ संचालित किया जाना चाहिए।

अंतर्राष्ट्रीय माइग्रेशन आउटलुक, 2023

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दुनिया भर में प्रवासन प्रवृत्तियों का विश्लेषण करने के लिये आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन पैटर्न पर अंतर्राष्ट्रीय माइग्रेशन आउटलुक, 2023 नामक एक रिपोर्ट जारी की गई।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु

  • OECD देशों में प्रवास के मामले में भारत अग्रणी:
    • वर्ष 2021 और 2022 में भारत चीन को पछाड़कर OECD देशों में प्रवास का प्राथमिक स्रोत बन गया। दोनों वर्षों में 0.41 मिलियन नए प्रवासियों के साथ भारत लगातार सूची में शीर्ष पर रहा, जबकि चीन में 0.23 मिलियन नए प्रवासी रहे, इसके बाद लगभग 200,000 नए प्रवासियों के साथ रोमानिया का स्थान है।
  • जलवायु-परिवर्तन प्रेरित विस्थापन तथा नीति प्रतिक्रियाएँ:
    • यह रिपोर्ट हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन से प्रेरित विस्थापन के लिये नीतिगत प्रतिक्रियाओं की ओर बढ़ते आकर्षण पर प्रकाश डालती है। कुछ OECD देशों के पास इस मुद्दे के समाधान हेतु स्पष्ट नीतियाँ हैं। 
    • विशेष रूप से कोलंबिया ने अप्रैल 2023 में एक अग्रणी विधेयक पर चर्चा शुरू की, जिसका उद्देश्य आवास, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा एवं एक राष्ट्रीय रजिस्टर के लिये व्यापक परिभाषा तथा प्रावधानों के साथ जलवायु-विस्थापित व्यक्तियों को पहचानना और उनको सहायता प्रदान करना है। 
  • रिकॉर्ड संख्या में शरणार्थियों का अंतर्वाह और श्रमिक प्रवासन:
    • रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण OECD क्षेत्र में रिकॉर्ड संख्या में शरणार्थियों का अंतर्वाह हुआ, जिसमें 10 मिलियन से अधिक लोग आंतरिक रूप से विस्थापित होकर शरणार्थी बन गए। भारत, उज़्बेकिस्तान और तुर्की से श्रमिकों के प्रवासन में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जिससे वे यूक्रेन के बाद प्रवासन वाले प्रमुख देश बन गए।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन में हालिया रुझान:
    • सभी शीर्ष चार गंतव्य देशों (संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम तथा स्पेन) में वर्ष-दर-वर्ष 21% से 35% के बीच बड़ी अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन में वृद्धि दर्ज की गई। पाँचवें गंतव्य देश कनाडा में यह वृद्धि दर कम (8%) रही।
    • अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में 1.05 मिलियन नए स्थायी प्रवासी हैं और अन्य चार देशों में प्रवासियों की संख्या 440,000 से 650,000 के बीच है।
  • मुख्य श्रेणियों द्वारा स्थायी-प्रकार का प्रवासन:
    • वर्ष 2022 में पारिवारिक प्रवास नए स्थायी प्रवासियों के लिये प्रवास की सबसे बड़ी और प्राथमिक श्रेणी रही है, जिसने सभी स्थायी प्रवासनों का 40% प्रतिनिधित्व किया है, यह आँकड़ा समय के साथ अपेक्षाकृत स्थिर हिस्सेदारी दर्शाता है।
    • समय के साथ श्रमिक प्रवासन का क्षेत्र बढ़ा है। वर्ष 2022 में श्रमिक प्रवासन स्थायी प्रकार के प्रवासन का 21% था और वर्ष 2019 में यह केवल 16% था।
    • इसके विपरीत मुक्त आवाजाही प्रवासन (EU-EFTA देशों के अंतर्गत और ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूज़ीलैंड के बीच) की हिस्सेदारी में वर्ष 2020 के बाद से कमी आई है। यह वर्ष 2022 में स्थायी प्रकार के प्रवासन का 21% था, जबकि वर्ष 2019 में यह 28% था।

शुक्र का विवर्तनिक इतिहास

चर्चा में क्यों?

एक अध्ययन के अनुसार, शुक्र ग्रह, जिसे अक्सर पृथ्वी की बहन कहा जाता है, पर लगभग 4.5 से 3.5 अरब वर्ष पहले विवर्तनिक गतिविधियाँ घटित होने का अनुमान है।

शुक्र का विवर्तनिक इतिहास

  • प्लेट विवर्तनिकी के बारे में:
    • प्लेट विवर्तनिक, एक मौलिक वैज्ञानिक सिद्धांत है जो बताता है कि कैसे पृथ्वी का सपाट बाह्य आवरण प्लेट विवर्तनिक में विभाजित है जो ग्रह के आवरण पर घूमती है। इस प्रक्रिया ने महासागरों, महाद्वीपों, पर्वतों के निर्माण और पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व में योगदान दिया है।
  • शुक्र, पृथ्वी की "बहन" ग्रह:
    • शुक्र और पृथ्वी आकार, द्रव्यमान, घनत्व और आयतन में समानता रखते हैं, स्थलीय ग्रहों में शुक्र सबसे छोटा ग्रह है।
    • अध्ययन से पता चलता है कि शुक्र और इसके विवर्तनिक इतिहास के दिलचस्प निहितार्थ हैं। इस पर वायुमंडलीय संरचना एवं प्राचीन सूक्ष्मजीव जीवन की संभावना है।
  • निहितार्थ:
    • अध्ययन से पता चलता है कि पृथ्वी के समान प्लेट विवर्तनिक ने शुक्र के कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन समृद्ध वातावरण को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई होगी।
    • लगभग 96.5% कार्बन डाइऑक्साइड और लगभग 3.5% नाइट्रोजन के साथ, शुक्र की वायुमंडलीय संरचना को समझना आवश्यक है।
    • इसके अलावा, विवर्तनिक गतिविधियों के कारण अरबों साल पहले शुक्र ग्रह सूक्ष्मजीवी जीवों का घर रहा होगा।

प्लेट विवर्तनिक के कारण शुक्र ग्रह पर बदलाव

  • शुक्र ग्रह पर प्लेट विवर्तनिक जल की कमी तथा वातावरण के अधिक गर्म एवं सघन  हो जाने के कारण रुक गया होगा, जिससे संभवतः विवर्तनिक गति के लिये आवश्यक तत्त्व समाप्त हो गए होंगे।
  • शोधकर्त्ताओं का प्रस्ताव है कि ग्रह अलग-अलग विवर्तनिक अवस्थाओं के अंदर और बाहर संक्रमण कर सकते हैं, जिससे यह पता चलता है कि ग्रहों की नियत स्थिति बनाए रखने के स्थान पर रहने योग्य स्थिति में उतार-चढ़ाव होने की संभावना है
    • यह अंतर्दृष्टि किसी ग्रह के इतिहास में विवर्तनिक के सही अथवा गलत होने के द्वि-आधारी परिप्रेक्ष्य को चुनौती देती है
  • अपने निष्कर्षों की पुष्टि करने एवं शुक्र के विवर्तनिक इतिहास को गहनता से जानने के लिये शोधकर्त्ता नासा के शुक्र पर आगामी मिशन, जिसे डेविंसी नाम दिया गया है, से अंतर्दृष्टि की आशा कर रहे हैं।
    • यह मिशन महत्त्वपूर्ण संकेत दे सकता है साथ ही शुक्र के भू-वैज्ञानिक अतीत के बारे में हमारे ज्ञान को आगे बढ़ा सकता है।
    • शोधकर्त्ताओं को यह भी पता लगने की आशा है कि शुक्र की प्लेट विवर्तनिक शक्ति धीरे-धीरे क्षीण क्यों होती जा रही है।

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शुक्र ग्रह

  • परिचय: 
    • इसका नाम प्रेम और सौंदर्य की रोमन देवी के नाम पर रखा गया है। यह आकार एवं द्रव्यमान में सूर्य से दूसरा तथा सौर मंडल में छठा ग्रह है
    • यह रात के आकाश में चंद्रमा के बाद दूसरी सबसे चमकीला प्राकृतिक पिंड है, संभवत: यही कारण है कि यह पहला ग्रह था जिसकी गति आकाश में दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व ज्ञात की गई थी
  • विशेषताएँ: 
    • हमारे सौर मंडल के अन्य ग्रहों के विपरीत शुक्र और यूरेनस अपनी धुरी पर दक्षिणावर्त घूमते हैं
    • कार्बन डाइऑक्साइड की उच्च सांद्रता के कारण यह सौर मंडल का सबसे गर्म ग्रह है जो अधिक ग्रीनहाउस प्रभाव उत्पन्न करता है।
    • शुक्र ग्रह पर एक दिन एक वर्ष से भी अधिक लंबा होता है। शुक्र को अपनी धुरी पर एक बार परिक्रमा  करने  में सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने से अधिक समय लगता है
    • इसे एक बार परिक्रमा करने  में 243 पृथ्वी दिवस लगते हैं- जो सौर मंडल में किसी भी ग्रह का सबसे लंबा परिक्रमण है, साथ ही इसे सूर्य की एक परिक्रमा पूर्ण करने में मात्र 224.7 पृथ्वी दिवस ही लगते हैं।
  • पृथ्वी के साथ तुलना:
    • शुक्र को उसके द्रव्यमान, आकार एवं घनत्व में समानता तथा सौर मंडल में पृथ्वी के समान सापेक्ष स्थान के कारण पृथ्वी का जुड़वाँ ग्रह कहा जाता है।
    • चूँकि चंद्रमा के अतिरिक्त शुक्र पृथ्वी का सबसे निकटतम ग्रह है, अन्य कोई भी ग्रह अपने निकटतम बिंदु पर पृथ्वी के सापेक्ष शुक्र से अधिक निकट नहीं है।
    • शुक्र ग्रह पर पृथ्वी की तुलना में 90 गुना अधिक वायुमंडलीय दबाव है।
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FAQs on Geography (भूगोल): October 2023 UPSC Current Affairs - भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

1. हिमनद झील के फटने से सिक्किम में बाढ़ कैसे होती है?
उत्तर: हिमनद झील के फटने से सिक्किम में बाढ़ की वजह समुद्री पानी के अचानक प्रवाह (जो झील में उत्पन्न होता है) के कारण होती है। यह प्रवाह नदी के बांध की अधिकतम क्षमता से अधिक होने के कारण होता है और इससे बाढ़ प्राकृतिक आपदा की तरह विकसित होती है।
2. पूर्वी अरब सागर में चक्रवातों की आवृत्ति में वृद्धि क्यों हो रही है?
उत्तर: पूर्वी अरब सागर में चक्रवातों की आवृत्ति में वृद्धि का कारण जलवायु परिवर्तन हो सकता है। वैज्ञानिक द्वारा प्रस्तावित किए गए तापमान वृद्धि के कारण, समुद्री पानी का तापमान बढ़ता है, जिससे चक्रवातियों का प्रकोप बढ़ता है। यह वृद्धि लंबे समय तक स्थायी हो सकती है और इससे अधिक बाढ़ और तूफानों की संभावना होती है।
3. बाढ़ प्रवण क्षेत्रों में मानव बस्तियों में वृद्धभूगोल क्यों होता है?
उत्तर: बाढ़ प्रवण क्षेत्रों में मानव बस्तियों में वृद्धभूगोल की वजह बाढ़ के पानी की आपूर्ति के कम होने और अधिक पानी के आगमन के कारण होती है। यह प्राकृतिक आपदा की तरह विकसित होता है जब बाढ़ के पानी की बहुतायत में जलस्तर ऊँचा होता है, और इससे मानव बस्तियों पर अस्थायी या स्थायी वातावरणिक प्रभाव पड़ता है।
4. हिमनद झील के फटने से सिक्किम में बाढ़ के कारण क्या हो सकते हैं?
उत्तर: हिमनद झील के फटने से सिक्किम में बाढ़ के कारण निम्नलिखित हो सकते हैं: - बाढ़ के पानी का नगरीय इलाकों में अत्यधिक उच्च जलस्तर के कारण घरों, सड़कों, अस्पतालों, और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंच सकता है। - इससे मानव जीवन को खतरा हो सकता है जब लोग अपने घरों और संपत्ति को छोड़कर बचने की कोशिश करते हैं। - बाढ़ भूमि नक्शा को बदल सकती है और यह भूमि खेती और अन्य व्यवसायों के लिए अस्थायी या स्थायी नुकसान का कारण बन सकती है।
5. पूर्वी अरब सागर में चक्रवातों की आवृत्ति में वृद्धि के कारण कौन-कौन से इलाके प्रभावित हो सकते हैं?
उत्तर: पूर्वी अरब सागर में चक्रवातों की आवृत्ति में वृद्धि के कारण निम्नलिखित इलाके प्रभावित हो सकते हैं: - पूर्वी अरब सागर के समुद्री तटों पर स्थित देशों जैसे कि ओमान, यमन, सौदी अरब, और इमारत के बांगलादेश और भारत के तटों में वृद्धि हो सकती है। - चक्रवातियों का प्रकोप अरब सागर के समुद्री मांसपेशियों, जैवविविधता, और फिशरी के लिए भी असरदार हो सकता है।
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