तेजस जेट और प्रचंड हेलीकॉप्टर
चर्चा में क्यों?हाल ही में रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) ने 97 हल्के लड़ाकू विमान तेजस (मार्क 1A) तथा 156 हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर प्रचंड (LCH) की खरीद के लिये 2.23 लाख करोड़ रुपए मंज़ूर किये हैं, जो अपने सशस्त्र बलों की परिचालन क्षमताओं को बढ़ाने के लिये भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।
- इस खरीद का लक्ष्य अपनी कुल राशि का 98% घरेलू उद्योगों से प्राप्त करना है, जिससे भारतीय रक्षा उद्योग को 'आत्मनिर्भरता' की दिशा में अधिक बढ़ावा मिलेगा।
- DAC ने सरकारी एयरोस्पेस प्रमुख हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा अपने सुखोई-30 लड़ाकू बेड़े के उन्नयन के लिये भारतीय वायु सेना के प्रस्ताव को भी मंज़ूरी दी है।
हल्का लड़ाकू विमान (LCA) क्या है?
परिचय:
- LCA कार्यक्रम भारत सरकार द्वारा वर्ष 1984 में तब शुरू किया गया था जब उसने LCA कार्यक्रम के प्रबंधन हेतु वैमानिकी विकास एजेंसी (Aeronautical Development Agency- ADA) की स्थापना की थी।
विशेषताएँ:
- इसे वायु से वायु, वायु से सतह, सटीक निर्देशित हथियारों की एक शृंखला ले जाने हेतु डिज़ाइन किया गया।
- यह हवा में ही ईंधन भरने की क्षमता से युक्त है।
तेजस के विभिन्न प्रकार:
- तेजस ट्रेनर: यह वायु सेना के पायलटों के प्रशिक्षण के लिये 2-सीटर परिचालन ट्रेनर विमान है।
- LCA नेवी: भारतीय नौसेना के लिये दो और एकल-सीट वाहक को ले जाने में सक्षम विमान।
- LCA तेजस नेवी MK2: यह LCA नेवी वैरिएंट का दूसरा संस्करण है।
- LCA तेजस Mk-1A: यह LCA तेजस Mk1 का एक हाई थ्रस्ट इंजन के साथ अद्यतन रूप है।
हल्का लड़ाकू हेलीकाप्टर क्या है?
परिचय:
- LCH विश्व का एकमात्र लड़ाकू हेलीकॉप्टर है जो 5,000 मीटर की ऊँचाई पर हथियारों और ईंधन के काफी भार के साथ उड़ान भरने एवं उतरने में सक्षम है।
- यह हेलीकॉप्टर रडार संकेतकों (सिग्नेचर) से बचाव के लिये रडार-अवशोषित तकनीकी का उपयोग करता है जिसमें क्रैश-प्रूफ संरचना एवं लैंडिंग गियर मौजूद होता है।
- दबावयुक्त केबिन आणविक, जैविक और रासायनिक (NBC) आकस्मिक/फुटकर व्यय से सुरक्षा प्रदान करता है।
- यह हेलीकॉप्टर काउंटर मेजर डिस्पेंसिंग सिस्टम से लैस है जो इसे दुश्मन के रडार अथवा दुश्मन की मिसाइलों से बचाता है।
- LCH हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा निर्मित दो फ्राँसीसी मूल के शक्ति इंजनों द्वारा संचालित है।
उत्पत्ति (Genesis):
- वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान पहली बार एक स्वदेशी लाइट वेट असाॅल्ट वाले हेलीकॉप्टर की आवश्यकता महसूस हुई जो सभी भारतीय युद्धक्षेत्र परिदृश्यों में सटीक हमले कर सके।
- इसका मतलब एक ऐसे यान से था जो बहुत गर्म रेगिस्तान और ऊँचाई वाले ठंडे प्रदेशों में भी उग्रवाद विरोधी परिदृश्यों से लेकर पूर्ण पैमाने पर युद्ध स्थितियों में काम कर सकता था।
- भारत, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा देश में निर्मित उप 3 टन श्रेणी के फ्राँसीसी मूल के लिगेसी हेलीकॉप्टर, चेतक और चीता का संचालन कर रहा है।
- ये एकल इंजन मशीनें, मुख्य रूप से यूटिलिटी हेलीकॉप्टर थीं। भारतीय सेनाएँ चीता का एक सशस्त्र संस्करण, लांसर भी संचालित करती हैं।
- इसके अलावा भारतीय वायु सेना वर्तमान में रूसी मूल के Mi-17 और इसके वेरिएंट Mi-17 IV और Mi-17 V5 का संचालन करती है, जिनका अधिकतम टेक-ऑफ वज़न 13 टन है, जिनकी वर्ष 2028 से चरणबद्ध तरीके से सेवा अवधि को समाप्त करना है।
- सरकार ने अक्तूबर 2006 में LCH परियोजना को मंज़ूरी दी और HAL को इसे विकसित करने का काम सौंपा गया।
महत्त्व:
- HAL में दुश्मन की वायु रक्षा को नष्ट करने, उग्रवाद विरोधी युद्ध, युद्ध खोज और बचाव, टैंक रोधी एवं काउंटर सतह बल संचालन जैसी लड़ाकू भूमिकाओं की क्षमताएँ हैं।
भारत के पास कितने प्रकार के विमान हैं?
बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमान (MRFA):
- इसे हवा से हवा में मार, हवा से ज़मीन पर हमला और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध जैसे विभिन्न मिशनों के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- भारतीय वायुसेना सोवियत काल के MiG-21 के पुराने बेड़े को बदलने के लिये 114 MRFA की खरीद पर काम कर रही है।
- खरीद मेक इन इंडिया पहल के तहत की जाएगी।
- चयनित विक्रेता को भारत में एक उत्पादन लाइन स्थापित करनी होगी और स्थानीय भागीदारों को प्रौद्योगिकी हस्तांतरित करनी होगी।
मिग- 21:
- सुपरसोनिक जेट लड़ाकू और इंटरसेप्टर विमान वर्ष 1950 के दशक में तत्कालीन USSR द्वारा डिज़ाइन किया गया था।
- इतिहास में व्यापक रूप से इस्तेमाल किये जाने वाले लड़ाकू विमान के 11,000 से अधिक इकाइयों के निर्माण के साथ 60 से अधिक देश इसे संचालित करते हैं।
- IAF ने 1963 में अपना पहला मिग-21 हासिल किया और तब से विमान के 874 प्रकार शामिल किये हैं।
- इसने भारत से जुड़े कई युद्धों और संघर्षों में भूमिका निभाई है। कई दुर्घटनाओं एवं हादसों के कारण इसे "उड़ता हुआ ताबूत (flying coffin)" उपनाम दिया गया है।
- IAF की योजना वर्ष 2024 तक MiG-21 के प्रयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने और इसकी जगह अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों को लाने की है।
उन्नत मध्यम लड़ाकू विमान (AMCA):
- यह भारतीय वायुसेना और भारतीय नौसेना के लिये 5वीं पीढ़ी का स्टील्थ, बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान विकसित करने का एक भारतीय कार्यक्रम है।
- इसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) और अन्य सार्वजनिक एवं निजी भागीदारों के सहयोग से DRDO के ADA द्वारा डिज़ाइन और विकसित किया गया है।
- इसमें स्टील्थ एयरफ्रेम, आंतरिक हथियार बे, उन्नत सेंसर, डेटा फ्यूज़न, सुपरक्रूज़ क्षमता और स्विंग-रोल प्रदर्शन जैसी सुविधाएँ होने की उम्मीद है।
- वर्ष 2008 में सुखोई Su-30MKI के अनुवर्ती के रूप में इसकी शुरुआत की गई।
- इसकी पहली उड़ान वर्ष 2025 के लिये योजनाबद्ध है और उत्पादन वर्ष 2030 के बाद शुरू होने की उम्मीद है।
सुखोई Su-30MKI:
- ट्विन-इंजन, दो-सीट, बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमान रूस के सुखोई द्वारा विकसित और भारतीय वायुसेना के लिये भारत के HAL द्वारा लाइसेंस के तहत निर्मित किया गया है।
- हवाई श्रेष्ठता, ज़मीनी हमले, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध और समुद्री हमले जैसे मिशनों को पूरा करने के लिये डिज़ाइन किया गया।
- इसे वर्ष 2002 में भारतीय वायुसेना के तहत सेवा में शामिल किया और तब से कई संघर्षों व अभ्यासों में तैनात किया जा चुका है।
- ट्विन-इंजन डेक आधारित लड़ाकू विमान (TEDBF)
- नौसेना के मिग-29K को प्रतिस्थापित करने के लिये नौसेना के लिये निर्मित।
- समर्पित वाहक-आधारित संचालन के लिये भारत में पहली जुड़वाँ इंजन (ट्विन-इंजन डेक) वाली विमान परियोजना।
- मुख्यतः घरेलू हथियारों से सुसज्जित।
- अधिकतम मशीन संख्या 1.6, सर्विस सीलिंग 60,000 फीट, अधिकतम टेकऑफ वज़न 26 टन, खुला पंख।
राफेल:
- फ्रेंच ट्विन (जुड़वाँ) इंजन और मल्टीरोल लड़ाकू विमान।
- भारत ने 2016 में 59,000 करोड़ रुपए में 36 राफेल जेट खरीदे।
- हवाई वर्चस्व, अंतर्विरोध, हवाई टोही, ज़मीनी समर्थन, तीव्र प्रहार, जहाज़-रोधी हमला और परमाणु निरोध मिशनों के लिये सुसज्जित।
- राफेल जेट के हथियार पैकेज में उल्का मिसाइल, स्कैल्प क्रूज़ मिसाइल और एमआईसीए मिसाइल प्रणाली शामिल हैं।
- उल्का मिसाइल हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल की अगली पीढ़ी है, जिसे हवा से हवा में युद्ध में क्रांति लाने के लिये निर्मित किया गया है, जो 150 किमी. दूर से दुश्मन के विमानों को निशाना बनाने में सक्षम है।
- SCALP क्रूज़ मिसाइलें 300 किमी. दूर तक लक्ष्य को भेदने में सक्षम हैं, जबकि MICA मिसाइल प्रणाली एक बहुमुखी हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल है जो 100 किमी. दूर तक लक्ष्य को भेदने में सक्षम है।
- परिचालन उड़ान क्षमता 30,000 घंटे।
BSF के क्षेत्राधिकार का विस्तार
चर्चा में क्यों?हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि केंद्र की वर्ष 2021 की अधिसूचना, जो पंजाब में सीमा सुरक्षा बल (BSF) के अधिकार क्षेत्र को 15 से 50 किलोमीटर तक बढ़ाती है, BSF को केवल समबद्ध सीमाओं के भीतर विशिष्ट अपराधों को रोकने हेतु परस्पर कार्य करने का अधिकार देती है तथा यह राज्य पुलिस के जाँच अधिकार को कम नहीं करती है।
- वर्ष 2021 में पंजाब सरकार ने BSF के अधिकार क्षेत्र का विस्तार करने वाले केंद्र के निर्णय को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया।
BSF के क्षेत्राधिकार को विस्तारित करने के संबंध में केंद्र की अधिसूचना क्या है?
परिचय:
- इस अधिसूचना ने BSF अधिनियम, 1968 के तहत वर्ष 2014 के आदेश को प्रतिस्थापित किया, जिसमें मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय राज्य भी शामिल थे।
- इसमें असम, पश्चिम बंगाल तथा पंजाब समेत दो नव निर्मित केंद्रशासित प्रदेश- जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख का भी विशेष रूप से उल्लेख किया गया है।
- जिन उल्लंघनों के मामले में सीमा सुरक्षा बल तलाशी और ज़ब्ती की कार्यवाही कर सकता है, उनमें नशीले पदार्थों की तस्करी, अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं की तस्करी, विदेशियों का अवैध प्रवेश और किसी अन्य केंद्रीय अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध आदि शामिल हैं।
- किसी संदिग्ध को हिरासत में लेने या निर्दिष्ट क्षेत्र के भीतर एक खेप ज़ब्त किये जाने के बाद BSF केवल ‘प्रारंभिक पूछताछ’ कर सकती है और 24 घंटे के भीतर संदिग्ध को स्थानीय पुलिस को सौंपना आवश्यक है।
- संदिग्धों पर मुकदमा चलाने का अधिकार BSF के पास नहीं है।
BSF की विशेष शक्तियाँ:
- सभी सीमावर्ती राज्यों में, जहाँ तक अपराधों पर विचार किया जाता है, बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र को बढ़ाने के लिये सीमा सुरक्षा बल अधिनियम, 1968 के तहत शक्ति प्रदान की गई है। 1969 से अब तक गुजरात में 80 किमी. और कुछ राज्यों में यह कम था जो अब यह एक समान 50 किमी. हो गया है। इसका मतलब केवल यह होगा कि दंड प्रक्रिया संहिता 1973, पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 और पासपोर्ट अधिनियम, 1967 आदि के तहत कुछ अपराधों के संबंध में बीएसएफ के पास भी अधिकार क्षेत्र होगा।
- स्थानीय पुलिस का अधिकार क्षेत्र बना रहेगा। बीएसएफ को समवर्ती क्षेत्राधिकार भी प्रदान किया गया है।
क्षेत्राधिकार के विस्तार में शामिल विभिन्न मुद्दे क्या हैं?
बड़े मुद्दे:
- सार्वजनिक व्यवस्था बनाम राज्य की सुरक्षा: सार्वजनिक व्यवस्था और सुरक्षा बनाए रखना पुलिस का कार्य है, सार्वजनिक सुरक्षा और शांति मुख्य रूप से राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी है (क्रमशः राज्य सूची की प्रविष्टि 1 और प्रविष्टि 2)।
- हालाँकि जब कोई गंभीर सार्वजनिक अव्यवस्था उत्पन्न होती है जिससे राज्य या देश की सुरक्षा या रक्षा को खतरा हो सकता है (संघ सूची की प्रविष्टि 1), तो स्थिति केंद्र सरकार के लिये भी चिंता का विषय बन जाती है।
- संघवाद की कमज़ोर होती भावना: राज्य सरकार की सहमति प्राप्त किये बिना, अधिसूचना राज्यों की शक्तियों पर अतिक्रमण के समान है।
- पंजाब सरकार ने कहा है कि यह अधिसूचना सुरक्षा या विकास की आड़ में केंद्र का अतिक्रमण है।
- बीएसएफ की कार्यप्रणाली पर असर: भीतरी इलाकों में पुलिसिंग सीमा सुरक्षा बल की भूमिका नहीं है, बल्कि यह अंतर्राष्ट्रीय सीमा की रक्षा करने के अपने प्राथमिक कर्त्तव्य के निर्वहन में बीएसएफ की क्षमता को कमज़ोर कर देगी।
पंजाब से संबंधित मुद्दे:
- इसके तहत 50 किमी. तक के आसपास के क्षेत्र पर राज्य पुलिस के साथ-साथ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत हर संज्ञेय अपराध पर हर शक्ति का प्रयोग करने की समवर्ती शक्ति है।
- पंजाब जैसे अपेक्षाकृत छोटे राज्य में जब इसे 15 से बढ़ाकर 50 कर दिया जाता है, तो सभी प्रमुख शहर इसके अंतर्गत आ जाते हैं।
- जहाँ तक अन्य राज्यों गुजरात और राजस्थान की बात है तो गुजरात में काफी बड़े हिस्से में दलदली भूमि है। वहाँ इसे बढ़ाना उचित हो सकता है क्योंकि इसके अंतर्गत कोई भी प्रमुख शहरी केंद्र नहीं आता है, जैसे- राजस्थान, जहाँ रेगिस्तान है।
राज्यों में सैन्य बलों की तैनाती पर संवैधानिक दृष्टिकोण:
- अनुच्छेद 355 के तहत केंद्र किसी राज्य को "बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति" से बचाने के लिये अपनी सेना तैनात कर सकता है, तब भी जब संबंधित राज्य केंद्र की सहायता की मांग नहीं करता है और केंद्रीय बलों की सहायता प्राप्त करने का अनिच्छुक है।
- संघ के सशस्त्र बलों की तैनाती के लिये किसी राज्य के विरोध के मामले में केंद्र के लिये सही रास्ता पहले संबंधित राज्य को अनुच्छेद 355 के तहत निर्देश जारी करना है।
- राज्य द्वारा केंद्र सरकार के निर्देश का पालन नहीं करने की स्थिति में केंद्र अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) के तहत आगे की कार्रवाई कर सकता है।
BSF क्या है?
- BSF की स्थापना वर्ष 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद की गई थी।
- यह गृह मंत्रालय (MHA) के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत भारत संघ के पाँच केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में से एक है।
- अन्य केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल हैं: असम राइफल्स (AR), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP), केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF), केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF), राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) और सशस्त्र सीमा बल (SSB)।
- 2.65 लाख पुलिस बल पाकिस्तान और बांग्लादेश सीमा पर तैनात हैं।
- इसे भारत-पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय सीमा, भारत-बांग्लादेश अंतर्राष्ट्रीय सीमा, नियंत्रण रेखा (LoC) पर भारतीय सेना के साथ तथा नक्सल विरोधी अभियानों में तैनात किया जाता है।
- BSF अपने जलयानों के अत्याधुनिक बेड़े के साथ अरब सागर में सर क्रीक और बंगाल की खाड़ी में सुंदरबन डेल्टा की रक्षा कर रहा है।
- यह प्रत्येक वर्ष अपनी प्रशिक्षित जनशक्ति की एक बड़ी टुकड़ी भेजकर संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में समर्पित सेवाओं का योगदान देता है।
आगे की राह
- राज्य की सहमति वांछनीय है: भारत के पड़ोस में सुरक्षा स्थिति को देखते हुए संघ सशस्त्र बलों और राज्य नागरिक अधिकारियों के बीच मौजूदा संबंधों में किसी बदलाव की आवश्यकता नहीं है।
- हालाँकि केंद्र सरकार द्वारा अपने सशस्त्र बलों को तैनात करने से पहले यह वांछनीय है कि जहाँ भी संभव हो, राज्य सरकार से परामर्श किया जाना चाहिये।
- राज्य के आत्मनिर्भर बनने की स्थिति: प्रत्येक राज्य सरकार, केंद्र सरकार के परामर्श से अपनी सशस्त्र पुलिस को मज़बूत करने के लिये अल्पकालिक और दीर्घकालिक व्यवस्था पर काम कर सकती है।
- इसका उद्देश्य सशस्त्र पुलिस के मामले में काफी हद तक आत्मनिर्भर बनना होगा ताकि बहुत गंभीर गड़बड़ी की स्थिति में ही केंद्रीय सशस्त्र बलों की सहायता लेना आवश्यक हो।
- क्षेत्रीय व्यवस्था: पड़ोसी राज्यों के एक समूह की आम सहमति से ज़रूरत पड़ने पर एक-दूसरे की सशस्त्र पुलिस के उपयोग की स्थायी व्यवस्था हो सकती है।
- क्षेत्रीय परिषद ऐसी व्यवस्था तैयार करने के लिये एक क्षेत्र के भीतर राज्यों की सहमति प्राप्त करने हेतु सबसे अच्छे मंच के रूप में कार्य कर सकती है।
संयुक्त राज्य अमेरिका में अवैध भारतीय प्रवास
चर्चा में क्यों?संयुक्त राज्य अमेरिका सीमा शुल्क और सीमा सुरक्षा के आँकड़ों के अनुसार पिछले एक दशक में, अमेरिका में अवैध भारतीय प्रवासियों की आमद में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। एक दशक पूर्व यह आमद मामूली तौर पर 1,500 से बढ़कर वर्ष 2023 में आश्चर्यजनक रूप से 96,917 हो गया।
- भारतीयों द्वारा अवैध सीमा क्रॉसिंग में सबसे महत्त्वपूर्ण उछाल वर्ष 2020 से देखा गया है, जो 10,000 से कम संख्या में ऐतिहासिक रूप से कम संख्या से प्रस्थान को चिह्नित करता है।
- परंपरागत रूप से, अधिकांश अवैध क्रॉसिंग अमेरिकी-मेक्सिको सीमा में हुए। हालाँकि भारतीय प्रवासी उत्तरी सीमा की ओर तेज़ी से प्रवास कर रहे हैं जो वर्ष 2014 में 100 से कम से बढ़कर वर्ष 2023 में 30,000 से अधिक हो गए हैं।
प्रवासी:
- अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन संगठन एक प्रवासी को किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है जो अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार अथवा अपने निवास स्थान से दूर किसी राज्य के भीतर जा रहा है अथवा चला गया है।
- प्रवास का आशय लोगों के एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थायी अथवा अस्थायी रूप से जाने से है।
संयुक्त राज्य अमेरिका में अवैध भारतीय प्रवासियों में वृद्धि के क्या कारण हैं?
प्रेरित करने वाले कारक/पुश फैक्टर्स:
- भारत में रोज़गार के पर्याप्त अवसरों तथा आर्थिक संभावनाओं की कमी जैसे कई कारक हैं जो व्यक्तियों को विदेश में बेहतर रोज़गार की संभावनाएँ खोजने के लिये प्रेरित करते हैं।
- भारत में सामाजिक संघर्ष अथवा शासन तंत्र में विश्वास की कमी कुछ व्यक्तियों को कहीं और अधिक स्थाई वातावरण की तलाश करने के लिये प्रेरित कर सकती है।
आकर्षण के कारक/पुल फैक्टर्स:
- बेहतर रोज़गार, उच्च वेतन तथा कॅरियर में उन्नति की प्रस्तुति के लिये अमेरिका की प्रतिष्ठा प्रवासियों के लिये एक महत्त्वपूर्ण आकर्षण कारक के रूप में कार्य करती है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों का प्रलोभन छात्रों व परिवारों को शैक्षिक अवसरों की तलाश में आकर्षित करता है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका में पहले से ही बसे परिवार के सदस्यों अथवा रिश्तेदारों के साथ पुनर्मिलन की इच्छा कुछ प्रवासियों को प्रियजनों से निकटता के लिये अवैध प्रवेश की तलाश करने के लिये प्रेरित करती है।
वैश्विक प्रवासन प्रवृत्तियाँ:
- कोविड महामारी के बाद वैश्विक प्रवासन में हुई समग्र वृद्धि ने इस वृद्धि में योगदान दिया है, क्योंकि व्यक्ति विभिन्न देशों में बेहतर अवसर तथा सुरक्षा की तलाश में हैं।
वीज़ा बैकलॉग तथा वैकल्पिक मार्ग:
- तस्करों ने अमेरिका में अवैध प्रवेश को सुविधाजनक बनाने के लिये परिष्कृत एवं मांग वाली सेवाओं की पेशकश करते हुए अपने तरीके विकसित किये हैं।
- अत्यधिक वीज़ा बैकलॉग ने व्यक्तियों को लंबे समय तक प्रतीक्षा समय तथा विधिक प्रवेश के सीमित विकल्पों के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रवेश करने के वैकल्पिक, यद्यपि अवैध, रास्ते तलाशने के लिये प्रेरित किया है।
गलत सूचना:
- सोशल मीडिया के माध्यम से गलत सूचना फैलती है और भ्रामक ट्रैवल एजेंसियाँ अक्सर हताश प्रवासियों को गुमराह करती हैं तथा उन्हें महाद्वीपों में अनेक सुविधाप्रदाताओं द्वारा निर्देशित जोखिम भरी यात्राएँ करने के लिये प्रेरित करती हैं।
- हताश प्रवासी विभिन्न महाद्वीपों और देशों से होकर गुज़रने वाली जटिल, बहु-पैर वाली यात्राएँ कर सकते हैं और रास्ते में कई जोखिमों तथा चुनौतियों का सामना कर सकते हैं।
- भारत में अवैध प्रवासियों की संख्या में वृद्धि के सामाजिक-राजनीतिक और भू-राजनीतिक निहितार्थ क्या हैं?
द्विपक्षीय संबंध:
- यह मुद्दा भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय संबंधों को, संभावित रूप से व्यापार वार्ता, सुरक्षा सहयोग तथा रणनीतिक साझेदारी को प्रभावित कर सकता है।
आर्थिक कारक:
- अवैध प्रवेश चाहने वाले कुशल व्यक्तियों के परिणामस्वरूप संभावित प्रतिभा पलायन भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ कुशल श्रम की मांग है।
प्रतिभा पलायन:
- अवैध प्रवास के कारण कुशल और शिक्षित व्यक्तियों की हानि भारत की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है, जिससे देश में प्रतिभा तथा विशेषज्ञता की कमी हो सकती है।
श्रम बाज़ार की चुनौतियाँ:
- कुशल या अर्ध-कुशल श्रमिकों के जाने से कुछ क्षेत्रों में श्रम की कमी हो सकती है, जिससे भारत के कार्यबल और आर्थिक उत्पादकता पर असर पड़ सकता है।
नीतिगत परिणाम:
- भारत को अवैध प्रवास को बढ़ावा देने वाले कारकों, संभावित रूप से संसाधनों और अन्य विकासात्मक प्राथमिकताओं से ध्यान हटाने के लिये कठोर नीतियों को लागू करने की आवश्यकता हो सकती है।
आगे की राह
- संकट को कम करने और भारत के भीतर बेहतर अवसर प्रदान करने के लिये आर्थिक स्थिरता, रोज़गार सृजन और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना।
- प्रवासन की ओर ले जाने वाली चिंताओं को समझने तथा उनका समाधान करने के लिये राजनयिक संवाद में संलग्न होना, प्रवासियों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये अन्य देशों के साथ सहयोग करना।
इटली द्वारा चीन की 'बेल्ट एंड रोड' पहल से हटना
संदर्भ- इटली औपचारिक रूप से चीन की वैश्विक ‘बेल्ट एंड रोड’ पहल (BRI) से हट गया है।
संबंधित तथ्य
- यूरोपीय संघ और नाटो के सदस्य इटली ने वर्ष 2019 में तत्कालीन प्रधान मंत्री ग्यूसेप कोंटे की सरकार के तहत BRI पर हस्ताक्षर किए।
इटली द्वारा ‘बेल्ट एंड रोड’ पहल में शामिल होने के कारण
- इटली ने इस पर तब हस्ताक्षर किए जब ‘फाइव स्टार मूवमेंट पार्टी’ के नेतृत्व वाली सरकार ने इसे प्रमुख बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं में निवेश प्राप्त करने के साथ-साथ चीन के साथ व्यापार बढ़ाने के एक तरीके के रूप में प्रचारित किया।
हटने के कारण
- बढ़ता व्यापार घाटा और निवेश की कमी: मध्य वर्षों में, चीन के साथ इटली का व्यापार घाटा 20 बिलियन यूरो से बढ़कर 48 बिलियन यूरो (21.5 बिलियन डॉलर से 51.8 बिलियन डॉलर) हो गया है।
- इतालवी बंदरगाहों में निवेश का वादा भी पूरा नहीं हुआ है।
‘बेल्ट एंड रोड’ पहल
- उत्पत्ति: वर्ष 2013 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कज़ाखस्तान और इंडोनेशिया की अपनी यात्राओं के दौरान, एशियाई कनेक्टिविटी में गतिरोध को समाप्त करनेके लिए ‘सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट’ (SERB) और 21 वीं सदी के समुद्री रेशम मार्ग (MSR) के निर्माण का दृष्टिकोण व्यक्त किया।
- इसे चीनी भाषा में “वन बेल्ट, वन रोड” कहा जाता है, ‘बेल्ट एंड रोड पहल’ चीनी विकास बैंक ऋणों द्वारा वित्त पोषित चीनी कंपनियों के लिए विदेशों में परिवहन, ऊर्जा और अन्य बुनियादी ढाँचे का निर्माण करने के लिए एक कार्यक्रम के रूप में शुरू हुई।
- लक्ष्य: इसे अन्य क्षेत्रों के साथ चीन की कनेक्टिविटी को बढ़ाकर व्यापार और वैश्विक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2013 में लॉन्च किया गया था, जो चीन को मध्य पूर्व और यूरोप से जोड़ने वाले आधुनिक रेशम मार्ग के समान था।
- निवेश: 1 ट्रिलियन डॉलर अनुमानित
प्रमुख सिद्धांत
- नीति समन्वय
- बुनियादी ढाँचे की कनेक्टिविटी
- व्यापार
- वित्तीय एकीकरण
- लोगों से लोगों के बीच संबंध
- औद्योगिक सहयोग
भागीदारी: पहल की दसवीं वर्षगांठ पर, चीनी सरकार ने घोषणा की कि 150 से अधिक देशों और 30 अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने BRI को अपनाया है।
- चीन ने वर्ष 2017, 2019 और 2023 में तीन BRI मंचों की मेजबानी की है।
BRI के अंतर्निहित उद्देश्य
- अमेरिका के साथ चीन की प्रतिद्वंद्विता: चीनी अंतरराष्ट्रीय व्यापार का अधिकांश हिस्सा सिंगापुर के तट से मलक्का जलडमरूमध्य के माध्यम से समुद्र के माध्यम से गुजरता है जो अमेरिका का एक प्रमुख सहयोगी है।
- यह पहल चीन के अपने अधिक सुरक्षित व्यापार मार्ग बनाने के प्रयासों का अभिन्न अंग है।
- निवेश के अवसर: बेल्ट एंड रोड अवसंरचना चीन की सीमाओं से परे चीन की विशाल राज्य-स्वामित्व वाली कंपनियों के लिए एक वैकल्पिक बाज़ार प्रदान करती है।
- चीन के मध्य प्रांतों के लिए समावेशी विकास को बढ़ावा देना: बेल्ट एंड रोड को देश के मध्य प्रांतों की अर्थव्यवस्थाओं को प्रोत्साहित करने के चीनी सरकार के प्रयासों में एक महत्त्वपूर्ण तत्व के रूप में देखा जाता है, जो ऐतिहासिक रूप से समृद्ध तटीय क्षेत्रों से निम्न अवस्था में हैं।
दक्षिण एशिया में BRI की प्रगति
- पाकिस्तान: BRI के तहत वर्ष 2020 में स्वीकृत ‘ग्वादर डवलपमेंट मास्टर प्लान’ के अनुसार, यह 2050 तक शहर की जीडीपी को 30 बिलियन डॉलर तक बढ़ा देगा और दस लाख से अधिक नौकरियाँ पैदा करेगा।
- श्रीलंका: श्रीलंका में वर्ष 2013 में BRI के लॉन्च से पहले कई बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को चीन द्वारा वित्त पोषित किया जा रहा था, उनमें से कई संभवतः इसके दायरे में आ गईं।
- उदाहरण के लिए: चीन ने कोलंबो बंदरगाह पर कोलंबो इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल (CICT) विकसित किया, जहाँ एक चीनी सरकार के स्वामित्व वाली फर्म के पास 35-वर्षीय बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर (BOT) समझौते के तहत 85 प्रतिशत हिस्सेदारी है।
- नेपाल: नेपाल, औपचारिक रूप से वर्ष 2017 में ;बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव; में शामिल हो गया, उसने ऐसी 35 बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की एक सूची सौंपी, जिसमें वह चाहता था कि चीन वित्त पोषण करे।
- बांग्लादेश: बांग्लादेश, जो वर्ष 2016 में BRI में शामिल हुआ था, को चीन द्वारा पाकिस्तान के बाद दक्षिण एशिया में दूसरा सबसे बड़ा ‘बेल्ट और रोड’ निवेश (लगभग 40 बिलियन डॉलर) का वादा किया गया।
चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) से संबंधित चिंताएँ:
- ऋण जाल कूटनीति: कई देशों ने BRI परियोजनाओं के लिए चीन से भारी उधार लिया है, और अब उन्हें इन ऋणों को चुकाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इससे “ऋण जाल कूटनीति” के आरोप लगने लगे हैं, जहाँ देश अपने ऋणों पर चूक करने पर रणनीतिक संपत्तियों पर नियंत्रण खोने का जोखिम उठाते हैं।
- उदाहरण के लिए, बढ़ते कर्ज के कारण श्रीलंका को हंबनटोटा बंदरगाह का नियंत्रण चीन को सौंपना पड़ा।
भारत का पक्ष:
- भारत चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI), खासकर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का कड़ा विरोध करता है, क्योंकि यह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है।
- भारत की मुख्य चिंता यह है कि यह परियोजना उसकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की अवहेलना करती है।
भारत द्वारा केन्या को कृषि ऋण की पेशकश
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस: भारत ने केन्या के राष्ट्रपति की हालिया भारत यात्रा के दौरान अपने कृषि क्षेत्र के आधुनिकीकरण के लिये केन्या को 250 मिलियन अमेरिकी डॉलर की ऋण सुविधा देने की घोषणा की है।
- क्रेडिट लाइन (LOC) एक पूर्व निर्धारित उधार सीमा है जो आवश्यकता पड़ने पर उपलब्ध होती है। इसमें उधारकर्त्ता स्थापित सीमा तक पहुँचने तक आवश्यकतानुसार धनराशि की निकासी कर सकता है और एक बार चुकता करने के बाद क्रेडिट की मुक्त ऋण सुविधा के मामले में धनराशि फिर से उधार ली जा सकती है।
केन्या के राष्ट्रपति की हालिया यात्रा के मुख्य तथ्य क्या हैं?
- भारत और केन्या ने खेल, शिक्षा और डिजिटल समाधान सहित कई क्षेत्रों में सहयोग प्रदान करने वाले पाँच समझौतों पर हस्ताक्षर किये और हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री जुड़ाव को बढ़ाने के लिये एक संयुक्त दृष्टि दस्तावेज़ का अनावरण किया।
- भारत ने दो भारतीय नागरिकों का मुद्दा भी उठाया जो गत वर्ष पूर्वी अफ्रीकी देश में लापता हो गए थे।
- दोनों राष्ट्रों ने रक्षा, व्यापार, ऊर्जा, डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचा और स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने पर सहमति जताई है।
- दोनों पक्षों ने रक्षा सहयोग पर विचार-विमर्श किया और सैन्य अभ्यास, क्षमता निर्माण के साथ-साथ दोनों देशों के रक्षा उद्योगों को जोड़ने पर ज़ोर दिया।
- भारतीय कंपनियों को केन्या में निवेश करने के लिये विशेष रूप से कृषि, विनिर्माण, फार्मास्युटिकल, स्वास्थ्य, हरित ऊर्जा और हरित गतिशीलता क्षेत्रों में केन्या ने अनुकूल एवं आकर्षक वातावरण का लाभ उठाने के लिये आमंत्रित किया।
- आतंकवाद जैसी गंभीर चुनौती पर दोनों पक्षों ने आतंकवाद-रोधी सहयोग बढ़ाने का फैसला किया है।
केन्या से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- केन्या पूर्वी अफ्रीका में स्थित है, इसका भू-भाग हिंद महासागर के निम्न तटीय मैदान से लेकर इसके मध्य में पहाड़ों और पठारों तक विस्तृत है।
- हिंद महासागर तथा विक्टोरिया झील के बीच केन्या की अवस्थिति का अर्थ यह है कि संपूर्ण अफ्रीका एवं मध्य पूर्व के लोग सदियों से इस पार यात्रा और व्यापार करते रहे हैं।
- इसने कई जातीय समूहों एवं भाषाओं के साथ एक विविध संस्कृति का निर्माण किया है।
- अब तक पाए गए सबसे प्राचीनतम मानव में से एक की अस्थियाँ केन्या की तुर्काना द्रोणी/बेसिन में खोजी गई थीं।
- विश्व की सबसे बड़ी रेगिस्तानी झील, तुर्काना झील, ओमो-तुर्काना द्रोणी का हिस्सा है, जो चार देशों, इथियोपिया, केन्या, दक्षिण सूडान और युगांडा में फैली हुई है।
- संयुक्त राष्ट्र-पर्यावास सभा (UN-Habitat) का मुख्यालय केन्या के नैरोबी में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय में स्थित है।
विदेश नीति का गुजराल सिद्धांत
चर्चा में क्यों?30 नवंबर को गुजराल सिद्धांत के अग्रदूत, भारत के 12वें प्रधानमंत्री आई.के. गुजराल की 11वीं पुण्य तिथि मनाई गई है।
- वह एकमात्र प्रधानमंत्री थे जिनके पास विदेश नीति का गुजराल सिद्धांत दृष्टिकोण था, जिसे उनके नाम से जाना जाता है।
इंद्र कुमार गुजराल कौन थे?
- इंद्र कुमार गुजराल ने भारत के 12वें प्रधानमंत्री के रूप में अप्रैल 1997 से मई 1998 तक कार्यभार संभाला।
- आई.के. गुजराल को भारतीय विदेश नीति में दो महत्त्वपूर्ण योगदानों के लिये याद किया जा सकता है:
- 1996 से 1997 तक केंद्रीय विदेश मंत्री रहते हुए उन्होंने 'गुजराल सिद्धांत' का प्रतिपादन किया।
- अंतर्राष्ट्रीय दबाव के बावजूद गुजराल ने अक्तूबर 1996 में व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT) पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।
गुजराल सिद्धांत क्या है?
- गुजराल सिद्धांत ने भारत के पड़ोसियों के प्रति अपने दृष्टिकोण को व्यक्त किया, जिसे बाद में गुजराल सिद्धांत के रूप में जाना गया। इसमें पाँच बुनियादी सिद्धांत शामिल थे। इसकी रूपरेखा सितंबर 1996 में लंदन के चैथम हाउस में एक भाषण में व्यक्त की गई थी।
गुजराल सिद्धांत के पाँच बुनियादी सिद्धांत:
- भारत को अपने पड़ोसी देशों नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव और श्रीलंका के साथ विश्वसनीय संबंध स्थापित करने होंगे, उनके साथ विवादों को बातचीत से सुलझाना होगा तथा उन्हें दी गई किसी मदद के बदले में तुरंत कुछ हासिल करने की अपेक्षा नहीं करनी चाहिये।
- दक्षिण एशियाई देश क्षेत्र में किसी अन्य देश के हितों को नुकसान पहुँचाने के लिये अपने क्षेत्र का उपयोग बर्दाश्त नहीं करेंगे।
- कोई भी देश किसी अन्य देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
- सभी दक्षिण एशियाई देशों को एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करना चाहिये।
- राष्ट्र अपने सभी विवादों को शांतिपूर्ण द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से सुलझाएंगे।
- गुजराल सिद्धांत का मानना था कि भारत का वृहत आकार और जनसंख्या स्वाभाविक रूप से इसे दक्षिण-पूर्व एशिया में एक प्रमुख राष्ट्र के रूप में स्थापित करती है।
- अपनी स्थिति और प्रतिष्ठा को बढ़ाने के लिये सिद्धांत में छोटे पड़ोसी देशों के प्रति एक गैर-प्रमुख दृष्टिकोण अपनाने का समर्थन किया गया। इस प्रकार यह पड़ोसियों के साथ मैत्रीपूर्ण, सौहार्दपूर्ण संबंधों के सर्वोच्च महत्त्व को प्रदर्शित करता है।
- इसने चल रही वार्ता को बनाए रखने और अन्य देशों के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी करने जैसे अनावश्यक उकसावे के प्रयास से बचने के महत्त्व पर भी बल दिया।
गुजराल सिद्धांत कितना सफल रहा?
- विदेश नीति के प्रति गुजराल के दृष्टिकोण ने भारत के पड़ोसी देशों के प्रति विश्वास और सहयोग की भावना को मज़बूत करने में मदद की।
- भारत और बांग्लादेश के बीच जल-साझा संधि-1977 वर्ष 1988 में समाप्त हो गई, दोनों पक्षों की अस्पष्टता/अनम्यता के कारण इस पर वार्ता विफल हो गई। बांग्लादेश के साथ जल-साझा विवाद का समाधान वर्ष 1996-97 में केवल तीन महीने में कर लिया गया।
- भारत ने गंगा में जल प्रवाह बढ़ाने के लिये एक नहर परियोजना हेतु भूटान से मंज़ूरी प्राप्त की।
- यह नेपाल के साथ जल विद्युत् उत्पादन के लिये महाकाली नदी को नियंत्रित करने की संधि के साथ मेल खाता है।
- इसके उपरांत विकास सहयोग बढ़ाने के लिये श्रीलंका के साथ समझौते किये गए।
- इसके अतिरिक्त इससे पाकिस्तान के साथ समग्र वार्ता की शुरुआत हुई।
- समग्र वार्ता इस सिद्धांत पर आधारित थी कि संबंधो के संपूर्ण पहलू गंभीर समस्या-समाधान संवाद के अंतर्गत आते हैं।
- सहमत क्षेत्रों (व्यापार, यात्रा, संस्कृति आदि) में सहमत शर्तों पर सहयोग शुरू होना चाहिये, भले ही कुछ विवाद अनसुलझे हों।
गुजराल सिद्धांत की क्या आलोचनाएँ हैं?
- पाकिस्तान के प्रति उदार दृष्टिकोण: पाकिस्तान के प्रति नरम रुख अपनाने तथा भारत को भविष्य के आतंकी हमलों के खतरों के प्रति असुरक्षित छोड़ने के लिये गुजराल सिद्धांत की आलोचना की गई थी।
- सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: कुछ लोगों का मानना था कि यह अत्यधिक आदर्शवादी है तथा भारत की सुरक्षा चिंताओं की उपेक्षा करता है। आलोचकों ने तर्क दिया कि यह सिद्धांत भारत के कुछ पड़ोसियों द्वारा उत्पन्न सुरक्षा चुनौतियों, विशेष रूप से ऐतिहासिक संघर्षों एवं चल रहे भू-राजनीतिक मुद्दों के संदर्भ में पर्याप्त समाधान नहीं प्रदान करता है।
- द्विपक्षीय मुद्दों का समाधान करने में विफलता: गुजराल सिद्धांत ने भारत तथा उसके पड़ोसियों के बीच लंबे समय से चले आ रहे द्विपक्षीय मुद्दों का प्रभावी ढंग से समाधान नहीं किया। उदाहरण के लिये कुछ आलोचकों के अनुसार, क्षेत्रीय विवाद एवं सीमा पार आतंकवाद जैसे मुद्दों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया।
- घरेलू स्तर पर विरोध: कुछ लोगों ने तर्क दिया कि सद्भावना तथा गैर-पारस्परिकता पर ज़ोर देना कमज़ोरी के रूप में माना जा सकता है एवं विरोधियों द्वारा इसका फायदा उठाया जा सकता है।
आगे की राह
आदर्श और यथार्थ स्थितियों के बीच संतुलन बनाना:
- आगामी विदेश नीतियाँ को आदर्शवादी सिद्धांतों और सुरक्षा चुनौतियों के यथार्थवादी आकलन का संतुलित रूप होना चाहिये। राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करना सर्वोपरि विचार होना चाहिये।
विस्तृत संघर्ष समाधान:
- पड़ोसी देशों के साथ अनसुलझे द्विपक्षीय मुद्दों के समाधान के लिये एक व्यापक और सक्रिय दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। परस्पर संवाद के अंतर्गत क्षेत्रीय विवाद तथा सुरक्षा संबंधी चिंताओं को शामिल किया जाना चाहिये।
उभरते खतरों के प्रति अनुकूलन:
- सुरक्षा संबंधी खतरों की उभरती प्रकृति की पहचान करते हुए भविष्योन्मुखी सिद्धांतों में आतंकवाद का मुकाबला करने तथा राष्ट्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक रणनीतियों को शामिल किया जाना चाहिये।
क्षेत्रीय गठबंधनों को मज़बूत करना:
- गुजराल सिद्धांत के सकारात्मक पहलुओं के आधार पर भारत को पारस्परिक लाभ के लिये क्षेत्रीय गठबंधन तथा सहयोग को मज़बूत बनाए रखना चाहिये।
सार्वजनिक कूटनीति और घरेलू सहमति:
- विदेशी नीतियों के निर्माण में घरेलू सहमति को बढ़ावा देना एक अहम कदम हो सकता है। सार्वजनिक कूटनीति के प्रयास संभावित घरेलू विरोध को कम करते हुए राजनयिक निर्णयों के तर्कों को स्पष्ट करने में मदद कर सकते हैं।