Table of contents | |
स्वास्थ्य देखभाल तक समान पहुँच: एक नैतिक अनिवार्यता | |
सिविल सेवाओं में यथास्थिति | |
Case Study - 1 | |
Case Study - 2 |
अनिल एक स्वास्थ्य देखभाल प्रशासक हैं जो निजी एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों के समन्वय वाले देश में एक सार्वजनिक अस्पताल के प्रबंधन कार्यों में संलग्न हैं। वह जिस सार्वजनिक अस्पताल का प्रबंधन करते हैं वह मुख्य रूप से कम आय वाले लोगों और परिवारों को आवश्यक चिकित्सा सेवाएँ और उपचार उपलब्ध कराता है।
हाल ही में सरकार द्वारा सार्वजनिक अस्पतालों में हाशिये पर स्थित समुदायों की स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच को बढ़ाने के उद्देश्य से चिकित्सा खर्चों पर सब्सिडी प्रदान करने पर आधारित एक नीति प्रस्तुत की गई है। यह नीति स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में समानता लाने के साथ कम आय वाले लोगों पर चिकित्सा सेवाओं के बोझ को कम करने हेतु डिज़ाइन की गई है।
भले ही यह नीति अच्छे इरादे से बनाई गई हो लेकिन इसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक अस्पतालों में इलाज हेतु रियायती सेवाओं का लाभ प्राप्त करने के लिये अधिक समृद्ध पृष्ठभूमि वाले मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है। मरीजों की संख्या में होने वाली इस वृद्धि से अस्पताल के संसाधनों पर दबाव में वृद्धि हुई है। इसके कारण भीड़भाड़ होने से चिकित्सा हेतु लोगों को लंबे समय तक इंतजार करना पड़ रहा है और इससे हाशिये पर स्थित एवं कम आय वाले समुदायों की स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता के साथ समझौता हो रहा है। मरीजों को उनकी आर्थिक पृष्ठभूमि के आधार पर स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं से दूर रखना, स्वास्थ्य देखभाल तक समान पहुँच के सिद्धांत के खिलाफ है।
इस संदर्भ में क्या अस्पताल को स्वयं धनी व्यक्तियों द्वारा प्राप्त की जाने वाली सब्सिडी सेवाओं को रोकने हेतु उपाय लागू करने चाहिये या फिर इस नीति को संशोधित किया जाना चाहिये?
दिल्ली के त्यागराज स्टेडियम में हाल ही में हुई एक घटना में, सिविल सेवा अधिकारियों से संबंधित हितों के टकराव के दावों के कारण एथलीटों एवं कोचों को अपने प्रशिक्षण कार्यक्रम में परिवर्तन तथा बाधाओं का सामना करना पड़ा। इसमें एथलीटों द्वारा आरोप लगाया गया कि संबंधित अधिकारी निजी गतिविधियों (विशेष रूप से अपने कुत्तों को घुमाने के लिये) हेतु स्टेडियम का उपयोग कर रहे हैं। जिसके कारण एथलीटों को अपने प्रशिक्षण सत्र को समय से पहले ही समाप्त करने के लिये मजबूर होना पड़ता है।
फिर भी अधिकारियों ने इस बात पर बल देकर कहा कि उन्होंने कभी भी किसी एथलीट से स्टेडियम खाली करने का अनुरोध नहीं किया है, क्योंकि सही मायने में स्टेडियम पर उन्हीं का ही अधिकार है। अधिकारियों ने कहा कि वे प्रशिक्षण की निर्धारित समापन अवधि के बाद ही स्टेडियम में दौरा करते हैं। इस क्रम में वे यह भी सावधानी रखते हैं कि उनके पालतू जानवर ट्रैक पर इधर-उधर न घूमें तथा इससे एथलीटों का प्रशिक्षण बाधित न हो।
लेकिन एक प्रशिक्षु एथलीट के माता-पिता ने इस स्थिति को अस्वीकार करते हुए इसे अधिकारियों की शक्ति के दुरुपयोग के रूप में संदर्भित किया। इन शिकायतों के बाद सरकार ने आरोपी अधिकारियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई करते हुए उनका दिल्ली से बाहर ट्राँसफर कर दिया। हालिया घटनाक्रम के आलोक में सरकार ने आईएएस अधिकारी को अनिवार्य सेवानिवृत्ति का आदेश दिया।
क्या आपको लगता है कि ऐसी निजी गतिविधियों हेतु सार्वजनिक सुविधाओं का उपयोग करना नैतिक है, जिससे संभावित रूप से दूसरों को असुविधा हो सकती है। सार्वजनिक सुविधाओं के निष्पक्ष एवं नैतिक उपयोग को सुनिश्चित करने हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?
प्रश्न: उत्तरकाशी से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर सुदूर पहाड़ी बस्ती में 20 जुलाई, 2023 की मध्यरात्रि में एक भूस्खलन हुआ। भूस्खलन मूसलाधार बारिश के कारण हुआ और नतीजतन जान-माल की हानि बड़े पैमाने पर हुई। आप उस क्षेत्र के ज़िला मजिस्ट्रेट होने के नाते डॉक्टरों के दल, एन.जी.ओ., मीडिया और पुलिस के साथ बहुत से सहायक स्टाफ को लेकर घटनास्थल पर बचाव अभियान के लिये तुरंत पहुँचे।
एक आदमी अपनी गर्भवती पत्नी की अत्यावश्यक चिकित्सा सहायता के लिये आपके पास भागता हुआ आया, जो प्रसव में है और उन्हें रक्तस्राव हो रहा है। आपने अपने चिकित्सक दल को उसकी पत्नी की जाँच करने का निर्देश दिया। उन्होंने वापस आकर आपको बताया कि उस महिला को तुरंत खून चढ़ाने की आवश्यकता है। पूछताछ करने पर आपको पता चला कि कुछ रक्त संग्रह बैग और रक्त समूह परीक्षण किट एम्बुलेंस में आपकी टीम के पास मौजूद हैं। आपकी टीम के कुछ सदस्य स्वेच्छा से अपना रक्तदान करने के लिये पहले से ही तैयार हैं।
एम्स से स्नातक चिकित्सक होने के नाते आप जानते हैं कि खून चढ़ाने के लिये मान्यता-प्राप्त ब्लड बैंक से ही रक्त के इंतजाम की आवश्यकता है। आपकी टीम के सदस्य इस मुद्दे पर बँटे हुए हैं, कुछ खून चढ़ाने के हक में हैं, जबकि कुछ इसके विरोध में हैं। यदि उन्हें खून चढ़ाने के लिये दंडित नहीं किया जाएगा तो टीम में शामिल डॉक्टर प्रसव कराने के लिये तैयार हैं। अब आप दुविधा में हैं। आपका पेशेवर प्रशिक्षण मानवता और लोगों का जीवन बचाने को प्राथमिकता देने पर ज़ोर देता है।
(a) इस मामले में कौन-से नैतिक मुद्दे शामिल हैं?
(b) क्षेत्र के ज़िला मजिस्ट्रेट होने के नाते आपके पास उपलब्ध विकल्पों का मूल्यांकन कीजिये।
उत्तर:
नैतिक मुद्दे:
उपलब्ध विकल्प:
इस स्थिति में लिये जाने वाले निर्णय में रोगी की सुरक्षा को प्राथमिकता देने के साथ नैतिक, चिकित्सीय एवं विधिक मानकों का पालन भी किया जाना चाहिये। यद्यपि स्थिति गंभीर है लेकिन रक्त सुरक्षा से समझौता करने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इस चुनौतीपूर्ण स्थिति में चिकित्सा दल से स्पष्ट संचार के साथ यदि आवश्यक हो तो विशेषज्ञ की सलाह लेना तथा नैतिक, चिकित्सा और नियामक विचारों को सर्वोत्तम रूप से संतुलित करने वाला एक सूचित निर्णय लेना आवश्यक है।
प्रश्न: आप मुंबई पुलिस के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी हैं। आपको हाल ही में पता चलता है कि आपके एक अधीनस्थ ने एक वर्चुअल क्रिकेट टीम बनाकर एक फैंटेसी स्पोर्ट्स एप पर 2 करोड़ रुपए जीते हैं। उसने आपसे अनुमति लिये बिना (वर्दी पहनकर) मीडिया में साक्षात्कार भी दिया है और रातोंरात एक सेलिब्रिटी बन गया है। हालाँकि, आप यह भी जानते हैं कि ऐसे गेम खेलना कई लोगों द्वारा अनैतिक एवं सामाजिक रूप से अस्वीकार्य माना जाता है, तथा ऐसे एप की वैधता और नैतिकता के बारे में पहले से ही बहस चल रही है। आपको चिंता है कि उसके कृत्य से पुलिस बल की छवि एवं प्रतिष्ठा खराब हो सकती है, जो अन्य अधिकारियों के साथ-साथ आम लोगों के लिये भी एक बुरा उदाहरण बन सकता है।
(a) इस मामले से संबंधित नैतिक मुद्दे कौन-से हैं?
(b) उसके वरिष्ठ अधिकारी के रूप में आप कौन से संभावित कदम उठा सकते हैं?
(c) प्रत्येक कार्यवाही से जुड़े लाभ और हानि क्या हैं? (d) आप कार्रवाई का कौन सा तरीका चुनेंगे और क्यों?
उत्तर:
परिचय
मुंबई पुलिस के प्रभारी, वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के रूप में मुझे एक संवेदनशील स्थिति के बारे में पता चला है कि एक अधीनस्थ ने - वर्चुअल क्रिकेट टीम बनाकर एक फैंटेसी स्पोर्ट्स एप पर 2 करोड़ रुपए जीते हैं। उसने मेरी अनुमति लिये बिना (वर्दी पहनकर) मीडिया में साक्षात्कार भी दिया है जो कि नैतिक चिंता का कारण है, उसके इस कृत्य से पुलिस बल की छवि और प्रतिष्ठा खराब हो सकती है, यह कृत्य अन्य अधिकारियों के साथ-साथ आम लोगों के लिये भी एक बुरा उदाहरण बन सकता है। हम कार्रवाई का सर्वोत्तम तरीका निर्धारित करने हेतु इसके नैतिक मुद्दों, विकल्पों तथा उनके पक्ष व विपक्ष पर चर्चा करेंगे।
मामले में शामिल नैतिक मुद्दे:
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के रूप में मेरे पास कार्रवाई के कई संभावित तरीके हैं:
प्रत्येक कार्यवाही के लाभ और हानि:
निष्कर्ष
मैं इस दृष्टिकोण को चुनूँगा क्योंकि यह नैतिक चिंताओं को संबोधित करने की आवश्यकता को संतुलित करता है और अधीनस्थों को उनकी गलतियों से सीखने का अवसर भी प्रदान करता है। हालाँकि यदि इस प्रकार का व्यवहार जारी रहता है, तो पुलिस बल की प्रतिष्ठा की रक्षा तथा नैतिक मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये निलंबन या स्थानांतरण जैसे अधिक गंभीर उपाय आवश्यक हो सकते हैं। अंततः कार्रवाई का चुनाव अधीनस्थ की प्रतिक्रिया एवं स्थिति की गंभीरता से निर्धारित होगा।
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