प्रश्न.1. कानून का शासन ‘ पद से आप क्या समझते हैं ? अपने शब्दों में लिखिए। अपना जवाब देते हुए कानून के उल्लंघन का कोई वास्तविक या काल्पनिक उदाहरण दीजिए।
कानून के शासन का मतलब है कि सभी कानून देश के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होते हैं। कानून से ऊपर कोई व्यक्ति नहीं है। चाहे वह सरकारी अधिकारी हो या धन्नासेठ हो और यहाँ तक कि राष्ट्रपति ही क्यों न हो। किसी भी अपराध या कानून के उल्लंघन की एक निश्चित सज़ा होती है। सज़ा तक पहुँचने की भी एक तय प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति का अपराध साबित किया जाता है। देश में कानून ही सर्वोच्च है। देश का शासन कानूनानुसार चलाया जाता है न कि किसी व्यक्तिगत इच्छा के अनुसार।
प्रश्न.2. इतिहासकार इस दावे को गलत ठहराते हैं कि भारत में कानून का शासन अंग्रेज़ों ने शुरू किया था। इसके कारणों में से दो कारण बताइए।
कानून का शासन भारतीय संविधान की एक अद्भुत विशेषता है। सामान्य तौर पर यह माना जाता है, कि कानून के शासन की धारणा को ब्रिटिश सरकार ने आरंभ किया। परंतु यह सत्य नहीं है। इतिहासकारों ने काफी कारणों से इस दावे को नकारा है, जैसे:- ब्रिटिश उपनिवेशवादी शासन व्यक्तिगत एवं निरंकुश था। ब्रिटिश अधिकारी अपनी शक्तियों का प्रयोग मनमाने ढंग से करते थे तथा किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं थे। 1870 का देशद्रोह कानून ब्रिटिश कानून का भाग था। ब्रिटिश सरकार के दौरान भारतीय राष्ट्रवादियों ने कानून के शासन के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतीय राष्ट्रवादियों ने ब्रिटिश सरकार के अधिकारियों के मनमाने व्यवहार की आलोचना की। उन्होंने ब्रिटिश सरकार से समानता की मांग की। 19 वीं शताब्दी के अंत तक कई भारतीय कानूनी व्यवसाय में आए तथा अपने लिए कानून के शासन एवं न्याय की मांग की।
प्रश्न.3. घरेलू हिंसा पर नया कानून किस तरह बना, महिला संगठनों ने इस प्रक्रिया में अलग – अलग तरीके से क्या भूमिका निभाई उसे अपने शब्दों में लिखिए।
घरेलू हिंसा एक गंभीर समस्या है। इसने महिलाओं के अधिकारों एवं सम्मान को प्रभावित किया है। महिलाओं को उनके पति, पिता, भाई और यहां तक कि बेटे द्वारा पीटा जाता है उनके साथ बुरा व्यवहार किया जाता है। इस पर कई महिला संगठनों ने घरेलू हिंसा के विरुद्ध कानूनों की मांग की। काफ़ी प्रयासों के बाद 1999 में घरेलू हिंसा (रोक एवं सुरक्षा) विधेयक का प्रारूप तैयार किया गया। 2002 विधेयक को संसद् के समक्ष प्रस्तुत किया गया। परंतु महिला संगठनों द्वारा इस विधेयक का विरोध किया गया, कि यह विधेयक घरेलू हिंसा को रोकने में प्रभावशाली नहीं था। अतः इस विधेयक को संसद की स्थाई समिति को दिया गया। राष्ट्रीय महिला आयोग जैसे कई महिला संगठनों ने स्थाई समिति को कई सुझाव दिये। स्थाई समिति ने अपनी सिफारिशें संसद् को प्रस्तुत कीं। समिति की रिपोर्ट में महिला संगठनों की अधिकांश मांगों को मान लिया गया। 2005 में घरेलू हिंसा से संबंधित एक नया विधेयक संसद में पेश किया गया। यह विधेयक संसद से पास होने के तथा राष्ट्रपति की स्वीकृति के पश्चात् कानून बन गया, तथा 2006 में यह कानून लागू हो गया।
प्रश्न.4. अपने शब्दों में लिखिए कि इस अध्याय में आए निम्नलिखित वाक्य (पृष्ठ 44-45) से आप क्या समझते हैं : अपनी बातों को मनवाने के लिए उन्होंने संघर्ष शुरू कर दिया। यह समानता का संघर्ष था। उनके लिए कानून का मतलब ऐसे नियम नहीं थे जिनका पालन करना उनकी मजबूरी हो। वे कानून को उससे अलग ऐसी व्यवस्था के रूप में देखना चाहते थे जो न्याय के विचार पर आधारित हों।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि कानून का शासन ब्रिटिश संविधान की महत्वपूर्ण विशेषता थी। परन्तु भारत में ब्रिटिश राज के दौरान उपनिवेशी कानून के समक्ष समानता नहीं थी। 19वीं शताब्दी के अंत में भारतीय राष्ट्रवादियों ने ब्रिटिश सरकार के अधिकारियों के मनमाने रवैये के विरोध में आवाज़ उठाई तथा कानून के सर्वोच्च की मांग थी। उन्होंने मांग की, कि भारत को ब्रिटिश लोगों के समान माना जाए तथा दोनों पर समान रूप से कानून लागू हो। भारतीय राष्ट्रवादियों ने न केवल समानता की मांग की, बल्कि न्याय की भी मांग की। भारतीय वकीलों ने भारतीय नागरिकों के कानूनी अधिकारों की रक्षा के लिए कानूनों की मदद लेनी शुरु करदी।
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