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दो ध्रुवीयता का अंत (The End of Bipolarity) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC PDF Download

प्रश्नावली

प्रश्न.1. सोवियत अर्थव्यवस्था की प्रकृति के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है?
(क) सोवियत अर्थव्यवस्था में समाजवाद प्रभावी विचारधारा थी।
(ख) उत्पादन के साधनों पर राज्य का स्वामित्व/नियंत्रण होना।
(ग) जनता को आर्थिक आजादी थी।
(घ) अर्थव्यवस्था के हर पहलू का नियोजन और नियंत्रण राज्य करता था।

सही उत्तर (ग) जनता को आर्थिक आजादी थी।


प्रश्न.2. निम्नलिखित को कालक्रमानुसार सजाएँ?
(क) अफगान-संकट
(ख) बर्लिन-दीवार का गिरना
(ग) सोवियत संघ का विघटन
(घ) रूसी क्रांति

(घ) रूसी क्रांति,
(ख) बर्लिन - दीवार का गिरना.
(ग) सोवियत संघ का विघटन
(घ) अफगान-संकट।


प्रश्न.3. निम्नलिखित में कौन-सा सोवियत संघ के विघटन का परिणाम नहीं है?
(क) संयुक्त राज्य अमरीका और सोवियत संघ के बीच विचारधारात्मक लड़ाई का अंत
(ख) स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रकुल (सीआईएस) का जन्म
(ग) विश्व-व्यवस्था के शक्ति-संतुलन में बदलाव
(घ) मध्यपूर्व में संकट......... था।

सही उत्तर (घ) मध्यपूर्व में संकट।


प्रश्न.4. निम्नलिखित में मेल बैठाएं-    

दो ध्रुवीयता का अंत (The End of Bipolarity) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC

दो ध्रुवीयता का अंत (The End of Bipolarity) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC


प्रश्न.5. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें।
(क) सोवियत राजनीतिक प्रणाली ______ की विचारधारा पर आधारित थी।
(ख) सोवियत संघ द्वारा बनाया गया सैन्य गठबंधन ______ था।
(ग) ______ पार्टी का सोवियत राजनीतिक व्यवस्था पर दबदबा था।
(घ) ______ ने 1985 में सोवियत संघ में सुधारों की शुरुआत की।
(ङ) ______ का गिरना शीतयुद्ध के अंत का प्रतीक था।

(क) समाजवाद
(ख) वारसॉ पैक्ट
(ग) कम्युनिस्ट
(घ) मिखाइल गोर्बाचेव  
(ङ) बर्लिन की दीवार


प्रश्न.6. सोवियत अर्थव्यवस्था को किसी पूँजीवादी देश जैसे संयुक्त राज्य अमरीका की अर्थव्यवस्था से अलग करने वाली किन्हीं तीन विशेषताओं का जिक्र करें।

रूस विश्व का पहला देश था जहाँ मार्क्सवादी क्रांति सफल हुई और मार्क्सवादी विचारधारा के आधार पर शासन व्यवस्था और अर्थव्यवस्था को अपनाया गया। रूस को रामाजवादी सोवियत गणराज्यों का संघ अथवा सोवियत संघ कहकर पुकारा गया। इसकी शासन व्यवस्था साम्यवादी दल की तानाशाही पर आधारित थी। रूस में लोकतांत्रिक व्यवस्था के चिन्नों अथवा सिद्धांतों को अपनाका गया था। यहाँ की अर्थव्यवस्था पूँजीवादी देशों जैसे कि अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस आदि देशों की अर्थव्यवस्था से बिल्कुल भिन्न थी।
सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था एवं पूँजीवादी राज्यों की अर्थव्यवस्थाओं में मुख्य अंतर निम्नलिखित थे:
(i) सोवियत संघ में अर्थव्यवस्था पर सरकार का पूर्ण नियंत्रण या जबकि पूँजीवादी राज्यों की अर्थव्यवस्था सरकार के नियंत्रण तथा स्वामित्व में नहीं थी, उस पर बाजार व्यवस्था का प्रभाव था।
(ii) सोवियत संघ में उत्पादन तथा वितरण के सभी साधन जैसे कि कारखाने, कृषि फार्म, बैंक, व्यापार तथा वाणिज्य राज्य के स्वामित्व में थे और सरकार के निर्णय के अनुसार संचालित होते थे, परंतु पूँजीवादी राज्यों में ये साधन तभ्या आर्थिक संस्थाएँ निजी क्षेत्र में थे। सरकार उन पर थोड़ा बहुत नियंत्रण उन्हें नियमित करने हेतु लगाती थी। परंतु वहाँ मुख्य रूप से निजी स्वामित्व की धारणा को अपनाया गया था।
(iii) सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था में निजी संपत्ति की धारणा का अभाव था। वहाँ लोगों को निजी संपत्ति रखने का अधिकार नहीं था निजी संपत्ति में रहने का मकान तथा घरेलु वस्तुएँ ही आती थीं। कारखाने, भूमि, खेत आदि पर सरकारी स्वामित्व था परंतु पूँजीवादी राज्यों में लोगों को निजी संपत्ति रखने का अधिकार था। बेशक उस पर कुछ सीमा या नियमनकारी कानून लागू होते थे परंतु लोगों को निजी संपत्ति रखने, उसे बेचनें, किसी को देने के अधिकार होते थे।
(iv) सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था के अंतर्गत खुला व्यापार तथा खुली प्रतियोगिता का अभाव था। उत्पादन की सीमा उसकी गुणवत्ता, वस्तुओं की कीमतें सरकार निश्चित करती थी और निजी लाभ की धारणा का भी अभाव था। पूँजीवादी देशों की अर्थव्यवस्था के अंतर्गत स्वतंत्र व्यापार, खुली स्पर्धा अपनाई गई थी, वस्तुओं की कीमत उत्पादक निश्चित करता था, बाजार का उन पर प्रभाव पड़ता था और निजी लाभ उत्पादन का आधार था।


प्रश्न.7. किन बातों के कारण गोर्बाचेव सोवियत संघ में सुधार के लिए बाध्य हुए?

निम्नलिखित बातों के कारण गोर्बाचेव सोवियत संघ में सुधार के लिए बाध्य हुए:
(i) गिरती हुई अर्थव्यवस्था जब गोर्बाचेव ने सोवियत संघ की बागडोर सँभाली तो इसकी अर्थव्यवस्था काफी गिर गई थी और गिरती जा रही थी। विकास की दर काफी घट गई थी। उत्पादन की गुणवत्ता पश्चिमी देशों के उत्पादन की गुणवत्ता के मुकाबले में निम्न स्तर की थी। उत्पादन की मात्रा भी घटती जा रही थी। वस्तुएँ रियायती कीमतों पर दिए जाने के कारण सरकार को काफी  घाटा सहना पड़ रहा था। अब सोवियत संघ के लिए, अपने गुट के देशों को आर्थिक तथा सैनिक सहायता देना कठिन होता जा रहा था। गोर्बाचेव के लिए अर्थव्यवस्था में सुधार करना आवश्यक हो गया था और यह तभी संभव था कि अर्थव्यवस्था को सरकार के पूर्ण नियंत्रण से मुक्ति दी जाए।
(ii) प्रशासन में भ्रष्टाचार-शासन पर साम्यवादी दल का पूर्ण नियंत्रण था। वह जनमत के प्रति उत्तरदायी नहीं था और लम्बे समय की तानाशाही ने साम्यवादी दल को जनता की आवश्यकताओं तथा कल्याण से बेखबर कर दिया था। साम्यवादी दल में सदस्यों का विशेष वर्ग उभर आया था जो विशेषाधिकारों का प्रयोग करते थे और भ्रष्टाचार में वृद्धि के कारण थे। जनता में असंतोष बढ़ता जा रहा था। गोर्बाचेव को विश्वास हो गया कि शासन व्यवस्था का भी पुनर्गठन किया जाना आवश्यक है।
(iii) पश्चिमी देशों की सूचना और प्रौद्योगिकी में प्रगति-गोर्बाचेव ने देखा कि पश्चिमी देशों में सूचना और प्रौद्योगिकी में क्रांति आई है जबकि सोवियत संघ इस क्षेत्र में बहुत पीछे है। सोवियत संघ को पश्चिमी देशों के समान लाने के लिए अर्थव्यवस्था और शासन में सुधार लाने आवश्यक हैं। उसने महसूस किया कि शीतयुद्ध अथवा पश्चिमी गुट के साथ स्पर्धा में काफी धन और समय नष्ट होता है। इन देशों से संबंधों को सुधारकर, शांति का वातावरण स्थापित कर, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में आगे बढ़ने के कदम उठाए जाने अधिक लाभदायक हैं।
(iv) गोर्बाचेव के विचार-गोर्बाचेव के निजी विचारों ने भी उन्हें अर्थव्यवस्था और शासन में सुधार के कदम उठाने को बाध्य किया वे बहुध्रुवीय विश्व के समर्थक थे, तानाशाही व्यवस्था के स्थान पर लोकतांत्रिक व्यवस्था को शांति और सुरक्षा तथा विकास के लिए अधिक उपयोगी मानते थे। वे लोगों की स्वतंत्रता और अधिकारों के भी समर्थक थे। यही कारण है कि सोवियत संघ के इतिहास में स्यलिन को शीतयुद्ध के जनक के रूप में जाना जाता है तो गोर्बाचेव को शीतयुद्ध का अंत करने वाले नेता के रूप में जाना जाता है।
उपरिलिखित कारकों ने गोर्बाचेव को अर्थव्यवस्था शासन व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने के लिए बाध्य किया।


प्रश्न.8. भारत जैसे देशों के लिए सोवियत संघ के विघटन के क्या परिणाम हुए?

भारत जैसे देशों के लिए सोवियत संघ के विघटन के निम्नलिखित परिणाम हुए:
(i) सोवियत संघ के विघटन के बाद से भारत अन्य प्रजातन्त्रीय देशों की तरह विश्व की एकमात्र महाशक्ति अमरीका की तरफ और मजबूती से दोस्ती करने के लिए बढ़ता चला गया। मिश्रित अर्थव्यवस्था को सन् 1991 से ही धीरे-धीरे छोड़ दिया गया। नई आर्थिक नीति की घोषणा कर दी गई। भारत में भी लोग पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभुत्वशाली अर्थव्यवस्था मानने लगे। भारत में उदारीकरण तथा वैश्वीकरण की नीतियाँ अपनाई जाने लगी। विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी विभिन्न संस्थाएँ देश की प्रबल परामर्श दात्री मानी जाने लगीं।
(ii) भारत शीतयुद्ध को रोकने की चाह करने वाले राष्ट्रों में अग्रणी राष्ट्र था। सोवियत संघ के विघटन के बाद उसे लगने लगा कि अब विश्व में शीतयुद्ध का दौर और अन्तर्राष्ट्रीय तनावपूर्ण वातावरण एवं संघर्ष की समाप्ति हो जायेगी। भारत ने महसूस किया कि अब सैन्य गुटों के गठन की प्रक्रिया रुकेगी तथा हथियारों की तेज दौड़ भी थमेगी। भारत में सरकार तथा जनता को एक नई अन्तर्राष्ट्रीय शांति की संभावना दिखाई देने लगी।
(iii) सोवियत संघ के विघटन के बाद से भारत में राजनीतिक रूप से उदारवादी लोकतन्त्र राजनीतिक जीवन को सूत्रबद्ध करने वाला अधिक प्रबल रूप में बुद्धिजीवियों तथा अधिकांश पार्टियों द्वारा समझा जाने लगा है। अनेक वामपंथी विचारकों को एक झटका सा लगा है। वे मानते हैं कि शीघ्र ही पुनः विश्व में साम्यवाद का बोलबाला होगा।
(iv) भारत ने मध्य एशियाई देशों के प्रति अपनी विदेश नीति को नये सिरे से तय करना शुरू कर दिया है। सोवियत संघ से अलग हुए सभी पन्द्रह गणराज्यों से भारत के सम्बन्ध नये रूप से निर्धारित किये जा रहे हैं। भारत, चीन, रूस के साथ-साथ पूर्व साम्यवादी देशों के साथ भी मुक्त व्यापार को अपनाना जरूरी मान रहा है। भारत रूस, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज्वेकिस्तान और अजरबेजान से तेल और गैस (जो इन चीजों के बड़े उत्पादक हैं) अन्य देशों के क्षेत्रों से पाइप लाइन गुजार करके लाने तथा अपनी जरूरतें पूरी करने के प्रयास में जुटा हुआ है। भारत रूस के साथ-साथ इन देशों में अपनी संस्कृति के प्रचार के लिए कई तरह के समझौते कर चुका है।


प्रश्न.9. शॉक थेरेपी क्या थी? क्या साम्यवाद से पूँजीवाद की तरफ संक्रमण का यह सबसे बेहतर तरीका था?

शॉक थेरेपी-साम्यवाद की समाप्ति के बाद पूर्व सोवियत संघ के गणराज्य एक सत्तावादी, समाजवादी व्यवस्था से लोकतांत्रिक पूँजीवादी व्यवस्था तक के कष्टप्रद संक्रमण से होकर गुजरे। रूस, मध्य एशिया के गणराज्यों और पूर्वी यूरोप के देशों में साम्यवाद से पूँजीवाद की और संक्रमण का एक खास मॉडल अपनाया गया। विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा निर्देशित इस मॉडल को 'शॉक थेरेपी' अर्थात् (आघात पहुँचाकर उपचार करना) कहा गया। भूतपूर्व 'दूसरी दुनिया' के देशों में शॉक थेरेपी की गति और गहनना अलग-अलग रही लेकिन इसकी दिशा और चरित्र बड़ी सीमा तक एक जैसे थे।
साम्यवाद से पूँजीवाद की ओर संक्रमण एवं शॉक थेरेपी:
(i) प्रत्येक देश पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की ओर पूरी तरह मुड़ना चाहता था। इसका अर्थ था सोवियत संघ के दौर की हर संरचना में पूरी तरह मुक्ति पाना। 'शॉक थेरेपी' की सर्वोपरि मान्यता थी कि मिल्कियत का सबसे प्रभावी रूप निजी स्वामित्व होगा। इसके अंतर्गत राज्य की संपदा के निजीकरण और व्यावसायिक स्वामित्व के ढांचे को तुरंत अपनाने की बात शामिल थी। सामूहिक फार्म' की निजी 'फार्म' में बदला गया और पूँजीवादी पद्धति से खेती शुरू हुई। इस संक्रमण में राज्य नियंत्रित समाजवाद या पूंजीवाद के अतिरिक्त किसी भी वैकल्पिक व्यवस्था या "तीसरे रुख' को मंजूर नहीं किया गया।
(ii) 'शॉक थेरेपी' के कारण इन अर्थव्यवस्थाओं के बाहरी व्यवस्थाओं के प्रति रझान बुनियादी तौर पर परिवर्तित हो गए। अब समझा जाने लगा कि अधिक से अधिक व्यापार करके ही विकास किया जा सकता है। इस कारण 'मुक्त व्यापार' को पूर्ण रूप से अपनाना आवश्यक माना गया। पूँजीवादी व्यवस्था को अपनाने के लिए वित्तीय खुलापन, मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता और मुक्त व्यापार की नीति महत्त्वपूर्ण मानी गई।
(iii) अंततः इस संक्रमण में सोवियत खेमे के देशों के मध्य मौजूद व्यापारिक गठबंधनों को समाप्त कर दिया गया। खेमे के प्रत्येक  देश को एक-दूसरे से जोड़ने की जगह सीधे पश्चिमी देशों से जोड़ा गया। इस तरह धीरे-धीरे इन देशों को पश्चिमी अर्थतंत्र में समाहित किया गया। पश्चिमी दुनिया के पूँजीवादी देश अब नेता की भूमिका निभाते हुए अपनी विभिन्न एजेंसियों और संगठनों के सहारे इस खेमे के देशों के विकास का मार्गदर्शन और नियंत्रण करेंगे।


प्रश्न.10. निम्नलिखित कथन के पक्ष या विपक्ष में एक लेख लिखें - "दूसरी दुनिया के विघटन के बाद भारत को अपनी विदेश नीति बदलनी चाहिए और रूस जैसे परंपरागत मित्र की जगह संयुक्त राज्य अमरीका से दोस्ती करने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।"

"दूसरी दुनिया के विघटन के बाद भारत को अपनी विदेश-नीति बदलनी चाहिए और रूस जैसे परम्परागत मित्र की जगह संयुक्त राज्य अमरीका से दोस्ती करने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए" इस कथन के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं-
पक्ष में तर्क:
(i) राजनीति मेशा के लिए कोई किसी को पक्का मित्र और कोई किसी का शत्रु नहीं हो सकता। भारत की विदेश नीति गुटनिरपेक्षता भी अब नहीं चल सकती क्योंकि अब दुनिया में दो नहीं बल्कि केवल एक ही महाशक्ति है और यह संयुक्त राज्य अमरीका ही है।
(ii) अमरीका भारत की तरह ही एक उदारवादी गणतंत्रीय, लोकतंत्रात्मक संघीय राज्य है। भारत जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा लोकतंत्र है तो अमरीका अपनी संवैधानिक विशेषताओं एवं इतिहास के आधार पर सर्वाधिक शकिामान, विचारधारा की दृष्टि से सर्वाधिक सफल लोकतंत्र है।
(iii) भारत जब स्वराज्य के लिए संघर्ष कर रहा था उस समय भी संयुक्त राज्य अमरीका ने भारत की जनता का समर्थन किया तथा ब्रिटेन की सरकार पर भारत को शीघ्र स्वतंत्रता देने के लिए दबाव डाला था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद तो अनेक बार गेहूँ, सूखा दूध, धन, तकनीक आदि से अमरीका ने भारत की सहायता की थी परंतु भारत द्वारा स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद गुटनिरपेक्ष नीति का अनुसरण करने के कारण अमरीका और भारत की दूरी बढ़ती चली गयी। अमरीका और भारत में मधुर संबंधों का अभाव रहा परंतु बदलते परिप्रेक्ष्य में भारत-अमरीकी संबंधों में धीरे-धीरे पर्याप्त सुधार हो रहा है। शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद से भारत की स्थिर लोकतंत्रीय व्यवस्था, भारत में उदारीकरण, भारत के प्राकृतिक संसाधन आदि के कारण भारत और अमरीका के संबंधों में निकटका आ रही है। अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की मार्च 2000 में भारत यात्रा तथा भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सितम्बर 2000 में अमरीका यात्रा से दोनों देशों के संबंधों में प्रगाढ़ता आयी है। भारत और अमरीका दोनों ही देश अपने-अपने राष्ट्रीय हितों के संदर्भ में एक-दूसरे के साथ निकटता बनाने को उत्सुक हैं।
(iv) नवम्बर 1998 में जब पाकिस्तानी सैनिक तथा पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने कारगिल में नियंत्रण रेखा को पार किया तो अमरीका और उसके साथ अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के अन्य देशों ने पाकिस्तान की इस कार्यवाही की भर्त्सना की। 11 सितम्बर 2001 को अमरीका में आतंकवादी हमले के सम्य अमरीका ने भारत, पाकिस्तान और अमरीकी संबंधों का एक नया अध्याय शुरू किया जिसमें अमरीका ने पाकिस्तान के साथ-साथ भारत से भी मधुर संबंध बनाने का प्रयास किया। आतंकवाद के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय युद्ध की आवश्यकता अनुभव की गयी। पूरे विश्व से आतंक को मिटाने अमरीका द्वारा संकल्प लिया गया। इस कार्य में अमरीका भारत तथा अन्य देशों के साथ मिलकर आतंकवाद की समस्या समाप्त करना चाहता है। भारत भी आतंकवाद मिटाने के लिए अमरीका को सहायता देने को तैयार है।
(v) अमरीका भारत के साथ व्यापारिक संबंधों में भी वृद्धि करने को उत्सुक है परंतु कुछ पर्यवेक्षकों का मत है कि अमरीका अपने राष्ट्रीय हितों की साधना के लिए ही व्यापारिक संबंधों में बढ़ोत्तरी का इच्छुक है। अत: भारत को भी अमरीका से संबंध बनाते समय अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए सतर्क रहकर ही संबंध करने चाहिए। अपनी संप्रभुता और स्वतंत्रता पर किसी प्रकार की आंच न आए इसके लिए सतर्क रहना है।
(vi) अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश (जुनियर) ने भारत से अच्छे सम्बन्ध बनाने के लिए सैनिक प्रतिबंधों में ढील दी थी। उन्होंने भारतीय नौसेना के हैलिकॉप्टरों के लिए कल-पुजों की भारत को बिक्री की अनुमति दी थी। भारत-अमरीका में अच्छे सम्बन्धों के कारण ही अक्टूबर 2002 में हवाई सेना का संयुक्त सैनिक अभ्यास आगरा में हुआ था। अमरीका के प्रयास से ही भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की संभावनाएँ समाप्त हुई।
विपक्ष में तर्क दूसरी दुनिया के विघटन के बाद भारत को अपनी विदेश नीति बदलनी चाहिए एवं रूस जैसे परापरागत मित्र की जगह संयुक्त राज्य अमरीका से दोस्ती करने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।
इस कथन के विपक्ष में निम्न तर्क दिये जा सकते हैं:
(i)सोवियत संघ भारत का प्राचीन विश्वसनीय मित्र है। भारत के आर्थिक विशेषकर औद्योगिक विकास में सोवियत संघ ने बहुत ही सहायता की है। अनेक लौह-स्टील उद्योग उसी के सहयोग से चले एवं पनपे। नि:सन्देह सोवियत संघ स्टालिन के समय निर्गुट राष्ट्रों के अस्तित्व को ही स्वीकार नहीं करता था। वह उन्हें 'पश्चिम के पिछलागू' कहता था। खुश्चेव के समय निर्गुट राज्यों के महत्त्व को स्वीकार किया गया। खुश्चेव ने ही भारत-रूस मैत्री को पुख्ता किया और कश्मीर के प्रश्न पर संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का साथ दिया। सोवियत प्रधानमंत्री कोसिगन के समय 10 जनवरी, 1966 को भारत-पाकिस्तान युद्ध को टालने के संदर्भ में ताशकंद समझौता हुआ। उसके बाद से ही भारत-सोवियत मैत्री और पुख्ता होती गयी। सोवियत संघ के विघटन के पश्चात्भी  भारत-रूस सम्बन्ध प्रगाढ़ बने हुआ है|
(ii) दिसम्बर 1991 तक न केवल सोवियत साम्यवाद का पतन हुआ वरन् सोवियत संघ का 15 गणराज्यों में विघटन हो गया। रूस सोवियत संघ का उत्तराधिकारी बना। भारत ने सभी गणराज्यों को मान्यता दी तथा रूस के साथ अपने मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाए।
रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने भारत से मधुर संबंध रखने की घोषणा की। 27 जनवरी, 1993 को वे भारत आए और 29  जनवरी, 1993 को भारत-रूस संधि हो गयो।
इसमें मुख्य बातें निम्नलिखित थों :
(क) दोनों देश एक-दूसरे की अखंडता बनाए रखने को वचनबद्ध होंगे।
(ख) दोनों देश एक-दूसरे की सीमाओं का सम्मान करेंगे।
(ग) रुपया-रूबल समानता के आधार पर भारत पर ऋण का 30 प्रतिशत कम हो गया।
(घ) रूस कश्मीर के प्रश्न पर भारत को समर्थन देगा।
(iii) इसी यात्रा के दौरान सैनिक तथा तकनीकी समझौता भी हुआ था। इसके बाद रूसी प्रधानमंत्री विक्टर चेरनोमेदिन भी भारत-रूस संबंधों को मैत्रीपूर्ण बनाने के लिर 11 जून 1993 को भारत आये।
(iv) 29 जून, 1994 को भारत के प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव मास्को गए। रूस के प्रधानमंत्री 23 दिसम्बर, 1994 को फिर भारत आये। दोनों देशों के मध्य सैनिक. तकनीकी और व्यापारिक समझौते हुए। तीन वर्ष बाद 24 मार्च, 1997 को भारत के प्रधानमंत्री देवगौड़ा रूस गए। आतंकवाद और अपराध के विरुद्ध तथा नशीली वस्तुओं के अवैध व्यापार को रोकने के बारे में भी समझौते हुए। भारत द्वारा मई 1998 में किए गए नाभिकीय परीक्षणों का रूस द्वारा समर्थन किया गया।
(v) भारत-पाक कारगिल युद्ध के समय भी रूस ने भारत का समर्थन किया था। 7 दिसम्बर, 1999 को भारत-रूस के मध्य एक दसवर्षीय समझौता हुआ। इसके अनुसार भारत और रूस संयुक्त रूप से सभी प्रकार के सैन्य और असैन्य विमानों के उत्पादन का कार्य करेंगे। इसमें बमवर्षक विमान तथा वाहक पोत भी शामिल होंगे। 20 अप्रैल, 2000 को एक और समझौते के अनुसार दोनों देश अपने-अपने राजनीतिक सिद्धांतों को विश्व राजनीति और सैनिक दृष्टि से विश्लेषण करेंगे।

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