UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12)  >  NCERT Solutions: भारतीय राजनीति : नए बदलाव (Recent Developments in Indian Politics)

भारतीय राजनीति : नए बदलाव (Recent Developments in Indian Politics) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC PDF Download

प्रश्न.1. उन्नी-मुन्नी ने अखबार की कुछ कतरनों को बिखेर दिया है। आप इन्हें कालक्रम के अनुसार व्यवस्थित करें
(क) मण्डल आयोग की सिफारिशों और आरक्षण विरोधी हंगामा
(ख) जनता दल का गठन
(ग) बाबरी मस्जिद का विध्वंस
(घ) इन्दिरा गांधी की हत्या
(ङ) राजग सरकार का गठन
(च) संप्रग सरकार का गठन
(छ) गोधरा की दुर्घटना और उसके परिणाम।

(घ) इन्दिरा गांधी की हत्या (1984)
(ख) जनता दल का गठन (1988)
(क) मण्डल आयोग की सिफारिशों और आरक्षण विरोधी हंगामा (1990)
(ग) बाबरी मस्जिद का विध्वंस (1992)
(ङ) राजग सरकार का गठन (1999)
(छ) गोधरा की दुर्घटना और उसके परिणाम (2002)
(च) संप्रग सरकार का गठन (2004)।


प्रश्न.2. निम्नलिखित में मेल करें-
भारतीय राजनीति : नए बदलाव (Recent Developments in Indian Politics) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC

भारतीय राजनीति : नए बदलाव (Recent Developments in Indian Politics) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC


प्रश्न.3. 1989 के बाद की अवधि में भारतीय राजनीति के मुख्य उद्देश्य क्या रहे हैं? इन मुद्दों से राजनीतिक दलों के आपसी जुड़ाव के क्या रूप सामने आए हैं?

1989 के बाद भारतीय राजनीति के मुख्य मुद्दे – सन् 1989 के बाद भारतीय राजनीति में कई बदलाव आए जिनमें कांग्रेस का कमजोर होना, मण्डल आयोग की सिफारिशें एवं आन्दोलन, आर्थिक सुधारों को लागू करना, राजीव गांधी की हत्या तथा अयोध्या मामला प्रमुख हैं। इन स्थितियों में भारतीय राजनीति में अग्र मुद्दे प्रमुख रूप से उभरे-

  • कांग्रेस ने स्थिर सरकार का मुद्दा उठाया।
  • भाजपा ने राम मन्दिर बनाने का मुद्दा उठाया।
  • लोकदल व जनता दल ने मण्डल आयोग की सिफारिशों का मुद्दा उठाया।

इन मुद्दों में कांग्रेस ने दूसरे दलों की गैर-कांग्रेस सरकारों की अस्थिरता का मुद्दा उठाकर कहा कि देश में स्थिर सरकार कांग्रेस दल ही दे सकता है। दूसरी तरफ भाजपा ने अयोध्या में राम मन्दिर का मुद्दा उठाकर हिन्दू मतों को अपने पक्ष में कर अपने जनाधार को ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक करने का प्रयास किया।
तीसरी तरफ लोक मोर्चा, जनता पार्टी व लोकदल आदि दलों ने पिछड़ी जातियों को अपने पक्ष में लामबन्द करने के उद्देश्य से मण्डल की 27 प्रतिशत पिछड़ी जातियों के आरक्षण का मुद्दा उठाया।


प्रश्न.4. “गठबन्धन की राजनीति के इस दौर में राजनीतिक दल विचारधारा को आधार मानकर गठजोड़ नहीं करते हैं।” इस कथन के पक्ष या विपक्ष में आप कौन-कौन से तर्क देंगे?

वर्तमान युग में गठबन्धन की राजनीति का दौर चल रहा है। इस दौर में राजनीतिक दल विचारधारा को आधार बनाकर गठजोड़ नहीं कर रहे बल्कि अपने निजी स्वार्थी हितों की पूर्ति के लिए गठजोड़ करते हैं। वर्तमान समय में अधिकांश राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय हित की चिन्ता नहीं रहती, बल्कि वे सदैव इस प्रयास में रहते हैं कि किस प्रकार अपने राजनीतिक हितों को पूरा किया जाए, इसी कारण अधिकांश राजनीतिक दल विचारधारा और सिद्धान्तों के आधार पर गठजोड़ न करके स्वार्थी हितों की पूर्ति के लिए गठजोड़ करते हैं।
पक्ष में तर्क-गठबन्धन की राजनीति के भारत में चल रहे नए दौर में राजनीतिक दल विचारधारा को आधार मानकर गठजोड़ नहीं करते। इनके समर्थन में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं-

  • सन् 1977 में जे०पी० नारायण के आह्वान पर जो जनता दल बना था उसमें कांग्रेस के विरोधी प्रायः सी०पी०आई० को छोड़कर अधिकांश विपक्षी दल जिनमें भारतीय जनसंघ, कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी, भारतीय क्रान्ति दल, तेलुगू देशम, समाजवादी पार्टी, अकाली दल आदि शामिल थे। इन सभी दलों को हम एक ही विचारधारा वाले दल नहीं कह सकते।
  • जनता दल की सरकार गिरने के बाद केन्द्र में राष्ट्रीय मोर्चा बना जिसमें एक ओर जनता पार्टी के वी०पी० सिंह तो दूसरी तरफ उन्हें समर्थन देने वाले सी०पी०एम० वामपन्थी और भाजपा जैसे तथाकथित हिन्दुत्व समर्थक गांधीवादी राष्ट्रवादी दल भी थे। कुछ महीनों बाद वी०पी० सिंह प्रधानमन्त्री नहीं रहे तो केवल सात महीनों के लिए कांग्रेस ने चन्द्रशेखर को समर्थन देकर प्रधानमन्त्री बनाया। चन्द्रशेखर वही नेता थे जिन्होंने इन्दिरा गांधी के आपातकाल के दौरान श्रीमती गांधी का विरोध किया था और श्रीमती गांधी ने चन्द्रशेखर और मोरारजी को कारावास में डाल दिया था।
  • कांग्रेस की सरकार, सन् 1991 से सन् 1996 तक नरसिंह राव के नेतृत्व में अल्पमत होते हुए भी इसलिए चलती रही क्योंकि उसे अनेक दलों का समर्थन प्राप्त था।
  • अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में जनतान्त्रिक गठबन्धन (एन०डी०ए०) की सरकार लगभग 6 वर्ष तक चली लेकिन उसे जहाँ एक ओर अकालियों ने तो दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस, बीजू पटनायक कांग्रेस, कुछ समय के लिए समता दल, जनता पार्टी आदि ने भी सहयोग और समर्थन दिया।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि राजनीति में किसी का कोई स्थायी शत्रु नहीं होता। अवसरवादिता हकीकत में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।

विपक्ष में तर्क-उपर्युक्त कथन के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं-

  • गठबन्धन की राजनीति के नए दौर में भी वामपन्थ के चारों दल अर्थात् सी०पी०एम०; सी०पी०आई०, फारवर्ड ब्लॉक, आर०एस० ने भारतीय जनता पार्टी से हाथ नहीं मिलाया, वे उसे अब भी राजनीतिक दृष्टि से अस्पर्शीय पार्टी मानती है।
  • समाजवादी पार्टी, वामपन्थी मोर्चा, डी०पी०के० जैसे क्षेत्रीय दल किसी भी उस प्रत्याशी को खुला समर्थन नहीं देना चाहते जो एन०डी०ए० अथवा भाजपा का प्रत्याशी हो क्योंकि उनकी वोटों की राजनीति को ठेस पहुँचती है।
  • कांग्रेस पार्टी ने अधिकांश मोर्चों पर बीजेपी विरोधी और बीजेपी ने कांग्रेस विरोधी रुख अपनाया है।


प्रश्न.5. आपातकाल के बाद के दौर में भाजपा एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरी। इस दौर में इस पार्टी के विकास-क्रम का उल्लेख करें।

भारतीय जनता पार्टी का विकासक्रम आपातकाल के बाद भारतीय जनता पार्टी की शक्ति में निरन्तर वृद्धि हुई और एक सशक्त राजनीतिक दल के रूप में उभरी। भाजपा की इस विकास यात्रा को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है-

  • जनता पार्टी सरकार के पतन के बाद जनता पार्टी के भारतीय जनसंघ घटक ने वर्ष 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन किया। श्री अटल बिहारी वाजपेयी इसके संस्थापक अध्यक्ष बने।
  • सन् 1984 के चुनावों में कांग्रेस के पक्ष में श्रीमती इन्दिरा गांधी की हत्या हो जाने के बाद पैदा हुई सहानुभूति की लहर में भाजपा को लोकसभा में केवल दो सीटें प्राप्त हुईं।
  • सन् 1989 के चुनावों में वी०पी० सिंह के जनमोर्चा के साथ गठजोड़ कर भाजपा ने चुनाव में भाग लिया तथा राम मन्दिर बनवाने के नारे को उछाला। फलत: इस चुनाव में भाजपा को आशा से अधिक सफलता मिली। भाजपा ने वी०पी० सिंह को बाहर से समर्थन देकर संयुक्त मोर्चा सरकार का गठन करने में सहयोग दिया।
  • सन् 1991 के चुनाव में इसने अपनी स्थिति को लगातार मजबूत किया। इस चुनाव में राम मन्दिर निर्माण का नारा विशेष लाभदायक सिद्ध हुआ।
  • सन् 1996 के चुनावों में यह लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी लेकिन लोकसभा में स्पष्ट बहुमत का समर्थन प्राप्त नहीं कर सकी।
  • सन् 1998 के चुनावों में इसने कुछ क्षेत्रीय दलों से गठबन्धन कर सरकार बनाई तथा सन् 1999 के चुनावों में भाजपानीत गठबन्धन ने फिर सत्ता प्राप्त की। राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन के काल में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमन्त्री बने।
  • सन् 2004 तथा सन् 2009 के चुनावों में भाजपा को पुनः अपेक्षित सफलता नहीं मिल पायी। फिर भी कांग्रेस के बाद आज यह दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है।


प्रश्न.6. कांग्रेस के प्रभुत्व का दौर समाप्त हो गया है। इसके बावजूद देश की राजनीति पर कांग्रेस का असर लगातार कायम है। क्या आप इस बात से सहमत हैं? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।

देश की राजनीति से यद्यपि कांग्रेस का प्रभुत्व समाप्त हो गया है परन्तु अभी कांग्रेस का असर कायम है, क्योंकि अब भी भारतीय राजनीति कांग्रेस के इर्द-गिर्द घूम रही है तथा सभी राजनीतिक दल अपनी नीतियाँ एवं योजनाएँ कांग्रेस को ध्यान में रखकर बनाते हैं। सन् 2004 के 14वें लोकसभा के चुनावों में इसने अन्य दलों के सहयोग से केन्द्र में सरकार बनाई। इसके साथ-साथ जुलाई 2007 में हुए राष्ट्रपति के चुनाव में भी इस दल की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। सन् 2009 के आम चुनावों में पहले से काफी अधिक सीटों पर जीत प्राप्त कर गठबन्धन की सरकार बनाई। अत: कहा जा सकता है कि कांग्रेस के कमजोर होने के बावजूद इसका असर भारतीय राजनीति पर कायम है।


प्रश्न.7. अनेक लोग सोचते हैं कि सफल लोकतन्त्र के लिए दो-दलीय व्यवस्था जरूरी है। पिछले बीस सालों के भारतीय अनुभवों को आधार बनाकर एक लेख लिखिए और इसमें बताइए कि भारत की मौजूदा बहुदलीय व्यवस्था के क्या फायदे हैं।

कुछ लोगों का मानना है कि सफल लोकतन्त्र के लिए दो-दलीय व्यवस्था जरूरी है। इनका मानना है कि द्वि-दलीय व्यवस्था में साधारण बहुमत के दोष समाप्त हो जाते हैं, सरकार स्थायी होती हैं, भ्रष्टाचार कम फैलता है, निर्णय शीघ्रता से लिए जा सकते हैं।भारत में बहुदलीय प्रणाली भारत में बहुदलीय प्रणाली है। कई विद्वानों का मत है कि भारत में बहुदलीय प्रणाली उचित ढंग से कार्य नहीं कर पा रही है। यह भारतीय लोकतन्त्र के लिए बाधा उत्पन्न कर रही है अत: भारत को द्वि-दलीय पद्धति अपनानी चाहिए परन्तु पिछले बीस वर्षों के अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बहुदलीय प्रणाली से भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को निम्नलिखित फायदे हुए हैं-

  • विभिन्न मतों का प्रतिनिधित्व-बहुदलीय प्रणाली के कारण भारतीय राजनीति में सभी वर्गों तथा हितों को प्रतिनिधित्व मिल जाता है। इस प्रणाली से सच्चे लोकतन्त्र की स्थापना होती है।
  • मतदाताओं को अधिक स्वतन्त्रता-अधिक दलों के कारण मतदाताओं को अपने वोट का प्रयोग करने के लिए अधिक स्वतन्त्रताएँ होती हैं। मतदाताओं के लिए अपने विचारों से मिलते-जुलते दल को वोट देना आसान हो जाता है।
  • राष्ट्र दो गुटों में नहीं बँटता-बहुदलीय प्रणाली होने के कारण भारत कभी भी दो विरोधी गुटों में . विभाजित नहीं हुआ।
  • मन्त्रिमण्डल की तानाशाही स्थापित नहीं होती-बहुदलीय प्रणाली के कारण भारत में मन्त्रिमण्डल तानाशाह नहीं बन सकता।
  • अनेक विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व-बहुदलीय प्रणाली में व्यवस्थापिका में देश की अनेक विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व हो सकता है।


प्रश्न.8. निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें-
भारत की दलगत राजनीति ने कई चुनौतियों का सामना किया है। कांग्रेस प्रणाली ने अपना खात्मा ही नहीं किया बल्कि कांग्रेस के जमावड़े के बिखर जाने से आत्म-प्रतिनिधित्व की नयी प्रवृत्ति का भी जोर बढ़ा। इससे दलगत व्यवस्था और विभिन्न हितों की समाई करने की इसकी क्षमता पर भी सवाल उठे। राज-व्यवस्था के सामने एक महत्त्वपूर्ण काम एक ऐसी दलगत व्यवस्था खड़ी करने अथवा राजनीतिक दलों को गढ़ने की है, जो कारगर तरीके से विभिन्न हितों को मुखर और एकजुट करें। -जोया हसन
(क) इस अध्याय को पढ़ने के बाद क्या आपदलगत व्यवस्था की चुनौतियों की सूची बना सकते हैं?
(ख) विभिन्न हितों का समाहार और उनमें एकजुटता का होना क्यों जरूरी है?
(ग) इस अध्याय में आपने अयोध्या विवाद के बारे में पढ़ा। इस विवाद ने भारत के राजनीतिक दलों की समाहार की क्षमता के आगे क्या चुनौती पेश की?

(क) इस अध्याय में दलगत व्यवस्था की निम्नलिखित चुनौतियाँ उभरकर सामने आती हैं-

  • गठबन्धन की राजनीति को चलाना।
  • कांग्रेस के कमजोर होने से खाली हुए स्थान को भरना।
  • पिछड़े वर्गों की राजनीति का उभरना।
  • अयोध्या विवाद का उभरना।
  • गैर-सैद्धान्तिक राजनीतिक समझौते का होना।
  • गुजरात दंगों से साम्प्रदायिक दंगे होना।

(ख) विभिन्न हितों का समाहार और उनमें एकजुटता का होना जरूरी है, क्योंकि तभी भारत अपनी एकता और अखण्डता को बनाए रखकर विकास कर सकता है।
(ग) अयोध्या विवाद ने भारत में राजनीतिक दलों के सामने साम्प्रदायिकता की चुनौती पेश की तथा भारत में साम्प्रदायिक आधार पर राजनीतिक दलों की राजनीति बढ़ गई।

The document भारतीय राजनीति : नए बदलाव (Recent Developments in Indian Politics) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC is a part of the UPSC Course NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12).
All you need of UPSC at this link: UPSC
916 docs|393 tests

Top Courses for UPSC

Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

ppt

,

Semester Notes

,

Extra Questions

,

Summary

,

past year papers

,

mock tests for examination

,

भारतीय राजनीति : नए बदलाव (Recent Developments in Indian Politics) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC

,

Exam

,

pdf

,

भारतीय राजनीति : नए बदलाव (Recent Developments in Indian Politics) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC

,

study material

,

practice quizzes

,

Objective type Questions

,

Previous Year Questions with Solutions

,

MCQs

,

Viva Questions

,

Sample Paper

,

भारतीय राजनीति : नए बदलाव (Recent Developments in Indian Politics) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC

,

Free

,

Important questions

,

video lectures

,

shortcuts and tricks

;