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क्षेत्रीय आकांक्षाएँ (Regional Aspirations) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC PDF Download

प्रश्न.1. निम्नलिखित में मेल करें:

क्षेत्रीय आकांक्षाएँ (Regional Aspirations) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC

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प्रश्न.2. पूर्वोत्तर के लोगों की क्षेत्रीय आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति कई रूपों में होती है। बाहरी लोगों के खिलाफ आन्दोलन, ज्यादा स्वायत्तता की माँग के आन्दोलन और अलग देश बनाने की माँग करना-ऐसी ही कुछ अभिव्यक्तियाँ हैं। पूर्वोत्तर के मानचित्र पर इन तीनों के लिए अलग-अलग रंग भरिए और दिखाइए किस राज्य में कौन-सी प्रवृत्ति ज्यादा प्रबल है।

  • बाहरी लोगों के खिलाफ आन्दोलन-असम
  • ज्यादा स्वायत्तता की माँग के आन्दोलन-मेघालय
  • अलग देश बनाने की माँग-मिजोरम

[अलग देश बनाने की माँग नागालैण्ड व मिजोरम ने की थी। कुछ समय पश्चात् मिजोरम स्वायत्त राज्य बनने के लिए तैयार हो गया। मेघालय, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा और मणिपुर को राज्य का दर्जा दे दिया गया है।] अत: मिजोरम की माँग का समाधान हो गया है, लेकिन नागालैण्ड में अलगाववाद की समस्या का पूर्ण समाधान अभी तक नहीं हो पाया है।


प्रश्न.3. पंजाब समझौते के प्रमुख प्रावधान क्या थे? क्या ये प्रावधान पंजाब और उसके पड़ोसी . राज्यों के बीच तनाव बढ़ाने के कारण बन सकते हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।

पंजाब समझौता-1970 के दशक में अकालियों के एक समूह ने पंजाब के लिए स्वायत्तता की माँग उठायी। आनन्दपुर साहिब में सन् 1973 में हुए एक सम्मेलन में इस आशय का प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें क्षेत्रीय स्वायत्तता का मुद्दा उठाया, केन्द्र-राज्य सम्बन्धों को पुनः परिभाषित करने तथा संघवाद को मजबूत करने पर बल दिया। परन्तु इसे एक अलग सिक्ख राष्ट्र की माँग के रूप में भी पढ़ा जा सकता है।
80 के दशक में कुछ चरमपन्थी सिक्खों ने पंजाब को एक अलग राष्ट्र-खालिस्तान बनाए जाने के सम्बन्ध में आन्दोलन शुरू किया। यह आन्दोलन उग्र रूप धारण कर रहा था। फलत: तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी ने ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ के तहत स्वर्ण मन्दिर में सेना को घुसने की अनुमति दे दी। इससे पंजाब में उग्रवाद और भड़क गया। इन्दिरा गांधी हत्या इसी की एक कड़ी थी।
पंजाब समझौता-जुलाई 1985 में अकाली दल के तत्कालीन अध्यक्ष हरचन्द सिंह लोंगोवाल और प्रधानमन्त्री राजीव गांधी के बीच एक समझौता हुआ जिसे ‘पंजाब-समझौता’ कहा जाता है। इस समझौते के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं-

  • मारे गए निरपराध व्यक्तियों के लिए मुआवजा-1 सितम्बर, 1982 के बाद हुई किसी कार्रवाई या आन्दोलन में मारे गए लोगों को अनुग्रह राशि के भुगतान के साथ सम्पत्ति की क्षति के लिए मुआवजा दिया जाएगा।
  • सेना में भर्ती-देश के सभी नागरिकों को सेना में भर्ती का अधिकार होगा और चयन के लिए केवल योग्यता ही आधार रहेगा।
  • नवम्बर दंगों की जाँच-दिल्ली में नवम्बर में हुए दंगों की जाँच कर रहे रंगनाथ मिश्र आयोग का कार्यक्षेत्र बढ़ाकर उसमें बोकारो और कानपुर में हुए उपद्रवों की जाँच को भी शामिल किया जाएगा।
  • सेना से निकाले हुए व्यक्तियों का पुनर्वास-सेना के निकाले हुए व्यक्तियों और उन्हें लाभकारी रोजगार दिलाने के प्रयास किए जाएंगे।
  • अखिल भारतीय गुरुद्वारा कानून-भारत सरकार अखिल भारतीय गुरुद्वारा कानून बनाने पर सहमत हो गई। इसके लिए शिरोमणि अकाली दल और अन्य सहयोगियों के साथ सलाह-मशविरा और संवैधानिक जरूरतें पूर्ण करने के बाद विधेयक लागू किया जाएगा।
  • लम्बित मुकदमों का फैसला-सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून को पंजाब में लागू करने वाली अधिसूचना वापस ली जाएगी। वर्तमान विशेष न्यायालय केवल विमान अपहरण तथा शासन के खिलाफ युद्ध के मामले सुनेगी। शेष मामले सामान्य न्यायालयों को सौंप दिए जाएंगे और यदि आवश्यक हुआ तो इसके बारे में कानून बनाया जाएगा।
  • सीमा विवाद-चण्डीगढ़ का राजधानी परियोजना क्षेत्र और सुखना ताल पंजाब में दिए जाएंगे। केन्द्रशासित प्रदेश के अन्य पंजाबी क्षेत्र पंजाब को तथा हिन्दी भाषी क्षेत्र हरियाणा को दिए जाएंगे।

समझौते के तुरन्त बाद शान्ति आसानी से स्थापित नहीं हुई। हिंसा का चक्र लगभग एक दशक तक चलता रहा। केन्द्र सरकार को पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा। – 1990 के दशक के मध्यवर्ती वर्षों में पंजाब में शान्ति की स्थापना हुई। सन् 1997 में अकाली दल (बादल) और भाजपा गठबन्धन को चुनावों में जीत हासिल हुई और इसके बाद राजनीति धर्मनिरपेक्षता के मार्ग पर चल पड़ी।


प्रश्न.4. आनन्दपुर साहिब प्रस्ताव के विवादास्पद होने के क्या कारण थे?

आनन्दपुर साहिब प्रस्ताव के विवादास्पद होने का मुख्य कारण यह था कि इस प्रस्ताव में पंजाब सूबे के लिए अधिक स्वायत्तता की माँग की गई, जो कि परोक्ष रूप से एक अलग सिक्ख राष्ट्र की माँग को बढ़ावा देती है।


प्रश्न.5. जम्मू-कश्मीर की अन्दरूनी विभिन्नताओं की व्याख्या कीजिए और बताइए कि इन विभिन्नताओं के कारण इस राज्य में किस तरह अनेक क्षेत्रीय आकांक्षाओं ने सिर उठाया है।

अन्दरूनी विभिन्नताएँ-जम्मू-कश्मीर में अधिकांश रूप में अन्दरूनी विभिन्नताएँ पायी जाती हैं। जम्मू-कश्मीर राज्य में तीन राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र-जम्मू, कश्मीर और लद्दाख शामिल हैं। जम्मू पहाड़ी क्षेत्र है, इसमें हिन्दू-मुस्लिम और सिक्ख अर्थात् सभी धर्मों व भाषाओं के लोग रहते हैं। कश्मीर में मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या अधिक है और यहाँ पर हिन्दू अल्पसंख्यक हैं। जबकि लद्दाख पर्वतीय क्षेत्र है, इसमें बौद्ध मुस्लिम की आबादी है। इतनी विभिन्नताओं के कारण यहाँ पर कई क्षेत्रीय आकांक्षाएँ पैदा होती रहती हैं, यथा-

  • इसमें पहली आकांक्षा कश्मीरी पहचान की है जिसे कश्मीरियत के रूप में जाना जाता है। कश्मीर के निवासी सबसे पहले अपने को कश्मीरी तथा बाद में कुछ और मानते थे।
  • राज्य में उग्रवाद और आतंकवाद को दूर करना भी यहाँ के लोगों की एक मुख्य आकांक्षा है।
  • स्वायत्तता की बात जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के लोगों को अलग-अलग ढंग से लुभाती है। यहाँ पूरे राज्य में स्वायत्तता की माँग जितनी प्रबल है, उतनी ही प्रबल माँग राज्य के विभिन्न भागों में अपनी-अपनी स्वायत्तता को लेकर है।
  • जम्मू-कश्मीर में कई राजनीतिक दल हैं,जो जम्मू-कश्मीर के लिए स्वायत्तता की माँग करते रहते हैं। इनमें नेशनल कॉन्फ्रेंस सबसे महत्त्वपूर्ण दल है।
  • इसके अतिरिक्त कुछ उग्रवादी संगठन भी हैं, जो धर्म के नाम पर जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करना चाहते हैं।


प्रश्न.6. कश्मीर की क्षेत्रीय स्वायत्तता के मसले पर विभिन्न पक्ष क्या हैं? इनमें से कौन-सा पक्ष आपको समुचित जान पड़ता है? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।

कश्मीर की स्वायत्तता का मसला-कश्मीर की क्षेत्रीय स्वायत्तता के मसले पर मुख्य रूप से दो पक्ष सामने आते हैं-
पहला पक्ष वह है जो धारा-370 को समाप्त करना चाहता है, जबकि दूसरा पक्ष वह है जो इस राज्य को और अधिक स्वायत्तता देना चाहता है।
यदि इन दोनों पक्षों का उचित ढंग से अध्ययन किया जाए तो पहला पक्ष अधिक उचित दिखाई देता है जो धारा-370 को समाप्त करने के पक्ष में है। उनका तर्क है कि इस धारा के कारण यह राज्य भारत के साथ पूरी तरह नहीं मिल पाया है। इसके साथ-साथ जम्मू-कश्मीर को अधिक स्वायत्तता देने से कई प्रकार की राजनीतिक एवं सामाजिक समस्याएँ भी पैदा होती हैं।


प्रश्न.7. असम आन्दोलन सांस्कृतिक अभिमान और आर्थिक पिछड़ेपन की मिली-जुली अभिव्यक्ति था। व्याख्या कीजिए।

असम आन्दोलन-असम पूर्वोत्तर भारत का एक महत्त्वपूर्ण राज्य है। सन् 1979 से सन् 1985 तक असम में बाहरी लोगों के खिलाफ जो आन्दोलन चला, उसे ‘असम आन्दोलन’ के नाम से जाना जाता है। यह आन्दोलन असम के सांस्कृतिक अभियान और आर्थिक पिछड़ेपन की मिली-जुली अभिव्यक्ति था क्योंकि-

  • असमी लोगों को सन्देह था कि बंगलादेश से आकर बहुत-सी मुस्लिम आबादी असम में बसी हुई है। लोगों के मन में यह भावना घर कर गई थी कि इन विदेशी लोगों को पहचानकर उन्हें अपने देश नहीं भेजा गया तो स्थानीय असमी जनता अल्पसंख्यक हो जाएगी। या उन्हें ‘असमी संस्कति’ पर खतरा दिखाई दे रहा था। अतः सन् 1979 में ऑल असम स्टूडेण्ट यूनियन ने जब विदेशियों के विरोध में आन्दोलन चलाया, जिससे यह माँग की गई कि सन् 1951 के बाद जितने भी लोग असम में आकर बसे हैं उन्हें असम से बाहर भेजा जाए, तो असमी जनता के हर तबके ने इसका समर्थन किया तथा इस आन्दोलन को पूरे असम में समर्थन मिला।
  • असम आन्दोलन के पीछे आर्थिक मसले भी जुड़े थे। असम में तेल, चाय और कोयले जैसे प्राकृतिक संसाधनों की मौजूदगी के बावजूद व्यापक गरीबी थी। यहाँ की जनता ने माना कि असम के प्राकृतिक संसाधन बाहर भेजे जा रहे हैं और असमी लोगों को कोई फायदा नहीं हो रहा है। अत: इस आन्दोलन के पीछे सांस्कृतिक स्वाभिमान के साथ-साथ असम के आर्थिक पिछड़ेपन की पीड़ा की भी अभिव्यक्ति थी।


प्रश्न.8. हर क्षेत्रीय आन्दोलन अलगाववादी माँग की तरफ अग्रसर नहीं होता। इस अध्याय से उदाहरण देकर इस तथ्य की व्याख्या कीजिए।

भारत के कई क्षेत्रों में काफी समय से कुछ क्षेत्रीय आन्दोलन चल रहे हैं, परन्तु सभी क्षेत्रीय आन्दोलन अलगाववादी आन्दोलन नहीं होते, अर्थात् कुछ क्षेत्रीय आन्दोलन भारत से अलग नहीं होना चाहते बल्कि अपने लिए अलग राज्य की माँग करते हैं; जैसे-झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का आन्दोलन, छत्तीसगढ़ के आदिवासियों द्वारा चलाया गया आन्दोलन तथा तेलंगाना प्रजा समिति द्वारा चलाया गया आन्दोलन इत्यादि।


प्रश्न.9. भारत के विभिन्न भागों में उठने वाली क्षेत्रीय मांगों से ‘विविधता में एकता’ के सिद्धान्त की अभिव्यक्ति होती है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? तर्क दीजिए।

हाँ, मैं इस कथन से सहमत हूँ कि भारत के विभिन्न भागों से उठने वाली क्षेत्रीय मांगों में विविधता . में एकता के सिद्धान्त की अभिव्यक्ति होती है क्योंकि देश के विभिन्न क्षेत्रों से विभिन्न प्रकार की माँगें उठीं।
तमिलनाडु में जहाँ हिन्दी भाषा के विरोध और अंग्रेजी भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में बनाए रखने की माँग उठी, तो असम में विदेशियों को असम से बाहर निकालने की माँग उठी, नागालैण्ड और मिजोरम में अलगाववाद की मांग उठी तो आन्ध्र प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश व अन्य राज्यों में, भाषा के आधार पर अलग राज्य बनाने की माँग उठी।
इसी तरह उत्तराखण्ड, छत्तीसगढ़ तथा झारखण्ड क्षेत्रों में प्रशासनिक सुविधा तथा आदिवासियों के हितों की रक्षा हेतु अलग राज्य बनाने के आन्दोलन हुए। अभी भी विभिन्न क्षेत्रों से भिन्न-भिन्न प्रकार की मांग उठ रही हैं जिनका मुख्य आधार क्षेत्रीय पिछड़ापन है। इससे स्पष्ट होता है कि भारत के विभिन्न भागों से उठने वाली क्षेत्रीय मांगों से विविधता के दर्शन होते हैं। भारत सरकार ने इन मांगों के निपटारे के लिए लोकतान्त्रिक दृष्टिकोण अपनाते हुए एकता का परिचय दिया है। लोकतन्त्र में क्षेत्रीय आकांक्षाओं की राजनीतिक अभिव्यक्ति की अनुमति होती है और लोकतन्त्र क्षेत्रीयता को राष्ट्र विरोधी नहीं मानता। लोकतान्त्रिक राजनीति में क्षेत्रीय मुद्दों और समस्याओं पर नीति-निर्माण की प्रक्रिया में समुचित ध्यान दिया जाता है। अतः स्पष्ट है कि देश में सामने आने वाली क्षेत्रीय मांगों से विविधता में एकता की अभिव्यक्ति होती है।


प्रश्न.10. नीचे लिखे अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें:
हजारिका का एक गीत एकता की विजय पर है; पूर्वोत्तर के सात राज्यों को इस गीत में एक ही माँ की सात बेटियाँ कहा गया है _______ मेघालय अपने रास्ते गई _______ अरुणाचल भी अलग हुई और मिजोरम असम के द्वार पर दूल्हे की तरह दूसरी बेटी से ब्याह रचाने के लिए खड़ा है _______ इस गीत का अन्त असम लोगों की एकता को बनाए रखने के संकल्प के साथ होता है और इसमें समकालीन असम में मौजूद छोटी-छोटी कौमों को भी अपने साथ एकजुट रखने की बात कही गई है _______ करबी बौर मिजिंग भाई-बहन हमारे ही प्रियजन हैं। -संजीव बरूआ
(क) लेखक यहाँ किस एकता की बात कर रहा है?
(ख) पुराने राज्य असम से अलग करके पूर्वोत्तर के कुछ राज्य क्यों बनाए गए?
(ग) क्या आपको लगता है कि भारत के सभी क्षेत्रों के ऊपर एकता की यही बात लागू हो सकती है? क्यों?

(क) लेखक यहाँ पर पूर्वोत्तर राज्यों की एकता की बात कर रहा है।
(ख) सभी समुदायों की सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने के लिए तथा आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए पुराने राज्य असम से अलग करके पूर्वोत्तर के अन्य राज्य बनाए गए।
(ग) भारत के सभी क्षेत्रों पर एकता की यह बात लागू हो सकती है, क्योंकि भारत के सभी राज्यों में अलग-अलग धर्मों एवं जातियों के लोग रहते हैं तथा देश की एकता एवं अखण्डता के लिए उनमें एकता कायम करना आवश्यक है।

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