प्रश्न.1. अठारहवीं शताब्दी में पोशाक शैलियों और सामग्री में आए बदलावों के क्या कारण थे?
अठारहवीं शताब्दी में पोशाक शैलियों और सामग्री में बदलाव पूंजीवाद के विकास एवं वैश्वीकरण के कारण आया था। उद्योगों में वृद्धि हुई और उपनिवेशवाद ने विभिन्न संस्कृतियों एवं क्षेत्रों के लोगों को एक साथ ला खड़ा किया। लोग दूसरी संस्कृतियों या इलाकों में उपलब्ध सामग्री व शैली को पसंद करने लगे थे। पूरे विश्व में पुरुषों के पाश्चात्य परिधानों को अपनाया जाने लगा।
प्रश्न.2. फ्रांस के सम्प्चुअरी कानून क्या थे?
मध्यकालीन यूरोप में समाज के विभिन्न वर्गों पर परिधान-संहिताएँ लागू करने के लिए सम्प्चुअरी कानून बनाए जाते थे जिनका विस्तृत वर्णन किया जाता था। करीब 1294 से 1789 में फ्रांसीसी क्रांति तक फ्रांस के लोगों से उम्मीद की जाती थी कि वे सम्प्चुअरी कानूनों का पालन करें। इन कानूनों का उद्देश्य समाज के निचले वर्गों के व्यवहार पर नियंत्रण करना था। ये कानून निचले वर्गों द्वारा खरीदे जाने वाले कपड़ों की कीमत एवं उनका प्रकार निर्धारित करके उनकी जीवन शैली को नियंत्रित करने का प्रयास करते थे। कपड़े की सामग्री भी, कानूनी रूप से निर्धारित की गई थी। ये कानून निचले वर्ग के लोगों को विशेष प्रकार के कपड़े पहनने, विशेष प्रकार के भोजन खाने व पेय पीने, और कुछ विशेष क्षेत्रों में शिकार करने से रोकते थे। निचले वर्गों को एर्माइन, फर, रेशम, मखमल या जरी की पोशाक जैसे बेशकीमती वस्त्र पहनने की मनाही थी और इन्हें केवल शाही खानदान के लोग ही पहन सकते थे। केवल शाही खानदान के लोग ही ये वस्त्र पहन सकते थे।
प्रश्न.3. यूरोपीय पोशाक संहिता और भारतीय पोशाक संहिता के बीच कोई दो अंतर बताइए ।
यूरोपीय और भारतीय पोशाक संहिता के बीच दो अंतर निम्नलिखित हैं- यूरोपीय पोशाक संहिता में तंग वस्त्रों को महत्त्व दिया जाता था जबकि भारतीय पोशाक संहिता में आरामदेह तथा ढीले- ढाले वस्त्रों को अधिक महत्त्व दिया जाता था। यूरोपीय पोशाक संहिता कानूनी समर्थन पर आधारित थी, जबकि भारतीय पोशाक संहिता को सामाजिक समर्थन प्राप्त था। यूरोप के लोग हैट पहनते थे जिसे वे स्वयं से उच्च सामाजिक स्तर के लोगों के सामने सम्मान प्रकट करने के लिए उतारते थे जबकि भारत के लोग अपने को गर्मी से बचाने के लिए पगड़ी पहनते थे और यह सम्मान का सूचक थी। इसे इच्छानुसार बार-बार नहीं उतारा जाता था।
प्रश्न.4. 1805 में अंग्रेज अफसर बेंजमिन हाइन ने बंगलोर में बनने वाली चीज़ों की एक सूची बनाई थी, जिसमें निम्नलिखित उत्पाद भी शामिल थे :
स्वदेशी आंदोलन ने लोगों के दिलों में जो देशभक्ति की भावना जगाई थी उसके कारण ऊपर दी गई सूची में से रेशम के कपड़े प्रयोग से बाहर चले गए होंगे। ब्रिटिश शासन के प्रति बढ़ते विरोध को नियंत्रित करने के लिए 1905 में लॉर्ड कर्जन ने बंगाल विभाजन का निर्णय लिया। इस कदम के प्रत्युत्तर में स्वदेशी आंदोलन ने जन्म ले लिया। लोगों ने सभी प्रकार के ब्रिटिश सामान का बहिष्कार करने का निर्णय लिया। उन्होंने माचिस व सिगरेट जैसे सामान के निर्माण के लिए स्वयं के उद्योग धन्धे स्थापित कर लिए। खादी का प्रयोग देशभक्ति के लिए कर्त्तव्य बन गया। महिलाओं ने अपने रेशमी कपड़े व काँच की चूड़ियाँ फेंक दी और सादी शंख की चूड़ियाँ धारण करने लगीं।
प्रश्न.5. उन्नीसवीं सदी के भारत में औरतें परंपरागत कपड़े क्यों पहनती रहीं जबकि पुरुष पश्चिमी कपड़े पहनने लगे थे? इससे समाज में औरतों की स्थिति के बारे में क्या पता चलता है?
भारत के स्वाभाविक सामाजिक एवं पारंपरिक रिवाजों के चलते उन्नीसवीं सदी के भारत में औरतें परंपरागत कपड़े पहनने को बाध्य थीं जबकि पुरुष पश्चिमी कपड़े पहनने लगे थे। हमारा समाज मुख्यतः पुरुष प्रधान है और महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि वे पारिवारिक सम्मान को बनाए रखें। उनसे सुशील एवं अच्छी गृहिणी बनने की अपेक्षा की जाती थी। वे पुरुषों जैसे वस्त्र नहीं पहन सकती थीं और इसलिए, उन्होंने पारंपरिक परिधान पहनना जारी रखा। यह सीधे तौर पर महिलाओं को समाज में निम्न दर्जा हासिल होने का सूचक है।
प्रश्न.6. विंस्टन चर्चिल ने कहा था कि महात्मा गांधी ‘राजद्रोही मिडिल टेम्पल वकील’ से ज़्यादा कुछ ‘अधनंगे फकीर का दिखावा कर रहे हैं। चर्चिल ने यह वक्तव्य क्यों दिया और इससे महात्मा गांधी की पोशाक की प्रतीकात्मक शक्ति के बारे में क्या पता चलता है।
महात्मा गांधी के सामाजिक एवं आर्थिक रूप से वंचित लोगों के प्रति सहानुभूति प्रकट करने हेतु उन्हीं जैसी वेशभूषा धारण करन के निर्णय के प्रतिक्रियास्वरूप विंस्टन चर्चिल ने महात्मा गांधी को ‘राजद्रोही मिडिल टेम्पल वकील’ की संज्ञा दे डाली और कहा कि वह अब ‘अधनंगे फकीर का दिखावा कर रहे हैं। गांधी जी के पहनावे की प्रतीकात्मक शक्ति इसकी सादगी में थी – वे गरीब के प्रति उनका समर्थन प्रकट करने के लिए, ब्रिटिश सामग्री के बहिष्कार को बढ़ावा देने के लिए एवं धार्मिक एवं जातिगत भेदभाव मिटाने के लिए इसका प्रयोग करना चाहते थे। महात्मा गाँधी ने कपड़े को ब्रिटिश शासन के विरुद्ध प्रतीकात्मक हथियार के रूप में प्रयोग किया। उन्होंने यह वेशभूषा इसलिए अपनाई क्योंकि वे देश के असंख्य लोगों जैसी सादी एवं गरीब जीवनशैली अपनाना चाहते थे विशेषतः उन गरीब किसानों की जो एक लंगोटी व एक चादर के अतिरिक्त कुछ भी नहीं जुटा सकते। यह भारतीय संसाधनों के अंग्रजों द्वारा किए जा रहे शोषण के विरोधस्वरूप भी था।
प्रश्न.7. समूचे राष्ट्र को खादी पहनाने का गांधीजी का सपना भारतीय जनता के केवल कुछ हिस्सों तक ही सीमित क्यों रहा ?
महात्मा गांधी के पूरे राष्ट्र को खादी पहनाने के स्वप्न ने विभिन्न कारणों से कुछ ही वर्ग के लोगों को आकर्षित किया।
(i) दासता से मुक्ति ने सदियों से वंचित वर्गों के लिए नए द्वार खोल दिए : वे पश्चिमी शैली के कपड़ों के साथ प्रयोग करना चाहते थे ताकि वेशभूषा संबंधी रोकटोक अब उनकी इच्छाओं को न दबाए। उन्होंने सार्वजनिक मौकों पर जूते-मोजे और थ्री-पीस सूट पहनना, प्रारंभ कर दिया जो कि उनकी ओर से आत्मसम्मान का राजनीतिक वक्तव्य था।
(ii) अन्य लोगों के लिए खादी पहनना महंगाई का सौदा था जबकि महिलाओं ने कहा कि वे 9 गज (दक्षिण भारत में साड़ी की मानक लंबाई) की खादी से निर्मित साड़ी नहीं पहन सकती।
इसलिए, महात्मा गांधी के विपरीत इसलिए बाबा साहब अंबेडकर जैसे अन्य राष्ट्रवादियों ने पाश्चात्य शैली का सूट पहनना कभी नहीं छोड़ा। सरोजिनी नायडू और कमला नेहरू जैसी महिलाएं भी हाथ से बुने सफेद, मोटे कपड़ों की जगह रंगीन व डिजाइनदार साड़ियाँ पहनती थीं।
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