प्रश्न.1. मानव नेत्र अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी को समायोजित करके विभिन्न दूरियों पर रखी वस्तुओं को फोकसित कर सकता है| ऐसा हो पाने का कारण है-
(a) जरा-दूरदृष्टिता
(b) समंजन
(c) निकट-दृष्टि
(d) दीर्घ दृष्टि
सही उत्तर (b) समंजन
प्रश्न.2. मानव नेत्र जिस भाग पर किसी वस्तु का प्रतिबिंब बनाते हैं वह है-
(a) कॉर्निया
(b) परितारिका
(c) पुतली
(d) दृष्टिपटल
सही उत्तर (d) दृष्टिपटल
प्रश्न.3. सामान्य दृष्टि के व्यस्क के लिए सुस्पष्ट दर्शन की अल्पतम दूरी होती है, लगभग-
(a) 25 m
(b) 2.5 cm
(c) 25 cm
(d) 2.5 m
सही उत्तर (c) 25 cm
प्रश्न.4. अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी में परिवर्तन किया जाता है-
(a) पुतली द्वारा
(b) दृष्टिपटल द्वारा
(c) पक्ष्माभी द्वारा
(d) परितारिका द्वारा
सही उत्तर (c) पक्ष्माभी द्वारा
प्रश्न.5. किसी व्यक्ति को अपनी दूर की दृष्टि को संशोधित करने के लिए -5.5 डाइऑप्टर क्षमता के लेंस की आवश्यकता है| अपनी निकट की दृष्टि को संशोधित करने के लिए उसे +1.5 डाइऑप्टर क्षमता के लेंस की आवश्यकता है| संशोधित करने के लिए आवश्यक लेंस की फोकस दूरी क्या होगी- (i) दूर की दृष्टि के लिए (ii) निकट की दृष्टि के लिए|
लेंस की फोकस दूरी, f की क्षमता P के संबंध द्वारा व्यक्त किया गया है, P = 1/f
(i) दूर की दृष्टि को संशोधित करने के लिए प्रयोग की गई लेंस की क्षमता = - 5.5 D
आवश्यक लेंस की फोकस दूरी, f = 1/Pf = 1/-5.5 = -0.181 m
दूर की दृष्टि को संशोधित करने के लिए आवश्यक लेंस की फोकस दूरी -0.181 m है|
(ii) निकट की दृष्टि को संशोधित करने के लिए प्रयोग की गई लेंस की क्षमता = +1.5 D
आवश्यक लेंस की फोकस दूरी, f = 1/P
f = 1/1.5 = +0.667 m
निकट की दृष्टि को संशोधित करने के लिए आवश्यक लेंस की फोकस दूरी 0.667 m है|
प्रश्न.6. किसी निकट-दृष्टि दोष से पीड़ित व्यक्ति का दूर बिंदु नेत्र के सामने 80 cm दूरी पर है| इस दोष को संशोधित करने के लिए आवश्यक लेंस की प्रकृति तथा क्षमता क्या होगी?
निकट दृष्टि दोष से पीड़ित व्यक्ति के सामने वस्तु अनंत पर होनी चाहिए-
u = – ∞
v = –80 cm
लेंस सूत्र का उपयोग,
प्रश्न.7. चित्र बनाकर दर्शाइये कि दीर्घ-दृष्टि दोष कैसे संशोधित किया जाता है| एक दीर्घ-दृष्टि दोषयुक्त नेत्र का निकट बिंदु 1 m है| इस दोष को संशोधित करने के लिए आवश्यक लेंस की क्षमता क्या होगी?
दीर्घ-दृष्टि दोषयुक्त कोई व्यक्ति दूर की वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है, परन्तु निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख पाता| इसका कारण यह है कि पास रखी वस्तु से आने वाली प्रकश किरणें दृष्टिपटल के पीछे फोकसित होती हैं| इस दोष को उपयुक्त क्षमता के अभिसारी लेंस (उत्तल लेंस) का उपयोग करके संशोधित किया जा सकता है| उत्तल लेंस युक्त चश्मे दृष्टिपटल पर वस्तु का प्रतिबिंब फोकसित करने के लिए आवश्यक अतिरिक्त क्षमता प्रदान करते हैं|
वास्तव में उत्तल लेंस दीर्घ-दृष्टि दोष युक्त व्यक्ति के दृष्टि के निकट बिंदु (N) पर निकटस्थ वस्तु (चित्र में N') का आभासी प्रतिबिंब बनाता है|
इस प्रकार यदि वस्तु का प्रतिबिंब उसके दृष्टि के निकट बिंदु (1 m) पर बनता है तो वह 25 cm की दूरी पर रखे गए वस्तु को स्पष्ट रूप से देख सकता है, (सामान्य नेत्र का निकट-बिंदु)|
बिंब की दूरी, u = -25 cm
प्रतिबिंब की दूरी, v = -1 m = -100 cm
फोकस दूरी = f
लेंस सूत्र का प्रयोग करने पर,
इस दोष को संशोधित करने के लिए +3.0 D के उत्तल लेंस की आवश्यकता होती है|
प्रश्न.8. सामान्य नेत्र 25 cm से निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट क्यों नहीं देख पाते?
एक सामान्य नेत्र 25 cm से निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट क्यों नहीं देख पाता क्योंकि नेत्र की पक्ष्माभी मांससपेशियाँ एक निश्चित सीमा के बाद सिकुड़ने में असमर्थ होती हैं|
प्रश्न.9. जब हम नेत्र से किसी वस्तु की दूरी को बढ़ा देते हैं तो नेत्र में प्रतिबिंब-दूरी का क्या होता है?
जब हम नेत्र से किसी वस्तु की दूरी को बढ़ा देते हैं तो प्रतिबिंब दृष्टिपटल पर बनता है| जैसे ही हम नेत्र से वस्तु की दूरी बढ़ाते हैं तो अभिनेत्र लेंस पतला हो जाता है तथा इसकी फोकस दूरी बढ़ जाती है|
प्रश्न.10. तारे क्यों टिमटिमाते हैं?
तारों के प्रकाश के वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण ही तारे टिमटिमाते प्रतीत होते हैं| चूँकि तारे बहुत दूर हैं, अतः वे प्रकाश के बिंदु-स्रोत के सन्निकट हैं| क्योंकि, तारों से आने वाली प्रकाश किरणों का पथ थोड़ा-थोड़ा परिवर्तित होता रहता है, अतः तारे की आभासी स्थिति विचलित होती रहती है तथा आँखों में प्रवेश करने वाले तारों के प्रकाश की मात्रा झिलमिलाती रहती है- जिसके कारण कोई तारा कभी चमकीला प्रतीत होता है तो कभी धुँधला, जो कि टिमटिमाहट का प्रभाव है|
प्रश्न.11. व्याख्या कीजिए कि ग्रह क्यों नहीं टिमटिमाते?
ग्रह पृथ्वी के बहुत पास हैं और इसीलिए उन्हें विस्तृत स्रोत की भाँति माना जा सकता है| यदि हम ग्रह को बिंदु-साइज़ के अनेक प्रकाश-स्रोत का संग्रह मान लेते हैं तो सभी बिंदु-साइज़ के प्रकाश स्रोतों से हमारे नेत्रों में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा में कुल परिवर्तन का औसत मान शून्य होता है| इस कारण ग्रहों के टिमटिमाने का प्रभाव निष्प्रभावित हो जाता है|
प्रश्न.12. सूर्योदय के समय सूर्य रक्ताभ क्यों प्रतीत होता है?
सूर्योदय के समय, क्षितिज के समीप स्थित सूर्य से आने वाला प्रकाश हमारे नेत्रों तक पहुँचने से पहले पृथ्वी के वायुमंडल में वायु की मोटी परतों से होकर गुजरता है| इस दौरान, कम तरंगदैर्ध्य के प्रकाश के किरण बिखर जाते हैं तथा अधिक तरंगदैर्ध्य वाले प्रकाश के किरण हमारी आँखों तक पहुँच पाते हैं| क्षितिज के समीप नीले तथा कम तरंगदैर्ध्य के प्रकाश का अधिकांश भाग कणों द्वारा प्रकीर्ण हो जाता है| इसीलिए हमारी आँखों तक पहुँचने वाला प्रकाश अधिक तरंगदैर्ध्य अर्थात लाल रंग होता है| इससे सूर्योदय के समय सूर्य रक्ताभ प्रतीत होता है|
प्रश्न.13. किसी अंतरिक्षयात्री को आकाश नीले की अपेक्षा काला क्यों प्रतीत होता है?
किसी अंतरिक्षयात्री को आकाश नीले की अपेक्षा काला प्रतीत होता है क्योंकि इतनी अधिक ऊँचाई पर वायुमंडल न होने के कारण प्रकाश का प्रकीर्णन सुस्पष्ट नहीं होता| प्रकाश का प्रकीर्णन न होने के कारण कोई भी प्रकीर्णित किरणें अंतरिक्षयात्री के नेत्रों तक नहीं पहुँच पाती हैं और आकाश काला प्रतीत होता है|
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