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वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ (Atmospheric Circulation and Weather System NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC PDF Download

अभ्यास

प्रश्न.1. बहुवैकल्पिक प्रश्न

(i) यदि धरातल पर वायुदाब 1,000 मिलीबार है तो धरातल से 1 कि.मी. की ऊँचाई पर वायुदाब कितना होगा?
(क) 700 मिलीबार
(ख) 900 मिलीबार
(ग) 1,100 मिलीबार
(घ) 1300 मिलीबार

सही उत्तर (ख) 900 मिलीबार

(ii) अंतर उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र प्रायः कहाँ होता है?
(क) विषुवत् वृत के निकट
(ख) कर्क रेखा के निकट
(ग) मकर रेखा के निकट
(घ) आर्कटिक वृत्त के निकट

सही उत्तर (क) विषुवत् वृत के निकट

(iii) उत्तरी गोलार्ध में निम्न वायुदाब के चारों तरफ पवनों की दिशा क्या होगी?
(क) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के अनुरूप
(ख) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के विपरीत
(ग) समदाब रेखाओं के समकोण पर
(घ) समदाब रेखाओं के समानांतर

सही उत्तर (ख) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के विपरीत

(iv) वायुराशियों के निर्माण का उद्गम क्षेत्र निम्नलिखित में से कौन-सा है?
(क) विषुवतीय वन
(ख) साइबेरिया का मैदानी भाग
(ग) हिमालय पर्वत
(घ) दक्कन पठार

सही उत्तर (ख) साइबेरिया का मैदानी भाग


प्रश्न.2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए:

(i) वायुदाब मापने की इकाई क्या है? मौसम मानचित्र बनाते समय किसी स्थान के वायुदाब को समुद्रतल तक क्यों घटाया जाता है?

वायुदाब मापने की इकाई मिलीबार है। व्यापक रूप से प्रयोग की जाने वाली इकाई किलो पास्कल है, जिसे hpa लिखा जाता है। वायुदाब के क्षैतिज वितरण का अध्ययन समान अंतराल पर खींची गई समदाब रेखाओं द्वारा किया जाता है। समदाब रेखाएँ वे रेखाएँ हैं जो समुद्रतल से एक समान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाती हैं। दाब पर ऊँचाई के प्रभाव को दूर करने और तुलनात्मक बनाने के लिए, वायुदाब मापने के बाद इसे समुद्रतल के स्तर पर घटा लिया जाता है। समुद्रतल पर वायुदाब वितरण मौसम मानचित्रों में दिखाया जाता है।

(ii) जब दाब प्रवण्ता बल उत्तर से दक्षिण दिशा की तरफा हो अर्थात् उपोष्ण उच्च दाब से विषुवत वृत्त की ओर हो तो उत्तरी गोलार्ध में उष्णकटिबंध में पवनें उत्तरी-पूर्वी क्यों होती हैं?

पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूर्णन पवनों की दिशा को प्रभावित करता है। इसे कोरिऑलिस बल कहा जाता है। इसके प्रभाव से पवनें उत्तरी गोलार्ध में अपनी मूल दिशा से दाहिने तरफ व दक्षिणी गोलार्ध में अपने बाईं तरफ विक्षेपित हो जाती हैं। कोरिऑलिस प्रभाव दाब प्रवणता के समकोण पर कार्य करता है। दाब प्रवणता बल समदाब रेखाओं के समकोण पर होता है। दाब प्रवणता जितनी अधिक होगी, पवनों का वेग उतना ही अधिक होगा और पवनों की दिशा उतनी ही अधिक विक्षेपित होगी। इन दो बलों के एक-दूसरे से समकोण पर होने के कारण निम्न दाब क्षेत्रों में पवनें इसी के इर्द-गिर्द बहती हैं, इसलिए जब दाब प्रवणता बले उत्तर से दक्षिण दिशा की तरफ हो अर्थात उपोष्ण उच्चदाब से विषुवत वृत की ओर हो तो उत्तरी गोलार्ध में उष्णकटिबंध में पवनें उत्तर-पूर्व होती हैं।

(iii) भू-विक्षेपी पवनें क्या हैं?

पवनों का वेग व उनकी दिशा, पवनों को उत्पन्न करने वाले बलों का परिणाम हैं। पृथ्वी की सतह से 2-3 कि०मी० की ऊँचाई पर ऊपरी वायुमंडल में पवनें धरातलीय घर्षण के प्रभाव से मुक्त होती हैं। और दाब प्रवणता तथा कोरिऑलिस बल से नियंत्रित होती हैं। जब समदाब रेखाएँ सीधी हों और घर्षण का प्रभाव न हो, तो दाब प्रवणता बल कोरिऑलिस बल से संतुलित हो जाता है और फलस्वरूप पवनें समदाब रेखाओं के समानांतर बहती हैं। ये पवनें भू-विक्षेपी पवनों के नाम से जानी जाती हैं।

(iv) समुद्र व स्थल समीर का वर्णन करें।

स्थल समीर स्थल भाग से समुद्र की ओर चलती है और यह प्रायः रात में चलती है जबकि समुद्र समीर समुद्री भाग से स्थल की ओर चलती है। यह प्रायः दिन में चलती है। ऊष्मा के अवशोषण तथा स्थानांतरण में स्थल व समुद्र में भिन्नता पाई जाती है। दिन के दौरान स्थल भाग समुद्र की अपेक्षा अधिक गर्म हो जाते हैं। अतः स्थल पर हवाएँ ऊपर उठती हैं और निम्न दाब क्षेत्र बनता है, जबकि समुद्र अपेक्षाकृत ठंडे रहते हैं और उन पर उच्च वायु दाब बना रहता है। इससे समुद्र से स्थल की ओर दाब प्रवणता उत्पन्न होती है और पवनें समुद्र से स्थल की तरफ समुद्र समीर के रूप में प्रवाहित होती हैं। रात्रि में इसके एकदम विपरीत प्रक्रिया होती है। स्थल समुद्र की अपेक्षा जल्दी ठंडा होता है। दाब प्रवणता स्थल से समुद्र की तरफ होने पर स्थल समीर प्रवाहित होती है।


प्रश्न.3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिएः

(i) पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले कारक बताएँ।

पवनें उच्च दाब से कम दाब की तरफ प्रभावित होती हैं। भूतल पर धरातलीय विषमताओं के कारण घर्षण पैदा होता है, जो पवनों की गति को प्रभावित करता है। इसके साथ पृथ्वी का घूर्णन भी पवनों के वेग को प्रभावित करता है। पृथ्वी के घूर्णन द्वारा लगने वाले बल को कोरिऑलिस बल कहा जाता है। अतः पृथ्वी के धरातल पर क्षैतिज पवनें तीन संयुक्त प्रभावों का परिणाम हैं:

(क) दाब प्रवणता प्रभाव

(ख) घर्षण बल

(ग) कोरिऑलिस बल।
इसके अतिरिक्त गुरुत्वाकर्षण बल पवनों को नीचे प्रवाहित करता है।

(क) दाब प्रवणता प्रभाव: वायुमंडलीय दाब भिन्नता एक बल उत्पन्न करता है। दूरी के संदर्भ में दाब-परिवर्तन की दर दाब प्रवणता है। जहाँ समदाब रेखाएँ पास-पास होती हैं, वहाँ दाब प्रवणता अधिक होती है व समदाब रेखओं के दूर-दूर होने से दाब प्रवणता कम होती है।

(ख) घर्षण बल: यह पवनों की गति को प्रभावित करता है। धरातल पर घर्षण सर्वाधिक होता है। और इसको प्रभाव प्रायः धरातल से 1 से 3 कि.मी. ऊँचाई तक होता है। समुद्र सतह पर घर्षण न्यूनतम होता है।

(ग) कोरिऑलिस बल: अपने अक्ष पर घूर्णन करती हुई पृथ्वी पर विषुवत रेखा के पास कोई भी बिंदु सर्वाधिक तीव्र गति से संचलन करता है।

(ii) पृथ्वी पर वायुमंडलीय सामान्य परिसंचरण का वर्णन करते हुए चित्र बनाएँ। 30° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों पर उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब के संभव कारण बताएँ।

वायुमंडलीय परिसंचरण महासागरीय जल को गतिमान करता है जो पृथ्वी की जलवायु को प्रभावित करता है। विषुवतीय क्षेत्र जहाँ उच्च तापमान है, वहाँ निम्न दाब है। निम्न तापमान वाले ध्रुवीय क्षेत्रों में वायुदाब उच्च है। 30° उत्तर एवं दक्षिण अक्षांशों के पास दो उपोष्ण उच्चूदाब के और 60° उत्तर तथा दक्षिण अक्षांशों के पास दो उपध्रुवीय निम्न दाब के मध्यवर्ती क्षेत्र हैं।

उच्च सूर्यातप व निम्न वायुदाब होने से अंतर उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र पर वायु संवहन धाराओं के रूप में ऊपर उठती है। उष्णकटिबंधों से आने वाली पवनें इस निम्न दाब क्षेत्र में अभिसरण करती हैं। अभिसरित वायु संवहन कोष्ठों के साथ ऊपर उठती है। यह क्षोभमंडल के ऊपर 14 कि.मी. की ऊँचाई तक ऊपर चढ़ती है और फिर ध्रुवों की तरफ प्रवाहित होती है। इसके परिणामस्वरूप लगभग 30° उत्तर व 30° दक्षिण अक्षांश पर वायु एकत्रित हो जाती है।

(iii) उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति केवल समुद्रों पर ही क्यों होती है? उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के किस भाग में मूसलाधार वर्षा होती है और उच्च वेग की पवनें चलती हैं और क्यों?

समुद्री भागों में स्थलीय भागों की अपेक्षा उच्च वायुदाब पाया जाता है और पवनें हमेशा उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर चलती हैं। इसलिए समुद्री भागों के उच्चदाब की पवने स्थलीय भाग के निम्न वायुदाब की ओर चलती हैं। उष्णकटिबंधीय चक्रवात ऐसे क्षेत्र में बनते हैं, जहाँ उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पूर्व की सन्मार्गी पवनें मिलती हैं। इस क्षेत्र को अंत:उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र कहते हैं। समुद्र से उच्च वायुदाब वाले क्षेत्रों से पवनें तेजी से निम्न वायुदाब वाले क्षेत्रों की ओर चलती हैं तो चक्रवात उत्पन्न होते हैं। समुद्र में हमेशा स्थल की अपेक्षा उच्च वायुदाब रहने के कारण हमेशा चक्रवात समुद्री क्षेत्रों में उत्पन्न होता है। समुद्री क्षेत्रों में चक्रवात उत्पन्न होने के कारण वहाँ । से चलने वाली पवनों में जलवाष्प भरी रहती है, जिसके कारण चक्रवाती पवनों से समुद्र तटवर्ती भागों में काफी वर्षा होती है। उष्णकटिबंधीय चक्रवात से भारत के पूर्वी तट और चीन के दक्षिणी-पूर्वी तट पर काफी वर्षा होती है।

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