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विकास (Development) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC PDF Download

प्रश्न.1. आप ‘विकास’ से क्या समझते हैं? क्या ‘विकास की प्रचलित परिभाषा से समाज के सभी वर्गों को लाभ होता है?

‘विकास’ शब्द अपने व्यापक अर्थ में उन्नति, प्रगति, कल्याण और बेहतर जीवन की अभिलाषा के विचारों का वाहक है। कोई समाज के बारे में अपनी समझ द्वारा यह स्पष्ट करता है कि समाज के लिए समग्र रूप से उसकी दृष्टि क्या है और उसे प्राप्त करने का सर्वोत्तम उपाय क्या है? साधारणतया विकास शब्द का प्रयोग प्रायः आर्थिक विकास की दर में वृद्धि और समाज को आधुनिकीकरण जैसे संकीर्ण अर्थों में भी होता रहता है। ‘विकास’ की प्रचलित परिभाषा से समाज के सभी वर्गों को लाभ नहीं होता है। प्रायः देखा गया है कि विकास को काम समाज के व्यापक दृष्टिकोण के अनुसार नहीं होता है। इस प्रक्रिया में समाज के कुछ हिस्से लाभान्वित होते हैं जबकि शेष लोगों को अपने घर, जमीन, जीवन-शैली को बिना किसी भरपाई के खोना पड़ सकता है।


प्रश्न.2. जिस तरह का विकास अधिकतर देशों में अपनाया जा रहा है उससे पड़ने वाले सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों की चर्चा कीजिए।

जिस तरह का विकास अधिकतर देशों में अपनाया जा रहा है उससे निम्नलिखित सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव पड़े हैं-

  • सामाजिक प्रभाव: विकास की समाज को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। अन्त बातों के अतिरिक्त बड़े बाँधों के निर्माण, औद्योगिक गतिविधियों और उत्खनन कार्यों के कारण बड़ी संख्या में लोगों को उनके घरों और क्षेत्रों से विस्थापन हुआ है। विस्थापन का परिणाम आजीविका खोने और दरिद्रता में वृद्धि के रूप में हमारे सामने आया है। अगर ग्रामीण खेतिहर समुदाय अपने परम्परागत पेशे और क्षेत्र से विस्थापित होते हैं, तो वे समाज के हाशिए पर चले जाते हैं। कालान्तर में वे नगरीय और ग्रामीण गरीबों की विशाल संख्या में सम्मिलित हो जाते हैं। उनके परम्परागत कौशल नष्ट हो जाते हैं। संस्कृति भी नष्ट होती है क्योंकि जब लोग नई जगह पर जाते हैं, तो वे अपनी पूरी सामुदायिक जीवन पद्धति खो बैठते हैं।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: विकास के कारण अनेक देशों के पर्यावरण को भी बहुत नुकसान पहुँचा है। जब दक्षिणी और दक्षिण-पूर्व एशिया के तटों पर सुनामी ने कहर ढाया, तो यह देखा गया कि तटीय वनों के नष्ट होने और समुद्र तट के निकट वाणिज्यिक उद्यमों के स्थापित होने के कारण ही इतना अधिक नुकसान हुआ। कालान्तर में पारिस्थितिकी संकट से हम बुरी तरह प्रभावित होंगे। वायु प्रदूषण सभी को प्रभावित करने वाली समस्या है। भूमि का जल स्तर भी गिर गया है, ग्रामीण महिलाओं को पानी लेने अब बहुत दूर जाना पड़ता है।

विकास के लिए हम जिन क्रियाओं पर निर्भर हैं वे ऊर्जा के निरन्तर बढ़ते उपयोग से सम्पन्न होते हैं। विश्व में प्रयुक्त ऊर्जा का अधिकांश भाग कोयला अथवा पेट्रोलियम जैसे स्रोतों से आता है, जिन्हें पुनः प्राप्त करना सम्भव नहीं है। उपभोक्ताओं की बढ़ी हुई आवश्यकताओं को पूरा करने में अमेजन के बरसाती जंगलों का विशाल भू-भाग उजड़ता जा रहा है। इस प्रकार विकास ने समाज और पर्यावरण को गम्भीर रूप से प्रभावित किया है।


प्रश्न.3. विकास की प्रक्रिया ने किन नए अधिकारों के दावों को जन्म दिया है?

विकास की प्रक्रिया ने जिन नए अधिकारों के दावों को जन्म दिया है, उनमें प्रमुख हैं-

  • 1. आजीविका के अधिकार का दावा – विकास की कीमत अत्यन्त दरिद्रों और आबादी के असुरक्षित भाग को चुकानी पड़ती है। चाहे यह कीमत पारिस्थितिकी तन्त्र में नुकसान के कारण हो या विस्थापन के समय आजीविका खाने के कारण। लोकतन्त्र में लोगों को यह अधिकार है। कि वे सरकार के सामने आजीविका के अधिकार की माँग कर सकते हैं।
  • 2. नैसर्गिक संसाधनों पर अधिकार का दावा – आदिवासी और आदिम समुदाय जिनका पर्यावरण से गहन संबंध होता है नैसर्गिक संसाधनों के उपयोग के परम्परागत अधिकारों का दावा करने लगे हैं।


प्रश्न.4. विकास के बारे में निर्णय सामान्य हित को बढ़ावा देने के लिए किए जाएँ, यह सुनिश्चित करने में अन्य प्रकार की सरकार की अपेक्षा लोकतान्त्रिक व्यवस्था के क्या लाभ हैं?

लोकतान्त्रिक व्यवस्था में संसाधनों को लेकर विरोध या बेहतर जीवन के विषय में विभिन्न विचारों के द्वन्द्व का हल विचार-विमर्श और सभी के अधिकारों के प्रति सम्मान के माध्यम से होता है। इन्हें ऊपर से थोपा नहीं जा सकता। इस प्रकार अगर बेहतर जीवन प्राप्त करने में समाज का प्रत्येक व्यक्ति साझीदार है, तो विकास के लक्ष्य तय करने और उसके कार्यान्वयन के तरीके खोजने में भी प्रत्येक व्यक्ति को सम्मिलित करने की आवश्यकता है। इस प्रकार विकास के बारे में निर्णय लेने में अन्य सरकार की अपेक्षा लोकतान्त्रिक व्यवस्था में ही लाभ है।


प्रश्न.5. विकास से होने वाली सामाजिक और पर्यावरणीय क्षति के प्रति सरकार को जवाबदेह बनवाने में लोकप्रिय संघर्ष और आन्दोलन कितने सफल रहे हैं।

विकास से होने वाली सामाजिक और पर्यावरणीय क्षति के प्रति सरकार को जवाबदेह बनवाने में पर्यावरण आन्दोलन बड़े सफल रहे हैं। पर्यावरण आन्दोलन की जड़े औद्योगीकरण के विरुद्ध 19वीं सदी में विकसित हुए विद्रोह में देखी जा सकती हैं। वर्तमान में पर्यावरणीय आन्दोलन एक विश्वव्यापी प्रकरण बन गया है और इसके गवाह हैं विश्वभर में फैले हजारों गैर-सरकारी संगठन और बहुत-सी ‘ग्रीन’ पार्टियाँ। कुछ जाने-माने पर्यावरण संगठनों में ग्रीन पीस और वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फण्ड शामिल हैं। भारत में भी हिमालय के वन क्षेत्र को बचाने के लिए ‘चिपको आन्दोलन’ का जन्म हुआ। ये समूह पर्यावरण उद्देश्यों की रोशनी में सरकार की औद्योगिक एवं विकास नीतियों को बदलने के लिए दबाव डालने का प्रयत्न करते हैं।

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