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सत्ता के वैकल्पिक केन्द्र (Alternative Centres of Power) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC PDF Download

प्रश्नावली

प्रश्न.1. तिथि के हिसाब से इन सबको क्रम दें
(क) विश्व व्यापार संगठन में चीन का प्रवेश
(ख) यूरोपीय आर्थिक समुदाय की स्थापना
(ग) यूरोपीय संघ की स्थापना
(घ) आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना

(घ) आसियान क्षेत्रीय मंच की स्थापना
(ख) यूरोपीय आर्थिक समुदाय की स्थापना
(ग) यूरोपीय संघ की स्थापना
(क) विश्व व्यापार संगठन में चीन का प्रवेश


प्रश्न.2. 'ASEAN way' या आसियान शैली क्या है?
(क) आसियान के सदस्य देशों की जीवन शैली है
(ख) आसियान सदस्यों के अनौपचारिक और सहयोगपूर्ण कामकाज की शैली को कहा जाता है।
(ग) आसियान सदस्यों की रक्षानीति है।
(घ) सभी आसियान सदस्य देशों को जोड़ने वाली सड़क है।

सही उत्तर (ख) आसियान सदस्यों के अनौपचारिक और सहयोगपूर्ण कामकाज की शैली को कहा जाता है।


प्रश्न.3. इनमें से किसने 'खुले द्वार' की नीति अपनाई?
(क) चीन
(ख) यूरोपीय संघ
(ग) जापान
(व) अमरीका

सही उत्तर (क) चीन।


प्रश्न.4. खाली स्थान भरें -
(क) 1992 में भारत और चीन के बीच ______ और ______ को लेकर सीमावर्ती लड़ाई हुई थी।
(ख) आसियान क्षेत्रीय मंच के कामों में ______ और ______ करना शामिल है।
(ग) चीन ने 1972 में ______ के साथ दोतरफा संबंध शुरू करके अपना एकांतवास समाप्त किया।
(घ)  ______ योजना के प्रभाव से 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना हुई।
(ङ)  ______ आसियान का एक स्तम्भ है जो इसके सदस्य देशों की सुरक्षा के मामले देखता है।

(क) अरुणाचल, लद्दाख
(ख) आर्थिक विकास तेज करना, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास प्राप्त
(ग) अमरीका
(घ) मार्शला
(ङ) आसियान सुरक्षा समुदाया


प्रश्न.5. क्षेत्रीय संगठनों को बनाने के उद्देश्य क्या हैं?

क्षेत्रीय संगठनों को बनाने के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
(i) क्षेत्रीय संगठनों को बनाने का उद्देश्य अपने-अपने क्षेत्र में चलने वाली ऐतिहासिक दुश्मनियों को भुला देना है। साथ-ही-साथ जो भी कमजोरियाँ या कठिनाइयाँ क्षेत्रीय देशों के सामने आएँ उन्हें परस्पर सहयोग से स्थानीय स्तर पर उनका समाधान ढूँढ़ने का प्रयास करना है।
(ii) क्षेत्रीय संगठनों का उद्देश्य यह भी है कि क्षेत्रीय संगठनों के सदस्य राष्ट्र अपने-अपने क्षेत्रों में अधिक शांतिपूर्ण और सहकारी क्षेत्रीय व्यवस्था विकसित करने की कोशिश करें। वे चाहते हैं कि वे अपने क्षेत्र के देशों की अर्थव्यवस्थाओं का समूह बनाने की दिशा में कार्य करें। इसके दो उदाहरण यूरोपीय संघ और आसियान हैं।


प्रश्न.6. भौगोलिक निकटता का क्षेत्रीय संगठनों के गठन पर क्या असर होता है?

क्षेत्रीय संगठनों के गठन पर भौगोलिक निकटता बड़ा प्रभाव डालती है। भौगोलिक निकटता के कारण क्षेत्र विशेष में आने वाले देशों में संगठन की भावना विकसित होती है। इस भावना के विकास के साथ पारस्परिक संघर्ष और युद्ध धीरे-धीरे, पारस्परिक सहयोग और शांति का रूप ले लेती है। भौगोलिक एकता मेल-मिलाप के साथ-साथ आर्थिक सहयोग और अंतर्देशीय व्यापार को भी प्रोत्साहित करती है। सदस्य राष्ट्र बड़ी आसानी से सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था करके कम धन व्यय करके अपने लिए सैनिक सुरक्षा दल गठित कर सकते हैं और बचे हुए धन को कृषि, उद्योग, विद्युत, यातायात, शिक्षा, सड़क, संवादवहन, स्वास्थ्य आदि सुविधाओं को जुटाने और जीवन स्तर को ऊंचा उठाने में प्रयोग कर सकते हैं। यह वातावरण सामान्य सरकार के गठन के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण कर सकता है। एक क्षेत्र के विभिन्न राष्ट्र यदि क्षेत्रीय संगठन बना लें तो वे परस्पर सड़क मार्गों और रेल सेवाओं के माध्यम से बड़ी आसानी से जुड़ सकते हैं।


प्रश्न.7. 'आसियान विजन-2020' की मुख्य-मुख्य बातें क्या हैं?

आसियान तेजी से बढ़ता हुआ एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन है। इसके विजन दस्तावेज-2020 में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में आसियान की एक बहिर्मुखी भूमिका को प्रमुखता दी गई है। आसियान द्वारा अभी टकराव की जगह बातचीत को बढ़ावा देने की नीति से ही यह बात सामने आई है। इसी तरक़ीब से आसियान ने कंबोडिया के टकराव को समाप्त किया, पूर्वी तिमोर के संकट को सँभाला है और दक्षिण-पूर्व एशियाई सहयोग पर बातचीत के लिए 1999 से नियमित रूप से वार्षिक बैठकें आयोजित की हैं।


प्रश्न.8. आसियान समुदाय के मुख्य स्तंभों और उनके उद्देश्यों के बारे में बताएँ।

आसियान समुदाय के मुख्य स्तम्भ स्वं इसके उद्देश्य:-आसियान दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों का संगठन है। 1967 में इस क्षेत्र के पाँच देशों ने 'बैंकाक घोषणा' पर हस्ताक्षर करके 'आसियान' को स्थापना की। ये देश थे-इंडोनेशिया, मलेशिया. फिलिपीस, सिंगापुर और थाईलैंड। 'आसियान' का उद्देश्य मुख्य रूप से आर्थिक विकास को तेज करना और उसके माध्यम से सामाजिक और सांस्कृतिक विकास हासिल करना था। कानून के शासन और संयुका राष्ट्र के कायदों पर आधारित क्षेत्रीय शांति और स्थायित्व को बढ़ावा देना भी इसका उद्देश्य था। बाद के वर्षों में ब्रुनेई, दारुस्सलाम, चियतनाम, लाओस, म्यामार और कंबोडिया भी आसियान में शामिल हो गए तथा इसको सदस्य संख्या दस हो गई। यूरोपीय संघ की तरह इसने स्वयं को अधिराष्ट्रीय संगठन बनाने या उसकी तरह अन्य व्यवस्थाओं को अपने हाथ में लेने का उद्देश्य नहीं रखा। अनौपचारिक, टकरावरहित और सहयोगात्मक मेल-मिलाप का नया उदाहरण पेश करके आसियान ने बहुत नाम कमाया है और इसको 'आसियान शैली' (आसियान ) ही कहा जाने लगा है। आसियान के कामकाज में राष्ट्रीय सार्वभौमिकता का सम्मान करना बहुत ही महत्त्वपूर्ण रहा है।
दुनिया में सबसे तेज रफ्तार से आर्थिक तरक्की करने वाले सदस्य देशों के समूह आसियान ने अब अपने उद्देश्यों को आर्थिक और सामाजिक दायरे से अधिक व्यापक बनाया है। 2003 में आसियान ने सामाजिक-सांस्कृतिक समुदाय नामक तीन स्तम्मों के आधार पर आसियान समुदाय बनाने की दिशा में कदम उठाए जो कुछ सीमा तक यूरोपीय संघ से मिलता-जुलता है। आसियान सुरक्षा समुदाय क्षेत्रीय विवादों को सैनिक टकराव तक न ले जाने की सहमति पर आधारित है। 2003 तक आसियान के सदस्य देशों ने कई समझौते किए जिनके द्वारा प्रत्येक सदस्य देश ने शाति, निष्पक्षता, सहयोग, अहस्तक्षेप को बढ़ावा देनेऔर राष्ट्रों के आपसी अंतर तथा संप्रभुता के अधिकारों का सम्मान करने पर अपनी वचनबद्धता जाहिर की। आसियान के देशों की सुरक्षा और विदेश नीतियों में तालमेल बनाने के लिए 1994 में आसिवान क्षेत्रीय मच गटित हुआ।


प्रश्न.9. आज की चीनी अर्थव्यवस्था नियंत्रित अर्थव्यवस्था से किस तरह अलग है?

आज की चीनी अर्थव्यवस्था नियंत्रित अर्थव्यवस्था से निम्न प्रकार से अलग है:

(i) 1949 में माओ के नेतृत्व में हुई साम्यवादी क्रांति के बाद चीनी जनवादी गणराज्य शासन व्यवस्था की स्थापना के समय यहाँ की अर्थव्यवस्था सोवियत मॉडल पर आधारित थी। आर्थिक रूप से पिछड़े साम्यवादी चीन ने पूँजीवादी दुनिया से अपने रिश्ते तोड़ लिए। ऐसे में इसके पास अपनं हो संसाधनों से गुजारा करने के अलावा कोई चारा नहीं था। कुछ समय तक इस सोवियत मदद और सलाह भी मिली थी। इसने विकास का जो मॉडल अपनाया उसमें खेती से पूँजी लेकर सरकारी बड़े उद्योग खड़े करने पर जोर था कि इसके पास विदेशी बाजारों से तकनीक और सामानों को खरीदने के लिए विदेशी मुद्रा की कमी थी इसलिए चीन ने आयात किए जाने वाले सामानों को धीरे-धीरे घरेलू स्तर पर ही तैयार करवाना शुरू किया।
(ii) इस मॉडल ने चीन को अभूतपूर्व स्तर पर औद्योगिक अर्थव्यवस्था खड़ी करने का आधार बनाने के लिए सारे संसाधनों का इरतेमाल करने दिया। सभी नागरिकों को रोजगार और सामाजिक कल्याण योजनाओं का लाभ देने के दायरे में लाया गया और चीन अपने नागरिकों को शिक्षित करने और उन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के मामले में सबसे विकसित देशों से भी आगे निकल गया।
(iii) चीन की अर्थव्यवस्था का विकास भी 5 से 6 फीसदी की दर से हुआ। परन्तु जनसंख्या में 2-3 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि इस विकास दर पर पानी फेर रही थी और बढ़ती हुई आबादी विकास के लाभ से वंचित रह जा रही थी। खेती की पैदावार उद्योगों की पूरी जरूरत लायक अधिशेष नहीं दे पाती थी। राज्य नियत्रित आर्थिकी के संकट का सामना चीन को भी करना पड़ रहा था। इसका औद्योगिक उत्पादन पर्याप्त तेजी से नहीं बढ़ रहा था। विदेशी व्यापार न के बराबर था और प्रति व्यक्ति आय भी बहुत कम थी।
(iv) 1970 के दशक में चीनी नेतृत्व ने कुछ बड़े नीतिगत निर्णय लिए। चीन ने 1972 में अमरीका से संबंध बनाकर अपने राजनैतिक और आर्थिक एकातवास को समाप्त किया। 1973 में प्रधानमंत्री चाऊ एन-लाई ने कृषि, उद्योग, रोना और विज्ञान प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आधुनिकीकरण के चार प्रस्ताव रखें। 1978 में तत्कालीन नेता देंग श्याओ पेंग ने चीन में आर्थिक सुधारों और खुले द्वार की नीति' की घोषणा की। अव नीति यह बनाई गई कि विदेशी पूँजी और प्रौद्योगिकी के निवेश से उच्चतर उत्पादकता को प्राप्त किया जाए। बाजारमूलक अर्थव्यवस्था को अपनाने के लिए चीन ने अपना तरीका आजमाया।
(v) 1978 के बाद से जारी चीन की आर्थिक सफलता को एक महाशक्ति के रूप में इसके उभरने के साथ जोड़कर देखा जाता है। आर्थिक सुधारों की शुरुआत करने के बाद से चीन सबसे ज्यादा तेजी से आर्थिक वृद्धि कर रहा है और माना जाता है कि इस रफ्तार से चलते हुए 2040 तक वह दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति, अमरीका से भी आगे निकल जाएगा। आर्थिक स्तर पर अपने पड़ोसी मुल्कों से जुड़ाव के चलते चीन पूर्व एशिया के विकास का इंजन-जैसा बना हुआ है और इस कारण क्षेत्रीय मामलों में उसका प्रभाव बहुत बढ़ गया है। इसकी विशाल आबादी, बड़ा भू-भाग, संसाधन, क्षेत्रीय अवस्थिति और राजनैतिक प्रभाव इस तेज आर्थिक वृद्धि के साथ मिलकर चीन के प्रभाव को कई गुना बढ़ा देते हैं। चीन ने 'शॉक थेरेपी' पर अमल करने के बजाय अपनी अर्थव्यवस्था को चरणबद्ध ढंग से खोला।
(vi) 1982 में खेती का निजीकरण किया गया और उसके बाद 1998 में उद्योगों का। व्यापार संबंधी अवरोधों को सिर्फ विशेष आर्थिक क्षेत्रों के लिए ही हटाया गया है जहाँ विदेशी निवेशक अपने उद्यम लगा सकते हैं।
(vii) नयी आर्थिक नीतियों के कारण चीन की अर्थव्यवस्था को अपनी जड़ता से उबरने में मदद मिली। कृषि के निजीकरण के कारण कृषि-उत्पादों तथा ग्रामीण आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में निजी बचत का परिमाण बढ़ा और इससे ग्रामीण उद्योगों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ी। व्यापार के नये कानून तथा विशेष आर्थिक क्षेत्रों के निर्माण से विदेशी व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
(viii) राज्य द्वारा नियंत्रित अर्थव्यवस्था के अंतर्गत विदेशी पूँजी के निवेश के लिए कोई स्थान नहीं होता। परंतु चीन की अर्थव्यवस्था विदेशी पूँजी के निवेश को आकर्षित करती है और यह संसार में सबसे अधिक आकर्षक मानी जाती है।
(ix) राज्य द्वारा नियंत्रित अर्थव्यवस्था में निजी संपत्ति के लिए कोई स्थान नहीं होता, परंतु चीन में अब निजी संपत्ति की धारणा को स्वीकार किया गया है। सन् 2004 में निजी संपत्ति, जो कि वैध तरीकों से अर्जित की गई हो, रखे जाने का अधिकार दिया गया। मार्च 2007 में चीन की राष्ट्रीय जन कांग्रेस (N.EC.) ने यह प्रस्ताव पास कर दिया है कि निजी संपत्ति भी उसी प्रकार से सरकार द्वारा सुरक्षित की जाएगी जैसे कि सरकारी संपत्ति।
(x) राज्य द्वारा नियंत्रित अर्थव्यवस्था में उद्योग संबंधी कड़े कानून लागू किए जाते हैं और श्रमिकों के हितों की ओर ही ध्यान दिया जाता है। उत्पादन की मात्रा तथा वस्तुओं की कीमतें सरकार निश्चित करती है। परन्तु चीन में इन कानूनों में ढोल दे दी गई है।
(xi) चीनी अर्थव्यवस्था की एक नई विशेषता यह है कि सरकार ने विशेष आर्थिक क्षेत्र स्थापित किए हैं। इन विशेष आर्थिक क्षेत्रों में लगाए जाने वाले उद्योगों पर उद्योग तथा श्रम संबंधी कानूनों को काफी ढील दी गई है और वहाँ विदेशी निवेशकों को अपने निजी उद्योग लगाने के लिए आकर्षित करने हेतु यह कदम उठाया है। इन विशेष आर्थिक क्षेत्रों से बाहर लगे उद्योग पर कड़े कानून लागू होते है।
(xii) राज्य द्वारा नियंत्रित अर्थव्यवस्था विश्व मार्केट के साथ स्पर्धा नहीं करती परंतु चीन ने अपनी अर्थव्यस्था को विश्व से स्पर्धा करने योग्य बनाया है और वह विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बना है।


प्रश्न.10. किस तरह यूरोपीय देशों ने युद्ध के बाद की अपनी परेशानियाँ सुलझाई? संक्षेप में उन कदमों की चर्चा करें जिनसे होते हुए यूरोपीय संघ की स्थापना हुई।

द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद यूरोप के अनेक नेता 'यूरोप के सवालों को लेकर परेशान रहे कि क्या यूरोप को अपनी पुरानी दुशमनियों को फिर से शुरू करना चाहिए या अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में सकारात्मक योगदान करने वाले सिद्धांतों और संस्थाओं के आधार पर उसे अपने संबंधों को नए तरह से बनाना चाहिए? दूसरे विश्व युद्ध ने उन अनेक मान्यताओं और व्यवस्थाओं को ध्वस्त कर दिया जिसके आधार पर यूरोप के देशों के आपसी संबंध बने थे। 1945 तक यूरोपीय मुल्कों ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं को वर्वादी तो झेली ही, उन मान्यताओं और व्यवस्थाओं को ध्वस्त होते भी देख लिया जिन पर यूरोप खड़ा हुआ था।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोपीय देशों द्वारा समस्याओं का समाधानः द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोपीय देशों ने निम्न कदम उठाकर अपनी समस्याएँ सुलझाई:
(i) अमरीकी सहयोग और यूरोपीय आर्थिक संगठन की स्थापना: 1945 के बाद यूरोप के देशों में मेल-मिलाप को शीत युद्ध से भी मदद मिली। अमरीका ने यूरोप की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के लिए जबरदस्त मदद की। इसे मार्शल योजना के नाम से जाना जाता है। अमरीका ने 'नाटो' के तहत एक सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था को जन्म दिया। मार्शल योजना के तहत ही 1948 में यूरोपीय आर्थिक सहयोग संगठन की स्थापना की गई जिसके माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों को आर्थिक मदद दी गई। यह एक ऐसा मंच बन गया जिसके माध्यम से पश्चिमी यूरोप के देशों ने व्यापार और आर्थिक मामलों में एक-दूसरे की मदद शुरू की।
(ii) यूरोपीय परिषद् और आर्थिक समुदाय का गठन: 1949 में यूरोपीय परिषद् गठित की गई। यह राजनैतिक सहयोग के मामले में  एक अगला कदम साबित हुई। यूरोप के पूँजीवादी देशों की अर्थव्यवस्था के आपसी एकीकरण की प्रक्रिया चरणबद्ध ढंग से आगे बढ़ी और इसके परिणामस्वरूप सन् 1957 में यूरोपियन इकॉनामिक कम्युनिटी का गठन हुआ।
(iii) यूरोपीय पार्लियामेंट का गठन: यूरोपीय संसद के गठन के बाद आपसी जुड़ाव की इस प्रक्रिया ने राजनीतिक स्वरूप हासिल कर लिया सोवियत गुट के अंत के बाद इस प्रक्रिया में तेजी आयी और सन् 1992 में इस प्रक्रिया की परिणति यूरोपीय संघ की स्थापना के रूप में हुई। यूरोपीय संघ के रूप में समान विदेश और सुरक्षा नीति, आंतरिक मामलों तथा न्याय से जुड़े मुद्दों पर सहयोग और एक समान मुद्रा के चलन के लिए रास्ता तैयार हो गया।
(iv) यूरोपीय संघ का गठन: एक लम्बे समय में बना यूरोपीय संघ आर्थिक सहयोग वाली व्यवस्था से बदलकर ज्यादा से ज्यादा राजनैतिक रूप लेता गया है। अब यूरोपीय संघ स्वयं काफी हद तक एक विशाल राष्ट्र राज्य की तरह ही काम करने लगा है। हालाँकि यूरोपीय संघ का एक संविधान बनाने की कोशिश तो असफल हो गई लेकिन इसका अपना झंडा, गान, स्थापना दिवस और अपनी मुद्रा है। अन्य देशों से संबंधों के मामलों में इसने काफी हद तक सांझी विदेश और सुरक्षा नीति भी बना ली है।
नये सदस्यों को शामिल करते हुए यूरोपीय संघ ने सहयोग के दायरे में विस्तार की कोशिश की। नये सदस्य मुख्यतः भूतपूर्व सोवियत खेमे के थे। यह प्रक्रिया आसान नहीं रही। अनेक देशों के लोग इस बात को लेकर कुछ खास उत्साहित नहीं थे कि जो ताकत उनके देश की सरकार को हासिल थी वह अब यूरोपीय संघ को दी जाए। यूरोपीय संघ में कुछ देशों को शामिल करने के प्रश्न पर भी असहमति है।


प्रश्न.11. यूरोपीय संघ को क्या चीजें एक प्रभावी क्षेत्रीय संगठन बनाती हैं।

यूरोपीय संघ को प्रभावी बनाने वाले कारक:
(i) यूरोपीय संघ को अनेक चीजें एक प्रभावशाली क्षेत्रीय संगठन बनाती हैं। इस महाद्वीप के देशों को भौगोलिक निकटता इस क्षेत्र को मजबूती प्रदान करती है।
(ii) इस महाद्वीप के लंबे इतिहास ने सभी यूरोपीय देशों को सिखा दिया कि क्षेत्रीय शांति और सहयोग ही अंततः उन्हें समृद्धि और विकास दे सकता है। टकराव. संघर्ष और युद्ध विनाश और अवनति के मूल कारण है।
(iii) एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था ने उन्हें बता दिया है यदि वे अमरीका के वर्चस्व का सामना करना चाहते हैं तो उन्हें यूरोपीय संघ न केवल बनाना ही चाहिए बल्कि उसे सुदृढ़ और परस्पर हितो की कुर्बानी देकर पूरे यूरोप को सुदृढ़ करना चाहिए ताकि वे समय आने पर अमरीका का रूप या चीन अथवा किसी विश्व की बड़ी शक्ति के सामने घुटने न टेकें और अपनी शर्तों पर उदारीकरण, वैश्वीकरण आदि को लागू करा सकें।
(iv) यूरोपीय संघ का आर्थिक, राजनैतिक-कूटनीतिक तथा सैनिक प्रभाव बहुत जबदस्त है। 2005 में यह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था धी और इसका सकल घरेलू उत्पादन 12000 अरब डालर से ज्यादा था, जो अमरीका से भी थोड़ा ज्यादा था। इसकी मुद्रा यूरो अमरीकी डालर के प्रभुत्व के लिए खतरा बन सकती है। विश्व व्यापार में इसकी हिस्सेदारी अमरीका से तीन गुनी ज्यादा है।
(v) यूरोपीय संघ का राजनैतिक और कूटनीतिक प्रभाव भी कम नहीं है। इसके दो सदस्य देश ब्रिटेन और फ्रांस सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य हैं। यूरोपीय संघ के कई और देश सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों में शामिल हैं। इसके चलते यूरोपीय संघ अमरीका समेत सभी मुल्कों की नीतियों को प्रभावित करता है।
(vi) सैनिक ताकत के हिसाब से यूरोपीय संघ के पास दुनिया को दूसरी सबसे बड़ी सेना है इसका कुल रक्षा बजट अमरीका के बाद सबसे अधिक है। यूरोपीय संघ के दो देशो-ब्रिटेन और फ्रांस के पास परमाणु हथियार हैं और अनुमान है कि इनके जखीरे में तकरीबन 550 परमाणु हथियार हैं। अंतरिक्ष विज्ञान और संचार प्रौद्योगिकी के मामले में भी यूरोपीय संघ का दुनिया में दूसरा स्थान है।


प्रश्न.12. चीन और भारत की उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मौजूदा एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था को चुनौती दे सकने की क्षमता है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? अपने तर्को से अपने विचारों को पुष्ट करें।

हाँ, हम इस कथन से सहमत है। चीन और भारत की उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मौजूदा एक ध्रुवीय विश्वव्यवस्था को चुनौती दे सकने की पूरी क्षमता है।
हम इस विचार की पुष्टि के समर्थन में निम्न तर्क दे सकते हैं:
(i) चीन और भारत दोनों एशिया के दो प्राचीन, महान शक्तिशाली एवं साधन संपन्न देश है। दोनों में परस्पर सुदृढ़ मित्रता और सहयोग अमरीका के लिए चिन्ता का कारण बन सकता है। दोनों देश अंतर्राष्ट्रीय राजनैतिक और आर्थिक मंचों पर एक सी नीति और दृष्टिकोण अपनाकर एकध्रुवीय विश्वव्यवस्था के संचालन करने वाले राष्ट्र अमरीका और उसके मित्रों को चुनौती देने में समक्ष हैं।
(ii) चीन और भारत दोनों की जनसंख्या 200 करोड़ से भी अधिक है। इतना विशाल जनमानस अमरीका के निर्मित माल के लिए एक विशाल बाजार प्रदान कर सकता है। पश्चिमी देशों एवं अन्य देशों को कुशल और अकुशल सस्ते श्रमिक दे सकते हैं।
(iii) दोनों देश नई अर्थव्यवस्था, मुक्त व्यापार नीति, उदारीकरण, वैश्वीकरण और अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के पक्षधर हैं। दोनों देश विदेशी पूँजी निवेश का स्वागत कर एकध्रुवीय महाशक्ति अमरीका और अन्य बहुराष्ट्रीय निगम समर्थक कम्पनियाँ स्थापित और संचालन करने वाले राष्ट्रों को लुभाने, आंतरिक आवश्यक सुविधाएँ प्रदान करके अपने यहाँ आर्थिक विकास को गति को बहुत ज्यादा।
(iv) दोनों ही राष्ट्र वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यों में परस्पर सहयोग करके प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आश्चर्यजनक प्रगति कर सकते हैं।
(v) दोनों देश विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से ऋण लेते समय अमरीका और अन्य बड़ी शक्तियों की मनमानी शर्ते थोपर्ने पर नियंत्रण रख सकते हैं।
(vi) चीन और भारत तस्करी रोकने, नशीली दवाओं के उत्पादन, वितरण, प्रदूषण फैलाने वाले कारकों और आतंकवादियों की गतिविधि यों को रोकने में पूर्ण सहयोग देकर भी विश्वव्यवस्था की चुनौतियों को कम कर सकते हैं क्योंकि इन क्षेत्रों में सहयोग से न केवल कीमतों के बढ़ने की प्रवृत्ति को रोका जा सकता है बल्कि लोगों का स्वास्थ्य और सुरक्षा बढ़ेगी। दोनों में आंतरिक सद्भाव, शांति, औद्योगिक विकास के अनुकूल वातावरण से नि:संदेह विदेशी पूँजी, उद्यमियों, व्यापारियों, नवीनतम प्रौद्योगिकी आदि के आने और नई-नई औद्योगिक इकाइयों की स्थापना, विभिन्न प्रकार की सेवाओं की वृद्धि और विस्तार में मदद मिलेगी।
(vii) दोनों ही देश सीमाओं पर स्थित या प्रवाहित होने वाली नदियों और जल भंडारों पर बाँधों द्वारा बाढ़ नियंत्रण, जल विद्युत निर्माण, जल आपूर्ति, मत्स्य उद्योग, पर्यटन उद्योग आदि को बढ़ा सकते हैं। दोनों ही देश सड़क निर्माण, रेल लाइन विस्तार, वायुयान और जल मार्ग संबंधी सुविधाओं के क्षेत्रों में पारस्परिक आदान-प्रदान और सहयोग की नीतियाँ अपनाकर अपने को शीघ्र ही महाशक्तियों की श्रेणी में ला सकते हैं। खनिज संपदा, कृषि उत्पाद, प्राकृतिक संसाधनों (जैसे वन उत्पादों, पशुधन) सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग आदि के क्षेत्र में यथा क्षमता यथा आवश्यकता की नीति अपनाकर नि:संदेह एवध्रुवीय विश्वव्यवस्था को मजबूत चुनौती दे सकते हैं।


प्रश्न.13. मुल्कों की शांति और समृद्धि क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों को बनाने और मजबूत करने पर टिकी है। इस कथन की पुष्टि करें।

प्रत्येक मुल्क की शांति और समृद्धि क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों को बनाने और उन्हें सुदृढ़ करने पर टिकी है क्योंकि क्षेत्रीय आर्थिक संगठन बनने पर कृषि, उद्योग-धंधों, व्यापार, यातायात, आर्थिक संस्थाओं आदि को बढ़ावा मिलता है। ये आर्थिक संगठन बनेंगे तो लोगों को प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में रोजगार मिलेगा। रोजगार गरीबी को दूर करता है। आर्थिक संगठनों के निर्माण से राष्ट्रों में समृद्धि आती है। समृद्धि का प्रतीक राष्ट्रीय आय और प्रतिव्यक्ति आय का बढ़ना प्रमुख सूचक है।

जब लोगों को रोजगार मिलेगा, गरीबी दूर होगी तो आर्थिक विषमता कम करने के लिए साधारण लोग भी अपने-अपने आर्थिक संगठनों में आवाज उठाएँगे। श्रमिकों को उनका उचित हिस्सा, अच्छी मजदृरियों/वेतनों, भत्तों, बोनस आदि के रूप में मिलेगातो उनकी क्रय शक्ति बढ़ेगी। वे अपने परिवार के जनों को शिक्षा, स्वास्थ्य, यातायात, संवादवहन आदि की अच्छी सुविधाएँ प्रदान करेंगे। क्षेत्रीय आर्थिक संगठन बाजार शक्तियों और देश की सरकारों की नीतियों से गहरा संबंध रखते हैं। हर देश अपने यहाँ कृषि, उद्योगों और व्यापार को बढ़ावा देने के लिए परस्पर क्षेत्रीय राज्यों (देशों) से सहयोग माँगते हैं और उन्हें पड़ोसियों को सहयोग देना होता है। वे चाहते हैं कि उनके उद्योगों को कच्चा माल मिले। वे अतिरिक्त संसाधनों का निर्यात करना चाहते हैं।

यह तभी संभव होगा जब क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर शांति होगी। बिना शांति के विकास नहीं हो सकता। क्षेत्रीय आर्थिक संगठन पूरा व्यय नहीं कर सकते। पूरा उत्पादन हुए बिना समृद्धि नहीं आ सकती। संक्षेप में, क्षेत्रीय आर्थिक संगठन विभिन्न देशों में पूँजी निवेश, श्रम गतिशीलता, यातायात सुविधाओं के विस्तार, विद्युत उत्पादन वृद्धि में सहायक होते हैं। यह सब मुल्कों की शांति और समृद्धि को सदृढ़ता प्रदान करते हैं।


प्रश्न.14. भारत और चीन के बीच विवाद के मामलों की पहचान करें और बताएँ कि वृहत्तर सहयोग के लिए इन्हें कैसे निपटाया जा सकता है। अपने सुझाव भी दीजिए।

भारत-चीन विवाद के क्षेत्र: भारत और चीन के बीच समय-समय पर गतभेद के कई क्षेत्र रहे हैं, जो इस प्रकार हैं:
(i) सन् 1950-51 में तिब्बत पर चीनी आक्रमण के समय तिब्बत के राजनैतिक तथा धार्मिक नेताओं ने भारत में शरण ली। वे अभी भी भारत में रह रहे हैं। इससे दोनों में तनाव बना हुआ है।
(ii) दोनों देशों के बीच मैकमोहन रेखा जो दोनों देशों के बीच की सीमा रेखा है, पर विवाद है। चीन ने इस सीमा रेखा को मानने से इंकार कर दिया है।
(iii) पाकिस्तान ने 1965 तथा 1971 में भारत पर जब आक्रमण किए, जो चीन ने पाकिस्तान का समर्थन किया, उसकी सहायता की तथा उसे हथियार भी दिए। इससे भी भारत-चीन संबंधों में काफी तनाव पैदा हुआ (याद रहे अब भी चीन भारत के कुछ पड़ोसी देशों को जिसमें पाकिस्तान के साथ म्यांमार भी शामिल है खतरनाक हथियारों के निर्माण में मदद दे रहा है।) सन् 1975 में दोनों देशों के बीच राजदूत स्तर पर कूटनीतिज्ञ संबंध फिर से स्थापित किए गए।
सन् 1988 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी चीन के दौरे पर गए। सन् 1991 में चीन के प्रधानमंत्री ली पेंग भारत की यात्रा पर आए। सन् 1996 में चीन के राष्ट्रपति ने भारत की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान भारत तथा चीन के बीच चार समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए परन्तु भारत द्वारा मई, 1998 में किए गए परमाणु परीक्षणों के पश्चात् दोनों देशों के बीच में फिर कटुता पैदा हो गई। जुलाई 2000 में चीन के विदेश मंत्री भारत की यात्रा पर आए और इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच व्यापार वृद्धि तथा सीमा विवाद को हल करने के बारे में सहमति हुई परन्तु सीमा-विवाद (Border dispute) अभी तक इल न हो पाने के कारण दोनों देशों के संबंध मित्रतापूर्ण नहीं कहे जा सकते।
वैसे पिछले कुछ वर्षों से चीन ने उदारवादी नीति को अपनाया हुआ है और अपने आंतरिक प्रशासन तथा साम्यवादी दल के संगठन में सामूहिक नेतृत्व के सिद्धांत का समर्थन कर रहा है। आज चीन विदेशी शक्तियों से भी गूढ या मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने के पक्ष में हैं। अक्टूबर 2002 में हुई 16वीं राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में भी यह बात कही गई है। नवंबर 2002 में चीन का एक शिष्ट मंडल भारत आया था और दोनों देशों के बीच सीमा संबंधी विवाद को सुलझाने पर बातचीत चलीं। आशा है दोनों देशों के संबंध मधुर बनेंगे।
भारत से 1988 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी, 1992 में राष्ट्रपति बँकटरमन, 1993 में प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव, 2000 में राष्ट्रपति के.आर. नारायणन और 2003 में प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की यात्रा के तुरंत बाद चीन ने अरुणाचल प्रदेश को चीन की भूमि का माग बनाया और एक नए विवाद को जन्म दिया। भारत और चीन के बीच सीमा संबंधी विवाद पर बातचीत चल रही है।
1992 में भारत और चीन के बीच 33 करोड़ 80 लाख डालर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था। बद के वर्षों में उसमें वृद्धि हुई है। अनुमान है कि 1991 से भारत और चीन के बीच का व्यापार प्रतिवर्ष 30 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। सन् 2006 में यह बढ़कर 18 अरब डालर का हुआ। अप्रैल 2005 में चीन के प्रधानमंत्री जियाबाओ ने भारत की यात्रा की और दोनों देशों के बीच कई मुद्दों पर आपस सहयोग के लिए सहमति हुई। भारत और चीन के बीच व्यापारिक रास्ता (नाथूला दर्रे का रास्ता) जो 1962 के चीन के आक्रमण के बाद बंद कर दिया गया था, उसे जुलाई 2006 में खोल दिया गया। इससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक गतिविधि याँ और बढ़ने की संभावना है। नवम्बर 2006 में चीन के राष्ट्रपति हु चिन्ताओ ने भारत को यात्रा की ओर दोनों देशों के बीच कई समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। दोनों देशों के बीच सीमाविवाद को सुलझाने के संबंध में विशेष बात हुई। कई विश्वव्यापी मुद्दों जैसे कि विश्व व्यापार संगठन के बारे में दोनों ने एक जैसी नीति अपनाई है और अपने विवादों को आपसी बातचीत से हल करने का आशय प्रकट किया है।

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