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समकालीन विश्व में सुरक्षा (Security in the Contemporary World) NCERT Solutions | NCERT Textbooks in Hindi (Class 6 to Class 12) - UPSC PDF Download

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प्रश्न.1. निम्नलिखित पदों को उनके अर्थ से मिलाएँ

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प्रश्न.2. निम्नलिखित में से किसको आप सुरक्षा का परंपरागत सरोकार/सुरक्षा का अपारंपरिक सरोकार/'खतरे की स्थिति नहीं' का दर्जा देंगे-
(क) चिकनगुनिया/डेंगू बुखार का प्रसार
(ख) पड़ोसी देश से कामगारों की आमद
(ग) पड़ोसी राज्य से कामगारों की आमद
(घ) अपने इलाके को राष्ट्र बनाने की मांग करने वाले समूह का उदय
(ङ) अपने इलाके को अधिक स्वायत्तता दिए जाने की मांग करने वाले समूह का उदय
(च) देश की सशस्त्र सेना को आलोचनात्मक नज़र से देखने वाला अखबार

(क) सुरक्षा का अपारंपरिक सरोकार।
(ख) सुरक्षा का पारंपरिक सरोकार।
(ग) खतरे की स्थिति नहीं।
(घ) सुरक्षा का अपारंपरिक सरोकार।
(ङ) खतरे की स्थिति नहीं।
(च) सुरक्षा का पारंपरिक सरोकार।


प्रश्न.3. परंपरागत और अपारंपरिक सुरक्षा में क्या अंतर है? गठबंधनों का निर्माण करना और उनको बनाये रखना इनमें से किस कोटि में आता है?

सुरक्षा की विभिन्न धारणाओं को दो कोटियों में रखा जाता है-(i) सुरक्षा की पारंपरिक धारणा और (ii) सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा।
दोनों में निम्न प्रमुख अन्तर हैं:

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प्रश्न.4. तीसरी दुनिया के देशों और विकसित देशों की जनता के सामने मौजूद खतरों में क्या अंतर है?

तीसरी दुनिया के देशों एवं विकसित देशों की जनता के मौजूद खतरों में अन्तर को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है:

तीसरी दुनिया से हमारा अभिप्राय जापान को छोड़कर संपूर्ण एशियाई, अफ्रीकी और लेटिन अमरीकी देशों से है। इन देशों के सामने विकसित देशों की जनता के सामने आने वाले मौजूदा खतरों में बड़ा अंतर है। विकसित देशों से हमारा अभिप्राय प्रथम दुनिया और द्वितीय दुनिया के देशों से है। प्रथम दुनिया के देशों में संयुक्त राज्य अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली और पश्चिमी यूरोप के अधिकांश देश आते हैं जबकि दूसरी दुनिया में प्रायः पूर्व सोवियत संघ (अब रूस), और अधिकतर पूर्वी यूरोप के देश शामिल किए जाते हैं।
तीसरी दुनिया के देशों के सामने बाह्य सुरक्षा का खतरा तो है ही लेकिन उनके सामने आंतरिक खतरे भी बहुत हैं। बाहरी खतरों में उनके समक्ष बड़ो शक्तियों के वर्चस्व का खतरा होता है। वे देश उन्हें अपने सैन्य वर्चस्व, राजनैतिक विचारधारा के वर्चस्व और आर्थिक सहायता सशर्त देने के वर्चस्व से डराते रहते हैं। प्रायः बड़ी शक्तियाँ उनके पड़ोसी देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करके या मनमानी कठपुतली सरकारें बनाकर उनसे मनमाने तरीके से तीसरी दुनिया के देशों के लिए खतरे पैदा करते रहते हैं। अपरोक्ष रूप से वह आतंकवाद को बढ़ावा देकर या मनमानी कीमतों पर प्राकृतिक संसाधनों की आपूर्ति या अपने हित के लिए ही उदारीकरण, मुक्त व्यापार, वैश्वीकरण, सशर्त निवेश आदि के द्वारा आंतरिक आर्थिक खतरे जैसे कीमतों की बढ़ोत्तरी, बेरोजगारी में वृद्धि, निर्धनता, आर्थिक विषमता को प्रोत्साहन देकर, उन्हें निम्न जीवन स्तर की तरफ अप्रत्यक्ष रूप से धकेलकर नए-नए खतरे पैदा करते हैं।
तीसरी दुनिया के सामने आतंकवाद, एड्स, बर्ड फ्लू और अन्य महामारियाँ भी खतरा बनकर आती हैं। इन देशों में प्राय: संकीर्ण भावनाओं के कारण पारस्परिक घृणा उत्पन्न होती रहती है। जैसे धार्मिक उन्माद, जाति भेद-भाव पर आधारित आंतरिक दंगों का खतरा, महिलाओं और बच्चों का निरंतर बढ़ता हुआ यौवन और अन्य तरह का शोषण, भाषावाद, क्षेत्रवाद आदि से भी इन देशों में खतरा उत्पन्न होता रहता है। कई बार बड़ी शक्तियों द्वारा इन देशों में सांस्कृतिक शोषण और पाश्चात्य सांस्कृतिक मूल्यों  बढ़ावा दिया जाता है जिनके कारण उनकी पहचान और संस्कृति खतरे में आ सकती है।
जहाँ तक विकसित राष्ट्रों का प्रश्न है। उनके सामने अपने परमाणु बमों के वर्चस्व को बनाए रखना और विश्व की अन्य शक्तियों को नई परमाणु शक्ति बनने से रोकना है। दूसरी और पहली दुनिया के देश चाहते हैं कि नाटो बना रहे लेकिन वार्सा जैसा कोई सैन्य संगठन भूतपूर्व साम्यवादी देश पुनः न गठित होने पाए।
विकसित देश यह भी चाहते हैं कि सभी देश मुक्त व्यापार, उदारीकरण और वैश्वीकरण को अपनाएँ, सभी तेल उत्पादक राष्ट्र उन्हें उनकी इच्छानुसार ठीक-ठाक कीमतों पर निरंतर तेल की सप्लाई करते रहें और उनके प्रभाव में रहें। विकसित देश यह चाहते हैं कि आतंकवाद अथवा तथाकथित इस्लामिक धर्माधता के पक्षधर आतंकवादियों से निपटने के लिए न केवल वो सभी परस्पर सहयोग करें बल्कि तीसरी दुनिया के सभी देश भी उनके साथ रहें। विकसित देश चाहते हैं कि एड्स, बर्ड फ्लू जैसी सभी नई नहामारियों को रोकने में किसी भी प्रकार की ढिलाई नहीं हो और कोई भी राष्ट्र रासायनिक हथियार, जैविक हथियार न बनाए और संयुक्त राष्ट्र संघ में भी केवल पाँच स्थायी शक्तियों की विशेष स्थिति बनी रहे। अन्तर्राष्ट्रीय मंच या क्षेत्रीय संगठन अथवा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष या विश्व बैंक उनके मार्गदर्शन के अनुसार राष्ट्रों को ऋण दें ताकि उनके बहुराष्ट्रीय निगमों का वर्चस्व और एकाधिकार विश्व स्तर पर बना रहे।


प्रश्न.5. आतंकवाद सुरक्षा के लिए परंपरागत खतरे की श्रेणी में आता है या अपरंपरागत?

आतंकवाद सुरक्षा के लिए अपरंपरागत श्रेणी में आता है। आतंकवाद का आशय राजनीतिक खून-खराबे से है जो जान-बूझकर और बिना किसी मुरौव्वत के नागरिकों को अपना निशाना बनाता है। अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद एक से ज्यादा देशों में व्याप्त है और उसके निशाने पर कई देशों के नागरिक हैं। कोई राजनीतिक संदर्भ या स्थिति नापसंद हो तो आतंकवादी समूह उसे बल-प्रयोग से अथवा बल-प्रयोग की धमकी देकर बदलना चाहते हैं। जनमानस को आंतकित करने के लिए नागरिकों को निशाना बनाया जाता है और आतंकवाद नागरिकों के असंतोष का इस्तेमाल राष्ट्रीय सरकारों अथवा संघर्ष में शामिल अन्य पक्ष के खिलाफ करता है।
आतंकवादियों का मकसद ही आतंक फैलाना है अत: वे असैनिक स्थानों अर्थात् आम लोगों को अपनी दहशतगर्दी का निशाना बनाते हैं। इससे एक तो आतंकवादी अपना आतंक फैलाकर आम जनता तथा विश्व बिरादरी का ध्यान अपनी ओर खींचने में कामयाब होते हैं तो दूसरी ओर उन्हें प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ता। आम लोग आसानी से उनके शिकार बन जाते हैं। आतंकवाद के चिर-परिचित उदाहरण है विमान अपहरण अथवा भीड़ भरी जगहों पर बम लगाना। सन् 2001 में 11 सितम्बर को अमरीका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादियों ने हमला बोला। इस घटना के बाद से दूसरे देश और वहाँ की सरकारें आतंकवाद पर ध्यान देने लगी हैं। गुजरे वक्त में आतंकवाद की अधिकांश घटनाएँ मध्यपूर्व यूरोप, लातिनी अमरीका और दक्षिण एशिया में हुई।


प्रश्न.6. सुरक्षा के परंपरागत दृष्टिकोण के हिसाब से बताएं कि अगर किसी राष्ट्र पर खतरा मंडरा रहा हो तो उसके सामने क्या विकल्प होते हैं?

अधिकतर हमारा सामना सुरक्षा को पारंपरिक अर्थात् राष्ट्रीय सुरक्षा की धारणा से होता है। सुरक्षा की पारंपरिक अवधारणा में सैन्य खतरे को किसी देश के लिए सबसे अधिक खतरनाक माना जाता है। इस खतरे का स्रोत कोई दूसरा देश होता है जो सैन्य हमले की धमकी देकर संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता जैसे किसी देश के केन्द्रीय मूल्यों के लिए खतरा पैदा करता है। सैन्य कार्यवाही से आम नागरिकों के जीवन को भी खतरा होता है। अगर किसी राष्ट्र पर खतरा मंडरा रहा हो तो बुनियादी तौर पर किसी सरकार के पास में तीन विकल्प होते हैं-आत्मसमर्पण करना तथा दूसरे पक्ष की बात को बिना युद्ध किए मान लेना अधवा युद्ध से होने वाले नाश को इस हद तक बढ़ाने के संकेत देना कि दूसरा पक्ष सहमकर हमला करने से बाज आए या युद्ध ठग जाए तो अपनी रक्षा करना ताकि हमलावर देश अपने मकसद में कामयाब न हो सके और पीछे हट जाए अथवा हमलावर को पराजित कर देना।
युद्ध में कोई सरकार भले ही आत्मसमर्पण कर दे परन्तु वह इसे अपने देश की नीति के रूप में कभी प्रचारित नहीं करना चाहेगी। इस कारण, सुरक्षा-नीति का संबंध युद्ध की आशंका को रोकने में होता है जिसे 'अवरोध' कहा जाता है और युद्ध को सीमित रखने अथवा उसको समाप्त करने से होता है जिसे 'रक्षा' कहा जाता है।


प्रश्न.7. 'शक्ति-संतुलन' क्या है? कोई देश इसे कैसे कायम करता है?

परंपरागत सुरक्षा-नीति का एक तत्व और है। इसे शक्ति-संतुलन कहा जाता है। कोई देश अपने अडास-पड़ोस में देखने पर पाता है कि कुछ मुल्क छोटे हैं तो कुछ बड़े। इससे इशार मिल जाता है कि भविष्य में किस देश से उसे खतरा हो सकता है।
उदाहरण के लिए कोई पड़ोसी देश संभव है यह न कहे कि वह हमले की तैयारी में लगा है। हमले का कोई प्रकट कारण भी नहीं जान पड़ता हो। फिर भी यह देखकर कि कोई देश बहुत ताकतवर है यह मापा जा सकता है कि भविष्य में वह हमलावर हो सकता है। इस वजह से हर सरकार दूसरे देश से अपने शकिा-संतुलन को लेकर बहुत संवेदनशील रहती है। कोई सरकार दूसरे देशों से शक्ति-संतुलन का पलड़ा अपने पक्ष में बैठाने के लिए जी-तोड़ कोशिश करती है। जो देश नजदीक हों, जिनके साथ अनबन हो या जिन देशों के साथ अतीत में लड़ाई हो चुकी हो उसके साथ शक्ति-संतुलन को अपने पक्ष में करने पर खासतौर पर जोर दिया जाता है। शक्ति-संतुलन बनाये रखने की यह कोशिश ज्यादातर अपनी सैन्य-शक्ति बढ़ाने की होती है लेकिन आर्थिक और प्रौद्योगिकी की शक्ति भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि सैन्य-शक्ति का यही आधार है।


प्रश्न.8. सैन्य गठबंधन के क्या उद्देश्य होते हैं? किसी ऐसे सैन्य गठबंधन का नाम बताएँ जो अभी मौजूद है। इस गठबंधन के उद्देश्य भी बताएँ?

सैन्य गठबंधन के उद्देश्य: गठबंधन बनाना पारंपरिक सुरक्षा नीति का एक तत्व है। गठबंधन में कई देश शामिल होते हैं और सैन्य हमले को रोकने अथवा उससे रक्षा करने के लिए कदम उठाते हैं। अधिकांश गठबंधनों को लिखित संधि से एक औपचारिक आकार प्राप्त होता है और ऐसे गठबंधनों को यह बात बिल्कुल स्पष्ट रहती है कि खतरा किस से है। किसी देश अथवा गठबंध न की तुलना में अपनी ताकत का असर बढ़ाने के लिए देश गठबंधन बनाते हैं। गठबंधन राष्ट्रीय हितों पर आधारित होते हैं। नाटो (NATO) एक बहुत शक्तिशाली गठबंधन है जो आज भी मौजूद है। इस गठबंधन के उद्देश्य संयुक्त राज्य अमरीका के नेतृत्व में सभी अमरीकी और पश्चिमी यूरोपीय देशों की सामूहिक सैन्य सुरक्षा को बनाए रखना और पश्चिमी देशों के सैन्य,वैचारिक, सांस्कृतिक और आर्थिक वर्चस्व को बनाए रखना है। यह किसी भी अपने मित्र देश या उन देशों को जो उन्हें तेल इत्यादि प्राकृतिक संसाधन प्रदान करते हैं उन्हें अपने राजनैतिक और आर्थिक हितों के अनुकूल बनाए रखने के लिए अपनी मनपसंद सरकार और राजनैतिक व्यवस्था बनाए रखने के भी इच्छुक हैं। वे किसी अन्य देश को वहाँ अपनी सत्ता स्थापित करने या राजनैतिक व्यवस्था को उनके प्रतिकूल बनाने की इजाजत किसी कीमत पर नहीं देना चाहते। गठबंधन राष्ट्रीय हितों पर आधारित होते हैं और राष्ट्रीय हितों के बदलने पर गठबंधन भी बदल जाते हैं। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमरीका ने सन् 1980 के दशक में सोवियत संघ के खिलाफ इस्लामी उग्रवादियों को समर्थन दिया लेकिन आसामा बि- लादेन के नेतृत्व में अल-कायदा नामक समूह के आतंकवादियों ने जब ।। सितंबर, 2001 के दिन उस पर हमला किया तो उसने इस्लामी उग्रवादियों के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया।


प्रश्न.9. पर्यावरण के तेजी से हो रहे नुकसान से देशों की सुरक्षा को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। क्या आप इस कथन से सहमत है? उदाहरण देते हुए अपने तर्कों की पुष्टि करें।

पर्यावरण के तेजी से हो रहे नुकसान से देश की सुरक्षा को गंभीर खतरा पैदा हो गया है।
हम इस कथन से पूर्णतः सहमत हैं अपने निर्णय की पुष्टि में हम निम्न तर्क दे सकते हैं:
(i) विश्व की आबादी निरंतर बढ़ रही है। वह सात सौ करोड़ के आंकड़े को पहले ही पार कर चुकी है। इस विशाल मानव समूह वे लिए निवास स्थान, रोजगार के लिए नए-नए कारखानों के निर्माण के लिए भूमि-स्थल, जल संसाधनों का अभाव अभी से महसूस किया जा रहा है। विश्व के अनेक देशों और क्षेत्रों में वनों की अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण और प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है जिससे मानव को भावी पीढ़ियों के लिए भयंकर खतरा पैदा होता जा रहा है।
(ii) जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, मिट्टी प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण के कारण मानव स्वरूप, सामान्य जीवन और शांत वातावरण के लिए खतरा पैदा हो गया है। समुद्रों में विकसित और औद्योगिक राष्ट्रों द्वारा निरंतर फेंके जाने वाला कूड़ा जल में रहने वाले जीवों के जीवन के लिए खतरा बना चुका है। अनेक राष्ट्रों को समुद्रों से मानव भोजन मिलता है और अनेक समुदाय के लोगों को रोजी-रोटी भी समुद्र से मिलती है। समुद्र से अनेक खनिज संपदा और उपयोगी पदार्थ प्राप्त किए जाते हैं जो औद्योगिक और यातायात विकास के लिए बहुत आवश्यक हैं।


प्रश्न.10. देशों के सामने फिलहाल जो खतरे मौजूद हैं उनमें परमाण्विक हथियार का सुरक्षा अथवा अपरोध के लिए बड़ा सीमित उपयोग रह गया है। इस कथन का विस्तार करें।

सुरक्षा की परंपरागत धारणा में स्वीकार किया जाता है कि हिंसा का यथासंभव सीमित इस्तेमाल होना चाहिए। आज लगभग पूरा विश्व मानता है कि किसी देश को युद्ध उचित कारणों अर्थात् आत्म-रक्षा अथवा दूसरों को जनसंहार से बचाने के लिए ही करना चाहिए। किसी युद्ध में युद्ध साधनों का सीमित इस्तेमाल होना चाहिए। सेना को उतने ही बल का प्रयोग करना चाहिए जितना आत्मरक्षा के लिए जरूरी हो और उससे एक सीमा तक ही हिंसा का सहारा लेना चाहिए। बल प्रयोग तभी किया जाए जब बाको उपाय असफल हो गए हों। सुरक्षा की परंपरागत धारणा इस संभावना से इंकार नहीं करती कि देशों के बीच किसी न किसी रूप में सहयोग हो। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है-निरस्त्रीकरण, अस्त्र-नियंत्रण तथा विश्वास की बहाली।
(i) निरस्त्रीकरणाः (Disarmament): निरस्त्रीकरण की माँग होती है कि सभी राज्य चाहे उनका आकार, ताकत और प्रभाव कुछ भी हो, कुछ खास किस्म के हथियारों के निर्माण से बाज आएँ। उदाहरण के लिए, 1972 की जैविक हथियार संधि (वॉयोलॉजिकल वीपन्स कन्वेंशन, Bwc) तथा 1992 की रासायनिक हथियार संधि (केमिकल वीपन्स कन्वेंशन CWC) में ऐसे हथियारों को बनाना और रखना प्रतिबंधित कर दिया गया है। पहली संधि पर 100 से ज्यादा देशों ने हस्ताक्षर किए हैं और इनमें से 14 को छोड़कर शेष ने दूसरी संधि पर भी हस्ताक्षर किए। इन दोनों संधियों पर दस्तखत करने वालों में सभी महाशक्तियाँ शामिल हैं। लेकिन महाशक्तियाँ-अमरीका तथा सोवियत संघ सामूहिक संहार के अस्त्र यानी परमाण्विक हथियार का विकल्प नहीं छोड़ना चाहती थीं इसलिए दोनों ने अस्त्र-नियंत्रण का सहारा लिया।
(ii) अस्व नियंत्रण (Arms Control): अस्त्र नियंत्रण के अंतर्गत हथियारों को विकसित करने अथवा उनको हासिल करने के संबंध में कुछ कागद-कानूनों का पालन करना पड़ता है। सन् 1972 की एंटी बैलेस्टिक मिसाइल संधि (ABM) ने अमरीका और सोवियत संघ को वैलेस्टिक मिसाइलों को रक्षा-कवच के रूप में इस्तेमाल करने से रोका। ऐसे प्रक्षेपास्त्रों से हमले की शुरुआत की जा सकती थी। संधि में दोनों देशों को सीमित संख्या में ऐसी रक्षा-प्रणाली तैनात करने की अनुमति. थी लेकिन इस संधि ने दोनों देशों को ऐसी रक्षा-प्रणाली के व्यापक उत्पादन से रोक दिया।
(iii) विश्वास को वहाली (Restoring Confidence): सुरक्षा को पारंपरिक धारणा में यह बात भी स्वीकार की गई है कि विश्वास बहाली के उपायों से देशों के बीच हिंसाचार कम किया जा सकता है। विश्वास बहाली की प्रक्रिया में सैन्य टकराव और प्रतिद्वन्द्वितावाले देश सूचनाओं तथा विचारों के नियमित आदान प्रदान का फैसला करते हैं। दो देश एक-दूसरे को अपने फौजी मकसद तथा एक हद तक अपनी सैन्य योजनाओं के बारे में बताते हैं। ऐसा करके ये देश अपने प्रतिद्वन्द्वी को इस बात का आश्वासन देते हैं कि उनकी तरफ से औचक हमले की योजना नहीं बनायी जा रही। देश एक-दूसरे को यह भी बताते हैं कि उनके पास किस तरह के सैन्य-बल हैं। वे यह भी बता सकते हैं कि इन बलों को कहाँ तैनात किया जा रहा है। संक्षेप में कहें तो विश्वास बहाली की प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि प्रतिद्वन्द्वी देश किसी गलतफहमी या गफलत में पड़कर जंग के लिए आमादा न हो जाएँ।
आज विभिन्न देशों के समाने अनेक तरह के खतरे मौजूद हैं। इन खतरों को टालने अथवा इनका दमन करने के सैन्य या परमाण्विक विकल्प बहुत सीमित हैं। आज विभिन्न देशों के पास परमाणु हथियार हैं या उन्हें बनाने की क्षमता है। ऐसी स्थिति में एक देश का परमाण्विक हमला उसे उल्टा पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में एक देश समाप्त हो सकता है पर दूसरा भी बच नहीं सकता। आज के खतरों से निपटने में सैन्य बल उपयुक्त नहीं है। उदाहरण के लिए अमरीका का इराक और अफगानिस्तान पर हमला किसी समस्या को सुलझा नहीं पाया और वह खतरा आज भी मौजूद है।
निष्कर्षः कुल मिलाकर देखा जाए तो सुरक्षा की परंपरागत धारणा मुख्य रूप से सैन्य बल के प्रयोग अथवा सैन्य बल के प्रयोग की आशंका से संबद्ध है। सुरक्षा की पारंपरिक धारणा में माना जाता है कि सैन्य बल से सुरक्षा को खतरा पहुँचता है और सैन्य बल से ही सुरक्षा को बरकरार रखा जा सकता है।


प्रश्न.11. भारतीय परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए किस किस्म की सुरक्षा को वरीयता दी जानी चाहिए - पारंपरिक या अपारंपरिक? अपने तर्क की पुष्टि में आप कौन-से उदाहरण देंगे?

भारत को पारंपरिक (सैन्य) और अपारंपरिक खतरों का सामना करना पड़ा है। ये खतरे सीमा के अंदर से भी उभरे एवं बाहर से भी। भारत की सुरक्षा नीति के चार बड़े घटक हैं और अलग-अलग समय में इन्हीं घटकों के हेर-फेर से सुरक्षा की रणनीति बनायी हुई है।
1. प्रथम घटक-सुरक्षा नीति का पहला घटक सैन्य क्षमता को मजबूत करना रहा है क्योंकि भारत पर पड़ोसी देशों के हमले होते रहे हैं। पाकिस्तान ने 1947-48, 1965, 1971 तथा 1999 में एवं चीन ने सन् 1962 में भारत पर हमला किया। दक्षिण एशियाई इलाके में भारत के चारों ओर परमाणु हथियारों से लैस देश हैं। ऐसे में भारत के परमाणु परीक्षण करने के फैसले (1998) को उचित ठहराते हुए भारत सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा का तर्क दिया था।
2. दूसरा घटक-भारत की सुरक्षा नीति का दूसरा घटक अपने सुरक्षा हितों को बचाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय नियमों और संस्थाओं को सुदृढ़ करना है। भारत ने अपनी सुरक्षा की रणनीति में यह सिद्धांत भी अपनाया है कि अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, संस्थाओं तथा अंतर्राष्ट्रीय कानूनों व नियमों को मजबूत बनाने में योगदान करे क्योंकि इनकी मजबूती से देशों की बाहरी सुरक्षा मजबूत होती है। भारत ने निउपनिवेशीकरण (decolonisation) का समर्थन किया है; सभी राष्ट्रों की राष्ट्रीय स्वतंत्रता को उनका जन्मसिद्ध धिकार माना है और साम्राज्यवाद का विरोध किया है। यदि संयुक्त राष्ट्र संघ मजबूत होता है तो किसी देश को पड़ोसी देश पर आक्रमण करने की हिम्मत नहीं हो सकती। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों के समाधान में संयुक्त राष्ट्रसंघ को अंतिम तथा सबसे अधिक उचित मंच माने जाने पर जोर दिया है। भारत ने इस बात पर जोर दिया है कि सभी देशों को संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णयों का सम्मान करना उनका मानवीय दायित्व है। भारत ने हथियारों के अप्रसार के संबंध में एक सार्वभौम और विना भेदभाव वाली नीति चलाने की पहल कदनी की जिसमें हर देश को सामूहिक संहार के हथियारों ('परमाणु, जैविक, रासायनिक) से संबद्ध बराबर के अधिकार और दायित्व हों। भारत ने नव-अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की माँग उठायीं और सबसे बड़ी बात यह कि दो महाशक्तियों की खेमेबाजी से अलग उसने गुटनिरपेक्षता के रूप में विश्व-शांति का तीसरा विकल्प सामने रखा। भारत उन 160 देशों में शामिल है जिन्होंने 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए हैं। क्योटो प्रोटोकॉल में वैश्विक तापवृद्धि पर काबू रखने के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के संबंध में दिशा-निर्देश बताए गए हैं। सहयोगमूलक सुरक्षा की पहलकदमियों के समर्थन में भारत ने अपनी सेना संयुक्त राष्ट्र संघ के शांतिबहाली के मिशनों में भेजी है।
3. तीसरा घतक भारत की सुरक्षा रणनीति का तीसरा घटक है देश की अंदरूनी सुरक्षा समस्याओं से निबटने की तैयारी। नागालैंड, मिजोरम, पंजाब और कश्मीर जैसे क्षेत्रों से कई उग्रवादी समूहों ने समय-समय पर इन प्रांतों को भारत से अलगाने की कोशिश की। भारत ने राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने के लिए लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था का पालन किया है। यह व्यवस्था विभिन्न समुदाय और जन-समूहों को अपनी शिकायतों को खुलकर रखने और सत्ता में भागीदारी करने का मौका देती है।
4. चौथा घटक-भारत में अर्थव्यवस्था को इस तरह विकसित करने के प्रयास किए गए हैं कि बहुसंख्यक नागरिकों को गरीबी और अभाव से निजात मिले तथा नागरिकों के बीच आर्थिक असमानता ज्यादा न हो। ये प्रयास ज्यादा सफल नहीं हुए हैं। हमारा देश अब भी गरीब है और असमानताएँ मौजूद हैं। फिर मी. लोकतांत्रिक राजनीति में ऐसे अवसर उपलब्ध हैं कि गरीब और वंचित नागरिक अपनी आवाज उठा सकें। लोकतांत्रिक रीति से निर्वाचित सरकार के ऊपर दबाव होता है कि वह आर्थिक संवृद्धि को मानवीय विकास का सहगामी बनाए। इस प्रकार, लोकतंत्र सिर्फ राजनीतिक आदर्श नहीं है; लोकतांत्रिक शासन जनता को ज्यादा सुरक्षा मुहैया कराने का साधन भी है।


प्रश्न.12. नीचे दिए गए कार्टून समझे। कार्टून में युद्ध और आतंकवाद का जो संबंध दिखाया गया है उसके पक्ष या विपक्ष में एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
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  • पक्ष में तर्क: दिए गए कार्टून के रूप में यह कहा जा सकता है की युद्ध को प्रायः मानव विनाश के लिए बहुत बड़ा खतरा माना जाता रहा है। यह खतरा परंपरागत है। जबसे मानव पैदा हुआ है तभी से उसे युद्ध करना पड रहा है। यह युद्ध मानव को अपने राज्य या धर्म या संसाधनों की रक्षा और अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए लड़ना पड़ा। युद्ध के पक्षधर देश यह मानते हैं की आतंकवाद को कुचलने के लिए सभी राष्ट्र एक हो जाएँ तथा वे तब तक युद्ध का मोर्चा खोले रहें जब तक आतंकवाद समाप्त नहीं हो जाता।
  • विपक्ष में तर्क: आतंकवाद मानव या विश्व सुरक्षा के लिए एक नया खतरा है। यधपि आतंकवाद आदिकाल से चल रहा है। लेकिन वह आतंकवाद बहुत सिमित क्षेत्र तक था। जो व्यवक्ति या समाज शक्ति के सिद्धांत में विश्वास करते हुए यह मानता था की शक्ति ही ठीक है यह कमजोर व्यक्ति, समुदाय या राज्य को निकल जाता था। उसे व्यक्तिगत या क्षेत्रीय स्तर पर संघर्ष या लड़ाई लड़नी होती थी। उस समय लड़ाई या युद्ध का प्रभाव सिमित होता था। आज आतंकवाद न केवल एक देश के लिए वर्ण संपूर्ण विश्वजाति के लिए खतरा बन गया है। आतंकवादी अपनी विचारधारा - राजनैतिक या धार्मिक सिद्धांत और शिक्षाएँ अथवा प्राथमिकताएँ थोपने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। वे हथियारों का सहारा लेकर निर्दोष लोगों के मस्तिश्क और मन पर अपना प्रभाव जबरदस्ती डालकर उन्हें अपनी टोली में खींचने हैं और उन्हें प्रशिक्षण देते है और फिर छोटे बम या मानव बम अथवा संभव हो तो अधिक शक्तिशाली बम प्रयोग करने के लिए भेजते रहते हैं। धन लूटना, आतंक के भय का प्रचार - प्रसार करना, मिडिया का सहारा लेकर अपनी विचारधारा को प्रसारित करना, बड़ी - बड़ी शक्तियों या सरकारो के विरुद्ध गुरिल्ला अथवा खुले चुनौतीपूर्ण युद्धों या संघर्ष को जारी करना सर्वत्र भय के साथ - साथ प्रतिरक्षा के लिए सरकारों को गहरे जाल बिछाकर रखना या बड़ी संख्या में आंतरिक सुरक्षा का इंतजाम करने के लिए विवश करना।
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