UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi  >  Politics and Governance (राजनीति और शासन): January 2024 UPSC Current Affairs

Politics and Governance (राजनीति और शासन): January 2024 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

प्रधानमंत्री अनुसूचित जाति अभ्युदय योजना

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने प्रधान मंत्री अनुसुचित जाति अभ्युदय योजना (PM-AJAY) पर प्रकाश डाला, जो प्रधान मंत्री आदर्श ग्राम योजना (PMAGY), अनुसूचित जाति उपयोजना के लिये विशेष केंद्रीय सहायता (SCA से SCSP) ,और बाबू जगजीवन राम छात्रावास योजना (BJRCY) सहित तीन केंद्र प्रायोजित योजनाओं को मिलाकर एक व्यापक योजना है। 

  • वित्तीय वर्ष 2021-22 में शुरू की गई इस पहल का उद्देश्य कौशल विकास, आय-सृजन योजनाओं और विभिन्न पहलों के माध्यम से रोजगार के अवसर पैदा करके अनुसूचित जाति समुदायों का उत्थान करना है।

PM-AJAY की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • उद्देश्य:
    • कौशल विकास, आय-सृजन योजनाओं और अन्य पहलों के माध्यम से अतिरिक्त रोज़गार के अवसर पैदा करके अनुसूचित जाति समुदायों में गरीबी को कम करना।
    • भारत के आकांक्षी ज़िलों/अनुसूचित जाति बहुल ब्लॉकों और अन्य जगहों पर गुणवत्तापूर्ण संस्थानों में पर्याप्त आवासीय सुविधाएँ प्रदान करके साक्षरता बढ़ाना तथा स्कूलों एवं उच्च शिक्षण संस्थानों में अनुसूचित जाति के नामांकन को प्रोत्साहित करना।

PM-AJAY के घटक

  • अनुसूचित जाति बहुल ग्रामों का "आदर्शग्राम" के रूप में विकास:
    • इस घटक को पहले प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना (PMAGY) के नाम से जाना जाता था।
    • इस घटक का उद्देश्य अनुसूचित जाति-बहुल ग्रामों का एकीकृत विकास सुनिश्चित करना है।
    • सामाजिक-आर्थिक विकास आवश्यकताओं के लिये पर्याप्त बुनियादी ढाँचा प्रदान करना।
    • चिह्नित सामाजिक-आर्थिक संकेतकों (निगरानी योग्य संकेतक) में लक्ष्य सुधार।
    • निगरानी योग्य संकेतक 10 डोमेन में वितरित किये गए हैं। इन डोमेन में पेयजल और स्वच्छता, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा पोषण, सामाजिक सुरक्षा, ग्रामीण सड़कें एवं आवास, ऊर्जा व स्वच्छ ईंधन, कृषि पद्धतियाँ, वित्तीय समावेशन, डिजिटलीकरण और आजीविका एवं कौशल विकास जैसे महत्त्वपूर्ण पहलू शामिल हैं।
    • अनुसूचित जाति और गैर-अनुसूचित जाति आबादी के बीच असमानता को समाप्त करना।
    • सभी अनुसूचित जाति के बच्चों के लिये कम-से-कम माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा पूरी करना सुनिश्चित करना।
    • मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को बढ़ाने वाले कारकों का पता लगाना।
    • विशेषकर बच्चों और महिलाओं में कुपोषण की घटनाओं को समाप्त करना।
  • उपलब्धियाँ:
    • आदर्श ग्राम घटक के तहत, वर्तमान वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान कुल 1834 गाँवों को आदर्श ग्राम घोषित किया गया है।
  • ज़िला/राज्य-स्तरीय परियोजनाओं के लिये 'सहायता अनुदान':
    • इस घटक को पूर्व में अनुसूचित जाति उपयोजना के लिये विशेष केंद्रीय सहायता के रूप में जाना जाता था।
    • इस योजना का लक्ष्य निम्नलिखित प्रकार की परियोजनाओं के लिये अनुदान के माध्यम से अनुसूचित जाति का सामाजिक-आर्थिक विकास करना है:
  • व्यापक आजीविका परियोजनाएँ:
    • ऐसी परियोजनाएँ जो अनुसूचित जाति के लिये स्थायी आय उत्पन्न करने अथवा सामाजिक उन्नति के लिये एक संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करती हैं, उन्हें ही शुरू किया जाएगा।
    • ये परियोजनाएँ अधिमानतः निम्नलिखित में से दो या अधिक का संयोजन होनी चाहिये:
  • कौशल विकास:
    • कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के मानदंडों के अनुसार कौशल पाठ्यक्रम तैयार करना। सरकार द्वारा संचालित कौशल विकास गतिविधियों के संचालन के लिये संबंधित सुविधाएँ तथा बुनियादी ढाँचा प्रदान करना। इसके अंतर्गत कौशल विकास संस्थानों को भी वित्त पोषित किया जा सकता है।
  • लाभार्थियों/परिवारों के लिये परिसंपत्तियों के निर्माण/अधिग्रहण हेतु अनुदान: 
    • योजना के अंतर्गत एकल व्यक्तिगत परिसंपत्ति वितरण होगा। हालाँकि, यदि परियोजना में लाभार्थियों/परिवारों के लिये आजीविका सृजन के लिये आवश्यक परिसंपत्तियों के अधिग्रहण/निर्माण का प्रावधान है तो ऐसी परिसंपत्तियों के अधिग्रहण/निर्माण के लिये लाभार्थी द्वारा लिये गए ऋण के लिये वित्तीय सहायता, प्रति लाभार्थी/घर 50,000 रुपए अथवा परिसंपत्ति लागत का 50 प्रतिशत तक जो भी कम हो, तक होगी।
  •  बुनियादी ढाँचे का विकास:
    • परियोजना से संबंधित बुनियादी ढाँचे तथा छात्रावासों एवं आवासीय विद्यालयों का विकास किया जाएगा।
  • विशेष प्रावधान:
    • अनुसूचित जाति की महिलाओं के लिये कुल अनुदान का 15 प्रतिशत तक विशेष रूप से व्यवहार्य आय उत्पन्न करने वाली आर्थिक विकास योजनाएँ/कार्यक्रम के संचालन का प्रावधान।
    • बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये कुल अनुदान का 30 प्रतिशत तक उपयोग किया जाएगा। 
    • जो कौशल विकास के लिये कुल निधि का कम-से-कम 10 प्रतिशत हो।
    • कौशल विकास के लिये कुल निधि का कम-से-कम 10% उपयोग किया जाएगा। 
    • उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन तथा विपणन में लगी अनुसूचित जाति महिला सहकारी समितियों को बढ़ावा देना।
  • उपलब्धियाँ:
    • वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान अनुदान सहायता घटक के तहत 17 राज्यों के लिये परिप्रेक्ष्य योजना को मंज़ूरी दी गई है।
  • उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्रावासों का निर्माण:
    • यह अनुसूचित जाति के छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने और स्कूल छोड़ने की दर को कम करने में सक्षम तथा प्रोत्साहित करता है, इसे राज्य सरकारों, केंद्रशासित प्रदेश प्रशासनों एवं केंद्रीय व राज्य विश्वविद्यालयों/संस्थानों के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है।
  • छात्रावासों के निर्माण/विस्तार के लिये लागत मानदंड निम्नानुसार होंगे:
    • उत्तर पूर्वी क्षेत्र: प्रति कैदी 3.50 लाख रुपए।
    • उत्तरी हिमालयी क्षेत्र: प्रति कैदी 3.25 लाख रुपए।
    • गंगा के मैदान और निचले हिमालयी क्षेत्र: प्रति कैदी 3.00 लाख रुपए।
    • लड़कों के छात्रावासों के लिये भी 100% केंद्रीय सहायता - पहले यह राज्य के साथ लागत साझा करती थी।
  • सफलता:
    • वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान कुल 15 नए छात्रावासों को मंज़ूरी दी गई है।

बिलकिस बानो मामला और परिहार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात राज्य में वर्ष 2002 के दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार तथा उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या में शामिल 11 दोषियों को दंड परिहार देने के गुजरात सरकार के निर्णय को रद्द कर दिया है।

बिलकिस बानो मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के दौरान उक्त गर्भवती महिला बिलकिस बानो के साथ क्रूर सामूहिक बलात्कार किया गया था तथा उसकी तीन वर्ष की बेटी सहित परिवार के सात सदस्यों को दंगाइयों ने मार डाला था।
  • व्यापक विधिक कार्यवाही के बाद केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation- CBI) ने मामले की जाँच की।
  • वर्ष 2004 में बिलकिस को जान से मारने की धमकियाँ मिलने के बाद SC ने मुकदमे को गुजरात से मुंबई न्यायालय स्थानांतरित कर दिया तथा केंद्र सरकार को एक विशेष लोक अभियोजक (Public Prosecutor) नियुक्त करने का निर्देश दिया।
  • वर्ष 2008 में मुंबई की एक न्यायालय ने 11 व्यक्तियों को सामूहिक बलात्कार तथा हत्या में शामिल होने के लिये दोषी सिद्ध किया जो बिलकिस बानो को न्याय दिलाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
  • हालाँकि अगस्त 2022 में गुजरात सरकार ने इन 11 दोषियों को परिहार/माफी दे दी जिससे उनकी रिहाई हो गई। इस निर्णय ने संबद्ध छूट देने के लिये उत्तरदायी प्राधिकरण तथा क्षेत्राधिकार के संबंध में चिंताओं के कारण विवाद एवं विधिक चुनौतियों को उजागर किया।

गुजरात सरकार की दंड परिहार अनुदान को रद्द करने वाला सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय क्या है?

  • अधिकार की कमी और छुपाए गए तथ्य:
    • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि गुजरात सरकार के पास दंड परिहार के आदेश जारी करने का अधिकार या क्षेत्राधिकार नहीं है।
    • CrPC की धारा 432 के तहत, राज्य सरकारों के पास किसी दंड को निलंबित करने या क्षमा करने की शक्ति है। लेकिन न्यायालय ने कहा कि कानून की धारा 7(B) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि उपयुक्त सरकार वह है जिसके अधिकार क्षेत्र में अपराधी को सज़ा सुनाई जाती है।
    • इसने बताया कि दंड परिहार देने का निर्णय उस राज्य के अधिकार क्षेत्र में होना चाहिये जहाँ दोषियों को सज़ा सुनाई गई थी, न कि जहाँ अपराध हुआ था या जहाँ उन्हें कैद किया गया था।
  • दंड परिहार प्रक्रिया की आलोचना:
    • न्यायालय ने यह उल्लेख करते हुए दंड परिहार प्रक्रिया में गंभीर खामियों को उजागर किया है कि आदेशों पर उचित विचार नहीं किया गया और तथ्यों को छिपाकर प्राप्त किया गया, जो न्यायालय के साथ धोखाधड़ी है।
  • सत्ता का अतिरेक और गैरकानूनी प्रयोग:
    • न्यायालय ने गुजरात सरकार की अतिरेक की आलोचना करते हुए कहा कि उसने दंड परिहार के आदेश जारी करने में उस शक्ति का गैरकानूनी तरीके से प्रयोग किया जो महाराष्ट्र सरकार के पास थी।
  • स्वतंत्रता याचिका के निर्देश और अस्वीकृति:
    • अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिये दोषियों की याचिका को खारिज करते हुए, न्यायालय ने उन्हें दो सप्ताह के भीतर जेल के अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया।

परिहार क्या है?

  • परिचय:
    • परिहार (Remission) एक बिंदु पर किसी दंड या सज़ा की पूर्ण रूप से समाप्ति है। दंड परिहार फर्लो (Furlough) और पैरोल (Parole) दोनों से अलग है क्योंकि इसमें कारावास-जीवन से विराम के विपरीत दंड में कमी कर दी जाती है। 
    • दंड परिहार में सज़ा की प्रकृति बदलती नहीं है, जबकि अवधि कम हो जाती है अर्थात् शेष सज़ा भुगतने की ज़रूरत नहीं होती है।
    • दंड परिहार का प्रभाव यह होता है कि कैदी को एक निश्चित तारीख दी जाती है जिस दिन उसे रिहा किया जाएगा और कानून की नज़र में वह एक स्वतंत्र व्यक्ति होगा।
    • हालाँकि दंड परिहार की किसी भी शर्त के उल्लंघन के मामले में इसे रद्द कर दिया जाएगा और अपराधी को वह पूरी अवधि वापस कारावास में व्यतीत करनी होगी जिसके लिये उसे मूल रूप से सज़ा सुनाई गई थी।
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • राष्ट्रपति और राज्यपाल दोनों को संविधान द्वारा क्षमा की संप्रभु शक्ति प्रदान की गई है।
    • अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति किसी भी व्यक्ति की सज़ा को क्षमा, लघुकरण, विराम या प्रविलंबन कर सकता है या निलंबित या कम कर सकता है। 
    • यह सभी मामलों में किसी भी अपराध के लिये दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति हेतु किया जा सकता है:
    • सज़ा उन सभी मामलों में कोर्ट-मार्शल द्वारा होगी जहाँ सज़ा केंद्र सरकार की कार्यकारी शक्ति से संबंधित किसी भी कानून के तहत अपराध को संदर्भित करती है और सभी मामलों में मौत की सज़ा होगी।
    • अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल सज़ा को क्षमा, प्रविलंबन, विराम या परिहार दे सकता है या सज़ा को निलंबित, हटा या कम कर सकता है।
    • यह राज्य की कार्यकारी शक्ति के अंतर्गत आने वाले मामले में किसी भी कानून के तहत दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति के लिये किया जा सकता है। 
    • अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति का दायरा अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल की क्षमादान शक्ति से अधिक व्यापक है। 
  • परिहार की सांविधिक शक्ति:
    • दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) जेल की सज़ा में दंड परिहार का प्रावधान करती है, जिसका अर्थ है कि पूरी सज़ा या उसका एक हिस्सा रद्द किया जा सकता है। 
    • धारा 432 के तहत 'उपयुक्त सरकार' किसी सज़ा को पूरी तरह या आंशिक रूप से शर्तों के साथ या उसके बिना निलंबित या माफ कर सकती है। 
    • धारा 433 के तहत किसी भी सज़ा को उपयुक्त सरकार द्वारा कम किया जा सकता है। 
    • यह शक्ति राज्य सरकारों को उपलब्ध है ताकि वे जेल की अवधि पूरी करने से पहले कैदियों को रिहा करने का आदेश दे सकें। 

परिहार के ऐतिहासिक मामले

  • लक्ष्मण नस्कर बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2000):
    • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने उन कारकों को निर्धारित किया जो परिहार के अनुदान को नियंत्रित करते हैं:
    • क्या अपराध बड़े पैमाने पर समाज को प्रभावित किये बिना अपराध का एक व्यक्तिगत कार्य है?
    • क्या भविष्य में अपराध की पुनरावृत्ति की कोई संभावना है?
    • क्या अपराधी अपराध करने की अपनी क्षमता खो चुका है?
    • क्या इस दोषी को अब और कैद में रखने का कोई सार्थक उद्देश्य है?
    • दोषी के परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति।
  • इपुरु सुधाकर बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (2006):
    • SC ने माना कि दंड परिहार के आदेश की न्यायिक समीक्षा निम्नलिखित आधारों पर उपलब्ध है:
    • दिमाग का उपयोग न करना;
    • आदेश दुर्भावनापूर्ण है;
    • आदेश अप्रासंगिक या पूर्णतः अप्रासंगिक विचारों पर पारित किया गया है;
    • प्रासंगिक सामग्रियों को विचार से बाहर रखा गया;
    • आदेश मनमानी से ग्रस्त है।

सर्वोच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में  सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस बी.आर. गवई को  सर्वोच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति (Supreme Court Legal Services Committee - SCLSC) के अध्यक्ष के रूप में नामित किया गया है।

सर्वोच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति क्या है?

  • पृष्ठभूमि:
    • विधिक सेवा समिति का विचार सबसे पहले 1950 के दशक में आया था, वर्ष 1980 में तत्कालीन SC के न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती की अध्यक्षता में राष्ट्रीय स्तर पर एक समिति की स्थापना की गई थी।
    • विधिक सेवा समिति को लागू करने वाली समिति ने पूरे भारत में विधिक सहायता गतिविधियों की निगरानी शुरू कर दी।
  • परिचय:
    • SCLSC का गठन शीर्ष अदालत के अधिकार क्षेत्र के तहत आने वाले मामलों में “समाज के कमज़ोर वर्गों को मुफ्त और सक्षम कानूनी सेवाएँ” प्रदान करने के लिये विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 3A के तहत किया गया था।
    • अधिनियम की धारा 3A में कहा गया है कि  राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority - NALSA) इस समिति का गठन करेगी।
    • इसमें एक सर्वोच्च न्यायालय (SC) का वर्तमान न्यायाधीश, जो अध्यक्ष है, के साथ-साथ केंद्र द्वारा निर्धारित अनुभव और योग्यता रखने वाले अन्य सदस्य शामिल होते हैं। अध्यक्ष और अन्य सदस्यों दोनों को भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India - CJI) द्वारा नामित किया जाएगा।
    • इसके अलावा, CJI समिति में सचिव की नियुक्ति कर सकते हैं।
  • सदस्य:
    • SCLSC में एक अध्यक्ष तथा CJI द्वारा नामित नौ सदस्य शामिल होते हैं। समिति CJI के परामर्श से केंद्र द्वारा निर्धारित अधिकारियों तथा अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति कर सकती है।
    • इसके अतिरिक्त NALSA नियम, 1995 के नियम 10 में SCLSC सदस्यों की संख्या, अनुभव तथा अर्हताएँ शामिल हैं।
    • 1987 अधिनियम की धारा 27 के तहत केंद्र को अधिनियम के उपबंधो को कार्यान्वित करने के लिये अधिसूचना द्वारा CJI के परामर्श से नियम बनाने का अधिकार है।

वे कौन से संवैधानिक प्रावधान हैं जो भारत में कानूनी सेवाओं के प्रावधान को अनिवार्य बनाते हैं?

  • भारतीय संविधान के कई प्रावधानों में कानूनी सेवाएँ प्रदान करने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है। अनुच्छेद 39A में कहा गया है, राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि कानूनी प्रणाली का संचालन समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा देगा और विशेष रूप से, उपयुक्त कानून या योजनाओं या किसी अन्य तरीके से मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करेगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी भी नागरिक को आर्थिक या अन्य विकलांगताओं के कारण न्याय हासिल करने के अवसरों से वंचित नहीं किया जाए।
  • इसके अलावा, अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 22(1) (गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित होने का अधिकार) भी राज्य के लिये विधि के समक्ष समानता तथा समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा देने वाली विधिक प्रणाली सुनिश्चित करना अनिवार्य बनाता है।

वर्ष 2024 में OTT का दृश्य

चर्चा में क्यों?

भारत में OTT मार्केट वर्तमान में मूल्य-संवेदनशील बाज़ार में विकास और लाभप्रदता के मध्य दुविधा से जूझ रहा है। वर्ष 2023 में, भारत में ओवर-द-टॉप (OTT) मार्केट ने महत्त्वपूर्ण व्यवधानों और चुनौतियों का अनुभव किया, जिससे इसके विकास में असंतुलन हुआ है।

ओवर-द-टॉप क्या है?

  • परिचय:
    • OTT का मतलब “ओवर-द-टॉप (Over-The-Top)” है, यह शब्द पारंपरिक प्रसारण, केबल या सैटेलाइट टी.वी. प्लेटफार्मों को दरकिनार करते हुए दर्शकों को सीधे इंटरनेट पर सामग्री वितरण का वर्णन करने के लिये उपयोग किया जाता है।
    • OTT बाज़ार उस उद्योग को संदर्भित करता है जो इंटरनेट के माध्यम से उपयोगकर्त्ताओं को स्ट्रीमिंग मीडिया सेवाएँ, फिल्में, टी.वी. शो, संगीत और अन्य सामग्री प्रदान करता है।
    • उदाहरण: नेटफ्लिक्स (Netflix), डिज़्नी प्लस (Disney+), हुलु (Hulu), अमेज़ॅन प्राइम वीडियो (Amazon Prime Video), पीकॉक (Peacock), क्यूरियोसिटी-स्ट्रीम (CuriosityStream), प्लूटो टी.वी. (Pluto TV) और अन्य।

OTT के लाभ

  • फ्लेक्सीबिलिटी और सुविधा:
    • उपयोगकर्त्ता विशिष्ट सुविधा प्राप्त करते हुए, कभी भी, कहीं भी, कई उपकरणों पर सामग्री को एक्सेस कर सकते हैं।
  • विविध सामग्री: 
    • OTT प्लेटफॉर्म विभिन्न पसंद और रुचियों को पूरा करने वाली फिल्मों, टी.वी. शो, वृत्तचित्र तथा मूल प्रस्तुतियों सहित सामग्री की एक विस्तृत शृंखला पेश करते हैं।
  • वैयक्तिकरण:
    • ये प्लेटफॉर्म देखने की आदतों, उपयोगकर्त्ता अनुभव और सामग्री खोज को बढ़ाने के आधार पर सामग्री की अनुशंसा करने के लिये एल्गोरिदम का उपयोग करते हैं।
  • लागत प्रभावशीलता:
    • पारंपरिक केबल अथवा सैटेलाइट टी.वी. सब्सक्रिप्शन की तुलना में OTT सेवाएँ अमूमन अधिक किफायती मूल्य निर्धारण विकल्प प्रदान करती हैं, जिसमें विज्ञापन विकल्प अथवा सब्सक्रिप्शन प्राप्त करने के साथ मुफ्त कॉन्टेंट/सामग्री की सुविधा प्रदान की जाती है।
  • वैश्विक पहुँच:
    • OTT प्लेटफॉर्म भौगोलिक बाधाओं का समाधान कर विश्व भर में उपयोगकर्त्ताओं को उनके मन चाहे स्थान पर सामग्री पहुँचाने में सहायता प्रदान करता है।

OTT की सीमाएँ

  • इंटरनेट पर निर्भरता:
    • OTT में निर्बाध स्ट्रीमिंग के लिये हाई-स्पीड इंटरनेट महत्त्वपूर्ण है। खराब कनेक्टिविटी वाले क्षेत्रों में सामग्री तक पहुँच में बाधा का सामना करना पद सकता है।
  • सामग्री की विविधता:
    • विभिन्न प्लेटफॉर्मों पर सामग्री संबंधी विशेषाधिकारों के परिणामस्वरूप दर्शकों की संख्या प्रभावित होती है जिससे विशेष शो अथवा फिल्मों तक पहुँचने के लिये उपयोगकर्त्ताओं को एकाधिक सब्सक्रिप्शन की आवश्यकता हो सकती है।
  • डेटा संबंधी चिंताएँ:
    • OTT प्लेटफॉर्म सामग्री को उपयोगकर्त्ता के उपयुक्त बनाने के लिये उनका डेटा एकत्र करते हैं जिनका उपयोग अनुचित तरीके से किया जा सकता है अथवा उपयोगकर्त्ता सहमति के बिना तीसरे पक्ष के साथ डेटा साझा किया जा सकता है जिससे गोपनीयता संबंधी चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
  • सामग्री की गुणवत्ता तथा उपलब्धता:
    • हालाँकि सामग्री की उपलब्धता अत्यधिक है किंतु सामग्री की गुणवत्ता भिन्न हो सकती है। इसके अतिरिक्त सामग्री की व्यापक उपलब्धता उपयोगकर्त्ताओं के लिये गुणवत्तापूर्ण सामग्री की खोज को अत्यधिक कठिन बना सकती है।

वर्ष 2023 में OTT की स्थिति तथा वर्ष 2024 हेतु इसका परिदृश्य क्या है?

  • वर्ष 2023 में OTT परिदृश्य में निशुल्क प्रीमियम सामग्री की प्रस्तुति करने वाले प्लेटफॉर्म अन्य की तुलना में अत्यधिक प्रभावित हुए तथा निशुल्क प्रस्तुति करने के परिणामस्वरूप अंततः उन्हें सब्सक्रिप्शन से प्राप्त आय में घाटे का सामना करना पड़ा।
  • सामग्री संबंधी मुद्रीकरण की चुनौतियाँ बनी रहीं तथा उच्च सामग्री लागत के कारण कोई भी लाभ-अलाभ (break-even) की स्थिति में नहीं था।
  • फ्रीमियम मॉडल की प्रस्तुति हुई जिससे पासवर्ड साझा करने तथा विज्ञापनों को एकीकृत करने पर अंकुश लगा। विनियामक चिंताएँ बनी रहीं किंतु सेंसरशिप को समर्थन नहीं दिया गया जिससे चयनात्मक डेटा साझाकरण को बढ़ावा मिला।
  • वर्ष 2024 के परिदृश्य में प्रयोगात्मक सामग्री में गिरावट के साथ लागत-प्रभावशील सामग्री रणनीतियों की अपेक्षा है। Zee/Sony जैसे प्रमुख प्लेटफॉर्म के बीच विलय तथा RIL/Disney जैसे संभावित सहयोग बाज़ार की गतिशीलता को पुनर्गठित कर सकते हैं, जिससे सौदेबाज़ी की शक्ति एवं सामग्री लागत प्रभावित हो सकती है।
  • मूल्य-निर्धारण रणनीतियाँ विज्ञापनों को साझा करने और एम्बेड करने पर संभावित तीव्र सीमाओं को विकसित करना जारी रखेंगी।
  • धार्मिक या अल्पसंख्यक भावनाओं के प्रति संवेदनशीलता पर बल देते हुए नियामक अनुपालन सख्त हो सकता है। दर्शकों के रुझान में पारदर्शिता बढ़ने से विज्ञापनदाताओं और रचनाकारों को मदद मिलेगी।

ओटीटी के बेहतर नियमन के लिये क्या किया जा सकता है?

  • स्व-विनियमन ढाँचा:
    • पारंपरिक मीडिया के समान पारदर्शी सामग्री दिशानिर्देश और रेटिंग सिस्टम स्थापित करने के लिये ओटीटी प्लेटफॉर्मों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
    • उद्योग-आधारित स्व-नियमन रचनात्मकता को प्रभावित किये बिना चिंताओं को दूर कर सकता है।
  • सहयोगात्मक निरीक्षण निकाय:
    • उद्योग विशेषज्ञों, हितधारकों और सरकारी प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए स्वतंत्र निकाय बनाना अनिवार्य है। ये निकाय सामग्री की निगरानी कर सकते हैं, शिकायतों की समीक्षा कर सकते हैं तथा उद्योग मानक निर्धारित कर सकते हैं।
  • स्पष्ट सामग्री वर्गीकरण और रेटिंग:
    • उपयोगकर्त्ताओं को आयु-उपयुक्तता और सामग्री विषयों के आधार पर सूचित देखने के विकल्प चुनने में मदद करने के लिये मानकीकृत सामग्री वर्गीकरण प्रणालियों को लागू करने की आवश्यकता है।
  • डेटा शेयरिंग में पारदर्शिता:
    • OTT प्लेटफार्मों को दर्शकों के रुझान को चुनिंदा रूप से निरीक्षण निकायों के साथ साझा करने, सामग्री मूल्यांकन में सहायता करने और दिशा-निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये प्रोत्साहित कीजिये।
  • नियमित ऑडिट और अनुपालन जाँच:
    • यह सुनिश्चित करने के लिये समय-समय पर ऑडिट करने की आवश्यकता है कि प्लेटफॉर्म स्थापित दिशा-निर्देशों का पालन करें, जवाबदेही और ज़िम्मेदार सामग्री क्यूरेशन को बढ़ावा दें।

निष्कर्ष

  • OTT ने लचीलापन, विकल्प और सुविधा प्रदान करके लोगों के मनोरंजन के तरीके को बदल दिया है।
  • तकनीकी प्रगति, बदलती उपभोक्ता प्राथमिकताओं और मीडिया तथा मनोरंजन के गतिशील परिदृश्य के कारण बाज़ार का विकास जारी है।

आय-कर अधिनियम, 1961 की धारा 132

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति के.एस.पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ, 2017 मामले में ऐतिहासिक निर्णय ने निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया। हालाँकि भारत में आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 132 द्वारा दी गई अतिरिक्त-सांविधानिक शक्तियों के संबंध में चिंताएँ सामने आई हैं क्योंकि वे नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन करती प्रतीत होती हैं।

आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 132 क्या है?

  • यह धारा वर्ष 1961 में आयकर अधिनियम, 1961 के भाग के रूप में, आय पर कराधान (अन्‍वेषण आयोग) अधिनियम, 1947 को प्रतिस्थापित करने के लिये प्रस्तुत की गई थी जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने सूरज मल मोहता बनाम ए.वी. विश्वनाथ शास्त्री (1954) मामले में रद्द कर दिया था क्योंकि न्यायालय के अनुसार इसमें करदाताओं के एक निश्चित वर्ग के साथ अन्य की तुलना में विशेष व्यवहार का प्रावधान था जिससे संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित एकसमान व्यवहार की गारंटी का हनन हुआ।
  • वर्ष 1922 में प्रस्तुत मूल आयकर कानून में खोज तथा ज़ब्ती शक्तियों का अभाव था।
  • आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 132, कर अधिकारियों को बिना किसी पूर्व न्यायिक वारंट के व्यक्तियों तथा संपत्तियों की खोज/तलाशी एवं ज़ब्ती करने का अधिकार देती है यदि उनके पास “संदेह करने का कारण” है कि व्यक्ति ने आय छुपाई है अथवा चोरी की है।
  • यह अधिकारियों को वित्तीय संपत्ति छिपाने के संदेह के आधार पर भवन, स्थानों, वाहनों अथवा विमानों की तलाशी लेने की शक्ति प्रदान करता है।
  • संबद्ध अधिकारी इस अधिनियम के तहत तलाशी अथवा सर्वेक्षण के दौरान किसी भी व्यक्ति के कब्ज़े में पाई गई ऐसी वस्तुओं को ज़ब्त कर सकते हैं। तलाशी के दौरान खोजी गई बहीखाते, धन, बुलियन, आभूषण अथवा अन्य मूल्यवान वस्तुओं को ज़ब्त करने की अनुमति देता है।

आयकर अधिनियम,1961 की धारा 132 के संबंध में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • आनुपातिक सिद्धांत का उल्लंघन:
    • आयकर अधिनियम की धारा 132, औपचारिक रूप से चुनौती नहीं दिये जाने के बावजूद, आनुपातिकता के सिद्धांत के संभावित उल्लंघन का सुझाव देती है।
    • तलाशी और ज़ब्त करने की राज्य की शक्ति को अब सामाजिक सुरक्षा के एक सरल उपकरण के रूप में नहीं देखा जाता है, बल्कि यह आनुपातिकता के सिद्धांत के अधीन है। इसका मतलब यह है कि इसका उपयोग एक वैध उद्देश्य के लिये किया जाना चाहिये, तर्कसंगत रूप से अपने उद्देश्य से जुड़ा होना चाहिये, कोई वैकल्पिक कम दखल देने वाला साधन उपलब्ध नहीं होना चाहिये और चुने गए साधनों तथा उल्लंघन किये गए अधिकार के बीच संतुलन होना चाहिये।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने मुख्य आयकर निदेशक बनाम लालजीभाई कांजीभाई मांडलिया, 2022 के मामले में “वेडनसबरी (Wednesbury)” अवधारणा पर निर्भरता प्रदर्शित की, जो ब्रिटेन की अदालत के फैसले से लिया गया प्रशासनिक समीक्षा का एक मानक है, जिसमें तलाशी को न्यायिक नहीं बल्कि प्रशासनिक माना गया है।
    • वेडनसबरी सिद्धांत कहता है कि यदि कोई निर्णय इतना अनुचित है कि कोई भी समझदार प्राधिकारी इसे कभी नहीं ले सकता है, तो ऐसे निर्णय न्यायिक समीक्षा के माध्यम से रद्द किये जा सकते हैं।
    • आलोचकों का तर्क है कि पुट्टस्वामी के बाद, वेडनसबरी मानदंड का कोई स्थान नहीं है, खासकर जहाँ बुनियादी अधिकार खतरे में हैं और किसी भी कार्यकारी कार्रवाई को वैधानिक कानून का सबसे सख्त अर्थ में पालन करना चाहिये।
  • निजता के अधिकार का हनन: 
    • निजता का अधिकार, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक बुनियादी अधिकार है, अनुचित तलाशी और ज़ब्ती के साथ-साथ गोपनीय रूप से व्यक्तिगत जानकारी से सुरक्षा प्रदान करता है।
    • हालाँकि आयकर की जाँच व्यक्तियों की सहमति के बिना उनकी गोपनीयता में हस्तक्षेप करती हैं, जो प्रायः अस्पष्ट आधारों पर आधारित होती हैं, जिससे संभावित दुरुपयोग होता है।
    • इसके अतिरिक्त, दुरुपयोग को रोकने और I-T जाँचों के अधीन व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिये पर्याप्त सुरक्षा उपायों तथा निरीक्षण तंत्र की कमी है।
    • कड़े सुरक्षा उपायों के अभाव के कारण  व्यक्तियों को कर अधिकारियों द्वारा शक्ति के संभावित दुरुपयोग के लिये उजागर किया जाता है।
  • जाँच की अवधि और शर्तें:
    • गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा उस छापेमारी पर सवाल उठाना जहाँ व्यक्तियों को कथित तौर पर उचित सुरक्षा उपायों के बिना कई दिनों तक आभासी हिरासत में रखा गया था, ऐसी खोजों की अवधि और शर्तों से संबद्ध चिंताओं को उजागर करता है।

आगे की राह 

  • धारा 132 के आवेदन की समीक्षा करने, वेंज़बरी सिद्धांत से हटकर कार्यकारी कार्यों की आनुपातिकता का आकलन करने के लिये अधिक कठोर जाँच मानक अपनाने में न्यायपालिका की भूमिका बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • शिकायतों की जाँच करने, जवाबदेही सुनिश्चित करने और शक्तियों के संभावित दुरुपयोग के मामलों में सुधारात्मक उपायों की सिफारिश करने के अधिकार के साथ एक स्वतंत्र निरीक्षण तंत्र या लोकपाल स्थापित करने की आवश्यकता है।
  • IT  जाँच भी जाँचों की अवधि और सीमा के संदर्भ में सीमित होनी चाहिये।

हिट-एंड-रन कानून से संबंधित चिंताएं

चर्चा में क्यों?

महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल तथा पंजाब जैसे राज्यों में ट्रांसपोर्टरों तथा वाणिज्यिक ड्राइवरों के हालिया विरोध प्रदर्शन ने भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की विवादास्पद धारा 106 (2) पर प्रकाश डाला है।

  • यह धारा जो हिट-एंड-रन की घटनाओं के लिये गंभीर दंड का प्रावधान करती है, वाहनचालकों के बीच असंतोष का केंद्र बिंदु बन गई है।
  • सरकार द्वारा यह आश्वासन दिया गया कि वह हिट-एंड-रन के विरुद्ध विवादास्पद कानून क्रियान्वित करने से पूर्व हितधारकों से परामर्श करेगी जिससे पूरे देश के ट्रक ड्राइवरों ने हड़ताल समाप्त कर दी है।

हिट-एंड-रन कानून क्या है?

  • उपबंध:
    • हिट-एंड-रन उपबंध भारतीय न्याय संहिता (BNS) का हिस्सा है जिसका उद्देश्य औपनिवेशिक युग के भारतीय दंड संहिता, 1860 को प्रतिस्थापित करना है।
    • BNS, 2023 की धारा 106 (2) में दुर्घटना स्थल से भागने तथा किसी पुलिस अधिकारी अथवा मजिस्ट्रेट को घटना की रिपोर्ट करने में विफल रहने पर 10 वर्ष तक की कारावास तथा ज़ुर्माने का प्रावधान है।
    • हालाँकि यदि ड्राइवर दुर्घटना के तुरंत बाद घटना की रिपोर्ट करता है तो उन पर धारा 106(2) के स्थान पर धारा 106(1) के तहत आरोप सिद्ध किया जाएगा। धारा 106(1) में गैर-इरादतन हत्या की श्रेणी में नहीं आने वाली मौत (लापरवाही के कारण होने वाली मौत) के लिये पाँच वर्ष तक की सज़ा का प्रावधान है ।
  • आवश्यकता:
    • यह नया कानून भारत में सड़क दुर्घटनाओं से संबंधित चिंताजनक आँकड़ों की पृष्ठभूमि में प्रस्तुत किया है।
    • वर्ष 2022 में भारत में 1.68 लाख से अधिक सड़क दुर्घटना मौतें दर्ज की गईं अर्थात् प्रतिदिन औसतन 462 मौतें हुई।
    • भारत में सड़क दुर्घटनाओं में 12% की वृद्धि तथा मृत्यु दर में 9.4% की वृद्धि देखी गई जबकि वैश्विक सड़क दुर्घटना में होने वाली मौतों में 5% की कमी आई।
    • भारत में सड़क दुर्घटनाओं के कारण प्रति घंटे औसतन 19 मौतें होती हैं जिसके अनुसार लगभग प्रत्येक साढ़े तीन मिनट में एक मौत होती है।
    • आधे से अधिक सड़क पर मौतें राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों पर हुईं, जो कुल सड़क नेटवर्क का 5% से भी कम है।
    • भारत, दुनिया के केवल 1% वाहनों के साथ, दुर्घटना-संबंधी मौतों में लगभग 10% का योगदान देता है और सड़क दुर्घटनाओं के कारण अपने सकल घरेलू उत्पाद का 5-7% वार्षिक आर्थिक नुकसान झेलता है।
  • विधि के अंतर्निहित सिद्धांत:
    • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने वर्ष 2022 में 47,806 हिट एंड रन की घटनाएँ दर्ज कीं, जिसके परिणामस्वरूप 50,815 लोगों की मौत हो गई।
    • पुलिस या मज़िस्ट्रेट को सड़क दुर्घटनाओं की रिपोर्ट करना अपराधियों का कानूनी कर्त्तव्य है और इस कर्त्तव्य की चूक को आपराधिक बनाने के प्रावधान हैं।
    • हिट-एंड-रन कानून की धारा 106 (2) का अंतर्निहित तेज़ गति और लापरवाही से गाड़ी चलाने को रोकना तथा उन लोगों को दंडित करना है जो पीड़ितों की सूचना दिये बिना या उनकी मदद किये बिना घटनास्थल से भाग जाते हैं।
    • यह कानून अपराधी पर पीड़ित के प्रति नैतिक ज़िम्मेदारी लागू करने की विधायी मंशा को दर्शाता है।
    • मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 134 जैसे मौजूदा कानूनों के साथ समानताएँ दर्शाते हुए, दुर्घटनाओं के बाद ड्राइवरों से त्वरित और ज़िम्मेदार प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिये सरकार की प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला गया है।
    • मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 134 के तहत वाहन के चालक को घायल व्यक्ति के लिये चिकित्सा देखभाल सुनिश्चित करने के लिये सभी उचित कदम उठाने की आवश्यकता होती है, जब तक कि भीड़ के गुस्से या उसके नियंत्रण से परे किसी अन्य कारण से यह संभव न हो।

प्रदर्शनकारियों की चिंताएँ क्या हैं?

  • BNS, 2023 की धारा 106 (2):
    • ट्रांसपोर्टर और वाणिज्यिक चालक BNS, 2023 की धारा 106 (2) को वापस लेने या संशोधन की मांग कर रहे हैं।
    • प्रदर्शनकारियों का तर्क है कि 10 साल की कैद और 7 लाख रुपए ज़ुर्माने सहित निर्धारित दोनों दंड अत्यधिक गंभीर हैं।
    • व्यापक रूप से प्रसारित यह विचार कि BNS की धारा 106 (2) दुर्घटना स्थल से भागने और पुलिस अधिकारी/मजिस्ट्रेट को घटना की रिपोर्ट करने में विफल रहने पर 10 साल तक की कैद तथा 7 लाख रुपए के ज़ुर्माने का प्रावधान करती है, पूरी तरह से गलत है।
    • हालाँकि इस धारा में अधिकतम 10 साल की सज़ा और ज़ुर्माने की चर्चा है, लेकिन BNS में 7 लाख रुपए के ज़ुर्माने के बारे में कोई वास्तविक उल्लेख नहीं है।
  • चुनौतीपूर्ण स्थितियाँ:
    • उनका तर्क है कि ज़ुर्माना अत्यधिक है और ड्राइवरों की चुनौतीपूर्ण कार्य स्थितियों, जैसे लंबे समय तक ड्राइविंग तथा कठिन सड़कों पर विचार करने में विफल रहता है।
    • ट्रांसपोर्टरों का यह भी तर्क है कि दुर्घटनाएँ ड्राइवर के नियंत्रण से परे कारकों के कारण हो सकती हैं, जैसे– कोहरे के कारण खराब दृश्यता और दुर्घटना स्थलों पर सहायता के लिये रुकने पर ड्राइवरों के खिलाफ भीड़ की हिंसा का डर।
    • दुर्घटनाओं के बाद हिंसा का डर ड्राइवरों के लिये निर्णय लेने की प्रक्रिया को और जटिल बना देता है।
  • अनुचित दोष माना गया:
    • ड्राइवरों का तर्क है कि वास्तविक परिस्थितियों के बावजूद, दुर्घटनाओं के लिये अक्सर उन्हें गलत तरीके से दोषी ठहराया जाता है।
    • कानून का दंडात्मक दृष्टिकोण अनुचित धारणा को बढ़ा सकता है और परिवहन उद्योग पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
  • अधिकारियों द्वारा संभावित दुरुपयोग:
    • उन्हें चिंता है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा कानून का दुरुपयोग किया जा सकता है और कठोर दंड से समग्र रूप से परिवहन उद्योग को नुकसान हो सकता है।
  • अनुचित व्यवहार और सीमित वर्गीकरण:
    • वर्तमान कानून ट्रक चालकों और व्यक्तिगत वाहन चालकों पर लगाए गए दंड की निष्पक्षता के बारे में चिंता पैदा करता है।
    • उदाहरण के लिये जल्दबाज़ी या लापरवाही से काम करने की स्थिति में डॉक्टरों के लिये BNS की धारा 106 (1) के तहत एक अपवाद बनाया गया है, जहाँ ज़ुर्माने के साथ दो वर्ष तक की सज़ा होगी।
    • यह सीमित वर्गीकरण समस्याग्रस्त है और समानता के सिद्धांतों के विरुद्ध है, क्योंकि अन्य क्षेत्रों में काम करने वाले विभिन्न प्रकार के लोगों के दायित्व को भी नियंत्रित करने की आवश्यकता है।
  • विभेदीकरण का अभाव:
    • धारा 106(2) में तेज़ गति और लापरवाही से गाड़ी चलाने के बीच अंतर का अभाव है, जो दायित्व के विभिन्न स्तरों के साथ दो अलग-अलग प्रकार के अपराध हैं।
    • उनका यह भी तर्क है कि इस अनुभाग में लापरवाह कृत्यों में योगदान देने वाले कारकों पर विचार नहीं किया गया है, जैसे कि यात्रियों का व्यवहार, सड़क की स्थिति, सड़क पर रोशनी की व्यवस्था और अन्य समान कारक, जो चालक की ज़िम्मेदारी को प्रभावित कर सकते हैं।
    • सभी स्थितियों में एक खंड लागू करने से विभिन्न परिस्थितियों में ड्राइवरों पर अनुचित पूर्वाग्रह हो सकता है।

आगे की राह

  • चिंताओं को दूर करने और विविध दृष्टिकोण जुटाने के लिये हितधारकों, विशेष रूप से ड्राइवरों व परिवहन संघों के साथ व्यापक परामर्श शुरू किया जाना चाहिये।
  • आपातकालीन अनुक्रिया के लिये एक स्पष्ट और मानकीकृत प्रोटोकॉल स्थापित की जानी चाहिये, जिसमें संभावित हिंसा के लिये ड्राइवरों को उजागर किये बिना शीघ्र रिपोर्टिंग के महत्त्व पर ज़ोर दिया जाए।
  • BNS की धारा 106 (2) के तहत मौजूदा हिट-एंड-रन कानून दुर्घटनाओं के विभिन्न प्रकारों और परिणामों के बीच अंतर/विभेद नहीं करता है।
  • कानून को देनदारियों के आधार पर विभिन्न पैमानों में वर्गीकृत किया जाना चाहिये, जैसे– मृत्यु, गंभीर चोट, साधारण चोट या छोटी चोटें तथा इसके लिये दंड अपराध के अनुरूप होनी चाहिये।
  • कानून को रिपोर्टिंग प्रक्रिया और ड्राइवरों के लिये अपनी बेगुनाही या अपराध को कम करने वाले कारकों को साबित करने के लिये आवश्यक सबूतों को भी स्पष्ट करना चाहिये।
  • सड़क दुर्घटनाओं में मामूली चोट आने को आपराधिक कृत्यों के बराबर नहीं माना जाना चाहिये बल्कि सामुदायिक सेवा, ड्राइविंग लाइसेंस रद्द करना या अनिवार्य ड्राइविंग दोबारा परीक्षण जैसे वैकल्पिक उपाय लागू करने चाहिये।
  • दुर्घटनाओं को कम करने और हिट-एंड-रन घटनाओं की संभावना को कम करने के लिये बेहतर सड़क बुनियादी ढाँचे, दृश्यता उपायों तथा सुरक्षा सुविधाओं में निवेश किया जाना चाहिये।
  • प्रभावी हिट-एंड-रन कानून के साथ अन्य देशों के सफल मॉडल और सर्वोत्तम प्रथाओं का अध्ययन कर उन्हें भारतीय संदर्भ में अपनाने की आवश्यकता है।
The document Politics and Governance (राजनीति और शासन): January 2024 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
184 videos|557 docs|199 tests

Top Courses for UPSC

FAQs on Politics and Governance (राजनीति और शासन): January 2024 UPSC Current Affairs - भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

1. क्या प्रधानमंत्री अनुसूचित जाति अभ्युदय योजना क्या है?
उत्तर: प्रधानमंत्री अनुसूचित जाति अभ्युदय योजना एक सरकारी योजना है जो अनुसूचित जातियों के लिए विकास की दिशा में सहायता प्रदान करती है।
2. बिलकिस बानो मामला क्या है और इसका परिहार क्या है?
उत्तर: बिलकिस बानो मामला एक मामला था जिसमें एक महिला को गैंगरेप का शिकार बनाकर पीड़ित किया गया था। इस मामले का परिहार समाज में विवाद पैदा करता गया।
3. सर्वोच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति क्या है?
उत्तर: सर्वोच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति एक संगठन है जो सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्तियों और उनकी सेवानिवृत्ति के लिए जिम्मेदार है।
4. वर्ष 2024 में OTT का दृश्य क्या है?
उत्तर: वर्ष 2024 में OTT का दृश्य का मतलब है कि ऑनलाइन स्ट्रीमिंग सेवाओं का पूर्वानुमान कि उनका देखने वालों की संख्या में कितनी वृद्धि होगी।
5. आय-कर अधिनियम, 1961 की धारा 132 क्या है?
उत्तर: आय-कर अधिनियम, 1961 की धारा 132 विधि के तहत आयकर अधिकारी को निर्देश देने की अधिकारिक प्रक्रिया को संदर्भित करती है।
184 videos|557 docs|199 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

practice quizzes

,

Objective type Questions

,

Semester Notes

,

Free

,

study material

,

MCQs

,

Important questions

,

Previous Year Questions with Solutions

,

Exam

,

shortcuts and tricks

,

mock tests for examination

,

Extra Questions

,

Viva Questions

,

Politics and Governance (राजनीति और शासन): January 2024 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

,

ppt

,

video lectures

,

Politics and Governance (राजनीति और शासन): January 2024 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

,

Sample Paper

,

past year papers

,

Summary

,

Politics and Governance (राजनीति और शासन): January 2024 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

,

pdf

;