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The Hindi Editorial Analysis - 10 August 2022 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

नील-हरित अवसंरचना

  • शहरीकरण (Urbanisation) विकास से गहन रूप से संबद्ध है और प्रायः आर्थिक विकास के एक प्रमुख चालक के रूप में कार्य करता है। 
  • भारत ग्रामीण समाज से शहरी समाज में संक्रमण के कगार पर है, इसलिये यह महत्वपूर्ण है कि आर्थिक और सामाजिक अवसंरचना अच्छी स्थिति में हो।
  • शहर सजीवों की तरह हैं। हमारे शहर देश के मात्र 3% भूमि पर स्थित हैं, लेकिन सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में उनका योगदान लगभग 65% है।
  • शहरों का जलवायु परिवर्तन में भी अहम योगदान है। शहरीकरण प्रक्रियाओं को प्रभावी रूप से व्यवस्थित, विनियमित और उनकी निगरानी कर सकने की असमर्थता इस वृहत पर्यावरणीय क्षति के लिये उत्तरदायी है।

‘ब्लू-ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर’

  • नील-हरित अवसंरचना एक ऐसे नेटवर्क को संदर्भित करती है जो लोगों को प्रकृति से जोड़ने के लिये अवसंरचना, पारिस्थितिक पुनर्बहाली और शहरी अभिकल्पना के संयोजन के माध्यम से शहर एवं जलवायु संबंधी चुनौतियों को हल करने के लिये ‘सामग्री’ (Ingredients) प्रदान करती है।
  • ‘नील-हरित’ में नील, नदी और तालाबों जैसे जल निकायों को इंगित करता है जबकि हरित, वृक्षों, उद्यानों और बागों को इंगित करता है।

नील-हरित अवसंरचना के लाभ

  • पर्यावरणीय लाभ: 
    • परिवहन, जल और आवास जैसे क्षेत्रों में बील-हरित अवसंरचना का उपयोग पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य में सुधार ला सकता है और इस प्रकार मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के सुधार में योगदान कर सकता है।
    • शहर में हरित अवसंरचना को शामिल करने से न केवल मनुष्यों को बल्कि प्रकृति को भी लाभ प्राप्त होगा।
  • सामाजिक लाभ: 
    • भूदृश्य की अभिकल्पना और सुंदरता शहर के चरित्र की पहचान में योगदान कर सकती है। हरित सड़कें और भूदृश्य सौंदर्य और नैतिक गुणों को बढ़ाते हैं
    • नील-हरित अवसंरचना सार्वजनिक स्थलों पर छाया/आश्रय प्रदान कर सकती है और शहरी तापमान को कम कर सकती है। यह बाह्य गतिविधियों को बढ़ा सकती है जो अधिकाधिक सामाजिक सम्मिलनों को प्रोत्साहित करेगी।
  • आर्थिक लाभ: 
    • शहर में नील-हरित परियोजनाओं का कार्यान्वयन नागरिकों को आर्थिक रूप से भी लाभ पहुँचा सकता है। भवन की सतहों पर कम तापमान के कारण शीतलन की मांग में कमी होगी, जिसके परिणामस्वरूप ऊर्जा की मांग घटेगी।
    • इससे भवनों की जीवन प्रत्याशा बढ़ेगी क्योंकि हरित अवसंरचना इसे उच्च तापमान से बचाएगी और रखरखाव लागत को कम करने में मदद करेगी।

कार्यान्वयन से संबद्ध चुनौतियाँ

  • शहरी क्षेत्रों की मान्यता: 
    • भारत की जनगणना (वर्ष 2011) के तहत जनसंख्या आकलन के लिये लगभग 8000 कस्बों को शहरी (Urban) के रूप में गिना जाता है, हालाँकि उनमें से आधे, जिन्हें ‘जनगणना शहर’ (Census Towns) के रूप में जाना जाता है, अभी भी प्रशासनिक रूप से ‘ग्रामीण’ ही हैं।
    • ‘शहरी’ दर्जे की कमी इन बसावटों (जो शहरी विशेषताएँ प्राप्त कर चुकी हैं) के लिये योजना और प्रबंधन के संदर्भ में एक संस्थागत चुनौती है।
    • शहरों के लिये सक्रिय ‘मास्टर प्लान’ का अभाव: वर्तमान परिदृश्य में लगभग 52% सांविधिक शहरों (Statutory towns) और 76% जनगणना शहरों (Census towns) के पास उनके स्थानिक विकास और अवसंरचनात्मक निवेश को निर्देशित करने के लिये कोई ‘मास्टर प्लान’ नहीं है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र में पर्याप्त और तकनीकी रूप से योग्य योजनाकारों की कमी: 
    • यह चिंताजनक है कि भारत में प्रति शहरी केंद्र एक योजनाकार की उपस्थिति का भी अभाव है।
    • नीति आयोग के अनुसार, देश में नगर योजनाकारों के लिये 12000 से अधिक पदों की आवश्यकता है।

वैश्विक स्तर पर नील-हरित परियोजनाओं की वर्तमान स्थिति

  • ‘एक्टिव, ब्यूटीफुल, क्लीन वाटर प्रोग्राम’ - सिंगापुर
  • ‘ग्रे टू ग्रीन इनिशिएटिव’ - पोर्टलैंड, ओरेगन, संयुक्त राज्य अमेरिका
  • ‘रेन सिटी स्ट्रैटेजी’ - कनाडा
  • ‘स्पंज सिटी प्रोग्राम’ - चीन

आगे की राह

  • प्रकृति-आधारित समाधानों की ओर: 
    • अवसंरचना नियोजन को पारिस्थितिक दृष्टिकोण के प्रति अधिक संवेदनशील होने की ज़रूरत है जहाँ जलवायु एवं संवहनीयता संबंधी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये प्रकृति-आधारित समाधान विकसित किये जाएँ और अपनाए जाएँ। नील-हरित अवसंरचना इस दिशा में सहायक सिद्ध हो सकता है।
    • ‘स्मार्ट सिटीज़ मिशन’ और ‘अटल मिशन फॉर रिजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन’ (AMRUT/अमृत) इस दिशा में बढ़ाये गए सराहनीय कदम हैं।
  • नील-हरित शहरी अवसंरचना को संस्थागत बनाना: 
    • राष्ट्रीय दृष्टिकोण को परिभाषित करने और ऐसी परियोजनाओं के लिये मार्गदर्शक सिद्धांतों को निर्धारित करने के लिये एक व्यापक ढाँचा स्थापित किया जाना चाहिये।
    • उदाहरण के लिये, नई जल प्रणालियों को डिज़ाइन करने के संदर्भ में अनिश्चितताओं से निपटने के दिशा-निर्देश स्थानीय स्तर पर त्वरित निर्णय लेने में सहायता कर सकते हैं।
  • ऊर्ध्वगामी दृष्टिकोण: 
    • कई भारतीय शहर प्राकृतिक विशेषताओं और प्रदूषण संकेतकों के विवरण के साथ वार्षिक पर्यावरणीय स्थिति रिपोर्ट जारी करते हैं।
    • ऐसी गतिविधियों को सभी शहरों के लिये एक वार्षिक ‘ब्लू-ग्रीन ऑडिट’ के साथ एकीकृत किया जा सकता है और सामाजिक चुनौतियों को बेहतर ढंग से समझने तथा यथार्थवादी नीति समाधान विकसित करने के लिये जनसांख्यिकीय डेटा के साथ संयुक्त किया जा सकता है।
    • दिल्ली भारत के पहले शहरों में से एक है जिसने अपने वर्ष 2041 मास्टरप्लान में ब्लू-ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान केंद्रित किया है।
  • बहु हितधारक: 
    • बहुस्तरीय भागीदारी: सरकार, योजनाकारों, नीतिनिर्माताओं और अन्य राजनीतिक प्रतिनिधियों के साथ सक्रिय संवाद और सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने से नील-हरित परियोजनाओं को और अधिक समझा जा सकेगा और योजना निर्माण, सूत्रीकरण, कार्यान्वयन और उनकी निगरानी में नागरिकों के संलग्न होने की संभावना बढ़ेगी।
    • भारत में बेंगलुरू और मदुरै की पहलों में भी व्यापक नागरिक भागीदारी को भी शामिल किया गया है।
  • सतत विकास लक्ष्यों पर त्वरित गति से आगे बढ़ना: 
    • COVID-19 महामारी ने संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) से संबंधित परियोजनाओं के लिये वैश्विक और घरेलू वित्तपोषण क्षमता को प्रभावित किया है ।
    • नील-हरित अवसंरचना में SDGs में उल्लिखित कई लक्ष्यों को पूरा करने की क्षमता है, जैसे कि जल से संबंधित (SDG 6 और SDG 14), भूमि (SDG 15) और जलवायु परिवर्तन (SDG 13)।
    • यह हरित रोजगार परिप्रेक्ष्यों (SDG 1) पर प्रगति को भी तेज़ कर सकता है।
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