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The Hindi Editorial Analysis- 12th September 2023 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

भारत का समावेशी दृष्टिकोण: G20 में अफ्रीकी संघ को समर्थन


संदर्भ:

  • वर्ष 2023 का भारत में संपन्न जी 20 शिखर सम्मेलन; वैश्विक कूटनीति में एक निर्णायक मोड़ लेकर आया, क्योंकि इसमें अफ्रीकी संघ (AU) को जी 20 के पूर्ण सदस्य के रूप में आमंत्रित किया गया था।
  • भारत की अध्यक्षता में आयोजित इस सम्मेलन ने न केवल विकासात्मक एजेंडे को प्राथमिकता देने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मामलों में ग्लोबल साउथ के महत्व को भी रेखांकित किया।

The Hindi Editorial Analysis- 12th September 2023 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC

भारत का मार्गदर्शक दृष्टिकोण

  • G20 की अध्यक्षता के दौरान भारत के नेतृत्व का लक्ष्य G20 समूह के सदस्य देशों को बड़ी शक्तियों की प्रतिद्वंद्विता से बचाना और ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करना था।
  • यूरोपीय संघ (EU) के साथ AU को पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल करने का निर्णय सराहनीय है । यह प्रयास अफ़्रीकी देशों के कम प्रतिनिधित्व को संबोधित करने के लिए किया गया था।

एयू के साथ भारतीय सम्बन्ध:

  • भारत की एयू के साथ सहयोगात्मक बातचीत, ग्लोबल साउथ को G20 एजेंडा में आगे लाने की प्रतिबद्धता से प्रेरित था। इसमें राजनीतिक दबाव के स्थान पर सहयोग पर जोर दिया गया और इसकी विशेषता अफ्रीकी देशों की बात सुनने और उनके साथ मिलकर काम करने की इच्छा थी।
  • यह प्रयास अफ्रीका के साथ भारत के मधुर संबंधों का प्रतीक है, जिसे अक्टूबर 2015 में तीसरे भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन के लिए 40 से अधिक राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों के आने से प्रोत्साहन मिला।
  • यह उल्लेखनीय है कि, अफ़्रीका आउटरीच पहल के तहत, भारत ने मंत्री स्तर पर सभी अफ़्रीकी देशों का दौरा किया है। प्रधानमन्त्री मोदी स्वयं पिछले नौ वर्षों में अफ्रीका के कम से कम 10 देशों का दौरा कर चुके हैं।
  • अफ्रीका तक भारत की पहुंच 2008 में शुरू हुई, यद्यपि चीन ने इस पहल का विरोध किया, क्योंकि उसने पहली बार 2000 में अपनी पहुंच बनाई थी, जब जियांग जेमिन राष्ट्रपति थे।
  • चीन-अफ्रीका सहयोग मंच (FOCAC) के माध्यम से यह प्रक्रिया तब शुरू हुई जब बीजिंग में पहली मंत्रिस्तरीय बैठक आयोजित की गई थी, और तब से अफ्रीकी महाद्वीप में बढ़ते चीनी हितों के प्रदर्शन के रूप में यह एक लंबा सफर तय कर चुकी है।

एयू का महत्व

  • अफ्रीकी संघ को G20 समूह में शामिल करने के इस कदम के साथ, भारत ने खुद को विकासशील और अविकसित देशों के नेता के रूप में पेश किया है। यह यूएनएससी की स्थायी सदस्यता के लिए भारत की आकांक्षा के अनुरूप भी है, जिसके लिए भारत अफ्रीका से समर्थन हासिल करने का इच्छुक है, जिसके पास 55 वोट हैं।
  • भारत के प्रयासों ने अफ्रीका को वैश्विक पटल पर एक पहचान दिलाने की कोशिश की है। यह ग्लोबल साउथ के हितों को आगे बढ़ाने की भारत की बांडुंग सम्मेलन और गुटनिरपेक्ष आंदोलन जैसे ऐतिहासिक प्रतिबद्धता के अनुरूप है ।
  • अफ़्रीकी महाद्वीप की जनसंख्या एक अरब से अधिक है और संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद लगभग 3 ट्रिलियन डॉलर है जो इसे एक विशाल वैश्विक बाजार बनाता है।
  • अफ्रीका एक संसाधन-संपन्न देश है, जहां कच्चे तेल, गैस, दालें, चमड़ा, सोना और अन्य धातुओं जैसी वस्तुओं का प्रभुत्व है, जिसकी भारत में पर्याप्त मात्रा में कमी है।
  • नामीबिया और नाइजर यूरेनियम के शीर्ष दस वैश्विक उत्पादकों में से हैं।
  • दक्षिण अफ़्रीका प्लैटिनम और क्रोमियम का विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • भारत मध्य पूर्व देशों से अपनी तेल आपूर्ति में विविधता लाने की कोशिश कर रहा है और अफ्रीका, भारत के इस ऊर्जा मैट्रिक्स में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

विभाजित विश्व में आम सहमति बनाना

  • यूक्रेन संकट, बहुपक्षीय विकास बैंक सुधार और जलवायु वित्त प्रतिबद्धताओं सहित विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों पर राष्ट्रों के बीच गहरे मतभेदों को देखते हुए, जी 20 में एयू को शामिल करना एक कठिन चुनौती थी।
  • यद्यपि इस कार्य ने बांडुंग सम्मेलन और गुटनिरपेक्ष आंदोलन जैसी पिछली पहलों के क्षेत्रीय फोकस से वास्तविक वैश्विक परिप्रेक्ष्य में बदलाव को चिह्नित किया।
  • भारत के नेतृत्व ने इन विभाजनों को समाप्त करने और वैश्विक दक्षिण देशों की चिंताओं को दूर करने के महत्व पर जोर देने की कोशिश की।

एयू के प्रयास और भारत की प्रतिक्रिया

  • एयू ने औपचारिक रूप से 2022 में G20 में स्थायी सदस्यता पाने के लिए भारत से संपर्क किया था। फरवरी 2023 में एयू शिखर सम्मेलन के दौरान इस लक्ष्य को आगे बढ़ाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया था।
  • बाली में जी 20 शिखर सम्मेलन में भारत ने अफ़्रीकी आकांक्षा का भरपूर समर्थन करके एक साहसिक कदम उठाया। यह प्रयास अफ्रीकी एकता संगठन की 60वीं वर्षगांठ के दौरान किया गया था, जो अफ्रीकी प्रतिनिधित्व के लिए भारत के निरंतर समर्थन को उजागर करता है।

चुनौतियाँ:

  • कई G20 देशों ने व्यक्तिगत रूप से AU के लिए समर्थन व्यक्त किया था, अब उनके शब्दों को कार्यरूप में बदलना शेष रह गया है। कुछ राष्ट्र, विशेष रूप से पूर्व के, एयू के साथ नहीं थे, जिसके कारण धीमी और अधिक नौकरशाही प्रतिक्रियाएँ हुईं। फिर भी, सहमति बनी और नई दिल्ली शिखर सम्मेलन की शुरुआत में एयू को जी 20 सदस्य के रूप में शामिल किया गया।

अफ़्रीकी भागीदारी का विस्तार

  • एयू के समर्थन में, भारत ने कई अफ्रीकी देशों को भी निमंत्रण दिया था। इस अतिथि देशों में नाइजीरिया, मिस्र, मॉरीशस और कोमोरोस भी शामिल थे।
  • नाइजीरिया को शामिल किए जाने से उसकी अफ्रीका की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और भारत के मजबूत सहयोगी के रूप में पहचान बन गई।
  • मिस्र, वर्तमान AU-NEPAD अध्यक्ष, ने G20 के भीतर अफ्रीकी उपस्थिति में संतुलन बनाया।
  • मॉरीशस, जो अपनी रणनीतिक स्थिति और भारत के साथ घनिष्ठ संबंधों के लिए जाना जाता है, ने अफ्रीकी प्रतिनिधित्व का समर्थन किया।

G20 और वैश्विक कूटनीति पर प्रभाव

  • यह समावेशी दृष्टिकोण; विकासात्मक रूप से जी 20 को नया आकार देने का वादा करता है। यह G7 और चीन से ग्लोबल साउथ के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने का आह्वान करता है।
  • भारत की अध्यक्षता ने विविधता और सहयोग को अपनाने के लिए एक मिसाल कायम की है, जो स्वाहिली शब्द "हरम्बी" में सन्निहित कार्रवाई में विकासात्मक सहयोग की भावना को प्रदर्शित करती है।

निष्कर्ष

  • भारत की G20 की अध्यक्षता ने अफ्रीकी संघ का पूर्ण सदस्य के रूप में स्वागत करके, वैश्विक समावेशिता और विकासात्मक प्राथमिकताओं को बढ़ावा देने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की।
  • यह न केवल अफ्रीका के वैश्विक महत्व को उजागर करता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के लिए एक नया मार्ग भी प्रशस्त करता है। इसमें प्रतिद्वंद्विता पर सहयोग और सत्ता की राजनीति के विकास पर जोर दिया जाता है।
  • इस प्रकार यह सम्मेलन और AU की दावेदारी का भारतीय समर्थन सार्थक सहयोग के युग की शुरुआत करते हुए ग्लोबल साउथ और शेष विश्व के बीच एक संयोजक के रूप में भारत की भूमिका को रेखांकित करता है।
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