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The Hindi Editorial Analysis- 13th December 2023 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

अनुच्छेद 370 पर उच्चतम न्यायालय के निर्णय का विश्लेषण


संदर्भ :

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को दिए अपने निर्णय में 5-0 के बहुमत से अनुच्छेद 370 पर अपना निर्णय सुनाया। इस निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार के द्वारा संविधान के अनुच्छेद 370 को निरसित करने के निर्णय को बरकरार रखा है। इस निर्णय में भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी. वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व में गठित संवैधानिक पीठ ने सरकार के निर्णय के महत्वपूर्ण पहलुओं पर गहन विचार विमर्श किया है।

The Hindi Editorial Analysis- 13th December 2023 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC

जम्मू और कश्मीर की संप्रभुताः

  • केंद्र सरकार के निर्णय के विरुद्ध याचिका कर्ताओं ने यह तर्क दिया था कि जम्मू और कश्मीर रियासत ने भारत में विलय के समय अपनी संप्रभुता को बनाए रखा था यह स्थिति जम्मू तथा कश्मीर रियासत को 1947 में भारत में विलय होने वाली अन्य रियासतों से अलग करता है। इसके प्रति उत्तर में सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1 के आधार पर राज्यों के संवैधानिक संरचना का परीक्षण किया । ध्यातव्य हो कि अनुच्छेद 1 भारत को राज्यों के संघ के रूप में वर्णित करता है। विदित हो कि जम्मू और कश्मीर को 2019 के पहले प्रथम अनुसूची में भाग 3 के राज्य के रूप में सूचीबद्ध किया गया था।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने जम्मू और कश्मीर के संविधान की धारा 3 का उल्लेख करते हुए कहा है कि यह धारा स्पष्ट रूप से राज्य को भारत का अभिन्न अंग घोषित करती है। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा है कि अनुच्छेद 370 (1) संवैधानिक एकीकरण की क्रमिक प्रक्रिया का उदाहरण है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 (3) के तहत राष्ट्रपति की घोषणा इस एकीकरण प्रक्रिया की परिणति है ।
  • हालांकि, न्यायमूर्ति एस. के. कौल का कहना है कि संविधान सभा द्वारा अनुच्छेद 370 को मान्यता देना इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर की आंतरिक संप्रभुता को स्वीकार किया था। हालांकि न्यायमूर्ति कौल ने अंतिम निर्णय में अन्य न्यायाधीशों के साथ सहमति व्यक्त करते हुए कहा है कि जम्मू-कश्मीर की आंतरिक संप्रभुता के आधार पर केंद्र सरकार के धारा 370 को निरस्त करने के निर्णय को अवैध नहीं माना जा सकता है ।

अनुच्छेद 370 की अस्थायी या स्थायी प्रकृतिः

  • सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 के स्थायी होने के संबंध में कई तर्क प्रस्तुत किए गए। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए जम्मू कश्मीर की संविधान सभा की सिफारिश का होना अनिवार्य है, चूंकि यह अस्तित्व में नहीं है इसलिए इसे निरस्त नहीं किया जा सकता है। इसके जबाब में मुख्य न्यायाधीश और जस्टिस कौल ने जोर देते हुए कहा है कि अनुच्छेद 370 संबिधान का एक अस्थायी प्रावधान था।
  • न्यायमूर्ति कौल ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 की अस्थायी प्रकृति के कारण इसे संविधान सभा की सिफारिश के बिना निरस्त किया जा सकता है। उनका कहना है कि इस प्रावधान को शुरुआत में एक अंतरिम उपाय के रूप में स्वीकारा गया था। मुख्य न्यायाधीश ने इस प्रावधान की अस्थायित्वता के पक्ष में दो तर्क दिए- पहला, जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा के गठन तक इसकी स्थिति अंतरिम ही थी और दूसरा, राज्य में उस समय युद्ध की स्थिति सहित विशेष परिस्थितियों के कारण इसे अपनाना गया था।

अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की वैधानिकताः

  • अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए राष्ट्रपति ने दो संवैधानिक आदेश जारी किये थे –पहला संवैधानिक आदेश 272 और दूसरा 273 । संवैधानिक आदेश 272 के माध्यम से अनुच्छेद 367 में संशोधन किया गया, जिसमें "जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा" को "जम्मू और कश्मीर की विधान सभा" के रूप में पुनर्परिभाषित किया गया। जबकि संवैधानिक आदेश 273 के माध्यम से राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 370 के सभी खंडों को समाप्त करने की सिफारिश करने के लिए संसद की सहमति मांगी।
  • हालांकि राष्ट्रपति के उपर्युक्त आदेशों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट की पीठ के न्यायाधीशों के मत भिन्न-भिन्न रहे। जहां एक तरफ न्यायमूर्ति कौल ने इस प्रक्रिया का समर्थन किया, वहीं दूसरी तरफ मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा का अर्थ बदलना अनावश्यक था। सीजेआई का कहना है कि एक बार संविधान सभा का अस्तित्व समाप्त हो जाने के बाद, राष्ट्रपति अनुच्छेद 370(3) के तहत अनुच्छेद 370 को एकतरफा रूप से निरस्त कर सकते हैं।

राष्ट्रपति शासन के तहत की गई कार्रवाईः

  • अनुच्छेद 370 को राष्ट्रपति शासन के समय निरस्त किया गया था। इस संदर्भ में याचिकाकर्ताओं ने राष्ट्रपति शासन के तहत संघ की कार्रवाइयों को चुनौती देते हुए कहा कि राज्य की सहमति के बिना यह कार्रवाई की गई थी। इसके जबाब में अदालत ने 1994 के बोम्मई फैसले का उल्लेख किया, जिसने राष्ट्रपति शासन की घोषणा के लिए मापदंड स्थापित किए गए थे। मुख्य न्यायाधीश और न्यायमूर्ति कौल दोनों ने इस बात पर जोर दिया कि राष्ट्रपति की कार्रवाई की वैधता का आकलन इस आधार पर किया जाना चाहिए कि क्या कार्रवाई दुर्भावनापूर्ण या स्पष्ट रूप से तर्कहीन है या नहीं ?

निष्कर्ष:

इस निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने संवैधानिक जटिलताओं की एक व्यापक और सूक्ष्म समझ प्रदान की है।यह सर्वसम्मत निर्णय संविधान को जम्मू और कश्मीर पर लागू करने के निर्णय की संवैधानिक वैधता की पुष्टि करता है।
जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता, अनुच्छेद 370 की अस्थायी प्रकृति, इसे निरस्त करने की वैधता और राष्ट्रपति शासन के तहत की गई कार्रवाई की सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई जांच संवैधानिक सिद्धांतों के संतुलन को प्रदर्शित करती है। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ के नेतृत्व में दिया गया निर्णय एकीकरण की क्रमिक प्रक्रिया और अनुच्छेद 370 की अस्थायी प्रकृति को रेखांकित करता है। जबकि न्यायमूर्ति कौल के दिए गए तर्क भारत में जम्मू-कश्मीर के विलय की अनूठी परिस्थितियों को स्वीकार करते है।
यह निर्णय न केवल लंबे समय से चले आ रहे कानूनी विवाद का निस्तारण करता है, बल्कि संघ और राज्यों के बीच संबंधों के संवैधानिक न्यायशास्त्र में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है।

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