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The Hindi Editorial Analysis- 13th January 2024 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा कर प्रभाव

यूरोपीय संघ (EU) द्वारा एक कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (Carbon Border Adjustment Mechanism- CBAM) लागू करने की मंशा (जो 1 जनवरी 2026 से शुरू होगी) ने भारतीय निर्यात के लिये लागत में वृद्धि के संबंध में चिंताएँ बढ़ा दी हैं। अक्टूबर 2023 से भारतीय निर्यातकों के लिये लगभग प्रत्येक दो माह पर अपनी प्रक्रियाओं पर दस्तावेज़ जमा करना आवश्यक बना दिया गया है।

  • यूरोपीय संघ भारतीय निर्यातकों के आवेदनों की जाँच करने के लिये ‘वेरीफाइर्स’ प्रवर्तित करने की मंशा रखता है। प्रारंभ में यह संवीक्षा विशिष्ट क्षेत्रों को लक्षित करेगी, लेकिन ऐसी आशंकाएँ मौजूद हैं कि सत्यापन प्रक्रिया अंततः यूरोपीय संघ में सभी आयातों को दायरे में ले लेगी।

यूरोपीय संघ का CBAM क्या है?

  • परिचय:
    • CBAM यूरोपीय संघ के ‘फिट फॉर 55 इन 2030 पैकेज’ का एक प्रमुख अवयव है, जिसे वर्ष 1990 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में 55% की कमी लाने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • यह नीति यूरोपीय संघ में आयातित विशिष्ट वस्तुओं के उत्पादन से जुड़े कार्बन उत्सर्जन पर उचित मूल्य अधिरोपित करेगी।
  • CBAM के पर्यावरणीय उद्देश्य:
    • CBAM यूरोपीय संघ के बाहर स्वच्छ औद्योगिक उत्पादन को बढ़ावा देने की इच्छा रखता है ताकि कार्बन लीकेज को हतोत्साहित किया जा सके। प्रायः यह प्रवृत्ति देखी गई है कि कार्बन-गहन गतिविधियाँ कमज़ोर पर्यावरणीय मानकों वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित हो जाती हैं।
    • यूरोपीय संघ का लक्ष्य कार्बन मूल्य निर्धारण को आयात पर भी लागू कर कठोर जलवायु नीतियों के वैश्विक अनुपालन को बढ़ावा देना और अपनी सीमाओं से परे उत्पादन प्रक्रियाओं के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना है। 
  • CBAM और ‘यूरोपियन ग्रीन डील’:
    • CBAM यूरोपियन ग्रीन डील (European Green Deal) का एक घटक है, जिसे गैर-ईयू देशों के कार्बन-गहन उद्योगों पर आयात शुल्क लगाकर कार्बन लीकेज को रोकने और प्रतिस्पर्द्धात्मकता बनाए रखने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  • कवरेज और लक्षित क्षेत्र:
    • CBAM विशेष रूप से सीमेंट, लोहा एवं इस्पात, एल्यूमीनियम, उर्वरक, बिजली और हाइड्रोजन के आयात को लक्षित करेगा।
    • इन वस्तुओं को कार्बन मूल्य निर्धारण उपायों का सामना करना पड़ेगा यदि उनके मूल देशों में यूरोपीय संघ की तुलना में कम कठोर जलवायु नीतियाँ क्रियान्वित हैं।
    • आयातकों को अपने उत्पादों से संबद्ध कार्बन उत्सर्जन के अनुरूप कार्बन प्रमाणपत्र खरीदने की आवश्यकता होगी।
  • बाज़ार तंत्र और कार्बन प्रमाणपत्र:
    • CBAM के तहत कार्बन प्रमाणपत्रों (Carbon Certificates) का मूल्य निर्धारण यूरोपीय संघ उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (Emissions Trading System- ETS) की दरों के अनुरूप होगा।
    • यह बाज़ार-आधारित प्रणाली यूरोपीय संघ के भीतर औद्योगिक उत्सर्जन को नियंत्रित करती है।
    • आयातकों को कार्बन लागत को प्रतिबिंबित करने वाली कीमतों पर ये प्रमाणपत्र प्राप्त करने की आवश्यकता होगी, जो वैश्विक स्तर पर स्वच्छ उत्पादन अभ्यासों को प्रोत्साहित करेगा।

CBAM के कार्यान्वयन से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं?

  • यूरोपीय संघ के प्रस्ताव पर BASIC देशों का विरोध:
    • BASIC देशों (ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन) ने यूरोपीय संघ के प्रस्ताव का संयुक्त रूप से विरोध किया है तथा इसे ‘भेदभावपूर्ण’ और समानता के सिद्धांतों एवं ‘समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्वों और संबंधित क्षमताओं’ (Common but Differentiated Responsibilities and Respective Capabilities- CBDR-RC) के विपरीत बताया है।
  • वैश्विक सहमति का अभाव:
    • रियो घोषणा (Rio Declaration) के अनुच्छेद 12 में उल्लिखित वैश्विक सर्वसम्मति के आलोक में यूरोपीय संघ के ऐसे सार्वभौमिक वैश्विक पर्यावरण मानक की इच्छा को आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।
    • यह अनुच्छेद इस बात पर बल देता है कि विकसित देशों पर लागू मानकों को विकासशील देशों पर नहीं थोपा जाना चाहिये।
  • ग्रीनहाउस गैस इन्वेंटरी से जुड़े मुद्दे:
    • इसके अतिरिक्त, आयात करने वाले देशों की सूची में आयात की ग्रीनहाउस सामग्री को समायोजित करने की नीति की आवश्यकता ग्रीनहाउस गैस लेखांकन के पारंपरिक दृष्टिकोण को चुनौती देती है।
  • संरक्षणवाद का एक प्रच्छन्न रूप:
    • यूरोपीय संघ की कार्बन सीमा कर नीति (carbon border tax policy) संभावित संरक्षणवाद (Protectionism) के बारे में चिंता पैदा करती है।
      • संरक्षणवाद में वे सरकारी नीतियाँ शामिल होती हैं जो घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रतिबंधित करती हैं।
    • इस टैक्स को संरक्षणवाद के एक प्रच्छन्न रूप की तरह देखा जा सकता है, जो ‘हरित संरक्षणवाद’ (green protectionism) के जोखिम पैदा करता है, जहाँ पर्यावरणीय दृष्टिकोण की आड़ में स्थानीय उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्द्धा से अनुचित रूप से बचाया जाता है।

CBAM के कारण भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

  • भारत-यूरोपीय संघ व्यापार संबंधों में विद्यमान मुद्दे:
    • CBAM से प्रतिकूल रूप से प्रभावित शीर्ष आठ देशों में से एक होने के कारण भारत को संभावित चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि यह अपने 8.2 बिलियन डॉलर मूल्य के लौह, इस्पात एवं एल्यूमीनियम उत्पादों का 27% यूरोपीय संघ को निर्यात करता है तथा इस्पात जैसे प्रमुख क्षेत्र इससे व्यापक रूप से प्रभावित हो सकते हैं।
    • कर के कारण यूरोपीय संघ में भारतीय निर्मित वस्तुओं की कीमतें बढ़ने से खरीदारों के बीच उनकी अपील कम होने का खतरा है, जिससे संभावित रूप से मांग में गिरावट आ सकती है।
    • यह स्थिति वृहत ग्रीनहाउस गैस फुटप्रिंट रखने वाली कंपनियों के लिये निकट अवधि में उल्लेखनीय चुनौतियाँ पैदा कर सकती है।
  • विनिर्माण पर CBAM का प्रभाव:
    • भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने CBAM की इसकी ख़राब परिकल्पना के लिये आलोचना की है, जहाँ यह भारत के विनिर्माण क्षेत्र पर हानिकारक प्रभाव उत्पन्न कर सकता है और इसके लिये ‘मौत की घंटी’ के रूप में कार्य कर सकता है।
  • भारत का कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग सिस्टम (CCTS):
    • भारत ने वर्ष 2022 में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम में संशोधन करते हुए ‘कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग सिस्टम’ (CCTS) के रूप में अपना स्वयं का कार्बन व्यापार तंत्र पेश किया है।
    • ऊर्जा मंत्रालय भारत में CCTS के परिचालन के लिये विशिष्टत आवश्यकताओं पर कार्य कर रहा है, जिसे ‘ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम रूल्स’ द्वारा पूरकता प्रदान की जा रही है; इस प्रकार कार्बन कटौती से आगे पर्यावरणीय रूप से सक्रिय कार्रवाइयों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
      • CCTS उत्सर्जन में कटौती को प्रोत्साहित करने और स्वच्छ ऊर्जा निवेश को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखता है।
  • CBAM का सामना करने के लिये भारत के सीमित विकल्प:
    • CBAM से निपटने के लिये भारत के पास सीमित रणनीतियाँ हैं, जिसमें इसे पेरिस समझौते के समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्वों के सिद्धांत का उल्लंघन बताकर चुनौती देना भी शामिल है।
      • भारत हरित प्रौद्योगिकियों में निवेश के लिये एकत्रित धन वापस करने के लिये यूरोपीय संघ से समझौता वार्ता भी कर सकता है।
  • भारत के लिये कार्बन कराधान उपाय तैयार करना अनिवार्य:
    • यूनाइटेड किंगडम द्वारा वर्ष 2027 तक अपना स्वयं का CBAM लागू करने के साथ, भारत को पेरिस समझौते के सिद्धांतों के अनुरूप अपने स्वयं के कार्बन कराधान उपाय तैयार करने की सख्त आवश्यकता है।
  • FTA मानदंडों के विरुद्ध:
    • CBAM की एक गैर-टैरिफ बाधा के रूप में भी आलोचना की जाती है जो शून्य शुल्क मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को कमज़ोर करता है । भारत यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के कथित ‘हरित’ उत्पादों के लिये शुल्क-मुक्त प्रवेश की अनुमति देते हुए लेवी का भुगतान करता है, जिसे विरोधाभासी स्थिति के रूप में देखा जाता है।

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CBAM का सामना करने के लिये भारत द्वारा कौन-से कदम उठाये जा सकते हैं?

  • CBAM का विरोध:
    • भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर CBAM का प्रबल विरोध करना चाहिये, जहाँ इस बात को उजागर किया जा सकता है कि यह समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्व के महत्त्वपूर्ण सिद्धांत को कमज़ोर करता है।
      • CBAM विकासशील विश्व के औद्योगीकरण की क्षमता पर प्रतिबंध लगाकर अंतर्राष्ट्रीय जलवायु समझौतों में परिकल्पित समानता को चुनौती देता है।
  • निर्यात कर पर विचार:
    • भारत एक रणनीतिक प्रतिक्रिया के रूप में यूरोपीय संघ को अपने निर्यात पर एक सदृश कर अधिरोपित करने पर विचार कर सकता है। हालाँकि इससे उत्पादकों पर तुलनीय कर का बोझ पड़ सकता है, लेकिन इससे उत्पन्न धनराशि पर्यावरण के अनुकूल उत्पादन प्रक्रियाओं में पुनर्निवेश करने का एक अनूठा अवसर प्रदान कर सकती है।
      • यह न केवल वर्तमान करों के प्रभाव को कम कर सकता है बल्कि भविष्य में संभावित कटौती के लिये भारत को अनुकूल स्थिति में भी रख सकता है।
    • हालाँकि, निर्यात कर के संभावित लाभों के बावजूद, यूरोपीय संघ द्वारा इसकी स्वीकृति और घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कानूनी सवाल उठाए बिना इसके कार्यान्वयन की व्यवहार्यता पर अनिश्चितताएँ मौजूद हैं।
      • इस जवाबी प्रतिक्रिया की सफलता इन अनिश्चितताओं से निपटने और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त कर सकने पर निर्भर होगी।
  • बाज़ार विविधीकरण रणनीति:
    • CBAM द्वारा उत्पन्न चुनौतियों का रणनीतिक रूप से जवाब देने के लिये, भारत को सक्रिय रूप से यूरोपीय संघ के बाज़ार पर अपनी निर्भरता कम करनी चाहिये।
      • एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों में नए अवसर तलाशना बाज़ार विविधीकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा।
    • इस दृष्टिकोण का उद्देश्य भारत को CBAM और अन्य गतिशील आर्थिक परिवर्तनों से जुड़ी भेद्यताओं से बचाना है, जो एक अधिक प्रत्यास्थी एवं अनुकूलनीय आर्थिक रुख में योगदान देगा।
  • हरित अवसर का लाभ उठाना:
    • CBAM द्वारा उत्पन्न चुनौतियों के बीच, भारत उत्पादन प्रक्रियाओं को हरित और अधिक संवहनीय बनाने की तैयारी शुरू कर इस प्रतिकूलता को एक अवसर में बदल सकता है।
    • हरित उत्पादन को प्रोत्साहित करना न केवल वैश्विक पर्यावरणीय लक्ष्यों के अनुरूप होगा, बल्कि भारत को भविष्य में प्रतिस्पर्द्धी बने रहने के लिये भी तैयार करेगा, जहाँ कार्बन चेतना (carbon consciousness) एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    • यह अग्रसक्रिय दृष्टिकोण भारत के दीर्घकालिक आर्थिक और पर्यावरणीय संवहनीयता लक्ष्यों में योगदान देगा, जो इसके वर्ष 2070 नेट ज़ीरो लक्ष्यों के अनुरूप होगा।

निष्कर्ष:

ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और कार्बन लीकेज को रोकने के उद्देश्य से यूरोपीय संघ द्वारा CBAM के प्रस्ताव ने भारत को अपने स्वयं के कार्बन व्यापार तंत्र या CCTS पर विचार करने के लिये प्रेरित किया है। दिसंबर 2025 में CBAM के संक्रमणकालीन चरण के समाप्त होने के साथ, भारत को अपने उद्योगों को संभावित प्रतिकूल प्रभावों से बचाने के लिये पेरिस समझौते के सिद्धांतों के अनुरूप अपने कार्बन कराधान उपायों को तीव्र गति से तैयार एवं कार्यान्वित करना चाहिये। यूरोपीय संघ के साथ चल रही समझौता वार्ताएँ (विश्व व्यापार संगठन के समक्ष चुनौती सहित) इस वैश्विक पर्यावरण नीति परिदृश्य पर भारत की प्रतिक्रिया निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएँगी।

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