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The Hindi Editorial Analysis- 18th December 2023 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

म्यांमार की सैन्य दुविधा: बदलते समय में नियंत्रण के लिए संघर्ष


संदर्भ-

टाटमाडॉ (Tatmadaw) के नाम से जानी जाने वाली म्यांमार की सेना को फरवरी 2021 में तख्तापलट करने और राज्य प्रशासन परिषद (SAC) का गठन करने के बाद से गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। सेना के इस कदम की विगत छह दशकों में सबसे तीव्र प्रतिक्रिया देखी जा रही है। तख्तापलट की प्रतिक्रिया ने पीपुल्स डिफेंस फोर्सेज (PDF) और जातीय सशस्त्र समूहों सहित मजबूत विपक्षी ताकतों को जन्म दिया है जिससे देश में गृह युद्ध की आशंका प्रकट की जा रही है ।

The Hindi Editorial Analysis- 18th December 2023 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC

विपक्षी ताकतों का उदय:

  • तख्तापलट के बाद, लोकतंत्र-समर्थक कार्यकर्ताओं ने नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (NLD) ,नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट (NUG) और पीपुल्स डिफेंस फोर्सेस (PDF) का गठन किया । इन संगठनों ने गुरिल्ला रणनीति का उपयोग कर सेना को ग्रामीण क्षेत्रों में उलझाए रखा था । वहीं जब पीपुल्स डिफेंस फोर्सेस (PDF) और नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट (NUG) एक साथ हो गए तब यह तनाव संघर्ष पूर्ण गृहयुद्ध में बदल गया।
  • राष्ट्रीय एकता सलाहकार परिषद (NUCC) लोकतंत्र-समर्थकों के लिए एक मंच बन गयी है। करेन नेशनल यूनियन और कचिन इंडिपेंडेंस ऑर्गनाइजेशन जैसे जातीय सशस्त्र समूहों ने NUG का समर्थन तो किया है परंतु एकीकृत NUG कमांड के तहत एक 'संघीय सेना' के विचार को खारिज कर दिया है ।

समन्वित हमले और संघर्ष का बढ़ना:

थ्री ब्रदरहुड अलायंस, जिसमें ता'आंग नेशनल लिबरेशन आर्मी (TNLA), म्यांमार नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस आर्मी (MNDAA) और अराकान आर्मी (AA) शामिल हैं, ने 27 अक्टूबर, 2023 को 'ऑपरेशन 1027' के अंतर्गत समन्वित हमले किए । इन हमलों से उत्तरी शान राज्य में सेना की मजबूत पकड़ को कमजोर कर दिया । इससे टाटमाडॉ ने अपने गढ़ों में भी स्वयं को कमजोर पाया, यहां तक उसके प्रभुत्व के लिए एक अस्तित्वगत संकट का प्रश्न भी उत्पन्न हो गया ।

सैन्य ताकत और अंतर्राष्ट्रीय समर्थन:

चुनौतियों के बावजूद, बर्टिल लिंटनर सहित अनुभवी पर्यवेक्षक टाटमाडॉ के लचीलेपन पर जोर देते हैं, इसे म्यांमार में "सबसे प्रभावी और सर्वश्रेष्ठ सशस्त्र लड़ाकू बल" करार देते हैं।

  • मई 2023 की एक संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार यह बताया गया कि , सेना द्वारा 1 बिलियन डॉलर मूल्य के शस्त्रों के उपयोग का खुलासा हुआ, जो बड़े पैमाने पर रूस, चीन और सिंगापुर से प्राप्त हुए थे, जिसमें भारत का भी सीमित योगदान था। जबकि पीडीएफ स्थानीय रूप से प्राप्त हथियारों पर निर्भर था।

अपने ही लोगों के खिलाफ उन्नत हथियारों का उपयोग करने के कारण , टाटमाडॉ को युद्ध अपराधों के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है ।

टाटमाडॉ का ऐतिहासिक संदर्भ:

  • टाटमाडॉ की जड़ें 1941 में जापानी सहायता से गठित बर्मा इंडिपेंडेंस आर्मी (BIN) से जुड़ी हुई हैं। आंग सान सू की के पिता आंग सान के नेतृत्व में बर्मा इंडिपेंडेंस आर्मी (BIN) ने शुरुआत में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ जापानियों के पक्ष में युद्ध किया था । युद्ध के बाद बर्मा इंडिपेंडेंस आर्मी (BIN) जापानी नियंत्रण के खिलाफ मित्र राष्ट्रों के साथ जुड़कर बर्मा रक्षा सेना में परिवर्तित हो गई। 1962 में जनरल विन के तख्तापलट ने सैन्य शासन के तहत एक एकात्मक राज्य की स्थापना की, जो 26 वर्षों तक चला । इस सैन्य शासन की मुख्य विशेषता अलगाववादी नीतियां और तानाशाही शासन थी।
  • 1988 में सैन्य शासन के विरुद्ध एक तीव्र नागरिक विद्रोह उठा जिसे हिंसक तरीके से दबा दिया गया, जिसके कारण मार्शल लॉ की भी घोषणा करनी पड़ी । इस विद्रोह के पश्चात राज्य शांति और विकास परिषद (एसपीडीसी) ने 1997 में नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया और 2011 तक शासन किया।
  • इसके बाद सत्ता थीन सीन के नेतृत्व वाले मिश्रित नागरिक-सैन्य शासन में स्थानांतरित हो गई। म्यांमार संघ लोकतांत्रिक गणराज्य (NLD) की 2015 की जीत के बावजूद, सेना की शक्तियों को प्रतिबंधित करने के प्रयासों को वरिष्ठ जनरल मिन आंग ह्लाइंग ने विफल कर दिया। इन्होंने बाद में सामाजिक सुरक्षा बोर्ड (SAC) की अध्यक्षता की और 2021 में पूर्ण सत्ता पर नियंत्रण कर लिया।

लोकतंत्र का जटिल मार्ग:

अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध, प्रवासी प्रतिक्रिया और नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट (NUG) के लिए बढ़ता समर्थन , जुंटा सरकार के समक्ष चुनौती उत्पन्न करता है। यद्यपि सेना का जातीय विभाजन और संसाधनशीलता का रणनीतिक उपयोग इसके नियंत्रण को बनाए हुए है। लिंटनर जैसे पर्यवेक्षक लंबे समय तक संघर्षण के युद्ध का (war of attrition) सुझाव देते हैं। जुंटा सरकार के बाद के काल में एक संघीय और लोकतांत्रिक म्यांमार के निर्माण की पर्याप्त चुनौतियाँ विद्यमान हैं।

म्यांमार के सैन्य तख्तापलट का भारत पर प्रभाव

म्यांमार में 2021 के सैन्य तख्तापलट के बाद से भारत पर व्यापक प्रभाव पड़ा है:

सीमा पार गतिविधियाँ:

  • लोगों के सीमा पार आवागमन और अवैध सामानों के आवाजाही की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं जो पूर्वोत्तर क्षेत्र (एनईआर) में सुरक्षा स्थिति को प्रभावित कर रही हैं ।
  • चीन की खुफिया एजेंसियों द्वारा इन उग्रवादी समूहों का समर्थन करने की सूचनाएं चिंताजनक हैं जो उन पर सक्रिय कार्रवाई की मांग करती हैं।
  • पूर्व की ओर देखो नीति पर प्रभाव:

    • इसका भारत की पूर्व की ओर देखो नीति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। ध्यातव्य है कि यह नीति 2014 से अधिक गतिशील और परिणामोन्मुख हो गई थी
    • इसने दक्षिण पूर्व एशिया की जीवंत अर्थव्यवस्थाओं तक भूमि पहुंच के संदर्भ में भारत की पहलों को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है और इसने पूर्वोत्तर में विकास को भी बाधित किया है।
    • सैन्य तख्तापलट भविष्य की शांति पहलों के लिए केंद्र के दृष्टिकोणों में बाधा उत्पन्न कर रहा है।
  • भारत के लिए उपलब्ध विकल्प:

    • म्यांमार के गुटों के साथ निरंतर जुड़ाव: म्यांमार में युद्धरत गुटों के साथ औपचारिक और अनौपचारिक दोनों तरह से निरंतर जुड़ाव की आवश्यकता है।
    • बांग्लादेश के साथ द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाना: बांग्लादेश के साथ अनुकूल द्विपक्षीय संबंध दक्षिण पूर्व एशिया के साथ व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा देने के लिए भूमि-समुद्र कनेक्टिविटी का एक नवीन मार्ग आरंभ करने का अवसर प्रदान करते हैं।
    • बांग्लादेश के बंदरगाहों के लिए भूमि मार्गों के लिए बुनियादी ढांचे का विकास: असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा से बांग्लादेश के बंदरगाहों तक भूमि मार्गों को उन्नत करने की आवश्यकता है।
      • कंटेनर डिपो, कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं और निर्बाध राजमार्गों जैसे उपयुक्त बुनियादी ढांचे को युद्ध स्तर पर विकसित करना होगा।
      • भारतीय निर्मित सामानों को पूर्वोत्तर में रेल/रोडहेड तक, जैसे गुवाहाटी तक पहुँचाना होगा, ताकि बांग्लादेश के बंदरगाहों तक आसानी से पहुँचा जा सके।
    • अधिकार प्राप्त विभाग की स्थापना: गृह, विदेश, उद्योग, भूतल-नदी परिवहन आदि सभी महत्वपूर्ण मंत्रालयों से आगे बढ़कर, भारत की एक्ट ईस्ट नीति का समर्थन करने वाली परियोजनाओं की निगरानी और सुविधा के लिए एक सशक्त विभाग बनाने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष:

म्यांमार को एक महत्वपूर्ण संकट का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि टाटमाडॉ अपने लंबे समय से चले आ रहे प्रभुत्व के लिए अभूतपूर्व चुनौतियों से जूझ रहा है। विपक्षी ताकतों, जातीय सशस्त्र समूहों और समन्वित हमलों के उद्भव ने सेना के संसाधनों पर दबाव उत्पन्न किया है। कुछ लोग इसे टाटमाडॉ के अस्तित्व के लिए खतरे के रूप में देख रहें हैं। जबकि लिंटनर जैसे अन्य पर्यवेक्षक टाटमाडॉ की स्थायी ताकत पर जोर देते हैं। अपने ही लोगों के खिलाफ सेना की कार्रवाई और लोकतांत्रिक परिवर्तन प्राप्त करने की जटिलताएं म्यांमार के जटिल राजनीतिक परिदृश्य को प्रदर्शित करती हैं । जुंटा के बाद के काल में एक संघीय और लोकतांत्रिक म्यांमार की ओर बढ़ना अनिश्चित और चुनौतीपूर्ण है, जिसके लिए सावधानीपूर्वक कदम उठाने और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है।

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