UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly  >  The Hindi Editorial Analysis- 25th January 2024

The Hindi Editorial Analysis- 25th January 2024 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

एक राष्ट्र-एक चुनाव का अवलोकन


सितंबर 2023 में केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में ‘एक राष्ट्र - एक चुनाव’ (One Nation, One Election- ONOE) पर एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया। समिति ने राष्ट्रीय एवं राज्यस्तरीय राजनीतिक दलों के साथ परामर्श किया और संभावित अनुशंसाओं के साथ आम लोगो एवं न्यायविदों के विचार आमंत्रित किये। एक राष्ट्र - एक चुनाव का प्रस्ताव भारत के लोकतांत्रिक ढाँचे और संघीय ढाँचे पर इसके प्रभाव के बारे में चिंताएँ उत्पन्न करता है। 

‘एक राष्ट्र - एक चुनाव’ के पीछे केंद्रीय विचार क्या है?

  • परिचय: 
    • यह अवधारणा एक ऐसे परिदृश्य की कल्पना करती है जहाँ प्रत्येक पाँच वर्ष पर सभी राज्यों के चुनाव लोकसभा के आम चुनावों के साथ-साथ संपन्न होंगे। 
    • विचार यह है कि चुनावी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया जाए और चुनावों की आवृत्ति को कम किया जाए, जिससे समय और संसाधनों की बचत होगी। 
  • पृष्ठभूमि: 
    • यह विचार वर्ष 1983 से ही अस्तित्व में है, जब निर्वाचन आयोग ने पहली बार इसे पेश किया था। हालाँकि वर्ष 1967 तक भारत में एक साथ चुनाव आयोजित कराना एक सामान्य परिदृश्य रहा था। 
      • लोकसभा के प्रथम आम चुनाव और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव 1951-52 में एक साथ आयोजित कराये गए थे। 
      • यह अभ्यास वर्ष 1957, 1962 और 1967 में आयोजित अगले तीन आम चुनावों में भी जारी रहा। 
    • लेकिन वर्ष 1968 और 1969 में कुछ विधानसभाओं के समय-पूर्व विघटन के कारण यह चक्र बाधित हो गया। 
      • वर्ष 1970 में स्वयं लोकसभा का समय-पूर्व विघटन हो गया और वर्ष 1971 में नए चुनाव आयोजित कराये गए। इस प्रकार, वर्ष 1970 तक केवल प्रथम, द्वितीय और तृतीय लोकसभा ने पाँच वर्ष का नियत कार्यकाल पूरा किया। 
  • विश्व में अन्य जगहों पर एक साथ चुनाव: 
    • दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रीय और प्रांतीय विधानमंडलों के चुनाव एक साथ प्रत्येक पाँच वर्ष पर आयोजित किये जाते हैं, जबकि नगरनिकाय चुनाव प्रत्येक दो वर्ष पर आयोजित किये जाते हैं। 
    • स्वीडन में राष्ट्रीय विधानमंडल (Riksdag), प्रांतीय विधानमंडल/काउंटी कौंसिल (Landsting) और स्थानीय निकायों/नगरनिकाय सभाओं (Kommunfullmaktige) के चुनाव एक निश्चित तिथि, यानी हर चौथे वर्ष सितंबर के दूसरे रविवार को आयोजित किये जाते हैं। 
    • ब्रिटेन में ब्रिटिश संसद और उसके कार्यकाल को स्थिरता एवं पूर्वानुमेयता की भावना प्रदान करने के लिये निश्चित अवधि संसद अधिनियम, 2011 (Fixed-term Parliaments Act, 2011) पारित किया गया था। 
      • इसमें प्रावधान किया गया कि प्रथम चुनाव 7 मई 2015 को और उसके बाद हर पाँचवें वर्ष मई माह के पहले गुरुवार को आयोजित किया जाएगा। 

एक साथ चुनाव (Simultaneous Elections) या ONOE के विभिन्न लाभ क्या हैं?

  • शासन विकर्षणों को कम करना: 
    • बार-बार चुनाव आयोजित होने से शीर्ष नेताओं से लेकर स्थानीय प्रतिनिधियों तक पूरे देश का ध्यान भटक जाता है, जिससे विभिन्न स्तरों पर प्रशासन एक तरह से पंगु हो जाता है। 
    • यह चुनावी व्यस्तता भारत की विकास संभावनाओं पर नकारात्मक प्रभाव डालती है और प्रभावी शासन में बाधा उत्पन्न करती है। 
  • आदर्श आचार संहिता का प्रभाव: 
    • चुनावों के दौरान लागू आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct- MCC) राष्ट्रीय और स्थानीय दोनों स्तरों पर प्रमुख नीतिगत निर्णयों में विलंब का कारण बनती है। 
      • यहाँ तक कि चल रही परियोजनाओं में भी बाधा उत्पन्न होती है क्योंकि चुनाव संबंधी कर्तव्यों को प्राथमिकता दी जाती है, जिससे नियमित प्रशासन में सुस्ती आ जाती है। 
  • राजनीतिक भ्रष्टाचार को संबोधित करना: 
    • बार-बार चुनाव का आयोजन राजनीतिक भ्रष्टाचार में योगदान करते हैं क्योंकि प्रत्येक चुनाव के लिये उल्लेखनीय मात्रा में धन जुटाने की आवश्यकता होती है। 
    • एक साथ चुनाव कराने से राजनीतिक दलों के चुनाव खर्च में व्यापक कमी आ सकती है, जिससे बार-बार धन जुटाने की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी। 
      • इससे आम लोगों और व्यापारिक समुदाय पर बार-बार चुनावी चंदा देने का दबाव भी कम हो जाएगा। 
  • लागत बचत और चुनावी अवसंरचना: 
    • वर्ष 1951-52 में जब लोकसभा के प्रथम चुनाव आयोजित हुए तो इसमें 53 राजनीतिक दलों और लगभग 1874 प्रत्याशियों ने भाग लिया तथा चुनाव का व्यय 11 करोड़ रुपए रहा। 
      • वर्ष 2019 के आम चुनाव में 610 राजनीतिक दलों और लगभग 9,000 उम्मीदवारों ने भागीदारी की। एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के अनुसार लगभग 60,000 करोड़ रुपए के चुनावी खर्च पर राजनीतिक दलों अभी घोषणा किया जाना शेष है। 
    • हालाँकि अवसंरचना में आरंभिक निवेश की आवश्यकता होती है, लेकिन सभी चुनावों के लिये समान मतदाता सूची का उपयोग करने से मतदाता सूचियों को अद्यतन करने और बनाए रखने में लगने वाले व्यापक समय एवं धन की बचत हो सकती है। 
  • नागरिकों को सुविधा: 
    • एक साथ चुनाव होने से मतदाता सूची से नाम गायब के संबंध में नागरिकों की चिंताएँ कम हो जाएँगी। 
    • सभी चुनावों के लिये सुसंगत मतदाता सूची का उपयोग प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करता है, जिससे नागरिकों को अधिक प्रत्यक्ष एवं भरोसेमंद मतदान अनुभव प्राप्त होता है। 
  • कानून प्रवर्तन संसाधनों का इष्टतम उपयोग: 
    • चुनावों के दौरान पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों की बड़े पैमाने पर बार-बार तैनाती में उल्लेखनीय लागत आती है तथा प्रमुख कानून प्रवर्तन कर्मियों का अत्यंत महत्त्वपूर्ण कार्यों से विचलन होता है। 
    • एक साथ चुनाव से बार-बार तैनाती की कमी होगी, संसाधनों का इष्टतम उपयोग होगा और कानून प्रवर्तन दक्षता बढ़ेगी। 
  • ‘हॉर्स-ट्रेडिंग’ पर अंकुश: 
    • निश्चित अंतराल पर आयोजित चुनावों से निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा हॉर्स ट्रेडिंग या खरीद-फरोख्त को कम किया जा सकता है। 
    • निश्चित अवधियों पर चुनाव कराने से प्रतिनिधियों के लिये व्यक्तिगत लाभ के लिये दल बदलना या गठबंधन बनाना अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाएगा, जो मौजूदा दल-बदल विरोधी कानूनों को पूरकता प्रदान करेगा। 
  • राज्य सरकारों के लिये वित्तीय स्थिरता: 
    • बार-बार चुनावों के कारण राज्य सरकारें मतदाताओं को लुभाने के लिये मुफ्त सुविधाओं या ‘फ्रीबीज़’ की घोषणा करती हैं, जिससे प्रायः उनके वित्त पर दबाव पड़ता है। 
    • एक साथ चुनाव का आयोजन इस समस्या को कम कर सकता है, राज्य सरकारों पर वित्तीय बोझ घट सकता है और वृहत वित्तीय स्थिरता में योगदान प्राप्त हो सकता है। 

ONOE से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • संवैधानिक चिंताएँ और मध्य-कार्यकाल पतन: 
    • संविधान के अनुच्छेद 83(2) और 172 में क्रमशः लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिये पाँच वर्ष का कार्यकाल निर्दिष्ट किया गया है, यदि समय-पूर्व उनका विघटन नहीं हो जाए। 
    • ONOE की अवधारणा उन परिदृश्यों को प्रश्नगत करती है यदि केंद्र या राज्य सरकार के कार्यकाल का मध्य में ही पतन हो जाए। 
      • उस परिदृश्य में प्रत्येक राज्य में पुनः चुनाव कराने या राष्ट्रपति शासन लगाने की दुविधा संवैधानिक ढाँचे को जटिल बनाती है। 
  • ONOE को लागू करने में लॉजिस्टिक संबंधी चुनौतियाँ: 
    • ONOE के कार्यान्वयन में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों, कर्मियों और अन्य संसाधनों की उपलब्धता एवं सुरक्षा सहित महत्त्वपूर्ण लॉजिस्टिक संबंधी चुनौतियाँ शामिल हैं। 
    • निर्वाचन आयोग को इतने बड़े पैमाने पर चुनावी अभ्यास के प्रबंधन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे ONOE प्रस्ताव की जटिलता बढ़ जाएगी। 
  • संघवाद संबंधी चिंताएँ और विधि आयोग के निष्कर्ष: 
    • ONOE की अवधारणा संघवाद (federalism) की अवधारणा से टकराव रखती है; यह संविधान के अनुच्छेद 1 में भारत को ‘राज्यों के संघ’ (Union of States) के रूप में देखने के विचार के विपरीत है। 
      • एक साथ चुनाव राज्य सरकारों की स्वायत्तता और स्वतंत्रता पर हमला है। इससे न केवल संघीय ढाँचा कमज़ोर हो सकता है बल्कि केंद्र और राज्यों के बीच हितों का टकराव भी बढ़ सकता है। 
        • राज्य सरकारों के कार्यकाल अलग-अलग होते हैं और कुछ राज्यों को संविधान के अनुच्छेद 371 के तहत विशेष उपबंध सौंपे जाते हैं। 
    • न्यायमूर्ति बी.एस. चौहान की अध्यक्षता वाले विधि आयोग ने बताया कि मौजूदा संवैधानिक ढाँचे के भीतर एक साथ चुनाव संपन्न कराना व्यवहार्य नहीं हैं। 
      • इसके लिये संविधान, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 और लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के प्रक्रिया नियमों में संशोधन की आवश्यकता होगी। 
  • चुनावों की पुनरावृत्ति और लोकतांत्रिक लाभ: 
    • बार-बार आयोजित चुनावों की वर्तमान प्रणाली को लोकतंत्र में लाभप्रद माना जाता है, जिससे मतदाताओं को अपनी आवाज़ अधिक बार व्यक्त करने की अनुमति मिलती है। 
    • यह व्यवस्था राष्ट्रीय और राज्य चुनावों के बीच मुद्दों के मिश्रण को रोकती है, जिससे अधिक जवाबदेही सुनिश्चित होती है। 
    • वर्तमान ढाँचे के तहत प्रत्येक राज्य की विशिष्ट मांगों और आवश्यकताओं को आवाज़ मिलती है। 
  • पक्षपातपूर्ण लोकतांत्रिक संरचना: 
    • IDFC इंस्टीट्यूट के वर्ष 2015 के एक अध्ययन में उजागर हुआ कि एक साथ चुनाव से  इस बात की 77% संभावना बनती है कि विजयी राजनीतिक दल या गठबंधन को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं, दोनों में जीत प्राप्त होगी। 
      • हालाँकि, यदि दोनों चुनाव छह माह के अंतराल पर आयोजित हों तो केवल 61% मतदाता ही दोनों चुनावों में एक ही दल को चुनेंगे। 
  • लागत निहितार्थ और आर्थिक विचार: 
    • एक साथ चुनाव की लागत के बारे में निर्वाचन आयोग और नीति आयोग के अनुमान परस्पर विरोधी आँकड़े प्रकट करते हैं। हालाँकि दीर्घावधि में सिंक्रनाइज़ेशन से प्रति मतदाता लागत में बचत हो सकती है, लेकिन बड़ी संख्या में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVMs) और वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल्स (VVPATs) की तैनाती के लिये लघु-आवधिक खर्च बढ़ सकता है। 
      • आर्थिक शोध से पता चलता है कि राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों द्वारा किया जाने वाला चुनावी व्यय, संभावित लघु-आवधिक लागत में वृद्धि के बावजूद, अंततः अर्थव्यवस्था एवं सरकारी कर राजस्व को लाभ पहुँचाता है। 
  • कानूनी चिंताएँ: 
    • एक साझा चुनाव प्रक्रिया की शुरूआत संविधान का उल्लंघन हो सकती है, जैसा कि एस.आर. मामले में प्रकट हुआ था जहाँ सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों के स्वतंत्र संवैधानिक अस्तित्व पर बल दिया था। 
  • परामर्श प्रक्रिया में भाषा पूर्वाग्रह: 
    • उच्चस्तरीय समिति की परामर्श प्रक्रिया (जैसा इसकी वेबसाइट पर प्रकट है) पूर्वाग्रह, अपवर्जन और असमानता के संबंध में चिंताओं को जन्म देती है। 
    • सूचना कोष और इंटरैक्शन प्लेटफॉर्म के रूप में उपस्थित वेबसाइट केवल अंग्रेजी एवं हिंदी में उपलब्ध है और भारत की अन्य 22 आधिकारिक भाषाओं की उपेक्षा करती है। 
  • निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता: 
    • निर्वाचन आयोग की भूमिका और स्वतंत्रता के बारे में सवाल उठाये गए हैं। इसे ‘नोटबंदी’ जैसे परिदृश्य से जोड़कर देखा जा रहा है जहाँ भारतीय रिज़र्व बैंक को सूचित नहीं किया गया था। 
    • उच्चस्तरीय समिति की प्रक्रिया में निर्वाचन आयोग निष्क्रिय दिखाई देता है, जिससे चुनावों पर स्वतंत्र निर्णय लेने की उसकी स्वायत्तता खतरे में पड़ जाती है। 

आगे की राह:  

  • आम सहमति का निर्माण करना: 
    • एक साथ चुनाव की व्यवहार्यता के लिये राजनीतिक दलों और राज्यों के बीच आम सहमति बनाना महत्त्वपूर्ण है। चिंताओं को दूर करने और समर्थन हासिल करने के लिये विभिन्न हितधारकों के बीच खुले संवाद, परामर्श और विचार-विमर्श की आवश्यकता है। 
  • संवैधानिक संशोधन: 
    • एक साथ चुनाव कराने के लिये संविधान, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 और लोकसभा एवं राज्य विधानसभावों के प्रक्रिया नियमों में संशोधन किया जाना आवश्यक होगा। इस विधिक ढाँचे में समकालिक मतदान की विशिष्ट आवश्यकताओं को समायोजित किया जाना चाहिये। 
  • विधानसभा के कार्यकाल को लोकसभा के साथ संरेखित करना: 
    • संवैधानिक संशोधन में विधानसभा के कार्यकाल को लोकसभा के साथ संरेखित करना शामिल हो सकता है। प्रस्ताव के तौर पर, कोई भी विधानसभा जिसका कार्यकाल लोकसभा चुनाव से 6 माह पूर्व या पश्चात समाप्त हो रहा हो, चुनावी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करते हुए अपने चुनावों को लोकसभा चुनावों से संरेखित कर सकती है।
  • अवसंरचना में निवेश: 
    • एक साथ चुनावों के सफल कार्यान्वयन के लिये चुनावी अवसंरचना एवं प्रौद्योगिकी में पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होगी। इसमें EVMs, VVPAT मशीन, मतदान केंद्र और प्रशिक्षित सुरक्षा कर्मियों की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करना शामिल है। 
  • आकस्मिकताओं के लिये विधिक ढाँचा: 
    • अविश्वास प्रस्ताव, समय-पूर्व विधानसभा विघटन या त्रिशंकु संसद जैसी आकस्मिकताओं से निपटने के लिये विधिक ढाँचा स्थापित करना आवश्यक है। इस ढाँचे का उद्देश्य एक साथ चुनाव चक्र के दौरान उत्पन्न होने वाली अप्रत्याशित परिस्थितियों का प्रबंधन करना होगा। 
  • जागरूकता और मतदाता शिक्षा: 
    • एक साथ चुनाव के लाभ और चुनौतियों के बारे में मतदाताओं के बीच जागरूकता पैदा करना महत्त्वपूर्ण है। मतदाता शिक्षा कार्यक्रमों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि नागरिक इस प्रक्रिया को समझें, जिससे वे बिना किसी भ्रम या असुविधा के अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें। 

निष्कर्ष:

उच्चस्तरीय समिति की स्थापना यह संकेत देती है कि भारत में एक साथ चुनाव पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। संवैधानिक और विधित सिद्धांतों पर संभावित प्रभाव के बारे में मौजूद चिंताओं के बावजूद, समिति की अनुशंसाओं के लिये एक निश्चित समयरेखा की कमी अनिश्चितता का माहौल बना रही है। कानूनी चिंताएँ, विशेष रूप से राज्य विधानमंडल की अवधि में संभावित परिवर्तन, संवैधानिक चुनौती पेश करती हैं। ‘एक राष्ट्र - एक चुनाव’ को रोका जा सकता है या नहीं, यह सवाल भारतीय सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक भूमिका को प्रमुखता से सामने लाता है। 

The document The Hindi Editorial Analysis- 25th January 2024 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC is a part of the UPSC Course Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly.
All you need of UPSC at this link: UPSC
2222 docs|810 tests

Top Courses for UPSC

2222 docs|810 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

ppt

,

Summary

,

Previous Year Questions with Solutions

,

mock tests for examination

,

pdf

,

Free

,

past year papers

,

The Hindi Editorial Analysis- 25th January 2024 | Current Affairs (Hindi): Daily

,

Extra Questions

,

Weekly & Monthly - UPSC

,

Weekly & Monthly - UPSC

,

Sample Paper

,

Viva Questions

,

study material

,

Objective type Questions

,

video lectures

,

Important questions

,

practice quizzes

,

MCQs

,

Exam

,

The Hindi Editorial Analysis- 25th January 2024 | Current Affairs (Hindi): Daily

,

Semester Notes

,

Weekly & Monthly - UPSC

,

The Hindi Editorial Analysis- 25th January 2024 | Current Affairs (Hindi): Daily

,

shortcuts and tricks

;