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The Hindi Editorial Analysis- 27th January 2024 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

भारत की सेमीकंडक्टर डिज़ाइन योजना को नया रूप देना

डिज़ाइन-लिंक्ड इंसेंटिव (DLI) योजना—जो ‘भारत का सेमीकंडक्टर मिशन’ (ISM) का एक महत्त्वपूर्ण तत्व है, के मध्यावधि मूल्यांकन का समय निकट आ रहा है। पाँच वर्षों की अवधि में 100 स्टार्ट-अप्स का समर्थन करने के अपने लक्ष्य के बावजूद, केवल 7 को ही मंज़ूरी दी गई है, जिससे योजना के पुनर्मूल्यांकन और संभावित पुनरुद्धार की मांग उठी है।

भारत एक ग्लोबल सेमीकंडक्टर हब बनने की आकांक्षा रखता है, लेकिन सेमीकंडक्टर चिप की कमी ने आपूर्ति शृंखला में कमज़ोरियों को रेखांकित किया है, जिससे घरेलू विनिर्माण क्षमता बढ़ाने की तात्कालिकता पर बल पड़ा है।

सेमीकंडक्टर:

विद्युत चालकता के मामले में कंडक्टर और इंसुलेटर के बीच स्थित मध्यवर्ती क्रिस्टलीय ठोस पदार्थों का कोई भी वर्ग सेमीकंडक्टर (Semiconductors) के रूप में जाना जाता है।

  • सेमीकंडक्टर का उपयोग डायोड, ट्रांजिस्टर, इंटीग्रेटेड सर्किट (ICs) सहित विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में किया जाता है। ऐसे उपकरणों का उनकी सुदृढ़ता (compactnes), विश्वसनीयता, ऊर्जा दक्षता और कम लागत के कारण व्यापक अनुप्रयोग किया जाता है।
  • असतत घटकों के रूप में बिजली उपकरणों, ऑप्टिकल सेंसर और प्रकाश उत्सर्जकों (सॉलिड-स्टेट लेज़र सहित) में इनका उपयोग किया जाता है।
  • सेमीकंडक्टर आमतौर पर चार वैलेंस इलेक्ट्रॉनों वाले परमाणुओं से बने क्रिस्टलीय ठोस होते हैं। सिलिकॉन और जर्मेनियम इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में उपयोग किये जाने वाले दो आम मौलिक सेमीकंडक्टर हैं।

भारत का सेमीकंडक्टर मिशन (ISM):

  • परिचय:
    • ISM को वर्ष 2021 में इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के तत्वावधान में 76,000 करोड़ रुपए के कुल वित्तीय परिव्यय के साथ लॉन्च किया गया था। 
    • यह देश में संवहनीय सेमीकंडक्टर एवं डिस्प्ले पारितंत्र के विकास के लिये एक व्यापक कार्यक्रम का अंग है।
    • कार्यक्रम का उद्देश्य सेमीकंडक्टर, डिस्प्ले विनिर्माण और डिज़ाइन पारितंत्र में निवेश करने वाली कंपनियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
    • परिकल्पना की गई है कि ISM सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले उद्योग के वैश्विक विशेषज्ञों के नेतृत्व में योजनाओं के कुशल, सुसंगत और सुचारू कार्यान्वयन के लिये नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करेगा।
  • अवयव:
    • भारत में सेमीकंडक्टर फैब्स स्थापित करने की योजना
    • भारत में डिस्प्ले फैब्स स्थापित करने की योजना
    • भारत में कंपाउंड सेमीकंडक्टर/सिलिकॉन फोटोनिक्स/सेंसर फैब और सेमीकंडक्टर असेंबली, टेस्टिंग, मार्किंग और पैकेजिंग (ATMP)/OSAT सुविधाओं की स्थापना के लिये योजना
  • डिज़ाइन-लिंक्ड इंसेंटिव (DLI) योजना:
    • परिचय: यह इंटीग्रेटेड सर्किट (ICs), चिपसेट, सिस्टम ऑन चिप्स (SoCs), सिस्टम एंड आईपी कोर (Systems & IP Cores) के लिये सेमीकंडक्टर डिज़ाइन और अन्य सेमीकंडक्टर-लिंक्ड डिज़ाइन के विकास एवं तैनाती के विभिन्न चरणों में वित्तीय प्रोत्साहन और डिज़ाइन अवसंरचना समर्थन प्रदान करता है।
    • नोडल एजेंसी: MeitY के तहत संचालित एक वैज्ञानिक सोसायटी C-DAC (सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग) DLI योजना के कार्यान्वयन के लिये नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करेगी।
    • DLI के 3 घटक:
      • चिप डिज़ाइन अवसंरचना समर्थन: इसके तहत, C-DAC अत्याधुनिक डिज़ाइन अवसंरचना (जैसे EDA टूल्स, आईपी कोर और मल्टी प्रोजेक्ट वेफर फैब्रिकेशन/MPW एवं पोस्ट-सिलिकॉन वैलिडेशन) की होस्टिंग के लिये ‘इंडिया चिप सेंटर’ की स्थापना करेगा और समर्थित कंपनियों तक इसकी पहुँच को सुविधाजनक बनाएगा।
      • प्रोडक्ट डिज़ाइन लिंक्ड प्रोत्साहन (Product Design Linked Incentive): इसके तहत, सेमीकंडक्टर डिज़ाइन से संलग्न अनुमोदित आवेदकों को राजकोषीय सहायता के रूप में प्रति आवेदन 15 करोड़ रुपए की सीमा के अधीन पात्र व्यय के 50% तक की प्रतिपूर्ति प्रदान की जाएगी।
      • डिप्लॉयमेंट लिंक्ड प्रोत्साहन (Deployment Linked Incentive): इसके तहत ऐसे अनुमोदित आवेदकों को प्रति आवेदन 30 करोड़ रुपए की सीमा के अधीन 5 वर्षों में शुद्ध बिक्री कारोबार का 6% से 4% तक प्रोत्साहन प्रदान किया जाएगा जिनके इंटीग्रेटेड सर्किट (ICs), चिपसेट, सिस्टम ऑन चिप्स (SoCs), सिस्टम एंड आईपी कोर (Systems & IP Cores) के सेमीकंडक्टर डिज़ाइन और सेमीकंडक्टर-लिंक्ड डिज़ाइन को इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों में उपयोग किया जाता है।
  • विज़न:
    • भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण एवं डिज़ाइन के वैश्विक केंद्र के रूप में उभरने में सक्षम बनाने के लिये एक जीवंत सेमीकंडक्टर एवं डिस्प्ले डिज़ाइन और नवाचार पारितंत्र का निर्माण करना।
  • महत्त्व:
    • सेमीकंडक्टर एवं डिस्प्ले उद्योग को अधिक संरचित, केंद्रित और व्यापक तरीके से बढ़ावा देने के प्रयासों को व्यवस्थित करने के लिये ISM अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। 
    • यह देश में सेमीकंडक्टर एवं डिस्प्ले विनिर्माण सुविधाओं और सेमीकंडक्टर डिज़ाइन पारितंत्र के विकास के लिये एक व्यापक दीर्घकालिक रणनीति तैयार करेगा।
    • यह कच्चे माल, विशेष रसायनों, गैसों और विनिर्माण उपकरणों सहित सुरक्षित सेमीकंडक्टर एवं डिस्प्ले आपूर्ति शृंखलाओं के माध्यम से विश्वसनीय इलेक्ट्रॉनिकी को अपनाने की सुविधा प्रदान करेगा।
    • यह आरंभिक चरण के स्टार्ट-अप के लिये इलेक्ट्रॉनिक डिज़ाइन ऑटोमेशन (EDA) टूल्स, फाउंड्री सेवाओं और अन्य उपयुक्त तंत्र के रूप में अपेक्षित सहायता प्रदान कर भारतीय सेमीकंडक्टर डिज़ाइन उद्योग की कई गुना वृद्धि को सक्षम करेगा।
    • यह स्वदेशी बौद्धिक संपदा (IP) सृजन को भी बढ़ावा देगा एवं उसे सुविधाजनक बनाएगा और प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण (ToT) को प्रोत्साहित, सक्षम और वित्तीय रूप से प्रोत्साहित करेगा।
    • ISM सहयोगात्मक अनुसंधान, व्यावसायीकरण और कौशल विकास को उत्प्रेरित करने के लिये राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों, उद्योगों और संस्थानों के साथ सहयोग एवं साझेदारी कार्यक्रमों को सक्षम करेगा।

सेमीकंडक्टर बाज़ार का समग्र परिदृश्य:

  • वैश्विक परिदृश्य:
    • चिप-मेकिंग उद्योग अत्यधिक संकेंद्रित है, जहाँ ताइवान, दक्षिण कोरिया और संयुक्त राज्य अमेरिका बड़े खिलाड़ी हैं।
      • वस्तुतः 5 nm के 90% चिप का वृहत उत्पादन ताइवान में ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी (TSMC) द्वारा किया जाता है।
    • चिप की वैश्विक कमीताइवान पर अमेरिका-चीन में तनाव और रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण आपूर्ति शृंखला में रुकावटों ने प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को नए सिरे से चिप निर्माण के क्षेत्र में प्रवेश के लिये प्रेरित किया है।
    • वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग का मूल्य वर्तमान में 500-600 बिलियन अमेरिकी डॉलर है और यह वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है जिसका मूल्य वर्तमान में लगभग 3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है।
  • भारतीय परिदृश्य:
    • भारतीय सेमीकंडक्टर बाज़ार का मूल्य लगभग 23.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर है और इसके 2029 तक 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है , जो पूर्वानुमानित अवधि के दौरान 27.10% के CAGR से बढ़ रहा है।
    • सेमीकंडक्टर चिप्स के घरेलू विनिर्माण के लिये भारत ने हाल में कई पहलें शुरू की हैं:
      • भारत में सेमीकंडक्टर अनुसंधान एवं विकास (R&D) का समर्थन करने के लिये MeitY ने ISM में 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की घोषणा की है।
      • भारत ने इलेक्ट्रॉनिक घटकों और सेमीकंडक्टरों के विनिर्माण संवर्द्धन की योजना (SPECS) शुरू की है।

भारत में सेमीकंडक्टर उद्योग के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ:

  • डेटा लेटेंसी (Data Latency): वेफर-डाई (wafer-die) की शक्ति, दक्षता और कार्य-आधारित बिनिंग (binning) से एक ही वेफर से विभिन्न सह-उत्पाद बन सकते हैं। अलग-अलग कार्य, जहाँ प्रत्येक कार्य विभिन्न नियोजन मापदंडों का उपयोग करता है, डेटा लेटेंसी की समस्याओं को उत्प्रेरित करता है क्योंकि डेटा कई अलग-अलग प्रणालियों में संग्रहीत होता है।
  • ग्राहक-विशिष्ट आवश्यकताएँ (Customer-Specific Needs): प्रायः एक ही उत्पाद में विभिन्न सामग्री, साइट, शिपमेंट आकार और गुणवत्ता निर्माण शामिल होता है। ऐसी सभी आवश्यकताएँ अलग-अलग होने की प्रवृत्ति रखती हैं क्योंकि वे ग्राहक की विशिष्ट मांगों पर आधारित होती हैं।
  • फ्रंट-एंड (FE) बिल्ट आउटपुट (Front-end Built Output): वेफर्स जैसे FE आउटपुट को असेंबलिंग एवं टेस्टिंग के साथ-साथ एक मिश्रित मॉडल जैसे विनिर्माण चरणों की आवश्यकता होती है। इसके परिणामस्वरूप आपूर्ति शृंखला में जटिलताएँ पैदा होती हैं, जिससे कुशल क्षमता नियोजन अधिक कठिन हो जाता है।
  • बैक-एंड (BE) चक्र समय का FE से तीव्र होना (Back-End Cycle Times Quicker than FE): FE चक्र की प्रसंस्करण अवधि आम तौर पर 6-8 सप्ताह होती है, जबकि BE चक्र की अवधि केवल 1-2 सप्ताह की होती है। इसका प्रभावी रूप से अर्थ है अलग-अलग विनिर्माण अवधियों में इन्वेंट्री को स्थगित करना, जिसके लिये अतिरिक्त योजना की आवश्यकता होती है।
  • नियंत्रित एंड-टू-एंड आपूर्ति शृंखला दृश्यता और योजना (Restricted End-to-End Supply Chain Visibility and Planning): विनिर्माण के लिये प्रचुर मात्रा में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष सामग्रियों की आवश्यकता और असंबद्ध इन-हाउस एवं अनुबंधित विनिर्माण साइटें एवं वितरण केंद्र, आपूर्ति शृंखला की प्रमुखता को कठिन बनाते हैं। ये अतिरिक्त इन्वेंट्री वृद्धि और अकुशल ग्राहक सेवा में भी योगदान करते हैं।
  • अत्यधिक महँगा फैब सेटअप (Extremely Expensive Fab Setup): एक सेमीकंडक्टर फैब को अपेक्षाकृत छोटे पैमाने पर भी स्थापित करने में कई बिलियन डॉलर की लागत आ सकती है और यह नवीनतम प्रौद्योगिकी से एक या दो पीढ़ी पीछे है।
  • उच्च निवेश की आवश्यकता (High Investments Required): सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले विनिर्माण एक अत्यंत जटिल एवं प्रौद्योगिकी-गहन क्षेत्र है जिसमें भारी पूंजी निवेश, उच्च जोखिम, सुदीर्घ जेस्टेशन एवं पे-बैक अवधि और प्रौद्योगिकी में तेज़ी से बदलाव जैसे विषय शामिल हैं, जिसके लिये उल्लेखनीय एवं निरंतर निवेश की आवश्यकता होती है।

DLI योजना के कार्यान्वयन से संबद्ध प्रमुख मुद्दे:

  • जबकि DLI योजना का लक्ष्य डिज़ाइन अवसंरचना और वित्तीय सब्सिडी तक पहुँच प्रदान करना है, इसके अंगीकरण में कमी नज़र आती है।
    • स्टार्ट-अप को घरेलू इकाई बने रहने का निर्देश और विदेशी पूंजी को सीमित करना एक महत्त्वपूर्ण बाधा उत्पन्न करता है। भारत में हार्डवेयर उत्पादों के लिये वित्तपोषण परिदृश्य और परिपक्व स्टार्ट-अप पारितंत्र की अनुपस्थिति निवेशकों की जोखिम लेने की क्षमता को कम करती है।
  • सेमीकंडक्टर उद्योग अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी है, जहाँ स्थापित हितधारक बाज़ार पर हावी हैं।
    • भारत को अमेरिका, दक्षिण कोरिया, ताइवान और चीन जैसे देशों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करनी होगी, जिनके पास सुस्थापित चिप विनिर्माण उद्योग मौजूद हैं।
    • ऐसी प्रतिस्पर्द्धा के समक्ष प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त हासिल करना और वैश्विक निवेश आकर्षित करना एक प्रमुख चुनौती है।
  • सेमीकंडक्टर उद्योग में बौद्धिक संपदा अधिकार और लाइसेंसिंग समझौते महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • बौद्धिक संपदा, पेटेंट और लाइसेंस तक पहुँच भारत की चिप निर्माण योजनाओं में बाधक बन सकते हैं।
    • जीडीपी की तुलना में अत्यंत निम्न R&D व्यय को देखते हुए साझेदारी, लाइसेंसिंग समझौते या स्वदेशी बौद्धिक संपदा विकसित करना एक जटिल प्रक्रिया सिद्ध हो सकती है।

ISM और इसकी DLI योजना में किस प्रकार सुधार किया जा सकता है?

  • भारत की सेमीकंडक्टर रणनीति लक्ष्यों को एकीकृत करना:
    • भारत के 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के ‘सेमीकॉन इंडिया प्रोग्राम’ का लक्ष्य सेमीकंडक्टर आयात पर निर्भरता कम करना, आपूर्ति शृंखला लचीलेपन का निर्माण करना और चिप डिज़ाइन में इसके तुलनात्मक लाभ का फायदा उठाना है।
    • इसके तीन लक्ष्यों में रणनीतिक क्षेत्र, वैश्विक मूल्य शृंखला एकीकरण और भारत की मौजूदा डिज़ाइन क्षमताओं का लाभ उठाना शामिल है , जिन्हें एकीकृत करने की आवश्यकता है।
  • अधिकतम लाभ के लिये निवेश को प्राथमिकता देना :
    • सीमित संसाधनों की स्थिति में औद्योगिक नीति प्राथमिकताओं को अधिकतम लाभ पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। डिज़ाइन पारितंत्र को प्रोत्साहित करना फाउंड्री एवं असेंबली चरणों की तुलना में कम पूंजी-गहन है, जो भारत के सेमीकंडक्टर उद्योग के लिये सुदृढ़ फॉरवर्ड लिंकेज का निर्माण करता है।
    • नीति संवीक्षा में DLI योजना और PLI योजनाओं के बीच संशोधन में असमानता के मुद्दे को संबोधित किया जाना चाहिये।
  • स्वामित्व को विकास से अलग करना:
    • DLI योजना के तहत अपेक्षाकृत मामूली प्रोत्साहन स्वामित्व पर प्रतिबंध का सामना करने वाले स्टार्ट-अप के लिये एक सार्थक समझौता नहीं माना जा सकता है।
    • सेमीकंडक्टर डिज़ाइन विकास से स्वामित्व को अलग करने और अधिकाधिक स्टार्ट-अप-अनुकूल निवेश दिशानिर्देशों को अपनाने से वित्तीय स्थिरता बढ़ सकती है तथा वैश्विक संपर्क प्राप्त हो सकता है।
  • DLI योजना के फोकस का विस्तार करना:
    • DLI योजना का प्राथमिक उद्देश्य समय के साथ स्वदेशी कंपनियों को बढ़ावा देते हुए भारत में सेमीकंडक्टर डिज़ाइन क्षमताओं को विकसित करना होना चाहिये।
    • DLI योजना को, वित्तीय सहायता में पर्याप्त वृद्धि के साथ, इकाई के पंजीकरण की परवाह किये बिना, देश के भीतर विभिन्न चिप्स के लिये डिज़ाइन क्षमताओं को सुविधाजनक बनाने हेतु अपना ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
  • नीति कार्यान्वयन के लिये एक सक्षम संस्थान की स्थापना करना:
    • एक सक्षम संस्थान के नेतृत्व में चिप डिज़ाइन पर केंद्रित एक पुनर्निर्देशित नीति एक निश्चित विफलता दर को सहन कर सकती है और लाभार्थी स्टार्ट-अप को खोजपूर्ण जोखिमकर्ता वाहनों के रूप में देख सकती है।
    • ISM के तहत एक संशोधित DLI योजना, जो SFAL के दृष्टिकोण से प्रेरित हो, सेमीकंडक्टर डिज़ाइन स्टार्ट-अप की एक विस्तृत शृंखला को आकर्षित कर सकती है और उन्हें आरंभिक बाधाओं से निपटने में मदद कर सकती है।
  • मौजूदा सुविधाओं का उपयोग:
    • सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स की नींव हैं जो इंडस्ट्री 4.0 के तहत डिजिटल परिवर्तन के अगले चरण को आगे बढ़ा रहे हैं।
    • भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (PSEs), जैसे भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड या हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड का उपयोग किसी वैश्विक प्रमुख कंपनी की मदद से सेमीकंडक्टर फैब फाउंड्री स्थापित करने के लिये किया जा सकता है।
  • सहयोग स्थापित करना:
    • हालाँकि भारत ऑटोमोटिव और उपकरण क्षेत्र को आपूर्ति प्रदान करने के लिये आरंभ में ‘लैगिंग-एज’ टेक्नोलॉजी नोड्स पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, लेकिन वैश्विक मांग पैदा करना कठिन सिद्ध हो सकता है क्योंकि ताइवान जैसे बड़े खिलाड़ी दुनिया भर में व्यवहार्य अत्याधुनिक चिप-तकनीक प्रदान कर रहे हैं।
    • भारत को घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और इस क्षेत्र में आयात निर्भरता को कम करने के लिये अमेरिका और जापान के अलावा ताइवान, दक्षिण कोरिया आदि या अन्य तकनीकी रूप से उन्नत मित्र देशों के साथ सहयोग करने के समान अवसर तलाशने चाहिये।

निष्कर्ष:

DLI योजना को प्रतिबंधात्मक स्वामित्व शर्तों, भारी लागत और सीमित प्रोत्साहन जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे सेमीकंडक्टर डिज़ाइन क्षमताओं को विकसित करने की दिशा में ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता महसूस हो रही है। आवश्यक संशोधनों में स्वामित्व को विकास से अलग करना, वित्तीय सहायता बढ़ाना और नोडल एजेंसी की भूमिका पर पुनर्विचार करना शामिल होना चाहिये। एक सक्षम संस्थान के नेतृत्व में एक पुनर्निर्देशित  नीति हाई-टेक सेमीकंडक्टर क्षेत्र में भारत की पकड़ स्थापित करते समय कुछ विफलताओं को सहन कर सकने में सक्षम होगी।

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