UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly  >  The Hindi Editorial Analysis- 3rd February 2024

The Hindi Editorial Analysis- 3rd February 2024 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

राजकोषीय नीतियाँ और आर्थिक अनुकूलन

आर्थिक नीतियों, विशेष रूप से राजकोषीय नीति, ने महामारी के बाद विकास सुधार को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। राजकोषीय नीति महामारी के दौरान कल्याण पर ध्यान केंद्रित करने से अब सार्वजनिक निवेश-संचालित विकास रणनीति की ओर परिवर्तित हो गई है ताकि अवसंरचना के निर्माण में तेज़ी लाई जा सके। राजकोषीय घाटे/सकल घरेलू उत्पाद अनुपात को कम करने के मार्ग पर बने रहते हुए यह हासिल किया गया।

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के पहले अग्रिम जीडीपी अनुमान से संकेत मिलता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था इस वित्तीय वर्ष में 7.3% की वृद्धि करेगी, जो जनवरी 2023 में आर्थिक सर्वेक्षण द्वारा अनुमानित 6.5% से अधिक तेज़ है। इस संदर्भ में, हाल ही में प्रस्तुत अंतरिम बजट को पूर्वानुमानित विकास गति को बनाए रखने के लिये अनसुलझे रह गए विभिन्न मुद्दों को समायोजित करने की आवश्यकता है।

भारत के विकास पथ का वर्तमान परिदृश्य क्या है?

  • सरकार की निवेश रणनीति: निवेश ने जीडीपी वृद्धि को पीछे छोड़ दिया है, जो इस वर्ष 34.9% तक पहुँच गया है। हालाँकि, सरकार से वर्ष 2025-26 तक सकल घरेलू उत्पाद के 4.5% के लक्षित राजकोषीय घाटे को प्राप्त करने के लिये पूंजीगत व्यय के लिये बजटीय समर्थन को मध्यम करने का आह्वान किया गया है।
  • चुनावी वर्ष में राजकोषीय समेकन: चुनावी वर्ष में राजकोषीय समेकन हासिल करना सरकार के लिये महत्त्वपूर्ण है। वित्त मंत्रालय के समीक्षा दस्तावेज़ में अगले वित्त वर्ष में लगभग 7% की वृद्धि की उम्मीद है, जहाँ दशक के अंत तक भारत के 7 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की संभावना है।
  • स्वस्थ मध्यम-आवधिक पूर्वानुमान: स्वस्थ मध्यम-आवधिक विकास की संभावनाएँ बहुपक्षीय एजेंसियों के पूर्वानुमानों में भी परिलक्षित होती हैं। वैश्विक विकास की धीमी गति और विश्व स्तर पर एवं घरेलू स्तर पर सख्त वित्तीय स्थितियों के कारण, अगले वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर घटकर 6.4% होने की उम्मीद है, जिसमें बाद में फिर तेज़ी आएगी।
  • मुद्रास्फीति संबंधी चिंताएँ: उन्नत देशों के विपरीत, भारत में कोर मुद्रास्फीति (core inflation) तेज़ी से घटकर 3.8% हो गई है और ईंधन मुद्रास्फीति -1% के स्तर पर है। 
    • भारत की हेडलाइन मुद्रास्फीति (headline inflation) को अभी तक नियंत्रण में नहीं लाया जा सका है, जिसका एकमात्र कारण उच्च खाद्य मुद्रास्फीति है। उच्च खाद्य मुद्रास्फीति के साथ कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का खराब प्रदर्शन चिंताजनक सिद्ध हो सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन और आर्थिक प्रभाव: वर्ष 2023 में दर्ज इतिहास का सबसे अधिक वार्षिक तापमान देखा गया, जो बढ़ते जलवायु जोखिम की याद दिलाता है। भारत जलवायु की दृष्टि से सर्वाधिक संवेदनशील देशों में से एक है।
    • वित्त मंत्रालय की समीक्षा में आर्थिक विकास से समझौता किये बिना जलवायु परिवर्तन के अनुकूल अनुसंधान, विकास एवं उपायों की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
  • मानसून: जबकि मानसून के दौरान कुल वर्षा अपेक्षित से 6% कम रही (अगस्त 2023 में 36% कम वर्षा के कारण), इसका स्थानिक वितरण व्यापक रूप से समान रहा। 36 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में से 29 में सामान्य या सामान्य से अधिक वर्षा हुई।
    • SBI मानसून प्रभाव सूचकांक (जो स्थानिक वितरण पर विचार करता है) का मान वर्ष 2023 में 89.5 रहा, जो वर्ष 2022 में पूर्ण मौसम सूचकांक मान 60.2 से पर्याप्त बेहतर है। बेहतर मानसून का अर्थ है बेहतर कृषि उत्पादकता।
  • पूंजीगत व्यय पर निरंतर बल: वर्ष 2023 के पहले पाँच माहों के दौरान, बजटीय लक्ष्य के प्रतिशत के रूप में राज्यों का पूंजीगत व्यय 25% था, जबकि केंद्र के लिये यह 37% था, जो पिछले वर्षों की तुलना में अधिक था और नवीकृत पूंजी सृजन को दर्शाता है।
  • नई कंपनी पंजीकरण: नई कंपनियों का सुदृढ़ पंजीकरण मज़बूत विकास इरादों को दर्शाता है। वर्ष 2023-24 की पहली छमाही में लगभग 93,000 कंपनियां पंजीकृत हुईं, जबकि पाँच वर्ष पूर्व यह संख्या 59,000 थी।
    • यह देखना दिलचस्प है कि नई कंपनियों का औसत दैनिक पंजीकरण वर्ष 2018-19 में 395 से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 622 (58% की वृद्धि) हो गया।
  • भारत की विनिमय दर व्यवस्था का पुनर्वर्गीकरण: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भारत की विनिमय दर व्यवस्था को पुनर्ववर्गीकृत किया है, जहाँ इसे ‘फ्लोटिंग’ के बजाय ‘स्थिर व्यवस्था’ (stabilised arrangement) का लेबल दिया है। यह इस धारणा में बदलाव का संकेत देता है कि भारत अपनी मुद्रा का प्रबंधन कैसे करता है।
    • एक स्थिर व्यवस्था में सरकार विनिमय दर तय करती है, जबकि फ्लोटिंग विनिमय दर प्रणाली में यह विदेशी मुद्रा बाजार में मांग एवं आपूर्ति बलों द्वारा निर्धारित की जाती है।
  • चालू खाता घाटा (CAD) में गिरावट: भारत का CAD वर्ष 2023 की दूसरी तिमाही में घटकर सकल घरेलू उत्पाद का 1% हो गया, जो पिछली तिमाही में 1.1% और वर्ष 2022 में 3.8% रहा था।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2023-24 की सितंबर तिमाही में CAD घटकर 8.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया, जो इसके पूर्व के तीन माह में 9.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा था।
    • वर्ष 2022-23 की दूसरी तिमाही में चालू खाता बैलेंस ने 30.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर का घाटा दर्ज किया था।

वर्ष 2024 में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • वैश्विक आर्थिक एकीकरण: भारत की वृद्धि न केवल घरेलू कारकों से निर्धारित होती है बल्कि वैश्विक विकास से भी प्रभावित होती है। इसलिये, बढ़ती भू-राजनीतिक घटनाएँ भारत के विकास के लिये खतरा सिद्ध हो सकती हैं।
    • बढ़ते भू-आर्थिक विखंडन और अति-वैश्वीकरण (hyper-globalisation) की मंदी के परिणामस्वरूप आगे फ्रेंड-शोरिंग (friend-shoring) और ऑनशोरिंग (onshoring) की स्थिति बन सकती है, जिनका पहले से ही वैश्विक व्यापार और अनुक्रमिक वैश्विक विकास पर प्रभाव पड़ रहा है।
  • ऊर्जा सुरक्षा बनाम ऊर्जा संक्रमण: ऊर्जा सुरक्षा एवं आर्थिक विकास बनाम जारी ऊर्जा संक्रमण के बीच एक जटिल ‘ट्रेड-ऑफ’ की स्थिति मौजूद है। भू-राजनीतिक, प्रौद्योगिकीय, राजकोषीय, आर्थिक और सामाजिक आयामों से जुड़े इस मुद्दे पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।
    • ऊर्जा लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये अलग-अलग देशों द्वारा की गई नीतिगत कार्रवाइयों का अन्य अर्थव्यवस्थाओं पर ‘स्पिल-ओवर’ प्रभाव पड़ सकता है।
  • AI से जुड़ी चुनौतियाँ: AI का उदय भी एक बड़ी चुनौती है, विशेष रूप से सेवा क्षेत्र में, जैसा कि IMF के एक पेपर में उजागर किया गया है और भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) की रिपोर्ट में भी यह बात प्रस्तुत की गई है।
    • IMF पेपर में अनुमान लगाया गया कि 40% वैश्विक रोज़गार AI के प्रभाव में है, जहाँ विस्थापन के जोखिमों के साथ-साथ पूरकता के लाभ भी शामिल हैं।
  • बढ़ती मुद्रास्फीति: सरकार के सामने एक और बड़ी चुनौती व्यापक अर्थव्यवस्था पर बढ़ती मुद्रास्फीति का प्रभाव है।
    • मुद्रास्फीति श्रम आपूर्ति एवं मांग को बदलकर विकास को प्रभावित करती है और इस प्रकार उस क्षेत्र में कुल रोज़गार को कम करती है जो बढ़ते रिटर्न के अधीन है। रोज़गार के स्तर में कमी से पूंजी की सीमांत उत्पादकता में कमी आएगी।
  • कुशल कार्यबल की आवश्यकता: उद्योग के लिये प्रतिभाशाली एवं उचित रूप से कुशल कार्यबल की उपलब्धता सुनिश्चित करना, सभी स्तरों पर स्कूलों में आयु-उपयुक्त अधिगम प्रतिफल (learning outcomes) और एक स्वस्थ एवं सेहतमंद आबादी महत्त्वपूर्ण नीतिगत प्राथमिकताएँ हैं, जो आने वाले वर्षों में एक चुनौती बनी रहेगी। एक स्वस्थ, शिक्षित और कुशल आबादी आर्थिक रूप से उत्पादक कार्यबल को बढ़ाती है।
    • ‘व्हीबॉक्स नेशनल एम्प्लॉयबिलिटी टेस्ट’ (Wheebox National Employability Test) के निष्कर्षों के अनुसार अंतिम-वर्ष और पूर्व-अंतिम-वर्ष के छात्रों की रोज़गार क्षमता प्रतिशत (employable percentage) वर्ष 2014 में 33.9% से बढ़कर वर्ष 2024 में 51.3 प्रतिशत हो गई है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
  • भू-राजनीतिक तनाव: मौजूदा समय में देश के लिये उच्च निर्यात को बनाए रखना आसान नहीं होगा क्योंकि लाल सागर में हाल की घटनाओं सहित लगातार भू-राजनीतिक तनाव के कारण वर्ष 2023 में वैश्विक व्यापार में धीमी वृद्धि हुई है।
    • ईरान समर्थित आतंकवादी समूह हौथी (Houthi) के हमले ने भारत सहित कई देशों को अपने माल को संकटग्रस्त मार्गों से दूर लंबे और महंगे मार्गों पर मोड़ने के लिये विवश कर दिया है।
    • कुछ अनुमानों में कहा गया है कि लाल सागर में संकट के कारण चालू वित्त वर्ष में भारत का निर्यात 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक कम हो सकता है।

वर्ष 2024 में मज़बूत आर्थिक विकास के लिये कौन-से सुधार आवश्यक हैं?

  • राजकोषीय समेकन की ओर आगे बढ़ना: वर्ष 2022-23 में भारत का सामान्य सरकारी ऋण-जीडीपी अनुपात (debt to GDP ratio) जीडीपी का 82% था, जहाँ ब्याज भुगतान कुल व्यय का लगभग 17% था। इससे अधिक उत्पादक सरकारी व्यय के लिये सीमित गुंजाइश ही बचती है। इसलिये, यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि सरकार राजकोषीय समेकन पर ध्यान केंद्रित करती रहे और एक संवहनीय ऋण प्रक्षेप पथ की ओर आगे बढ़े।
    • मज़बूत प्रत्यक्ष कर संग्रह और RBI एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से उच्च लाभांश हस्तांतरण से इस वर्ष निम्न विनिवेश की भरपाई होने की संभावना है।
    • कर में स्वस्थ उछाल के साथ, वर्ष 2024-25 के लिये 5.3% के बजटीय राजकोषीय घाटे का लक्ष्य अपेक्षित है क्योंकि सरकार वर्ष 2025-26 के लिये 4.5% के राजकोषीय घाटे को प्राप्त करने के पथ पर आगे बढ़ रही है।
  • पूंजीगत व्यय (Capex) पर फोकस बनाए रखना: विकास पर पूंजीगत व्यय के मज़बूत गुणक प्रभाव को देखते हुए आगामी वर्षों में पूंजीगत व्यय पर फोकस बनाये रखना चाहिये। आधारभूत संरचना पर निरंतर ध्यान बनाये रखने के साथ पूंजीगत व्यय के 10% बढ़कर लगभग 11 ट्रिलियन रुपए होने की उम्मीद है।
    • महामारी के बाद सरकार ने विकास को गति देने के साधन के रूप में पूंजीगत व्यय का लगातार उपयोग किया है। वर्ष 2023-24 में सरकारी पूंजीगत व्यय और जीडीपी अनुपात को बढ़ाकर 3.4% करने का बजटीय लक्ष्य रखा गया।
    • पिछले दो वर्षों में सरकार ने पूंजीगत व्यय के लिये राज्य सरकारों को 2.3 ट्रिलियन रुपए के ब्याज मुक्त ऋण के लिये भी बजट प्रावधान किया है।
  • उपभोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता: उपभोग में पुनरुद्धार अपेक्षाकृत कमज़ोर रहा है और यह उच्च-आय वर्ग की ओर झुका हुआ प्रतीत होता है। जबकि वित्त वर्ष 24 में सकल घरेलू उत्पाद (अग्रिम अनुमान के अनुसार) 7.3% की दर से बढ़ने का अनुमान है, उपभोग वृद्धि केवल 4.4% ही अनुमानित है।
    • कमज़ोर बाह्य मांग परिदृश्य को देखते हुए घरेलू मांग में पुनरुद्धार और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है। राजकोषीय सीमाओं से अवगत होते हुए भी, उपभोग मांग को बढ़ाने के उपाय करने की आवश्यकता है।
    • उदाहरण के लिये, पेट्रोल/डीजल पर उत्पाद शुल्क में 2-3 रुपए प्रति लीटर की छोटी कटौती से खपत को कुछ बढ़ावा मिलेगा और राजकोषीय समीकरण को प्रभावित किये बिना मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।
  • मानव पूंजी पर व्यय की वृद्धि: कई यूरोपीय देशों के लिये, सामाजिक सेवाओं पर सरकारी व्यय सकल घरेलू उत्पाद के पाँचवें हिस्से से अधिक है। यह देखते हुए कि भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा इन सेवाओं के लिये सरकार पर निर्भर है, इन सेवाओं पर व्यय बढ़ाना महत्त्वपूर्ण है।
    • भारत एक ऐसे समय बड़ी कार्यशील-आयु आबादी का लाभ उठा सकने की अनूठी स्थिति में है, जब अधिकांश अर्थव्यवस्थाएँ वृद्ध होती कार्यशील आबादी की समस्या से जूझ रही हैं। हालाँकि, अर्थव्यवस्था के लिये इस जनसांख्यिकीय लाभांश का उपयोग कर सकने के लिये सरकार को मानव पूंजी में निवेश करना होगा।
    • इसके लिये स्वास्थ्य, शिक्षा और कौशल पर वृहत व्यय की आवश्यकता है ताकि कार्यशील-आयु आबादी सार्थक रूप से नियोजित होने के लिये तैयार हो सके।
  • कृषि और ग्रामीण क्षेत्र पर ध्यान देना: ग्रामीण भारत में देश की 65% आबादी निवास करती है और कृषि क्षेत्र पर व्यापक निर्भरता रखती है। सकल मूल्यवर्द्धित (GVA) के संदर्भ में भारत की कृषि उत्पादकता चीन की तुलना में एक तिहाई और अमेरिका की तुलना में लगभग 1% है। क्षेत्र में उत्पादकता में सुधार के उपायों से ग्रामीण आय में सुधार लाने में मदद मिलेगी।
    • नवीनतम प्रौद्योगिकी को अपनाने और ग्रामीण अवसंरचना को बढ़ावा देने के माध्यम से ऐसा किया जा सकता है। ग्रामीण कार्यबल को उचित कौशल प्रदान करने और उन्हें विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्रों में जाने में सक्षम बनाने से कृषि क्षेत्र पर ग्रामीण कार्यबल की बड़ी निर्भरता को कम करने में भी मदद मिलेगी।
  • समसामयिक मुद्दों पर ध्यान देना: व्यवसायों को फलने-फूलने के लिये एक सक्षम वातावरण प्रदन करना, पर्यावरण से संबंधित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना और समाज के हाशिये पर स्थिति वर्ग का उत्थान करना, कुछ अन्य मुद्दे हैं जिन पर पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिये।
    • यह उपयुक्त समय है कि विकास की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित किया जाए ताकि सुनिश्चित हो कि विकास समतामूलक, संवहनीय और हरित हो।

निष्कर्ष:

पहले अग्रिम जीडीपी अनुमान में भारतीय अर्थव्यवस्था में 7.3% की मज़बूत वृद्धि का अनुमान लगाया गया है, जो वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद पहले के पूर्वानुमानों से अधिक है। सरकार की राजकोषीय नीतियों ने, महामारी-केंद्रित कल्याण से सार्वजनिक निवेश की ओर आगे बढ़ते हुए, आर्थिक क्षमता में वृद्धि की है, जो निवेश में वृद्धि के रूप में परिलक्षित होती है।

हालाँकि, राजकोषीय समेकन के लिये पूंजीगत व्यय में बजटीय समर्थन को मध्यम करने की आवश्यकता है। खाद्य मुद्रास्फीति का प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होना और मैक्रोइकॉनोमिक बुनियादी सिद्धांतों को बनाए रखना निरंतर विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है, जो नीतिनिर्माताओं के लिये एक चुनौतीपूर्ण लेकिन अनिवार्य कार्य है।

The document The Hindi Editorial Analysis- 3rd February 2024 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC is a part of the UPSC Course Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly.
All you need of UPSC at this link: UPSC
2212 docs|810 tests

Top Courses for UPSC

2212 docs|810 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

Extra Questions

,

Exam

,

Semester Notes

,

Weekly & Monthly - UPSC

,

Viva Questions

,

mock tests for examination

,

MCQs

,

Free

,

Summary

,

practice quizzes

,

Important questions

,

past year papers

,

shortcuts and tricks

,

The Hindi Editorial Analysis- 3rd February 2024 | Current Affairs (Hindi): Daily

,

study material

,

Weekly & Monthly - UPSC

,

The Hindi Editorial Analysis- 3rd February 2024 | Current Affairs (Hindi): Daily

,

ppt

,

Previous Year Questions with Solutions

,

The Hindi Editorial Analysis- 3rd February 2024 | Current Affairs (Hindi): Daily

,

Weekly & Monthly - UPSC

,

video lectures

,

pdf

,

Sample Paper

,

Objective type Questions

;