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मनोविश्लेषण: मन की जटिलताओं को उजागर करना और अभिप्रेरणाओं को समझने में इसकी भूमिका


संदर्भ -

भारतीय संसद की हालिया सुरक्षा कमजोरियों के पीछे के उद्देश्यों का आकलन करने में मनोविश्लेषण का प्रयोग एक बार फिर से लगातार सुर्खियों में है। इस अधोलिखित व्यापक अन्वेषण में, हम मनोविश्लेषण की उत्पत्ति, इसके मूलभूत सिद्धांतों और समकालीन मानसिक स्वास्थ्य प्रथाओं में इसकी प्रासंगिकता पर चर्चा करेंगे।

The Hindi Editorial Analysis- 3rd January 2024 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC

मनोविश्लेषण की उत्पत्ति

  • मनोविश्लेषण, ऑस्ट्रिया के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक सिगमंड फ्रायड द्वारा सृजित एक शब्द है, जो लंबे समय से जिज्ञासा और अन्वेषण का विषय रहा है। मनोविज्ञान, मनोचिकित्सा की पहली और आधुनिक पश्चिमी पद्धति के रूप में विकसित हुआ है। यह दर्शनशास्त्र, प्राकृतिक विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान के अंतर्गत तंत्रिका विज्ञान, मनोरोग विज्ञान में हुई प्रगति से प्रभावित होकर विकसित हुआ है।
  • यद्यपि मनोविश्लेषण शब्द की व्यापक परिभाषा सन 1886 में पहली बार सामने आई जब फ्रायड ने चिकित्सक जोसेफ ब्रेउर के साथ मिलकर "हिस्टीरिया" से ग्रसित रोगियों के इलाज पर ध्यान केंद्रित किया। इस प्रारंभिक दृष्टिकोण; जिसे "बातचीत का इलाज (The Talking Cure)" के रूप में जाना जाता है, ने व्यक्तियों को खुद पर चर्चा करने के लिए प्रोत्साहित किया। इस इलाज से लम्बे समय से मन के भीतर दबे हुए दर्दनाक अनुभवों को उजागर किया जाता है और मनोविकार के लक्षणों को कम किया जाता है।
  • फ्रायड के इसी अभूतपूर्व कार्य ने एक मनोवैज्ञानिक विश्वदृष्टि की नींव रखी, जिसमें उन सभी विकारों का समाधान करने की कोशिश की गई जो अन्य चिकित्सकों को चुनौतीपूर्ण लगती है।

अचेतन मन (The Unconscious Mind):

मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत के केंद्र में अचेतन मन की अवधारणा व्याप्त है; जहां यादें, प्रभाव और प्रवृत्तियां उनकी खतरनाक प्रकृति के कारण छिपी/गुप्त रहती हैं। फ्रायड के इस मॉडल ने इड, इगो और सुपरइगो को क्रमशः सहज व्यवहार, तर्कसंगतता और आंतरिक-सामाजिक मानदंडों का प्रतिनिधित्व करते हुए चित्रित किया। जबकि कुछ समकालीन मनोविश्लेषक इस मॉडल को चुनौती देते हैं और मन को कई आत्म-अवस्थाओं से बना मानते हैं। अतः वर्तमान में अचेतन मन की अवधारणा मनोविश्लेषण में एक महत्वपूर्ण विषय बनी हुई है।

कल्पनाएँ, बचाव और प्रतिरोध:

फ्रायड ने माना कि मानवीय कल्पनाएँ सुरक्षा सुनिश्चित करने से लेकर आत्मसम्मान को विनियमित करती हैं और दर्दनाक अनुभवों पर नियंत्रण पाने के लिए सभी मानसिक कार्य करती हैं। मनोविश्लेषण में इन कल्पनाओं की जांच और व्याख्या करना आवश्यक हो जाता है, क्योंकि माना जाता है कि ये सभी कारक मनुष्य के व्यवहार को प्रेरित करती हैं। रक्षा तंत्र, जैसे प्रक्षेपण, प्रतिक्रिया और युक्तिकरण, अंतर्मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाएं हैं जो सचेत जागरूकता द्वारा व्यक्तियों को विचारों और भावनाओं से बाहर लाकर भावनात्मक दर्द से बचने में सहायता करती हैं। प्रतिरोध की अवधारणा, जिसे फ्रायड ने तब पहचाना जब मरीज इस प्रकार की चिकित्सा में शामिल होने के अनिच्छुक थे और इसी कारकों ने मुक्त सहयोग की तकनीक को जन्म दिया, जिससे मरीजों को स्व-अभिवेचन (सेंसरशिप) के बिना अपने विचार व्यक्त करने की अनुमति मिली।

स्थानांतरण और प्रतिसंक्रमण:

फ्रायड ने स्थानांतरण की अवधारणा भी पेश की है, जिसमें मनोविकार के मरीज अपने पिछले घटनाओं के आधार पर चिकित्सक को इलाज के लिए अभिप्रेरित करते हैं। यह घटना व्यक्तियों को वर्तमान व्यवहार पर प्रतिकूल लेकिन, पिछले अनुभवों के प्रभावों के बारे में अंतर्दृष्टि प्राप्त करने का अवसर प्रदान करती है। इसके अलावा फ्रायड ने संक्रमण को कम करने के लिए चिकित्सकों के महत्व पर जोर दिया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने प्रतिसंक्रमण को स्वीकार करते हुए यह भी सुझाव दिया कि चिकित्सकों को कई प्रकार के अचेतन संघर्ष करने पड़ सकते हैं, जिसके लिए व्यक्तिगत पर्यवेक्षण या आत्म-विश्लेषण की आवश्यकता होती है।

एक चिकित्सीय उपकरण के रूप में मनोविश्लेषण:

फ्रायड के प्रयोग में अक्सर सपनों की व्याख्या करना, उन्हें इच्छा पूर्ति का रूप मानना आदि शामिल होता था। जबकि समकालीन मनोचिकित्सक स्वप्न व्याख्या की केंद्रीयता पर असहमत हो सकते हैं, मनोविश्लेषण का व्यापक लक्ष्य अचेतन मन को सचेत करना है। फ्रायड का यह भी मानना था, कि व्यक्ति अपने व्यवहार के कारणों के बारे में स्वयं को भ्रमित करते हैं, जिससे उनकी पसंद सीमित हो जाती है। मनोविश्लेषकों का मानना है कि चिकित्सीय संबंध स्वयं के व्यवहार परिवर्तन के लिए एक तंत्र के रूप में कार्य करता है। साथ ही साथ एक नया संबंधपरक अनुभव प्राप्त करके, मनोचिकित्सक पिछले रिश्तों द्वारा आकार दिए गए सभी अनुपयुक्त मॉडल को चुनौती दे सकते हैं।

पारंपरिक बनाम समकालीन मनोविश्लेषण:

पारंपरिक मनोविश्लेषण में आमतौर पर प्रति सप्ताह चार से छह सत्र शामिल होते हैं, जो वर्षों तक चलते हैं। इस गहन दृष्टिकोण का उद्देश्य व्यक्तित्व कार्यप्रणाली में होने वाले मूलभूत परिवर्तनों को बढ़ावा देना है। हालाँकि, समकालीन मनोविश्लेषक दीर्घकालिक गहन उपचार की चुनौतियों को पहचानते हैं और सप्ताह में एक या दो बार होने वाले अल्पकालिक परामर्श की वकालत करते हैं। जबकि सीमित लक्षण अल्पावधि में बदल सकते हैं और व्यक्तित्व परिवर्तनों के लिए विस्तारित अन्वेषण की आवश्यकता होती है।

संसद सुरक्षा उल्लंघन मामले में मनोविश्लेषण का अनुप्रयोग:

संसद सुरक्षा उल्लंघन की घटना में मनोविश्लेषण के हालिया अनुप्रयोग पर दिल्ली पुलिस ने उजागर किया कि आरोपी व्यक्तियों ने अपने उद्देश्यों को उजागर करने के लिए एक सरकारी संस्थान में मनोविश्लेषण कराया। इस संदर्भ में मनोविश्लेषण उन अचेतन प्रेरणाओं को समझने के लिए एक उपकरण के रूप में कार्य करता है जिनके कारण ऐसे कार्य हुए होंगे। अतः व्यक्तियों की कल्पनाओं और संभावित प्रतिरोध की खोज करके, मनोविश्लेषण सुरक्षा उल्लंघन के बचाव प्रक्रिया में योगदान देने वाले अंतर्निहित मनोवैज्ञानिक कारकों पर प्रकाश डाल सकता है।

निष्कर्ष:

मनोविश्लेषण, अपनी ऐतिहासिक तर्क-वितर्कों के बावजूद, वर्तमान मानव व्यवहार और प्रेरणाओं को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। फ्रायड के साथ इसकी उत्पत्ति से लेकर समकालीन प्रसंग में इसके विकास तक, किये गए सभी मनोविश्लेषण मन की जटिलताओं पर एक अद्वितीय दृष्टिकोण प्रदान करता है। जैसा कि संसद सुरक्षा उल्लंघन मामले में प्रदर्शित किया गया है, इसका अनुप्रयोग व्यक्तिगत चिकित्सा से परे फोरेंसिक विश्लेषण तक विस्तारित है, जो मानवीय कार्यों को संचालित करने वाली अचेतन शक्तियों में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। इस प्रकार मानसिक स्वास्थ्य प्रथाओं के लगातार बदलते परिदृश्य में, मनोविश्लेषण मानव की जटिलताओं को सुलझाने के लिए एक मूल्यवान उपकरण बना हुआ है।

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FAQs on The Hindi Editorial Analysis- 3rd January 2024 - Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC

1. मनोविश्लेषण क्या है और इसका महत्व क्या है?
Ans. मनोविश्लेषण मन की जटिलताओं को उजागर करने और अभिप्रेरणाओं को समझने का एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। यह हमें अपने मन के गहराई में छिपी समस्याओं को समझने और समाधान करने में मदद करता है।
2. मन की जटिलताएं क्या हो सकती हैं?
Ans. मन की जटिलताएं विभिन्न प्रकार की हो सकती हैं, जैसे कि चिंता, तनाव, दुख, आत्मविश्वास की कमी, संदेह, भय, वासनाएं आदि। ये सभी मन के भीतर उठने वाली समस्याएं हो सकती हैं।
3. मनोविश्लेषण क्या तरीकों के द्वारा किया जा सकता है?
Ans. मनोविश्लेषण कई तरीकों के द्वारा किया जा सकता है। कुछ प्रमुख तरीके हैं ध्यान, ध्यान विधियाँ, स्वाध्याय, अध्ययन, मनोमध्यम, आत्म-विचार, मन की निगरानी आदि। ये सभी तरीके मन की जटिलताओं को उजागर करने और समझने में मदद करते हैं।
4. मनोविश्लेषण क्यों महत्वपूर्ण है?
Ans. मनोविश्लेषण महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे हम अपने मन की जटिलताओं को समझते हैं और उन्हें समाधान करने के लिए उपाय ढूंढते हैं। यह हमें अपने आप को बेहतर ढंग से समझने और स्वयं को विकसित करने में मदद करता है।
5. मनोविश्लेषण का उदाहरण दें।
Ans. एक उदाहरण मनोविश्लेषण का है कि जब किसी व्यक्ति को चिंता या तनाव होता है, तो वह अपने मन की गहराई में जाकर उसकी वजह और संबंधित सिद्धांतों को विश्लेषण कर सकता है। इस तरीके से वह अपनी चिंता या तनाव का कारण समझ सकता है और उसे दूर करने के लिए उपाय ढूंढ सकता है।
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