UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly  >  The Hindi Editorial Analysis - 4th July 2022

The Hindi Editorial Analysis - 4th July 2022 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

संप्रभु हरित बॉण्ड


चर्चा में क्यों?

पिछले वर्ष नवंबर में आयोजित COP26 में भारत के प्रधानमंत्री ने वर्ष 2070 तक ‘शुद्ध शून्य’ (Net Zero) अर्थव्यवस्था प्राप्त कर लेने के भारत के विज़न और प्रतिबद्धता को प्रकट किया था। यह रणनीतिक दिशा भारत को हरित संक्रमण (Green Transition) में विकासशील विश्व का नेतृत्व करने का अवसर प्रदान करती है।

  • त्वरित नीति समर्थन के साथ भारत ने ऐसे मूल्य बिंदुओं पर सौर ऊर्जा बाज़ार के निर्माण का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया है जिसे विकासशील देश वहन कर सकते हैं। ‘संप्रभु हरित बॉण्ड’ (Sovereign Green Bonds- SGB) जारी करना एक ऐसा ही सामयिक विचार है।
  • भारत सरकार ने इस वर्ष पहली बार संप्रभु हरित बॉण्ड जारी करने का प्रस्ताव रखा है। इस संबंध में वित्त मंत्री ने हरित अवसंरचना के लिये संसाधन जुटाने हेतु वर्ष 2022-23 के बजट में ‘सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड जारी करने की सरकार की मंशा की घोषणा की है।
  • इससे प्राप्त धन को सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाओं में लगाया जाएगा जो अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को कम करने में मदद करती हैंपिछले वर्ष नवंबर में आयोजित COP26 में भारत के प्रधानमंत्री ने वर्ष 2070 तक ‘शुद्ध शून्य’ (Net Zero) अर्थव्यवस्था प्राप्त कर लेने के भारत के विज़न और प्रतिबद्धता को प्रकट किया था। यह रणनीतिक दिशा भारत को हरित संक्रमण (Green Transition) में विकासशील विश्व का नेतृत्व करने का अवसर प्रदान करती है।
  • त्वरित नीति समर्थन के साथ भारत ने ऐसे मूल्य बिंदुओं पर सौर ऊर्जा बाज़ार के निर्माण का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया है जिसे विकासशील देश वहन कर सकते हैं। ‘संप्रभु हरित बॉण्ड’ (Sovereign Green Bonds- SGB) जारी करना एक ऐसा ही सामयिक विचार है।
  • भारत सरकार ने इस वर्ष पहली बार संप्रभु हरित बॉण्ड जारी करने का प्रस्ताव रखा है। इस संबंध में वित्त मंत्री ने हरित अवसंरचना के लिये संसाधन जुटाने हेतु वर्ष 2022-23 के बजट में ‘सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड' जारी करने की सरकार की मंशा की घोषणा की है।
  • इससे प्राप्त धन को सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाओं में लगाया जाएगा जो अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को कम करने में मदद करती है

क्या है ग्रीन बांड?


  • हरित बांड एक निश्चित आय साधन है जो विशेष रूप से विशिष्ट जलवायु-संबंधी या पर्यावरण परियोजनाओं का समर्थन करता है।
  • ग्रीन बांड किसी भी संप्रभु संस्था, अंतर-सरकारी समूहों या गठबंधनों और कॉरपोरेट्स द्वारा जारी किए गए बांड हैं। जिसका उद्देश्य बांड की आय को सतत पर्यावरणीय परियोजनाओं को पूर्ण करने के लिए किया जाता है। निवेशकों को ग्रीनबांड में निवेश के लिए प्रोत्साहित करने ले लिए सरकार इस निवेश पर टैक्स छूट का प्रावधान ला सकती है।
  • विश्व बैंक हरित बांड का एक प्रमुख जारीकर्ता है। विश्वबैंक द्वारा 2008 से अब तक 14.4 बिलियन डॉलर मूल्य के 164 ग्रीन बांड जारी किए गए हैं।
  • क्लाइमेट बॉन्ड इनिशिएटिव के अनुसार, 2020 में, कुल 270 बिलियन डालर का ग्रीन बॉन्ड जारी किया गया। 2015 के बाद से ग्रीन बांड का संचयी निर्गम $1 ट्रिलियन से अधिक हो चुका है।

ग्रीन बॉण्ड को प्राप्त संप्रभु/सॉवरेन गारंटी के क्या लाभ हैं?

  • सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड जारी करना सरकारों और नियामकों को जलवायु कार्रवाई और सतत विकास संबंधी मंशा का एक प्रबल संकेत भेजता है।
  • यह घरेलू बाज़ार के विकास को उत्प्रेरित करेगा और संस्थागत निवेशकों को प्रोत्साहन प्रदान करेगा।
  • अंतर्राष्ट्रीयऊर्जा एजेंसी ( International Energy Agency-IEA) ने वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक (WEO) रिपोर्ट, 2021 में अनुमान लगाया है कि शुद्ध-शून्य की प्राप्ति के लिये अतिरिक्त 4 ट्रिलियन डॉलर के व्यय में से 70% विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिये आवश्यक होगा। इस दृष्टिकोण से सॉवरेन जारी किया जाना पूंजी के इन बड़े प्रवाहों को गति देने में सहायता कर सकता है।
  • बॉण्ड पर ग्रीन प्रीमियम 10-20 आधार अंकों का ‘यील्ड डिस्काउंट’ प्रदान करता है जो उन्हें आकर्षक बनाता है।

भारत में ग्रीन बॉन्ड की स्थिति

  • 2007 के आरम्भ से ही भारत ने हरित वित्त पर जोर देना आरम्भ कर दिया था। दिसंबर 2007 में, रिज़र्व बैंक ने "कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व, सतत विकास और गैर-वित्तीय रिपोर्टिंग- बैंकों की भूमिका" पर एक अधिसूचना जारी की। इस अधिसूचना में ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के सापेक्ष सतत विकास के महत्व का उल्लेख किया गया।
  • 2008 में, जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी) को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए व्यापक नीति ढांचे की रूपरेखा तैयार करने की दृष्टि से तैयार किया गया।
  • 2011 में वित्त मंत्रालय के अंतर्गत जलवायु परिवर्तन वित्त इकाई (सीसीएफयू) का गठन किया गया। यह संस्था भारत में हरित वित्त के लिए एक समन्वयक एजेंसी के रूप में उत्तरदायी संस्था है।
  • 2012 के बाद से हरित वित्त की स्थिति पर विशेष ध्यान दिया गया। 2012 से भारतीय सुरक्षा और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने बीएसई और एनएसई में बाजार पूंजीकरण के आधार पर शीर्ष 100 सूचीबद्ध संस्थाओं के लिए वार्षिक व्यावसायिक जिम्मेदारी रिपोर्ट प्रकाशित करना अनिवार्य कर दिया है।
  • भारत ने 2015 से ग्रीन बॉन्ड जारी करना शुरू किया। भारत का पहला ग्रीन बॉन्ड 2015 में यस बैंक लिमिटेड द्वारा लॉन्च किया गया था। इन बॉन्ड के द्वारा पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा, बायोमास और जल विद्युत जैसे अक्षय और स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं में बुनियादी ढांचा के वित्तपोषण के लिए लगभग 5 बिलियन रुपये जुटाए गए।
  • मई 2017 में, सेबी ने प्रकटीकरण आवश्यकताओं को निर्दिष्ट करते हुए ग्रीन बॉन्ड जारी करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए। इसके अतिरिक्त, कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) पर प्रगति की अनिवार्य रिपोर्टिंग का प्रावधान लागू किया।
  • अक्टूबर 2017 में, कॉरपोरेट गवर्नेंस पर समिति की रिपोर्ट में यह प्रस्तावित किया गया कि वर्ष में कम से कम एक बार रणनीति, बजट, बोर्ड मूल्यांकन, जोखिम प्रबंधन, ईएसजी और उत्तराधिकार योजना पर चर्चा करने के लिए निदेशक मंडल की बैठक की जाएगी। भारत के कई परियोजनाओं पर हरित वित्त के अंतर्गत सहायता दी गई है।
  • 12 फरवरी 2020 तक भारत द्वारा कुल 16.3 बिलियन अमेरिकी डालर का ग्रीन बांड जारी किया गया था। 1 जनवरी 2018 से भारत ने लगभग 8 बिलियब अमेरिकी डालर के ग्रीनबांड जारी किये। जो भारतीय वित्त बाजार में जारी किये गए सकल बांड का 0.7% था। हालाँकि 2018 के उपरांत इशू हुए कुल बांड में ग्रीन बांड का अनुपात कम हो गया।

भारत में ग्रीन बॉन्ड वित्तीयन के समक्ष चुनौतियाँ 

  • सामान्य जागरूकता में कमी: परंपरागत स्रोतों से हरित वित्त और सतत विकास के बारे में जागरूकता का आकलन करने में डेटा का अभाव है। इस सन्दर्भ में गूगल सर्च के आंकड़ो का उपयोग किया जाता है। गूगल सर्च से संख्या के आधार पर किसी दिए गए विषय पर जनता की रुचि के ट्रेंड को समझने में सहायता मिलती है। गूगल सर्च पर आधारित साक्ष्य हरित वित्त के प्रति जागरूकता में वृद्धि और सतत विकास में इसकी भूमिका को समझने में महत्वपूर्ण होते हैं। परन्तु यह एक विश्वशनीय स्रोत नहीं है।
  • उच्च कूपन दर: अन्य बांडो की तुलना में ग्रीन बांड जारी करने की लागत अधिक रहती है। 2015 के उपरांत से 5 से 10 वर्षों की परिपक्वता वाले जारी ग्रीन बॉन्ड के लिए औसत कूपन दर, समान अवधि वाले कॉरपोरेट और सरकारी बॉन्ड की तुलना में अधिक है। यूएस डालर मूल्य वर्ग वाले 10 वर्ष या अधिक परिपक्वता अवधि वाले ग्रीनबांड की कूपन दर कॉर्पोरेट बॉन्ड की तुलना में कम थी। यह उल्लेख किया जा सकता है कि भारत में अधिकांश ग्रीन बॉन्ड बेहतर वित्तीय स्वास्थ्य के साथ, सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों या कॉरपोरेट्स द्वारा जारी किए जाते हैं।
  • सूचना विषमता: विषम जानकारी के कारण ग्रीन बांड को उच्च ऋण लागत की समस्या का सामना करना पड़ता है।
  • क्रेडिट रेटिंग का अभाव: हरित परियोजनाओं और बांडों के लिए क्रेडिट रेटिंग या रेटिंग दिशानिर्देशों का अभाव भी एक बड़ी चुनौती है।

यद्यपि भारत में सार्वजनिक जागरूकता तथा वित्तपोषण विकल्पों में सुधार हुआ है, परन्तु उच्च उधार लागत, पर्यावरणीय अनुपालन में झूट की प्रवृत्ति, हरित ऋण की परिभाषा में बहुलता, दीर्घकालिक तथा अल्पकालिक हरित निवेश में परिपक्वता असामंजस्य के कारण निवेशकों के हित जैसी कई चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं।

 आगे की राह


  • मसाला बॉण्ड:
  • मसाला बॉण्ड (MB) रुपए मूल्यवर्ग के बॉण्ड हैं; इनके माध्यम से भारतीय रुपए में विदेशी बाज़ारों से धन जुटाया जाएगा।
    • विदेशी बाज़ारों में जारी MB जारीकर्ता की मुद्रा जोखिम समस्या का समाधान करेगा और पूंजी के एक बड़े पूल को आकर्षित करेगा।
    • यह देश में विदेशी निवेश को प्रबल करने में मदद करता है क्योंकि यह भारतीय मुद्रा में विदेशी निवेशकों के विश्वास को सुविधाजनक बनाता है।
  • सरकार को हरित और सतत निवेश के अवसरों में सुधार के लिये विभिन्न नीतिगत, नियामक और विकासात्मक कदम उठाने चाहिये।
  • सरकार के पास सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड पर एक नीति होनी चाहिये जो मुद्रा एवं बाज़ारों के चयन, गारंटी एवं ऋण संवर्द्धन, आय/प्राप्ति के उपयोग पर प्राथमिकताओं आदि के संबंध में सभी विचारों को समाहित करती हो।
  • हरित वित्त की पहुँच के व्यापक विस्तार के लिये छोटी फर्मों और असंगठित क्षेत्र में पात्र उपयोगकर्ता बन सकने की क्षमता विकसित करने की आवश्यकता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये आदर्शतः पेरिस समझौते के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय हितधारकों के सहयोग से एक कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिये।
The document The Hindi Editorial Analysis - 4th July 2022 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC is a part of the UPSC Course Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly.
All you need of UPSC at this link: UPSC
2218 docs|810 tests

Top Courses for UPSC

2218 docs|810 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

Objective type Questions

,

Extra Questions

,

Semester Notes

,

Viva Questions

,

study material

,

MCQs

,

ppt

,

pdf

,

The Hindi Editorial Analysis - 4th July 2022 | Current Affairs (Hindi): Daily

,

Weekly & Monthly - UPSC

,

Weekly & Monthly - UPSC

,

Weekly & Monthly - UPSC

,

Summary

,

Free

,

The Hindi Editorial Analysis - 4th July 2022 | Current Affairs (Hindi): Daily

,

Exam

,

shortcuts and tricks

,

Important questions

,

Previous Year Questions with Solutions

,

Sample Paper

,

video lectures

,

past year papers

,

The Hindi Editorial Analysis - 4th July 2022 | Current Affairs (Hindi): Daily

,

mock tests for examination

,

practice quizzes

;