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अभ्यास प्रश्न: सपनों के से दिन | Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan) PDF Download

अभ्यास प्रश्न 

(प्रत्येक 5 अंक)

प्रश्न 1. ‘सपनों के से दिन’ पाठ में पीटी सर की किन चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख किया गया है? वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में स्वीकृत मान्यताओं और पाठ में वर्णित युक्तियों के सम्बन्ध में अपने विचार जीवन मूल्यों की दृष्टि से व्यक्त कीजिए।
उत्तरः 
कठोर पीटी मास्टर-पीटी मास्टर बहुत कठोर था। वह छात्रों को अनुशासन में लाने के लिए बहुत कठोर और क्रूर दण्ड दिया करता था। छात्रों को घुड़की देना, ठुढ्डे मारना, उन पर बाघ की तरह झपटना, उनकी खाल खींचना उसके लिए बाएँ हाथ का खेल था। उसे यह सहन नहीं था कि कोई भी बच्चा कतार से बाहर हो या टेढ़ा खड़ा हो या अपनी पिण्डली खुजलाए। वह ऐसे बच्चों को समझाने की बजाय कठोर दण्ड दिया करता था।
मेरे विचार से, शारीरिक दंड पर रोक लगाना बहुत आवश्यक कदम है। बच्चों को विद्यालय में शारीरिक दंड से नहीं अपितु मानसिक संस्कार द्वारा अनुशासित करना चाहिए। इसके लिए पुरस्कार, प्रशंसा, निंदा आदि उपाय अधिक ठीक रहते हैं। क्योंकि शारीरिक दण्ड के भय से बच्चा कभी भी अपनी समस्या अपने शिक्षक के समक्ष नहीं रख पाता है। उसे सदैव यही भय सताता रहता है कि यदि वह अपने अध्यापक को अपनी समस्या बताएगा, तो उसके अध्यापक उसकी कहीं पिटाई न कर दें जिसके कारण वह बच्चा दब्बू किस्म का बन जाता है। इसके स्थान पर यदि उसे स्नेह से समझाया जाएगा, तो वह सदैव अनुशासित रहेगा और ठीक से पढ़ाई भी करेगा।

प्रश्न 2. ‘सपनों के से दिन’ पाठ के आधार पर बताइए कि बच्चों का खेलकूद में अधिक रुचि लेना अभिभावकों को अप्रिय क्यों लगता था। पढ़ाई के साथ खेलों का छात्र जीवन में क्या महत्त्व है और इससे किन जीवन-मूल्यों की प्रेरणा मिलती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः प्रायः अभिभावक बच्चों की खेलकूद में ज्यादा रुचि लेने पर इसलिए रोक लगाते हैं कि वे चाहते हैं बच्चे ज्यादा-से-ज्यादा पढ़ाई करें। परीक्षा में अच्छे अंक लायें। वे खेलों में समय लगाने को बेकार मानते हैं। उन्हें लगता है कि वे खेलों में ही लगे रहेंगे तो वे पढ़ाई नहीं कर पायेंगे। इससे वे उन्नति नहीं कर पायेंगे।
बच्चों के लिए जितनी पढ़ाई आवश्यक है, उतनी ही आवश्यकता खेल की भी है। खेलों के कारण उनके जीवन में रुचि बढ़ती है। खेलों से मानसिक शक्ति तथा अच्छे स्वास्थ्य का विकास होता है। मन में साहस हिम्मत और बहादुरी आती है। अतः खेल जीवन के लिए जरूरी हैं।

प्रश्न 3. ‘सपनों के से दिन’ पाठ के आधार पर लिखिए कि अभिभावकों की बच्चों की पढ़ाई में रुचि क्यों नहीं थी। पढ़ाई को व्यर्थ समझने में उनके क्या तर्क थे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः अभिभावक अपने बच्चों को पढ़ाना-लिखाना नहीं चाहते थे। यहाँ तक कि परचून वाले दुकानदार और आढ़ती भी अपने बच्चों को बहीखाता लिखना सिखाना काफी समझते थे। उनमें प्रगति की अंधी भूख नहीं थी अतः गाँव के अनेक बच्चे स्कूल नहीं जाते थे और जो जाते थे उन्हें स्कूल जाना अच्छा नहीं लगता था। उनका मानना था कि उनके बच्चे हिसाब किताब करना सीख लें वही काफी है क्योंकि आगे चलकर उन्हें अपना पैतृक व्यवसाय ही तो संभालना है। यही कारण था कि अभिभावकों को अपने बच्चों की पढ़ाई में रुचि नहीं थी और न ही वे उन्हें स्कूल जाने की जिद करते थे और न ही खेलने से रोकते थे।

प्रश्न 4. ‘सपनों के से दिन’ पाठ के आधार पर बताइए कि कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं डालती। उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः बचपन में जब बच्चे अपने मुहल्ले में खेलते हैं। उस मुहल्ले में रहने वाले लोग अलग-अलग प्रांतों व भाषाओं के होते हैं। बच्चों को पहले आपस में एक-दूसरे की भाषा समझ नहीं आती तो वे हँसते हैं। जब वे साथ-साथ खेलते हैं तो धीरे-धीरे उनकी भाषा अपने आप समझ आने लगती है। इससे सिद्ध होता है कि आपसी व्यवहार में कोई भी भाषा बाधा नहीं डालती।

प्रश्न 5. ‘अगली कक्षा में जाने के विचार से बच्चे उत्साहित भी होते थे और उदास भी।’ ‘सपनों के से दिन’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तरः
अगली कक्षा में जाने के विचार से बच्चे उत्साहित होते हैं, क्योंकि उन्हें नई किताबें पढ़ने को मिलती हैं। इन नई किताबों को पढ़ने में उनका मन लगता है। ये नई किताबें ताजगी का अहसास कराती हैं। परन्तु लेखक की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि वह नयी किताबें खरीद पाता, उसे कापियाँ तो नई मिल जाती थीं, परन्तु किताबें उसे अन्य लड़कों द्वारा प्रयुक्त पुरानी ही पढ़नी होती थीं। अतः उसका बालमन उदास हो जाया करता था।

प्रश्न 6. छुट्टियाँ बीतती जातीं तो बच्चों में स्कूल का भय क्यों चढ़ने लगता? ‘सपनों के से दिन’ पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तरः
छुट्टियाँ बीतने लगतीं तो लड़के दिन गिनने लगते। प्रत्येक दिन डर बढ़ता चला जाता। खेल-कूद और तालाब में नहाना भी भूलने लगता। मास्टरों ने छुट्टियों में करने के लिए जो काम दिया था उसका हिसाब लगाने लगते। जैसे-हिसाब के मास्टर जी दो सौ सवाल से कम कभी न देते तो दस सवाल रोज करने से बीस दिन में सवाल पूरे हो जाएँगे। जब ऐसा सोचना शुरू करें तो छुट्टियों का एक महीना बाकी बचता। एक-एक दिन करते दस दिन और बीत जाते। स्कूल की पिटाई का डर और बढ़ने लगता।

प्रश्न 7. ओमा कौन था ? उसकी क्या विशेषता थी ?
अथवा
छात्रों के नेता ‘ओमा’ के सिर की क्या खासियत थी ?
उत्तरः ओमा छात्र नेता था। उसका शरीर विचित्र साँचे में ढला हुआ था। वह ठिगना और हट्टा-कट्टा बालक था, परन्तु उसका सिर बहुत बड़ा था। उसे देखकर यूँ लगता था मानो किसी बिल्ली के बच्चे के माथे पर तरबूज रखा है। उसकी आँखें नारियल जैसी और चेहरा बंदरिया जैसा था। उसका सिर इतना भयंकर था कि वह लड़ाई में सिर की भयंकर चोट करता था। उसकी चोट से लड़ने वाले की पसलियाँ टूट जाती थीं। बच्चे उसके सिर के वार को रेल-बंबा कहते थे। वह स्वभाव से लड़ाका तथा मुँहफट था।

प्रश्न 8. स्कूल की पिटाई का डर भुलाने के लिए लेखक क्या सोचा करता था ? ‘सपनों के से दिन’ पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तरः
स्कूल की पिटाई का डर भुलाने के लिए लेखक सोचा करता था कि जब स्काउटिंग के अभ्यास के दौरान नीली-पीली झंडियाँ, गले में दोरंगे रूमाल केसे अच्छे लगते थे? ऐसा लगता था कि फौज के सिपाही हैं। कभी-कभी पढ़ाई से पीटी साहब का डिसीप्लिन में प्राप्त गुड विल आज भी काम आ रहा है। जब वे शाबाश कहते थे कैसा अच्छा लगता था, चमत्कार-सा लगता था। हैड मास्टर जी बिलकुल सीधे- साधे विपरीत स्वभाव के थे। लेखक को साथियों के साथ मस्ती मारना कैसा सुहावना लगता था ? अब सोचना ही रह गया है।
अनुशासन जीवन को नियमित बनाता है। अब सब कुछ अच्छा लगता है।

प्रश्न 9. ‘सपनों के से दिन’ पाठ में लेखक को स्कूल जाने का उत्साह नहीं होता था, क्यों? फिर भी ऐसी कौन-सी बात थी जिस कारण उसे स्कूल जाना अच्छा लगने लगा? कारण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः ‘सपनों के से दिन’ पाठ में लेखक को बचपन में स्कूल जाना अच्छा नहीं लगता था। क्योंकि उसे कक्षा कार्य करने व अध्यापक द्वारा सिखाए गए सबक कभी याद नहीं होते थे और न ही उसे गृह कार्य करने में रुचि थी। फिर भी स्काउटिंग का अभ्यास करते समय उन्हें स्कूल अच्छा लगने लगता था। जब वे नीली-पीली झंडियाँ लेकर पी टी साहब की सीटी पर या वन-टू-थ्री कहने पर झंडियाँ ऊपर-नीचे या दाएँ-बाएँ करते थे तो उन्हें बहुत अच्छा लगता था। खाकी वर्दी और गले में दोरंगा रूमाल लटकाना भी उन्हें अच्छा लगता था। विशेष रूप में जब पीटी मास्टर उन्हें शाबाशी देते थे तो उन्हें स्कूल बहुत अच्छा लगने लगता था।

प्रश्न 10. फौज में भर्ती करने के लिए अफसरों के साथ नौटंकी वाले क्यों आते थे ? ‘सपनों के से दिन’ पाठ के आधार पर लिखिए। 
उत्तरः उस समय फौज में भरती होने से लोग डरते थे, क्योंकि अंगे्रज बड़ी-बड़ी यातनाएँ देते थे तथा लड़ाई में आगे ही रखते थे। लोगों को फौज में भर्ती करने के लिए कुछ अफसर हमारे गाँव में आते तो उनके साथ कुछ नौटंकी वाले भी हुआ करते थे। वे रात को खुले मैदान में शामियाने लगाकर लोगों को फौज के सुख-आराम, बहादुरी के दृश्य दिखा-दिखाकर आकर्षित किया करते थे। कुछ मसखरे, अजीब सी वर्दियाँ पहने और अच्छे, बड़े फौजी बूट पहनकर गाया करते-
भर्ती हो जा रे रंगरूट, भर्ती हो जा रे.............
अठै मिले सैं टूटे लीटर, उठै मिलेंगे बूट,
भर्ती हो जा रे रंगरूट।
अठै पहन से फटे पुराणे, उठै मिलेंगे सूट
भर्ती हो जा रे, हो जा रे रंगरूट।
इन्हीं बातों से आकर्षित होकर नौजवान फौज में भर्ती के लिए तैयार हो जाते थे।

प्रश्न 11. विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई गई युक्तियों और वर्तमान में स्वीकृत मान्यताओं के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट कीजिए। 
उत्तरः विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पहले उन्हें कठोर यातनाएँ दी जाती थीं। उन्हें ठुड्डों से, बल्लों से खूब पीटा जाता था। नन्हें बच्चों को मुर्गा बनाकर थकाया जाता था। वर्तमान काल में बच्चों को शारीरिक दण्ड नहीं दिया जा सकता। मेरे विचार से, शारीरिक दंड पर रोक लगाना बहुत आवश्यक कदम है। बच्चों को विद्यालय में शारीरिक दंड से नहीं अपितु मानसिक संस्कार द्वारा अनुशासित करना चाहिए। इसके लिए पुरस्कार, प्रशंसा, निंदा आदि उपाय अधिक ठीक रहते हैं। क्योंकि शारीरिक दण्ड के भय से बच्चा कभी भी अपनी समस्या अपने शिक्षक के समक्ष नहीं रख पाता है। उसे सदैव यही भय सताता रहता है कि यदि वह अपने अध्यापक को अपनी समस्या बताएगा तो उसके अध्यापक उसकी कहीं पिटाई न कर दें जिसके कारण वह बच्चा दब्बू किस्म का बन जाता है। इसके स्थान पर यदि उसे स्नेह से समझाया जाएगा तो वह सदैव अनुशासित रहेगा और ठीक से पढ़ाई भी करेगा।

प्रश्न 12. ‘सपनों के से दिन’ पाठ में हैडमास्टर शर्मा जी की बच्चों को मारने-पीटने वाले अध्यापकों के प्रति क्या धारणा थी ? जीवन मूल्यों के संदर्भ में उसके औचित्य पर अपने विचार लिखिए। 
उत्तरः
वे उसे गलत मानते हैं।
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  • ऐसे अध्यापकों के विद्यालय में रहने से विद्यार्थियों में शिक्षा के प्रति अरुचि उत्पन्न होगी।
  • बच्चों का विकास बाधित होगा।
  • बच्चों के मन में अध्यापकों के प्रति अनादर का भाव उठेगा।
  • बच्चे हर समय भयभीत रहेंगे।

(औचित्य के संबंध में बच्चों के विचार स्वीकार करें।)
व्याख्यात्मक हल:
हैडमास्टर शर्मा जी बच्चों को मारने-पीटने वाले अध्यापकों को गलत मानते हैं। उनका विचार है कि ऐसे मास्टरों के कारण विद्यार्थियों में शिक्षा के प्रति अरुचि उत्पन्न होगी तथा बच्चों का विकास बाधित होगा। यही नहीं मार-पीट करने से बच्चों के मन में अध्यापकों के प्रति अनादर का भाव भी पनपेगा, बच्चे हर समय भयभीत रहेंगे अतः विद्यालय में किसी बच्चे के साथ किसी भी अध्यापक को मार-पीट नहीं करनी चाहिए।

प्रश्न 13. ‘सपनों के से दिन’ पाठ के आधार पर पी टी सर की किन्हीं तीन चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः सख्त पीटी मास्टर-पीटी मास्टर बहुत कठोर था। वह छात्रों को अनुशासन में लाने के लिए बहुत कठोर और क्रूर दण्ड दिया करता था। छात्रों को घुड़की देना, ठुढ्डे मारना, उन पर बाघ की तरह झपटना, उनकी खाल खींचना उसके लिए बाएँ हाथ का खेल था। उसे यह सहन नहीं था कि कोई भी बच्चा कतार से बाहर हो या टेढ़ा खड़ा हो या अपनी पिण्डली खुजलाए। वह ऐसे बच्चों को समझाने की बजाय कठोर दण्ड दिया करता था।
अयोग्य अध्यापक-पीटी मास्टर जब फारसी पढ़ाने लगता था तो और भी क्रूर हो उठता था। वह बच्चों को समझाने की बजाय डंडे से काम कराना चाहता था। वह चाहता था कि बच्चे भय के मारे पाठ याद कर लें। जिस पाठ को कक्षा का एक भी बच्चा याद न कर पाया, वह पाठ जरूर या तो कठिन होगा या छात्र अधिक योग्य न होंगे। दोनों ही स्थितियों में मास्टर का पीटना बेतुका काम था। ऐसा व्यक्ति खच्चर तो हाँक सकता है, छात्रों को नहीं पढ़ा सकता।
स्वाभिमानी- पीटी मास्टर का सिद्धांत है कि लड़कों को डाँट-डपट कर रखा जाए। उसकी सोच गलत हो सकती है। परन्तु अपनी नजरों में वह ठीक है। इसलिए चैथी कक्षा के बच्चों को मुर्गा बनाकर कष्ट देना उसे अनुचित नहीं लगता। अतः जब हैड मास्टर उसे कठोर दण्ड देने पर मुअत्तल कर देते हैं तो वह गिड़गिड़ाने नहीं जाता।

प्रश्न 14. मास्टर प्रीतमचंद के व्यक्तित्व और पहनावे को भयभीत करने वाला क्यों कहा है ? ‘सपनों के से दिन’ पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तरः मास्टर प्रीतमचन्द का व्यक्तित्त्व और पहनावा भयभीत करने वाला था। मास्टर प्रीतमचन्द जी को स्कूल के समय में कभी भी हमने मुस्कराते या हँसते न देखा था। उनका ठिगना कद, दुबला-पतला किन्तु गठीला शरीर, माता के दागों से भरा चेहरा तथा बाज-सी तेज आँखें, खाकी वर्दी? चमड़े के चैड़े पंजों वाले बूट, सभी कुछ ही भयभीत करने वाला हुआ करता था। उनके बूटों की ऊँची एड़ियों के नीचे वैसे ही खुर्रियाँ लगी रहतीं, जैसे ताँगे के घोड़े के पैरों में लगी रहती हैं। अगले हिस्से में, पंजों के नीचे मोटे सिरों वाली कील ठुकी होतीं। यदि वे किसी सख्त जगह पर भी चलते तो खुर्रियों और कीलों के निशान वहाँ भी दिखाई देते।

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FAQs on अभ्यास प्रश्न: सपनों के से दिन - Hindi Class 10 (Sparsh and Sanchayan)

1. "सपनों के से दिन" कहानी का मुख्य विषय क्या है?
Ans. "सपनों के से दिन" कहानी का मुख्य विषय मानव जीवन में सपनों और आकांक्षाओं की भूमिका है। यह कहानी यह दर्शाती है कि कैसे सपने व्यक्ति को प्रेरित करते हैं और उसे अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।
2. इस कहानी के प्रमुख पात्र कौन-कौन हैं?
Ans. इस कहानी में मुख्य पात्रों में एक युवा व्यक्ति शामिल है जो अपने सपनों के पीछे भागता है। इसके अलावा, उसके परिवार के सदस्य और मित्र भी हैं, जो उसकी आकांक्षाओं को समझते हैं और उसका समर्थन करते हैं।
3. "सपनों के से दिन" में कौन से मुख्य संदेश दिए गए हैं?
Ans. "सपनों के से दिन" में यह संदेश दिया गया है कि जीवन में सपनों का होना आवश्यक है और उन्हें पूरा करने के लिए मेहनत करनी चाहिए। कहानी यह भी बताती है कि सपनों को साकार करने के लिए कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन संघर्ष करना महत्वपूर्ण है।
4. इस कहानी में संघर्ष का क्या महत्व है?
Ans. संघर्ष का महत्व इस कहानी में बहुत बड़ा है। यह दर्शाता है कि बिना संघर्ष के सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती। पात्रों के संघर्ष उनके विकास और आत्मविश्वास को बढ़ाते हैं, जो उन्हें अपने सपनों को पूरा करने में मदद करते हैं।
5. "सपनों के से दिन" का अंत कैसे होता है?
Ans. "सपनों के से दिन" का अंत सकारात्मक होता है, जहां पात्र अपने सपनों को साकार करने में सफल होते हैं। यह अंत प्रेरणादायक है और पाठकों को यह संदेश देता है कि अगर मेहनत की जाए तो सपने सच हो सकते हैं।
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