UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi  >  अवमूल्यन एवं राशिपातन - पारंपरिक अर्थव्यवस्था

अवमूल्यन एवं राशिपातन - पारंपरिक अर्थव्यवस्था | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

अर्थ

  • अत्यधिक ऊंचा मूल्य स्तर होने पर निर्यात घटने लगते हैं। निर्यात को यथावत् बनाये रखने के लिए मुद्रा का अवमूल्यन करना आवश्यक हो जाता है। 
  • जब विदेशी व्यापार में आयात-निर्यात लाइसेंसों का दुरूपयोग, तस्कर व्यापार, आयात में अधिक राशि के बीजक बनाना आदि अवांछनीय क्रियाएं पनप जाती हैं तो इन्हें दूर करने के लिए अवमूल्यन करना आवश्यक हो जाता है। 
  •  देश की अर्थव्यवस्था के आधार को सुदृढ़ बनाने के लिए भी अवमूल्यन आवश्यक समझा जाता है। 
  • आयात प्रतिस्थापन को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से भी अवमूल्यन किया जाता है, क्योंकि इससे आयात की जाने वाली वस्तुएं मंहगी हो जाने पर आयात प्रतिस्थापन को बल मिलेगा।
  • पंचवर्षीय योजनाओं को सफल बनाने के लिए विदेशी सहायता आवश्यक होता है। 
  • जब बाहरी आक्रमण या सूखा, अकाल आदि स्थिति से अर्थव्यवस्था त्रास्त हो चुकी हो, तो ऐसी स्थिति में योजनाओं के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अवमूल्यन करना आवश्यक हो जाता है।

उद्देश्य

  • भुगतान संतुलन की प्रतिकूलता को कम करने के उद्देश्य से अवमूल्यन किया जाता है। अवमूल्यन से आयातकत्र्ता को विदेशी वस्तुओं का भुगतान अधिक मुद्रा में करना पड़ता है, इससे आयात हतोत्साहित होता है।
  • यदि सरकार यह समझती है कि मुद्रा का मूल्य अधिक होने के कारण निर्यातों में पर्याप्त वृद्धि नहीं हो रही तो अवमूल्यन के माध्यम से निर्यात में वृद्धि करने का प्रयास किया जाता है। 
  • इससे सस्ते मूल्यों पर विदेशों में माल बेचा जा सकता है और निर्यातों को प्रोत्साहन मिलता है।
  • अवमूल्यन के माध्यम से मुद्रा को साम्य विनिमय दर के समीप लाया जाता है। जिसके फलस्वरूप डाॅलर (दुर्लभ मुद्रा) की कालाबाजारी कम हो जाती है। 
  • विनिमय दर साम्य दर के जितनी ही समीप होगी, दुर्लभ मुद्रा की कालाबाजारी उतनी ही कम होगी। इसी प्रकार अवमूल्यन से बीजक में कम मूल्य दिखाने की प्रवृत्ति को भी समाप्त किया जा सकता है।
  • कभी-कभी कोई देश राशिपातन की नीति द्वारा दूसरे देश में कम मूल्य पर वस्तुएं बेचने का प्रयास करता है। ऐसी स्थिति में अवमूल्यन द्वारा देश की जनता को ऐसे देश की वस्तुएं खरीदने से हतोत्साहित किया जा सकता है।
  • मुद्रा का अवमूल्यन करने के फलस्वरूप विदेशी निवेशकर्ताओं को पूंजी लगाने की प्रेरणा मिलती है। इससे अवमूल्यन करने वाले देशों में विदेशी पूंजी की क्रय शक्ति में वृद्धि हो जाती है।

सफलता की शर्तें

  • यदि अवमूल्यन के फलस्वरूप आयातित वस्तुओं की मांग में आनुपातिक कमी नहीं होती तो कुल आयात बिल बढ़ जाता है। अथवा हम कह सकते हैं कि अवमूल्यन के फलस्वरूप देश में आयात में तभी कमी होगी जब आयातित वस्तुओं की मांग अत्यधिक लोचदार हो। 
  • रुपये का आन्तरिक मूल्य कम होने अथवा दुर्लभ मुद्रा (डाॅलर) के मूल्य में वृृद्धि के साथ-साथ आयातित वस्तुओं की मांग में अनुपात से अधिक कटौती होने पर ही अवमूल्यन सफल माना जाता है।
  • अवमूल्यन देश के प्रतिकूल भुगतान शेष को ठीक करने में तभी सहायक सिद्ध हो सकता है, जबकि निर्यातित वस्तुओं की मांग लोच इकाई से अधिक हो और तभी अवमूल्यन का लाभ भी प्राप्त हो सकेगा।
  • यदि अवमूल्यन के फलस्वरूप उत्पादन लागत व मूल्यों में वृद्धि हो जाए तो उसके वांछित परिणाम नहीं निकल पायंेगे। इसीलिए कहा जाता है कि अवमूल्यन के बाद भी आंतरिक मूल्य अपरिवर्तित रहने पर ही निर्यातों  में अपेक्षित वृद्धि होगी।
  • अवमूल्यन के बाद निर्यातों में अपेक्षित वृद्धि तभी सम्भव है जब देश में वस्तुओं का पर्याप्त उत्पादन हो तथा आन्तरिक मांग की पूर्ति करने के बाद पर्याप्त निर्यात योग्य अतिरेक उपलब्ध हो। 
  • देश के भीतर वस्तुओं के उपभोग में कटौती करके अधिक समय तक निर्यात की वृद्धि को स्थिर नहीं रखा जा सकता।
  • अवमूल्यन की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि अन्य देश भी साथ ही साथ अपनी मुद्राओं का अवमूल्यन न करें। 
  • यदि व्यापारिक भागीदार देश भी अपनी मुद्राओं का अवमूल्यन कर देते हैं तो हमारे निर्यातों में अपेक्षित वृद्धि सम्भव नहीं होगी।
  • कुल आयात बिल में अवमूल्यन के बाद वृद्धि न हो, उसके लिए यह जरूरी है  कि देश में  भी ऐसी वस्तुओं के उत्पादन हेतु प्रयास किये जायें, जिनका हम भारी मात्रा में आयात करते रहे हैं। 
  • आयात प्रतिस्थापन जितनी अधिक वस्तुओं का किया जाएगा, उतना भुगतान संतुलन की प्रतिकूलता में कमी करना सम्भव होगा। 
  • इसी प्रकार निर्यात की जाने वाली वस्तुओं की मांग पर आन्तरिक उपभोक्ताओं की मांग का दबाव न बढ़े, इसके लिए इन वस्तुओं की प्रतिस्थानापन्न वस्तुओं का भी उत्पादन बढ़ाना उपयुक्त होगा।
  • यदि देश में मुद्रा-स्फीति विद्यमान हो तो अन्य परिस्थितियां अनुकूल होने पर भी अवमूल्यन से वांछित परिणाम नहीं प्राप्त हो सकते। क्योंकि देश की जनता को ऐसी स्थिति में यही आशंका रहती है कि वस्तुओं के मूल्यों में और अधिक वृद्धि होगी। इस कारण लोगों में संचय की प्रवृत्ति अधिक हो जाती है तथा निर्यात योग्य अतिरेक कम हो जाता है।

हानियाँ

  • अवमूल्यन से यह भय बना रहता है कि विदेशी ऋण भार एवं उसके ब्याज का भार बढ़ जायेगा तथा पहले की तुलना में अधिक मात्रा में भुगतान करना पड़ेगा।
  • अवमूल्यन से व्यापार शर्तें प्रतिकूल हो जाती हैं, क्योंकि आयातों का मूल्य बढ़ जाता है तथा निर्यातों का मूल्य घट जाता है।
  • अवमूल्यन के साथ-साथ उदार आयात नीति को भी अपनाया जाता है तथा विदेशी पूंजी के आगमन पर से नियंत्राण हटा दिया जाता है, फलस्वरूप विदेशी विनियोग आकर्षित होते हैं, परन्तु इससे विदेशी निवेशकत्र्ताओं के एकाधिकार का क्षेत्रा बढ़ जाता है।
  • अवमूल्यन से मूल्यों में वृद्धि होने का भय बना रहता है, क्योंकि आयातों के मूल्य बढ़ जाते हैं जिससे उत्पादन लागत में वृद्धि होती है। इससे देश के आर्थिक विकास में रुकावटें आ जाती हैं।
  • अवमूल्यन से विदेशी पुस्तकें, वैज्ञानिक उपकरण आदि महंगे होने के कारण शिक्षा पर व्ययों में वृद्धि होगी तथा विदेशों में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों के लिए समस्या उत्पन्न हो जायेगी तथा पहले से अधिक मात्रा में धन व्यय करना होगा।

राशिपातन

अर्थ

  • राशिपातन के अन्तर्गत विदेशों में वस्तुएं स्वदेश के मूल्य से भी कम मूल्य पर बेची जाती हैं। 
  • सस्ती कीमत वाली वस्तुओं से विदेशी बाजारों को पाटने के कारण इस क्रिया को ‘बाजार पाटना’ भी कहते हैं। 
  • प्रो. पी.टी. एल्सवर्थ के अनुसार, ”राशिपातन विदेश में वस्तु की उत्पादन लागत से कम कीमत पर विक्रय करने की क्रिया ही नहीं है बल्कि यातायात व्यय, कर एवं अन्य सभी हस्तातंरण लागतों के समायोजन के बाद विदेशी बाजार में प्राप्त होने वाली कीमत से भी कम कीमत पर विक्रय करने को राशिपातन कहते हैं।“

उद्देश्य

  • यदि अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में किसी देश का प्रबल विदेशी प्रतियोगी है, तो उसे बाजार से बाहर निकालने हेतु राशिपातन का सहारा  लिया जाता है। 
  • विदेशी बाजारों में कम मूल्य पर माल बेचकर प्रतियोगी को असहाय बना दिया जाता है। जिससे कि वह बाजार छोड़ने पर मजबूर हो जाता है।
  • अति उत्पादन की स्थिति का सामना करने के उद्देश्य से स्वतंत्रा अर्थव्यवस्था वाले किसी देश में यदि किसी समय मांग से अधिक उत्पादन हो जाता है अथवा अचानक मांग में कमी हो जाती है तो अति उत्पादन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। 
  • इस अति उत्पादन को खपाने के लिए उत्पादक विदेशी बाजार में, स्वदेशी बाजार में प्रचलित मूल्य की तुलना में कम कीमत पर अपने उत्पादन को बेचता है।
  • विदेशी बाजारों में मांग सृजन करने के उद्देश्य से कभी-कभी एकाधिकारी विदेशी बाजारों में अपने उत्पाद की कीमत कम करके अधिक मांग का सृजन करने का प्रयास करतें हैं। इस प्रयास में सफलता मिलने के बाद कीमतों में वृद्धि कर देते हैं।
  • इस प्रकार का राशिपातन मुद्रा प्रसार के समय किया जाता है, जबकि घरेलू मुद्रा से विनिमय मूल्य में होने वाली कमी की तुलना में घरेलू लागत व कीमत में कम वृद्धि हो।
  • राशिपातन का उद्देश्य प्रतियोगी द्वारा किसी अन्तर्राष्ट्रीय संघ में शामिल होना भी हो सकता है, जिससे विश्व के बड़े-बड़े उत्पादक मिलकर बाजारों में शोषण कर सकें।

आवश्यक शर्तें

  • राशिपातन के लिए घरेलू बाजार में एकाधिकार होना आवश्यक है, क्योंकि स्वतंत्र प्रतियोगिता में घरेलू मूल्य कम हो जाते हैं। 
  • जिन वस्तुओं का राशिपातन किया गया है उन्हें फिर से देश में आने से रोक दिया जाय।
  • यदि ऐसा नहीं किया गया तो उपभोक्ता वस्तु को सस्ती कीमत पर विदेशी बाजारों से खरीदेंगे और घरेलू बाजार की उपेक्षा की जायेगी।

आर्थिक प्रभाव

  • आयात करने वाले देश के लिए राशिपातन लाभकारी रहता है। इसमें उपभोक्ता को स्थायी रूप से सस्ती वस्तुएं प्राप्त होती हैं तथा उत्पादक भी अपना उत्पादन उसी ढंग से समायोजित करते हैं।
  • ऐसी दशा में संरक्षण की कोई आवश्यकता नहीं होती है। 
  • दीर्घकालीन राशिपातन, राशिपातन करने वाले देश के लिए हानिकारक होता है। 
  • उपभोक्ताओं द्वारा ऊंची कीमत वसूल किये जाने के कारण उनको हमेशा शिकायत बनी रहती है। 
  • देश में अतिरिक्त उत्पादन होने पर माल निकासी हेतु यदि राशिपातन किया जाता है, तो राशिपातन करने वाले देश में कीमतें नहीं गिर पातीं और उपभोक्ताओं को मिलने वाले लाभ से भी वंचित रहना होता है।

 

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FAQs on अवमूल्यन एवं राशिपातन - पारंपरिक अर्थव्यवस्था - भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

1. अवमूल्यन एवं राशिपातन क्या होता है?
उत्तर: अवमूल्यन एक आर्थिक प्रक्रिया है जिसमें आर्थिक संपत्ति की मूल्य कम हो जाती है। यह आर्थिक प्रणाली के साथ जुड़ा हुआ है और व्यापार, निवेश और आयोगों के लिए महत्वपूर्ण है। राशिपातन एक प्रक्रिया है जिसमें आर्थिक संपत्ति की मान्यता खो जाती है या नकारात्मक मूल्य का तारीक़ा बनाया जाता है। यह आर्थिक संपत्ति के मान्यता और उसके मूल्य के संबंध में प्रश्नों को उठाता है।
2. अवमूल्यन और राशिपातन क्यों महत्वपूर्ण हैं?
उत्तर: अवमूल्यन और राशिपातन आर्थिक प्रणाली में महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये व्यापार, निवेश और आयोगों के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। इनकी समझ आर्थिक निर्णयों को लेने में मदद करती है, जैसे कि कंपनी के मूल्य की निर्धारण, धन निवेश के फायदे और हानियां, और आर्थिक आयोगों के निर्णयों के लिए उपयोगी होती हैं।
3. अवमूल्यन क्या कारणों से हो सकता है?
उत्तर: अवमूल्यन कई कारणों से हो सकता है, जैसे तकनीकी प्रगति, आर्थिक संकट, आर्थिक कानूनों में परिवर्तन, राजनीतिक स्थितियाँ, और आर्थिक संपत्ति के मूल्य की प्रभावित होने वाली घटनाएं। इन सभी कारणों से अवमूल्यन हो सकता है और इसका आर्थिक प्रभाव व्यापार, निवेश और आयोगों पर पड़ सकता है।
4. राशिपातन के प्राथमिक उदाहरण क्या हैं?
उत्तर: राशिपातन के प्राथमिक उदाहरणों में शामिल हैं ऐसे घटनाक्रम जहां आर्थिक संपत्ति की मान्यता या मूल्य को नकारात्मक रूप में तारीक़ा बनाया जाता है। उदाहरण के रूप में, किसी कंपनी के शेयरों की मूल्य गिर सकती है या किसी वित्तीय उपकरण की मूल्य घट सकती है। इसके परिणामस्वरूप, निवेशकों को नुकसान हो सकता है और आर्थिक प्रणाली पर प्रभाव पड़ सकता है।
5. अवमूल्यन और राशिपातन के बीच क्या अंतर है?
उत्तर: अवमूल्यन और राशिपातन दो अलग-अलग प्रक्रियाएं हैं। अवमूल्यन एक प्रक्रिया है जिसमें आर्थिक संपत्ति की मूल्य कम होती है, जबकि राशिपातन एक प्रक्रिया है जिसमें आर्थिक संपत्ति की मान्यता या मूल्य खो जाती है या नकारात्मक रूप में तारीक़ा बनाया जाता है। अवमूल्यन एक व्यापारिक प्रणाली के साथ जुड़ा हुआ है जबकि राशिपातन आर्थिक संपत्ति के मान्यता और मूल्य के संबंध में प्रश्नों को उठाता है।
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