अहोम विद्रोह, नील आंदोलन और पायक अभ्युदय
अहोम विद्रोह
¯ यह विद्रोह असम क्षेत्र में 1828 ई. के आसपास हुआ।
¯ इस विद्रोह का नेतृत्व गोमधर कुंअर ने किया।
¯ तत्कालीन ढाँचे में परिवर्तन के ब्रिटिश प्रयास के विरोध में यह विद्रोह हुआ।
खासी विद्रोह
¯ असम के जैंतिया तथा गारो पहाड़ी क्षेत्रों पर अंग्रेजों द्वारा अधिकार जमा लिए जाने के बाद वहाँ रहने वाली खासी जनजातियों ने विद्रोह कर दिया।
¯ 1765 ई. में अंग्रेज द्वारा सिलहट की दीवानी प्राप्त कर ली गई।
¯ बर्मा से युद्ध के बाद स्काट ने इस क्षेत्र को सिलहट से जोड़ सैन्य-मार्ग बनाने का प्रयास किया ताकि बर्मा के विरुद्ध युद्ध के लिए सेना को सुगमता से भेजा जा सके। जमींदारों ने रैयतों से मुफ्त मजदूरी करवा कर इसका निर्माण कराना चाहा।
¯ तीतरसिंह के नेतृत्व में खासी जनता ने विद्रोह कर दिया।
¯ विद्रोहियों ने नन्कलो में चढ़ाई कर अंग्रेजों की हत्या कर दी (1832)।
¯ 1833 में ब्रिटिश प्रशासन ने इसे बेरहमी से दबा दिया।
हाथी खेड़ा विद्रोह
¯ यह विद्रोह भी 1820 के आसपास असम क्षेत्र में हुआ।
1857 का विद्रोह भारतीय नायक समय केन्द्र ब्रिटिश नायक समय (विद्रोह के) (विद्रोह का) (विद्रोह दबाने वाले) (विद्रोह दबाने का) |
बहादुरशाह जफर एवं जफर बख्त खां (सैन्य नेतृत्व) 11,12 मई, 1857 दिल्ली निकलसन, हडसन 21 सितम्बर, 1857 नाना साहब एवं तात्या टोपे 5 जून, 1857 कानपुर कैंपबेल 6 सितम्बर, 1857 बेगम हजरत महल 4 जून, 1857 लखनऊ कैंपबेल मार्च, 1858 रानी लक्ष्मीबाई एवं तात्या टोपे जून, 1857 झांसी, ग्वालियर ह्यूरोज 3 अप्रैल, 1858 लियाकत अली 1857 इलाहाबाद, बनारस कर्नल नील 1858 कुँअर सिंह अगस्त, 1857 जगदीशपुर (बिहार) विलियम टेलर, मेजर 1858 विंसेट आयर खान बहादुर खां 1857 बरेली 1858 मौलवी अहमद उल्ला 1857 फैजाबाद 1858 अजीमुल्ला 1857 फतेहपुर जनरल रेनर्ड 1858 |
¯ जमींदारों द्वारा बेगार को अनिवार्य कर दिया गया।
¯ इस विद्रोह का नेता टीपू फकीर था।
नील आंदोलन
¯ 1859-60 में यह विद्रोह बंगाल क्षेत्र में हुआ।
¯ यह तिनकठिया प्रणाली के विरोध में हुआ। यानि बंगाल में नील की खेती करने वाले कृषकों ने अपने अंग्रेज भूपतियों के विरुद्ध यह विद्रोह किया।
¯ विद्रोह की व्यापकता को देखकर 1860 में नील आयोग की स्थापना की गई जिसके सुझावों को 1862 के अधिनियम में शामिल किया गया। इस प्रकार किसान अपने उद्देश्य में सफल हुए।
¯ इस विद्रोह की शुरुआत कलारोवा (बंगाल) के डिप्टी मजिस्ट्रेट होम चंद्राकर के एक सरकारी आदेश में चूक के बाद हुई।
¯ डिप्टी मजिस्ट्रेट के आदेश के अनुसार किसानों को राहत देने की बात कही गई। नील विद्रोह दिगंबर विश्वास और विष्णु विश्वास के नेतृत्व में वहाँ के किसानों द्वारा चलाया गया।
¯ 1860 के अंत तक बंगाल में नील की खेती पूर्णतः बंद कर दी गई।
¯ इस सफलता का प्रमुख कारण यह था कि रैयतों ने पूरे अनुशासन, संगठन और सहयोग के बूते पर यह लड़ाई लड़ी।
¯ इस आंदोलन को बुद्धिजीवियों का भी समर्थन प्राप्त हुआ।
¯ हिंदू पैट्रियट के संपादक हरीशचंद्र मुखर्जी ने इस आंदोलन में काफी सक्रिय भूमिका निभाई।
¯ दीनबंधु मित्र के नाटक नीलदर्पण में इस समस्या को बारीकी से उभारा गया था।
पागलपंथी विद्रोह
¯ पागलपंथ (1824) एक अर्ध-धार्मिक सम्प्रदाय था।
¯ जमींदारों ने रैयतों से मुफ्त मजदूरी करने को कहा। युवा किसानों ने टीपू नामक फकीर को अपना नेता चुना जो करमशाह पठान का पुत्र था।
¯ करमशाह के कुछ हिंदू-मुसलमान अनुयायी थे जो अपने को पागलपंथी कहते थे।
¯ लोगों में यह अफवाह फैल गयी कि अंग्रेजों और जमींदारों का शासन समाप्त होने वाला है और टीपू का शासन शुरू होने वाला है।
¯ ब्रिटिश सेना के वहां पहुँचने पर किसानों ने उसका विरोध किया। इन किसानों को आदेश था कि जमींदारों को राजस्व न दें।
¯ किसानों ने जमींदारों के मकानों पर आक्रमण किया और उनके जुल्मों के विरुद्ध अंग्रेजों से मदद माँगी।
¯ 1825 के आरंभ में ही घमासान युद्ध हुये।
¯ अंग्रेजों ने लगान वसूली पर फिर से विचार करने का वायदा किया।
¯ इसी बीच टीपू ने शेरपुर पर अधिकार कर लिया परन्तु 1827 में टीपू को गिरफ्तार कर लिया गया और विद्रोह शांत हो गया।
बारसाल विद्रोह
¯ बारसाल विद्रोह जमींदारों द्वारा लगाये गये ”दाड़ीकर“ और सामान्यतः अंग्रेजों के प्रभुत्व के विरुद्ध था।
¯ 1831 में कलकत्ता के निकट बारसाल के टीटूमीर ने, जो कि एक जुलाहा था और एक जमींदार का लठैत था, किसानों को विद्रोह के लिये संगठित किया।
¯ अंग्रेजों से स्वतंत्र राज्य स्थापित करने की प्रेरणा टीटूमीर को सैयद अहमद बरेलवी से मिली थी।
¯ किसानों ने एक नील फैक्ट्री पर हमला कर दस्तावेज नष्ट कर दिया।
कूका आन्दोलन
¯ इस आन्दोलन की शुरुआत 1840 के लगभग पश्चिम पंजाब में भगत जवाहरमल यानि सेन साहब ने की।
¯ इसका उद्देश्य सिक्ख धर्म में आई कुरीतियों को दूर कर उसे पवित्र बनाना था।
¯ सेन के अनुयायी थे बालक सिंह। इनका मुख्यालय हाजरो में था।
¯ 1863-72 में अंग्रेजों ने कूकाओं को कुचलने के लिये सैनिक कार्रवाई की।
¯ इनके एक नेता रामसिंह कूका को 1872 में रंगून भेज दिया गया जहाँ उनकी 1885 में मृत्यु हो गयी।
रामोसी विद्रोह
¯ पश्चिमी घाट के आदिवासियों द्वारा 1822-29 के बीच रामोसी विद्रोह किया गया। यह भी अंग्रेजों के खिलाफ था।
¯ इसका नेतृत्व वासुदेव बलवंत फड़के ने किया।
भील विद्रोह
¯ यह विद्रोह भील सरदार सेवाराम के नेतृत्व में 1817, 1819, 1825 और 1831 ई. में पुराने शासक भारमाल को पुनः शासक के रूप में स्थापित करने के लिये कच्छ में हुआ।
चोपाड़ विद्रोह
¯ यह विद्रोह बंगाल के बाबुओं में हुआ।
¯ यह भी किसान आंदोलन था।
¯ यह 1798 में हुआ।
¯ इस विद्रोह का नेतृत्व दुर्जन सिंह ने किया।
चुआर विद्रोह
¯ यह विद्रोह बंगाल और बिहार के पांच जिलों में हुआ।
¯ यह 1766 में शुरू हुआ और 1772 में समाप्त हो गया।
कित्तुर विद्रोह
¯ यह विद्रोह भी पश्चिम क्षेत्र में ही हुआ।
¯ यह 1824 में हुआ था।
¯ इस विद्रोह की शुरुआत चिन्नाव ने की।
लाएक विद्रोह
¯ यह विद्रोह भी किसान विद्रोह था जो मेदिनीपुर बंगाल में 1816 में हुआ।
पोलिगार विद्रोह
¯ यह विद्रोह तमिलनाडु में टीपू के शासनकाल के अंतिम समय में हुआ।
¯ मैसूर के टीपू सुल्तान तथा मद्रास स्थित अंग्रेजों के बीच दक्षिण भारत पर प्रभुत्व जमाने के लिये संघर्ष हुआ। जो भी इस संघर्ष में जीतता उसे पूर्वी घाट के सेनाधिपति अर्थात् पोलिगारों को (जिन्होंने विजयनगर साम्राज्य के अंतिम वर्षांे में पूर्वी घाट के जंगलों और पहाड़ों में अपना स्वतंत्र अस्तित्व बना लिया था) कठोर नियंत्रण में रखना होता। इस युद्ध में अंग्रेजों की ही जीत हुई।
¯ अंग्रेजों को पोलिगारों को दबाने के लिये लम्बे समय तक अभियान चलाना पड़ा।
¯ इस अभियान में सर्वाधिक तीव्रता 1799 से 1801 में आई जब अंग्रेजों को एक साथ कई मोर्चे पर युद्ध करना पड़ा।
¯ पोलिगारों का उद्देश्य था जंबूद्वीप को यूरोपवासियों से मुक्त कराना।
¯ पोलिगार गुरिल्ला युद्ध में निपुण थे। स्थानीय गाँव के लोगों ने भी पोलिगारों की काफी सहायता की।
¯ आमिलदारों की सरकार स्थापित की गयी और फ्रांस से भी सम्पर्क किया गया, किंतु नेपोलियन उस समय सहायता देने की स्थिति में नहीं था।
¯ इस विद्रोह का स्वरूप संघात्मक था जो इसकी सबसे बड़ी कमजोरी थी क्योंकि इससे अंग्रेजों के लिये विद्रोह दबाना आसान हो गया। ¯ इस विद्रोह के प्रमुख नेता वीर. पी. काट्टवाम्मान थे। इनके प्रमुख नेताओं को मार दिया गया।
थाम्पी विद्रोह
¯ यह विद्रोह त्रावणकोर में 1805-10 के बीच हुआ।
¯ त्रावणकोर राज्य को 1805 में अंग्रेजों ने सहायक राज्य बना लिया था।
¯ त्रावणकोर के दीवान वेलु थंपी ने ब्रिटिश रेजीमेंट के मकान पर हमला बोल दिया।
¯ परन्तु थंपी पकड़ लिया गया एवं अंग्रेजों ने थंपी को मर जाने के बाद भी सार्वजनिक रूप से फाँसी पर लटका दिया।
पायक अभ्युदय
¯ यह विद्रोह 1817-25 के आसपास हुआ।
¯ उड़ीसा तट की पहाड़ियों में खुर्द क्षेत्र में पायक (पैदल सैनिकों) का विद्रोह हुआ क्योंकि इनके पुश्तैनी पेशे पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, फलतः इस विद्रोह के बाद पायकों से भी माफी की (करमुक्त) जमीन छीन ली गई।
¯ इस विद्रोह का नेतृत्व बक्शी जंगबंधु ने किया।
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1. अहोम विद्रोह क्या था? |
2. नील आंदोलन क्या था? |
3. पायक अभ्युदय क्या है? |
4. 1857 के विद्रोह में कौन-कौन से क्षेत्रों में आंदोलन हुआ? |
5. आईएएस और यूपीएससी के लिए अहोम विद्रोह, नील आंदोलन और पायक अभ्युदय किस प्रतियोगी परीक्षा में महत्वपूर्ण हैं? |
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