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आजादी के बाद का भारत (भाग -3) - इतिहास,यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

-  अगस्त 1963 में नेहरू को अपने जीवन में पहली बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा। 
    -  जब इंदिरा गांधी 1966 में प्रधनमंत्राी बनी तो उन्होंने महसूस किया कि अमेरिका और पश्चिम के साथ संबंधेें को मूल रूप से सुधरने की जरूरत है। यह इसलिए कि एक ओर तो अमेरिका के पास चीनी सैन्यवाद की बेहतर दृष्टि थी, और उसने पिफर से हमले की स्थिति में सहायता का वादा किया था, दूसरी ओर, अकाल के पफलस्वरूप भोजन की भारी कमी और 1962 तथा 1965 के यु(ों के कुप्रभाव के जनित गंभीर आर्थिक स्थिति में मदद की जरूरत थी। इसी कारण, अमेरिकी सलाह पर श्रीमती गांधी ने रुपए का अवमूल्यन किया। 
    -  1966-67 में उन्होंने सक्रिय राजनयिक प्रयत्नों के जरिए सोवियत संघ को मनाया कि वह भारत और पाकिस्तान से एक -सरीखा व्यवहार न करे, और पाकिस्तान को सैनिक सहायत न दे। 
    -  1977 में सत्ता में आने के बाद जनता सरकार ने बडे़ जोरों-जोरों से सच्ची गुटनिरपेक्षता की बात की। लेकिन उसने पाया कि गुटनिरपेक्षता पहले से ही सच्ची थी, और इस प्रकार पिफर से नेहरूवादी रास्ते पर चल पड़ी।  
    -  पफरवरी 1972 में अमेरिका और चीन ने शंघाई सहमति पर हस्ताक्षर किए। इसमें घोषणा की गई कि उनके आपसी संबंध् शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सि(ांतों पर आधरित हैं-नेहरू के पंचशील पर!
    -  नेहरू और गांधी की आगे की पुष्टि के रूप में सोवियत संघ नेता मिखाइल गोर्बाचेव ने प्रधनमंत्राी राजीव गांधी के साथ नवम्बर 1996 में नई दिल्ली घोषणा पर हस्ताक्षर किए। इसमें विश्व संबंधें में अहिंसा तथा राष्ट्रों के बीच सामुदायिक संबंधंे पर जोर दिया गया।
    -  खास बात यह है कि 1951-52, 1957 और 1962 के आम चुनावों में कांग्रेस के मुकाबले गैर कांग्रेस प्रत्याशियों का संयुक्त मत कहीं ज्यादा था। 1952 में पहली बार ऐसे चुनाव होने के बावजूद लोकसभा की 26 प्रतिशत सीटों, 1957 में 25 प्रतिशत एवं 1962 में 28 प्रतिशत सीटों पर अपना अध्किार जमा लिया। राज्यों की विधन सभाओं में उनकी स्थिति और भी बेहतर थी। 1952 में 32 प्रतिशत, 1957 में 35 प्रतिशत और 1962 में 40 प्रतिशत सीटों पर अपना कब्जा जमा लिया था। 
    -  14 नवम्बर, 1948 को नेहरू के जन्मदिन के अवसर पर पटेल का कहना था, ‘‘महात्मा गांधीजी ने नेहरू को अपना उत्तराध्किारी घोषित किया था गांधीजी की मृत्यु के बाद हमने यह महसूस किया है कि हमारा नेता के विषय में निर्णय बिलकुल सही था।’’ और जबाव मे नेहरू ने कहा, ‘‘सरदार शक्ति के स्तंभ हैं। उनके स्नेह और सलाह के बिना मैं रास्ता का संचालन कभी नहीं कर पाता।’’ 
    -  नेहरू निश्चित रूप से इसे पूरी तरह परिस्थिति से अवगत थे। कांग्रेस और देश की हालात उन्हें परेशान कर रही थी। निराशा, मोहभंग और हताशा की मानसिक अवस्था में उन्होंने  1948 के दौरान लिखा, ‘‘यह सोचना भी भयावह है कि सारे मूल्य समाप्त हो जाएंगे और हम लोग अवसरवादी राजनीति की कीचड़ में डूब जाएंगे।’’ 
    -  जयप्रकाश नारायण ने, उदाहरण के लिए, दिसम्बर 1948 में नेहरू को एक पत्रा में लिखा, ‘आप जाना चाहते हैं समाजवाद की तरपफ, लेकिन उसमें मदद लेना चाहते हैं पंूजीपतियों से।’ उन्होंने मार्च 1949 में नेहरू से कहा कि अनिवार्य सेवाओं में हड़तालों पर प्रतिबंध् लगाने संबंधी प्रस्तावित विध्ेयक ‘भारतीय पफासीवाद के उभरने का एक कुरूप उदाहरण है।
    -  कांग्रेस के कार्यक्रम में और अध्कि वामपंथी झुकाव जनवरी 1959 के दौरान हुए नागपुर अध्विेशन में देखा जा सकता है जबकि उसने प्रस्ताव पारित कर घोषित की कि ‘भविष्य की कृषि व्यवस्था सहकारी संयुक्त खेती के आधर पर विकसित की जाए।’ 
    -  जून 1964 में नेहरू जी की मृत्यु हुई उस समय भी कांग्रेस पतन की ओर ही अग्रसर था। 
    -  सोशलिस्ट पार्टी का जन्म 1934 में हुआ और उस समय से वह कांग्रेस का अंग बनकर साथ रही। लेकिन इस पार्टी का उस समय भी अपना एक अलग संविधन, अलग सदस्यता, अपनी विचारधरा और अनुशासन था।
    -  जे.बी. कृपलानी के नेतृत्व में बागी कांगे्रसियों ने जून 1951 में किसान मजदूर प्रजा पार्टी की स्थापना की। गांधीवादी होने का दावा करते हुए और मूलतः कांग्रेस के कार्यक्रम और नीतियों से सहमत होते हुए, इस पार्टी ने उन्हीं कार्यक्रमों को असलियत में लागू करने का वादा किया। 
    -  सितम्बर 1952 में सोशलिस्ट और किसान मजदूर प्रजा पार्टी के विलय के बाद प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की, जिसके अध्यक्ष कृपलानी और महासचिव अशोक मेहता बनाए गए।
    -  1956 में आचार्य नरेन्द्र देव की मृत्यु हो गई। 1954 में ही जयप्रकाश नरायण सक्रिय राजनीति से विदाई लेकर यह घोषणा कर चुके थे कि अब वे अपना सारा जीवन भूदान तथा अन्य रचनात्मक गतिविध्यिों में लगाएंगे।
    -  1957 के आम चुनावों के बाद उन्होंने राजनीति से पूरी तरह संन्यास ले लिया और यह घोषणा की कि पार्टी आधरित राजनीति भारत के लिए उचित नहीं है। 
    -  पी.एस.पी से निकलने के बाद डाॅ. लोहिया ने 1955 के अंत में सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की। इस पार्टी की प्रमुख विशेषता थी इसकी राजनीतिक उग्रता।
    -  सोशलिस्ट पार्टी भी आंतरिक पफूट और विभाजन से बच नहीं पाई। खासकर 1967 में लोहिया की मृत्यु के बाद ऐसी घटनाएं बढ़ गईं। इसने 1964 में पी.एस.पी. से विलय और 1965 में अलगाव और पिफर 1971 में आपसी विलय किया। 
    -  भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ;भाकपाद्ध 1936 तक कांग्रेस का ही अंग थी, परंतु कांग्रेस अनुशासन को स्वीकार न कर पाने के कारण इसने 1945 में कांग्रेस छोड़ दिया। 
    -  1935 से 1948 तक पार्टी के महासचिव रहे पी.सी.जोशी ने 1950 मे ही एक प्रश्न रखा, ‘‘भारत की राजनीतिक परिस्थिति क्या है ?’’ 
    -  पफरवरी 1948 में कलकत्ता में आयोजित अपने दूसरे अध्विेशन में पार्टी ने अपने महासचिव पी.सी. जोशी को हटाकर बी.टी. रणदिवे को उनकी जगह नियुक्त किया।
    -  1951 के अंत में जब अजय घोष पार्टी के महासचिव बने, तो स्टालिन के सीध्े निर्देशन में नई कार्यनीति और नया कार्यक्रम स्वीकार किया गया। 
    -  भाकपा ने पहले आम चुनाव में कापफी उत्साह से हिस्सा लिया। इसमें सिपर्फ उन्हीं इलाकों में अपना प्रयास केन्द्रित किया, जहां इनकी ताकत की कुछ पहचान थी, यानी आंध्रं प्रदेश और केरल के इलाके।
    -  हैदराबाद में यह अपने पीपुल्स डेमोक्रेडिट प्रफंट जैसे मोर्चा संगठनों के साथ मिलकर कुल 61 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ी और 23 सीटों पर इसने विजय पाई। इसे 4.6 प्रतिशत मत प्राप्त हुए और यह सबसे बडे़ विपक्षी दल के रूप में उभरी। 
    -  1957 में और भी अच्छा परिणाम दिखाया, जब इसने 27 सीटों और 8.92 प्रतिशत मत प्राप्त किए। इसने केरल में बहुमत प्राप्त किया और संसार में पहली बार निवार्चित कम्युनिस्ट सरकार बनाने का श्रेय हासिल किया।
    -  1958 के अमृतसर अध्विेशन में पार्टी ने घोषणा की कि समाजवाद की तरपफ प्रगति शांतिपूर्ण और संसदीय रास्तों से भी की जा सकती है।  
    -  1964 में भाकपा दो हिस्सों में बंट गईः एक भाग पहले के ‘दक्षिणपंथी’ ‘मध्यमार्गी’ रुझान का प्रतिनिध्त्वि करती थी जो भाकपा के नाम से प्रचलित रही और दूसरा भाग पहले के ‘वामपंथी रुझान की प्रतिनिध्त्वि करती थी जो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ;माक्र्सवादीद्ध या माकपा के नाम से कुछ समय बाद जानी गई। 
-    एक राजनीतिक पार्टी के रूप में जनसंघ को अक्टूबर 1951 में शुरू किया गया, जिसके अध्यक्ष डाॅ. श्याम प्रसाद मुखर्जी बनाए गए। 
    -    1952 में इसे लोकसभा की 3 सीटें और कुल मतों का 3.06 प्र्रतिशत प्राप्त हुआ। ;जनसंघ, हिन्दू महासभा और रामराज्य परिषद को जोड़कर 10 सीटें और 6.4 प्रतिशत मत इन्हें प्राप्त हुए। इस तरह कुल मिलाकर तीनों हिन्दू सांप्रदायिक पार्टियों की उपलब्धि कापफी कम थी।
    -    1957 में जनसंघ ने लोकसभा की 4 सीटें और 5.97 प्रतिशत मत प्राप्त किए। 
    -    1962 में जनसंघ ने 14 सीटें और 6.44 प्रतिशत मत प्राप्त किए। 
    -    भारत की पहली सही मायनों में अनुदार और ध्र्मनिरपेक्ष अखिल भारतीय पार्टी -स्वतंत्रा पार्टी, अगस्त 1959 में अस्तित्व में आई। 
    -    स्वतंत्रा पार्टी की 1962 के आम चुनावों में कोई बहुत खराब स्थित नहीं रही। इसने 18 लोकसभा सीटों और 6.8 प्रतिशत मत प्राप्त किए।
    -    यह पार्टी भी गुटबंदी और दलबदल के चंगुल में पफंस गई और आम जनता का नेतृत्व न प्राप्त कर पाने के कारण, 1967 में सी. राजगोपालाचारी की मृत्यु के बाद तेजी से पतन का शिकार हो गई। 1971 के चुनावों में इसे मात्रा 8 सीटें तथा कुल मतों का मात्रा 3 प्रतिशत प्राप्त हो सका। निराशाजनक स्थिति को सामने पाकर इसके ज्यादातर सदस्य 1974 में भारतीय लोकदल में शामिल हो गए।
    -    शास्त्राी पार्टी सांसदों द्वारा निर्विरोध् संसदीय नेता चुन लिए गए और 2 जून 1964 यानी नेहरू के देहांत के एक सप्ताह के अंदर ही प्रधनमंत्राी के रूप में पदासीन कर दिए गए। 
    -    यु( विराम संधिके बाद और सोवियत संघ की मध्यस्थता में पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान और शास्त्राी 4 जनवरी, 1966 को सोवियत संघ के ताशकंद में मिले और ताशकंद घोषणापत्रा पर हस्ताक्षर किए। 
    -    ताशकंद सम्मेलन का अंत बड़ा ही दुःखद हुआ। शास्त्राी की, जिन्हें हृदय की बीमारी पहले से थी, ताशकंद में अचानक हृदय गति रुक जाने से 10 जनवरी को मृत्यु हो गई। उन्होंने मात्रा 19 महीने ही प्रधनमंत्राी के रूप में कार्य किया था।
    -    कांग्रेस संसदीय पार्टी की बैठक 19 जनवरी, 1966 को हुई जिसमें गुप्त मतदान हुआ और इंदिरा गांधी ने देसाई को 169 के मुकाबले 355 वोटों से हराया।
    -    छह जून को रुपए का 35.5 प्रतिशत अवमूल्यन कर दिया इस समय श्रीमती गांधीको सत्ता में आए सिपर्फ चार महीने हुए थे। 
    -    1967 में मतदाताओं का 61.1 प्रतिशत हिस्सा वोट डालने आया, जो अब तक का सबसे अध्कि प्रतिशत माना जा सकता है। 
    -    1967 के चुनाव की सबसे बड़ी विशेषता विपक्षी दलों का एक जगह आना था। 
    -    चुनाव के नतीजे बहुत नाटकीय थे और कांग्रेस को भारी झटका लगा। हालांकि लोकसभा पर नियंत्राण इसने बनाए रखा और 520 में से 284 सीटें हासिल की।
    -    1967 के आम चुनावों से 1970 के अंत तक बिहार में सात सरकारें, उत्तर प्रदेश में चार, हरियाणा, मध्य प्रदेश, पंजाब और पश्चिम बंगाल में तीन-तीन और केरल में दो सरकारे बदलीं। इस दौरान सात राज्यों में राष्ट्रपति शासन के आठ दौर आए। नई सरकारों के गठन और पुरानी सरकारों को गिराने के खेल में छोटी पार्टियों और निर्दलीयों की भूमिका बहुत बड़ी हो गई। 
    -    1967 से 1970 के बीच करीब-करीब 800 विधयकों ने दल बदला और उनमें से करीब 155 विधयकों को मंत्राी पद के रूप में इनाम प्राप्त हुआ। 
    -    1986 में राजीव गांधीसरकार द्वारा दल बदल विरोध् कानून पास किए गए जाने के बाद ही दल-बदल की परिघटना पर कुछ नियंत्राण लगाया जा सका। 
    -    परिणामस्वरूप उसने 1967 के चुनावों में हिस्सा लिया और पश्चिम बंगाल में बंगाल कांग्रेस के साथ मिलकर एक गठबंध्न सरकार का गठन किया, जिसमें सीपीएम के नेता ज्योति बसु गृहमंत्राी बने। पफलस्वरूप पार्टी में पफूट पड़ गई।
    -    पफरवरी 1970 में जब सुप्रीम कोर्ट ने बैंक राष्ट्रीयकरण को इस आधर पर अवैध् ठहराया कि यह भेदभावपूर्ण है तथा इसके लिए अपर्याप्त मुआवजा अदा किया गया तो सरकार ने कानूनी खामियों को दूर करते हुए अपने निर्णय को सही ठहराने के लिए राष्ट्रपति के अध्यादेश का इस्तेमाल किया।
    -    अगस्त 1970 में जब सरकार राज्य सभा में प्रीवी पर्स और भूतपूर्व रजवाड़ों की अन्य सुविधओं को समाप्त करने के लिए एक संवैधनिक संशोध्न विध्येक पर हुए मतदान में राज्यसभा में एक वोट से हार गई, तब भी राष्ट्रपति के एक आदेश द्वारा महाराजाओं की मान्यता समाप्त कर दी गई और इस तरह उनकी तमाम वित्तीय तथा अन्य सुविधएं समाप्त कर दी गईं। 
    -    27 दिसम्बर, 1970 को उन्होंने लोकसभा भंग कर दी और पफरवरी 1972 के अपने कार्यकाल से 1 वर्ष पूर्व ही चुनाव कराने का निर्णय लिया।
    -    1971 के चुनावों ने कांग्रेस पार्टी को भारतीय राजनीति में वर्चस्वकारी स्थिति में पिफर से पहुंचा दिया।
    -    दिसम्बर 1970 में पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह जनरल याह्वा खान ने स्वत्रांण चुनाव करवाए जिसमें बंगाल की अवामी पार्टी को शेख मुजीबुर रहमान के लोकप्रिय नेतृत्व के तहत पूर्वी बंगाल की 99 प्रतिशत से अध्कि सीटें प्राप्त हुईं। और पाकिस्तान के नेशनल एसेंबली में संपूर्ण बहुमत प्राप्त हो गया। परंतु सेना और याह्या खान ने पश्चिमी पाकिस्तान के एक अग्रणी नेता जुल्पफीकार अली भुट्टो को अपना समर्थन दिया और अवामी पार्टी को सरकार बनाने देने से इनकार कर दिया।
    -    शेख मुजीबुर रहमान ने जब संसदीय प्रावधनों को लागू करने के लिए एक सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया तो 25 मार्च 1971 को अचानक एक चाल चलते हुए याह्या खान ने पूर्वी पाकिस्तान पर सैनिक कार्रवाही का आदेश दिया। 
    -    मुजीबुर रहमान गिरफ्रतार कर लिए गए और पश्चिमी पाकिस्तान में किसी अज्ञात स्थान पर ले जाए गए। 
    -    युद्ध की स्थिति में अमेरिका और चीन द्वारा संभावित हस्तक्षेप के खिलापफ अपने को सुरक्षित करने के लिए 9 अगस्त को भारत ने शीघ्रतापूर्वक शक्ति , बंधुत्व और सहयोग के लिए भारत-सोवियत संघ मैत्राी संधिपर 20 वर्ष की अवधि के लिए हस्ताक्षर किए। 
    -    जनरल जे. एस. अरोड़ा के विलक्षण नेतृत्व में भारतीय सेना ने मुक्तिवाहिनी के साथ मिलकर वास्तव में पूरे पूर्वी बंगाल को दौड़ते हुए पार कर गई और इसकी राजधनी, ढ़ाका में मात्रा 11 दिनों में पहुंचकर पाकिस्तानी छावनी को घेर लिया।
    -    अमरीका के सातवों बेडे़ को कूच करने का आदेश दिया, जिसका नेतृत्व परमाणु बम से लैस वायुयान वाहक यूएसएस एंटरप्राइज कर रहा था। 9 दिसम्बर को बंगाल की खाड़ी के लिए रवाना हुआ यह बेड़ा भारत पर दवाब डालने  के उद्देश्य से चला था ताकि ढ़ाका के पतन को कुछ दिनों के लिए टाला जा सके।
    -    परंतु इंदिरा गांधीने शांति -भाव से अमेरिका ध्मकी को नजरअंदाज कर दिया और इसके बदले भारतीय सेना के प्रमुख जनरल माॅनेक शाॅ से कहा कि भारत की सैनिक योजन को और भी शीघ्रता से पूरा  किया जाए। 13 दिसम्बर को भारतीय सेनाओं ने ढ़ाका को चारों तरपफ से घेर लिया और पराजित एवं पस्त हो चुके 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को 16 दिसम्बर के दिन आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया। 
    -    पाकिस्तान ने तुरंत युद्ध विराम को सहज स्वीकार कर लिया और मुजीर्बुरहमान को रिहा कर दिया जो बंग्लादेश में 12 जनवरी, 1972 को सत्तारूढ़ हुए।
    -    1971 के दौरान बांग्लादेश से आए एक करोड़ शरणार्थियों को ठहराने और खिलाने के बोझ ने अन्य भंडार खाली कर दिया।  
    -    1972 और 1973 के दोनों वर्षों में लगातार मानसून भी असपफल रहा जिससे देश के अध्कितर हिस्सों में भंयकर भूखा पड़ा और खाद्यानों की भीषण कमी हो गयी और इसके परिणामस्वरूप उनकी कीमतों में आग लग गई। 
    -    इस सबके साथ कीमतें लगातार बढ़ती चली गईं। और 1972-73 के दौरान ही सिपर्फ कीमतों में 22 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 
    -    कानून और व्यवस्था की हालत लगातार लोकप्रियता 1974-75 के दौरान और भी खराब हो गई। हड़तालें, छात्रा-प्रदर्शन और जुलूस अकसर हिंसक हो उठते थे। कई काॅलेज और विश्वविद्यालय लंबे समय के लिए बंद कर दिए गए। 
    -    मई 1973 में उत्तर प्रदेश में पी.ए.सी. ;पुलिसद्ध ने बगावत कर दी और जब सेना को नियत्रांण पाने के लिए भेजा गया तो उनकेे साथ हुई मुठभेड़ में पैंतीस सिपाही और सैनिक मारे गए। 
    -    जनवरी 1974 में गुजरात में एक भारी उथल-पुथल उस समय हुई जब अनाजो, रसोई तेल एवं अन्य आवश्यक पदार्थों की कीमतों में हुई ववृद्धिसे पैदा हुआ जन आक्रोश राज्य के शहरों और महानगरों में छात्रा आंदोलन के रूप में पफूट पड़ा। 
    -    गुजरात आंदोलन ने नक्शे कदमों पर चलते हुए और उसकी सपफलता से प्रेरणा लेकर मार्च 1974 में बिहार के छात्रों ने भी इसी प्रकार का आंदोलन शुरू कर दिया। छात्रों ने अपनी शुरुआत 18 मार्च को विधनसभा के घेराव से की और अतिसक्रिय पुलिस के साथ बार-बार मुठभेड़ होने लगी। परिणामस्वरूप एक ही सप्ताह के अंदर 27 लोग मारे गए। 
    -    जे.पी. अब नियमित रूप से पूरे देश का दौरा करने लगे और दिल्ली एवं उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में जहां जनसंघ या समाजवादियों के गढ़ थे, वहां भारी भीड़ इकट्ठी करने लगे। 
    -    लेकिन जेपी आंदोलन की सरगर्मी बहुत लंबे समय तक बनी नहीं रह सकी और यह 1974 के अंत तक पतन की ओर बढ़ने लगी। 
    -    1974-75 के दौरान भी उन्होंने ‘संपूर्ण क्रांति’ की वकालत की। 
    -    श्रीमती गांधी ने 26 जून की सुबह सभी सामन्य राजनीतिक प्रक्रियाओं को निलंबित करते हुए संविधन की धरा 352 के तहत आंतरिक आपातकाल लागू किए जाने की घोषणा की।
    -    श्रीमती गांधी ने संसद द्वारा चुनावों को नवम्बर 1976 में एक वर्ष की अवधि के लिए टलवा दिया था। 
    -    18 जनवरी, 1977 को श्रीमती गांधी ने अचानक घोषणा की कि लोकसभा के चुनाव मार्च में कराए जाएंगे। साथ ही साथ उन्होंने राजनीतिक बंदियों को भी रिहा कर दिया, प्रेस सेंसरशिप एवं सार्वजनिक सभा आदि करने जैसी राजनीतिक गतिविध्यिों पर से प्रतिबंध् उठा लिया। 
    -    चुनाव 16 मार्च को स्वतंत्रा और निष्पक्ष और माहौल में संपन्न हुए और जब चुनाव परिणाम सामने आए तो यह स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस पूरी तरह पराजित हो चुकी है। श्रीमती गांधी और संजय गांधी दोनों ही चुनाव हार गए। श्रीमती गांधी ने एक वक्तव्य जारी कर जनता के पैफसले को ‘उचित विनम्रता के साथ स्वीकार किया’।

                           आदिवासियों के प्रमुख लोकनृत्य
1.   लांगी नृत्य - काली की उपासना हेतु किया जाने वाला नृत्य। यह मध्य प्रदेश के बंजारों द्वारा राखी की पूर्णिमा को किया जाता है।
2.   मुन्दड़ी नृत्य - मध्य प्रदेश स्थित बस्तर की मुड़िया जनजाति द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
3.   योद्धा व ढाल नृत्य - असम के नागाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
4.   सरहुल नृत्य - सैनिक प्रकार के इस नृत्य को छोटानागपुर क्षेत्र में रहने वाली ओरांव जाति द्वारा किया जाता है।
5.   उन्डरिया नृत्य - यह नृत्य आंध्र प्रदेश स्थित हैदराबाद की गोंड जनजाति द्वारा किया जाता है।
6.   कोइसाबड़ी नृत्य - उड़ीसा की भुइया, गोड़ व गोंडा जनजाति द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
7.   दखलई नृत्य - उड़ीसा की बिझाल, सौरा, कुदा व नीर्दा जनजातियों द्वारा होली पर्व पर किया जाने वाला नृत्य।
8.   घूर्मा नृत्य - बिंझल, खोड़ा एवं सवा जनजातियों द्वारा विजय दशमी पर किया जाने वाला नृत्य।
9.   गरुड़वाहन नृत्य - उड़ीसा की पैका जनजाति द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
10.   मुद्रिका नृत्य - उड़ीसा की ओरोव जनजाति द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
11.   कर्मा एवं कोल नृत्य - मध्य प्रदेश, उड़ीसा व आंध्र प्रदेश की गोंड जनजाति तथा छोटानागपुर क्षेत्र की कोल जनजाति द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
12.   सुआ नृत्य - मध्य प्रदेश की बैगा जनजाति की स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
13.   सैला नृत्य - मध्य प्रदेश की बैगा जनजाति के पुरषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
14.   जदूर नृत्य - उड़ीसा स्थित मयूरभंज क्षेत्र की भूमिया जनजाति द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
15.   नवरानी नृत्य - गोंड जनजाति द्वारा किया जाने वाला नृत्य।

 

                                 भारत के प्रमुख लोक नृत्य
लोक नृत्य                  राज्य                         लोक नृत्य                 राज्य
बाँस नृत्य                  मिजोरम                    कक्सर                    मध्य प्रदेश
जादुर                        बिहार                        लिंगी                      आंध्र प्रदेश
छाऊ                         उड़ीसा                       भाँगड़ा                     पंजाब
लाई हरोबा                 मणिपुर                    कोलट्टम                   तमिलनाडु
गर्वा                         गुजरात                     रऊफ                        कश्मीर
डा.डिया रास              राजस्थान

 

उपनिवेशवाद
    -     भूमिहीन खेतिहर मजदूरों की संख्या जहां 1857 में पूरे कृषक आबादी का मात्रा 13 प्रतिशत था वहीं 1951 में यह बढ़कर 28 प्रतिशत हो गया।
    -     1901 और 1941 के बीच प्रति व्यक्ति कृषि उत्पादन में 14 प्रतिशत की गिरावट आ गई। 
    -     1940 के दशक तक देश की 70 प्रतिशत भूमि पर जमींदारों का कब्जा हो चुका था। 
    -     1951 में लोहे के हलों की संख्या देश में 9,30,000 थी वहीं लकड़ी के हलों की संख्या करीब-करीब 3 करोड़ 18 लाख थी। 
    -     1938-39 में बोए गए खेतों के सिपर्फ 11 प्रतिशत भाग में ही उन्नत बीच का उपयोग किया जाता था। 
    -     1946 तक देश में सिपर्फ 9 कृषि महाविद्यालय मौजूद थे जिनमें छात्रों की संख्या मात्रा 3110 थी। 
    -     1940 के दौराण कुल बोए गए खेतों का 27 प्रतिशत सिंचाई के तहत आ चुका था। 
    -     1946 तक कुल औद्योगिक मजदूरों का लगभग 30» और उद्योगों द्वारा सृजित मूल्यों को 55 प्रतिशत सिपर्फ कपास और जूट उद्योग में ही सीमित था। 
    -     ब्रिटिश शासन की समाप्ती के समय कुल राष्ट्रीय आय का मात्रा 7.5 प्रतिशत हिस्सा आधुनिक उद्योगों से प्राप्त होता था। 
    -     1950 में भारत ने अपनी आवश्यकता की 90 प्रतिशत मशीनों का आयात किया था। 
   -  1950 में भारत का इस्पात उत्पादन 10 लाख टन, कोयला 3 करोड़ 28 लाख टन, सीमेंट 27 लाख टन, 30 लाख रुपए मूल्य की मशीन एवं औजार उत्पादन 7 इंजन, 99,000 साइकिल, 1 करोड़ 40 लाख             बिजली बल्व, 33,000 सिलाई मशीन, प्रति व्यक्ति 14 किलोवाट घंटा बिजली का उत्पादन। 
   -     1950 में बैंक आपिफस एवं शाखाएं की संख्या 5072 थी।
   -     1950 में 35 करोड़ 70 लाख लोगों में से मात्रा 20 लाख 30 हजार लोग आध्ुनिक उद्योगों में कार्यरत थे। 
   -     1951 में 82.3 प्रतिशत लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे थे। 
   -     1940 के दशक में भारत में 65,000 मील पक्की सड़क और करीब 42,000 मील रेलवे लाईन मौजूद थी।
   -     1039 तक सिपर्फ 7 इंजीनियरिंग कालेज देश मेें थे जिनमे छात्रों की संख्या 2217 थी। 
   -     1947 में बैंकों के कुल जमा का 64 प्रतिशत भारतीय ज्वाइंट स्टाॅक बैंकों के पास था। जबकि भारतीय स्वामित्व की बीमा कंपनियों के 75 प्रतिशत बीमा व्यापार पर नियंत्राण स्थापित कर लिया गया। 
   -     1943 में करीब 30 लाख लोगों की बंगाल में अकाल से मौत हो गई। 
   -     1941-50 के दौरान प्रति हजार व्यक्तियां में मृतकों की संख्या 25 थी। शिशु मृत्यु दर प्रति हजार जन्म में 175 से 190 के बीच रही।
   -     1940 से 1951 के बीच की पैदाइश वाले औसतन भारतीय मात्रा 32 वर्षों की जिंदगी की उम्मीद रखते थे।
   -     1943 में देश में 10 मेडिकल काॅलेज थे जो प्रतिवर्ष 700 डाॅक्टर तैयार करते थे। 
   -     1951 में देश में कुल 18,000 डाॅक्टर थे जिनमें से अध्किांश शहरों में रहते थे। अस्पताल की संख्या 1915 थीं। जिनमें 1,16,731 बिस्तरों की व्यवस्था मौजूद थी। 
   -     1935-39 के दौरान भारतीय निर्यात् का 68.5 प्रतिशत खाद्यान पेय, तंबाकू और अन्य कच्चा माल से संबंध्ति था। जबकि आयात का 64.4 प्रतिशत उद्योग निर्मित वस्तुओं का होता था। 
   -     1914 -1946 के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था में कुल बचत सकल राष्ट्रीय उत्पाद का मात्रा 20.75 प्रतिशत था। 1971-75 में यह 12.35 प्रतिशत हो गया। 
   -     आजादी मिलने के ठीक पहले किसानों द्वारा लगान और सूद के रूप में अदा की गई इसमें 1 अरब 40 करोड़ रुपया प्रतिवर्ष होता था। 1937 तक कुल ग्रामीण ट्टण 18 अरब रुपयों तक पहुंच चुका था। 
   -     1890 के बाद से केंन्द्रीय सरकार की आमदनी का 50 प्रतिशत सैनिक खर्च में ही लग जाता था। 1947-48 के दौरान भी यह 47 प्रतिशत था।
   -     1946-1901 तक कुल राजस्व का 53 प्रतिशत मालगुजारी और 16 प्रतिशत नमक कर से प्राप्त होता था। 
    ¯    1890 के बाद से केन्द्रीय सरकार की आमदनी का 50 प्रतिशत सैनिक खर्च में ही लग जाता था। 1947-48 के दौरान भी यह 47 प्रतिशत थी।
   -     सन् 1919 के बाद मात्रा 3 प्रतिशत लोग ही वोट डाल सकते थे जबकि 1935 के बाद यह संख्या बढ़ कर 15 प्रतिशत तक ही पहुंच सकी।
   -     1947 तक आई सी.एस. के 48 प्रतिशत सदस्य भारतीय हो गए थे।
   -     1951 में करीब 84 प्रतिशत लोग निरक्षर थे औरतों की 92 प्रतिशत आबादी निरक्षत थी देश में मात्रा 13,590 मिडिल स्कूल और 7288 हाई स्कूल थे।    

 

 

शास्त्रीय नृत्य तथा उनके नर्तक/नर्तकी
1.    भरतनाट्यम् - अरु.डेल, यामिनी कृष्णमूर्ति, रुक्मिणी देवी, एस. के. सरोज, टी. बाला सरस्वती, सोनल मानसिंह, ई. कृष्ण अय्यर, रामगोपाल, लीला सैक्सन, पद्मा सुब्रम.यम, स्वप्नसुन्दरी, मृणालिनी साराभाई, रोहि.टन कामा, मालविका सारुक्कई, बैजयन्तीमाला बाली, कोमला वरदन।
2.    कथकली - वल्लतोल नारायण मेनन, रामगोपाल, मृणालिनी साराभाई, शान्ताराव, उदयशंकर, आनन्द शिवरामन, कृष्णन कुट्टी।
3.    कत्थक - लच्छू महाराज, अच्छन महाराज, सुखदेव महाराज, शम्भू महाराज, नारायण प्रसाद, जयलाल, दमयन्ती जोशी, सितारादेवी, चन्द्रलेखा, भारती गुप्ता, शोभना नारायण, मालविका सरकार, गोपीकृष्ण, बिरजू महाराज आदि।
4.    कुचिपुड़ी - वेम्पति सत्यनारायणन्, यामिनी कृष्णमूर्ति, राधा रेड्डी, स्वप्न सुन्दरी, चिन्ता कृष्णमूर्ति, राजा रेड्डी, लक्ष्मीनारायण शास्त्री।
5.    ओडिसी - इन्द्राणी रहमान, कालीचन्द,कालीचरण पटनायक, सोनलमान सिंह, संयुक्ता पाणिग्रही, मिनाती दास, मायाधर राउत, रंजना डेनियल्स, प्रियंवदा मोहन्ती, माधवी मु०ल आदि।
6.    मणिपुरी - रीता देवी, सविता मेहता, थाम्बल यामा, सिंहजीत सिंह, झावेरी बहनें, कलावती देवी, निर्मला मेहता, गाम्बिती देवी आदि।
7.    मोहिनी अट्टम - हेमामालिनी, तारा निडुगाड़ी, तंकमणि, के. कल्याणि अम्मा, भारती शिवाजी, श्रीदेवी, सेशन मजूमदार, कला देवी, गीता नायक, कनक रेले, रागिनी देवी आदि।

 

विभिन्न प्रदेशों के प्रमुख लोकनृत्य

  • असम - बिहू, खेलगोपाल, कलिगोपाल, नटपूजा, महारास, बोईसाजू, झुमुरा, माडुभांगी, खेलचैगम्बी, नागानृत्य, होब्जानाई आदि।
  •  आन्ध्र प्रदेश - मधुरी, घण्टा-मरदाला, कुम्भी, बतकम्मा आदि।
  • अरुणाचल प्रदेश - मुखौटा तथा युद्धनृत्य।
  • ख्    बिहार - छऊ, जदूर, सरहुल, करमा, वैमा, माधी, जटजटिन, जाया, कीर्तनियां, पंवरिया, सामा चकेवा, माघा, सोहराई, जात्रा, घुमकुड़िया आदि।
  • प. बंगाल - जात्रा, वाउल, जाया, गम्भीर, काठी, कीर्तन, रामभेसे आदि।
  •  गुजरात - गरबा, रासलीला, डांडियारास, लास्या, टिप्पनी, झंकोलिया, दीपक, पणिहारी, गणपतिभजन आदि।
  •  गोआ - दकनी, झगोर आदि।
  • हिमाचल प्रदेश - जद्दा, झेंता, छपेली, थाली, डंडानाच, डफ, सांगला आदि।
  • जम्मू एवं कश्मीर - रउफ, हिकत, चाकरी, भाखागीत आदि।
  • कर्नाटक - यक्षगाण, भूतकोला आदि।
  •  केरल - कुडीअट्टम, कालीअट्टम, मोहनीअट्टम, कैकुट्टीकलाई, टप्पात्रिकोली, पादयानी, भद्रकली, थुलाल आदि।
  • मध्य प्रदेश - दिवाली, चैता, सुआ, टपाडी, पण्डवानी, बिल्मा, हेरुदन्ना, छेरिया, करना, पंथीनृत्य, गौडो, नवरानी आदि।
  • महाराष्ट्र - लावनी, तमाशा, दहिकला, मौनी, कोली पोवाड़ा, लीजम, बोहदा, गोधलगीत आदि।
  •   मेघालय - बांगला नृत्य।
  •   मिजोरम - चेरोकान तथा पाखूपील नृत्य।
  •  मणिपुर - राखाल, लाईहरीबा नृत्य, बसन्तरास, संकीर्तन, थांगटा, कीतलम आदि।
  •  नागालैण्ड - खैबा, नूरालिम, लिम, कुमीनागा, रेंगमानागा, चोंग तथा युद्धनृत्य।
  • उड़ीसा - छाऊ, डंडानट, पैका, सवारी, जदूरमुदारी, गरुड़वाहन आदि।
  • पंजाब तथा हरियाणा - गिद्धा, भांगड़ा आदि।
  •  राजस्थान - घूमर, कठपुतली, बगरिया, संकरिया, पनिहारी, गणगौर, पनघट नृत्य, तेराताली, खयाल, गोपिका लीला, झूलन लीला, डण्डिया, जिन्दाद, घोपाल, गीदड़ आदि।
  • तमिलनाडु - कोलाट्टम, कुमी, पिन्नलकोलाट्टम आदि।
  •  उत्तर प्रदेश - नौटंकी, झूला, छपेली, कजरी, करन, जट्टा, जांगर, थाली, विदेसिया, दीवाली, रासलीला, कुमायूं नृत्य आदि।


 

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FAQs on आजादी के बाद का भारत (भाग -3) - इतिहास,यु.पी.एस.सी - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. आजादी के बाद के भारत का इतिहास क्या है?
उत्तर: आजादी के बाद के भारत का इतिहास भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में माना जाता है। इस दौरान, भारत ने अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की और एक संविधानिक गणतंत्र की स्थापना की। इसके साथ ही भारत ने अपनी आर्थिक और सामाजिक विकास की ओर तेजी से बढ़ना शुरू किया।
2. आजादी के बाद भारत में कौन-कौन से महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं?
उत्तर: आजादी के बाद भारत में कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं निम्नलिखित हैं: - संविधान निर्माण: भारत ने 1950 में अपना संविधान बनाया, जो मुक्त और न्यायपूर्ण समाज की आधारशिला बन गया। - गोल्डन जुबली: 1947 में भारतीय स्वतंत्रता की पांचवीं वर्षगांठ मनाई गई, जिसे 'गोल्डन जुबली' के नाम से जाना जाता है। - भारत-पाकिस्तान विभाजन: आजादी के बाद, भारत और पाकिस्तान में हिंसा और विभाजन की प्रक्रिया हुई, जिससे दो अलग देशों का निर्माण हुआ। - हिंदी चिंतन आंदोलन: आजादी के बाद, हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करने के लिए हिंदी चिंतन आंदोलन शुरू हुआ। - ग्रीन रेवोल्यूशन: इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व में, भारत ने कृषि क्षेत्र में ग्रीन रेवोल्यूशन की शुरुआत की, जिससे खाद्य सुरक्षा में सुधार हुआ।
3. आजादी के बाद भारत में कौन-कौन से सामाजिक और आर्थिक विकास के क्षेत्र में सुधार हुआ?
उत्तर: आजादी के बाद, भारत में कई सामाजिक और आर्थिक विकास के क्षेत्र में सुधार हुए। कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सुधार निम्नलिखित हैं: - शिक्षा: भारत ने शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार किए, जिससे लोगों की शिक्षा स्तर में सुधार हुआ। - स्वास्थ्य: भारत ने स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत बनाने के लिए कई योजनाएं चलाईं, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार हुआ। - आर्थिक विकास: भारत ने आर्थिक विकास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम उठाए, जैसे कि निवेश, उद्यमिता, औद्योगिकीकरण, आदि। - महिला सशक्तिकरण: भारत ने महिलाओं की सशक्तिकरण के लिए कई योजनाएं चलाईं, जिससे महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ।
4. आजादी के बाद भारत में कौन-कौन से व्यक्ति और घटनाएं महत्वपूर्ण रहे?
उत्तर: आजादी के बाद, कई व्यक्ति और घटनाएं भारत में महत्वपूर्ण रहे। कुछ महत्वपूर्ण व्यक्ति और घटनाएं निम्नलिखित हैं: - महात्मा गांधी: महात्मा गांधी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के मुख्य नेता थे और उनके महान योग
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