बाढ़ एक विनाशकारी प्राकृतिक आपदा है, जो व्यापक स्तर पर जान-माल को हानि पहुंचाती है, अर्थात् जब नदियों का जल अपने तटबंधों को तोड़कर बाहर की ओर बहने लगता है, तो सामान्यतः इसे बाढ़ कहा जाता है। बाढ़ एक ऐसी घटना है, जो प्रायः दुनिया के हर देश में आती है। बांग्लादेश, चीन एवं भारत जैसे देश बाढ़ से अत्यधिक प्रभावित रहते हैं। बाढ़ के चपेट में आकर कई गांवों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। एक विनाशकारी बाढ़ सड़क, पुल, पुलिया, रेलवे पुल एवं पटरी, वन एवं मकानों आदि को व्यापक क्षति पहुंचा सकती है। बाढ़ की आवृत्ति के अनुसार भारत में बाढ़ क्षेत्रों को सामान्य रूप से 3 भागों में बांटा जा सकता है -
2. भारत में बाढ़ के प्रभाव
यद्यपि अचानक उत्पन्न होने वाली बाढ़ की समस्या को रोका नहीं जा सकता है, परन्तु समुचित व समेकित प्रबंधन से होने वाले जान-माल की हानि को कम किया जा सकता है। बाढ़ से बचने के उपाय निम्नलिखित हैं -
1. बाढ़ आने से पहले के उपाय
2. बाढ़ आने के बाद के त्वरित उपाय
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में जान-माल की क्षति को कम करने के लिए त्वरित कार्यवाही प्राथमिक रूप से की जाती है, जिसके अन्तर्गत निम्नलिखित बिन्दु महत्वपूर्ण है -
3. बाढ़ आने के बाद के दीर्घकालिक उपाय
(i) यद्यपि बाढ़ को रोका नहीं जा सकता परन्तु समुचित भूमि उपयोग के द्वारा इससे होने वाले नुकसान को कम करना सम्भव है। इस संदर्भ में बाढ़ आयोग ने बाढ़ क्षेत्र में बाढ़ क्षेत्र जोनिका' की अवधारणा प्रस्तुत की है। इसके अनुसार बाढ़ क्षेत्र में भूमि उपयोग करने के क्रम में प्राथमिकताओं का निर्धारण आवश्यक है। उदाहरणार्थ - रिहायसी बस्तियां, हॉस्पिटल, स्कूल, हवाई अड्डा आदि का विकास अपेक्षाकृत ऊँचे भागों में की जा सकती है, जबकि खेत का मैदान, कार पार्किंग आदि निचले भूमि पर भी बनाए जा सकते हैं। ऐसे प्रयासों के द्वारा बाढ़ से होने वाले नुकसानों को कम किया जा सकता है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लिए चावल एवं जूट जैसी फसलों का विशेष किस्मों का विकास किया जा रहा है, जिनसे बाढ़ कि स्थिति में भी उत्पाद प्राप्त किया जा सके।
(ii) वर्ष 1976 में 'राष्ट्रीय बाढ़ आयोग' का गठन किया गया। आयोग ने बाढ़ नियंत्रण के लिए एक समन्वित योजना को क्रियान्वित किया है। इसके अन्तर्गत बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में भूमि उपयोग तथा विकास कार्यों को विनियमित करने हेतु कानून बनाए गए तथा नदियों में खतरे के निशान का निर्धारण किया गया। इसका प्रमुख लक्ष्य बांध निर्माण, जल निकासी के लिए नहरों का निर्माण, नगरों को सुरक्षित करना, गांवों का ऊँचे स्थान पर स्थानांतरण, लाभ प्राप्त क्षेत्र आदि शामिल थे।
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