UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi  >  आर्थिक शब्दावली (भाग- 2) - पारंपरिक अर्थव्यवस्था

आर्थिक शब्दावली (भाग- 2) - पारंपरिक अर्थव्यवस्था | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

  • शेयर (Shares)-एक संयुक्त पूँजी कम्पनी अपनी स्थापना अथवा विस्तार के लिए जब अपनी पूँजी को न्यूनतम राशि की इकाइयों में जनता से प्राप्त करती है तो उसी इकाई को शेयर अथवा अंश कहा जाता है। शेयर का प्रमाण-पत्रा इसी इकाई के गुणांक के रूप में जारी किया जाता है। आजकल प्रायः सभी कम्पनियाँ अपने शेयर का मूल्य 10 रुपए रखती है, जबकि कुछ पुरानी कम्पनियों के शेयर 50 रुपए या 100 रुपए मूल्य के भी है। शेयरों का वर्गीकरण इक्विटी शेयर व वरीयता प्राप्त शेयर(Preference shares) में किया जा सकता है।
  • निर्गम(Issue)-संयुक्त पूँजी कम्पनियों (Joint Stock Companies) द्वारा पूँजी उगाहने के लिए जब शेयर या डिबेन्चर जारी किए जाते है तो इस क्रिया को ‘निर्गम’ (Issue) कहा जाता है। जब यह शेयर/डिबेन्चर आम जनता को उपलब्ध कराए जाते है तो निर्गम को ‘पब्लिक इश्यू’ कहा जाता है।
  • प्राधिकार निर्गम(Right Issue)-जब कम्पनी अपने शेयर धारकों को अतिरिक्त शेयर निर्गमित करती है जो कि उनके पास पहले से अधिकृत शेयरों के एक निश्चित अनुपात में अधिकार स्वरूप दिए जाते है, उन्हें ‘राइट इश्यू’ कहा जाता है। ये शेयर अंकित सम-मूल्य पर अथवा प्रीमियम पर दिए जाते है।
  • म्यूचुअल फण्ड (Mutual Fund)-म्यूचुअल फण्ड का संचालन निवेशक संस्थाओं व बैंकों द्वारा किया जाता है। इसके अन्तर्गत इनके संचालकों द्वारा निवेश के लिए इच्छुक व्यक्तियों से धन लेकर एक कोष बनाया जाता है। प्रत्येक निवेशक को उसकी धनराशि के मूल्य के बराबर यूनिट दिए जाते है। इस एकत्रित कोष का उपयोग विभिन्न प्रकार के निवेश अवसरों, जैसे-शेयर, ऋणपत्रों तथा अन्य प्रकार के बाण्डों में किया जाता है। इस प्रकार से अर्जित लाभ को निवेशकों द्वारा कोष में किए गए योगदान के अनुपात में वितरित कर दिया जाता है। भारत में स्टेट बैंक, इण्डियन बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, जीवन बीमा निगम, यूनिट ट्रस्ट आदि ने म्यूचुअल फण्ड्स स्थापित किए है।
  • प्राथमिक बाजार (Primary Market)-प्राथमिक बाजार उस बाजार को कहा जाता है जहाँ प्रतिभूतियों का विनिमय निवेशकों तथा कम्पनियांे के मध्य सीधे ही होता है। अन्य शब्दों में कम्पनी द्वारा जारी किए गए शेयर, ऋणपत्रा अथवा प्रतिभूति की खरीद के लिए निवेशकों द्वारा सीधे इन्हें जारी करने वाली कम्पनियों को निर्धारित आवेदन-पत्रा भेजे जाते है तथा आवंटन के लिए कम्पनी के नाम भुगतान किया जाता है।
  • द्वितीयक बाजार (Secondary Market)-द्वितीयक बाजार उस बाजार को कहते है जहाँ प्रतिभूतियों का विनिमय विभिन्न निवेशकों के मध्य ही होता है। अन्य शब्दों में, पहले से जारी प्रतिभूतियों (शेयरों एवं ऋणपत्रों इत्यादि) का क्रय-विक्रय दलालों के माध्यम से किया जाता है।
  • निपटान तिथि(Settlement Date)-शेयरों के अग्रिम सौदों (Forward trading)  अथवा हैण्ड डिलीवरी के अन्तर्गत शेयरों की सुपुर्दगी अथवा इनका भुगतान अनुबन्ध तिथि (Agreement date)  से 14 दिनों के अन्दर-अन्दर ही करना होता है। कार्यकारी रूप से यह तिथि (निपटान तिथि) क्रमशः एक शुक्रवार को छोड़कर अगला शुक्रवार होती है।
  • बदला (Badla)- जब किसी निवेशक द्वारा किसी शेयर की खरीद उसके मूल्य में निकट भविष्य में वृद्धि की आशा के साथ की जाती है, किन्तु उस सौदे की निपटान तिथि (Settlement Date) तक उस शेयर के मूल्य में वृद्धि नहीं होती है तो ऐसी स्थिति में वह निवेशक या तो उन शेयरों के वर्तमान मूल्य का भुगतान करके उन्हें खरीद लेता है अथवा वह अपने सौदे को आगामी निपटान तिथि तक आगे खिसका सकता है, किन्तु ऐसा करने के लिए उसे सौदे के कुल मूल्य के एक निश्चित प्रतिशत के रूप में भुगतान करना आवश्यक होता है। इस प्रकार के भुगतान को बदला कहा जाता है।
  • पोर्टफोलियो (Portfolio)-पोर्टफोलियो शब्द का उपयोग उन विभिन्न प्रकार की समस्त वित्तीय परिसम्पत्तियों के लिए किया जाता है जो किसी निवेशकर्ता के अधिकार में होती है। जैसे-शेयर, ऋणपत्रा, सरकारी बाॅण्ड, यूनिट ट्रस्ट प्रमाण-पत्रा आदि।
  • विवरणिका(Prospectus)-किसी कम्पनी द्वारा खुले बाजार में पूँजी निर्गम करने के लिए आवश्यक है कि वह कम्पनी की वित्तीय स्थिति, प्रबन्ध व्यवस्था, उपलब्धियाँ, भावी योजनाओं व निहित जोखिमों का विवरण जनता को उपलब्ध कराए ताकि निवेशकर्ताओं को निवेश सम्बन्धी निर्णय लेने में सुविधा रहे। इस प्रकार से प्रकाशित विवरण को ही विवरणिका (Prospectus) कहते है।
  • अन्डर राइटर्स (Under writers)-कम्पनियों द्वारा ‘निर्गम’ जारी करने की स्थिति में इस बात की संभावना भी रहती है कि वांछित पूँजी की उगाही न हो सके। वांछित पूँजी की पूर्ण उगाही सुनिश्चित करने के लिए कुछेक वित्तीय संस्थाओं की सेवा ली जाती है जो कम्पनी से कुछ कमीशन लेकर पूर्ण उगाही की गारण्टी लेती है। इस सेवा को ही अण्डर राइटिंग व सेवा प्रदान करने वाली संस्था को ‘अण्डर राइटर’ कहा जाता है। वांछित पूँजी की पूर्ण उगाही न हो पाने की स्थिति में गैर अभिदत्त भाग ‘अण्डर राइटर्स’ को पूरा करना पड़ता है।
  • स्टाॅक एक्सचेन्ज-स्टाॅक एक्सचेन्ज उस स्थान को कहते है जहाँ शेयरों एवं प्रतिभूतियों का लेन-देन होता है। इसे स्टाॅक मार्केट अथवा शेयर बाजार के नाम से भी जाना जाता है। शेयर बाजार में माँग एवं पूर्ति के आधार पर प्रतिभूतियों की कीमतें निर्धारित की जाती है। अब तक स्टाॅक एक्सचेन्ज प्रतिभूति संविदा (नियमन) अधिनियम, 1956 के द्वारा पारित आदेश एवं नियमों के तहत कार्य करते थे, किन्तु वर्तमान में इनका नियन्त्राण सेबी(SEBI) के अधीन है।
  • भूमि सुधार (Land Reforms)-भूमि सुधार का आशय भूमि के साथ किसान के सम्बन्धों में संस्थागत परिवर्तन लाए जाने से है। छोटे किसानों व खेतिहर मजदूरों के हितों के अनुकूल भूमि स्वामित्व का वितरण भूमि सुधार कहलाता है।
  • हरित क्रान्ति (Green Revolution)-हरित क्रान्ति का आशय छठे दशक के मध्य से कृषि उत्पादन में उस वृद्धि से है जो थोड़े समय में, ऊँची उपज वाले बीजों (HYVS) एवं रसायनिक खादों की नई तकनीक के प्रयोग के फलस्वरूप हुई। हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप देश में गेहूँ के उत्पादन में काफी वृद्धि हुई है।
  • विस्तृत वर्गीकरण की अवधारणा (Concept of Broad Banding)-यह अवधारणा औद्योगिक लाइसेंस व्यवस्था से जुड़ी हुई है। इसका मुख्य लक्ष्य उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए उत्पाद मिश्रण (Product Mix) में लोचता उत्पन्न करना है ताकि बाजार माँग के अनुसार उत्पादन एवं पूर्ति की जा सके।
  • राजकोषीय नीति या बजट नीति(Fiscal Policy or Budgetary Policy)-किन्हीं विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु सरकार द्वारा करारोपण, सार्वजनिक व्यय एवं ऋण का उपयोग राजकोषीय नीति के अन्तर्गत आते है।
  • बजट-बजट में आय एवं व्यय के अनुमान लगाए जाते है तथा व्ययों को पूर्ण करने हेतु आय व व्यय में समायोजन किया जाता है। अतः बजट किसी परिवार संस्था अथवा सरकार की अनुमानित आय-व्ययों का एक विवरण है।
  • आगम या राजस्व बजट (Revenue Budget)-आगम बजट चालू व्ययों एवं प्राप्तियों का एक सामान्य बजट है।
  • पूँजीगत बजट (Capital Budget)-पूँजीगत प्राप्तियों एवं ऋणों के भुगतान एवं कोषों के जमा के वित्तीय व्यवहारो के लेखों को पूँजीगत बजट कहते है। इसमें विकास योजनाओं से सम्बन्धित व्ययों को सम्मिलित किया जाता है। यह बजट दीर्घकालीन दृष्टि से बनाए जाते है। 
  • ड्राफ्ट (Draft) -यह एक ऐसा साख प्रपत्रा है, जिसमें किसी बैंक द्वारा अपनी किसी अन्य शाखा को पावक (Payee) के आदेशानुसार ड्राफ्ट में उल्लेखित धनराशि माँग पर भुगतान करने का आदेश होता है। ड्राफ्ट किसी बैंक द्वारा पहले से भुगतान प्राप्त करके जारी किया जाता है तथा जिस व्यक्ति अथवा संस्था के नाम ड्राफ्ट  बनाया जाता है, उसकी पहचान करने के बाद इसका भुगतान कर दिया जाता है। ड्राफ्ट भी चैक की भाँति रेखांकित अथवा अरेखांकित हो सकता है।
  • समाशोधन गृह अथवा क्लीयरिंग हाडस (Clearing House)- समाशोधन गृह अथवा क्लीयरिंग हाउस वह स्थान है जहाँ विभिन्न बैंकों के प्रतिनिधि प्रतिदिन एकत्रा होते हैं। क्लियरिंग हाउस प्रायः प्रत्येक ऐसे शहर में होता है, जहाँ 3.4 अथवा उससे अधिक बैंकें होती हैं। इसी स्थान पर उन प्रतिनिधियों के मध्य चैकों का आदान-प्रदान तथा जमा-खर्च होता है। इस प्रकार यहाँ हजारों चैकों का लेन-देन बहुत ही सरलता से तथा थोड़े समय में ही सम्पन्न हो जाता है। इस प्रक्रिया को समाशोधन (Clearing ) कहते हैं। भारत में जिन शहरों में रिजर्व बैंक की शाखा है, वहाँ रिजर्व बैंक में ही समाशोधन गृह होता है। जिन शहरों में रिजर्व बैंक की शाखा नहीं है, वहाँ स्टेट बैंक की मुख्य शाखा में समाशोधन गृह होता है।
  • धारक बाॅण्ड (Bearer Bond)- धारक बाॅण्ड वे ऋणपत्रा हैं जिनका भुगतान समयावधि के बाद कोई भी प्राप्त कर सकता है। इन पर न तो खरीददार का नाम लिखा होता है और न ही हस्तान्तरित करते समय इनकी पीठ पर हस्ताक्षर ही करने होते हैं। प्रायः इनका उपयोग काले धन को सफेद धन में बदलने के लिए किया जाता है।
  • सस्ती मुद्रा (Cheap Money)- वह मुद्रा जिसे नीची ब्याज पर (Low interest rate)  पर प्राप्त किया जा सकता है, सस्ती मुद्रा कहलाती है।
  • बैंक दर (Bank Rate)- बैंक दर से अभिप्राय उस दर से है जिस पर केन्द्रीय बैंक सदस्य बैंकों के प्रथम श्रेणी के बिलों की पुनर्कटौती करता है अथवा स्वीकार्य प्रतिभूतियों पर ऋण देता है। कुछ देशों में इसे कटौती-दर भी कहा जाता है। बैंक दर में परिवर्तन करके केन्द्रीय बैंक देश में साख की मात्रा को प्रभावित कर सकता है।
  • प्रत्यक्ष कार्यवाही (Direct Action)— जब वाणिज्यिक बैंक केन्द्रीय बैंक के आदेशों का पालन नहीं करते हैं तो उन बैंकों को नीति का अनुकरण करने के लिए बाध्य करने की विधि को ही प्रत्यक्ष कार्यवाही कहा जाता है, जैसे बैंकों को दी जाने वाली पुनः कटौती की सुविधा को बन्द कर देना, अतिरिक्त साख की स्वीकृति न देना आदि।
  • वैट एवं माॅडवेट -माॅडवेट संशोधित मूल्य संवर्द्धित कर का संक्षिप्त रूप है। वस्तुतः यह वैट अर्थात् मूल्य संवर्द्धित कर का संशोधित रूप है। वैट की सबसे पहले सिफारिश 1976 में लक्ष्मीकांत झा की अध्यक्षता में गठित समिति ने की थीं। वैट का तात्पर्य है ‘जोड़े जाने वाले मूल्य पर कर’। यह वह कर है जो उत्पादन की प्रत्येक अवस्था पर मूल्य में होने वाली शुद्ध वृद्धि के आधार पर लगाया जाता है। जबकि माॅडवैट के तहत आगतों और मध्यवर्ती वस्तुओं पर कर समाप्त करके उसे निर्मित अंतिम वस्तुओं पर लगाया जाता है। इससे किसी वस्तु पर दोबारा या बार-बार उत्पादन कर लगने की संभावना समाप्त हो जाती है। 
  • जीरो कूपन बाॅण्ड - यह बाॅण्ड ऐसी सरकारी प्रतिभूति है जिस पर प्रत्यक्ष रूप से कोई ब्याज देय नहीं होता तथा परिपक्वता के पश्चात् केवल अंकित मूल्य का ही भुगतान किया जाता है।
  • टाॅबिन टैक्स - नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्राी जेम्स टाॅबिन ने 1978 में विदेशी मुद्रा बाजार में सभी प्रकार के लेन-देन पर कर लगाने का सुझाव दिया था। उनके मुताबिक विदेशी मुद्राओं में होने वाले अधिकार लेन-देन सट्टा और अंतर्राष्ट्रीय ब्याज दरों में अंतर से लाभ कमाने की प्रवत्ति से सम्बद्ध होते हैं। ऐसे लेन-देन पर कर लगाकर पर्याप्त संसाधन संग्रहित किये जा सकते हैं। प्रो. जेम्स टाॅबिन के नाम पर ही इस प्रकार के कर को ‘टाॅबिन टैक्स’ कहा जाता है।
  • मुद्रा का अवमूल्यन - विदेशी मुद्रा के सापेक्ष अपने देश की मौद्रिक इकाई के मूल्य को जान-बूझकर कम करने को ‘मुद्रा का अवमूल्यन’ कहा जाता है। अवमूल्यन से विदेशी बाजारों में निर्यात सस्ता हो जाता है और घरेलू बाजार में आयात महंगा हो जाता है। फलतः इससे निर्यात में बढ़ोत्तरी और आयात में कमी आती है। लेकिन इसके लिए यह जरूरी है कि अवमूल्यन वाले देश के निर्यात और आयात की मांग अधिक लोचदार हो।
  •  गिनी गुणांक - यह किसी आवृत्ति के संकेन्द्रण को मापता है। इससे आर्थिक असमानता का आकलन किया जाता है। गिनी गुणांक किसी आवृत्ति वितरण द्वारा प्राप्त माध्यम अंतर को समानांतर माध्य के दोगुने से भाग देने पर प्राप्त होता है। यदि G से गिनी गुणांक को, से गिनी के माध्य अंतर को तथासे समानांतर माध्य को प्रदर्शित किया जाये तो गिनी गुणांकG=Δ1/2x होगा।समान वितरण में गिनी गुणांक का मान Δ होता है, जबकि पूर्ण संकेन्द्रण की स्थिति में इसका मान 1 होता है। वितरण में गिनी गुणांक के मान के क्रमशः बढ़ने का तात्पर्य असामन्ता में वृद्धि से लगाया जाता है।
  • योजनावकाश - अभूतपूर्व सूखे, मुद्रा अवमूल्यन व संसाधनों की कमी के कारण 1966.69 के बीच तीन वार्षिक योजनाएं तैयार की गयीं, जिससे चतुर्थ योजना समय से लागू नहीं हो सकी। 1966.69 की अवधि को योजनावकाश के नाम से जाना जाता है।
  • काॅल मनी - कोई भी कंपनी शेयर जारी करते समय शेयर मूल्य का भाग शेयर के आवेदन पत्रा के साथ लेती है। शेष राशि शेयर धारकों से आगामी निश्चित तिथि तक किश्तों में मांगी जाती है, जिसे ”काॅल मनी” कहा जाता है।
  • मुद्रा भ्रम - किसी वस्तु के वास्तविक मूल्य के बाजार मौद्रिक मूल्य से प्रतिक्रिया व्यक्त करना मुद्रा भ्रम कहलाता है।
  • विक्रेता बाजार - विक्रेता बाजार वह बाजार है जिससे मांग पूर्ति से अधिक हो। इस  प्रकार बाजार विक्रेता के लिए लाभकारी होता है।
  • क्रेता बाजार - क्रेता बाजार वह बाजार है जिसमें वस्तु की मांग पूर्ति से कम होती है। इस प्रकार का बाजार क्रेता के लिए लाभदायक होता है।
  • सकल घरेलू उत्पाद - एक निश्चित अवधि में देश की भौगोलिक सीमाओं के अंदर वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन का कुल प्रवाह सकल घरेलू उत्पाद कहलाता है। इसमें बाह्य स्रोत्रों से प्राप्त आय शामिल नहीं है। इसमें मशीनों की घिसावट को भी शामिल किया जाता है। बाजार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद की गणना समस्त वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन का मूल्यांकन करके उन्हें जोड़ कर प्राप्त की जाती है। इसमें मध्यम वस्तुओं को शामिल न कर सिर्फ अंतिम उपभोग के लिए प्रयुक्त वस्तुओं अथवा विनियोग वस्तुओं को ही शामिल करते हैं। साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पादन की गणना बाजार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद में से अप्रत्यक्ष करों को हटा कर और उस पर प्राप्त अनुदानों को जोड़ कर की जाती है।
  • सकल राष्ट्रीय उत्पाद - बाजार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद में देश के बाहर से प्राप्त शुद्ध आय को जोड़ कर बाजार कीमतों पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद प्राप्त हो जाता है। इसी प्रकार साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद में बाहर से प्राप्त शुद्ध आय जोड़ कर साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है। देश के बाहर से प्राप्त आय की गणना करते समय प्रवासी भारतीयों द्वारा देश में भेजी गयी आय को जोड़ा जाता है जबकि देश में रह रहे विदेशियों द्वारा अपने देश को भेजी गयी राशि घटायी जाती है।
  • राजकोषीय घाटा - सरकार का कुल ऋण भार, जिसके अन्तर्गत बाजार ऋण, लघु बचतें, प्राविडेंट फंड, बाह्य ऋण तथा बजटीय घाटे को शामिल किया जाता है ‘राजकोषीय घाटा’ कहलाता है।
  • हरित क्राांति - 1960.70 के दशक के मध्य के पश्चात् भारत में पारंपरिक कृषि व्यवहारों का प्रतिस्थापन आधुनिक तकनीक एवं फार्म व्यवहारों से किया जा रहा है, जिसे हरित क्रांति की संज्ञा दी गई है। हरित क्रांति की मुख्य उपलब्धि प्रधान अनाजों अर्थात् गेहूं और चावल के उत्पादन में वृद्धि है। हरित क्रांति की सफलता एक सीमित सफलता रही। हरित क्रांति के प्रभावहीन गेहूं, बाजरा, मक्का व गन्ने के उत्पादन में बहुत अधिक वृद्धि हुई। जबकि चावल, सभी खाद्यान्नों के औसत उत्पादन में वृद्धि के स्तर से नीचे था, लेकिन चने, पटसन और रूई के संबंध में वृद्धि-दर बहुत ही मंद रही है। खाद्यान्नों में वृद्धि, पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, आंध्रप्रदेश के कुछ चुने हुए जिलों, महाराष्ट्र और तमिलनाडु  में हुई। इस कारण भारत में असंतुलित विकास की प्रक्रिया आरंभ हो गयी।
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FAQs on आर्थिक शब्दावली (भाग- 2) - पारंपरिक अर्थव्यवस्था - भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

1. आर्थिक शब्दावली क्या होती है?
उत्तर: आर्थिक शब्दावली एक भाषा या शब्दकोष होता है जिसमें आर्थिक विषयों से संबंधित शब्दों और उनके अर्थों की सूची होती है। यह शब्दावली आर्थिक विषयों की समझ और अध्ययन को सुगम बनाने के लिए उपयोगी होती है।
2. पारंपरिक अर्थव्यवस्था क्या है और इसका महत्व क्या है?
उत्तर: पारंपरिक अर्थव्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जो देश या समाज में प्रचलित होती है और वर्तमान आर्थिक प्रणाली के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह अर्थव्यवस्था श्रमिकों, किसानों, उद्योगपतियों, व्यापारियों और सामाजिक संगठनों की जीविका, आय, और आर्थिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने में मदद करती है।
3. UPSC क्या है और इसका क्या महत्व है?
उत्तर: UPSC (संघ लोक सेवा आयोग) भारतीय संविधान के अनुसार भारतीय संघ, राज्य और संघ शासित प्रदेशों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सभी सरकारी सेवाओं की भर्ती का आयोजन करने वाली संस्था है। UPSC भर्ती प्रक्रिया के माध्यम से न्यायपालिका, प्रशासनिक, भूमि संसाधन, पुलिस, आयकर, आर्थिक, भूगर्भिक संसाधन, और अन्य क्षेत्रों में सरकारी पदों को भरता है। UPSC महत्वपूर्ण है क्योंकि यह न्यायपालिका, प्रशासनिक और अन्य सरकारी सेवाओं के लिए भारतीय नागरिकों की योग्यता का मानकीकरण करता है।
4. आर्थिक शब्दावली क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: आर्थिक शब्दावली महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से व्यक्ति आर्थिक विषयों को समझता है और उन्हें व्याख्या करता है। इससे अर्थव्यवस्था, वित्तीय योजनाएं, कारोबार, बाजार, और अन्य आर्थिक क्षेत्रों में संचालन करने की क्षमता बढ़ती है। आर्थिक शब्दावली का समय-समय पर अध्ययन करना आवश्यक है ताकि हम आर्थिक विषयों को समझ सकें और आर्थिक निर्णय ले सकें।
5. पारंपरिक अर्थव्यवस्था के क्या प्रमुख प्रकार होते हैं?
उत्तर: पारंपरिक अर्थव्यवस्था के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित होते हैं: 1. संघटित अर्थव्यवस्था: इसमें सरकार द्वारा आयोजित की गई आर्थिक गतिविधियों का प्रबंधन किया जाता है। इसमें सरकार नियम, नियमावली, और निर्देशों के माध्यम से नियंत्रण रखती है। 2. अप्रबंधित अर्थव्यवस्था: इसमें आर्थिक गतिविधियों का प्रबंधन सरकार द्वारा नहीं किया जाता है। इसमें स्वतंत्र व्यक्तियों और संस्थाओं का महत्वपूर्ण योगदान होता है। 3. विपणन अर्थव्यवस्था: इसमें व्यापार, विपणन, और वाणिज्य से संबंधित आर्थिक गत
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