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History, Art & Culture (इतिहास, कला और संस्कृति): October 2023 UPSC Current Affairs | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

महात्मा गांधी की 154वीं जयंती

चर्चा में क्यों? 

स्वतंत्रता संग्राम में उनके अपरिहार्य भूमिका के आलोक में 2 अक्तूबर, 2023 को पूरे देश में महात्मा गांधी की 154वीं जयंती मनाई गई। उनके सिद्धांत और आदर्श वर्तमान समय में अत्यंत प्रासंगिक हैं तथा राष्ट्र को प्रेरित करते हैं।

  • स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के कारण उन्हें "राष्ट्रपिता" की उपाधि प्राप्त हुई, जिसके कारण उनका चित्र भारतीय बैंकनोटों पर चित्रित किया गया।
  • बहुआयामी व्यक्तित्त्व वाले महात्मा गांधी संगीत में गहरी रुचि रखते थे और उन्होंने हमेशा ही पर्यावरण की सुरक्षा को बढ़ावा दिया

महात्मा गांधी

History, Art & Culture (इतिहास, कला और संस्कृति): October 2023 UPSC Current Affairs | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

भारतीय मुद्रा और गांधी की तस्वीर

  • भारतीय मुद्रा पर गांधी की तस्वीर मुद्रित होने की शुरुआत:
    • बैंक नोटों पर दिखाई देने वाली गांधी की तस्वीर वर्ष 1946 में ली गई उनकी एक तस्वीर का कट-आउट, अर्थात एक भाग है, जिसमें वह ब्रिटिश राजनेता लॉर्ड फ्रेडरिक विलियम पेथिक-लॉरेंस के साथ खड़े हैं।
    • इस तस्वीर के चयन का प्रमुख कारण यह है कि इस तस्वीर में गांधीजी की मुस्कुराहट की अभिव्यक्ति सबसे उपयुक्त थी, साथ ही यह तस्वीर कट-आउट चित्र की दर्पण छवि (मिरर इमेज) है।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम की धारा 25 के अनुसार, बैंकनोट की रूपरेखा (डिज़ाइन), स्‍वरूप और सामग्री भारतीय रिज़र्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड की अनुसंशा पर विचार करने के उपरांत केंद्र सरकार के अनुमोदन के अनुरूप की जाती है।
  • भारतीय नोटों पर पहली बार गांधीजी की तस्वीर:
    • गांधीजी की 100वीं जयंती के उपलक्ष्य में वर्ष 1969 में नोटों की एक नई सीरीज़/शृंखला जारी करने के साथ ही पहली बार भारतीय मुद्रा पर गांधी की तस्वीर अंकित की गई थी।
    • फिर अक्तूबर 1987 में गांधीजी की तस्वीर वाले 500 रुपए के नोटों की एक शृंखला शुरू की गई।
  • बैंक नोटों पर गांधी का स्थायित्त्व:
    • गांधी के चयन का कारण उनका राष्ट्रीय महत्त्व था और वर्ष 1996 में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अशोक स्तंभ वाले बैंक नोटों को प्रतिस्थापित करने के लिये एक नई 'महात्मा गांधी शृंखला' शुरू की गई थी।
    • सुरक्षा की दृष्टि से इन नोटों में एक गुप्त छवि, विंडोड सिक्योरिटी थ्रेड तथा दृष्टिबाधित लोगों के लिये इंटैग्लियो सुविधाओं से लैस किया गया था।

संधारणीयता के संबंध में गांधी के विचार

  • सादगी और न्यूनतावाद:
    • गांधीजी ने सरल और न्यूनतावादी जीवन शैली को बढ़ावा दिया। उनका मानना था कि लोगों को आवश्यकता से कम उपभोग करना चाहिये और सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहिये।
    • सरल जीवन अथवा "सर्वोदय" का यह विचार संसाधनों के संरक्षण और पारिस्थितिक फुटप्रिंट को कम करने के विचार को प्रोत्साहित करता है।
  • आत्मनिर्भरता:
    • गांधीजी ने सामुदायिक स्तर पर आत्मनिर्भरता के महत्त्व पर काफी बल दिया। उन्होंने भोजन, वस्त्र और अन्य बुनियादी आवश्यकताओं के मामले में गाँवों को आत्मनिर्भर बनने के विचार को बढ़ावा दिया।
    • यह दृष्टिकोण बाहरी संसाधनों पर निर्भरता को कम करने के साथ ही लंबी दूरी के परिवहन तथा व्यापार से जुड़े पर्यावरणीय प्रभावों को कम करता है।
  • अहिंसा:
    • गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांत में मानवीय संबंधों के साथ-साथ सभी जीवित प्राणी और पर्यावरण समाहित हैं। वह पशुओं के प्रति नैतिक व्यवहार में विश्वास करते थे और स्वयं शाकाहारी थे
    • यह सभी प्राणियों के कल्याण के प्रति उनकी चिंता और प्रकृति के साथ सौहार्दपूर्वक सह-अस्तित्त्व के महत्त्व को दर्शाता है।
  • धारणीय कृषि का विचार:
    • गांधीजी ने धारणीय और जैविक कृषि पद्धतियों का समर्थन किया। उन्होंने मृदा की उर्वरता को बनाए रखने में रासायनिक तत्त्वों के उपयोग को कम करने तथा प्राकृतिक उर्वरकों, फसल चक्र और पारंपरिक खेती के तरीकों के उपयोग को बढ़ावा देने पर बल दिया।
  • संसाधनों का संरक्षण:
    • गांधीजी ने जल और वन जैसे प्राकृतिक संसाधनों के उत्तरदायित्त्वपूर्ण उपयोग एवं संरक्षण पर ज़ोर दिया।
    • उनका मानना था आने वाली पीढ़ियों की इन संसाधनों तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये पर्यावरण की रक्षा और पुनरुद्धार आवश्यक हैं।
  • स्थानीयता और विकेंद्रीकरण:
    • गांधीजी सत्ता और संसाधनों के विकेंद्रीकरण के समर्थक थे। वह स्थानीय समुदायों को अधिकार सौंपने में विश्वास करते थे, जो उनकी अपनी पर्यावरणीय और धारणीय आवश्यकताओं के अनुरूप हो सकते हैं।
  • स्वदेशी:
    • गांधीजी ने स्वदेशी आंदोलन को बढ़ावा दिया, जिसने स्थानीय रूप से उत्पादित वस्तुओं और सामग्रियों के उपयोग को प्रोत्साहित किया।
    • इस विचार का उद्देश्य क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देना और लंबी दूरी के व्यापार द्वारा पर्यावरण पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को कम करना था।
  • प्रकृति का सम्मान:
    • गांधी जी का मानना था कि मनुष्य को प्रकृति के प्रति गहन सम्मान और श्रद्धा रखनी चाहिये
  • उन्होंने प्रकृति को मानव जीवन का एक अनिवार्य अंग माना और पर्यावरण के संधारणीय प्रबंधन का आह्वान किया।
  • वसुधैव कुटुंबकम्:
    • वसुधैव कुटुंबकम् (पूरा विश्व एक परिवार है) में उनका विश्वास, हम सभी एक विश्व के नागरिक हैं, के विचार को प्रोत्साहित करता है तथा यह रेखांकित करता है कि हमें वैश्विक मुद्दों के प्रति सचेत रहना चाहिये।

महात्मा गांधी की राजनीतिक विचार का संगीत से संबंध

  • भजन और धार्मिक संगीत:
    • गांधी का एक मज़बूत आध्यात्मिक पक्ष था और वह अक्सर भजन (हिंदू धार्मिक गीत) जैसे भक्ति संगीत का उपयोग अपने आंतरिक स्व से जुड़ने एवं सांत्वना पाने के साधन के रूप में करते थे।
    • उनका मानना था कि भजन और धार्मिक गीत के गायन से मन को शुद्ध करने एवं परमात्मा के साथ संबंध जुड़ने में मदद मिलती है।
  • प्रेरणादायक गीत:
    • गांधीजी ने स्वतंत्रता संघर्ष में लोगों को एकजुट करने के लिये प्रेरणादायक और देशभक्ति गीतों के उपयोग को प्रोत्साहित किया।
    • "रघुपति राघव राजा राम" और "वैष्णव जन तो" जैसे गीत उनके प्रिय में से थे तथा अक्सर उनकी प्रार्थना सभाओं एवं सार्वजनिक समारोहों के दौरान गाए जाते थे।
  • उपवास और मौन:
    • गांधीजी कभी-कभी विरोध प्रदर्शित करने या आत्म-शुद्धि के रूप में उपवास और मौन का अभ्यास करते थे।
    • इस दौरान वह अक्सर लिखित संदेशों के माध्यम से दूसरों के साथ संवाद करते थे और अपने विचारों एवं भावनाओं को व्यक्त करने के लिये संगीत का उपयोग करते थे।
  • सामुदायिक जुड़ाव:  
    • गांधीजी के अहिंसक आंदोलनों के दौरान समुदायों को एक साथ लाने में संगीत ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • मंत्रों, गीतों एवं संगीत ने दांडी मार्च जैसे विभिन्न अभियानों में भाग लेने वालों के बीच एकता और एकजुटता की भावना को बल प्रदान किया।
  • लोक संगीत को प्रोत्साहन:
    • गांधी पारंपरिक भारतीय संस्कृति के समर्थक थे और लोक संगीत एवं कलाओं के संरक्षण में विश्वास करते थे।
    • उन्होंने जन सामान्य से जुड़ने के लिये स्थानीय भाषाओं एवं संगीत के प्रयोग को प्रोत्साहित किया, क्योंकि उनका मानना था कि वे अधिक प्रासंगिक और सुलभ थे।
  • अहिंसक आंदोलन में भूमिका: 
    • संगीत गांधीजी के नेतृत्व वाले अहिंसक आंदोलनों का एक अभिन्न अंग था। इसने लोगों को प्रेरित करने और एकजुट करने, सामूहिक पहचान की भावना को बढ़ावा देने तथा चुनौतीपूर्ण समय के दौरान उनका मनोबल बढ़ाने के साधन के रूप में कार्य किया।
  • सादगी का समर्थन:
    • गांधीजी का सादगी और न्यूनतावाद का दर्शन संगीत तक विस्तृत था। वह सरल एवं मधुर धुनों को प्राथमिकता देते थे जिन्हें आम लोग आसानी से समझ सकें और सराह सकें

तमिलनाडु में ओधुवर

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तमिलनाडु सरकार ने 15 ओधुवरों (जिसमें पाँच महिलाएँ शामिल हैं) की नियुक्ति के आदेश दिये हैं, इन्हें विशेष रूप से चेन्नई के शैव मंदिरों में भजन और स्तुति गाकर देवी-देवताओं की पूजा-वंदना करने के लिये नियुक्त किया गया है।

तमिलनाडु में ओधुवर

  • परिचय:
    • ओधुवर तमिलनाडु के हिंदू मंदिरों में भजन गायन करते हैं लेकिन वे पुजारी नहीं होते हैं। उनका मुख्य कार्य शैव मंदिरों में भगवान शिव की स्तुति करना है, ये गीत-भजन थिरुमुराई भजन संग्रह से लिये जाते हैं। वे भक्ति भजन गाते हैं, उन्हें पवित्र गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति नहीं होती है।
  • ओधुवर परंपरा की शुरुआत:
    • प्राचीन काल से ही ओधुवरों की परंपरा रही है, भक्ति आंदोलन की शुरुआत के साथ ही इनकी मान्यता का पता चलता है। तमिलनाडु में 6ठी और 9वीं शताब्दी के बीच ओधुवर परंपरा अच्छी तरह विकसित हुई।
    • इस अवधि के दौरान अलवार और नयनार के नाम से प्रचलित अनेकों संत-कवियों ने क्रमशः भगवान विष्णु एवं भगवान शिव की स्तुति में भजनों के रूप में भक्ति काव्य की रचना की। ओधुवर इस समृद्ध संगीत व भक्ति विरासत के संरक्षक के रूप में उभरे

वर्तमान संदर्भ में ओधुवरों की प्रासंगिकता

  • धार्मिक महत्त्व: तमिलनाडु के मंदिरों के दैनिक और महोत्सव अनुष्ठानों में ओधुवरों का काफी महत्त्व है। थेवरम और थिरुवसागम दो प्राचीन तमिल ग्रंथ हैं, यह भगवान शिव के भजन तथा स्तुतियों का संकलन है, इन गीतों के गायन का कार्य प्राचीन काल से ओधुवर ही करते आए हैं।
  • सामुदायिक जुड़ाव: अधिकाशतः ओधुवर बहिष्कृत समुदायों से संबंधित होते हैं और मंदिरों में किसी भी कार्य के लिये उनकी भूमिका का निर्धारण किया जाना उनके लिये आर्थिक अवसर है। इसके अतिरिक्त उनका प्रदर्शन स्थानीय समुदाय को एकजुट करने के साथ ही एकता व अपनेपन की भावना को बढ़ावा देता है।
  • तमिल भाषा का संरक्षण: तमिल भाषा के संरक्षण में ओधुवरों का योगदान अहम है। अपने गीति-पाठों के माध्यम से वे आने वाली पीढ़ियों के लिये प्राचीन तमिल ग्रंथों की समझ व पठन-पाठन को सरल बनाते हैं
  • भक्ति-भावना को प्रोत्साहन: ओधुवर मंदिरों के भीतर भक्तिमय वातावरण का निर्माण करने में मदद करते हैं। उनकी भावपूर्ण प्रस्तुति उपासकों में धर्मपरायणता और आध्यात्मिकता की भावना पैदा करती है।

तमिलनाडु में ओधुवरों से संबंधित मुद्दे व चिंताएँ

  • आर्थिक सुभेद्यता:
    • कई ओधुवरों को अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिये संघर्ष करना पड़ता है, क्योंकि उनकी आय का एक बड़ा हिस्सा मंदिर के दान और चढ़ावे पर निर्भर करता है। यह आर्थिक असुरक्षा ओधुवरों की परंपरा के पतन का कारण भी बन सकती है।
  • मान्यीकरण का अभाव:
    • मंदिर के अनुष्ठानों और तमिल संस्कृति के संरक्षण में ओधुवरों के योगदान पर अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता है। उन्हें सीमित मान्यता दिया जाना उन्हें हतोत्साहित कर सकता है।
  • रुचि में कमी:
    • आर्थिक अस्थिरता के कारण इस बात की काफी संभावना है कि युवा पीढ़ी के बीच ओधुवर परंपरा को बनाए रखने के प्रति दिलचस्पी में काफी कमी आ सकती है। यह इस परंपरा की निरंतरता के लिये चिंता का विषय है
  • प्रौद्योगिकी और आधुनिकीकरण:
    • रिकार्डेड संगीतों के प्रचलन और आधुनिकीकरण की शुरुआत के साथ लोगों द्वारा धार्मिक एवं भक्ति संबंधी सामग्री के उपयोग के तरीके में बदलाव आ गया है। डिजिटल मीडिया और समकालीन संगीत रूपों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करना ओधुवरों के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
  • संस्थागत समर्थन का अभाव:
    • संगीत नाटक अकादमी आदि जैसे मान्यता प्राप्त सरकारी संस्थान ओधुवरों की चिंताओं के प्रति उदासीन रहे हैं, जबकि इन संस्थानों के सहयोग से ओधुवर समुदायों की पीड़ाओं को काफी कम किया जा सकता है।

छत्रपति शिवाजी महाराज का वाघ नख

चर्चा में क्यों? 

महाराष्ट्र के सांस्कृतिक कार्य मंत्रालय ने छत्रपति शिवाजी महाराज के अस्त्र "वाघ नख" को राज्य में वापस लाने के लिये लंदन के विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं।

  • इस समझौता ज्ञापन के अनुसार, प्राचीन हथियार को तीन वर्ष की अवधि के लिये ऋणात्मक आधार पर महाराष्ट्र सरकार को सौंपा जाएगा, उक्त अवधि के दौरान इसे राज्य भर के संग्रहालयों में प्रदर्शित किया जाएगा।

वाघ नख

  • 'वाघ नख', जिसका शाब्दिक अर्थ है 'बाघ का पंजा', एक विशिष्ट मध्यकालीन खंजर है जिसका उपयोग भारतीय उपमहाद्वीप में किया जाता है।
    • इस घातक हथियार में एक दस्ताने और एक छड़ से जुड़े चार अथवा पाँच घुमावदार ब्लेड होते हैं, जिसे व्यक्तिगत सुरक्षा अथवा गुप्त तरीके से हमला करने के लिये डिज़ाइन किया गया था
    • इसके नुकीले ब्लेड काफी तेज़ थे।
  • छत्रपति शिवाजी द्वारा 'वाघ नख' का उपयोग:
    • कोंकण क्षेत्र में शिवाजी की मज़बूत पकड़ व अभियानों को कमज़ोर करने के लिये नियुक्त किये गए बीजापुर के सेनापति अफज़ल खान और छत्रपति शिवाजी के बीच मुठभेड़ हुई थी। अफज़ल खान ने शांतिपूर्ण सुलह का सुझाव दिया था किंतु संभावित खतरे की आशंका को देखते हुए शिवाजी पूरी तैयारी के साथ आए थे।
    • उन्होंने 'वाघ नख' को छुपाए रखा था और अपनी पोशाक के नीचे चेनमेल (छोटे धातु के छल्ले से बना कवच) पहन रखा था। आपसी संघर्ष में शिवाजी ने अफज़ल खान पर 'वाघ नख' से हमला किया जिसके परिणामस्वरूप खान की मृत्यु हो गई, अंततः शिवाजी की जीत हुई।

History, Art & Culture (इतिहास, कला और संस्कृति): October 2023 UPSC Current Affairs | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

छत्रपति शिवाजी महाराज से संबंधित प्रमुख बिंदु

  • जन्म
    • उनका जन्म 19 फरवरी, 1630 को महाराष्ट्र के पुणे ज़िले के शिवनेरी किले में हुआ था, वह बीजापुर सल्तनत के तहत पुणे और सुपे की जागीरदारी रखने वाले मराठा सेनापति शाहजी भोंसले तथा एक धार्मिक महिला जीजाबाई के पुत्र थे, जिनका शिवाजी के जीवन पर काफी प्रभाव पड़ा।

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  • उपाधियाँ: 
    • उनके द्वारा छत्रपति, शाककार्ता, क्षत्रिय कुलवंत तथा हैंदव धर्मोधारक की उपाधियाँ धारण की गई।

शिवाजी के अधीन प्रशासन

  • केंद्रीय प्रशासन:
    • उन्होंने आठ मंत्रियों की एक परिषद (अष्टप्रधान) के साथ एक केंद्रीकृत प्रशासन की स्थापना की, जो प्रत्यक्ष रूप से उनके प्रति ज़िम्मेदार थे और राज्य के विभिन्न मामलों पर उन्हें सलाह देते थे।
    • पेशवा, जिसे मुख्य प्रधान के रूप में भी जाना जाता है, मूल रूप से राजा शिवाजी की सलाहकार परिषद का नेतृत्व करता था।
  • प्रांतीय प्रशासन:
    • शिवाजी ने अपने राज्य को चार प्रांतों में विभाजित किया। प्रत्येक प्रांत को ज़िलों और ग्राम में विभाजित किया गया था। प्रशासन की मूल इकाई ग्राम थी तथा यह ग्राम पंचायत की मदद से देशपांडे द्वारा शासित था।
    • केंद्र की भांति ,आठ मंत्रियों की एक समिति अथवा परिषद होती थी। जिसमें सर-ए- 'कारकुन' अथवा 'प्रांतपति' (प्रांत का प्रमुख) होता था।
  • राजस्व प्रशासन:
    • शिवाजी ने जागीरदारी प्रणाली को समाप्त कर दिया और इसे रैयतवारी प्रणाली में बदल दिया तथा वंशानुगत राजस्व अधिकारियों की स्थिति में परिवर्तन किया, जिन्हें देशमुख, देशपांडे, पाटिल एवं कुलकर्णी के नाम से जाना जाता था।
    • शिवाजी उन मीरासदारों (Mirasdar) का कड़ाई से पर्यवेक्षण करते थे जिनके पास भूमि पर वंशानुगत अधिकार था।
    • राजस्व प्रणाली मलिक अंबर की काठी प्रणाली (Kathi System) से प्रेरित थी, जिसमें भूमि के प्रत्येक टुकड़े को रॉड अथवा काठी द्वारा मापा जाता था।
    • चौथ और सरदेशमुखी आय के अन्य स्रोत थे।
    • चौथ कुल राजस्व का 1/4 भाग था जिसे गैर-मराठा क्षेत्रों से मराठा आक्रमण से बचने के बदले वसूला जाता था।
    • यह आय का 10 प्रतिशत होता था जो अतिरिक्त कर के रूप में था।
  • सैन्य प्रशासन:
    • शिवाजी ने एक अनुशासित और कुशल सेना का गठन किया। सामान्य सैनिकों को नकद में भुगतान किया जाता था, लेकिन प्रमुख एवं सैन्य कमांडर को जागीर अनुदान (सरंजाम) के माध्यम से भुगतान किया जाता था।
    • उनकी सेना में इन्फैंट्री सेना (मावली पैदल सैनिक), घुड़सवार सेना (घुड़सवार और उपकरण संचालक) तथा एक नौसेना शामिल थी।
    • मुख्य भूमिकाओं में सेना के प्रभारी सर-ए-नौबत (सेनापति), किलों की देख-रेख करने वाले किलेदार, पैदल सेना इकाइयों का नेतृत्व करने वाले नायक, पाँच नायकों के समूहों का नेतृत्व करने वाले हवलदार तथा पाँच नायकों की देखरेख करने वाले जुमलादार शामिल थे।
  • मृत्यु:
    • शिवाजी का निधन वर्ष 1680 में रायगढ़ में हुआ तथा उनका अंतिम संस्कार रायगढ़ किले में किया गया। उनके साहस, युद्ध रणनीति और प्रशासनिक कौशल की स्मृति एवं सम्मान में प्रत्येक वर्ष 19 फरवरी को शिवाजी महाराज जयंती मनाई जाती है।

श्री रामलिंगा स्वामी

5 अक्तूबर, 2023 को भारत में श्री रामलिंगा स्वामी, जिन्हें वल्लालर के नाम से भी जाना जाता है, की 200वीं जयंती मनाई गई। 

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श्री रामलिंगा स्वामी के प्रमुख योगदान

  • परिचय: 
    • श्री रामलिंगा स्वामी 19वीं सदी के एक प्रमुख तमिल कवि और "ज्ञान सिद्धार" वंश के सदस्य थे।
    • उनका जन्म तमिलनाडु के मरुधुर गाँव में हुआ था।
  • सामाजिक सुधार का दृष्टिकोण:
    • वल्लालर का दृष्टिकोण धार्मिक, जाति और पंथ की बाधाओं से परे है, उनका मानना है कि ब्रह्मांड के प्रत्येक अंश में दिव्यता है।
    • वल्लालर जाति व्यवस्था के सख्त खिलाफ थे और उन्होंने वर्ष 1865 में 'समरसा वेद सन्मार्ग संगम' की शुरुआत की, जिसे बाद में 'समरसा शुद्ध सन्मार्ग सत्य संगम' नाम दिया गया।
    • उन्होंने वर्ष 1867 में तमिलनाडु के वडालुर में मुफ्त भोजन सुविधा 'द सत्य धर्म सलाई' की स्थापना की, जो बिना जाति भेद के सभी लोगों को सेवा प्रदान करती थी।
    • जनवरी 1872 में वल्लालर ने वडालुर में 'सत्य ज्ञान सभा' (हॉल ऑफ ट्रू नॉलेज) की स्थापना की।
  • दार्शनिक मान्यताएँ और शिक्षाएँ:
    • "जीवित प्राणियों की सेवा ही मुक्ति/मोक्ष का मार्ग है" वल्लालर की प्राथमिक शिक्षाओं में से एक थी
    • शुद्ध सन्मार्ग के अनुसार, मानव जीवन का प्रमुख पहलू धर्मदान और दैवीय अभ्यास पर आधारित प्रेम होना चाहिये, जिससे विशुद्ध ज्ञान की प्राप्ति होगी।
    • वल्लालर का मानना था कि मनुष्य के पास जो बुद्धि है, वह भ्रामक (माया) बुद्धि है तथा सटीक अथवा अंतिम नहीं है।
    • उन्होंने अंतिम बुद्धिमत्ता के मार्ग के रूप में ‘जीव करुण्यम’ (जीवित प्राणियों के प्रति करुणा) पर ज़ोर दिया।
    • उन्होंने भोजन के लिये जानवरों को न मारने का आह्वान किया और गरीबों को खाना खिलाना सर्वोच्च धर्म बताया।
    • उनका यह भी मानना था कि अनुग्रह के रूप में ईश्वर दया और ज्ञान का अवतार है तथा दया ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग है।
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FAQs on History, Art & Culture (इतिहास, कला और संस्कृति): October 2023 UPSC Current Affairs - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. महात्मा गांधी की 154वीं जयंती कब मनाई जाती है?
उत्तर. महात्मा गांधी की 154वीं जयंती 2 अक्टूबर 2023 को मनाई जाएगी।
2. महात्मा गांधी की जयंती क्यों मनाई जाती है?
उत्तर. महात्मा गांधी की जयंती मनाई जाती है ताकि हम उनके समर्पण, अहिंसा और सत्याग्रह के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को याद कर सकें और उनकी आदर्शों को अपने जीवन में अपनाएं।
3. ओधुवर क्या होते हैं?
उत्तर. ओधुवर तमिलनाडु में रहने वाले एक वर्ग हैं जो प्राथमिक रूप से धार्मिक कार्यों में लगे रहते हैं, जैसे कि पूजा, प्रार्थना, आरती और अन्य धार्मिक आयोजनों में सेवा करना।
4. छत्रपति शिवाजी महाराज का वाघ नख क्या है?
उत्तर. छत्रपति शिवाजी महाराज का वाघ नख एक प्रतीक है जो महाराष्ट्र के कला, संस्कृति और इतिहास को प्रतिष्ठित करता है। इसे महाराष्ट्र के राष्ट्रीय पक्षी, वाघ (बाघ), के नाखून के रूप में बनाया गया है।
5. छत्रपति शिवाजी महाराज का वाघ नख कब मनाया जाता है?
उत्तर. छत्रपति शिवाजी महाराज का वाघ नख भारतीय कला, संस्कृति और इतिहास को मनाने के लिए अक्टूबर 2023 को मनाया जाएगा।
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