UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi  >  ऊर्जा (भाग - 1) - भारतीय भूगोल

ऊर्जा (भाग - 1) - भारतीय भूगोल | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

ऊर्जा
I. ऊर्जा संबंधी परिदृश्य
ऊर्जा का आर्थिक विकास से सीधा संबंध है। किसी देश का आर्थिक विकास इस बात पर भी निर्भर करता है कि वहां ऊर्जा की उपलब्धता कितनी पर्याप्त है। भारत जैसे विकासशील देशों में ऊर्जा के उत्पादन में तीव्र वृद्धि के बावजूद ऊर्जा की भारी कमी बनी हुई है। इस बात को इस तथ्य से भी समझा जा सकता है कि 1950  की 2,000 मेगावाट की कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता 2017 में बढ़कर 330022.96  मेगावाट हो गई।
भारत में ऊर्जा का उपभोग कई प्रकार से होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में लकड़ी, जानवरों के गोबर, कृषि के अवशिष्ट पदार्थों से ऊर्जा प्राप्त की जाती है। इन गैर-व्यवसायिक ईंधनों का स्थानान्तरण धीरे-धीरे कोयला, पेट्रोलियम, गैस तथा बिजली जैसे व्यवसायिक ईंधन द्वारा हो रहा है। देश की कुल प्राथमिक ऊर्जा आपूर्ति का 60% भाग व्यवसायिक ईंधनों से हो रहा है।

II. नीति
भारत सरकार ने ऊर्जा के संसाधनों के अनचित दुरुपयोग को रोककर और पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान मेें रखते हुए सस्ते मूल्य पर ऊर्जा की पर्याप्त आपूर्ति करने तथा ऊर्जा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने के उद्देश्य से एक ऊर्जा-नीति बनाई है। इस ऊर्जा-नीति के मुख्य तत्व निम्नलिखित हैं- 
1. तेल, कोयला, जल तथा नाभिकीय ऊर्जा जैसे पंरपरागत ऊर्जा स्रोतों का अधिकाधिक उपयोग करना;
2. प्राकृतिक तेल और गैस के नये-नये भंडारों की खोज कर उनका इस्तेमाल करना; 
3. तेल तथा ऊर्जा के अन्य स्रोतों की मांगों का प्रबंधन करना;
4. ग्रामीण क्षेत्रों में ऊर्जा की मांग की पूर्ति के लिए नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के संसाधनों का विकास करना;
5. देश में मौजूद संसाधनों का अधिकतम उपयोग करना; 
6. ऊर्जा-क्षेत्र में लगे कर्मचारियों के प्रशिक्षण की व्यवस्था करना।
प्रथम चरण में ऊर्जा नीति का लक्ष्य आर्थिक विकास को बिना अवरुद्ध किये घरेलू परंपरागत ऊर्जा का विकास मांग को प्रबंधित करते हुए करना है। द्वितीय चरण में ऊर्जा का संरक्षण तथा ऊर्जा क्षमता का विकास करना है। तृतीय चरण में थोरियम से ऊर्जा प्राप्त करने की तकनीक को विकसित करना और बड़े स्तर पर नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के संसाधनों का उपयोग करना है।

III. ऊर्जा के संसाधनों का वर्गीकरण
1. व्यवसायिक ईंधन - कोयला, लिग्नाईट, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा विद्युत।
    गैर-व्यवसायिक ईंधन - लकड़ी, गोबर, कृषि के अवशेष।
2. परंपरागत संसाधन - जीवाश्म वाले ईंधन (कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस), पानी और परमाणु ऊर्जा।
    गैर-परंपरागत संसाधन - इन्हें वैकल्पिक ऊर्जा भी कहा जाता है। सौर-ऊर्जा, बायो-ऊर्जा, हवा, समुद्र, हाइड्रोजन, भूताप ऊर्जा।
3. नवीनीकरण योग्य संसाधन - ये कभी न खत्म होने वाले ऊर्जा संसाधन हैं, जिन्हें नवीनीकृत करके बार-बार प्रयोग किया जा सकता है। सौर-ऊर्जा, ज्वारीय-ऊर्जा, भूतापीय-ऊर्जा, हवा-ऊर्जा, जल-ऊर्जा और बायो-ऊर्जा इसके उदाहरण हैं। तीव्र  प्रजनक रिएक्टर तकनीक द्वारा परमाणु ऊर्जा बनाने से परमाणु-संसाधन भी नवीनीकरण योग्य रहते हैं। किंतु, इनके अवशिष्ट से पर्यावरण का प्रदूषण होता है।
    गैर-नवीनीकरण योग्य संसाधन - इन प्राकृतिक संसाधनों का केवल एक बार इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि ये नष्ट हो जाते हैं। कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म-ईंधन इसके उदाहरण हैं, जिनसे विश्व की 98% ऊर्जा का उत्पादन हो रहा है।

IV. कोयला
भारत में कोयला ऊर्जा का प्रमुख संसाधन है। देश की कुल व्यवसायिक ऊर्जा का 67 उत्पादन कोयला से होता है। यह धातुकर्म तथा रसायन उद्योगों के लिए अनिवार्य है। देश के कुल विद्युत-उत्पादन का 52% भाग निम्न कोटि के कोयला से होता है।
कोयला में वाष्पशील पदार्थ, नमी, कार्बन तथा राख होता है। कोयला भारत के गोंडवाना और तृतीय महाकल्प चरण से मिलता है। लगभग 75% कोयले का भंडार दामोदर नदी-घाटी में है। प. बंगाल में रानीगंज और झारखण्ड में झरिया, गिरिडीह, बोकारो और कनकपुरा से कोयला मिलता है। गोदावरी, महानदी, सोन और वार्धा नदी घाटियों से भी कोयला मिलता है। मध्य प्रदेश की सतपुड़ा श्रेणी, छत्तीसगढ़ के मैदानों से भी कोयला मिलता है। आन्ध्र प्रदेश के शृंगेरी, उड़ीसा के तालचर और महाराष्ट्र के चन्दा में भी कोयला का बड़ा भंडार है।
1774 में पं. बंगाल के रानीगंज में भारत में कोयले का उत्खनन शुरू हुआ। मजदूरों के शोषण को रोकने के लिए 1972-73 में कोयला के खानों का राष्ट्रीयकरण किया गया। अब कोयले का उत्खनन भारतीय कोयला निगम के द्वारा पूर्णतः सार्वजनिक क्षेत्र के अंतर्गत किया जा रहा है।

कोयला-भंडार एवं उत्पादन - GSI के 1.4.2012  के आकलन का अनुसार हमारे देश में अभी कुल 29350 करोड़ टन (1200 मी. की गहराई तक) कोयले का भंडार है। इनमें लगभग 27% कोक किस्म का और 73% गैर-कोक किस्म का कोयला है। कोक-कोयला का भंडार सीमित होने के कारण इसका इस्तेमाल धातुकर्म-उद्योग तक ही सीमित है जबकि गैर-कोक कोयला का इस्तेमाल बृहत रूप से ऊर्जा-निर्माण में हो रहा है। कोयला-भंडार वाले प्रमुख राज्य बिहार, प. बंगाल, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश और महाराष्ट्र हैं।
1973.74 में कोयला के खानों के राष्ट्रीयकरण के समय कोयले का औसत उत्पादन लगभग 781.7 लाख टन था, जो 2011.12 बढ़कर 54.0 करोड़ टन हो गया। भारत विश्व में तीसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक देश है। वर्ष 2016-17  में 59.862 करोड़ टन कोयले का उत्पादन हुआ। इस दर से कोयला निकाले जाने पर कोयला 200 वर्षों में खत्म हो जायेगा। इसलिए यह जरूरी है कि कोयले का सदुपयोग किया जाये और इसे चुनिंदा कार्यों में ही लगाया जाये।

कोयले का वर्गीकरण - कोयले के किस्मों का निर्धारण उसमें मौजूद कार्बन, नमी और वाष्पीकरण वाले पदार्थों की मात्रा के आधार पर अच्छी और निम्न किस्मों में किया जाता है। केायला मुख्यतः चार किस्मों को होता है - 
i) एन्थ्रासाईट, ii) बीटूमिनस, iii) अर्द्ध-बीटूमिनस तथा iv) लिग्नाईट या भूरा कोयला। 
वाष्पीकरण वाले पदार्थों की प्रतिशतता के आधार पर कोयला को दो किस्मों में बांटा जाता है-
1. कम धुआंवाला कोयला- इसमें धुआं वाले पदार्थ की मात्रा कम (20.30%) रहती है और नमी भी कम रहती है। इसे साधारणतः कोकिंग कोयला कहा जाता है। यह अच्छा किस्म का कोयला होता है, जिसमें राख की मात्रा 24% तक होती है। धातुकर्म उद्योग के लिए कोक इसी से बनाया जाता है।
2. अधिक धुआंवाला कोयला- इसमें धुआंवाले पदार्थ की मात्रा 30% तक होती है और नमी भी 10% तक होती है। इसलिए इसका इस्तेमाल मुख्यतः भाप बनाने के लिए किया जाता है। यह सामान्यतः गैर-कोकिंग कोयला के नाम से जाना जाता है। ताप-विद्युत उत्पादन, वाष्प-इंजनों, ईंट के भट्ठों, रसायन उद्योगों तथा घरेलू कार्यों में इन्हें इस्तेमाल किया जाता है।
भारत में पाये जाने वाले लिग्नाईट में कोयला से कम राख की मात्रा होती है और इसकी गुणवत्ता भी अच्छी होती है। लिग्नाईट तमिलनाडु, पांडिचेरी, उत्तर प्रदेश, केरल, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में मिलता है। देश में अनुमानतः 419600 लाख टन लिग्नाईट का भंडार है। देश के कुल भंडार का 81% केवल तमिलनाडु के नइवेली प्रदेश में है। यहां 338800 लाख टन लिग्नाईट का भंडार है। लेकिन, आर्टेसियन प्रकार की संरचना होने के कारण यहां के खानों में पानी भर जाता है, जिसे निकालना एक मुश्किल काम है। फिर भी, ये खान तमिलनाडु के लिए एक वरदान हैं। इससे 2990 मेगावाट प्रतिदिन बिजली का उत्पादन होता है। तमिलनाडु राज्य के उद्योग बहुत हद तक नईवेली के ताप-विद्युत उत्पादन केन्द्र पर आश्रित हैं। इस प्रदेश के खानों से 423.32 लाख टन लिग्नाईट प्रति वर्ष निकाला जाता है।

कोयला के खनन की समस्याएं
1. धातुकर्म के लिए कोयला का भंडार भारत में सीमित है। इसके बावजूद कोक बनाने के लिए अच्छी किस्म के कोयला का उत्खनन कम हो रहा है, जो लगभग 70.80% है। खदानों का मशीनीकरण करके उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।
2. अधिकतर कोयला के भंडार भारत के पूर्वी और मध्य भागों में केन्द्रित हैं जबकि ताप-विद्युत संयंत्रा तथा अन्य उपभोग वाले क्षेत्र सर्वत्रा बिखरे हैं।इसके कारण कोयला की लंबी-लंबी दूरी तक ढुलाई की आवश्यकता है।
3. अधिकांश कोयले के खान छोटे-स्तर के हैं और उनमें उत्पादन की पुरानी तकनीक का प्रयोग हो रहा है। इसके कारण न केवल प्रति व्यक्ति कोयला-उत्पादन कम है बल्कि कोयले की कीमत भी बढ जाती है।
4. कोयला के साथ बड़ी मात्रा में अशुद्धियां भी रह जाती हैं। इसके कारण कोयले की गुणवत्ता भी बिगड़ती है ओर कोयले का ढुलाई खर्च भी बढ़ जाता है। साथ ही, पर्यावरण में प्रदूषण भी अधिक होता है। कोयला को धोकर इस समस्या को खत्म किया जा सकता है।
5. बुरादे के रूप में कोयला-उत्पादन का एक बड़ा भाग बर्बाद हो जाता है। कोयले के बुरादे के गुल्ले बनाकर इस बर्बादी को रोका जा सकता है।
6. DVC क्षेत्र में बिजली-आपूर्ति की कमी, विस्फोटकों की कमी तथा श्रमिक असंतोष के कारण भी इस क्षेत्र में नुकसान होता है है।
 

कोयले का संरक्षण- मात्रा एवं गुणवत्ता दोनों दृष्टिकोण से भारत में कोयले का भंडार निम्न-स्तरीय है। साथ ही, यातायात और उद्योग में कोयले का दुरुपयोग, विशिष्ट प्रकार के उत्खनन में कोयले की होनेवाली बर्बादी, खदानों में अक्सर लगने वाली आग और कोयला निकालने की अव्यवस्थित विधि इन सब कारणों से स्थिति और विकट हो जाती है। इसलिए कोयले का संरक्षण तथा कोयले का सदुपयोग बहुत जरूरी है।
भारत में कोयला और लिग्नाईट के भंडारों का उत्खनन और संरक्षण का कार्य कोयला विभाग करता है। कोयले के खदानों से अधिकतम कोयला उत्पादन करके उसके इस्तेमाल से कोयले के संरक्षण की योजना बनाई गई है। कोयला-भंडार वाले क्षेत्रों में भू-उत्खनन की कठिन परिस्थिति वाले क्षेत्रों में भू-उत्खनन की कठिन परिस्थितियों को देखते हुए सुरक्षा की दृष्टि से और अधिकतम कोयला निकालकर कोयला के सरंक्षण की दृष्टि से नई विकसित उत्खनन तकनीक अपनाया जाना जरूरी है। कोयला के संरक्षण की कुछ अन्य विधियां जिन्हें अपनाया जा रहा है या अपनाया जा सकता है, निम्नलिखित हैं- 
1. कोकिंग कोल का उपयोग केवल धातुकर्म उद्योग में इसका उपयोग न्यूनतम किया जाए।
2. I और II ग्रेड कोयले को धोकर और I.ग्रेड कोयले के साथ मिलाकर सुधारा जाय और धातुकर्म-उद्योगों में लगाया जाये।
3. विशिष्ट उत्खनन को रोक दिया जाये।
4. कोयले के नये भंडारों की खोज की जाये।
5. तरलीकृत तल संघटन द्वारा अधिक राख वाले कोयले को जलाया जाए।
6. कार्बनीकरण द्वारा घरेलू उपयोग के लिए धुआं रहित कोयला बनाया जाए।
7. कोयले के बुरादों के गुल्ले बनाये जायें।
8. फिशर ट्राप्स संश्लेषण द्वारा कोयले का गैसीकरण करके तेल के विकल्प का भी सहारा लिया जाय।
9. कोयले के प्रसंस्करण की पिट हेड विधि अपनाई जाय।
10. मैग्नेटोहाइड्रोडायनामिक्स विधि से कोयले को जलाकर प्राप्त ताप को सीधे विद्युत ऊर्जा में बदला जाए।
11. कोयले की ढुलाई की कीमत कम करने के लिए यातायात में सुधार।

v. पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस
पेट्रोलियम
पेट्रोलियम एक ज्वलनशील तरल पदार्थ है,  जो मुख्यतः हाइड्रोकार्बन (90.98%) से बना होता है और इसके शेष कार्बनिक यौगिकों में आॅक्सीजन, नाइट्रोजन, सल्फर और कार्बनिक-धातु यौगिक होते हैं। पेट्रोलियम तथा पेट्रोलियम उत्पादों का उपयोग वाहन-चालन, स्नेहक के रूप में तथा औद्योगिक कार्यों के लिए कई रसायनों को बनाने में होता है।
प्राप्ति स्थल- भारत में पेट्रोलियम मध्यजीव और तृतीय महाकल्प काल के अवसादी चट्टानों वाले क्षेत्रों में मिलता है जो कभी छिछले समुद्र में डूबे थे। भारत में अनुमानतः 15 लाख वर्ग कि.मी. तेल क्षेत्र है, जो इसके कुल क्षेत्रफल का लगभग 2/5 भाग है। भारत का तेल क्षेत्र गंगा-ब्रह्मपुत्रा घाटी, अपतटीय महाद्वीपीय शेल्फ के साथ दोनों तटवर्ती प्रदेश, गुजरात के मैदान, थार मरुस्थल और अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह मेें फैला हुआ है।
खोज एवं संगठन- 1956 में तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग (ONGC) की स्थापना के बाद भारत में विस्तृत एवं व्यवस्थित रूप से तेल की खोज एवं उत्पादन की शुरुआत हुई। अब इसे तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ONGL) कहा जाता है। 1981 में वर्मा तेल कपंनी के शेयरों को अधिकृत करके भारतीय तेल निगम (OIL) का गठन किया गया। यह तेल की खोज एवं उत्पादन के क्षेत्र में देश की दूसरी सबसे बड़ी संस्था है।
आजादी के समय तक देश में केवल असम के दिगबोई में ही तेलशोधक कारखाना था और तेल निकाला जाता था। तेल का यह कुआं छोटा होते हुए भी 100 वर्ष तक लगातार चलनेवाला एकमात्रा कुआं है। आजादी के बाद गुजरात के मैदान और कैम्बे की खाड़ी में पेट्रोलियम का भंडार खोजा गया। लेकिन, तेल का सबसे बड़ा भंडार अप्रत्याशित रूप से बंबई से 115 कि.मी. दूर समुद्र में मिला, जिसे बंबई हाई के नाम से जाना जाता है। यह देश में अबतक प्राप्त सबसे बड़ा तेल का भंडार है।
वितरण- भारत में तेल-भंडार की संभावना वाले 13 बेसिन हैं, जिन्हें तीन वर्गों में रखा जा सकता है;
1. गुजरात में कैम्बे बेसिन, असम-अराकान पट्टी और बंबई अपतटीय बेसिन, जहां व्यवसायिक रूप से तेल उत्पादन हो रहा है;
2. राजस्थान, कृष्णा, कावेरी, गोदावरी बेसिन, अंडमान, बंगाल, हिमालय का तराई क्षेत्र, गंगा घाटी और त्रिपुरा, नागालैंड, जहां प्राकृतिक तेल के भंडार हैं लेकिन व्यवसायिक उत्पादन शुरू नहीं हुआ है;
3. कच्छ-सौराष्ट्र, केरल-कोंकण और महानदी क्षेत्र जहां प्राकृतिक तेल के भंडार के होने की संभावना है लेकिन खोज होना अभी बाकी है।
भंडार एवं उत्पादन - 1 जनवरी 2017 की गणना के अनुसार विश्व में कुल 1707 बिलियन बैरेल का भंडार है। प्रति वर्ष लगभग 80622000  बैरल प्रतिदिन तेल का उत्पादन होता है। अतः इसी रफ्तार से निकाले जाने पर तेल का भंडार 45 वर्ष तक चलेगा। भारत में तेल का भंडार बहुत कम है। 1 जनवरी 2016 के आकलन के अनुसार भारत में कुल 6211 लाख टन तेल का भंडार है, जो ज्यादा-से-ज्यादा अगले 15.20 वर्षों तक ही चलेगा। हमारा तेल का घरेलू उत्पादन 1950 के 2.5 लाख टन प्रतिवर्ष से बढ़कर 2014.15 में 374.61 लाख टन हो चुका है। 1989.90 में रिकार्ड तेल-उत्पादन 340 लाख टन हुआ, जो 1992.93 में घटकर 270 लाख टन हो गया। ऐसा बंबई हाई के कई बहुत ज्यादा दोहन किये जा चुके तेल के कुंओं के बंद हो जाने के कारण हुआ। उसके बाद L-II; L-III,  नीलम क्षेत्र और दक्षिणी हीरा क्षेत्र (सभी पश्चिमी अपतटीय प्रदेश में) के विकास कार्यक्रमों से तेल उत्पादन में निरंतर वृद्धि हुई है। देश के कुल तेल-उत्पादन का लगभग 50% यातायात-क्षेत्र में खर्च होता है। शेष 50% उत्पादन की खपत ऊर्जा-निर्माण, उद्योग तथा अन्य घरेलू कार्यों में होती है।
तेल-शोधक कारखाने - भारत में कुल 13 तेलशोधक कारखाने हैं और सभी सार्वजनिक क्षेत्र में हैं। अप्रैल 1999 कोे शोधन क्षमता 6 करोड़ 84.5 लाख टन प्रति वर्ष पहुंच गई। ये 13 तेलशोधक कारखाने इस प्रकार हैं- बरौनी (बिहार, इंडियन आॅयल), बोगई गांव (असम, बोगईगांव रिफाइनरीज), कोचीन (केरल, कोचीन रिफाईनरीज), दिग्बोई (असम, इंडियन आॅयल), हल्दिया (पं. बंगाल, इंडियन आॅयल), कोयली (गुजरात, इंडियन आॅयल), मनाली और नारीमनम (मद्रास, मद्रास रिफाइनरीज), मथुरा (इंडियन आॅयल), गोहाटी में नूनमाटी (असम, इंडियन आॅयल), ट्रांबे (बंबई, हिन्दुस्तान पेट्रोलियम), विशाखापट्टनम (आन्ध्र प्रदेश, हिन्दुस्तान पेट्रोलियम)। संयुक्त क्षेत्र में दो नये तेलशोधक कारखानों का निर्माण मंगलोर (कर्नाटक) और पानीपत (हरियाणा) में किया जा रहा है। 
1998.99 के दौरान नौ-नौ लाख टन प्रतिवर्ष क्षमता वाली दो संयुक्त क्षेत्र के तेल शोधक कारखानों को मंजूरी दी गई है। एक पारादीप (उड़ीसा) में है, जबकि दूसरी भटिंडा (पंजाब) में है। जामनगर-कांडला, कोचीन-करूर, मंगलौर-बंगलौर तथा चैन्नई-मदुरै पाइप लाइन पर काम चल रहा है।

समस्याएं
1. भारत भारी मात्रा  में पेट्रोलियम एवं पेट्रोलियम उत्पादों का आयात करता है और इसमें बढ़ोत्तरी ही हो रही है। इसलिए तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमत के उतार-चढ़ाव से भारत की अर्थव्यवस्था प्रभावित होती रहती है। वर्ष 2005.06 में कच्चे तेल का कुल आयात 99.409 करोड़ टन था।
2. कुछ वर्षों से तेल का घरेलू-उत्पाद स्थिर हो गया है और कुछ कम भी हुआ है।
3. 1980 के दशक में बंबई हाई की खोजैं।
4. पेट्रोलियम तथा इसके उत्पादों का मूल्य निर्धारण राजनीतिक स्वार्थों से होता रहा है और इसमें हेराफेरी होती रही है।
संरक्षण - पेट्रोलियम उत्पादों के संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मत्रालय के अधीन कार्यरत पेट्रोलियम संरक्षण अनुसंधान संगठन (PCRA) ने पेट्रोलियम के संरक्षण के लिए निम्नांकित कदम उठाए हैं-
1. पेट्रोलियम उत्पादन के संरक्षण के संबंध में जन-जागृति पैदा करना;
2. तेल की बर्बादी को रोकने के उपाय करना;
3. वाहनों और उपकरणों की तेल उपयोग क्षमता को बढ़ाना;
4. सड़क यातायात क्षेत्र में सम्पीड़ित, प्राकृतिक गैस (कम्प्रेस्ड नैचुरल गैस) जैसे अंतर-ईंधन विकल्प को अपनाया जा रहा है।
देश में पेट्रोलियम सुरक्षा बढ़ाने के लिए और पूरे देश में सस्ते दाम पर पेट्रोलियम उत्पाद उपलब्ध कराने के लिए भारत सरकार ने एक चार-सूत्राी कार्यक्रम को अपनाया है-
1. विदेशों में खोज करना - OIL और ONGC आदि कंपनियां विदेशों में तेल खोज करेंगी ताकि उससे प्राप्त विदेशी मुद्रा का उपयोग तेल के आयात में किया जा सके।
2. नए तेलशोधक कारखानों की स्थापना - तेल निर्यातक देशों को अपना तेलशोधक कारखाना स्थापित करने दिया जायेगा। ओमान आॅयल और कुवैत पेट्रोलियम ऐसा कर भी रही हैं।
3. पाईपलाईन बिछाना - तेल की तीव्र एवं शीघ्र आपूर्ति के लिए देश में पाईपलाईन का जाल बिछया जायेगा। इससे तेल के ढुलाई खर्च में कमी आयेगी।

The document ऊर्जा (भाग - 1) - भारतीय भूगोल | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
55 videos|460 docs|193 tests

Top Courses for UPSC

FAQs on ऊर्जा (भाग - 1) - भारतीय भूगोल - भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

1. ऊर्जा भारतीय भूगोल में क्या है?
उत्तर: ऊर्जा भारतीय भूगोल में विभिन्न प्रकार की ऊर्जा संसाधनों के बारे में है, जैसे कि जलवायु ऊर्जा, जल ऊर्जा, वायु ऊर्जा, जैव ऊर्जा, आदि। यह भूगोल के माध्यम से ऊर्जा संबंधित तत्वों के अध्ययन को समर्पित है।
2. भारत में कौन सी प्रकार की ऊर्जा संसाधनें हैं?
उत्तर: भारत में कई प्रकार की ऊर्जा संसाधनें हैं, जैसे कि सौर ऊर्जा, विंड ऊर्जा, जल ऊर्जा, उर्जा विकिरण, जैव ऊर्जा, खनिज ऊर्जा, आदि। ये संसाधन भारतीय भूगोल के विभिन्न हिस्सों में उपलब्ध होते हैं और ऊर्जा के स्रोत के रूप में उपयोग होते हैं।
3. भारत में सौर ऊर्जा का उपयोग कैसे होता है?
उत्तर: भारत में सौर ऊर्जा का उपयोग विभिन्न रूपों में होता है, जैसे कि सौर ऊर्जा के माध्यम से विद्युत उत्पादन, गर्म पानी के उत्पादन, खाद्य संयंत्रों के लिए ऊर्जा सप्लाई, आदि। सौर ऊर्जा के सोलर पैनल, सोलर गर्म पानी तंत्र, सोलर कुख्याती इत्यादि का उपयोग किया जाता है।
4. भारत में जल ऊर्जा कैसे उत्पन्न की जाती है?
उत्तर: भारत में जल ऊर्जा का उत्पादन विभिन्न स्रोतों से होता है, जैसे कि जलप्रपातों से, जलाशयों से, नदियों से, तालाबों से, आदि। जलप्रपातों के माध्यम से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा का उपयोग हाइड्रोपावर प्लांट्स में किया जाता है, जो विद्युत उत्पादन के लिए उपयोगी होते हैं।
5. भारत में वायु ऊर्जा का महत्व क्या है?
उत्तर: भारत में वायु ऊर्जा का महत्व बहुत अधिक है। वायु ऊर्जा का उपयोग विभिन्न प्रकार के प्रदूषण रहित ऊर्जा स्रोतों के रूप में किया जाता है, जैसे कि विंड टरबाइन, वायु ऊर्जा उत्पादक संयंत्र, आदि। यह ऊर्जा स्रोत विद्युत उत्पादन, ग्रामीण संयंत्रों के लिए ऊर्जा सप्लाई, और जल ऊर्जा को पूरक के रूप में उपयोगी होता है।
55 videos|460 docs|193 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

ऊर्जा (भाग - 1) - भारतीय भूगोल | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

,

shortcuts and tricks

,

Extra Questions

,

Important questions

,

MCQs

,

practice quizzes

,

ऊर्जा (भाग - 1) - भारतीय भूगोल | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

,

ppt

,

Semester Notes

,

mock tests for examination

,

pdf

,

ऊर्जा (भाग - 1) - भारतीय भूगोल | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

,

Viva Questions

,

Objective type Questions

,

study material

,

Sample Paper

,

Previous Year Questions with Solutions

,

past year papers

,

Exam

,

Summary

,

Free

,

video lectures

;