भारत के राष्ट्रपति का निर्वाचन :
(i) अप्रत्यक्ष चुनाव - भारत के राष्ट्रपति के चुनाव की मुख्य विशेषता यह है कि यह चुनाव सीधे जनता द्वारा न होकर अप्रत्यक्ष रूप से राज्यों की विधानसभाओं तथा संसद के निर्वाचित सदस्यों द्वारा होती है।
(ii) निर्वाचक मण्डल द्वारा चुनाव - संविधान की धारा 54 के अनुसार राष्ट्रपति के चुनाव में ”संसद के दोनों सदनों तथा राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य भाग लेगें।“ इस धारा के अनुसार राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचक मण्डल द्वारा होता है-
(i) संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य।
(ii) राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य।
राष्ट्रपति का चुनाव एक विशेष तरीके से होता है जिसे "आनुपातिक प्रतिनिधित्व व एकल संक्रमणीय मत प्रणाली" के नाम से पुकारा जाता है।
भारतीय प्रधानमंत्री की चार प्रमुख शक्तियां
उत्तर: (i) प्रधानमंत्री , राष्ट्रपति तथा मंत्रिपरिषद के बीच कड़ी का काम करके आपस में एक दूसरे से सम्बन्ध स्थापित करता है।
(ii) देश तथा विदेश में राष्ट्रपति द्वारा की जाने वाली बड़ी-बड़ी नियुक्तियां जैसे कि राज्यपालों, राजदूतों तथा न्यायाधीशों आदि की प्रधानमंत्री की सलाह से ही की जाती है।
(iii) अपने देश की गृह तथा विदेश नीति प्रधानमंत्री द्वारा बनाई जाती है।
(iv) प्रधानमंत्री की सलाह पर ही राष्ट्रपति संसद के अधिवेशनों को बुलाता है, स्थगित करता है और लोकसभा को भंग करता है।
भारत के राष्ट्रपति को उसके पद से हटाने का क्या तरीका है ?
राष्ट्रपति को पांच वर्ष के लिए चुना जाता है परन्तु यदि कोई राष्ट्रपति अपनी शक्तियों के प्रयोग में संविधान का उल्लंघन करे तो पांच वर्ष से पहले भी उसे अपने पद से हटाया जा सकता है। उसे महाभियोग द्वारा अपदस्थ किया जा सकता है। एक सदन राष्ट्रपति के विरुद्ध आरोप लगाता है। आरोपों के प्रस्ताव पर सदन में उसी स्थिति में विचार हो सकता है जब सदन के 1/4 सदस्यों के हस्ताक्षरों द्वारा इस आशय का नोटिस कम-से-कम 14 दिन पहले दिया जा चुका हो। यदि वह सदन 2/3 बहुमत से यह प्रस्ताव पारित कर देता है तो दूसरा सदन उस आरोप का अन्वेषण करेगा या कराएगा।
राष्ट्रपति को ऐसे अन्वेषण में उपस्थित होने और अपना प्रतिनिधित्व कराने का अधिकार होगा। यदि ऐसे अन्वेषण के परिणामस्वरूप यह घोषित करने वाला संकल्प कि राष्ट्रपति के विरुद्ध लगाया गया आरोप सिद्ध हो गया है, आरोप का अन्वेषण करने या कराने वाले सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया जाता है तो ऐसे संकल्प का प्रभाव उसके इस प्रकार पारित किए जाने की तारीख से राष्ट्रपति को हटाना होगा। [अनुच्छेद 61]।
संविधान में राष्ट्रपति को हटाने के ढंग और आधार दिए गए हैं, इसलिए उसे अनुच्छेद 56 और 61 के उपबंधों के अनुसार, महाभियोग के सिवाय किसी और ढंग से नहीं हटाया जा सकता।
भारत के उप-राष्ट्रपति के दो प्रमुख कार्यों का संक्षिप्त वर्णन :
उप-राष्ट्रपति को दो प्रकार के कार्य करने पड़ते हैं-
(i) उप-राष्ट्रपति के रूप में तथा
(ii) राज्यसभा के अध्यक्ष के रूप में।
उप-राष्ट्रपति के रूप में- जब राष्ट्रपति का पद उसकी अनुपस्थिति, बीमारी अथवा अन्य किसी कारण से अस्थायी रूप से खाली हो जाए, तो उप-राष्ट्रपति को राष्ट्रपति के पद पर काम करना पड़ता है। राष्ट्रपति के पद पर काम करतेे समय उप-राष्ट्रपति को राष्ट्रपति के वेतन, भत्ते, अन्य सुविधाएं तथा शक्तियां प्राप्त होती हैं।
राज्यसभा के अध्यक्ष के रूप में - उप-राष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है तथा वह अध्यक्ष के सभी कार्य करता है।
केन्द्रीय मंत्रिपरिषद में कितने प्रकार के मंत्री होते हैं?
केन्द्रीय मंत्रिपरिषद में तीन प्रकार के मंत्री होते हैं - कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री तथा उपमंत्री।
(i) कैबिनेट मंत्री- मंत्रिपरिषद के सबसे महत्वपूर्ण मन्त्रिायों को कैबिनेट मंत्री कहा जाता है और कैबिनेट मंत्री किसी महत्वपूर्ण विभाग के अध्यक्ष होते हैं।
(ii) राज्य मंत्री - राज्य मंत्री कैबिनेट मंत्री के सहायक के रूप में कार्य करते हैं। ये कैबिनेट के सदस्य नहीं होते और न ही ये कैबिनेट की बैठकों में भाग लेते हैं।
(iii) उपमंत्री - ये किसी विभाग के स्वतन्त्र रूप से अध्यक्ष नहीं होते। इनका कार्य केवल किसी दूसरे मंत्री के कार्य में सहायता देना होता है।
भारतीय संविधान के अनुसार लोक सेवा आयोगों को स्वतंत्र बनाने के लिए कौन-कौन से ढंग अपनाए गए हैं?
(i) नियुक्ति - आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति का तरीका और उनकी योग्यताओं का वर्णन संविधान में किया गया है।
(ii) सेवा की शर्तें - आयोग के सदस्यों की सेवा शर्तों को सदस्यों के कार्यकाल में ऐसे नहीं बदला जा सकता कि सदस्यों को हानि हो।
(iii) सेवा की सुरक्षा - आयोग के सदस्यों को केवल राष्ट्रपति हटा सकता है और जिन दोषों के कारण इन्हें हटाया जा सकता हटा सकता है और जिन दोषों के कारण इन्हें हटाया जा सकता है उनका वर्णन भी संविधान में किया गया है।
(iv) सेवा निवृत्ति पर प्रतिबन्ध - लोक सेवा आयोग के सदस्य रिटायर होने के पश्चात संघ या किसी राज्य सरकार के अधीन नौकरी नहीं कर सकते।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने के लिए कौन-कौन सी योग्यताएं आवश्यक हैं ?
राष्ट्रपति उसी व्यक्ति को सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त कर सकता है जिसमें निम्नलिखित योग्यताएं हों-
(i)वह भारत का नागरिक हो।
(ii) वह कम-से-कम पांच वर्ष तक एक या एक से अधिक उच्च न्यायालयों में न्यायाधीश के पद पर रह चुका हो।
अथवा
वह कम-से-कम 10 वर्षों तक किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रह चुका हो। अथवा,
वह राष्ट्रपति की दृष्टि में कानून-विशेषज्ञ हो।
सर्वोच्च न्यायालय के प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार
सर्वोच्च न्यायालय में कुछ मुकदमे सीधे ले जाए जा सकत हैं-
(i) यदि केन्द्र या किसी एक राज्य या कई राज्यों के बीच कोई विवाद उत्पन्न हो जाए तो उसका निर्णय सर्वोच्च न्यायालय करता है।
(ii) यदि कुछ राज्यों के बीच किसी संवैधानिक विषय पर कोई विवाद उत्पन्न हो जाए तो वह भी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ही निपटाया जाता है।
(iii) मौलिक अधिकारों के बारे में कोई भी मुकदमा सीधा सर्वोच्च न्यायालय के सामने ले जाया जा सकता है।
(iv) यदि राष्ट्रपति या उप-राष्ट्रपति के चुनाव के बारे में कोई शंका या विवाद उत्पन्न हो जाए तो उसका निर्णय सर्वोच्च न्यायालय ही करता है।
सर्वोच्च न्यायालय का संगठन :
सर्वोच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा कुछ अन्य न्यायाधीश होते हैं। आजकल सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त 25 अन्य न्यायाधीश हैं। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते समय राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय तथा राज्यों के उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशों की सलाह लेता है जिन्हें वह उचित समझता है। अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश की सलाह अवश्य लेता है।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के तीन क्षेत्राधिकार हैं
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के तीन क्षेत्राधिकार निम्नलिखित हैं।
(i)प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार - सर्वोच्च न्यायालय को कुछ मुकदमों में प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार प्राप्त है अर्थात कुछ मुकदमें ऐसे हैं जो सर्वोच्च न्यायालय में सीधे ले जाए जा सकते हैं।
(ii) अपीलीय क्षेत्राधिकार - कुछ मुकदमें सर्वोच्च न्यायालय के पास उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के निर्णयों के विरुद्ध अपील के रूप में आते हैं। ये अपीलें संवैधानिक, दीवानी और फौजदारी तीनों प्रकार के मुकदमें में सुनी जा सकती हैं।
(iii) सलाहकारी क्षेत्राधिकार - राष्ट्रपति किसी सार्वजनिक महत्त्व के विषय पर सर्वोच्च न्यायालय से कानूनी सलाह ले सकता है। परन्तु राष्ट्रपति के लिए अनिवार्य नहीं है कि वह सर्वोच्च न्यायालय के परामर्श के अनुसार कार्य करे।
सर्वोच्च न्यायालय को सबसे बड़ा न्यायालय क्यों माना जाता है ?
(i)यह भारत का सबसे बड़ा न्यायालय है।
(ii) इसका फैसला अन्तिम होता है जो सबको मानना पड़ता है।
(iii) यह संविधान के विरुद्ध पारित किए गए कानूनों को रद्द कर सकता है।
(iv) यह केन्द्र और राज्यों के बीच तथा विभिन्न राज्यों के आपसी झगड़ों का फैसला करता है। संविधान की व्याख्या करता है और मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है।
(v) इसके फैसले के विरुद्ध कोई अपील नहीं हो सकती।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक समीक्षा की शक्ति :
भारतीय सर्वोच्च न्यायालय को न्यायिक समीक्षा करने का अधिकार प्राप्त है। न्यायिक समीक्षा का अर्थ है कि संसद तथा विभिन्न राज्यों के विधानमंडलों द्वारा पारित कानूनों और कार्यकारिणी द्वारा जारी किए गए अध्यादेशों की न्यायालयों द्वारा समीक्षा करना। भारत में न्यायिक पर्यवेक्षण का अधिकार केवल सर्वोच्च न्यायालय को प्राप्त है। सर्वोच्च न्यायालय अपनी इस शक्ति द्वारा यह देखता है कि विधानपालिका द्वारा पास किए गए कानून तथा कार्यकारिणी द्वारा जारी किए गए अध्यादेश संविधान की धारा के अनुकूल हैं या नहीं। यदि न्यायालय इन कानूनों को संविधान के प्रतिकूल पाता है तो अवैध घोषित कर सकता है।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाए जाने की प्रक्रिया :
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश को उसके दुव्र्यवहार अथवा असमर्थता के लिए पद से हटाया जा सकता है। इस सम्बन्ध में संसद के दोनों सदन पृथक-पृथक सदन की समस्त संख्या के बहुमत और उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत से प्रस्ताव पास करके राष्ट्रपति के पास भेजते हैं। उस प्रस्ताव के आधार पर राष्ट्रपति न्यायाधीश को पद से अलग होने का आदेश देता है।
अभिलेख न्यायालय (कोर्ट आफ रिकार्ड) के रूप में उच्चतम न्यायालय पर एक संक्षिप्त टिप्पणी :
सर्वोच्च न्यायालय अभिलेख न्यायालय भी है। इसका अभिप्राय यह भी है कि इसके निर्णयों को सुरक्षित रखा जाता है और किसी प्रकार के अन्य मुकदमें आने पर उनका हवाला दिया जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किए गए निर्णय सभी न्यायालय मानने के लिए बाध्य हैं। यह न्यायालय अपनी कार्यवाही तथा निर्णयों का अभिलेख रखने के लिए इन्हें प्रकाशित भी करता है। ये निर्णय अन्य न्यायालयों के लिए मार्गदर्शन का कार्य करते हैं।
जिला स्तर के अधीनस्थ न्यायालयों पर संक्षिप्त टिप्पणी
उत्तर: अधीनस्थ न्यायालयों का संगठन देशभर में लगभग समान रूप से है। प्रत्येक जिले में तीन प्रकार के न्यायालय होते हैं-
(i) दीवानी,
(ii) फौजदारी,
(iii) भू-राजस्व न्यायालय
ये न्यायालय राज्य के उच्च न्यायालय के नियन्त्रण में काम करते हैं। जिला न्यायालय में उप-न्यायाधीशों के निर्णयों के विरुद्ध अपीलें सुनी जाती हैं। ये न्यायालय सम्पत्ति, विवाह, तलाक सम्बन्धी विवादों की सुनवाई भी करते हैं।
"लोक अदालत" :
भारत में गरीब, दलित, जरूरतमंद लोगांे को तेजी से, आसानी से व सस्ता न्याय दिलाने के लिए हमारे देश में न्यायालयों की एक नई व्यवस्था शुरू की गई है जिसे लोक अदालत के नाम से जाना जाता है। लोक अदालतों की योजना के पीछे बुनियादी विचार यह है कि न्याय दिलाने में होने वाली देरी खत्म हो और जितनी जल्दी हो सके, बरसों अनिर्णीत मामलों को निपटाया जाए। लोक अदालतें ऐसे मामलों को तय करती हैं जो अभी अदालत तक नहीं पहुंचे हों या अदालतों में अनिर्णीत पड़े हों।
जनहित सम्बन्धी न्याय व्यवस्था
भारत के उच्च न्यायालय ने जनहितार्थ न्याय के संबंध में नया कदम उठाया है। इसके द्वारा साधारण आवेदन पत्र पोस्ट कार्ड पर लिखकर भी कोई व्यक्ति कहीं से अन्याय की शिकायत के बारे में आवेदन करे तो शिकायत पंजीकृत की जाती है और आवश्यक आदेश जारी किए जा सकते हैं। इस योजना के अंतर्गत कमजोर वर्गों के लोगों, बंधुवा मजदूरों, स्त्रियों और बच्चों की शिकायतों को समुचित महत्त्व दिया गया है।
"नौकरशाही" :
नौकरशाही के सदस्यों को लोकसेवक भी कहा जाता है। नौकरशाही एक अर्द्ध-सरकारी कर्मचारियों का समूह है। इनकी नियुक्ति योग्यता के आधार पर की जाती है और स्थायी रूप से अपने पदों पर बने रहते हैं। यह स्थायी, सवैतनिक तथा कार्य-कुशल अधिकारियों का समूह है। सरकार में राजनीतिक दल के परिवर्तन का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
एक अच्छी नौकरशाही के चार गुण
(i)एक अच्छी नौकरशाही का राजनीतिक दृष्टि से तटस्थ तथा निष्पक्ष होना आवश्यक है।
(ii) एक अच्छी नौकरशाही को ईमानदारी के साथ हर विषय पर पूर्ण तथा निष्पक्ष जानकारी अपने राजनीतिक स्वामी (मंत्री ) को देनी चाहिए।
(iii) एक अच्छी नौकरशाही ईमानदारी से राजनीतिक कार्यपालिका द्वारा अपनाई गई नीति को पूरे परिश्रम के साथ लागू करती है।
(iv) एक अच्छी नौकरशाही आज के युग में वह है जो विकास कार्यों में भी पूरी लगन और ईमानदारी से लगी रहे।
प्रश्न: सिविल कर्मचारियों की गोपनीयता
सिविल कर्मचारी अथवा स्थायी कार्यपालिका के सदस्य यद्यपि प्रशासन के आधार स्तम्भ होते हैं, फिर भी ये पर्दे के पीछे गुमनाम होकर अपना कार्य करते हैं तथा ये अपनी प्रशंसा एवं आलोचना के प्रति भी तटस्थ होते हैं। ये कर्मचारी राजनीतिक गतिविधियों से दूर रहते हैं और निष्पक्षता से सरकार की नीतियों को लागू करते हैं। ये कर्मचारी राजनीतिक कार्यपालिका के सदस्यों की तरह अधिक से अधिक प्रकाश में आने की चेष्टा नहीं करते।
लोकसेवा की तटस्थता :
लोकसेवा का परम्परागत गुण तटस्थता रहा है। तटस्थता का अर्थ है कि लोक सेवकों को सभी राजनीतिक गतिविधियों से दूर रहना चाहिए और उन्हें निष्पक्षता से सरकार की नीतियों को लागू करना चाहिए। लोक सेवकों को सार्वजनिक हित को ध्यान में रखकर कार्य करना चाहिए। भारत में लोक सेवा के आचरण नियमों के अनुसार किसी भी सरकारी कर्मचारी को किसी भी राजनीतिक संगठन का सदस्य होने अथवा किसी भी राजनीतिक आन्दोलन या कार्य में भाग लेने या उसके लिए चन्दा देने या उसे किसी भी प्रकार की सहायता देने का अधिकार प्राप्त नहीं है। सरकारी कर्मचारी संसद और विधान-मण्डलों के चुनाव नहीं लड़ सकते। उन्हें केवल वोट देने का अधिकार प्राप्त है। लोक सेवकों की निष्पक्षता, कार्य-कुशलता तथा लोकहित के लिए उनका राजनीतिक रूप से तटस्थ होना आवश्यक है।
शासन संचालन में नौकरशाही की भूमिका:
(i) नीति निर्माण कार्य में मन्त्रिायों को परामर्श देना।
(ii) मन्त्रिामंडल द्वारा निश्चित की गई नीतियों को व्यावहारिक रूप में लागू करना।
(iii) शासन के विभिन्न भागों में समन्वय स्थापित करना।
(iv) मन्त्रिामंडल के सदस्यों द्वारा संसद में पेश किए जाने वाले बिलों का मसौदा तैयार करना।
(v) लोकसेवाओं के सदस्यों की नियुक्ति, प्रशिक्षण तथा उन्हें दी जाने वाली अन्य सुविधाओं के बारे में नियम बनाना।
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2. भारतीय संविधान क्या है? |
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