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जनसंख्या

  • आज से लगभग 20.25 लाख वर्ष पूर्व मानव का इस धरती पर प्रादुर्भाव हुआ था। प्रारंभ से सन् 1830 तक विश्व की कुल जनसंख्या केवल एक अरब थी, किन्तु अगले 100 वर्षों में ही अर्थात् सन् 1930 तक जनसंख्या दोगुनी हो गई।
  • जनसंख्या वृद्धि की यह गति और द्रुत हुई और अगली एक अरब की वृद्धि केवल 30 वर्षों में ही हो गई। इस प्रकार सन् 1960 तक 3 अरब नर-नारी इस धरती पर हो गए और फिर अगले 15 वर्षों में ही अर्थात् सन 1975 तक जनसंख्या बढ़कर 4 अरब हो गई।
  • विश्व जनसंख्या में पुनः 1 अरब की वृद्धि होने में केवल 12 वर्ष ही लगे। 11 जुलाई, 1987 को विश्व की जनसंख्या 5 अरब के बिन्दु को पार कर गई थी तब से ही 11 जुलाई को प्रतिवर्ष जनसंख्या दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • 12 अक्टूबर, 1999 को संपूर्ण विश्व की जनसंख्या बढ़कर 6 अरब हो गया अतः 12 अक्टूबर, 1999 के दिवस को संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ने छः अरब अरब जनसंख्या के दिवस के रूप में घोषित किया। अनुमान है कि सन् 2022 तक 8 अरब तथा सन् 2050 तक 9 अरब हो जाएगी।
  • विश्व जनसंख्या पर निगरानी रखने वाले एक अमेरिकी एजेंसी, पॉपुलेशन रेफरेंस ब्यूरो के ताजा प्रक्षेपण के अनुसार विश्व की जनसंख्या 2050 में 9.1 अरब तथा भारत की जनसंख्या 162.8 करोड़ होगी, जिसका विश्व में पहला स्थान होगा। जबकि दूसरे स्थान पर चीन की जनसंख्या 139.4 करोड़ होगी तथा अमेरीका का स्थान तीसरा बना रहेगा।
  • सन् 2050 में अमेरिका की जनसंख्या 42.2 करोड़ होने का अनुमान ब्यूरो ने लगाया है।
  • ब्यूरो के प्रक्षेपण के अनुसार 2050 में विश्व में चौथी बड़ी जनसंख्या वाला देश पाकिस्तान होगा। पाकिस्तान की जनंसख्या जो 2005 में 14.9 करोड़ थी, सन् 2050 में 34.9 करोड़ हो जाने की बात ब्यूरो की रिपोर्ट में कही गई है।
  • जनसंख्या के मामले में वर्तमान में चौथा स्थान इंडोनेशिया का है जिसकी जनसंख्या 22 करोड़ बताई है।
  • ब्यूरो के प्रक्षेपण के अनुसार 2050 में इंडोनेशिया की जनसंख्या 31.4 करोड़ होगी।
  • भारत में सन् 1872 में पहली बार 1972 में की गई थी; किन्तु क्रमवार आकलन सन् 1881 से किया जाता रहा है।
  • सन् 1891 में कुल जनसंख्या 23.6 करोड़ थी, जो 1 मार्च, सन् 2011 को 121.02 करोड़ (62.37 करोड़ पुरुष एवं 58.65 करोड़ महिला) हो गई
  • भारत का भौगोलिक क्षेत्रफल विश्व के 135.79 मिलियन वर्ग किमी. का लगभग 2.4 प्रतिशत (32.87 लाख वर्ग किमी.) है। किन्तु यहाँ विश्व का 17.5% जनसंख्या निवास करती हैं। 

जनसंख्या (Population) (भाग - 1) -पारंपरिक अर्थव्यवस्था | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

 

जनांकिकीय संक्रमण का सिद्धांत

  • समय के साथ किसी देश की जनसंख्या की विशेषताओं में होनेवाले परिवर्तनों का विश्लेषण करने हेतु जनांकिकीय संक्रमण सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया है। 
  • जन्म दर तथा मृत्यु दर के आधार पर इसका विश्लेषण किया जाता है। 
  • उल्लेखनीय है कि इन दिनों की सापेक्ष स्थिति के अनुसार ही देश की आर्थिक विकास की प्रक्रिया भी प्रभावित होती है और इनके आधार पर देश के विकास की अवस्था का भी अनुमान किया जा सकता है।
  • प्रायः अर्थशास्त्री तीन अवस्थाओं में जनांकिकीय संक्रमण का विश्लेषण करते है, परन्तु हाल के वर्षों में चार अवस्थाओं में इसके विश्लेषण का प्रचलन भी प्रारम्भ हुआ है।

विभिन्न अवस्थाएं

उच्च स्थैतिक अवस्था

  • जनांकिकीय संक्रमण की प्रथम अवस्था एक अल्पविकसित या अविकसित अर्थव्यवस्था के लक्षण दर्शाती है। 
  • इस अवस्था में उच्च जन्म दर तथा उच्च मृत्यु दर पायी जाती है। 
  • यह एक कृषिप्रधान व अविकसित तकनीक वाले देश में विशेष रूप से पाया जाता है, जहाँ भोजन, आवास, स्वास्थ्य सुविधाएँ आदि का अभाव या अल्पविकास पाया जाता है। 
  • यद्यपि इस अवस्था में जन्म दर उच्च होती है, परन्तु वास्तविक जनसंख्या वृद्धि दर उच्च नहीं होती, क्योंकि उच्च जन्म दर को उच्च मृत्यु दर संतुलित कर देती है।

प्रारम्भिक वृद्धिमान अवस्था 

  • यह अवस्था एक विकासशील देश में पायी जाती है, जब अर्थव्यवस्था कुछ विकास करने लगती है। 
  • आर्थिक विकास के परिणामस्वरूप स्वास्थ्य सुविधाओं का प्रसार होता है। 
  • साथ ही साथ खाद्यान्न उत्पादन में भी वृद्धि होती है। यातायात सुविधाओं की अच्छी स्थिति के कारण हर क्षेत्र में खाद्यान्न की आपूर्ति निरंतर होती रहती है। इस प्रकार देश का चैतरफा विकास मृत्यु दर में तीव्र ह्रास लाता है। 
  • परन्तु जन्म दर पूर्ववत् ही उच्च बनी रहती है। इसके अलावा बेहतर स्वास्थ्य और भोजन प्राप्ति से लोगों की जनन क्षमता और बढ़ जाती है। अभी लोग परिवार नियोजन के महत्व से अनजान रहते है।
  • इस प्रकार उच्च जन्म दर और निम्न मृत्यु दर का परिणाम होता है-तीव्र गति से जनसंख्या वृद्धि या ‘जनसंख्या विस्फोट’। 

उत्तर वृद्धिमान अवस्था (Late Expanding Sage)

  • जनांकिकीय संक्रमण की तीसरी अवस्था में अर्थव्यवस्था कृषि प्रधानता से औद्योगिक प्रधानता की ओर अग्रसर होने लगती है। 
  • औद्योगीकरण के साथ-साथ नगरीकरण भी होने लगता है और लोग कृषि कार्य छोड़कर उद्योगों में काम करने हेतु शहर की ओर जाने लगते है।स्त्रियों की समाज में भूमिका भी परिवर्तन होने लगती है। अब वे घर की चहारदीवारी से बाहर निकलकर नौकरी आदि कार्य भी करने लगती है। 
  • परिणामस्वरूप अब अधिक बच्चे परिवार के लिए बोझ समान हो जाते है और लोग छोटे परिवार की मान्यता को स्वीकार करने लगते है। इस प्रकार तृतीय अवस्था में निम्न मृत्यु दर के साथ-साथ जन्म दर भी गिरने लगती है, परिणामस्वरूप जनसंख्या की वास्तविक वृद्धि दर भी कम हो जाती है।

निम्न स्थैतिक अवस्था 

  • चतुर्थ अवस्था जनांकिकीय संक्रमण की अंतिम अवस्था है, जो एक विकसित अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित है। इस अवस्था में मृत्यु दर अपने निम्नतम स्तर पर होती है। दूसरी ओर जन्म दर भी अत्यंत कम हो जाती है। फलस्वरूप जनसंख्या वृद्धि दर निम्न स्तर पर स्थिर हो जाती है। अत्यधिक औद्योगीकरण, सामाजिक आधुनिकीकरण, तेज जिन्दगी आदि के कारण लोग कम से कम बच्चे ही पैदा करना पसन्द करते है। कुछ देशों में तो जनसंख्या वृद्धि दर ऋणात्मक भी हो जाती है। 
  • अधिकांश पश्चिमी यूरोपीय देश, सं. रा. अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड आदि इस अवस्था को प्राप्त कर चुके है।

लिंगानुपात

  • जनसंख्या की गुणात्मकता तथा समाज मेंस्त्रियों के महत्व की जानकारी लिंग अनुपात (sex ratio) से भी देखी जा सकती है। 
  • लिंग अनुपात का तात्पर्य प्रति हजार पुरुष परस्त्रियों की संख्या से है। 
  • यह देखा गया है कि विकास के साथ-साथ स्त्रियों की संख्या में वृद्धि होती जाती है। यूरोपीय देशों में स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक देखने को मिलती है। 
  • 1901 में प्रति 1000 पुरुषों पर 972 स्त्रियों थीं, जो 1991 में घटकर 926 हो गयी पर 2011 में यह 943 पहुँच गया है।
  • यदि राज्यवार देखा जाय, तो केरल में सर्वोच्च लिंगानुपात (1084) पाया जाता है। 
  • केरल ही भारत का एकमात्र राज्य है, जहाँ स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक है। 
  • वास्तव में भारतीय जनगणना के लिंगानुपात सम्बन्धी आंकड़े जीववैज्ञानिक सिद्धान्तों के साथ गंभीर विरोधाभास दर्शाते है।
  • जीववैज्ञानिक दृष्टि से यह सत्य है कि स्त्री भ्रूण पुरुष भ्रूण की तुलना में अधिक मजबूत होता है, अतःस्त्रियों की जीवन प्रत्याशा पुरुषों से अधिक होनी स्वाभाविक है। 
  • पश्चिमी विकसित देशों के उदाहरणों से यह सिद्ध भी होता है, परन्तु भारत में इसके विपरीत दृश्य देखने को मिलता है।
  • इसका एक कारण भ्रूण हत्या तथा बच्चियों का मृत्यु दर भी है।

 जनसंख्या (Population) (भाग - 1) -पारंपरिक अर्थव्यवस्था | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

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FAQs on जनसंख्या (Population) (भाग - 1) -पारंपरिक अर्थव्यवस्था - भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

1. जनसंख्या क्या होती है?
उत्तर: जनसंख्या एक देश, एक क्षेत्र या एक समुदाय में विभिन्न व्यक्तियों की संख्या को संकेतित करती है। यह जनसंख्या बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती है जैसे कि एक क्षेत्र की आबादी की संख्या, जनसंख्या के वृद्धि की दर, जनसंख्या के साथ संबंधित आर्थिक और सामाजिक मुद्दे आदि।
2. जनसंख्या के वृद्धि के कारण क्या हैं?
उत्तर: जनसंख्या के वृद्धि के कई कारण हैं। यहां कुछ मुख्य कारण हैं: 1. जन्म दर की बढ़ोतरी: जन्म दर की बढ़ोतरी के कारण जनसंख्या वृद्धि होती है। बेहतर चिकित्सा सुविधाएं, खाद्य और पानी की उपलब्धता, स्वास्थ्य सुविधाएं आदि के कारण लोगों की मृत्यु दर कम हो गई है। 2. महिला शिक्षा: महिलाओं की शिक्षा के विकास के कारण उनकी स्वास्थ्य और उत्पादकता में सुधार हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या बढ़ी है। 3. विवाह दर: विवाह दर के बढ़ने के कारण लोगों की परिवार में अधिक संख्या में बच्चे हो रहे हैं, जिससे जनसंख्या में वृद्धि होती है। 4. आर्थिक विकास: आर्थिक विकास के साथ, जनसंख्या वृद्धि हो सकती है। अधिक रोजगार और आर्थिक संबंधित सुविधाएं लोगों को अधिक आत्मविश्वास और अधिक आंतरिक सुरक्षा के साथ, बच्चों की संख्या बढ़ने के लिए प्रेरित कर सकती है। 5. प्राकृतिक उपाधि: कुछ क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि के पीछे प्राकृतिक उपाधि भी हो सकती है। जैसे कि यथार्थ क्षेत्र, जहां खेती और पशुपालन के लिए आवश्यक भूमि उपलब्ध होने के कारण जनसंख्या बढ़ी है।
3. जनसंख्या के वृद्धि का प्रभाव क्या होता है?
उत्तर: जनसंख्या के वृद्धि का प्रभाव विभिन्न पहलुओं पर होता है। कुछ महत्वपूर्ण प्रभाव निम्नलिखित हैं: 1. सामाजिक और आर्थिक दबाव: अधिक जनसंख्या के साथ, सामाजिक और आर्थिक दबाव बढ़ सकता है। संसाधनों की कमी, बेरोजगारी, गरीबी, भूमि की क्षेत्रीय बढ़ोतरी, और जीवन की गुणवत्ता में कमी जैसी समस्याएं जनसंख्या के वृद्धि का प्रभाव हो सकती हैं। 2. वातावरणीय प्रभाव: जनसंख्या वृद्धि वातावरण पर भी प्रभाव डाल सकती है। अधिक जनसंख्या के साथ, प्राकृतिक संसाधनों का अधिक उपयोग, प्रदूषण, जल संकट और वनों की कटाई जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं। 3. आर्थिक विकास: जनसंख्या के वृद्धि का प्रभाव आर्थिक विकास पर भी होता है। यदि वृद्धि संतुलित हो तो यह मानव संसाधनों, कौशल श्रम, विज्ञान और त
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