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दिल्ली सल्तनत - इतिहास,यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

दिल्ली सल्तनत

  • मुइजुद्दीन मुहम्मद गोरी की मृत्यु पर उसके द्वारा उत्तरी भारत के विजयोपरान्त दिल्ली में नियुक्त किए गये ‘वायसराय’ कुतुबुद्दीन ऐबक को लाहौर के लोगों ने आमंत्रित किया एवं संप्रभु सत्ता स्थापित कराई।
  • कुतुबुद्दीन ऐबक के द्वारा सत्ता ग्रहण के साथ ही दिल्ली सल्तनत की नींव पड़ी। यह अस्पष्ट है कि उसने सिक्के चलाए अथवा दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया। परन्तु लाहौर, दिल्ली की अपेक्षा अधिक राजधानी केन्द्र के रूप में परिलक्षित दिखता है। सम्भवतः वह दिल्ली सल्तनत का एक सम्प्रभु शासक नहीं बन सका था।

दिल्ली सल्तनत - इतिहास,यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindiकुतुबुद्दीन ऐबक

  • भारत में संप्रभु मुस्लिम शासकों का आरम्भ ‘इल्तुतमिश’ (1210-36) के साथ माना जाता है। ‘सल्तनत’ की प्रथम राज शृंखला ‘गुलाम’ के रूप में जानी जाती है। परन्तु इसके 11 शासकों में मात्र 3 ही गुलाम रहे-ऐबक, इल्तुतमिश एवं बलबन। इनमें से भी प्रथम दो दासता से मुक्त कर दिए गये थे।
  • सल्तनत के इस प्रथम वंश हेतु दूसरा नाम ‘मामलुक’ भी आता है जिसका अर्थ होता है स्वतंत्रा कर दिए गए (दास) माता-पिता की सन्तान। परन्तु यह मत भी सभी शासकों पर नहीं लागू होता।
  • इसको ‘इल्बारी’ अथवा ‘आदि तुर्की वंश’ कहना ज्यादा समीचीन लगता है।
  • इस वंश के 11 शासकों में से 2 इल्तुतमिश एवं बलबन का प्रशासनिक एवं कृषि संस्थाओं के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा।
  • 1290 में जलालुद्दीन खिलजी द्वारा सत्ता ग्रहण जिसे सल्तनत में ‘खिलजी क्रांति’ के नाम से भी जानते है, से प्रशासनिक संस्थाओं एवं कृषि स्थिति में परिवर्तन का सल्तनतकालीन दूसरा चरण शुरू होता है।
  • अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316) ने प्रशासनिक पद्धति एवं आर्थिक व्यवस्था में अत्यन्त आमूल चूल एवं महत्वपूर्ण परिवर्तन किए।
  • ‘खिलजी’ के बाद ‘तुगलकों’ ने सत्ता भार अधिग्रहित किया जिनका ‘सल्तनत कालीन’ शासन विस्तार सबसे ज्यादा लम्बी अवधि तक का था।
  • ‘तुगलक’ वंशीय प्रथम तीन शासकों गयासुद्दीन तुगलक, मुहम्मद बिन तुगलक एवं फिरोज शाह तुगलक ने प्रशासन एवं कृषि व्यवस्था में अनेक वैयक्तिक सुधार प्रस्तुत किए। मुहम्मद बिन तुगलक के काल में ‘दक्कन’ सल्तनत से स्वतन्त्रा हो गया जबकि फिरोज के शासनकाल में प्रशासनिक शिथिलता एवं रूढ़िगत प्रशासनिक कदमों के कारण सल्तनत का विघटन मुखर हो गया।
  • 1398 ई. में तैमूर के आक्रमण के साथ ही तुगलक साम्राज्य के व्यापक क्षेत्र पर विभिन्न क्षेत्रीय स्वतंत्र शक्तियों का उदय हुआ ।
  • 15वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक दिल्ली सल्तनत का स्वरूप अन्य प्रादेशिक शक्तियों के सदृश हो चला था। ‘तुगलकों’ के पतन के साथ ही ‘दिल्ली सल्तनत’ में ‘तुर्की शासकों’ के चरण का अन्त हो गया। बाद में शासन करने वाले अन्य दो वंश सैयद (1414-1451) एवं लोदी (1451-1526) थे।
  • इस प्रकार तुगलकों के पतन के साथ ही प्रशासन एवं कृषि व्यवस्था के एक विशेष चरण की समाप्ति हो गयी। इस प्रथम चरण में तुर्की-फारसी प्रशासन पद्धति का प्रभाव था जबकि दूसरे चरण में अफगानी (पठानी) पद्धति प्रमुख रूप से प्रभाव छोड़ने लगी।
  • सैयद शासकों ने प्रशासन पद्धति पर कोई विशेष प्रभाव नहीं छोड़ा परन्तु लोदी शासकों ने प्रभावकारी प्रशासनिक सुधार किए। ‘लोदियों’ के अधीन ‘सल्तनत’ का मुख्य चरित्रा बदल सा गया था।
  • सिकन्दर लोदी ने दिल्ली से आगरा राजधानी परिवर्तन करके तकनीकी-तौर पर ‘दिल्ली सल्तनत’ की अवधारणा समाप्त कर दी।
  • पानीपत के प्रथम युद्ध (1526) में बाबर द्वारा इब्राहिम लोदी की पराजय के साथ ही दिल्ली ‘सल्तनत’ का पतन हो गया।

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पानीपत का प्रथम युद्ध

  • इस्लामी शासन पद्धति के सम्बन्ध में इस्लामी धर्म ग्रंथों में ‘शरिया’ को संप्रभुता का आधार स्तम्भ बताया गया है। इस ‘शरिया’ का आधार ‘कुरान’ है। इस सिद्धान्त पर आधारित कतिपय लेखकों ने यह मत व्यक्त किया है कि ‘मुस्लिम’ राज्य सत्ता का आधार धार्मिक या ‘धर्म सत्तात्मक’ (Theocratic) है।
  • सिद्धान्ततः मुस्लिम राज्य धर्म सत्तात्मक (Theocratic) ही थे। क्योंकि राज्य प्रमुख प्रायः धर्म प्रमुख भी होता था। वह अपनी शक्ति को ईश्वर (अल्लाह) से जुड़ा मानता था।
  • ‘खलीफा’ सम्पूर्ण मुस्लिम संसार का सर्वोच्च प्रमुख था हालांकि व्यावहारिक स्थिति में यह प्रतीकात्मक ही दिखता है।
  • राजनीतिक आवश्यकताओं एवं सुल्तानों द्वारा ‘शरीयत’ की उपेक्षा के कारण राज्य-प्रमुख के कर्तव्यों में विभिन्नताएं उत्पन्न हो गयी थी।
  • धार्मिक पक्ष का दायित्व ‘उलेमाओं’ पर आ पड़ी थी जबकि प्रशासनिक पक्ष का प्रबंध, संगठन एवं नियंत्राण सुल्तान के अधीन रहा।
  • दिल्ली के सभी तुर्की, सैयद एवं लोदी शासकों ने ‘सुल्तान’ की उपाधि धारण की। इसका एकमात्र अपवाद ‘खिज्र खान’ था।
  • महमूद गजनवी पहला स्वतंत्र शासक था जिसने अपने आपको ‘सुल्तान’ की उपाधि से विभूषित किया था। बगदाद के खलीफा ने उसे यह मान्यता दी थी।
  • यद्यपि दिल्ली के सुल्तानों ने औपचारिक तौर पर ”खलीफाई सम्प्रभुता“ को  मान्यता दे रखी थी, परन्तु व्यावहारिक स्तर पर सल्तनत हमेशा स्वतंत्र सत्ता के रूप में रही।
  • अलाउद्दीन खिलजी का पुत्र मुबारक खिलजी पहला मुस्लिम सुल्तान था जिसने ‘खलीफा’ की मान्यता को तोड़ा और यह उद्धोषणा कर दी कि वह सर्वोच्च है तथा दिल्ली सल्तनत सम्प्रभु है।
  • खिज्र खान ने अपनी अधिमान्यता ‘शाह रूख’ को प्रदान कर दी थी जो तैमूर का पुत्र था। खिज्र खान ने ‘रइयत-इ-आला’ की उपाधि अपनाई।

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ख़िज्र खाँ के समय के सिक्के

  • इल्तुमिश ने सल्तनत के शासन में राजवंशीय सिद्धान्त (Dynastic Principle) अपनाया परन्तु स्वयं ही सिद्धान्त का अतिक्रमण करते हुए अपने पुत्रों के अधिकारों का हनन (अयोग्यता के आधार पर) करके ‘रजिया’ को अपना उत्तराधिकारी बना दिया।
  • इल्तुतमिश के काल में ‘सुल्तान’ की स्थिति अमीरों (Nobles) से थोड़ी उच्च रही थी। वह तुर्की ‘अमीरों’ को अपने समकक्ष समझता था। जबकि बलबन स्थिति की मांग के अनुरूप राजत्व की स्थिति को अमीरों के स्तर से बहुत ऊपर समझता था।
  • सुल्तान पूर्ण रूप से निरंकुश शासक था, राज्य की सम्पूर्ण शक्तियां उसी के हाथ में केन्द्रित थी। वही प्रधान कार्यकारी तथा प्रधान न्यायाधीश का अधिकार रखता था।
  • शासन में ‘अमीरों’ के साथ ही ‘उलेमा वर्ग’ का भी व्यापक प्रभाव था और इन दोनों ने एक तरफ जहाँ सत्ता पर अंकुश रखना चाहा वहीं सत्ता परिवर्तन में भी व्यापक भूमिका का निर्वाह किया। सुल्तानों से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे अपने पथ-प्रदर्शन के लिए ‘उलेमा वर्ग’ का निर्देश प्राप्त करें।
  • अलाउद्दीन खिलजी ने ‘सिकन्दर-ए-सानी’ (दूसरा सिकंदर) की उपाधि धारण की एवं उलेमाओं की गतिविधियों को सीमित करके ‘शरिया ’ की अपेक्षा राज्य के लिए व्यावहारिक एवं परिस्थितिजन्य कदमों को महत्व दिया।
  • सैद्धान्तिक रूप से दिल्ली सल्तनत में सुल्तान की सहायता के लिए एक मंत्रिपरिषद होती थी जिसको ”मजलिस-ए-खलवत“ या ”मजलिस-ए-आम“ कहा जाता था। सुल्तान सामान्यतया महत्वपूर्ण मुद्दों पर यहाँ विचार-विमर्श करता था।
  • ‘अमीर’ एवं ‘उलेमा’ राज्य संगठन को व्यापक रूप से प्रभावित करते थे ‘अलाउद्दीन’ तथा ‘मुहम्मद तुगलक’ के अलावा और अन्य सुल्तान इनकी उपेक्षा नहीं कर सके।
  • ‘अमीरों’ की स्थिति ‘जातीय’ आधार पर भी जुड़ी थी और यह पद स्थायी तथा वंशानुगत न था। ‘सुल्तानों’ के साथ ही ‘अमीरों’ की स्थिति भी बदलती रहती थी।
  • इल्तुतमिश के समय ‘अमीरों’ को दो जातीय वर्गों में देखा जा सकता है-(1) तुर्की गुलाम अमीर जो ज्यादा महत्वपूर्ण थे, (2) तुर्की समुदाय से भिन्न उच्च विदेशी खानदान के अमीर जिन्हें ‘ताजिक’ भी कहा जाता था।
  • इल्तुतमिश के समय 40 तुर्की अमीरों का एक गुट था जिसे ‘चहलगानी’ कहते थे। यह गुट अत्यन्त शक्तिशाली था एवं उसकी मृत्यु के बाद अत्यन्त सशक्त हो गया था।
  • अलाउद्दीन ने ‘अमीरों’ के जातीय एवं वंशानुगत एकाधिकारों से अलग योग्यता के आधार पर अमीरों को नियुक्त किया परन्तु उसने इनके संगठन व एकता को छिन्न-भिन्न करके रखा था।
  • फिरोजशाह ने अमीरों एवं उलेमाओं का व्यापक महत्व दिया।
  • ‘उलेमा वर्ग’ एक ओर जहाँ सल्तनत के धार्मिक-राजनीतिक सलाहकार थे वहीं राज्य के न्यायिक व्यवस्था में उनका एकाधिकार था। धर्म एवं विधि से जुड़ा यह वर्ग भी अमीरों की सी स्थिति में ही था।
  • केन्द्रीय शासन के मुख्य स्तम्भ ‘मंत्री’ अथवा राजकीय ‘दीवान’ थे। चार महत्वपूर्ण मंत्री (दीवान) प्रशासन के आधार स्तम्भ थे। इनका मंत्रालय व पद निम्नलिखित था-
    1. दीवान-ए-विजारत वजीर
    2. दीवान-ए-आरिज आरिज -ए -मुमालिक
    3. दीवान-ए-इंशा इंशा-ए-मुमालिक, दानवीर
    4. दीवान-ए-रिसालत रिसालत ए -मुमालिक

स्मरणीय तथ्य

  • वेदों के सुप्रसिद्ध भाष्यकार कौन थे? - सायण
  • चोल शासक मुख्यतः किस धर्म के अनुयायी थे? - शैव धर्म
  • जंगल की देवी अरण्यानी का प्रथम उल्लेख है - ऋक् संहिता में
  • प्रथम तमिल संगम की स्थापना किसने की थी? - अगस्त्य ने
  • किसको वर्णसंकर समझा जाता था?  - विवाह  के लिए वर्ण की सीमाओं का अतिक्रमण
  • सुलह-ए-कुल का सिद्धांत किसने प्रवर्तित किया था? - अकबर ने
  • ‘रिंग फेंस’ का संबंध किससे है? - वारेन हेस्टिंग्स से
  • मार्च 1784 में मुख्य रूप से किसके आग्रह पर मंगलोर की संधि हुई? -लार्ड मेकार्ट 
  • परम्परानुसार थेरवाद सम्प्रदाय के प्रवर्तक कहा कच्चायन कहां के थे? - अवन्ति के 
  • कौटिल्य द्वारा प्रयुक्त धर्मस्थीय शब्द का तात्पर्य था - न्यायालय
  • मुगल साम्राज्य के अवसान के समय किसने जाटों को राजनीतिक शक्ति के रूप में संगठित किया? - बदनसिंह
  • वैदिक ग्रंथो में ऊसर भूमि का व्यंजक शब्द है - सुयवस
  • तेरहवीं शताब्दी में फवजिल शब्द का क्या अभिप्राय था?-  राज्य को प्रेषित अधिशेष राजस्व
  • किस चोल शासक ने राष्ट्रकूटों से तोड़ मंडल छीन लिया था? - सुंदरचोल
  • एकान्त रमय्या के नाम का संबंध किससे है? - वीर शैव धर्म
  • पितरा डुरा शब्द किसकी ओर निर्देश करता है? -  पच्चीकारी
  • जिया ग्रांड आंदोलन का आयोजन कहां हुआ था? -  मणिपुर में
  • ‘चारनाक’ ने कलकत्ता की नींव किस वर्ष डाली? - 1690 में
  • 1889 में अहमदिया आंदोलन की शुरुआत किसके द्वारा की गई थी? - गुलाम अहमद
  • वजीर राज्य के चार स्तम्भों में से एक था परन्तु उसकी स्थिति अन्य मंत्रियों से कुछ उच्च दिखती है। यूं तो वह वित्तीय प्रमुख था, परन्तु सामान्य प्रशासन से लेकर प्रत्येक मंत्रालय के निरीक्षण कार्य से भी जुड़ा था। वह न्याय विभाग की देखभाल व सैनिक व्यवस्था केनियंत्रण से भी जुड़ा था।
  • आरिज-ए-मुमालिक सेना का प्रधान होता था। यह सैनिकों को भर्ती करता था, सैनिकों एवं घोड़ों का रिकार्ड रखता था एवं सैनिक अभियानों का आयोजन, सैन्य निरीक्षण, उनकी साज-सज्जा का प्रबन्ध एवं वेतन निर्धारण तथा वितरण इनके अन्य कार्य थे।
  • दीवान ए इंशा पर शाही पत्राचार का उत्तरदायित्व था। यह शाही घोषणाओं एवं पत्रों के मसविदे तैयार करता था। दीवान-ए-इंशा से ही शाही फरमान जारी होते थे। इस विभाग के सचिवों को ‘दाविर’ कहा जाता था।

दिल्ली सल्तनत - इतिहास,यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindiशाही फरमान

  • दीवान-ए-रसालत के कार्यों के बारे में मतैक्य नहीं मिलता। कतिपय विद्वान इसे धार्मिक मामलों का प्रमुख बताते है जो कि शिक्षा व्यवस्था भी देखता था परन्तु अन्य विद्वान इसे ‘विदेश विभाग’ मानते है। सम्भवतः यह मंत्रालय विदेशी सम्पर्क एवं कार्यों को ही देखता था।- मंत्रियों के अतिरिक्त राज्य में अन्य पदाधिकारी भी होते थे परन्तु वे कम महत्वपूर्ण विभागों के अध्यक्ष थे।
  • शाही महल एवं सुल्तान की व्यक्तिगत सेवाओं का प्रबन्ध ‘वकील-ए-दर’ करता था। यह पद महत्वपूर्ण था एवं विश्वसनीय व्यक्ति को ही मिलता था।
  • अमीर-ए-हाजिब दरबारी शिष्टाचार के नियमों को लागू करता था। सुल्तान एवं निम्न श्रेणी के पदाधिकारियों तथा जनता के मध्य मध्यस्थ का कार्य भी यही करता था।

मामलुक शासकों के नाम और शासनकाल

1. कुतुबुद्दीन ऐबक- (1206 ई. से 1210 ई.)
2. आरामशाह- (1210 ई. से 1211 ई.)
3. शम्सुद्दीन इल्तुतमिश- (1211 ई. से 1236 ई.)
4. रुकनुद्दीन फिरोज शाह- (1236 ई.)
5. रजिया सुल्तान- (1236 ई. से 1240 ई.)
6. मोइजुद्दीन बहरामशाह- (1240 ई. से 1242 ई.)
7. अलाउद्दीन मसूदशाह- (1242 ई. से 1246 ई.)
8. नसीरुद्दीन महमूद- (1246 ई. से 1265 ई.)
9. गयासुद्दीन बलबन- (1265 ई. से 1287 ई.)
10. मोइजुद्दीन कैकुबाद- (1287 ई. से 1290 ई.)
11. कैमूर्स- (1290 ई.)

  • ‘सरजांदार’ सुल्तान के अंगरक्षकों का नायक था जबकि ‘अमीर-ए-आखुर’ अश्वशालाध्यक्ष था। ‘शाहना-ए-पील’ हस्तिशाला प्रमुख था। ‘अमीर-ए-मजलिस’ सभाओं और दावतों जैसे विशेष उत्सवों का प्रबन्ध करता था।
  • कारखाना उच्च श्रेणी के ‘मलिक’ के अधीन रखा जाता था। इनको ‘मुतशर्रिफ’ कहते थे।
  • प्रादेशिक स्तर पर प्रशासनिक ढाँचा ‘केन्द्रीय व्यवस्था’ जैसा ही था एवं प्रादेशिक सरकारकेन्द्रीय सरकार की सीधी अधीनता में थी। लेकिन कुछ पद प्रदेश एवं केन्द्र सरकारों में भिन्न थे।
  • प्रादेशिक राज्यपालों के लिए वली, मुक्ती, नायब एवं कभी-कभी सुल्तान शब्द मिलते है। लेकिन नायब एवं सुल्तान उन सुदूर प्रदेशों के राज्यपालों के लिए व्यवहृत था जो कि असीमित शक्तियों का उपयोग करते थे। ये राज्यपाल अपने प्रशासनिक कार्यों हेतु केन्द्र के प्रति सीधे उत्तरदायी थे। ये सामान्य प्रशासन, कानून, परम्परा, उलेमा, योद्धा आदि के संरक्षण व अनुपालन से जुड़े थे।
  • प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ‘ग्राम’ थी। ग्रामों के समूह द्वारा ‘परगना’ का गठन किया गया था जिसके प्रमुख को ‘फौजदार’ कहते थे। वह शांति एवं व्यवस्था से जुड़ा था।
  • ‘खुलासा’ प्रदेश के वे क्षेत्र थे जो सीधे केंद्र से शासित थे। ‘दिल्ली का क्षेत्र’ ऐसा ही था।
  • प्रान्तों को ‘जिलों’ में बाँटा गया था जिन्हें ‘शिक’ कहते थे। शिक का अध्यक्ष ‘शिकदार’ कहलाता था।
  • गाँवों में शासन कार्य चलाने के लिए मुकद्दम, खूत तथा चौधरी होते थे।
  • दिल्ली सुल्तान मुकदमों का निर्णय काजियों और मुफ्तियों की सहायता से करता था।
  • इल्तुतमिश ने सैनिकों को वेतन के बदले ‘इक्ता’ प्रदान किया, जबकि ‘अलाउद्दीन’ ने नकद वेतन की व्यवस्था की। फिरोजशाह ने कानून बनाकर सैन्य पद को वंशानुगत बना दिया था।
  • प्रत्येक किला एक ‘कोतवाल’ के अधीन रहता था।
  • सैन्य व्यवस्था को उच्च अधिकार एवं सुव्यवस्था सर्वप्रथम बलबन ने प्रदान किया था।
  • दिल्ली सल्तनत की स्थापना के साथ ही पहले से आगत कृषि व्यवस्था में तुरन्त कोई आमूल-चूल परिवर्तन नहीं किया जा सका। परन्तु नये शासक वर्ग के दबाव ने इस व्यवस्था को धीरे-धीरे प्रभावित व परिवर्तित किया।
  • सल्तनत का आर्थिक आधार अस्थिर रहा और समय-समय पर मुस्लिम व्यवस्था के तहत व्यक्त राजस्वों को वसूलने का प्रयास किया जाता रहा।
  • दिल्ली सल्तनत में ‘इक्ता’ व्यवस्था अपनाई गयी जो कि प्रशासनिक महत्व की व्यवस्था तो थी ही साथ ही ‘कृषि दशा’ को भी महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करती थी।

मध्यकालीन भारत के प्रारम्भ में तुर्की शासन की राजनीति दो मूलभूत तत्वों पर आधारित थी और ये दोनों तत्व स्वतंत्र रूप से विकसित हुए थे। ये दोनों तत्व थे-
1. अक्ता (इक्ता) हस्तांतरणीय लगान अधिन्यास अर्थात भूमि के विशेष खण्डों का राजस्व वेतन के बदले आवंटित किया जाता था।
2. खराज-गैर मुस्लिम जनता पर लागू भूमि कर।

  • इस प्रकार ‘इक्ता व्यवस्था’ ने जहाँ राज्य को एक कृषि व्यवस्था प्रदान किया, वहीं प्रशासक वर्ग को आय भी प्रदान किया।
  • ‘इक्ता पद्धति’ को सर्वप्रथम ‘मुहम्मद गोरी’ ने लागू किया था, परन्तु इल्तुतमिश ने इसको एक संस्थानात्मक रूप देकर प्रशासनिक संगठन बना दिया। उसने अपने साम्राज्य को विभिन्न छोटे - छोटे क्षेत्रों में बाँट दिया जिन्हें ‘इक्ता’ कहा गया एवं इनके राजस्व को सैनिकों, अधिकारियों एवं अमीरों से उनकी सेवाओं के बदले जोड़ दिया गया।
  • फिरोज ने इस व्यवस्था को वंशानुगत प्रारूप प्रदान किया।
  • सैन्य व्यवस्था एवं राजस्व संकलन को समन्वित कर दिया गया था।
  • ‘इक्ताओं’ का आकार भिन्न-भिन्न था। इनका आवंटन भी पद एवं कार्यों के अनुरूप किया गया था। सबसे बड़ी ‘इक्ता’ प्रादेशिक राज्यपालों को दी गयी थी जबकि छोटी ‘इक्ता’ में सैनिक थे जो कि इक्ता से प्राप्त राजस्व का व्यक्तिगत प्रयोग करते थे। वे आदेश होने पर घोड़ों एवं शस्त्रों सहित केन्द्र की सेवा में उपस्थित हो जाते थे।
  • अलाउद्दीन सल्तनत का प्रथम सुल्तान था जिसने कृषि पद्धति पर व्यापक ध्यान दिया एवं विभिन्न विनियमनों द्वारा कृषि व्यवस्था को नया स्वरूप प्रदान किया।
  • अलाउद्दीन ने सभी छोटी ‘इक्ताओं’ को ‘खालिसा’ (केन्द्र-शासित) में परिवर्तित कर दिया। उसने ‘खुत’ एवं ‘मुकद्दमो’ को निरस्त कर दिया तथा ‘राजस्व’ को उपज का 1/2 निर्धारित कर दिया। उसने ‘चराई कर’ भी लागू किया।
  • अक्ता (इक्ता) प्राप्त अधिकारी को ‘मुक्ता’ कहते थे।
  • ‘खालसा’ क्षेत्र का प्रशासन अक्ता प्रणाली से भिन्न था। ‘खालसा’ भूमि की आय सुल्तान के लिए सुरक्षित रहती थी।
  • तुर्कों ने इस्लामी अर्थव्यवस्था सम्बन्धी सिद्धान्तों को अपनाया। भू-राजस्व ही राज्य की आय का मुख्य साधन था। सल्तनत कालीन भूमि व्यवस्था मुस्लिम विचारधारा एवं पूर्व प्रचलित देशी संस्थाओं का सम्मिश्रण थी। अधिशेष उत्पादन मुख्यतः अक्ता प्रणाली द्वारा प्राप्त किया जाता था।

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तुर्कों की इस्लामी अर्थव्यवस्था

  • अलाउद्दीन प्रथम मुस्लिम शासक था जिसने कृषकों से सीधे सम्पर्क करके ग्राम स्तर पर व्यापक भूमि सुधार किए।
  • फिरोज शाह की कृषि नीति में व्यापक पैमाने पर नहरों के निर्माण की व्यवस्था की गयी थी।
  • सिकन्दर लोदी ने भू-माप हेतु ‘एकीकृत लट्ठे’ (Uniform Yard)  अपनाया जो कि 41 इकाइयों का मानक मापक था।
  • गयासुद्दीन ने भू-माप के आधार पर राजस्व निर्धारण को त्याग कर ‘कटाई’ एवं ‘हुक्म-ए-हासिल’ पद्धति को अपनाया तथा कृषकों को असामयिक भुगतान से मुक्त कर दिया।
  • प्रमुख उत्पादकों में जो, गेहूं, गन्ना, चना, दाल आदि थे।
  • फिरोज शाह प्रथम सुल्तान था जिसने सिंचाई कर ‘हाव ए शर्व’ लिया।
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FAQs on दिल्ली सल्तनत - इतिहास,यु.पी.एस.सी - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. दिल्ली सल्तनत के बारे में क्या जानकारी है?
उत्तर. दिल्ली सल्तनत भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। यह मुग़ल साम्राज्य के पूर्व काल में विकसित हुआ था और 13वीं से 16वीं शताब्दी तक चला। इसमें सिकंदर लोधी, बह्लोल लोदी, इब्राहिम लोदी, बहादुर शाह ज़फर, और शेरशाह सूरी जैसे महान सल्तनती शासक शामिल थे। इस प्रशासनिक अवधि में दिल्ली सल्तनत ने कई महत्वपूर्ण बदलाव किए और दक्षिण एशिया में एक प्रमुख सत्ताधारी बन गया।
2. दिल्ली सल्तनत की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर. दिल्ली सल्तनत की स्थापना 1206 ईस्वी में हुई थी। इसकी स्थापना ने मुग़ल साम्राज्य के पूर्व काल में नये आयाम दिए और दिल्ली को भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे महत्त्वपूर्ण नगरों में से एक बना दिया।
3. दिल्ली सल्तनत के महान सल्तनती शासक कौन-कौन थे?
उत्तर. दिल्ली सल्तनत में कई महान सल्तनती शासक राज्य करने आए। सिकंदर लोधी, बह्लोल लोदी, इब्राहिम लोदी, बहादुर शाह ज़फर, और शेरशाह सूरी इनमें से कुछ महत्वपूर्ण नाम हैं। इन सभी शासकों ने अपने काल में दिल्ली सल्तनत के प्रशासनिक और सामरिक विस्तार में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
4. दिल्ली सल्तनत में कौनसी भाषा बोली जाती थी?
उत्तर. दिल्ली सल्तनत के दौरान उर्दू और परसी भाषा बहुत चर्चित थीं। उर्दू दिल्ली सल्तनत का व्यापक भाषा बन गई थी और आधिकारिक कार्यकाल में उसे खास दरबारी भाषा के रूप में स्वीकार किया गया था। परसी भाषा भी इस समय में प्रचलित थी और सल्तनती शासकों की आधिकारिक भाषा के रूप में उपयोग होती थी।
5. दिल्ली सल्तनत के दौरान कौन कौन सी साम्राज्यवादी नीतियां अपनाई गईं?
उत्तर. दिल्ली सल्तनत के दौरान कई साम्राज्यवादी नीतियां अपनाई गईं। इसमें शासन में सुशासन, शक्ति का मुख्यतः धार्मिक और राजनीतिक आधार पर बदलना, सैन्य ताकत का महत्त्वपूर्ण योगदान, और प्रशासनिक सुधार शामिल थे। ये सभी नीतियां दिल्ली सल्तनत के प्रशासनिक और सामरिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देने वाली थीं।
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