Table of contents |
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कवि परिचय: मीराबाई |
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मीरा के पद पाठ प्रवेश |
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पाठ का सार |
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पद से शिक्षा |
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शब्दार्थ |
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मीराबाई भक्ति काल की एक प्रसिद्ध महिला कवयित्री थीं। उनका जन्म 1503 में राजस्थान के चोकड़ी (कुड़की) गाँव में हुआ था। उनका विवाह मेवाड़ के राजकुमार भोजराज से हुआ, लेकिन जल्दी ही उनके पति, पिता और श्वसुर का निधन हो गया। दुखों से भरपूर जीवन के कारण मीरा ने अपना घर छोड़ दिया और भगवान कृष्ण की भक्ति में लग गईं। वे संत रैदास की शिष्या थीं। उन्होंने कृष्ण को ही अपना सब कुछ माना और जीवन भर उनकी भक्ति में लीन रहीं। मीरा ने अपने पदों में कृष्ण से प्रेम, शिकायत, विनती और लाड़ सभी भावों को बहुत सुंदर ढंग से बताया है। उनकी भाषा में राजस्थानी, ब्रज और गुजराती का मेल मिलता है।
मीराबाई
लोक कथाओं के अनुसार, मीरा अपने जीवन के दुखों से परेशान होकर घर छोड़कर वृंदावन चली गई थीं। वहाँ उन्होंने अपना पूरा जीवन भगवान कृष्ण को समर्पित कर दिया और उनके प्रेम में डूब गईं। मीरा की रचनाओं में भगवान कृष्ण कभी बिना रूप के परमात्मा (निर्गुण), कभी गोपियों के प्यारे श्रीकृष्ण (सगुण), और कभी किसी को न चाहने वाले संत (निर्मोही जोगी) के रूप में दिखाई देते हैं।
इस पाठ में दिए गए दोनों पद मीरा ने अपने भगवान श्रीकृष्ण के लिए ही लिखे हैं। मीरा कभी भगवान की तारीफ करती हैं, कभी उनसे प्यार जताती हैं और कभी उन्हें डांट भी देती हैं। वे भगवान की शक्तियों की याद दिलाती हैं और उन्हें यह भी कहती हैं कि अपने भक्तों का साथ देना उनका कर्तव्य है।
इस पाठ में मीराबाई के दो पद दिए गए हैं, जिनमें उन्होंने अपने आराध्य श्रीकृष्ण (गिरधर गोपाल) को प्रेम, भक्ति और श्रद्धा से पुकारा है। पहले पद में मीरा भगवान से विनती करती हैं कि जैसे उन्होंने पहले अपने भक्तों की मदद की थी, वैसे ही अब वे मीरा की भी मदद करें। वे याद दिलाती हैं कि भगवान ने द्रौपदी की लाज बचाई, नरसिंह रूप लेकर भक्त की रक्षा की और गजराज को बचाया। मीरा खुद को भगवान की दासी मानकर उनसे अपनी पीड़ा हरने की प्रार्थना करती हैं।
दूसरे पद में मीरा कहती हैं कि वे अपने आराध्य श्रीकृष्ण की सेविका बनकर रहना चाहती हैं। वे रोज़ बाग लगाएँगी, प्रभु के दर्शन करेंगी और वृंदावन की गलियों में श्रीकृष्ण की लीलाएँ गाएँगी। वे कहती हैं कि उन्हें भगवान के दर्शन, सुमिरन (स्मरण) और भक्ति की जागीर (धन-संपत्ति) चाहिए। मीरा अपने मन में बसे मोर मुकुट, पीताम्बर पहनने वाले, मुरली बजाने वाले श्रीकृष्ण का सुंदर रूप याद करती हैं। वे चाहती हैं कि आधी रात को भी यमुना के किनारे भगवान उन्हें दर्शन दें, क्योंकि उनका मन श्रीकृष्ण के बिना बहुत अधीर हो रहा है।
इन पदों में मीरा की गहरी भक्ति, प्रेम, समर्पण और आराध्य के प्रति विश्वास झलकता है।
मीरा बाई के इन पदों से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अगर हमारा विश्वास और भक्ति सच्ची हो, तो भगवान हमेशा हमारे साथ रहते हैं और हमारी परेशानी दूर करते हैं। मीरा ने अपने जीवन में बहुत दुख झेले, फिर भी उन्होंने भगवान कृष्ण पर विश्वास नहीं छोड़ा। वे उन्हें अपने सच्चे दोस्त, मालिक और सहारा मानती थीं। हमें भी सच्चे मन से भगवान पर भरोसा रखना चाहिए और अपने काम को पूरी श्रद्धा और सेवा भाव से करना चाहिए। यह पद हमें सिखाते हैं कि प्रेम और भक्ति से ही जीवन में शांति और सच्चा सुख पाया जा सकता है।
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1. पद के कितने प्रकार होते हैं? | ![]() |
2. संज्ञा पद क्या होता है? | ![]() |
3. सर्वनाम पद क्या होता है? | ![]() |
4. पद के उदाहरण क्या हैं? | ![]() |
5. पदों का उपयोग क्या है? | ![]() |