Table of contents |
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कवि परिचय |
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पाठ प्रवेश |
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पाठ सार |
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पाठ का परिप्रेक्ष्य |
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हिंदी के महान कहानीकार मुंशी प्रेमचंद का जन्म सन् 1880 में बनारस के पास लमही नामक गाँव में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव से ही प्राप्त की थी। बचपन में ही उनके पिता का देहांत हो गया था, जिसके कारण अल्प आयु में ही पूरे परिवार की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ पड़ी। वे दसवीं कक्षा पास करने के बाद प्राइमरी स्कूल के शिक्षक बन गए थे। नौकरी करते हुए ही उन्होंने अपनी बी.ए. की परीक्षा पास की। इसके बाद उन्हें शिक्षा विभाग में सब-डिप्टी इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल के रूप में नियुक्त किया गया। मुंशी प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। उन्हें हिंदी साहित्य के स्तंभों में से एक माना जाता है। उनके द्वारा रचित कहानियाँ और उपन्यास समाज के यथार्थ चित्रण और मानव संवेदनाओं को गहराई से प्रस्तुत करने के लिए प्रसिद्ध हैं। प्रेमचंद ने अपने लेखन के माध्यम से सामाजिक असमानता, गरीबी, और शिक्षा जैसी महत्वपूर्ण समस्याओं पर प्रकाश डाला। उनकी प्रमुख रचनाओं में 'गोदान', 'गबन', 'निर्मला', और 'ईदगाह' जैसी कहानियाँ शामिल हैं।
प्रस्तुत पाठ ‘बड़े भाई साहब’ प्रेमचंद की एक अत्यंत रोचक और शिक्षाप्रद कहानी है, जो दो भाइयों के बीच के रिश्ते पर आधारित है। इस कहानी में बड़े और छोटे भाई के बीच की मानसिक और शैक्षिक खाई को दर्शाया गया है। छोटे भाई की खेलकूद और पढ़ाई से दूरी की प्रवृत्ति और बड़े भाई के कठोर अनुशासन का वर्णन करते हुए, कहानी एक व्यंग्यात्मक दृष्टिकोण से शिक्षा और ज्ञान की गहराई को उजागर करती है।
प्रस्तुत पाठ में एक छोटे भाई और बड़े भाई साहब की कहानी है। बड़े भाई साहब छोटे भाई से पांच साल बड़े हैं, पर वे सिर्फ तीन कक्षाएँ आगे पढ़ते हैं। वे चाहते थे कि अपनी शिक्षा की नींव मज़बूती से रखें ताकि आगे अच्छा मुकाम पा सकें। वे हर कक्षा में दो या तीन साल लगाते थे और हमेशा किताबों में ही लगे रहते थे।
लेखक को पढ़ाई में कोई रुचि नहीं थी। एक घंटे भी किताब खोलकर बैठना उसके लिए मुश्किल था। खेलकूद का अवसर पाकर वह मैदान में चला जाता। लेकिन जब कमरे में वापस आता तो बड़े भाई का गुस्सा देख डर जाता। भाई साहब उसे डांटते हुए कहते कि वह सुस्त है और कुछ नहीं सीखता। वे उसे कहते थे कि अगर पढ़ाई में मन नहीं लगाना है तो घर जाकर गुल्ली-डंडा खेलो।
भाई साहब की उपदेश की बातें दिल में तो लगतीं, पर कुछ समय बाद उसका असर कम हो जाता। लेखक सोचता था कि वह अगले दिन पढ़ाई में मन लगाएगा, लेकिन समय सारणी बनाना और पालन करना अलग बात थी।
एक साल लेखक पास हुआ और भाई साहब फेल हो गए। लेखक को गर्व हुआ और उसे लगा कि अब बड़ा हो गया है। भाई साहब ने उसे समझाया कि उन्हें परिश्रम की महत्ता समझनी चाहिए। लेखक सोचता था कि अगर पास होने पर इतनी बेज्जती हो रही है तो फेल होने पर क्या होगा।
फिर अगले साल लेखक फिर पास हो गया और भाई साहब फिर से फेल हो गए। भाई साहब का स्वभाव अब नरम हो गया था और वे लेखक को अब कम डांटते थे। लेखक को अब लगता था कि उसे पढ़ाई की ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए, वह तो पास हो ही जाएगा। अब वह पतंगबाजी में व्यस्त हो गया।
एक दिन भाई साहब को लेखक खेलते हुए मिला और उन्होंने उसे डांटा। उन्होंने कहा कि लेखक को अपनी स्थिति का ख्याल रखना चाहिए। बड़े भाई साहब ने लेखक को समझाया कि पढ़ाई की महत्ता और सही रास्ते पर चलना जरूरी है। लेखक को यह एहसास हुआ कि उसे अपनी गलतियों को स्वीकार करना चाहिए।
भाई साहब ने लेखक को गले लगा लिया और कहा कि वे उसे पतंग उड़ाने से नहीं रोकते, पर अगर वे रास्ता भटकेंगे तो कैसे उसकी रक्षा करेंगे। उसी समय एक कटी हुई पतंग लेखक के ऊपर से गुज़री, और भाई साहब ने उसे पकड़ लिया।
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पाठ का सार: बड़े भाई साहब
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प्रेमचंद की कहानी 'बड़े भाई साहब' शिक्षा और अनुशासन के बीच के अंतर को व्यंग्यात्मक तरीके से प्रस्तुत करती है। यह कहानी दो भाइयों के बीच के भावनात्मक और शैक्षिक संबंधों पर आधारित है। बड़े भाई शिक्षा के प्रति अत्यधिक गंभीर होते हैं और अनुशासन का पालन करते हैं, जबकि छोटा भाई सहजता और खेल-कूद के साथ अपनी पढ़ाई को संतुलित करता है। कहानी यह संदेश देती है कि मात्र रटने या कठोर अनुशासन से शिक्षा का मर्म नहीं समझा जा सकता, बल्कि जीवन के अनुभवों से भी सीखना जरूरी है।
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