Class 10 Exam  >  Class 10 Notes  >  NCERT Textbooks & Solutions for Class 10  >  पाठ का सार - माता का आँचल, कृतिका II, हिंदी, कक्षा 10

पाठ का सार - माता का आँचल, कृतिका II, हिंदी, कक्षा 10 | NCERT Textbooks & Solutions for Class 10 PDF Download

लेखक परिचय

शिवपूजन सहाय हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक थे। उनका जन्म 1893 में बिहार के शाहाबाद जिले में हुआ था। उन्होंने हिंदी गद्य लेखन में महत्वपूर्ण योगदान दिया और कहानी, निबंध, उपन्यास, और संस्मरण आदि विधाओं में लेखन किया। उनकी रचनाएँ सरल भाषा, मार्मिकता और मानवीय संवेदनाओं से ओत-प्रोत होती हैं। 'माता का अंचल' उनकी चर्चित रचनाओं में से एक है। उनकी भाषा सहज, सुंदर और भावपूर्ण है। शिवपूजन सहाय को उनकी लेखन शैली के लिए विशेष रूप से याद किया जाता है। उनका निधन 1963 में हुआ।

पाठ प्रवेश

इस कहानी में लेखक ने माता-पिता का बच्चों के प्रति अपार स्नेह, प्रेम, चिंता व् अपने बचपन तथा ग्रामीण जीवन में बच्चों द्वारा खेले जाने वाले अनेक प्रकार के खेलों का बड़े ही सुंदर तरीके से वर्णन किया है। साथ में बच्चों के माध्यम से बात-बात पर ग्रामीणों द्वारा बोली जाने वाली लोकोक्तियों का भी कहानी में बड़े रोमांचक तरीके से प्रयोग किया गया है। यह कहानी भले ही शुरुआत से पिता-पुत्र प्रेम के इर्द-गिर्द घूमती हो परन्तु अंत में मातृ प्रेम का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करती है। यह कहानी हमें बताती है कि एक छोटे बच्चे को दुनिया की साडी खुशियां चाहे पिता दें परन्तु सुरक्षा और शांति की अनुभूति सिर्फ माँ के आंचल में ही मिलती है।

पाठ सार

शिवपूजन सहाय के बचपन का नाम “तारकेश्वरनाथ” था मगर घर में उन्हें उनके पिता जी “भोलानाथ” कहकर पुकारा करते थे। भोलानाथ भी अपने पिता को “बाबूजी” व माता को “मइयाँ ” कहा करते थे। बचपन में भोलानाथ का ज्यादातर समय अपने मित्रों के साथ मस्ती में व् अपने पिता के सानिध्य में ही गुजरता था। बाबूजी लेखक को अपने साथ ही सुलाते, अपने साथ ही जल्दी सुबह उठाकर स्नान करते और अपने साथ ही भगवान की पूजा अर्चना कराते थे। 

जब लेखक के बाबूजी उनको तिलक लगाने लगते तो लेखक उन्हें बहुत परेशान करते थे परन्तु जब थोड़ा प्यार और डाँट से बाबूजी तिलक लगा देते तो लेखक पुरे बम-भोला लगते थे जिस कारण बाबूजी लेखक को भोलानाथ पुकारते थे। जब भी भोलानाथ के बाबूजी रामायण का पाठ करते , तब भोलानाथ उनके बगल में बैठ कर अपने चेहरे का प्रतिबिंब आईने में देख कर खूब खुश होते। पर जैसे ही उनके बाबूजी की नजर उन पर पड़ती तो , वो थोड़ा शर्माकर और  मुस्कुरा कर आईना नीचे रख देते थे। उनकी इस बात पर उनके बाबूजी भी मुस्कुरा उठते थे।

पूजा अर्चना करने के बाद भोलानाथ के बाबूजी एक मोती कॉपी पर हज़ार बार राम-नाम लिखते थे। फिर पाँच-सौ बार छोटे-छोटे कागजों पर राम नाम लिख कागज उन पर्चियों में छोटी -छोटी आटे की गोलियां रखकर गंगा जी में मछलियों को खिलाने जाते थे। लेखक भी अपने बाबूजी के कंधे में बैठकर गंगा जी के पास जाते और फिर उन आटे की गोलियां को मछलियों को खिला देते थे।

उसके बाद वो अपने बाबूजी के रास्ते में खूब सारी मस्ती कर साथ घर आकर खाना खाते। भोलानाथ की माँ जिद्द करके उन्हें अनेक पक्षियों के नाम से निवाले बनाकर बड़े प्यार से खिलाती थी। भोलानाथ की माँ भोलानाथ को बहुत लाड -प्यार करती थी। वह कभी उन्हें अपनी बाहों में भर कर खूब प्यार करती , तो कभी उन्हें जबरदस्ती पकड़ कर उनके सिर पर सरसों के तेल से मालिश करती। उस वक्त भोलानाथ बहुत छोटे थे। इसलिए वह बात-बात पर रोने लगते। इस पर बाबूजी भोलानाथ की माँ से नाराज हो जाते थे। लेकिन भोलानाथ की माँ उनके बालों को अच्छे से बना कर , उनकी गुँत बनाकर उसमें फूलदाऱ लड्डू लगा देती थी और साथ में भोलानाथ को रंगीन कुर्ता व टोपी पहना देती थी जिससे लेखक  “कन्हैया” जैसे दिखाई देते थे।

पाठ का सार - माता का आँचल, कृतिका II, हिंदी, कक्षा 10 | NCERT Textbooks & Solutions for Class 10

भोलानाथ अपने हमउम्र दोस्तों के साथ तरह-तरह के नाटक करते थे। कभी चबूतरे का एक कोना ही उनका नाटक घर बन जाता तो, कभी बाबूजी की नहाने वाली चौकी ही रंगमंच बन जाती।और उसी रंगमंच पर सरकंडे के खंभों पर कागज की चादर बनाकर उनमें मिट्टी या अन्य चीजों से बनी मिठाइयों की दुकान लग जाती जिसमें लड्डू , बताशे , जलेबियां आदि सजा दिये जाते थे। और फिर जस्ते के छोटे-छोटे टुकड़ों के बने पैसों से बच्चे आपस में भी खरीदार और दुकानदार बन कर उन मिठाइयों को खरीदने व् बेचने का नाटक करते थे। भोलानाथ के बाबूजी भी कभी-कभी वहां से असली के पैसों से खरीदारी कर लेते थे।

ऐसे ही नाटक में कभी घरोंदा बना दिया जाता था जिसमें घर के सामान सजा कर रख दिए जाते थे। तो कभी-कभी बच्चे बारात का भी जुलूस निकालते थे जिसमें तंबूरा और शहनाई भी बजाई जाती थी। दुल्हन को भी विदा कर लाया जाता था। कभी-कभी बाबूजी दुल्हन का घूंघट उठा कर देख लेते तो , सब बच्चे शर्माकर हंसते हुए वहां से भाग जाते थे। बाबूजी भी बच्चों के खेलों में भाग लेकर उनका आनंद उठाते थे। 

आम की फसल ले दौरान आँधी चलने से बहुत से आम गिर जाते थे। बच्चे उन आमों को उठाने भागा करते थे। एक दिन सारे बच्चे आम के बाग़ में खेल रहे थे। तभी बड़ी जोर से आंधी आई। बादलों से पूरा आकाश ढक गया और देखते ही देखते खूब जम कर बारिश होने लगी। काफी देर बाद बारिश बंद हुई तो बाग के आसपास बिच्छू निकल आए जिन्हें देखकर सारे बच्चे डर के मारे भागने लगे। संयोगवश रास्ते में उन्हें मूसन तिवारी मिल गए। भोलानाथ के एक दोस्त बैजू ने उन्हें चिढ़ा दिया। फिर क्या था बैजू की देखा देखी सारे बच्चे मूसन तिवारी को चिढ़ाने लगे। मूसन तिवारी ने सभी बच्चों को वहाँ से भगा दिया और सीधे उनकी शिकायत करने पाठशाला चले गए।  पाठशाला में लेखक और लेखक के साथियों की शिकायत गुरु जी से कर दी। गुरु जी ने सभी बच्चों को स्कूल में पकड़ लाने का आदेश दिया। सभी को पकड़कर स्कूल पहुंचाया गया। दोस्तों के साथ भोलानाथ को भी जमकर मार पड़ी। जब बाबूजी को इस बात की  खबर पहुंची तो , वो दौड़े-दौड़े पाठशाला आए। जैसे ही भोलानाथ ने अपने बाबूजी को देखा तो वो दौड़कर बाबूजी की गोद में चढ़ गए और रोते-रोते बाबूजी का कंधा अपने आंसुओं से भिगा दिया। गुरूजी की विनती कर बाबूजी भोलानाथ को घर ले आये।

भोलानाथ काफी देर तक बाबूजी की गोद में भी रोते रहे लेकिन जैसे ही रास्ते में उन्होंने अपनी  मित्र मंडली को देखा तो वो अपना रोना भूलकर मित्र मंडली में शामिल होने की जिद्द करने लगे। मित्र मंडली उस समय चिड़ियों को पकड़ने की कोशिश कर रही थी। चिड़ियाँ तो उनके हाथ नहीं आयी। पर उन्होंने एक चूहे के बिल में पानी डालना शुरू कर दिया। उस बिल से चूहा तो नहीं निकला लेकिन सांप जरूर निकल आया। सांप को देखते ही सारे बच्चे डर के मारे भागने लगे। भोलानाथ भी डर के मारे भागे और गिरते-पड़ते जैसे-तैसे घर पहुंचे। लहूलुहान शरीर लिए जैसे ही घर में घुसे सामने बाबूजी बैठ कर हुक्का पी रहे थे। उन्होंने भोलानाथ को आवाज लगाई परन्तु आज भोलानाथ सीधे अंदर अपनी मां की गोद में जाकर छुप गए। भोलानाथ को ऐसा डरा हुआ देखकर माँ का भी रोना निकल गया। उन्होंने भोलानाथ के जख्मों की पट्टी की और उससे उसके डर का कारण पूछने लगी। बाबूजी ने भोलानाथ को अपनी गोद में लेना चाहा लेखिन डरे व घबराए हुए भोलानाथ को उस समय पिता के मजबूत बांहों के सहारे व दुलार के बजाय अपनी माँ का आंचल ज्यादा सुरक्षित व  महफूज लगने लगा। 

शब्दार्थ

  • संग: साथ , मिलन , मिलने की क्रिया
  • मृदंग: एक तरह का वाद्य यंत्र
  • बुड्ढों: वृद्ध , बुजुर्ग का संग , अधिक उम्र का
  • तंग: जिसमें उचित व आवश्यक विस्तार का अभाव हो
  • तड़के: सुबह के समय , सवेरे – सवेरे , भोर मे
  • निबट: समाधान , समायोजन , निर्णय
  • बैठक: सभा , बैठने का कमरा , चौपाल , उठने और बैठने की कसरत
  • भभूत: वह भस्म जिसको शिव भक्त शरीर पर लगाते हैं , यज्ञ कुंड या धूनी की भस्म
  • दिक: जिसे कष्ट पहुँचा हो , परेशान , हैरान , पीड़ित , तंग आया हुआ , अस्वस्थ , बीमार
  • झुँझलाकर: क्रुद्ध या व्यथित होकर कोई बात कहना , खीजना , चिड़चिड़ाना , चिढ़ना , बिगड़ना
  • लिलार: ललाट , माथा , मस्तक ,भाल
  • त्रिपुंड: एक प्रकार का तिलक जिसमें ललाट पर तीन आड़ी या अर्धचंद्राकार रेखाएँ बनाई जाती है
  • जटाएँ: सिर के बहुत लंबे , उलझे , आपस में चिपके या गुथे हुए बाल
  • रमाने: लगाना
The document पाठ का सार - माता का आँचल, कृतिका II, हिंदी, कक्षा 10 | NCERT Textbooks & Solutions for Class 10 is a part of the Class 10 Course NCERT Textbooks & Solutions for Class 10.
All you need of Class 10 at this link: Class 10
342 docs

FAQs on पाठ का सार - माता का आँचल, कृतिका II, हिंदी, कक्षा 10 - NCERT Textbooks & Solutions for Class 10

1. "माता का आँचल" पाठ किस लेखक ने लिखा है ?
Ans. "माता का आँचल" पाठ प्रसिद्ध लेखक एवं कवि "हरिवंश राय बच्चन" ने लिखा है।
2. "माता का आँचल" पाठ का मुख्य विषय क्या है ?
Ans. "माता का आँचल" पाठ का मुख्य विषय माँ के प्रेम, त्याग और बलिदान को दर्शाना है। यह पाठ माँ के आँचल को एक शरणस्थली के रूप में प्रस्तुत करता है, जहाँ बच्चों को सुरक्षा और स्नेह मिलता है।
3. इस पाठ में माता के आँचल का क्या महत्व बताया गया है ?
Ans. इस पाठ में माता के आँचल का महत्व यह बताया गया है कि यह न केवल शारीरिक सुरक्षा का प्रतीक है, बल्कि यह मानसिक और भावनात्मक सुरक्षा भी प्रदान करता है। माँ का आँचल बच्चों के लिए एक सुरक्षित स्थान होता है।
4. "माता का आँचल" पाठ में किस प्रकार की भावनाएँ व्यक्त की गई हैं ?
Ans. "माता का आँचल" पाठ में प्रेम, करुणा, और ममता की भावनाएँ व्यक्त की गई हैं। इसमें माँ के प्रति बच्चों का सम्मान और श्रद्धा का भाव भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
5. पाठ "माता का आँचल" का क्या संदेश है ?
Ans. पाठ "माता का आँचल" का संदेश यह है कि माता का प्रेम और त्याग अनंत होता है। यह पाठ हमें यह सिखाता है कि हमें अपनी माताओं का सम्मान करना चाहिए और उनके बलिदानों को समझना चाहिए।
Related Searches

Summary

,

mock tests for examination

,

कक्षा 10 | NCERT Textbooks & Solutions for Class 10

,

ppt

,

Free

,

Objective type Questions

,

पाठ का सार - माता का आँचल

,

Previous Year Questions with Solutions

,

Sample Paper

,

कृतिका II

,

study material

,

past year papers

,

Exam

,

practice quizzes

,

video lectures

,

Important questions

,

कक्षा 10 | NCERT Textbooks & Solutions for Class 10

,

कृतिका II

,

हिंदी

,

कृतिका II

,

Viva Questions

,

कक्षा 10 | NCERT Textbooks & Solutions for Class 10

,

पाठ का सार - माता का आँचल

,

पाठ का सार - माता का आँचल

,

pdf

,

Semester Notes

,

Extra Questions

,

हिंदी

,

हिंदी

,

shortcuts and tricks

,

MCQs

;