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प्रतिहार और राष्ट्रकूट - यूपीएससी, आईएएस Video Lecture | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

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FAQs on प्रतिहार और राष्ट्रकूट - यूपीएससी, आईएएस Video Lecture - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. प्रतिहार और राष्ट्रकूट क्या हैं?
उत्तर: प्रतिहार और राष्ट्रकूट दो प्रमुख भारतीय राजवंशों के नाम हैं। प्रतिहार वंश ने 8वीं से 11वीं शताब्दी तक मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश क्षेत्र में शासन किया था, जबकि राष्ट्रकूट वंश ने 8वीं से 10वीं शताब्दी तक महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश क्षेत्र में शासन किया था।
2. प्रतिहार और राष्ट्रकूट वंश के बीच मुख्य अंतर क्या था?
उत्तर: प्रतिहार वंश उत्तर भारत में शासन करता था जबकि राष्ट्रकूट वंश दक्षिण भारत में शासन करता था। दोनों वंशों के बीच क्षेत्रीय और राजनीतिक विवाद रहे हैं और इसका परिणामस्वरूप दोनों वंशों के बीच युद्ध हुए।
3. प्रतिहार और राष्ट्रकूट वंश के शासनकाल में कौन-कौन सी महत्वपूर्ण गतिविधियाँ हुईं?
उत्तर: प्रतिहार वंश के शासनकाल में गुप्तकाल के अनुसार विद्या, कला, संस्कृति, व्यापार और धर्म विकास का अवसर रहा। वे भारतीय संस्कृति को समृद्ध करने का प्रयास किया। राष्ट्रकूट वंश के शासनकाल में वाणीज्यिक और वाणिज्यिक गतिविधियों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया और कला, साहित्य, मूर्तिकला, वास्तुकला और धर्मिक साम्राज्य के विकास को प्रोत्साहित किया।
4. प्रतिहार और राष्ट्रकूट वंश के महानतम शासक कौन थे?
उत्तर: प्रतिहार वंश के महानतम शासक नागभट्ट द्वितीय थे, जो 8वीं शताब्दी में शासन करते थे। उनका शासनकाल प्रतिहार वंश की गरिमा का समय था और उन्होंने प्रतिहार साम्राज्य को मजबूत बनाने के लिए कठिन परिस्थितियों का सामना किया। राष्ट्रकूट वंश के महानतम शासक कृष्ण तीर्थ थे, जो 8वीं शताब्दी में शासन करते थे। उन्होंने राष्ट्रकूट साम्राज्य को महानता के शिखर पर ले जाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
5. प्रतिहार और राष्ट्रकूट वंश के शासकों ने कौन-कौन सी धर्मों का समर्थन किया?
उत्तर: प्रतिहार वंश के शासकों ने हिन्दू धर्म का समर्थन किया और हिन्दू धर्म के प्रतिष्ठान और विकास में योगदान दिया। राष्ट्रकूट वंश के शासकों ने विविध धर्मों का समर्थन किया, जैसे हिन्दू धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म। वे एक संरक्षक और प्रोत्साहक के रूप में विभिन्न धर्मों को समर्थन करते थे और अपने साम्राज्य के लोगों के धार्मिक अधिकारों का सम्मान करते थे।
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