प्रमुख खनिज पदार्थ
मैंगनीज
मैंगनीज उत्पादन में भारत का विश्व में पाँचवाँ स्थान है। विश्व के लगभग 20% मैंगनीज का उत्पादन भारत अकेला करता है जिसमें आधा निर्यात कर दिया जाता है।
यह खनिज धारवाड़ की शैलों में मिलता है। इन चट्टानों से देश का 90% मैंगनीज प्राप्त किया जाता है।
मैंगनीज का बहुमुखी उपयोग होता है। कुल खपत का 95% केवल धातु - निर्माण कार्यों में प्रयुक्त होता है जिसका अधिकांश भाग लोहा एवं इस्पात उद्योग में खप जाता है।
भारत में इसके अयस्कों का कुल भंडार 18.5 करोड़ टन है। इस दृष्टि से भारत का विश्व में सोवियत संघ (विघटन पूर्व) के बाद दूसरा स्थान है।
भण्डार का तीन - चैथाई भाग महाराष्ट्र के नागपुर और भण्डारा जिलों तथा मध्य प्रदेश के बालाघाट और छिंदवारा जिलों में पाया जाता है। शेष भाग उड़ीसा, कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान, गोवा, आन्ध्र, प्रदेश एवं बिहार में पाया जाता है।
अभ्रक (Mica)
अभ्रक के उत्पादन में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है। विश्व में अभ्रक के कुल अभ्रक व्यापार में भारत का हिस्सा 60% है।
यह आग्नेय एवं रूपान्तरित चट्टानों में सफेद या काले टुकड़ों के रूप में पाया जाता है।
यह काफी ऊँचे तापमान पर गलता है इसलिए उद्योगों में इसका तापरोधक के रूप में काफी प्रयोग होता है। साथ ही यह बिजली का भी कुचालक होता है।
इसका उपयोग औषधि निर्माण, बिजली संचालन, तार एवं टेलीफोन, रेडियो, मोटर, वायुयान, स्टोव, साज श्रृंगार, कपड़ा, पंखा, मिट्टी के बर्तनों पर चमक देने आदि कार्यों में होता है।
अभ्रक का एक प्रमुख गुण उसका पूर्ण आधार विदलन (Perfect basal cleavage) है। किसी भी वस्तु पर इसकी पतली परत चढ़ाई जा सकती है। अभ्रक दो प्रकार के होते है - सफेद अभ्रक या रुबी अभ्रक और गुलाबी अभ्रक।
भारत में अभ्रक बिहार, आन्ध्र प्रदेश, राजस्थान, केरल, कर्नाटक आदि राज्यों से प्राप्त होता है। केवल झारखण्ड से ही कुल उत्पादन का 52% अभ्रक प्राप्त होता है। भारत विश्व का सबसे बड़ा अभ्रक निर्यातक देश है।
ताँबा (Copper)
ताँबा रूपान्तरित चट्टानों में पाया जाता है। सल्फाइड के अलावा यह आक्साइड, क्लोराइड या कार्बोनेट आदि रासायनिक वस्तुओं के साथ चट्टानों में मिश्रित रूप से पाया जाता है।
ताँबे को दूसरे धातुओं के साथ मिलाकर अनेक उपयोगी धातु तैयार किया जाता है जैसे - ताँबे में टांगा मिलाकर काँसा, जस्ता मिलाकर पीतल; सीसा मिलाकर इस्पात; सोना मिलाकर बल्लित सोना (Rolled Gold) तैयार किया जाता है।
पूरे भारत में प्रतिबंधित क्षेत्र में तांबे का भंडार 67.41 करोड़ टन है (इसमें 1.89 टन तांबा धातु है) और संभावित संसाधनों के रूप में 76 करोड़ 99 लाख टन तांबा अयस्क का भंडार है।
भारत में ताँबे के प्रमुख उत्पादक राज्य बिहार, आन्ध्र प्रदेश और राजस्थान है। इसके अलावा कर्नाटक, गुजरात, सिक्किम और उड़ीसा राज्यों में भी थोड़ा - बहुत ताँबा पाया जाता है। झारखण्ड में देश का सबसे ज्यादा ताँबा मिलता है। यहाँ का सिंहभूमि जिला देश के ज्ञात भण्डारों का 50% भाग रखता है।
ताँबा अयस्क इन स्थानों पर मिलता है - सिंहभूम, मोसाबनी, रकाहा (झारखण्ड); अग्निगुडुला (आन्ध्र प्रदेश); चित्रादुर्ग, कलयाडी, थिनथिनी (कर्नाटक)और दरिबा (राजस्थान)।;
स्मरणीय तथ्य 1973 - कोयला खान प्राधिकरण लि. की स्थापना। |
बाक्साइट (Bauxite)
बाक्साइट एक उपयोगी धातु है जो एल्युमिनियम बनाने के काम में आती है। बाक्साइट से एल्युमिनियम, आक्साइड के रूप में प्राप्त की जाती है।
बाक्साइट उत्पादन में भारत का विश्व में बारहवाँ स्थान है।
भण्डार की दृष्टि से इसका स्थान आठवाँ है। भारत में इसका भण्डार इस क्षेत्र में स्वाबलंबी बनाने के लिए काफी है।
देश में बाक्साइट का भण्डार 252.50 करोड़ टन तक आँका गया है जिसमें 9 करोड़ टन उच्च कोटि का बाक्साइट है। भण्डार का एक - तिहाई भाग अकेले मध्य प्रदेश में पाया जाता है।
बाक्साइट उत्पादक राज्यों में झारखण्ड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, गोआ, उड़ीसा, कर्नाटक का नाम आता है।
झारखण्ड का उत्पादन की दृष्टि से प्रथम स्थान आता है जहाँ देश का 36% बाक्साइट उत्पादित किया जाता है।
इसका उपयोग बर्तन बनाने में, वायुयान निर्माण में, सिक्के बनाने में, बिजली उद्योग में और कई औद्योगिक रूप में किया जाता है। भारत इसका कुछ भाग निर्यात भी करता है।
लौह अयस्क (Iron Ore)
लोहा वैसे सभी चट्टानों में पाया जाता है लेकिन यह निकाला उन्हीं चट्टानों से जाता है जिनमें लोहे का अंश पर्याप्त मात्रा में होता है।
सोवियत संघ (अविघटित) के बाद लौह अयस्क के सर्वाधिक भण्डार भारत में ही पाये जाते है । उत्तम किस्म के लोहे के विशाल भण्डार के लिए भारत विश्व भर में प्रख्यात है।
यह प्राय% धारवाड़ की जलज एवं आग्नेय चट्टानों से प्राप्त किया जाता है। लौह अयस्क मैग्नेटाइट हैमेटाइट, लिमोनाइट, सिडेराइट, लेटेराइट आदि रूपों में पाये जाते है ।
भारत में विश्व का 20% लोहे का भण्डार पाया जाता है। यहाँ इसका भण्डार 2160 करोड़ टन तक अनुमानित किया गया है।
लोहे के भण्डार का अधिकांश जमाव झारखण्ड, गोवा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और उड़ीसा में पाये जाते है ।
देश में कुल लौह अयस्कों का 95% भाग केवल झारखण्ड, मध्य प्रदेश और उड़ीसा राज्यों में पाया जाता है।
झारखण्ड में देश का सबसे अधिक लौह अयस्क पाया जाता है जो कुल उत्पादन का 32% है। लेकिन यहाँ का लोहा उत्तम किस्म का नहीं है। मध्य प्रदेश का स्थान दूसरा और उड़ीसा तीसरे स्थान पर है।
भारत लौह अयस्क के उत्पादक देशों में विश्व में सातवें स्थान पर है। यह विश्व का एक प्रमुख लोहा निर्यातक देश है। जापान भारत का सबसे बड़ा ग्राहक है।
निकेल (Nickel Ore)
निकेल एक बहुत ही उपयोगी धातु है जिसका बहुत ही महत्वपूर्ण औद्योगिक महत्व है। निकेल अयस्क का कुल अनुमानित भंडार 18 करोड़ 35 लाख टन है। इसके अयस्क मुख्यतः उड़ीसा के कटक और मयूरभंज जिलों में पाये जाते है ।
सोना (Gold)
यह बहुत ही बहुमूल्य धातु है। कर्नाटक के कोलार खान में और थोड़ा - सा भाग हत्ती खान (कर्नाटक) में सोना पाया जाता है।
देश में 68 टन स्वर्ण धातु के साथ स्वर्ण खनिज का अनुमानित भंडार 177.9 लाख टन है।
कोलार खान का सारा सोना भारतीय रिजर्व बैंक को बेच दी जाती है जबकि हत्ती खान के सोने का औद्योगिक उपयोग किया जाता है जो भारतीय स्टेट बैंक के माध्यम से उपलब्ध कराया जाता है।
परमाणु ऊर्जा खनिज (Minerals for Atomic Energy)
यूरेनियम झारखण्ड के जादुगुडा खान, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बस्तर जिले में पाया जाता है।
थोरियम का निष्कासन केरल और तमिलनाडु के मोनाजाइट बालूओं से किया जाता है।
बेरिलियम, भारत में राजस्थान, तमिलनाडु, बिहार, कश्मीर और आन्ध्र प्रदेश राज्यों में पाया जाता है।
हीरा (Diamond)
पन्ना हीरा क्षेत्र जो भारत का एकमात्रा हीरा उत्पादक क्षेत्र है मध्य प्रदेश के पन्ना, छत्तरपुर और सतना जिलों में फैला है। अब कृत्रिम हीरे भी बनाये जाते है ।
जिप्सम (Gypsum)
भारत का 94% जिप्सम राजस्थान के बिकानेर और जोधपुर जिलों में पाया जाता है। इसका उपयोग रासायनिक खाद और सीमेंट उद्योग में किया जाता है।
खनिज विकास
भारतीय संविधान में खनिज अधिकार और इनका प्रशासन राज्यों के सरकारों के अधीन आते है । केन्द्रीय सरकार खनिज पर अपना अधिकार और विचार खान और खनिज रेगुलेशन विकास एक्ट, 1957 के तहत व्यक्त करती है।
खान विभाग के अंतर्गत छः सार्वजनिक क्षेत्र आते ह -
हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड(HZL),
हिन्दुस्तान काॅपर लिमिटेड (HCL),
भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड (BGML),
भारत एल्युमिनियम लिमिटेड (BALCO),
नेशनल एल्युमिनियम लिमिटेड ;(NALCO), और
मिनिरल एक्सप्लोरेशन काॅरपोरेशन लिमिटेड (MECL)।
ऊर्जा
स्वतंत्राता प्राप्ति से पूर्व बिजली की आपू£त मुख्यतः निजी क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा की जाती थी और वह भी शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित थी।
बिजली (आपूति) अधिनियम 1948 में बना। पंचवर्षीय योजनाओं के विभिन्न चरणों में राज्य बिजली बोर्डों का गठन, देश - भर में बिजली आपू£त उद्योग के सुव्यवस्थित विकास की ओर एक महत्वपूर्ण कदम था।
विद्युत मंत्रालय भारतीय बिजली कानून, 1910 तथा बिजली (आपूति अधिनियम 1948 के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी संभालता है।
स्वतंत्राता प्राप्ति से पूर्व बिजली की आपू£त मुख्यतः निजी क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा की जाती थी और वह भी शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित थी।
बिजली (आपूति) अधिनियम 1948 में बना। पंचवर्षीय योजनाओं के विभिन्न चरणों में राज्य बिजली बोर्डों का गठन, देश - भर में बिजली आपूति उद्योग के सुव्यवस्थित विकास की ओर एक महत्वपूर्ण कदम था।
विद्युत मंत्रालय भारतीय बिजली कानून, 1910 तथा बिजली (आपूति) अधिनियम 1948 के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी संभालता है।
केंद्रीय क्षेत्र में उत्पादन और संप्रेषण परियोजनाओं के निर्माण और संचालन का काम केंद्रीय क्षेत्र बिजली निगमों यानी - राष्ट्रीय ताप बिजली निगम (एन.टी.पी.सी.), राष्ट्रीय पन बिजली निगम (एन.एच.पी.सी.), पूर्वोत्तर विद्युत ऊर्जा निगम (एन.एच.पी.सी.) तथा भारतीय बिजली ग्रिड निगम लिमिटेड (पी.जी.सी.आई.एल) को सौंपा गया है।
बिजली ग्रिड केंद्रीय क्षेत्र में सभी वर्तमान और भावी संप्रेषण परियोजनाओं तथा राष्ट्रीय बिजली ग्रिड के निर्माण के लिए जिम्मेदार है। संयुक्त क्षेत्र के दो बिजली निगमों - नाथपा झाकड़ी बिजली निगम (एन.जे.पी.सी.) और टिहरी पन - बिजली विकास निगम (टी.एच.डी.सी.) क्रमशः हिमाचल प्रदेश में नाथपा झाकड़ी बिजली परियोजना तथा उत्तर प्रदेश में टिहरी पन - बिजली परियोजना के क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार हैं।
दो वैधानिक निकाय - दामोदर घाटी निगम (डी.बी.सी.) और भाकड़ा व्यास प्रबंधन बोर्ड (बी.बी.एम.बी.) भी बिजली मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्राण में हैं। विद्युत मंत्रालय के तहत ग्रामीण विद्युतीकरण निगम (आर.ई.सी.) ग्रामीण विद्युतीकरण के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराता है।
बिजली वित्त निगम (पी.एफ.सी.) बिजली क्षेत्र की परियोजनाओं को मियादी - वित्तीय सहायता देता है। इसके अलावा स्वायत्त निकाय (संस्थाए) यानी केंद्रीय बिजली अनुसंधान संस्थान (सी.पी.आर.आई.), राष्ट्रीय बिजली प्रशिषण संस्थान (एन.पी.टी.आई.) एवं ऊर्जा प्रबंधन केंद्र (ई.एम.सी.) भी विद्युत मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्राण में हैं।
स्मरणीय तथ्य 1960 - केंद्रीय विद्युत अनुसंधान संस्थान की स्थापना। 1992 - बिजली मंत्रालय ने स्वतंत्रा रूप से कार्य करना प्रांरभ किया। (2 जुलाई) |
स्मरणीय तथ्य डाकसेवा दूरसंचार |
कोयले पर आधारित देश के प्रमुख ताप विद्युत-गृह | ||
1. न्येवली | ताप - विद्युत गृह | (तमिलनाडु) |
2. पतरातू | ताप - विद्युत गृह , | हजारीबाग (झारखण्ड) |
3. कोरबा | ताप - विद्युत गृह | (मध्य प्रदेश) |
4. हरदुआगंज | ताप - विद्युत गृह | (उत्तर प्रदेश) |
5. ओरबा | ताप - विद्युत गृह | मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) |
6. तलचर | ताप - विद्युत गृह | (उड़ीसा) |
7. सतपुड़ा | ताप - विद्युत गृह | (मध्य प्रदेश) |
8. परक्का | सुपर ताप - विद्युत गृह | (प.बंगाल) |
9. रामागुण्डम | सुपर ताप - विद्युत गृह | (आन्ध्र प्रदेश) |
10. विन्ध्याचल | सुपर ताप - विद्युत गृह | (मध्य प्रदेश) |
11. रिहन्द | ताप - विद्युत गृह | (उत्तर प्रदेश) |
12. सिंगरौली | ताप - विद्युत गृह | (उत्तर प्रदेश) |
तेल शोधनशालाएं | ||
शोधनशाला | वर्तमान की क्षमता लाख टन | स्थापना वर्ष |
1. डिग्बोई (IOC) | 6.5 | 1901 |
2. मुम्बई (BPCL) | 60.0 | 1955 |
3. मुम्बई (HPCL) | 55.0 | 1954 |
4. विशाखापट्टनम (HPCL) | 45.0 | 1957 |
5. कोयली (IOC) | 95.0 | 1965 |
6. गुहाटी (IOC) | 10.0 | 1962 |
7. बरौनी (IOC) | 33.0 | 1964 |
8. हल्दिया (IOC) | 37.5 | 1975 |
9. मथुरा (IOC) | 75.0 | 1982 |
10. कोचीन (CRL) | 75.0 | 1966 |
11. मद्रास (MRPL) | 65.0 | 1969 |
12. बोंगईगांव (BRPL) | 23.5 | 1979 |
13. नूनमती (NRL) | 5.0 | 1980 |
14. मंगलौर (MRPL) | 30.0 | 1993 |
15. पानीपत (IOC) | 60.0 | 2000 |
16. बरौनी (IOC) | 9.0 | 2000 |
17. मथुरा (IOC) | 5.0 | 2000 |
18. कोयली (IOC) | 30.0 | 2001 |
19. विशाखापट्टनम (HPCL) | 30.0 | 2000 |
20. नूनमती (NRL) | 30 | 2001 |
भारत की प्रजातियाँ एवं जनजातियाँ
प्रजातियाँ
रिजले का वर्गीकरण ऐतिहासिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण है जबकि वर्तमान में इसकी मान्यता समाप्त हो गयी है।
सन् 1931 की जनगणना रिपोर्ट पर आधारित डाॅ. बी. एस. गुहा का प्रजाति-वर्गीकरण सबसे प्रमुख एवं सर्वमान्य है, जिसका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-
नीग्रिटो - नीग्रिटो (Negritos) प्रजाति के तत्व मुख्यतः अण्डमान निकोबार द्वीपसमूह में पाये जाते है। इसके अन्य प्रतिनिधि हैं-अंगामी नागा (मणिपुर तथा कछार पहाड़ी क्षेत्र) बांगड़ी, इरुला, कडार, पुलायन,मुथुवान तथा कन्नीकर (सुदूर दक्षिण)।
इस प्रजाति के लोग दक्षिण भारत में ट्रावनकोर-कोचीन, पूर्वी बिहार की राजमहल पहाड़ियाँ तथा उत्तरी पूर्वी सीमान्त राज्यों में मिलते है।
प्रोटो-आस्ट्रेलायड अथवा पूर्व-द्रविड़ः प्रोटो-आस्ट्रेलायड अथवा पूर्व-द्रविड़ प्रजाति भारतीय जनजातियों में सम्मिश्रित हो गयी है।
इसके तत्वों का वहन करने वाले दक्षिण भारत में मिले है जिनमें चेंचू, मलायन, कुरुम्बा, यरुबा, मुण्डा, कोल, संथाल तथा भील आदि प्रमुख है।
मंगोलायडः मंगोलायड (Mongoloids) प्रजाति तीन उपवर्गों में मिलती है जो इस प्रकार है-
पूर्व-मंगोलायड (Palaeo-Mongoloids), जो कि हिमालय पर्वत की तलहटी में तथा असम एवं म्यान्मार सीमा क्षेत्रों में पायी जाती है। नामा, मीरी, बोडो इससे सम्बन्धित है।
चौडे सिरवाली प्रजाति के लोग लेपचा जनजाति में मिलते है तथा बांग्लादेश में चकमा इसी प्रजाति से सम्बन्धित है।
तिब्बती-मंगोलायड प्रजाति के लोग सिक्किम तथा भूटान में हैं।
भूमध्यसागरीय अथवा द्रविड़ प्रजातिः देश में भूमध्यसागरीय अथवा द्रविड़ प्रजाति के तीन उपविभाग विद्यमान हैं-
प्राचीन भूमध्यसागरीय जो द. भारत के तेलुगु तथा तमिल ब्राह्मणों मे मिलते है।
भूमध्यसागरीय जो सिन्धु घाटी सभ्यता के जन्मदाता माने जाते है तथा वर्तमान में पंजाब, कश्मीर, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, कोचीन, महाराष्ट्र तथा मालाबार में मिलते हैं।
पूर्वी अथवा सैमिटिक प्रजाति के लोग पंजाब, राजस्थान तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पाये जाते है। तुकीं अथवा अरब में उद्भूत इन लोगों ने संभवतः नव पाषाण काल में भारत में प्रवेश किया था।
चौडे सिर वाली प्रजातिः चौडे सिर वाले (ठतवंक भ्मंकमक वत ठतंबील ब्मचींसपब) प्रजाति यूरोप से भारत आयी मानी है। इसके तीन प्रमुख उपवर्ग है-
ऐल्पोनाॅइड (Alponoids) जो सौराष्ट्र (काठी, गुजरात (बनिया), पं. बंगाल (कायस्थ), महाराष्ट्र, तमिलनाडु, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश आदि में मिलती है।
डिनारिक (Dinaric) जो भूमध्यसागरीय प्रजाति के साथ मिली हुई पायी जाती है, तथा
आर्मेनाइड (Armenoids) जिसके प्रतिनिधि है-मुम्बई के पारसी लोग। प. बंगाल के कायस्थ तथा श्रीलंका की वेद्दा प्रजाति भी इनसे ही सम्बन्धित मानी जाती है।
नार्डिक अथवा इण्डो-आर्यन प्रजाति-नार्डिक अथवा इण्डो-आर्यन (छवतकपबे वत प्दकव.।तलंदे) भारत में सबसे अन्त में आने वाली प्रजाति है। वर्तमान में इनका निवास उत्तर भारत में पाया जाता है। राजपूत, सिख आदि इसके प्रतिनिधि माने जाते है।
जनजातियाँ
भारतीय जनजातियों का मूल स्रोत कभी देश के सम्पूर्ण भू-भाग पर फैली-आस्ट्रेलाॅयड तथा गोल जैसी प्रजातियों को माना जाता है।
इसका एक अन्य स्रोत नीग्रिटो प्रजाति भी है, जिसके निवासी अण्डमान निकोबार द्वीप समूह में अभी भी विद्यमान है।
देश की जनजातीय जनसंख्या के वितरण पर यदि ध्यान दिया जाय तो तीन मुख्य क्षेत्र स्पष्ट होते है जो निम्नलिखित है-
उत्तरी एवं उत्तरी पूर्वी प्रदेश-इसमें हिमालय के तराई क्षेत्र, उत्तरी-पूर्वी सीमान्त पहाड़ियाँ, तिस्ता तथा ब्रह्मपुत्रा नदी की घाटियाँ आदि सम्मिलित है। इसके अन्तर्गत असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालेैण्ड, मेघालय, मिजोरम, मणिपुर, त्रिपुरा आदि राज्यों की जनजातियाँ आती हैं।
मध्यवर्ती क्षेत्र-इसके अन्तर्गत प्रायद्वीपीय भारत के पठारी तथा पहाड़ी क्षेत्र सम्मिलित किये जाते है। देश की लगभग 80% जनजातीय जनसंख्या इसी क्षेत्र में निवास करती है। मध्य प्रदेश, द. राजस्थान, आन्ध्रप्रदेश, दक्षिण उत्तर प्रदेश, गुजरात, झारखण्ड, उड़ीसा आदि राज्य इसी क्षेत्र में आते हैं।
दक्षिणी क्षेत्र-इसके अन्तर्गत आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक, केरल तथा तमिलनाडु का जनजातीय क्षेत्र शामिल है। यह भारतीय जनजातियों के सबसे प्राचीन स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है।
इन तीन प्रमुख क्षेत्रों के अतिरिक्त अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह में भी एकाकी रूप से कुछ विशिष्ट जनजातियाँ जैसे ओंग, जारवा, उत्तरी सेण्टिनली, अण्डमानी, निकोबारी आदि पायी जाती हैं।
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1. प्रमुख खनिज पदार्थ क्या हैं? |
2. भारत में प्रमुख खनिज पदार्थ कौन-कौन से हैं? |
3. भारत में प्रमुख खनिज पदार्थों का उपयोग क्या हैं? |
4. भारतीय भूगोल UPSC परीक्षा में खनिज पदार्थों से संबंधित कौन-कौन से विषय पूछे जा सकते हैं? |
5. भारतीय भूगोल UPSC परीक्षा में खनिज पदार्थों की उपयोगिता के बारे में ज्ञान क्यों महत्वपूर्ण हैं? |
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